उत्तर प्रदेश के बिजनौर जिले के फरीदपुर काजी गांव के 7 मुस्लिम परिवारों ने बताया है कि 8 मई की शाम को पुलिस ने उनके घरों में घुस कर तोड़फोड़ की और मौजूद लोगों को मारा और गालियां दी. घरों में तोड़फोड़ करने के बाद पुलिस गांव के वारिश अहमद, दिलशाद अहमद और मोहम्मद मतीम को गिरफ्तार कर कोतवाली थाना ले गई. पुलिस ने गिरफ्तार लोगों को या उनके परिजनों को नहीं बयाता कि उन्हें क्यों हिरासत में लिया जा रहा है. अगली सुबह गांव के प्रधान इकबाल के थाना जाने बाद तीनों को छोड़ दिया गया. पुलिस ने इकबाल को बताया कि पुलिस को गांव में गोकशी का शक था.
पुलिस ने लोगों के घरों के चूल्हे और दरवाजे तोड़ दिए और बर्तनों में रखा खाना बिखेर दिया. ज्यादातर लोग खेतों में काम कर लोटे थे और थके हुए थे इसलिए भारी संख्या में पुलिस को देख कर समझ नहीं पाए कि उसके आने की क्या वजह है. देखते-देखते इन घरों में दहशत का महौल बन गया.
कम से कम दो समाचारों में उल्लेख है कि फरीदपुर काजी गांव में पुलिस की दबिश राज्य में गोकशी के खिलाफ व्यापक कार्रवाई का हिस्सा थी. 12 मई को टाइम्स ऑफ इंडिया ने खबर दी थी कि पश्चिमी यूपी में गो तस्कर और गोकशी के खिलाफ जारी 15 दिन के अभियान के आखरी चरण में गिरफ्तारी और एनकाउंटर के मामले में बढोतरी आई है. समाचार एजेंसी यूएनआई ने दो दिन पहले एक रिपोर्ट में बताया था कि यूपी सरकार ने उन स्थानों को चिन्हित कर कोरोनावायरस मामलों की तरह “हॉटस्पॉट” घोषित करने को कहा है जहां गैरकानूनी गोकशी हो रही है.
25 बीघा जमीन में गन्ने की खेती करने वाले 45 साल के भूरा ने हमें बताया कि वह शाम को गन्ने के ट्राली में भरवाकर घर लौटे थे. “ट्रोली लेकर मुझे रात 11 बजे बिजनौर चीनी मिल पहुंचना था. मैं कुछ समय पहले ही घर आया था और इफ्तार के बाद अपनी चारपाई पर आराम कर रहा था. अचानक पुलिस मेरे दरवाजे पर आ गई और पूछने लगी, ‘भूरा कहां है’. मैं डर गया और भागने लगा. पुलिस ने पीछे से मेरी कमर पर डंडा मारा और मैं गिर गया.” भूरा ने बताया कि उस वक्त रात के 8 बज रहे थे. अफरातफरी में भूरा गिर पड़े और उनका बायां पैर टूट गया और घुटने के पास सूजन आ गई. भूरा ने कहा, “बहुत सारे पुलिस वाले थे.”
उन्होंने बताया कि उस वक्त घर पर वह, उनकी पत्नी और उनके चार बच्चे थे. “मेरे बेटे ने पूछा, ‘अंकल क्या बात है’ तो उन्होंने उसको भी लाठी से मारा और खूब गाली-गलौज करने लगे. मेरी पत्नी और बच्चे घबरा गए. हमें पता नहीं चल रहा था कि पुलिस हमारे घर क्यों आई है.” पुलिस ने उनके घर में तोड़फोड़ की और बचा हुआ खाना जमीन पर गिरा दिया. उन्होंने मुझे कहा, “मैं अपने घर में अकेला खेती करने वाला हूं. अभी गन्ने की मेरी फसल खड़ी है जिसे चीनी मिल ले जाना है. मेरे खेत में अभी गन्ने की नई बुआई नहीं हुई है और अब पैर ही टूट गया.”
