समाचार एजेंसी एएनआई : प्रोपगेंडा का करोबार

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और व्रह्तर हिन्दू राष्ट्रवादियों का ईकोसिस्टम अथवा पारिस्थितकी तंत्र मुख्यतः दो किस्म के पत्रकारों में बंटा हुआ है. पहली किस्म में “खबरों के वे सौदागर आते हैं”, जिन्हें लुटियन की दिल्ली में मोदी-विरोधी कैंप पालता-पोसता है और सतत उनके पतन की दिशा में काम करता रहता है. दूसरी किस्म में निष्पक्ष, “असली” पत्रकार हैं. इस श्रेणी में देश की सबसे बड़ी टीवी न्यूज एजेंसी, एशियन न्यूज इन्टरनेशनल (एएनआई) की संपादक स्मिता प्रकाश, एक प्रमुख नाम है. हाल के कुछ वर्षों में, भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के नेताओं और समर्थकों ने, स्वतंत्र पत्रकारिता में, स्मिता को आशा की नई किरण बताकर सराहा है.

हालांकि, बतौर पत्रकार वह अपने तीन दशकों के अनुभव का जिक्र करना पसंद करती हैं, “स्वतंत्र विचारों वाली पत्रकार” के रूप में स्मिता की पहचान, 2014 में उस साल चुनावों के दौरान उनके द्वारा लिए गए मोदी के साक्षात्कार के बाद ही बनी. स्मिता और मोदी के बीच यह साक्षात्कार दोनों के लिए खासा सुखद साबित हुआ. स्मिता द्वारा न्यूज वेबसाइट के लिए लिखे गए, पर्दे के पीछे के वृत्तांत में उन्होंने अधिकतर उन चीजों की सूची पेश की, जिनको लेकर वे उनसे अत्यधिक प्रभावित थीं. जैसे वे इस बात से बेहद मुत्तासिर लगीं कि मोदी और उनके लोगों से उन्हें इंटरव्यू को लेकर लगभग कोई पूर्व निर्देश नहीं दिए गए. वह गांधीनगर के उनके निवास की सादगी से भी बेहद अभिभूत लगीं, जहां “दीवारें करीब-करीब नंगी थीं और एक अदद कालीन भी नहीं था.” उन्होंने कल्पना की कि ऐसा आदमी अगर प्रधानमंत्री बना गया तो वह बहुत जल्द ही 7 रेस कोर्स रोड को किसी सादे शालीन मठ में बदल डालेगा.”

साक्षात्कार के दौरान, मोदी को ज्यादा मुश्किल सवालों का सामना नहीं करना पड़ा. स्मिता का निष्पक्षता का सिद्धांत, मोदी के लिए बहुत सुविधाजनक साबित हुआ. अपने वृत्तांत में उन्होंने लिखा,“मेरी कोशिश इंटरव्यू के दौरान भरसक निष्पक्ष रहने की थी. मेरे सवाल 2002 के दंगों के बाद, हिंदुत्व और नफरत फैलाने वाले भाषणों के परे केंद्रित थे.”

जो कुछ-एक असहज कर देने वाले सवाल उन्होंने बामुश्किल उक्त साक्षात्कार में उनसे पूछे भी, वे या तो कमजोर ढंग से पूछे गए, या,फिर प्रतिप्रश्नों से उनको आगे बढ़ाने की जरूरत नहीं समझी गई. और मोदी को भरपूर मौका दिया कि वह अपने जवाबों को मनमाफिक फिरकी दे सकें. मोदी, अमरीका के रक्षामंत्री रोबर्ट मेक्न्मारा की उस उक्ति का अनुसरण कर रहे थे, जिसमे उन्होंने कहा था: “उस प्रश्न का जवाब कभी मत दो, जो आपसे पूछा गया है. उसी प्रश्न का जवाब दो, जो आपके हिसाब से पूछा जाना चाहिए था.”

उदाहरण के लिए, जब स्मिता ने गुजरात में एक औरत की जासूसी में सरकारी तंत्र के इस्तेमाल को लेकर उन पर लगे आरोपों से संबंधित सवाल पूछा तो मोदी ने पूरे आत्मविश्वास से कांग्रेस-शासित राज्यों में महिलाओं के खिलाफ होने वाले अपराधों की दयनीय स्थिति को लेकर पांच मिनट लंबा भाषण दे डाला. अपने साक्षात्कार के दौरान स्मिता एक बार भी इस संबंध में मोदी के खिलाफ विशेष रूप से लगे आरोपों पर नहीं लौटीं.

बीजेपी के प्रति चापलूसी वाला रवैया रखने वाले चैनलों, जैसे इंडिया टीवी की अपेक्षा लोगों को यह उम्मीद थी कि स्मिता, मोदी के प्रति उतना नर्म रुख नहीं अपनाएंगी, जितना अन्य अपना रहे थे. इसी कारण एएनआई के इस साक्षात्कार से मोदी को अर्नब गोस्वामी, रजत शर्मा और सुधीर चौधरी द्वारा जैसे पक्के मोदी प्रशंसकों के साक्षात्कारों से ज्यादा फायदा मिला. उनके उलट स्मिता निष्पक्षता के महत्व की ज्यादा समझ होने का आभास देतीं लगती थीं. मोदी ने 2015 और 2018 में, एएनआई को दो और साक्षातकार दिए. प्रधानमंत्री बनने के बाद, किसी भी मीडिया हाउस को दिए जाने वाले साक्षात्कारों में ये सबसे अधिक थे.

इसी परिप्रेक्ष में, चुनाव वर्ष 2019 में साक्षात्कार देने के लिए मोदी के सामने, स्मिता सबसे स्वाभाविक पसंद थीं. मोदी सरकार का इस वर्ष में प्रवेश, बहुत सी गंभीर समस्याओं के साथ हुआ था. जिसमे तीन प्रमुख राज्यों–मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़– में कांग्रेस के हाथों विधान सभा चुनावों में करारी हार भी शामिल थी. इसके अलावा, राफेल सौदे में सीधे-सीधे भ्रष्टाचार का आरोप, पिछले चार दशकों में बेरोजगारी की सबसे ज्यादा दर जैसे मसलों ने भी सरकार की मुश्किलों में इजाफा कर दिया था. इस साक्षात्कार ने मोदी को मौका दिया कि वे इन अप्रिय मसलों से “निष्पक्ष पत्रकार” की मौजूदगी में निपट सकें.

2019 का साक्षात्कार, 2014 के साक्षात्कार की पुनरावृति थी. स्मिता ने इस बार भी वही रणनीति अपनाई. उन्होंने कुछ असहज सवाल तो उठाए, लेकिन प्रतिप्रश्न नहीं किए. मोदी इन सवालों की उपेक्षा करने या उन्हें अपनी तरह का मोड़ देने के लिए पूर्णत: स्वतंत्र दिखे.

करीब एक घंटे बाद, साक्षात्कार के दौरान स्मिता ने मोदी से राफेल सौदे को लेकर सवाल दागा. इस सौदे में, भारत सरकार द्वारा फ्रांसिसी कंपनी दसॉल्ट एविएशन से लड़ाकू विमान खरीदे जाने थे. कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने दावा किया कि पुराने समझौते को महज इसलिए खारिज कर दिया गया ताकि अनिल अंबानी की रिलायंस डिफेंस को इसका लाभ पहुंच सके, जिसे डसॉल्ट एविएशन ने सौदे में इंडियन पार्टनर के रूप में चुना गया था. लड़ाकू विमान या किसी भी अन्य किस्म के विमान बनाने में रिलायंस डिफेंस का किसी भी किस्म का अनुभव न होने के बावजूद, उसे यह कॉन्ट्रैक्ट दिया गया और सरकारी कंपनी हिन्दुस्तान एरोनॉटिक्स लिमिटेड को दरकिनार कर दिया गया.

“आरोप यह है कि अनिल अंबानी आपके दोस्त हैं और आपने फ्रांसिसी सरकार और डसॉल्ट पर अपने दोस्त को फायदा पहुंचाने के लिए दबाव बनाया,” स्मिता ने मोदी से पूछा. “आपने इस संबंध में कुछ नहीं कहा. आप इस मुद्दे को लेकर चुप्पी क्यों साधे हुए हैं?”

मोदी का जवाब था कि आरोप अकेले उन पर नहीं हैं, परंतु समूची सरकार पर हैं. फिर उन्होंने दावा किया कि वह पहले भी इस आरोप का जवाब दे चुके हैं और विपक्ष द्वारा लगाए जा रहे इस आरोप का बार-बार जवाब नहीं देंगे. तब तक मोदी ने विशेष रूप से अपने खिलाफ लगे आरोपों का जवाब नहीं दिया था. उन्होंने बस एक व्यापक सा बचाव रखा था और उल्टा आक्षेप लगाया था कि कांग्रेस इस तरह की छींटाकशी करके राष्ट्रीय हित को नुकसान पहुंचा रही है. “मेरा बस इतना ही कसूर है कि मैं ‘मेक इन इंडिया’ कर रहा हूं.” मोदी ने देश के अंदर ही उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए चलाई जा रही सरकारी मुहिम का हवाला देते हुए कहा. “मेरा सिर्फ इतना ही कसूर है. मेरी कोशिश है कि जो कुछ भी हमारी सेना को चाहिए उसका उत्पादन देश में ही मुमकिन हो सके, ताकि बाहरी देशों के साथ सौदेबाजी से छुटकारा मिले. मेरा प्रयास तकनीकी हस्तांतरण के लिए है.”

मोदी का यह जवाब दिक्कतों से भरा हुआ था और कायदे से एक पत्रकार को इसे भांप लेना चाहिए था. पहला, मोदी इस सवाल पर अब भी चुप्पी साधे हुए थे कि अंबानी की कंपनी को ही क्यों चुना गया और यह फैसला किसका था? दूसरा, मोदी का दावा कि “वह तकनीकी हस्तांतरण का प्रयास कर रहे हैं,” तथ्यों से कोसो दूर था. स्मिता ने इस तरफ कोई इशारा नहीं किया कि इस समझौते के तहत विमान, उड़ान लेने की स्थिति में भारत आने वाले थे. असल में, देश में लड़ाकू विमान बनाने से संबंधित तकनीकी हस्तांतरण का प्रावधान पुराने समझौते में निहित था, जिसे मोदी सरकार ने निरस्त कर दिया था. स्मिता, जो इस समझौते से जुड़े कई महत्वपूर्ण शख्सियतों का साक्षात्कार कर चुकीं थीं, ने मोदी के इस झूठ को नजरंदाज होने दिया और अगले प्रश्न पर पहुंच गईं.

इस साक्षात्कार का मोदी को भरपूर फायदा मिला. इसे हर चैनल पर दिखाया गया. फेसबुक पर इसका सीधा प्रसारण हुआ और मोदी के अधिकृत यू ट्यूब चैनल पर भी इसे अपलोड किया गया. एक दर्शक-अनुसंधान निकाय के मुताबिक, हिंदी चैनलों में ही इसको करीब साठ लाख लोगों ने देखा.

