नए साल का पहला दिन मंगलवार. दक्षिणी राज्य केरल के उत्तर में बसे कन्नूर जिले की सड़कों पर आज सुबह से ही बेचैन कर देने वाला संनाटा है. हल्के ट्रैफिक के बीच धीमी रफ्तार से दौड़ रहीं जीपों पर लगे स्पीकरों से आती एक आवाज इस संनाटे को भेद रही है. ‘‘महिलाओं को अशुद्ध न मानने वालों आओ और महिला वॉल (श्रृंखला) का हिस्सा बनो.” जीप की आगे की सीट पर बैठी उस महिला ने फिर कहा, “पुनर्जागरण के मूल्यों की रक्षा करो. महिला वॉल का हिस्सा बनो.”
1 जनवरी 2019 को वानिता मातिल या महिला श्रृंखला बनाई गई. इसका एक छोर केरल के सबसे उत्तरी जिले कासरगोड में और दूसरा सिरा दक्षिणी जिले तिरुवनंतपुरम में था. यह राष्ट्रीय राजमार्ग 66 पर बनी 620 किलोमीटर लंबी श्रृंखला थी. इसकी अवधारणा रूढ़िवाद के खिलाफ एक काउंटर नैरेटिव के रूप में की गई थी और राज्य के पुनर्जागरण के दौरान लैंगिक और जातीय असमानताओं को मिटाने के लिए काम करने वाले समाज सुधारकों की याद में इसे बनाया गया था. 2 दिसंबर 2018 को मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन द्वारा बुलाई बैठक में दलित नेता पुन्नल्ल श्रीकुमार ने इसका सुझाव दिया था. श्रीकुमार केरल पुलया महासभा या केपीएमएस के महासचिव हैं. तकरीबन 176 हिंदू संगठनों ने सर्वोच्च अदालत के 28 सितंबर 2018 के फैसले के मद्देनजर सबरीमाला मंदिर में प्रवेश करने वाली महिलाओं की सुरक्षा और इस फैसले को पवित्र परंपरा पर हमला बताने वाले के प्रदर्शनों पर चर्चा करने के लिए बैठक में भाग लिया.
भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) और उससे जुड़े संगठनों- केपीएमएस, ओबीसी एझावों के संगठन श्री नारायण धर्म परिपालन योगम और कुटुम्बश्री ने श्रृंखला का आयोजन किया था. कुटुम्बश्री महिलाओं के लिए सरकार द्वारा प्रायोजित स्वयं सहायता समूह हैं. कन्नूर के गांव एकेजी नगर में माकपा की शाखा के सचिव प्रभाकरण के अनुसार, राज्य में विपक्षी पार्टियों ने महिलाओं को यहां आने से रोकने के लिए सबरीमाला विवाद का इस्तेमाल किया. “हमने उनसे कहा कि इसका सबरीमाला मुद्दे से कोई लेना-देना नहीं है.” उन्होंने आगे कहा, “यह महिला श्रृंखला एक ऐसी व्यवस्था के खिलाफ है जो महिलाओं को दोयम दर्जे के नागरिकों के रूप में देखती है.”
ये महिलाएं 1 जनवरी को दोपहर 3 बजे टेम्पो, बसों और कारों में सवार होकर कन्नूर जिले के पय्यन्नूर तालुका के कन्डोत गांव में पहुंची. वे कन्डोत मंदिर के सामने वाले राजमार्ग के समीप इकट्ठी हुईं. कुछ महिलाएं अपने लिए तय स्थान पर लाइन लगाने लगीं. जगह-जगह सड़क को सफेद चौक से मार्क किया गया था. अन्य औरतें छाव में खड़ी होकर चमकीले पीले बैज लगाए आयोजकों के निर्देशों का इंतजार कर रहीं थीं. 80 साल की केएल लीला ने मुझे बताया, “हमारे छोटे से इलाके में रहने वाले 5 परिवारों में 21 महिलाएं हैं.” उन्होंने मुझे बताया कि वह ताउम्र माकपा की सदस्य रही हैं. जब मैंने पूछा कि उन्होंने इस महिला श्रृंख्ला में क्यों भाग लिया? तो उनका कहना था, “मुझे अपनी पार्टी पर विश्वास है. पार्टी ने मेरे अच्छे और बुरे वक्त में मेरा साथ दिया. इसलिए मैं इस पहल में भी विश्वास करती हूं.” 75 साल की उम्र में सबरीमाला का दौरा करने वाली लीला ने उच्चतम न्यायालय के उस फैसले का समर्थन किया जिसमें सभी आयु वर्ग की महिलाओं को मंदिर में प्रवेश करने की अनुमति दी गई है.
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