यह भीड़-भाड़ वाली एक गली की “ब्लैक एंड व्हाइट” तस्वीर थी जिसके केंद्र में एक आदमी था जो कैमरे में देख रहा था. उसका चेहरा कंप्यूटर-जनित बॉक्स के क्रॉसहेयर में फिट बैठा हुआ था जिसमें ढेर सारे मोबाइल नंबर भी थे. इसके अलावा उसमें जन्मतिथि, पता और ऐसी ही अन्य निजी जानकारियां थीं. इन सबके ऊपर प्रमुखता से एक 12 अंकों का नंबर दिखाई दे रहा था जिसके चार नंबर जानबूझ कर ढके हुए थे. यह आधार नंबर का एक तरह का प्रस्तुतिकरण यानी दिखाए जाने का तरीका है. यह बायोमेट्रिक आधारित डिजिटल पहचानकर्ता है और भारत सरकार ने इसे हर किसी पर थोपने की कोशिश की है. भीड़ में कुछ और चेहरे थे जो बॉक्स में कैद थे और जिनके सिर पर आधार नंबर का ताज सजा था. तस्वीर के ऊपर चंद लाइने लिखी थीं, उनमें से एक में लिखा था, “@On_grid टीम में आपका स्वागत है.”
ये शब्द और तस्वीर इंडिया स्टैक के उस ट्वीट का हिस्सा थे जो फरवरी 2017 में किया गया था. इसमें घोषणा की गई थी कि ऑनग्रिड इसे इस्तेमाल करने वाली संस्थाओं के एक चयनीत समूह से जुड़ा है. इंडिया स्टैक, आधार पर आधारित एक एप्लिकेशन है जो इसे अन्य सेवाओं से जोड़ता है. इसे एपीआई भी कहते हैं, एपीआई एक तरह का कोड होता है जो अलग-अलग प्रोग्रामों के बीच संवाद स्थापित करता था. उदहारण के लिए जब आप ‘बुक माई शो’ से टिकट बुक करते हैं तो जिस पेमेंट गेटवे का इस्तेमाल होता है उसे ‘एपीआई’ कह सकते हैं. असल में इंडिया स्टैक एपीआई के ब्लॉक तैयार कर रही है जो कई तरह की सेवाएं देने वाली कंपनियों के सॉफ्टवेयर के लिए तैयार किए जा रहे हैं. इसमें निजी और सरकारी दोनों तरह की कंपनियां शामिल हैं जिनके सॉफ्टवेयर को इस्तेमाल करने के लिए “आधार” की जरूरत होगी. ऑनग्रिड एक निजी कंपनी है जो मजदूरी करने वाले लोगों को नौकरी देने वाली कंपनियों को, मजदूरों के जीवन से जुड़ी जानकारी मुहैया कराती है. इसके लिए यह कंपनी लोगों के आधार का इस्तेमाल करती है, वहीं अन्य सूत्रों से भी जानकारी इकट्ठा करती है. इसमें आदमी का इतिहास, पृष्ठभूमि जैसी जानकारियां होती हैं.
‘इंडिया स्टैक’ ने ऑनग्रिड के होम पेज से लेकर यह तस्वीर ट्वीट की थी. लोग इसे तुरंत डरावना और अवांछित करार देने लगे. अवांछित इसलिए क्योंकि इसे सबकी निगरानी के लिए आधार के इस्तेमाल के तौर पर देखा गया. इंडिया फीड ने तस्वीर को ट्विटर से तुरंत हटा लिया लेकिन ऑनग्रिड जो कर रहा था उसकी समीक्षा जारी थी. किसी ने ट्वीट कर पूछा, “क्या इसका मतलब यह है किसी व्यक्ति का आधार, पैन, पासपोर्ट जैसे दस्तावेज लिंक हो जाएंगे और आपके सर्वर पर मौजूद रहेंगे?” कंपनी के संस्थापकों में शामिल पीयूष पेशवानी ने जवाब दिया, “अगर सहमति है तो “हां”. आधार की जानकारी इसके मालिक की होती है और निर्णय भी उसी का होगा कि क्या रहे और क्या नहीं.” एक और यूजर ने लिखा, “आपने तस्वीर हटा ली और वही बातें दोबारा सिर्फ शब्दों में कह दी.”