गांव की 22 साल के मतीम ने बताया कि घर पर इफ्तार करने के बाद वह अपने कमरे में थे जब पुलिस आई और तेजी से दरवाजा पीटने लगी. “पुलिस ने मेरे घर के बाहर का दरवाजा तोड़ दिया. मैं तेज आवाज सुनकर आंगन में आ गया. पुलिस गाली दे कर हमको मारने लगी. मैं इतनी सारी पुलिस देखकर डर गया. मैंने पूछा, ‘सर, क्या हुआ है’ तो वे गाली दे कर बोले, ‘अभी बताते हैं.’ लेकिन उन्होंने कुछ नहीं बताया.” मतीम ने बताया कि उस वक्त घर में वे चार भाई थे. “मेरी और मुझसे बड़े भाई की शादी हो चुकी है. हम दोनों की बीवियां भी मौजूद थीं. उन्होंने मेरे छोटे भाई तसीम को भी डंडे से मारा.” मतीम को पुलिस थाने ले गई. उन्होंने कहा कि उनको नहीं बताया गया कि क्यों लेकर आए हैं. अगले दिन गांव के प्रधान इकबाल जब थाने आए “तब जाकर हमको बताया कि गाय काटने के शक पर पुलिस हम लोगों के घर आई थी.”
मतीम ने भी भूरा कि तरह बताया कि उनके घर में भी पुलिस ने जमकर तोड़-फोड़ की थी और “घर के दरवाजे, बर्तन, चूल्हा सब तोड़ दिया.” मतीम ने आगे बताया, “मेरे घर में सब बुरी तरह डर गए थे. हमको नहीं पता गोकशी की झूठी खबर पुलिस को किसने दी. मैं लॉकडाउन से पहले देहरादून में पेंटिंग का काम करता था. लॉकडाउन के 15 दिन पहले मैं घर आया था और यहीं रह गया.”
उसी गांव के 28 साल के दिलशाद को भी पुलिस मतीम के साथ थाने लाई थी. दिलशाद और उनके परिवार वाले घर में इतनी ज्यादा पुलिस देख कर डर गए थे. दिलशाद ने बताया, “घर में मेरे मम्मी-पापा, हम तीन भाई और सभी की बीवियां थीं. पुलिसवाले गंदी-गंदी गालियां देने लगे. हमारे घर में तोड़ेफोड़ कर डाली और मुझे अपनी गाड़ी में बिठा लिया.”
गांव के कई हिंदुओं ने भी पुलिस की कार्रवाई पर सवाल उठाए हैं. गांव के नरेश कुमार प्रजापति ने बताया कि गांव में पुलिस के आने की और घरों में तोड़फोड़ करने और तीन लोगों को गिरफ्तार करने की बात उन्हें अगले दिन सुबह पता चली थी. प्रजापति ने बताया कि उन्हें नहीं लगता कि गांव में कोई गोकशी कर सकता है. “हमारे यहां ऐसी कोई बात नहीं है. मेरी आटा चक्की है और ज्यादातर मुस्लिम मेरे यहां आटा पिसाते हैं. मैं सबको जानता हूं. पुलिस बेवजह गांववालों को परेशान कर रही है.”
प्रजापति की तरह ही बाबूराम ने भी गोकशी की बात से इनकार किया और कहा, “हम लोगों में बहुत मेलजोल है. इस गांव के लोग आपसी भाईचारे से रहते हैं.”
दिल्ली के पास नोएडा की डिक्सन कंपनी में काम करने वाले अशोक ने बताया कि उन्हें रात में पता चला कि गांव में पुलिस आई थी लेकिन तब यह नहीं पता था कि मामला क्या है. “वह तो हमको सुबह पता चला कि कोई गाय का मामला है पर मुझे लगता है हमारे गांव में ऐसा नहीं हो सकता.” अशोक ने आगे बताया, “किसी ने पुलिस को गलत जानकारी दी होगी. हमारे गांव में बहुत भाईचारा है. लोग बड़े प्यार से रहते हैं. मेरे खेत और मुस्लिमों के खेत एक साथ हैं. हम लोग मिल-जुल कर खेती करते हैं. अभी गांव में गन्ने की बुआई हो रही है. सब एक-दूसरे की मदद कर रहे हैं.”