राहुल गांधी ने अगले दिन संसद में कहा, “पूरा देश पूछ रहा है कि एक प्रायोजित साक्षात्कार में तो प्रधानमंत्री डेढ़ घंटे तक बोल सकते हैं, लेकिन वे राफेल को लेकर बुनियादी सवालों के जवाब नहीं दे सकते.” उन्होंने संसद के बाहर प्रेस कांफ्रेंस में पत्रकारों से कहा, “मोदी में आपके सामने आने की हिम्मत नहीं है. आपने कल प्रधानमंत्री का साक्षात्कार देखा...मतलब वे एक आज्ञाकारी पत्रकार की तरह जो सवाल कर रहीं थीं और प्रधानमंत्री की तरफ से जवाब भी दे रहीं थीं.”

ट्विटर पर सक्रिय स्मिता ने जवाब दिया, “प्रिय श्री राहुल गांधी, आपके द्वारा प्रेस कांफ्रेंस में मुझ पर हमला करना एक ओछी हरकत है,” उन्होंने लिखा, “मैं प्रश्न कर रही थी, जवाब नहीं दे रही थी. आप मोदी जी पर हमला करना चाहते हैं तो करें, लेकिन मेरा मजाक उड़ाना हास्यास्पद है. देश की सबसे पुरानी पार्टी के अध्यक्ष से यह उम्मीद नहीं थी.”

बीजेपी और सरकार दोनों स्मिता के बचाव में कूद पड़े. “स्वतंत्र पत्रकारिता को लेकर कांग्रेस की यही मानसिकता रही है,” पार्टी के राष्ट्रीय प्रवक्ता अनिल बलूनी ने वक्तव्य जारी करते हुए कहा. “राहुल गांधी के डीएनए में ‘इमरजेंसी’ है. पत्रकारिता को कुचलने का उनकी पार्टी का इतिहास रहा है. उन्हें देश के पत्रकारों से अपनी इस ओछी बयानबाजी के लिए माफी मांगनी चाहिए.” वित्तमंत्री अरुण जेटली ने ट्वीट किया: “इमरजेंसी की तानाशाह के पोते ने एक स्वतंत्र पत्रकार पर हमला और धमकी देकर अपना असली डीएनए दिखा दिया.”

2019 का साक्षात्कार, 2014 के साक्षात्कार की पुनरावृति थी. स्मिता ने इस बार भी वही रणनीति अपनाई. उन्होंने कुछ असहज सवाल तो उठाए, लेकिन प्रतिप्रश्न नहीं किए. मोदी इन सवालों की उपेक्षा करने या उन्हें अपनी तरह का मोड़ देने के लिए पूर्णत: स्वतंत्र दिखे.

बतौर पत्रकार स्मिता का स्वतंत्रता का दावा बेहद कमजोर है. इंटरव्यू करने का उनका अंदाज तयशुदा पत्रकारिता के सिद्धांतों से मेल नहीं खाता. “किसी की अंध स्व-तल्लीनता और पत्रकार का उसकी कही हर हर बात को शक की नजर से देखना ही पत्रकारिता को प्रमाणिकता और जीवंतता प्रदान करता है,” जेनेट मेल्कम ने द जर्नलिस्ट एंड द मर्डरर में लिखा है. “जो पत्रकार किसी के कहे को बिना किसी शंका की नजर से देखे हुए निगल कर हूबहू पेश करता है, उसे पत्रकार नहीं बल्कि प्रचारक की संज्ञा दी जानी चाहिए.” अत: एक राजनीतिक पत्रकार की भूमिका, जनता की तरफ से सिर्फ जरूरी सवाल करना ही नहीं होता, बल्कि अगर राजनेता सवाल से बचने की कोशिश कर रहा है या तथ्यों को तोड़मरोड़ कर पेश कर रहा है, तो उसको दृढ़तापूर्वक चुनौती देना भी होता है.

बीजेपी चाहे कितना भी दावा कर ले कि स्मिता, निष्पक्ष और स्वतंत्र मीडिया का प्रतिनिधित्व करती हैं, हमारे सामने ऐसे कई साक्ष्य हैं जो एक अलग ही कहानी बयान करते नजर आते हैं. ऐसे बहुत कम मसले हैं जिन पर स्मिता सरकार से अलग सोचती हों. अक्सर अपनी तमाम सोशल मीडिया पोस्ट्स और टीवी बहसों में वह सरकार की जन संपर्क अधिकारी ज्यादा नजर आती हैं. एक न्यूज एजेंसी के संपादक, जिनसे मैंने बात की, ने स्मिता की तुलना अमरीका के व्हाइट हाउस प्रेस सचिव सारह हकबी सांडर्स से की, जिनका काम अमरीकी राष्ट्रपति के प्रवक्ता का है. लेकिन जब हम एएनआई के कारनामों पर नजर डालते हैं, जिसकी वह मुखिया हैं, स्मिता की पक्षधरता सोशल मीडिया और टीवी पर फीकी पड़ जाती है, यहां तक कि बहुत मासूम नजर आती हैं. अपने पूरे इतिहास में, एएनआई हमेशा दिल्ली की सत्ता के गलियारों के नजदीक और सरकार के प्रचार में बेशर्मी की हद तक जुडी रही है.

देश-विदेश के चैनलों को वीडियो न्यूज प्रदान कराने वाली, भारत की यह सबसे बड़ी एजेंसी दशकों से इस स्पेस में अपना प्रभुत्व जमाए हुए है. एएनआई देश भर में 400 से ज्यादा चैनलों के जरिए, खामोशी से समाचारों के एक बड़े हिस्से को प्रभावित कर रही है.

इसकी वेबसाइट के अनुसार, इसकी स्थापना 50 साल पहले हुई थी. आज यह दक्षिण एशिया की प्रमुख मल्टीमीडिया एजेंसी बन चुकी है, जिसके देश भर, दक्षिण एशिया और दुनिया के अन्य देशों में 100 से अधिक ब्यूरो हैं, जो टीवी, प्रिंट, मोबाइल और ऑनलाइन मीडिया को टेक्स्ट, वीडियो  और तस्वीरें प्रदान करवाती है. एएनआई और इससे जुड़ी कंपनियों का सैकड़ों करोड़ रुपयों का कारोबार है.

ऐसे समय में जब देश के कितने ही न्यूज चैनल घाटे में चल रहे हैं, एएनआई लगातार मुनाफा कमाती रही है. भारत में ब्रॉडकास्टिंग सेक्टर के लिए यह एजेंसी, आधारशिला बन गई है, जो एक सफल बिजनेस मॉडल के अभाव में विकट संकट के दौर से गुजर रहा है. नलिन मेहता की इंडिया ऑन टेलीविजन के मुताबिक, “खबरें भारत में सबसे कम देखा जाने वाला कार्यक्रम है.” इसलिए अधिकतर भारतीय चैनलों ने बहुत कम संख्या में रिपोर्टर और कैमरामैन रखे हुए हैं, जो अधिकतर कुछ बड़े शहरों तक सीमित हैं. ऐसे चैनलों के लिए एएनआई अक्सर हमेशा वीडियो फूटेज पाने का एकमात्र जरिया होता है, जिसके पास देश भर में रिपोर्टरों का जखीरा है. विभिन्न चैनलों द्वारा बनाए जाने वाले अधिकतर कार्यक्रम, या तो स्टूडियो में बैठकर बोलने वाले दो चेहरों को लेकर होते हैं, या बहस-मुबाहिसों वाले. एक प्रमुख न्यूज चैनेल के वरिष्ठ इनपुट एडिटर ने बताया, “दो-तीन दिन के लिए एएनआई रोक कर देख लीजिए, हर चैनल में हड़कंप मच जाएगा.” न्यूज चैनलों के अस्तित्व के लिए एएनआई इतना जरूरी हो गया है.

एएनआई के वीडियो प्रोडक्शन के क्षेत्र में शिखर पर पहुंचने की कहानी, प्रकाश परिवार, जो इस एजेंसी के मालिक होने के साथ-साथ इसका संचालन भी करते हैं, द्वारा सरकार में अपनी पैठ बनाने और बढ़ाने के समानांतर चलती है. स्मिता एएनआई के सीईओ संजीव प्रकाश से बिहाई हुई हैं, जो इसके संस्थापक और चेयरमैन, प्रेम प्रकाश के सुपुत्र हैं.

पूर्व मुख्य सूचना अधिकारी एस. नरेंद्र ने मुझे बताया, “आज की हुकूमत एएनआई के इस एकाधिकार से खुश हैं, क्योंकि उसके लिए इस अंतर्राष्ट्रीय पहुंच वाली एकमात्र एजेंसी पर नियंत्रण रखना आसान हो जाता है. मीडिया में विविधिता, वैसे भी किसी सरकार के लिए, सूचना प्रबंधन की शत्रु है.”

रॉयटर्स समेत कई प्रमुख अंतर्राष्ट्रीय न्यूज आउटलेट्स के साथ, एएनआई के संबंधों के कारण भी सरकार के लिए यह उपयोगी हो जाती है. “नब्बे के दशक में, सरकार को अगर बीबीसी जैसी जगहों पर कोई वीडियो या क्लिप चलवाना होता तो उसको भी एएनआई के पास जाना होता था,” विदेशी मामलों के एक वरिष्ठ विश्लेषक ने बताया. “अगर विदेश मंत्रालय, बीबीसी को सीधे वीडियो भेजता है तो वह उसे प्रोपेगेंडा करार कर बाहर फेंक देगी. इसके एवज में, आपके पास कुछ ऐसा है जो सरकार द्वारा भी समर्थित है और जिसे आप प्राइवेट का जामा पहनाकर इस्तेमाल कर सकते हैं.”

विदेश मंत्रालय एएनआई का महत्वपूर्ण ग्राहक है. मंत्रालय की वेबसाइट, दो महत्वपूर्ण मीडिया अभियान चलाती है – “इंडिया ग्लोबल” और “इंडिया फाइल.” बाद वाले को, “भारत से प्रमुख खबरों” के रूप में बताया गया है और इसमें एएनआई द्वारा निर्मित वीडियोज हैं जो विश्व भर के चैनलों के लिए मुफ्त इस्तेमाल के लिए उपलब्ध हैं. ऐसे ही एक वीडियो  को, हेडलाइन दी गई है, “इंडियास ग्रोइंग फौरन एंगेजमेंट हेल्प स्ट्रेंग्थन बाईलेटरल टाइस”. दूसरी हेडलाइन कहती है, “डसॉल्ट” के सीइओ के अनुसार, भारत का लड़ाकू विमान सौदा ‘ईमानदार’.” मंत्रालय ने कारवां द्वारा भेजे गए विस्तृत प्रश्नों के जवाब नहीं दिए.