जिस समय यह ट्वीट आया उसके पहले से ही आधार बेहद विवादों में था. कांग्रेस नीत पिछली सरकार ने इस स्कीम के लिए कानूनी समर्थन पाने का प्रायस किया लेकिन बुरी तरह असफल रही. साल 2011 में संसद की वित्त संबंधित स्थायी समिति की बागडोर तब की विपक्षी पार्टी बीजेपी के हाथों में थी. इसका कहना था कि आधार में “कई खामियां और चिंताजनक बातें हैं.” समिति का कहना था कि इसकी “अवधारणा में यह बात गायब है कि इससे क्या करना है, और इसे दिशाहीन तरीके से भारी गड़बड़ियों के साथ लागू किया जा रहा है.” एक रिटायर जज ने 2012 में पहली बार आधार को चुनौती दी. उन्होंने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि “ये नागरिक की निजता का सीधा उल्लंघन है” और शिकायत की कि संसद द्वारा इसे खारिज किए जाने के बावजूद सरकार स्कीमों के लिए इसका इस्तेमाल कर रही है. मार्च 2016 में आधार एक्ट पास होने के बाद जब आधार अंतत: कानून का हिस्सा बन गया तो ये बीजेपी की उस सरकार के भीतर हुआ जिसने विपक्ष में रहते हुए इसका पुरजोर विरोध किया था. सरकार ने इसे पास करने के लिए असाधारण तरीका चुना और इसे “मनी बिल” के तौर पर पास कर दिया. ऐसा सिर्फ उन कानूनों को पास करने के लिए किया जाता है जिनमें पब्लिक फंड शामिल हो और इसके लिए राज्यसभा की सहमति की दरकार नहीं होती. राज्यसभा में वर्तमान सरकार के पास बहुमत नहीं है. आलोचकों का कहना है कि आधार कानून की वजह से नागरिक स्वतंत्रता, राष्ट्रीय सुरक्षा और सामाजिक नीति से जुड़ी चिंताएं हैं और इसे ‘मनी बिल’ नहीं माना जा सकता. एक कांग्रेस नेता ने भी इसे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है.
तब से आधार को लेकर चिंता और विवाद थम नहीं रहे हैं. बेंगलुरु स्थित एक थिंक टैंक सेंटर फॉर इंटरनेट और सोसायटी ने मई 2017 में एक रिपोर्ट जारी की. इसमें कहा गया कि सरकारी वेबसाइटों पर 130 मिलियन लोगों का आधार नंबर छापा जा चुका है. इनमें लोगों के नाम, अकाउंट नंबर और अन्य निजी जानकारियां शामिल हैं. जनवरी 2018 में द ट्रिब्यून ने एक खबर में बताया कि कैसे इसकी एक रिपोर्ट को एक बिचौलिए ने महज 500 रुपए की रकम के लिए ऐसे पोर्टल का पता बताया जिसे ऐसे किसी व्यक्ति की जानकारी है जिसके पास आधार है. आधार से जुड़े डेटा के बड़े लीक की जानकारी इसी तेजी से सामने आ रही है. इस बीच ऐसी अनोक खबरें आई हैं, जिनमें गरीबों के पास आधार नहीं होने की वजह से उन्हें सुविधाओं से वंचित होना पड़ा है. इसमें खाद्य समग्री के लिए मना किए जाने तक की बात शामिल है. ऐसी स्थिति इसलिए आई क्योंकि आधार से उस व्यक्ति की पहचान कभी नेटवर्क की वजह से नहीं हो पाई तो कभी उनकी उम्र या मजदूरी की मार की वजह से, उनकी उंगलियों के निशान ने साथ छोड़ दिया. कुछ खबरों में भूख से हुई इन मौतों को नकारा गया है.
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