30 साल के वारिश अहमद ने बताया कि घर में पुलिस आई और बोली, “अनीश कहां है?” अनीश उनका छोटा भाई है और वह उस वक्त घर पर नहीं था. वारिश ने बताया, “मैंने पूछा ‘सर क्या हुआ?’ तो वे लोग मुझे गाली देने लगे और बोले, ‘अभी बताते हैं. तुम चलो हमारे साथ थाने.’” वारिश ने आगे बताया, “हमारे घर पर उन्होंने खूब तोड़फोड़ की. मेरी बाइक भी तोड़ दी. मेरे मम्मी-पापा बहुत डर गए और समझ भी नहीं पा रहे थे कि अचानक से क्या हो गया है. फिर पुलिस मुझे थाने ले गई. पुलिस की गाड़ी में मोहम्मद मतीम और दिलशाद अहमद पहले से थे.”
गांव के नूरहसन की पत्नी पड़ोस में गई थीं जब पुलिस उनके घर आई. उस वक्त घर में उनके साथ उनके दो बच्चे थे. नूरहसन ने कहा, “अचानक आकर पुलिस पूरे घर की तलाशी लेने लगी. मैंने पूछा कि क्या हुआ है तो वे लोग हमें गालियां देने लगे और मुझे और मेरे बेटे को डंडे से मारा.” नूरहसन ने बोला, “मैं मेहनत-मजूरी करने वाला आदमी हूं. मेरी समझ में कुछ नहीं आया कि घर में पुलिस क्यों आई है.”
पुलिस ने गांव की दो औरतों, छोटी और इमराना, के घरों में भी तोड़फोड़ की.
50 साल की छोटी ने बताया कि करीब 25 पुलिसवाले उनके घर में घुस आए और पूछने लगे कि उनका बेटा फहीम कहां है और तोड़फोड़ करने लगे. “घर में रखा खाना भी फेंक दिया.” फहीम उस समय खेत से भूसा लाने गए थे. “घर पर मैं, फहीम की पत्नी और उसके दो छोटे बच्चे थे. मुझे और फहीम की पत्नी को गंदी-गंदी गाली देने लगे. उन लोगों ने हमारे पूरे घर की तलाशी ली. कांच के बर्तन तोड़ दिए, घर का दरवाजा तोड़ दिया. मैंने पूछा उनसे कि वे फहीम को क्यों तलाश रहे हैं लेकिन जवाब में वे सिर्फ गालियां देते रहे.” छोटी ने बताया कि वे लोग अपनी खेती को लेकर परेशान हैं. “बारिश की वजह से खेत में गेंहू देर से कटा. कटने के बाद फिर बारिश हो गई तो वह मशीन में भी देर से गया. गेहूं काला पड़ गया है और पुलिस की वजह से हम बहुत डर गए हैं.”
छोटी की ही उम्र की इमराना ने बताया कि रात करीब 8 बजे पुलिस उनके घर आई थी. “तब मैं अपनी भैंस को चारा डाल कर आई ही थी कि देखा मेरे घर में इतनी सारी पुलिस आई है. मैं डर गई. मेरी तीन बहुओं से पुलिसवाले गाली-गलौज करने लगे. मेरी बहुओं ने खाने के लिए तरबूज काट कर रखा था जिसे उन्होंने फेंक दिया.” इमराना ने बताया, “हमने लौकी और चने की दाल की सब्जी बनाई थी, उसे भी पुलिसवालों ने फेंक दिया. मैंने पूछा, ‘क्या बात है?’ तो उन्होंने कुछ नहीं बताया. जब मेरे छोटे बेटे ने पूछा कि क्या बात हो गई तो एक पुलिस वाला बोला, ‘तुम लोग बहुत गोमांस खाते हो.’”
जब हमने इस मामले के बारे में बिजनौर पुलिस स्टेशन के एसएचओ रमेशचंद्र शर्मा से पूछा तो उन्होंने कहा, “मेरे संज्ञान में ऐसा कोई मामला नहीं है.” लेकिन गांव के प्रधान इकबाल ने हमें फोन पर बताया कि गांव में पुलिस इस शक पर आई थी कि गोकशी हुई है. उसने तीन लोगों को गिरफ्तार भी किया था लेकिन फिर अगले दिन तीनों को मेरे सामने छोड़ दिया.”
इकबाल के कहा कि पुलिस ने लोगों के घरों में तोड़फोड़ कर बहुत गलत किया है. “उन्हें ऐसा नहीं करना चाहिए था और इस तरह बेवजह शक भी नहीं करना चाहिए.”