पिछले 4 महीनों के दौरान, इस स्टोरी पर काम करते हुए मैंने करीब-करीब नब्बे लोगों से बातचीत की, जिनमें वरिष्ठ पत्रकार, एएनआई और नौकरशाही से जुड़े लोग भी शामिल थे. इस दौरान, मुझे पता चला कि एएनआई के संबंध न केवल विदेश बल्कि सरकार के कई अन्य मंत्रालयों और भारत की विदेश खुफिया एजेंसी रिसर्च एंड एनालिसिस विंग (रॉ) से भी हैं. इसके कई पूर्व कर्मचारियों ने बताया कि एएनआई का विभिन्न राज्य सरकारों से उनके द्वारा आयोजित कार्यक्रमों को कवर करने के लिए भी अनुबंध है.

ईमेल पर मैंने संजीव प्रकाश से पूछा कि क्या यह सच है कि एएनआई भारत सरकार के कई मंत्रालयों के लिए प्रोपेगेंडा मटेरियल तैयार करता है? “एएनआई में हमारा एक वृतचित्र विंग है, जिसकी प्रोडक्शन फैसिलिटी का उपयोग विभिन्न राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय नेटवर्क, वृतचित्र, टॉक शो, क्रॉस लाइव और अन्य कार्यक्रम बनाने के लिए करते रहते हैं.” उन्होंने जवाब में लिखा. “इनके कॉपीराइट और प्राइवेसी अधिकार, ब्रॉडकास्टर के पास निहित होते हैं इसलिए मैं इनके कंटेंट के बारे में कुछ नहीं कह सकता.”

संजीव प्रकाश से स्मिता की शादी ने तत्कालीन मुख्य सूचना अधिकारी राममोहन राव (बाएं) और एएनआई के संस्थापक प्रेम प्रकाश (केंद्र) का नेटवर्क मजबूत किया.

एएनआई का कई देशों की सरकारी न्यूज एजेंसियों के साथ भी करार है. हाल में संजीव प्रकाश को मुफ्त कंटेंट के आदान-प्रदान के लिए एमिरेट न्यूज एजेंसी के साथ एमओयू पर दस्तखत करते हुए देखा गया. यह तथ्य कि उक्त करार सरकारी दूरदर्शन की बजाए एएनआई के साथ किया गया, सरकारी तंत्र में इसकी पैठ की तरफ इशारा करता है.

एएनआई हमेशा सतारूढ़ पार्टी के करीब रही है, लेकिन प्रतीत होता है कि वर्तमान पार्टी के साथ इसके विशेष संबंध हैं. एएनआई के मालिकों की विचारधारा, जो उनकी सोशल मीडिया पोस्ट से जाहिर है, मोदी सरकार और धुर-दक्षिणपंथियों की विचारधारा से मेल खाती लगती है. राफेल सौदे को लेकर एएनआई की कवरेज दिखाती है कि वर्तमान सरकार पिछली सरकार की अपेक्षा इसकी सेवाओं पर ज्यादा भरोसा करती है.

वीडियो न्यूज निर्माण क्षेत्र में सरकार द्वारा नियंत्रित एजेंसी के एकाधिकार के अपने आप में गंभीर परिणाम हो सकते हैं. देश के लगभग सभी टीवी चैनल वही दिखा रहे हैं जो सरकार चाहती है कि आप देखें. इस नियंत्रण से भ्रष्टाचार से लेकर बेरोजगारी तथा कश्मीर और उत्तरपूर्व जैसे दूर-दराज के संजीदा इलाकों की कहानियों तक के मुद्दों के इर्द-गिर्द गढ़े जा रहे गल्प को, सरकार द्वारा अपने हिसाब से तोड़-मरोड़ कर पेश करने का अवसर मिलता है. जैसे-जैसे 2019 का आम चुनाव करीब आता जाएगा, वर्तमान सरकार के हाथ में सत्ता में अपनी वापसी के प्रयास के लिए एएनआई एक शक्तिशाली हथियार साबित होगा.

{दो}

3 नवंबर 1988 के दिन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने मालदीव के तत्कालीन राष्ट्रपति मॉमून अब्दुल गय्यूम की दरख्वास्त को मानते हुए श्रीलंकाई तमिल उग्रवादी संगठन के सदस्यों द्वारा उनके तख्तापलट की कोशिश को नाकाम करने हेतु उनकी मदद में सेना भेजने का ऐलान किया. जब राजीव गांधी ने मिशन को कवर करने के लिए देर से फैसला लिया तो उनके प्रेस सलाहकार जी पार्थसारथी को बहुत ही कम समय में पत्रकारों को भेजने का इंतजाम करने का काम सौंपा गया.

उसी दिन मुख्य सूचना अधिकारी यानी सरकारी प्रवक्ता राममोहन राव की बेटी स्मिता की, दिल्ली के अशोका होटल में एएनआई के संस्थापक प्रेम प्रकाश के बेटे संजीव से, शादी हो रही थी. पार्थसारथी ने शादी में शामिल पत्रकारों की एक टुकड़ी एकत्रित की. इस टुकड़ी को पालम एअरपोर्ट भेज दिया गया. उन्हें आगरा एयर फोर्स स्टेशन ले जाया गया, जहां उनके लिए मालदीव जाने वाला हवाई जहाज तैयार खड़ा था. यह मिशन सफल रहा. राव ने अपने संस्मरण कनफ्लिक्ट कम्यूनिकेशन: क्रोनिकल्स ऑफ अ कम्युनिकेटर में लिखा, “हर साल जब हम 3 नवंबर को अपनी बेटी की सालगिरह मनाते हैं, मुझे “ऑपरेशन कैक्टस” याद आ जाता है. इस मिशन का नाम, और कि कैसे मीडियाकर्मियों को भारत-मालदीव आपसी संबंधों में एक महत्वपूर्ण पल को कवर करने के लिए शादी की पार्टी से अगवा कर लिया गया था.

संजीव और स्मिता की शादी ने राव और प्रेम प्रकाश के नेटवर्क को आपस में गूंथ लिया. इस मिलन ने एएनआई के लिए पहुंच और प्रभाव के एक विशाल द्वार को खोल दिया. एएनआई की तरक्की में राव का बहुत अहम हाथ है. सूचना और उसको नियंत्रित करने वाले सरकारी तंत्र में राव की पहुंच हर कहीं थी. प्रमुख सूचना अधिकारी बनने से पहले राव भारतीय सेना में जन-संपर्क अधिकारी थे, उन्होंने 4 साल रॉ में भी बिताए थे. पीआईओ के पद पर 1985 में नियुक्त होने के बाद उन्होंने बदलते राजनीतिक माहौल और उथल-पुथल से भरी गठबंधन सरकारों के बावजूद चार प्रधानमंत्रियों – राजीव गांधी, वी.पी. सिंह, चन्द्रशेखर और पी.वी. नरसिम्हा राव– के अंतर्गत काम किया. रिटायर होने के बाद उन्हें रक्षा मंत्री से लेकर पंजाब तथा जम्मू और कश्मीर, और सरकारी प्रसारक, दूरदर्शन तथा ऑल इंडिया रेडियो पर, नियंत्रण रखने वाली बॉडी प्रसार भारती में सलाहकार के पद से भी नवाजा गया.

1971 में पाकिस्तान से युद्ध के दौरान, राव सेना के जन-संपर्क अधिकारी के पद पर आसीन थे. ढाका के नजदीक तंगैल नामक जगह पर सेना ने अपने जवान पाकिस्तानी जवानों के पीछे उतार दिए थे. जब राव इस कार्रवाई की तस्वीर जुगाड़ने में असफल रहे तो उन्होंने आगरा के पैर-ड्राप के समय ली गई पुरानी तस्वीर को इस्तेमाल में ले लिया. उन्होंने अपने संस्मरण में लिखा, “तस्वीर को काट-छांटकर वाजिब कैप्शन दिया और उसकी 1000 प्रतियां बनवाकर अखबारों में बंटवा दीं.” लोगों को यह कहानी सुनाने में उन्हें बहुत मजा आता था. “अगले दिन तमाम अखबारों के मुख पृष्ठ पर यह तस्वीर छपी थी,” वरिष्ठ पत्रकार कल्याणी शंकर ने राव की मौत पर लिखा. “उन्हें तस्वीर इस्तेमाल करने की अपनी इस हरकत पर कोई मलाल नहीं था. हालांकि बाद में, उन्हें इस पर झाड़ भी सुननी पड़ी थी.”

2013 में राव ने एएनआई के लिए अपनी इस धोखाधड़ी के बारे में लिखा. “दिल्ली में मुझे अपने दफ्तर में इस पर ‘युद्ध’ लड़ना पड़ा. मुझे फाइल पिक्चर को उपयोग में लाने के कारणों के बारे में सफाई पेश करनी पड़ी. मेरे बॉस मुझसे सफाई चाहते थे,” राव ने लिखा. “लेकिन किसी और दफ्तर के किसी और कमरे में तत्कालीन रॉ के चीफ आर.एन काओ “मुस्कुराए और मेरे काम की सराहना की. मैं जल्द ही काओबॉय बन गया, जैसा कि उस समय, काओ के अधीन रॉ में काम करने वालों को पुकारा जाता था.

राव को इसका भली-भांति ज्ञान था कि पत्रकारों का कैसे इस्तेमाल करना है. बी.जी. वर्गीज ऐसे पत्रकारों में थे, जिन्होंने 1965 की लड़ाई के बारे में सकारात्मक लेख लिखे. दशकों बाद, 1991 में कुनान और पोश्पोरा के कश्मीरी गांवों में जब सेना के लोगों पर कम से कम सौ महिलाओं के बलात्कार का आरोप लगा तो राव ने वर्गीज से एक जांच समिति की अगुवाई करने के लिए कहा. इस समिति ने सेना पर लगे इल्जाम को खारिज करते हुए बलात्कार के आरोप को झूठा बताया. मानव अधिकार संगठनों ने बाद में इस जांच की सत्यता पर कड़े प्रश्न उठाए.

सरकार में राव के समय के दौरान, स्मिता प्रकाश और एएनआई को बहुत फायदा मिला. उदाहरण स्वरुप 1991 में, तमिलनाडु की चुनाव रैली के दौरान राजीव गांधी की मानव बम से हत्या की तुरंत पुष्टि नहीं हो पा रही थी. सूचना विभाग में मध्यरात्रि में राव ने एक प्रेस ब्रीफिंग दी. “दूरदर्शन एक दिन के लिए बंद कर दिया गया था और लोगों को अंतर्राष्ट्रीय टीवी चैनलों से खबर मिली,” राव ने लिखा. “संयोग से एएनआई में काम करने वाली मेरी बेटी स्मिता प्रकाश को राजीव गांधी की हत्या के बारे में पहली सरकारी बाइट मिली.”

कई लोगों ने मुझे बताया कि एएनआई के उत्थान में, राव की अहम् भूमिका रही है. “वे हर सरकार में नौकरशाहों को जानते थे,” एएनआई के एक पूर्व संपादक ने बताया. “सरकारें आती-जाती रहती हैं, नौकरशाह वहीं बने रहते हैं.” 2008 के अंत में, राव ने एएनआई के प्रिंट न्यूज सेक्शन में बतौर चीफ एडिटर भी काम किया. एएनआई से राव की नजदीकी का यह भी मतलब था कि राव का कुछ अंश उसमे भी आ गया.

