उच्च न्यायालय के आदेश का उल्लंघन कर गिरा दी बाराबंकी की गरीब नवाज मस्जिद

17 मई को उत्तर प्रदेश के बाराबंकी के रामसनेहीघाट तहसील प्रशासन ने मस्जिद गरीब नवाज को इलाहाबाद हाई कोर्ट के आदेश का उल्लंघन करते हुए गिरा दिया. सैयद फारूक अहमद

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17 मई को उत्तर प्रदेश के बाराबंकी में रामसनेहीघाट तहसील प्रशासन ने मस्जिद गरीब नवाज को इलाहाबाद हाई कोर्ट के आदेश का उल्लंघन करते हुए गिरा दिया. स्थानीय लोगों का दावा है कि गिरा दी गई मस्जिद अवैध निर्माण नहीं थी. स्थानीय सामाजिक कार्यकर्ता और कानून के विद्यार्थी सैयद फारूक अहमद ने मुझे बताया कि गिराए जाने से ठीक दो महीने पहले जोहर की नमाज इस मस्जिद में पढ़ी गई आखिरी नमाज थी. उस दिन पुलिस अधिकारियों ने मस्जिद के गेट पर बैरिकेडिंग कर दी और लोगों का प्रवेश निषेध कर दिया.

इससे पहले उत्तर प्रदेश सरकार ने घोषणा की थी कि जनवरी 2011 के बाद सार्वजनिक सड़कों पर निर्मित धार्मिक ढांचे छह महीने के भीतर जमीनदोज कर दिए जाएंगे.

सरकारी दस्तावेजों से पता चलता है कि गरीब नवाज मस्जिद कम से कम 1991 से तो है ही और यहां रहने वाले लोग मानते हैं कि मस्जिद दशकों पुरानी है. 24 अप्रैल को इलाहाबाद हाई कोर्ट ने मस्जिद को खाली करवाने अथवा गिराने से संबंधित आदेश पर स्टे लगा दिया था. हाई कोर्ट ने कहा था कि कोविड-19 महामारी के मद्देनजर वह यह निर्देश दे रही है. हाई कोर्ट के आदेश में कहा गया था कि राज्य सरकार, नगर पालिकाएं और स्थानीय निकाय तथा एजेंसियां एवं सरकारी मशीनरी 31 मई तक तोड़फोड़ और खाली करवाने में नरमी बरतें. जिला प्रशासन ने मस्जिद को हाई कोर्ट के इस आदेश के बावजूद ध्वस्त कर दिया है.

मस्जिद को गिराने का निर्णय 2016 के हाई कोर्ट के उस आदेश पर आधारित है जिसमें हाई कोर्ट ने कहा था कि जनवरी 2011 के बाद सार्वजनिक सड़कों पर अतिक्रमण कर बनाए गए धार्मिक स्थलों को हटाया जाए. अदालत ने यह भी कहा था जो ढांचे जनवरी 2011 के पहले बने हैं उन्हें अन्यत्र ले जाया जाए. इस साल 11 मार्च को उत्तर प्रदेश सरकार ने घोषणा की कि वह उक्त आदेश को लागू करने जा रही है. चार दिन बाद रामसनेहीघाट के तहसीलदार जयशंकर त्रिपाठी ने उक्त आदेश का हवाला देते हुए तीन दिन के भीतर मस्जिद से जुड़े साक्ष्य प्रस्तुत करने की मांग कर डाली.

मस्जिद गरीब नवाज रामसनेहीघाट के तहसील भवन परिसर में स्थित है और इसके सामने सब डिविजनल मजिस्ट्रेट का आवास है. मस्जिद उत्तर प्रदेश सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड में पंजिकृत है. यह स्पष्ट नहीं है कि मस्जिद कितनी पुरानी है लेकिन दस्तावेजों और स्थानीय लोगों से बातचीत करने से पता चलता है कि इसका निर्माण 2011 के पहले हुआ था. मस्जिद के बिजली के मीटर में उसे लगाने की तारीख 1 अप्रैल 1959 है. इस तरह देखा जाए तो मस्जिद छह दशक पुरानी मालूम पड़ती है. साथ ही 1991 के लैंड सर्वे दस्तावेज मस्जिद के वहां होने की पुष्टि करते हैं. स्थानीय सामाजिक कार्यकर्ता अहमद ने भी बताया कि यहां के लोग अपने दादा-परदादा के जमाने में भी इस मस्जिद के होने की बात करते हैं. इस इलाके के इमाम मौलाना अब्दुल मुस्तफा का कहना है कि मस्जिद 100 साल पुरानी है और कम से कम वह तो इसे आधी सदी से देख ही रहे हैं. वक्फ बोर्ड के चेयरमैन जफर अहमद फारुकी ने भी मीडिया को बताया है कि मस्जिद 100 साल पुरानी है.

