प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और व्रह्तर हिन्दू राष्ट्रवादियों का ईकोसिस्टम अथवा पारिस्थितकी तंत्र मुख्यतः दो किस्म के पत्रकारों में बंटा हुआ है. पहली किस्म में “खबरों के वे सौदागर आते हैं”, जिन्हें लुटियन की दिल्ली में मोदी-विरोधी कैंप पालता-पोसता है और सतत उनके पतन की दिशा में काम करता रहता है. दूसरी किस्म में निष्पक्ष, “असली” पत्रकार हैं. इस श्रेणी में देश की सबसे बड़ी टीवी न्यूज एजेंसी, एशियन न्यूज इन्टरनेशनल (एएनआई) की संपादक स्मिता प्रकाश, एक प्रमुख नाम है. हाल के कुछ वर्षों में, भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के नेताओं और समर्थकों ने, स्वतंत्र पत्रकारिता में, स्मिता को आशा की नई किरण बताकर सराहा है.
हालांकि, बतौर पत्रकार वह अपने तीन दशकों के अनुभव का जिक्र करना पसंद करती हैं, “स्वतंत्र विचारों वाली पत्रकार” के रूप में स्मिता की पहचान, 2014 में उस साल चुनावों के दौरान उनके द्वारा लिए गए मोदी के साक्षात्कार के बाद ही बनी. स्मिता और मोदी के बीच यह साक्षात्कार दोनों के लिए खासा सुखद साबित हुआ. स्मिता द्वारा न्यूज वेबसाइट के लिए लिखे गए, पर्दे के पीछे के वृत्तांत में उन्होंने अधिकतर उन चीजों की सूची पेश की, जिनको लेकर वे उनसे अत्यधिक प्रभावित थीं. जैसे वे इस बात से बेहद मुत्तासिर लगीं कि मोदी और उनके लोगों से उन्हें इंटरव्यू को लेकर लगभग कोई पूर्व निर्देश नहीं दिए गए. वह गांधीनगर के उनके निवास की सादगी से भी बेहद अभिभूत लगीं, जहां “दीवारें करीब-करीब नंगी थीं और एक अदद कालीन भी नहीं था.” उन्होंने कल्पना की कि ऐसा आदमी अगर प्रधानमंत्री बना गया तो वह बहुत जल्द ही 7 रेस कोर्स रोड को किसी सादे शालीन मठ में बदल डालेगा.”
साक्षात्कार के दौरान, मोदी को ज्यादा मुश्किल सवालों का सामना नहीं करना पड़ा. स्मिता का निष्पक्षता का सिद्धांत, मोदी के लिए बहुत सुविधाजनक साबित हुआ. अपने वृत्तांत में उन्होंने लिखा,“मेरी कोशिश इंटरव्यू के दौरान भरसक निष्पक्ष रहने की थी. मेरे सवाल 2002 के दंगों के बाद, हिंदुत्व और नफरत फैलाने वाले भाषणों के परे केंद्रित थे.”
जो कुछ-एक असहज कर देने वाले सवाल उन्होंने बामुश्किल उक्त साक्षात्कार में उनसे पूछे भी, वे या तो कमजोर ढंग से पूछे गए, या,फिर प्रतिप्रश्नों से उनको आगे बढ़ाने की जरूरत नहीं समझी गई. और मोदी को भरपूर मौका दिया कि वह अपने जवाबों को मनमाफिक फिरकी दे सकें. मोदी, अमरीका के रक्षामंत्री रोबर्ट मेक्न्मारा की उस उक्ति का अनुसरण कर रहे थे, जिसमे उन्होंने कहा था: “उस प्रश्न का जवाब कभी मत दो, जो आपसे पूछा गया है. उसी प्रश्न का जवाब दो, जो आपके हिसाब से पूछा जाना चाहिए था.”
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