एएनआई के उत्थान के पीछे, ‘प्रेम प्रकाश’ का बहुत बड़ा हाथ रहा है, जिन्हें भारतीय टीवी पत्रकारिता का जनक कहा जाता है. प्रेम की यात्रा देश में टेलीविजन के उद्भव से शुरू होती है. व्यवसायी दृष्टि और देश-विदेश में अपने सही संपर्कों के मिलाप के कारण प्रेम को एएनआई का साम्राज्य खड़ा करने में मदद मिली.

रावलपिंडी से बंटवारे के बाद, दिल्ली में बस गए फोटोग्राफर, विश्वनाथ प्रकाश सभरवाल की 6 संतानों में, प्रेम सबसे सबसे बड़े हैं. 1942 में, दूसरे विश्व युद्ध में भारतीय नेताओं से इंग्लैंड की मदद करने के लिए अंग्रेज राजनेता स्टैफोर्ड क्रिप्स ने भारत का दौरा किया. दिल्ली के इम्पीरियल होटल से जनपथ स्थित सभरवाल का ‘अजंता फोटो स्टूडियो’ बहुत दूर नहीं है. यह स्टूडियो आज भी सभरवाल परिवार द्वारा चलाया जाता है. एक फोटो आज भी दिल्ली के इम्पीरियल होटल की दीवार को सुशोभित कर रही है. फोटो में सभरवाल को कैमरा हाथ में थामे, क्रिप्स और मोहनदास गांधी की बगल में खड़ा देखा जा सकता है. प्रेम ने विसन्यूज और रायटर्स जैसी ब्रिटिश न्यूज एजेंसियों के लिए काम करना शुरू कर दिया था. प्रेम के भाई ओम प्रकाश को अमेरिकन ब्रॉडकास्टिंग कंपनी में काम मिल गया.

पाकिस्तान से युद्ध के दौरान, जब राव इस कार्रवाई की तस्वीर जुगाड़ने में असफल रहे तो उन्होंने आगरा के पैर-ड्राप के समय ली गई पुरानी तस्वीर को इस्तेमाल में ले लिया.

आजादी के बाद, रायटर्स को मजबूरी में अपने भारत-संबधी काम को प्रेस ट्रस्ट ऑफ इंडिया (पीटीआई) को सौंपना पड़ा. यह अब रायटर्स के लिए भारत-संबंधी खबरों का मुख्य स्रोत बन गई. लेकिन 1952 में, इस पार्टनरशिप का अंत हो गया. उस समय 21-वर्षीय प्रेम प्रकाश रायटर्स के लिए काम करने वाले बहुत कम लोगों में से एक थे. एजेंसी के लिए वह भारत में सबसे महत्वपूर्ण सोर्स बन गए.

आजादी के बाद शुरुआती दशकों में, प्रेम ने रायटर्स और विसन्यूज के लिए कुछ महत्वपूर्ण ऐतिहासिक घटनाओं को कवर किया. उन्होंने 1959 में दलाई लामा के तिब्बत से भारत में शरण लेने; 1961 में, पुर्तगालियों से गोवा की आजादी; और 1965 में भारत-पाक युद्ध को कवर किया. राव ने अपने संस्मरणों में लिखा, इस युद्ध के दौरान वे “सेना की सकारात्मक छवि पेश करने वाले पत्रकारों में थे.” प्रेम ने 1971 के भारत-पाक युद्ध में राव के साथ मिलकर काम किया. इस युद्ध के बाद बांग्लादेश एक स्वतंत्र देश के रूप में उभरा. राव ने एएनआई के लिए एक कॉलम में लिखा, “इस दौरान पूर्वी पाकिस्तान में घटनाओं को कवर करने में मदद के लिए भारतीय सैनिक विदेशी प्रेस को शरणार्थी कैंपों में ले गए. पूर्वी पाकिस्तान की कवरेज करने में हमें तत्कालीन विसन्यूज के हेड प्रेम प्रकाश का सक्रिय योगदान मिला. खबरों को विश्व भर की एजेंसियों ने इस्तेमाल किया.”

हालांकि प्रेम प्रकाश ने मुझे इंटरव्यू देने से इनकार कर दिया, लेकिन मैंने उनके सबसे छोटे भाई सत्य प्रकाश सभरवाल से मुलाकात की, जिन्होंने मुझे 70 के दशक में पारिवारिक व्यवसाय में वृद्धि के बारे में बताया था. उनके पिता ने एशियन फिल्म्स नाम से एक कंपनी की स्थापना की थी, जिससे एशियन फिल्म्स लेबोरेटरीज निकला और दोनों का 1971 में आपस में विलय कर लिया गया. 1973 में, तत्कालीन सूचना एवं प्रसारण मंत्री इंद्र कुमार गुजराल ने इस नई कंपनी का उदघाटन किया. कई वरिष्ठ पत्रकारों और पीआईबी के एक अफसर ने मुझे बताया कि 25 साल बाद प्रधानमंत्री बनने वाले गुजराल, प्रेम के करीबी मित्रों में थे. दोनों ही पाकिस्तान से आए पंजाबी थे.

राममोहन राव के पदचिह्न हर सरकारी संस्थानों के मैट्रिक्स में थे. नरेंद्र बिष्ट/आउटलुक

एशियन फिल्म्स लेबोरेटरीज के स्टूडियो में भारत का सबसे पहला 16-मिलीमीटर टेलीविजन फिल्म प्रोसेसर था. हिंदुस्तान टाइम्स के अनुसार यह देश की सबसे पहली फिल्म लेबोरेटरी थी. अखबार की इस रिपोर्ट में कहा गया, “आज स्वतंत्र निर्माताओं के लिए भारत में कम बजट वाली टीवी फिल्में बनाना मुमकिन लगता है.” उन दिनों ऐसे उपकरण 220 प्रतिशत इम्पोर्ट ड्यूटी के कारण बहुत ज्यादा महंगे पड़ते थे. राव के बाद पीआईओ का कार्यभार संभालने वाले एस. नरेंद्र ने मुझे बताया, “उन्होंने उपकरणों से ड्यूटी हटवा ली ...और यह सुनिश्चित करने में भी कामयाब रहे कि किसी और को यह सुविधा न मिला पाए. उन्होंने बहुत शातिर अंदाज में व्यवस्था को अपने हक में कर लिया था.”

उन दिनों विजुअल मीडिया में जो थोड़े बहुत अन्य पत्रकार थे उनका ध्यान सिर्फ खबर कवर करने पर था. जबकि बहुत से लोगों के अनुसार, प्रेम प्रकाश में “पंजाबी उद्यमी वाला जज्बा” था. 1973 में उन्होंने टेलीविजन न्यूज फीचर्स (टीवीएनएफ) शुरू किया, “जो भारत की पहली टीवी न्यूज फीचर एजेंसी थी.” इसकी शुरुआत दिल्ली की डिफेंस कॉलोनी (जहां यह आज भी स्थित है) के एक घर से दूरदर्शन के लिए फिल्में बनाने से हुई. नौकरशाही से काम निकलवाने के लिए उन्होंने दूरदर्शन के पूर्व अधीक्षक रमेश चन्द्र को टीवीएनएफ का हेड बना दिया. सरकार के करीबी या सरकारी लोगों को नौकरी पर रखने का हथकंडा, प्रेम ने अपने करियर में कभी नहीं छोड़ा. विसन्यूज और बीबीसी में काम करने और टीवीएनएफ को चलाने के अलावा, प्रेम प्रकाश ने एशियन न्यूज इंटरनैशनल की शुरुआत 1971 में की.

सत्य प्रकाश, जो अब टीवीएनएफ के मुखिया हैं, ने मुझे बताया, “हम इंदिरा गांधी के पास गए और कहा, ‘सभी भारत के बारे में नकारात्मक तरीके से बात करते हैं कि हमारे देश में कभी कुछ अच्छा नहीं होता. हम भारत के बारे में अच्छी बातें बताना चाहते हैं.’ उन्होंने कहा, वह भारत की अच्छी छवि बनाना चाहती हैं. ‘जाओ नौजवानों में वैज्ञानिक दृष्टि का निर्माण करो,’ वह बोलीं. हम सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय को भी मनाने में कामयाब हुए.” इसके परिणाम स्वरुप, टीवीएनएफ ने विज्ञान संबंधी कई फिल्मों का निर्माण किया. 1976 में फिल्मकार प्रदीप कृष्ण एजेंसी से जुड़े. कारवां से 2014 के एक इंटरव्यू में उन्होंने याद करते हुए कहा कि टीवीएनएफ के लिए उन्होंने अगले तीन साल में 80 फिल्में बनाई. टीवीएनएफ से जुड़े एक फिल्मकार ने बताया, “प्रेम प्रकाश को हम लालाजी कहकर पुकारते थे. वह महीने में एक ही बार दफ्तर आते जब दूरदर्शन के अधिकारी, फिल्म के फाइनल कट को देखने आया करते थे”.

जल्दी ही टीवीएनएफ का दूरदर्शन के फिल्म निर्माण के काम पर एकाधिकार हो गया. इंडिया टुडे की एक रिपोर्ट के मुताबिक, 1977 में जब एल.के. अडवाणी सूचना एवं प्रसारण मंत्री बने, दिल्ली के कुछ स्वतंत्र पत्रकारों ने उन्हें एक ज्ञापन दिया. इस ज्ञापन में उन्होंने “टीवी फिल्म निर्माण क्षेत्र में बढ़ते एकाधिकार के लिए दूरदर्शन के अधिकारियों की मिलीभगत” पर अपनी चिंता जाहिर की. रिपोर्ट के अनुसार, “एकाधिकार की बात टीवीएनएफ तथा दूरदर्शन के बीच करार के सन्दर्भ में थी, जिसने 1975 के बाद से टीवीएनएफ को दूरदर्शन के लिए फीस की एवज में फिल्में बनाने का अधिकार दिया था.” रिपोर्ट में 46-वर्षीय प्रेम प्रकाश के प्रभाव और ताकत का हवाला था और उन्हें एक ऐसा ‘व्यवहार-कुशल’ शख्स बताया था जिसकी सत्ता के गलियारों में गहरी पैठ थी और जो किसी का भी नाम लेकर अपना काम निकलवा सकता था.”

सत्तर के दशक में पूरे दक्षिण एशिया में, खबरों और वृतचित्र बनाने के क्षेत्र में प्रेम हर कहीं छाए हुए थे. विदेशों से आने वाले हर फिल्म क्रू को उन्ही पर निर्भर रहना पड़ता था. 1977 में एक अमरीकी निर्माता, भारत पर एक वृतचित्र बनाना चाहता था. उसने भारतीय मूल के अमरीकी लेखक वेद मेहता को इसे लिखने के लिए चुना. लेकिन इसे फिल्माने में उसे बहुत दिक्कतें पेश आई. “जाहिर तौर पर लाइटिंग केबल्स वजन में बहुत भारी होती हैं और क्रू को इस बात का जरा भी अंदाजा नहीं था कि उनके लिए किस किस्म के प्लगों की जरूरत पड़ती है, लेकिन इस धंधे से जुड़े एक आदमी ने बिल को प्रेम प्रकाश नाम के एक शख्स का नाम सुझाया, जो दिल्ली में विसन्यूज के लिए काम करता है और जिसने पहले भी बहुत से विदेशी फिल्मकारों को जरूरी सामान मुहैय्या करवाने में मदद की है,” मेहता ने अपनी किताब,द फोटोज ऑफ चाचाजी – द मेकिंग ऑफ अ डोक्युमेंटरी में लिखा.