अहमद के अनुसार 2016 का उच्च न्यायालय का आदेश गरीब नवाज मस्जिद पर लागू नहीं होता क्योंकि मस्जिद तहसील बाउंड्री से कम से कम 100 से 150 फीट बाहर है. अहमद ने बताया कि नोटिस में उल्लेखित गाटा संख्या अथवा प्लॉट नंबर भ्रामक है क्योंकि उसमें कहा गया है कि मस्जिद प्लॉट नंबर 776, 777, 841 और 842 के आसपास खड़ी है.

मस्जिद का प्रबंधन करने वाली समिति ने तहसील प्रशासन के नोटिस का जवाब 1 अप्रैल को तहसीलदार को भेजा था. अहमद के अनुसार, मस्जिद प्रबंधन समिति ने चकबंदी के बाद जारी नक्शों की कॉपियां भी तहसीलदार को भेजी थी.

चकबंदी दस्तावेज में बताया गया मस्जिद का गाटा नंबर सरकारी आदेश में उल्लेखित प्लॉट नंबर ने मेल नहीं खाता. चकबंदी के बाद अक्सर प्लॉट नंबर बदल जाते हैं और चकबंदी प्रक्रिया के बाद नए नंबर वाला चार्ट मुहैया कराया जाता है. मस्जिद का पुराना प्लॉट नंबर 558 है जो चकबंदी के बाद बदल कर 778-क और 778-ख हो गया है. लेकिन ऑनलाइन उपलब्ध राजस्व रिकॉर्ड में 778-क 1778-ख में मस्जिद नहीं दिखाई गई है. बल्कि वहां खेल का मैदान और बालिका स्कूल दिखाए गए हैं. अपने जवाब में मस्जिद समिति ने चकबंदी प्रारूप-2 जमा किया है जिसमें 1951 में की गई चकबंदी में दर्ज की गई संपत्तियों का विवरण है. रिकॉर्ड में प्लॉट नंबर 558 में एक स्कूल, एक तहसील और एक मस्जिद दिखाए गए हैं और अहमद के अनुसार यदि नोटिस में प्लॉट नंबर 778 दिखाया जाता तो इसका पुराना 558 नंबर ढूंढने में मुश्किल नहीं होती और तब दिखाया जा सकता सकता था की मस्जिद 2011 के पहले से वहां है.

18 मार्च को मस्जिद समिति ने इलाहाबाद हाई कोर्ट के समक्ष रिट याचिका दायर कर सरकार द्वारा जारी नोटिस को चुनौती दी थी लेकिन अदालत ने याचिका को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि नोटिस में याचिकाकर्ताओं से दस्तावेजी साक्ष्य मांगे गए हैं और यह मस्जिद गिराने का नोटिस नहीं है. अदालत ने कहा कि याचिकाकर्ताओं का मस्जिद गिराए जाने का भय निराधार है. अदालत ने मस्जिद समिति को 15 दिन के भीतर जवाब देने को कहा था. हाई कोर्ट के आदेश अनुसार, मस्जिद समिति ने तहसील प्रशासन के समक्ष अपना जवाब दर्ज करा दिया था. तब से इस बाबत मस्जिद समिति को कोई जवाब नहीं दिया गया. यहां तक कि 17 मई को जब मस्जिद गिराई गई तब भी समिति कोई चेतावनी नहीं दी गई.

अप्रैल की शुरुआत में अहमद ने रामसनेहीघाट तहसील के समक्ष मस्जिद के संबंध में आरटीआई डाली थी जिसमें अन्य सवालों के अतिरिक्त यह भी पूछा था कि राजस्व रिकॉर्ड में मस्जिद का नंबर क्या है और क्या मस्जिद में नमाज पढ़ने पर पाबंदी लगाई गई है. यदि हां, तो कब और क्यों और नमाज पुनः कब चालू की जाएगी. अहमद को आरटीआई का जवाब अब तक नहीं मिला है.