एएनआई में अपना सफल व्यवसाय शुरू करने के बावजूद भी, प्रेम भारत में विसन्यूज के प्रमुख के पद पर बने रहे. “जब जुलाई 1988 में, मैंने विसन्यूज ज्वाइन किया तो मुझे तीन तुर्रमखानों, जो कंपनी की शुरुआत से इसके साथ थे, से सावधान रहने की हिदायत दी गई,” बॉब स्मिथ और सलीम अमीन ने विसन्यूज के मैनेजिंग एडिटर डेविड कोगन की किताब,द मैन व्हू मूव्ड द वर्ल्ड: द लाइफ एंड वर्क ऑफ मोहम्मद अमीन का उद्धरण देते हुए कहा. “अपने-अपने क्षेत्र में ये सभी लोग बहुत शक्तिशाली थे और तुम्हे उनको सम्मान देना होगा. पेरिस में जीन मैग्नी थे, दिल्ली में प्रेम प्रकाश और नैरोबी में मो. इन सभी ने अपने इलाकों में खुद की दुकानें खोली हुईं थीं, इसलिए तुम्हे इनसे डील करते वक्त एहतियात बरतनी होगी. अपनी अपनी दुकानें होने के बावजूद भी इसके ब्यूरो चीफ होने की वजह से इनका विसन्यूज से बड़ा अजीबो-गरीब रिश्ता है. यह बहुत ही बेढब है, लेकिन काम करता है.” इस किताब में विसन्यूज द्वारा जीते गए, दो में से एक पुरस्कार का भी जिक्र है, जो इसे प्रेम प्रकाश के काम के लिए दिया गया था.

सफलता का यह सिलसिला अस्सी के दशक तक जारी रहा. 1985 में राव पीआईओ बने. कुछ समय बाद उनकी बेटी स्मिता इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ मास कम्युनिकेशन से विज्ञापन और जनसंपर्क की पढ़ाई करने और कुछ समय के लिए एक एड एजेंसी में काम करने के बाद, एएनआई के साथ काम करने लगीं. यहां पहले उन्होंने बतौर इंटर्न काम किया और बाद में इससे फुलटाइम जुड़ गईं. “दूरदर्शन के लिए मैंने 1988 में पहली दफा एक आधे घंटे के कार्यक्रम के लिए स्क्रिप्ट लिखी और इसके निर्माण में योगदान दिया,” कंप्यूटर पर काम करते राजीव गांधी के साथ अपनी फोटो के साथ, स्मिता ने ट्वीट किया. “दूरदर्शन से इस कार्यक्रम के लिए ब्रीफ था कि कंप्यूटर कोई अय्याशी की वस्तु नहीं बल्कि यह प्रक्रियाओं को सरल बनाती है और कि यह कोई जासूसी करने वाला यंत्र भीन हीं है!”

कई वरिष्ठ पत्रकारों के अनुसार, पूर्व पीएम इंद्र कुमार गुजराल और प्रेम प्रकाश, दोनों पाकिस्तान के पंजाबी और घनिष्ठ मित्र थे. दिलीप बैनर्जी/द इन्डिया टुडे ग्रुप/गैटी इमेजिस

उन दिनों, प्रेम अपने कैमरामैन सुरिंदर कपूर के साथ पंजाब बगावत को कवर कर रहे थे. उस समय चंडीगढ़ में रहने वाले राष्ट्रीय अखबार के एक पत्रकार ने बताया कि उन्हें वे हर सरकारी आयोजन में टकरा जाया करते थे. “वे हर आयोजन को कवर करने, दिल्ली से अपनी कॉन्टेसा कार में आते. वे अपनी फुटेज सिर्फ बीबीसी को ही दिया करते थे,” पत्रकार ने बताया.

इसी समय के आसपास एएनआई की किस्मत उस वक्त चमकने लगी, जब रायटर्स ने 1992 में विसन्यूज को खरीद लिया और इसे रायटर्स टीवी का नाम दिया. जॉन जिरिक ने अपनी किताब, मीडिया एट वर्क इन इंडिया एंड चाइना में लिखा कि एएनआई को “रायटर्स टीवी के लिए भारत-संबंधी खबरें सप्लाई करने वाली एकमात्र एजेंसी के रूप में विकसित किया गया.”

1993 में रायटर्स ने एएनआई में निवेश किया, जो अब बढ़कर 49 फीसदी हो गया है. “2011 में रायटर्स की भारत-संबंधी कवरेज का, 99 फीसदी कंटेंट एएनआई द्वारा सप्लाई किया गया,” जिरिक ने लिखा. सिंगापुर में रायटर्स के पूर्व वरिष्ठ संपादक के अनुसार, रायटर्स के साथ ये बिजनेस डील्स प्रेम की पीटर जॉब से दोस्ती के कारण ही मुमकिन हो पाई. पीटर अस्सी के दशक में, भारत में रायटर्स के संवाददाता थे और उनकी शादी दिल्ली के एक चर्च में हुई थी. पीटर पहले रायटर्स एशिया के मैनेजिंग डायरेक्टर बने और फिर 1991 और 2001 के बीच, इसके सीईओ के पद पर कार्यरत रहे.

विदेशी मामलों के विश्लेषक के अनुसार, एएनआई ने श्रीलंका के गृह युद्ध को समाप्त करने के लिए वहां भेजी गई भारतीय शांति सेना के सकारात्मक चित्रण में भी मदद की. “शांति सेना के अभियान के दौरान एएनआई ने फर्जी खबरें फैलाकर सरकार की बहुत मदद की,” उन्होंने बताया. “श्रीलंका में भारतीय शांति सेना की बहुत बुरी हालत थी. उन दिनों एएनआई की अधिकतर गतिविधियां विदेशी मामलों पर केंद्रित थीं और वह असल में विदेश मंत्रालय के प्रचार विभाग की भूमिका निभाने में लगी थी. देश में उसका प्रसार अभी हाल के वर्षों में हुआ है.”

1989 में एएनआई की उस समय तो जैसे लाटरी लग गई, जब वी.पी. सिंह के कार्यकाल के दौरान कश्मीर संकट का उद्भव हुआ. तत्कालीन गृहमंत्री मुफ्ती मोहम्मद सईद की बेटी और उग्रवादी संगठन अल फरान द्वारा 6 पश्चिमी पर्यटकों के अपहरण के बाद कश्मीर की खबरों के लिए अंतर्राष्ट्रीय मीडिया में होड़ लग गई. प्रेम के पास फर्स्ट-मूवर एडवानटेज के अलावा, संकटग्रस्त इलाके में काम करने के लिए जरूरी सरकारी महकमों में भी पहुंच थी. राष्ट्रीय प्रेस के श्रीनगर से जम्मू स्थानान्तरण ने मीडिया में एक किस्म का खालीपन आ गया था. कश्मीर से फुटेज, आय का एक महत्वपूर्ण जरिया बन गया. 1992 के आसपास राव अपने पीआईओ के पद से फारिग हो चुके थे और जम्मू और कश्मीर में मीडिया सलाहकार के पद पर काम कर रहे थे. उस समय राज्य के गवर्नर, पूर्व रॉ चीफ गिरीश चन्द्र सक्सेना थे.

1995 में श्रीनगर में एएनआई के कैमरामैन मुश्ताक अली की एक पार्सल बम धमाके में मौत हो गई. इस हत्या से एजेंसी द्वारा अपने ब्यूरो को विस्तृत करने की योजनाओं को धक्का पहुंचा. 1990 से ही एएनआई बाकि के देश को कश्मीर की खबरें देने वाली चंद एजेंसियों में से एक है. हालांकि इसकी ज्यादातर खबरें सरकारी प्रोपेगेंडा की श्रेणी में आती हैं.

अक्टूबर 2018 में एएनआई के श्रीनगर स्थित दफ्तर में गया तो यह बहुत कम इन्फ्रास्ट्रक्चर के साथ, दो पुराने सीलनदार कमरों में चल रहा था. उनके पास 5 कैमरामैन थे, जो रिपोर्टरों का काम भी करते थे. एक कैमरामैन तो पहले ग्रेटर कश्मीर में पॉवर जेनेरेटर चलाने का काम करता था. “वे ऐसे पत्रकार नहीं चाहते जो समझना, विश्लेषण करना या सवाल करना जानते हों,” ग्रेटर कश्मीर के एक पत्रकार ने बताया. “उन्हें ऐसे लोग चाहिए जो बाइट्स ले कर आ सकें,” पूर्व न्यूज एडिटर ने बताया कि प्रकाश परिवार के घरेलू काम करने वालों को भी सस्ते लेबर के लिए कैमरामैन बना दिया गया.

नब्बे के दशक में पहले पहल भारत में सेटेलाइट और केबल टीवी का आगमन हुआ. जल्द ही न्यूजट्रैक, ऑयविटनेस और बिजनेस प्लस जैसी वीडियो  मैगजीनें कुकुरमुत्तों की तरह उग आईं. जनवरी 1991 में,न्यू यॉर्क टाइम्स की एक हेडलाइन के अनुसार, “वीडियो टेप्स ने खबरों के भूखे भारत के खालीपन को भर डाला.” अक्टूबर 1992 में, भारतीय बाजार के लिए जी टीवी के लॉन्च के कुछ समय बाद, कई और चैनल भी लॉन्च हुए. इनमें कई चैनल वीडियो  के लिए एएनआई पर निर्भर थे. 1993 में इंडिया टुडे की एक रिपोर्ट के अनुसार, फिल्म अभिनेता अमिताभ बच्चन और उनके भाई ने, अनिवासी भारतीयों को निशाना बनाते हुए इंग्लैंड और अमरीका में एंकरों के साथ हिंदी और अंग्रेजी में रोजाना बुलेटिन देने वाला टीवी एशिया नेटवर्क शुरू किया. रिपोर्ट ने लिखा, “यह नेटवर्क सप्ताह में तीन बार एएनआई से फुटेज लेता है.”

प्रेम प्रकाश और राममोहन राव ने यह सुनिश्चित करने का काम किया कि ऑडियो-वीडियो  न्यूज में उसका कोई प्रतिद्वंद्वी न पनप सके.

एनडीटीवी द्वारा स्टार टीवी के साथ मिलकर, दिन-रात कवरेज के अनुबंध के साथ, पिछली सह्शताब्दी के अंत ने चौबीसों घंटे चलने वाले न्यूज चैनलों का प्रादुर्भाव देखा. प्राइवेट चैनलों को अपने ‘अर्थ स्टेशन’ चलाने के लिए सरकार द्वारा ब्रॉडकास्टिंग नियमों में बदलाव के कारण एक अस्थाई तेजी आई, जिसने देश के अंदर ही सेटेलाइट से कम्यूनिकेशन लिंक से जोड़ना मुमकिन बनाया.