अहमद ने मुझे बताया कि मस्जिद गिराए जाने के अगले दिन वह अन्य लोगों के साथ जिला मजिस्ट्रेट आदर्श सिंह से मिलने गए थे लेकिन वह मौजूद नहीं थे और उसी दिन वक्त बोर्ड ने एक बयान जारी तक कहा था कि वह हाई कोर्ट में याचिका डाल मस्जिद को गिराए जाने की न्यायिक जांच की मांग करेगा. वक्फ बोर्ड ने मस्जिद को गिराए जाने की निंदा की है और कार्रवाई को “अवैध” कहा है. बोर्ड ने मस्जिद को फिर से बनाए जाने की मांग की है.

1991 के लैंड सर्वे दस्तावेज मस्जिद के वहां होने की पुष्टि करते हैं मस्जिद को गिराने का निर्णय 2016 के हाई कोर्ट के उस आदेश पर आधारित है जिसमें हाई कोर्ट ने कहा था कि जनवरी 2011 के बाद सार्वजनिक सड़कों पर अतिक्रमण कर बनाए गए धार्मिक स्थलों को हटाया जाए.

तहसीलदार त्रिपाठी ने इस मामले में मेरे द्वारा पूछे गए सवालों का जवाब देने से यह कह कर इनकार कर दिया कि केवल मजिस्ट्रेट ही इस मुद्दे पर बात कर सकते हैं. बाराबंकी के जिला मजिस्ट्रेट सिंह ने मेरे फोन कॉलों और संदेशों का जवाब नहीं दिया.

इससे पहले सिंह ने गार्डियन अखबार के रिपोर्टर को बताया था कि उन्हें उस स्थान पर मस्जिद की मौजूदगी की कोई जानकारी नहीं है. उन्होंने कहा था कि उन्हें इस बात का पता है कि वह ढांचा गैरकानूनी है और उत्तर प्रदेश हाई कोर्ट ने उसे अवैध करार दिया है और इसलिए इलाके के एसडीएम ने कार्रवाई की है. “इससे ज्यादा मैं कुछ नहीं बोल सकता.”

मस्जिद गिराए जाने के बाद 18 मई को सिंह ने वक्तव्य जारी किया जिसमें उन्होंने मस्जिद के इलाके में होने का बात नहीं की. इसकी बजाय उन्होंने एसडीएम आवास के सामने एक गैर कानूनी आवासीय परिसर होने की बात की. जिला मजिस्ट्रेट ने दावा किया कि इस परिसर में रहने वाले लोग 15 मार्च के नोटिस के बाद वहां से चले गए थे और परिसर को 18 मार्च को “सुरक्षा कारणों” से तहसील प्रशासन ने अपने कब्जे में ले लिया था.

सिंह ने मस्जिद समिति के जवाब में क्या था इसका अपने बयान में उल्लेख नहीं किया लेकिन कहा कि जवाब मिलने के बाद प्रशासन ने पाया कि ढांचा गैरकानूनी है. सिंह ने 24 अप्रैल के इलाहाबाद हाई कोर्ट के आदेश की भी बात नहीं की और न ही इस बात की जानकारी दी कि मस्जिद को कोर्ट के आदेश का उल्लंघन करते हुए गिराया गया है.

गार्डियन अखबार ने मस्जिद गिराए जाने को 1992 में हिंदू राष्ट्रवादी दंगाइयों द्वारा बाबरी मस्जिद को गिराए जाने के बाद अब तक की सबसे बड़ी भड़काऊ घटनाओं में से एक बताया है. बाबरी मस्जिद को गिराए जाने के अलावा राज्य में अन्य कई मस्जिदों के खिलाफ भी ऐसे ही दावे किए जा रहे हैं. इस साल अप्रैल में बनारस की एक अदालत ने भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण को ज्ञानवापी मस्जिद के आसपास खुदाई कर यह पता लगाने के लिए कहा था कि कहीं वह मस्जिद किसी अन्य धार्मिक स्थल के ऊपर तो नहीं बनाई गई है.

अहमद के अनुसार, मस्जिद गरीब नवाज को बंद किए जाने के खिलाफ 19 मार्च को प्रदर्शन करने वाले कई लोगों को गिरफ्तार किया गया है. इमाम मुस्तफा ने मुझे बताया कि इलाके में भय का माहौल है और कई मुस्लिम अपने घरों को छोड़कर चले गए हैं.

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