इंडिया टुडे ग्रुप ने 2000 में “आज तक” लांच किया और लाइव कवरेज के लिए ओबी वैन लेकर आए. कई और चैनलों ने भी देखा देखी लाइव कवरेज करना शुरू कर दिया. लेकिन चैनलों ने अभी तक भरोसेमंद बिजनेस मॉडल विकसित नहीं किया था और अभी भी कंटेंट की कमी महसूस की जा रही थी. इस माहौल में अस्तित्व बनाए रखने के लिए एएनआई की सेवाएं लेना और भी जरूरी हो गया.

{तीन}

अस्सी के मध्य में, प्रेम प्रकाश के पुत्र संजीव ने, जो अमेरिका  में पत्रकारिता की शिक्षा ग्रहण कर रहे थे, यूनाइटेड न्यूज ऑफ इंडिया (यूएनआई) नामक न्यूज एजेंसी के लिए लिखना शुरू किया. 1987 में संजीव वापिस भारत लौटे और आते ही एएनआई ज्वाइन कर ली. 1987 से 1991 के बीच वाशिंगटन ब्यूरो चलाने वाले मुनीष गुप्ता ने बताया, “योजना यह थी कि प्रिंट-और-वीडियो -न्यूज-एजेंसी बनाई जाए. हम यूएनआई और अन्य प्रमुख अखबारों, जिनके पास अमरीका में अपने संवाददाता नहीं थे, के लिए लिखते थे.” 1988 तक वाशिंगटन में भारतीय दूतावास ने एएनआई को सब्सक्राइब करना शुरू कर दिया था. सोवियत यूनियन द्वारा अफगानिस्तान पर हमले के जवाब में, अमरीकी सरकार ने पाकिस्तान को हथियार तथा मदद देना शुरू कर दिया था. “उन दिनों भारत–अमरीका के संबंध अच्छे नहीं थे,” गुप्ता ने कहा. “हम सैकड़ों कांग्रेस के सदस्यों के इंटरव्यू करते थे और खबरों की तह तक जाकर उन्हें दूतावास के साथ साझा करते थे.”

1989 में संजीव एएनआई के डायरेक्टर बने. स्मिता पहले से ही बतौर पत्रकार वहां काम कर रही थीं.

“संजीव मैनेजर ज्यादा हैं और स्मिता पत्रकार,” परिवार को जानने वाले एक वरिष्ठ पत्रकार ने मुझे बताया. स्मिता ने पहले कभी कहा था कि वे पत्रकार के रूप में अरुण शौरी की उनकी बोफोर्स घोटाले की कवरेज के लिए बहुत सराहना करती हैं. “नब्बे के दशक में जब स्मिताघूमता आइना नामक कार्यक्रम की एंकरिंग करती थीं, संजीव बहुत से प्लग-इन्स लेकर आया करते थे,” पूर्व वरिष्ठ वीडियो एडिटर ने मुझे बताया. “स्मिता उनमें से कुछ को खारिज कर दिया करती थीं. फिर संजीव बीच में पड़कर उन्हें चलाने पर जोर डाला करते. तब तक स्मिता के सोचने का ढंग एक पत्रकार की तरह हुआ करता था और वह आज की भांति व्यवसायी दिमाग की नहीं हुआ करतीं थीं. क्योंकि एएनआई पत्रकारिता की बदौलत नहीं चलता.”

नब्बे और दो हजार के दशकों में, संजीव और स्मिता कंपनी में निरंतर ऊंचाइयों को छूते चले गए. प्रेम प्रकाश की डाली हुई नींव को आधार मानकर इन दोनों ने आगे विस्तार करना प्रारंभ किया और एएनआई की पहुंच को सरकार के अलग-अलग कोनों तक पहुंचाया.

नरसिम्हा राव सरकार में, विदेश सचिव जे.एन. दीक्षित के बेटे अशोक दीक्षित ने 1991 में अपने पिता से एक दिन कहा कि वे लिखने से संबंधित काम करना पसंद करेंगे. जल्द ही अशोक को, संजीव प्रकाश का फोन आया और उन्होंने उन्हें एएनआई के प्रिंट विभाग में नौकरी देने की पेशकश की.

इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ मास कम्युनिकेशन में विज्ञापन और जनसंपर्क का अध्ययन करने के बाद, स्मिता ने 1988 में प्रेम के बेटे संजीव से शादी करने से पहले एक इंटर्न के रूप में और बाद में पूर्णकालिक रूप से एएनआई में काम करना शुरू कर दिया.

पिछले अक्टूबर, मैं अशोक दीक्षित से उनके गुरुग्राम स्थित निवास पर मिला. मैंने उनसे पूछा कि क्या उनको कभी ऐसा लगा कि उनको यह नौकरी उनके पिता के कारण मिली थी. उन्होंने कहा, “एक बार नटवर सिंह” – राजनेता और पूर्व नौकरशाह– दफ्तर में आए. मैनेजमेंट ने मुझे उनसे मिलने नीचे बुलाया. उन्होंने मुझसे पूछा, ‘क्या तुम मनी दीक्षित के बेटे हो?’ मैंने कहा, ‘आप शायद हमारे घर कई बार आए होंगे.’ हो सकता है विदेश सचिव का बेटा होने का मुझे फायदा मिला हो. लेकिन मुझे नहीं पता. मुझे कोई शिकायत भी नहीं है.”

दीक्षित के खेमे में होने के कई फायदे थे. “जे.एन. दीक्षित एएनआई को बहुत से बड़े प्रोजेक्ट दिया करते थे,” एक पूर्व वरिष्ठ कर्मचारी ने मुझे बताया. “1990-1991 में एक इंडियन मुस्लिम्स एब्रॉड हुआ करता था, जो मुख्यत: विदेशों में रहने वाले मुसलमान भारत के बारे में क्या सोचते हैं पर केंद्रित था. हमारे पास ढेर सारा फंड था. हम उस प्रोजेक्ट के काम से सिंगापुर, मलेशिया, अमरीका और इंग्लैंड जैसे देशों का भ्रमण करते और सबसे शानदार होटलों में ठहरा करते.”

पूर्व वीडियो एडिटर के अनुसार, जब बीजेपी के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार आई तो दीक्षित को 2000 में बाहर का रास्ता दिखा दिया गया. “वे उन्हें उनका इस्तेमाल करने के लिए लेकर आए थे क्योंकि विदेश और गृह मंत्रालय के पास उस समय बहुत सा फंड था.”

रायटर्स के एक पूर्व संपादक ने बताया “एएनआई चैनल बनने से पहले एनडीटीवी की तरह था.” एनडीटीवी ने भी अपनी शुरुआत एक एजेंसी के रूप में ही की थी, जब उसने 1988 में दूरदर्शन के लिए कार्यक्रम बनाना प्रारंभ किया. एनडीटीवी पर भी बाबा लोग कल्चर को बढ़ावा देने का आरोप लगाया जाता है. इसने भी बदले में फायदा पाने की उम्मीद से नौकरशाहों के बेटे-बेटियों को नौकरी पर रखना शुरू किया, जो काम एएनआई बहुत पहले से करता आ रहा था. इसने शक्तिशाली पदों पर आसीन कई लोगों के बच्चों को नौकरियां दीं, खासकर, उनको जो विदेश मंत्रालय में कार्यरत थे. इनमे कुछ नाम हैं: स्वीडन के पूर्व दूत सुशील दुबे के बेटे, सिद्धार्थ दुबे; गृह सचिव, सेंट्रल विजिलेंस कमिश्नर और कम्पट्रोलर एंड ऑडिटर-जनरल जैसे शक्तिशाली पदों पर रहे सी.जी. सोमिया की बेटी, प्रिया सोमिया; और पूर्व विदेश सचिव रंजन मथाई की बेटी.

इन सब में सबसे प्रमुख नाम एल.के. अडवाणी की बेटी प्रतिभा अडवाणी का है. अडवाणी एनडीए सरकार में, 1999 से लेकर 2004 तक गृह और उप प्रधानमंत्री रह चुके थे. प्रतिभा ने जनवरी 2001 में टाइम्स ऑफ इंडिया को बताया कि उन्हें एएनआई में नौकरी “एटीएन चैनल पर खबरे पढ़ने के” उनके पूर्व अनुभव के कारण मिली.

ईमेल के जवाब में संजीव ने इस बात से इनकार किया कि प्रतिभा को इसलिए नौकरी दी गई थी कि वे अडवाणी की बेटी हैं. “प्रतिभा हमारे पास बीबीसी के हिंदी बुलेटिन, जिसका हमारे दफ्तर में इंटरव्यू चल रहा था, के लिए वॉइसओवर और एंकरिंग टेस्ट देने आईं थीं. उनके पिता मिस्टर अडवाणी ने उस वक्त जैन हवाला डायरीज के आरोपों के चलते राजनीति से अवकाश लिया हुआ था. प्रतिभा बीबीसी का स्क्रीन टेस्ट क्लियर करने में नाकाम रहीं. फिर उन्होंने 1996 में एएनआई के लिए एंकरिंग शुरू की (उस वक्त यूनाइटेड फ्रंट के बाद कांग्रेस सरकार में आई थी).”

जब नब्बे के दशक में बीजेपी की ताकत बढ़ी तो एएनआई ने पार्टी से अच्छे रिश्ते बनाने शुरू किए. पिछले साल अटल बिहारी वाजपेयी की मृत्यु के बाद, स्मिता ने ट्वीटों की झड़ी लगाते हुए उनके साथ अपने अनुभवों को स्मरण किया. उन्होंने बताया कि कैसे विपक्षी नेता के रूप में वाजपेयी को एक बार जब 1998 के चुनावों से पहले अपना संदेश रिकॉर्ड कराने के लिए दूरदर्शन के अंदर नहीं घुसने दिया गया तो वे एएनआई के दफ्तर में आए थे. उसके बाद, वे प्रधानमंत्री बन गए लेकिन 13 महीनों बाद ही उनकी सरकार गिर गई. 1999 में एक बार फिर से आम चुनाव हुए.

स्मिता ने ट्वीट किया, “संदेशों को दुबारा रिकॉर्ड करना था. बेहतर टेक्निकल क्वालिटी देने को कह कर कई मीडिया घरानों ने अपने-अपने चमचमाते स्टूडियो के दरवाजे उनके लिए खोल दिए. यह भी साफ था कि बीजेपी ही चुनाव जीतेगी इसलिए दूरदर्शन भी उनका स्वागत करने के लिए तैयार बैठा था. चूंकि बीजेपी पिछला चुनाव जीती थी, कुछ बीजेपी नेताओं को हमारे स्टूडियो में आना ज्यादा पसंद था क्योंकि उनका सोचना था कि हम उनके लिए “लकी” हैं. बेशक, मैं यह नहीं बताऊंगी कि कौन-कौन आया और कौन-कौन नहीं. हमारा यह काम करने में कुछ नहीं जाता था, न हमें इसके लिए कभी कोई पैसा मिला.” वाजपेयी के मीडिया सलाहकार एच.के. दुआ भी राव के पुराने दोस्तों में थे. 2009 में, राज्य सभा के लिए चुने जाने के बाद एएनआई ने उन्हें खूब छापा.

एएनआई के साथ 2000 के दशक के शुरू में काम करने वाले एक रिपोर्टर ने बताया, “अडवाणी के घर और उनकी मीटिंग की जगहों पर हमारी अच्छी पहुंच थी.” उन्होंने कहा एएनआई के कर्मचारी अलग-अलग जगहों पर प्रधानमंत्री को सुरक्षा प्रदान करने वाली एजेंसी, स्पेशल प्रोटेक्शन ग्रुप के साथ घूमा करते थे. “वह कहते ‘एएनआई के लोग हैं, इधर बिठाओ’ और हम वहां उनके साथ बैठ जाते.”

एएनआई के एक पूर्व न्यूज एडिटर ने इस घनिष्ठता की पुष्टि की. “अडवाणी को कवर करने के लिए कैमरामैन अलग से छोड़ दिए जाते थे. उन दिनों लोग हमें ‘अडवाणी न्यूज इंटरनैशनल’ कहकर भी बुलाते थे.”

कई वरिष्ठ पत्रकारों और अडवाणी और एएनआई के पूर्व कर्मचारियों का मानना है कि अडवाणी से सान्निध्य के कारण ही उसे दक्षिण दिल्ली स्थित आर. के. पुरम जैसी जगह पर जमीन का आवंटन किया गया. संजीव ने हालांकि इनकार किया कि जमीन उन्हें अडवाणी के कार्यकाल में आवंटित की गई. “जमीन के लिए एएनआई की अर्जी कांग्रेस सरकार के वक्त में डाली गई और आवंटन भी कांग्रेस सरकार के वक्त में ही हुआ. अन्य मीडिया संस्थाओं को दी जाने वाली इस सुविधा के लिए, स्थापित नियमों का पालन किया गया,” उन्होंने लिखा. “अगर मुझे ठीक से याद है तो उस समय शीला कौल मंत्री थीं.” लेकिन जब मैंने 1991-95 के बीच केंद्र में आवास विकास मंत्री के पद पर कौल के कार्यकाल के दौरान पीआईओ रहे एस. नरेंद्र से बात की तो उन्होंने बताया, “मुझे नहीं लगता कि यह आवंटन 1991-96 के बीच हुआ. अगर ऐसा कोई प्रस्ताव होता तो वह मेरी नजर से होकर गुजरता. वर्ष 1997 में चेक कीजिये, जब आई. के. गुजराल प्रधानमंत्री थे. गुजराल एएनआई के चीफ को देश के सबसे बड़े सिविलियन अवार्ड से नवाजना चाहते थे, लेकिन स्क्रीनिंग कमिटी ने इसे खारिज कर दिया.”

तीन पूर्व कर्मचारियों ने मुझे बताया कि 2004 के आम चुनावों में एनडीए सरकार की हार के बाद, प्रतिभा अडवाणी को बाहर का रास्ता दिखा दिया गया. “एक इंटर्न के जरिए उन्हें सूचना दी गई कि उनकी सेवाओं की अब जरूरत नहीं रही,” एक पूर्व वीडियो एडिटर ने बताया. संजीव ने इशारों-इशारों में बताया कि उनके जाने का यह कारण नहीं था. “बाद में उन्होंने अपनी प्रोडक्शन कंपनी खोल ली. आखिर वे खुद एक प्रतिभाशाली एंकर हैं,” उन्होंने लिखा. प्रतिभा ने भेजे गए सवालों में से किसी का भी जवाब नहीं दिया.

पूर्व न्यूज एडिटर ने कहा कि 2005 में जब अडवाणी लाहौर की यात्रा पर गए तो वे अपने साथ एक कैमरामैन ले जाना चाहते थे, लेकिन एएनआई ने भेजने से इंकार कर दिया. “जब आप सत्ता में होते हैं, तभी तक वे आपको पसंद करते हैं, वर्ना लात मारकर बाहर कर देते हैं.” एनडीए के शासन के अंतिम दौर में एएनआई ने गोल मार्किट से अपना दफ्तर आर.के. पुरम की अपनी नई आलीशान पांच मंजिला इमारत में शिफ्ट कर लिया.

इस बीच अशोक दीक्षित के अच्छे दिन फिर वापिस आ गए. अपने नेटवर्क के जरिए एएनआई को पता चला कि जे.एन. दीक्षित, जो कांग्रेस की विदेश मामलों की समिति में शामिल हो गए थे, पार्टी के लिए 2004 के चुनावों का घोषणापत्र लिख रहे हैं और अगर कांग्रेस सत्ता में वापिस आई तो बहुत मुमकिन है कि उन्हें कोई बहुत महतवपूर्ण जिम्मेवारी सौंपी जाएगी. उन्होंने 2003 में अशोक को बुला कर वापिस ज्वाइन करने के लिए कहा. 2004 में कांग्रेस की अगुआई में बनी सरकार में, जे.एन. दीक्षित देश के दूसरे राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार बने. “जब दीक्षित जीवित थे, अशोक उनके लिए दुधारू गाय थे,” पूर्व न्यूज एडिटर ने मुझे बताया. “जिस दिन उनकी मृत्यु हुई, संजीव प्रकाश ने मुझे बुलाया और कहा कि एक कैमरामैन एम्स भेजो और पहली तस्वीरों के रिलीज होने तक किसी को कुछ मत बताना.’ दीक्षित एक ऐसे व्यक्ति थे, जिनसे उन्हें बहुत ज्यादा फायदा मिला था.”

वरिष्ठ पूर्व वीडियो संपादक के अनुसार, 2018 में स्मिता से तू-तू मैं-मैं के बाद अशोक को आखिरकार एक बार फिर से बाहर का रास्ता दिखा दिया गया. “वह बहुत लंबे समय से उनसे छुटकारा पाने की सोच रहे थे,” उन्होंने बताया. अशोक ने इस मुद्दे पर मुझसे कोई बात नहीं की.

जब संजीव से पूछा गया तो उन्होंने इस बात का सिरे से खंडन किया कि अशोक को नौकरी पर रखने और निकाले जाने का उनके प्रख्यात पिता से कोई वास्ता रहा है. “अशोक के स्वर्गीय पिता जे. एन. दीक्षित जी विदेश सेवा से 1994 में ही रिटायर हो गए थे और उनकी मृत्यु 2005 में हुई,” उन्होंने ईमेल में लिखा. “अशोक ने हमारे साथ 2017 तक काम किया, जो उनके पिता के रिटायर होने से 23 साल बाद तक, और मृत्यु से 13 साल बाद तक का वक्फा है!” हालांकि संजीव ने इस कहानी से महत्वपूर्ण तथ्यों को मिटा दिया कि पहली बार अशोक को 2000 में निकाला गया और कि दीक्षित भले ही 1994 में रिटायर हो गए थे लेकिन वे 2004 में राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार भी बने, जो अशोक की दूसरी पारी से मेल खाता है.

सरकार के साथ एएनआई के काम में पिछली सह्शाताब्दी के अंत के बाद बहुत विस्तार देखने को मिला. सन 2000 में जब सरकार ने कश्मीर पर 480 करोड़ रुपए के बजट के साथ डीडी कशिर चैनल शुरू किया तो एएनआई को इसके लिए कई कार्यक्रम बनाने का ठेका मिल गया. इनमे से अधिकतर कार्यक्रम, जैसे, पीटीवी सच क्या है, कश्मीरनामा, पाकिस्तान रिपोर्टर, कश्मीर नाउ, सरहद के दो रुख और डेटलाइन कश्मीर, महज प्रोपगेंडा या काउंटर प्रोपगेंडा थे. राव उस समय जिस पद पर थे वह ‘कनफ्लिक्ट ऑफ इंटरेस्ट’ के सवाल भी खड़े करता है. उन्होंने अपने संस्मरण में लिखा, “1999 के आम चुनावों के बाद मुझे प्रसार भारती में कश्मीर को लेकर सरकार की मदद करने के लिए सलाहकार बनने के लिए कहा गया.”

“अगर पाकिस्तान के सरकारी चैनल पीटीवी ने कहा कि फलां गांव में इतने लोग मारे गए हैं तो हमें वहां जाकर इस दावे को खारिज करना होता था,” एक पूर्व एएनआई रिपोर्टर ने बताया, जो उस समय श्रीनगर में पोस्टेड थे. “आपको सेना की मदद लेनी होती थी. अगर आप वीडियो सबूत के साथ काउंटर प्रोपगेंडा की मंशा से जा रहे होते थे तो बहुत आसानी से कुछ सच छुपा सकते थे.”

विदेश मामलों के विश्लेषक के अनुसार, एएनआई काफी समय से पाकिस्तान पर प्रोपगेंडा चला रहा है. “अगर वे चीन को लेकर विदेशों में कोई झूठी खबर भेजते हैं तो उनका पर्दाफाश हो जायेगा, लेकिन पाकिस्तान को लेकर वे यह कर सकते हैं. अमरीकी मीडिया की मौजूदगी की वजह से वे यह अफगनिस्तान को लेकर भी नहीं कर सकते.”

एएनआई साउथ एशिया न्यूजलाइन नामक एक साप्ताहिक कार्यक्रम भी बनाता है जिसे “अमरीका में पांच करोड़ पैसंठ लाख दर्शकों वाले सबसे ज्यादा देखे जाने वाले कार्यक्रम” के रूप में प्रचारित किया गया है. यह कार्यक्रम पिछले दो दशकों से चल रहा है और इसके प्रयाजकों में इसके वेब पेज पर ओएनजीसी, इंडियन आयल, पॉवर फाइनेंस कारपोरेशन लिमिटेड तथा अन्य सरकारी कंपनियों के नाम दिए गए हैं. “यह न्यूजकास्ट उन इलाकों की खबरें दिखाती है, जहां मीडिया भी नहीं पहुंच पाती,” साउथ एशिया न्यूजलाइन की वेबसाइट दावा करती है, “अफगानिस्तान, पाकिस्तान के कबीलाई इलाके, पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर और गिलगित-बल्तिस्तान जैसे मीडिया की नजर से दूर रहने वाले क्षेत्रों की खबरें इस कार्यक्रम की खासियत हैं.”

यह कार्यक्रम एक ऐसे संसार की रचना करता है जहां भारत सरकार कुछ भी गलत और पाकिस्तान सरकार कुछ भी सही नहीं कर सकती. मिसाल के तौर पर 13 नवंबर 2018 के इसके कार्यक्रम में एक लीड आइटम चलाया गया. इसमें डसॉल्ट के सीईओ एरिक ट्रेपियर का स्मिता प्रकाश द्वारा लिया गया इंटरव्यू दिखाया जा रहा था. चलाये जा रहे कैप्शन के मुताबिक, “हथियार बनाने वाली फ्रांस की कंपनी ने भारत के साथ राफेल सौदे को लेकर फैली भ्रांतियों को दूर किया.” इसके बाद पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर में पानी की समस्या को लेकर स्टोरी थी. अगर यू ट्यूब चैनल इसकी लोकप्रियता का कोई मापदंड हो सकता है तो इसके कई हफ्तों पुराने वीडियो  को देखने वालों की संख्या दो अंकों के ऊपर भी नहीं जाती. हालांकि साउथ एशिया न्यूजलाइन कार्यक्रम को अमरीका में गैर-व्यवसायिक सरकारी ब्रॉडकास्टर MHz नेटवर्क चलाता है; और, कनाडा, इंग्लैंड, संयुक्त अरब अमीरात, ऑस्ट्रेलिया, दक्षिण अफ्रीका और दक्षिण-पूर्व एशिया में इसे अलग-अलग चैनलों पर दिखाया जाता है. एएनआई के एक पूर्व संपादक ने बताया कि अमरीका में भारत के तत्कालीन राजदूत नरेश चंद्रा 1998 में उस मीटिंग में मौजूद थे, जो एएनआई के पूर्व संपादक नवीन कपूर और MHz नेटवर्क के बीच हुई थी. चंद्रा का जिक्र भी राव के संस्मरणों में अजीज दोस्त के रूप में बार-बार आता है.

संजीव ने इस बात से इंकार किया कि चंद्रा का एएनआई और MHz के बीच हुए करार से कोई लेना देना है. “हम कई देशों में ब्रॉडकास्टरों के लिए बुलेटिन बनाते हैं. हमने यह दक्षिण अफ्रीका और कनाडा के ब्रॉडकास्टरों के लिए भी किया है,” उन्होंने लिखा. “ये करार खबरों का व्यापार करने वाली दो कंपनियों के बीच होता है. दूतावासों और उच्चायोगों की इसमें कोई भूमिका नहीं है. संयोग से अमरीका के ब्रॉडकास्टरों, जैसे डब्लूएनवीटी, डब्लूएनवीसीऔर MHz के साथ एएनआई का कंटेंट शेयरिंग करार, 1984 से चलन में है, जब श्री नरेश चंद्रा अमरीका के राजदूत बनने से एक दशक दूर थे.”

एक पूर्व वरिष्ठ कर्मचारी के अनुसार, यह एजेंसी गृह मंत्रालय के लिए भी कार्यक्रम बनाती है. इसके यू ट्यूब के पेज के अनुसार, दूरदर्शन पर चलने वाला डेटलाइन नार्थईस्ट: अ रोविंग रिपोर्ट नामक कार्यक्रम, उत्तरपूर्व को “इस इलाके के बदलते तेवरों और तमाम रंगों में” कवर करता है. माय इंडिया नामक कार्यक्रम,“विभिन्नता वाले भारत में, धर्मनिरपेक्षता की तस्वीर” पेश करने पर केंद्रित है, जिसे देश के दूरदर्शन और कनाडा के टैग टीवी पर दिखाया जाता है. इंडिया दिस वीक भी ऐसा ही एक कार्यक्रम है. पूर्व कर्मचारी के अनुसार, गृह मंत्रालय इन सभी कार्यक्रमों के रिलीज होने से पहले अपनी तरफ से इनकी जांच करता करता है. एएनआई के एक वरिष्ठ वीडियो एडिटर और एक वरिष्ठ संवाददाता ने मुझे बताया कि एजेंसी पंजाब के अलगाववादियों के खिलाफ बहुत से फेसबुक अकाउंट चलाती है. जैसे एक अकाउंट खालसा पंथ के नाम से चलता है, जो कहने को तो एक धार्मिक पृष्ठ है, लेकिन इस पर अक्सर खालिस्तानी खाड़कुओं पर हमला किया जाता है.

जेएन दीक्षित ने कथित तौर पर एएनआई के लिए कई परियोजनाओं को मंजूरी दी थी. अजीत कुमार/एपी

भारत की विदेशी खुफिया एजेंसी, रॉ के एक पूर्व अफसर ने मुझे एएनआई और रॉ के बीच संबंधों के बारे में बताया. “राममोहन राव कमाल के इंसान थे,” उन्होंने कहा. “उनमे खुद से पहले, देश के हितों को सामने रखने का माद्दा था. प्रेम प्रकाश, पंजाबी अंदाज में बहुत ही शातिर किस्म के इंसान थे.” इस अफसर के अनुसार, एएनआई एजेंसी को सूचना-और-प्रभाव ऑपरेशन के तहत पाकिस्तान की खबरें मुहैय्या करवाती थी. भारतीय खुफिया एजेंसियों के पास, पाक सेना के बारे में सूचनाएं हासिल करने के लिए पर्याप्त संसाधन नहीं थे, लेकिन एएनआई का दावा था कि “उसकी पहुंच पाक सेना के अंदरूनी हलकों तक है.” पाकिस्तान में एजेंसी के पास कुछ स्ट्रिंगर तो जरूर थे. इसके अलावा इसकी पहुंच रायटर्स के लिए काम करने वालों तक भी थी. एक पूर्व न्यूज एडिटर के अनुसार इन सूत्रों में “परवेज मुशर्रफ की करीबी, किसी शख्स की बीवी भी शामिल थी.” मुशर्रफ, पाक सेना में जनरल थे, जो 1999 में तख्तापलट के बाद वहां के राष्ट्रपति बन बैठे थे.

जब मैंने एएनआई द्वारा रॉ के लिए खुफिया जानकारी एकत्रित करने को लेकर संजीव से सवाल किया तो उनका कहना था, “शायद आपको इसके मुत्तालिक पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई से बात करनी चाहिए क्योंकि मैं इस बात से बहुत गौरवान्वित महसूस कर रहा हूं कि आपको लगता है कि एएनआई या कोई भी भारतीय न्यूज एजेंसी, पाकिस्तान जैसे दुश्मन मुल्क में इतनी आसानी और स्वतंत्रता से काम कर सकती है.”

एएनआई के पाकिस्तान में स्वतंत्रता से काम करने की असमर्थता को लेकर संजीव सही प्रतीत होते हैं. “जब हमने विश्लेषण और अवलोकन किया तो हमें पता चला कि उनकी बहुत सी खबरें एकदम फर्जी और बेमानी हुआ करती थीं,” रॉ के पूर्व अफसर ने बताया. “हम कुछ ही अंशों को इस्तेमाल करते थे. लेकिन उनके इनपुट में कोई दम नहीं होता था. वे अपनी रिपोर्टें ऐसे तैयार करते थे मानो जैसे वे सीधे विश्वस्त सूत्रों के मूंह से निकाल कर लाई गईं हों. जबकि वे पहले से ही उगली हुई प्रेस रिपोर्टों से ज्यादा कुछ नहीं होती थीं.”

रॉ मुख्यालय में एएनआई की सूचना की गुणवत्ता को लेकर शिकायत दर्ज हुई, जिसमें कहा गया कि एएनआई को इसके लिए दी जाने वाली कीमत के मुकाबले उसके द्वारा सप्लाई की जा रही सूचनाओं का स्तर बहुत निम्न दर्जे का है. रॉ के तत्कालीन चीफ विक्रम सूद ने उठाई गई आपत्तियों को नजरंदाज कर दिया. ईमेल द्वारा भेजे गए प्रश्नों का सूद ने जवाब नहीं दिया.

सूद और राव एक दूसरे को तब से जानते हैं, जब राव रॉ में काम करते थे. 2017 में, राव के संस्मरणों के विमोचन पर सूद भी मंच पर मौजूद थे. मई 2018 में राव की पहली पुण्यतिथि पर सूद ने ट्वीट किया, “एक कुलीन व्यक्ति, एक अजीज दोस्त, एक भरोसेमंद सलाहकार, जिसे मैं हमेशा बहुत स्नेह से याद करता रहूंगा.” सूद एएनआई के लिए लिखते हैं और ट्विटर पर बहुत सक्रियता से उसको प्रमोट करते हैं.

एएनआई से सूद के संबंध को संजीव ने ज्यादा तरजीह नहीं दी. “हमारे पास बहुत से ऐसे लेखक हैं. एएनआई से जुडे अलग-अलग क्षेत्रों में ऐसे विशेषज्ञों की संख्या एक दिन में करीब 150 से 200 के बीच है,” उन्होंने जवाब लिखा.

हालांकि सूद ने अपनी किताब द अनएंडिंग गेम में इस बात की विस्तार से चर्चा की है कि कैसे पत्रकार खुफिया एजेंसियों के लिए उपयोगी साबित हो सकते हैं. “यहां तक कि वे विदेशियों को बतौर एजेंट्स भर्ती करने, उनसे काम लेने, सूचनाएं एकत्रित करने, उनका आकलन करने या गलत खबरें प्लांट करने में भी मदद कर सकते हैं,” उन्होंने अमरीका में सीआईए द्वारा न केवल अपनी धरती बल्कि विदेशों में भी मीडिया के साथ छल-कपट करने की भूरी-भूरी तारीफ करने से पहले लिखा.

पूर्व रॉ अफसर ने मुझे बताया कि 2002 से 2006 के वर्ष की अवधि में एएनआई की पांचों उंगलियां घी में थी. “उसके बाद, मुख्यालय में सभी को शायद समझ में आ गया. इसलिए सभी ऑपरेशनस एक-एक करके बंद कर दिए गए और दिए जाने वाले फंड में भी भारी कटौती कर दी गई. 2007-08 तक हमने सेना के करीबियों के अपने सूत्र विकसित कर लिए थे. मुशर्रफ के बाद, मीडिया भी पहले से ज्यादा खुल गया गया था. सेना की सूची भी पहले से ज्यादा पहुंच के दायरे में आ गई थी.”

अडवाणी की बेटी प्रतिभा अडवाणी ने जनवरी 2001 में टाइम्स ऑफ इंडिया को बताया कि उन्हें एएनआई में नौकरी “एटीएन चैनल पर खबरे पढ़ने के” उनके पूर्व अनुभव के कारण मिली. सोनू मेहता/हिंदुस्तान टाइम्स/गैटी इमेजिस

2004 से 2014 के बीच, कांग्रेस नेतृत्व वाली यूपीए सरकार के दौरान भी एएनआई ने सत्ता को अपने लटके-झटकों से बेवकूफ बनाना जारी रखा. एएनआई से परिचित एक पूर्व बीबीसी पत्रकार ने मुझे बताया कि एजेंसी अलग-अलग हवाई अड्डों के बाहर, हर आने-जाने वाले मुख्यमंत्री या मंत्री के साक्षात्कार के लिए अपने रिपोर्टर और कैमरामैन तैनात रखती थी. एक अन्य एएनआई के पत्रकार ने कहा, इस चलन को “गमला पोस्टिंग” कहा जाता था, “आप एक गमले की मानिंद बाहर बैठ जाते और इंतजार करते थे. एएनआई अपने बिजनेस ऐसे ही पोसता है.”

अमरीका में, अपने कार्यक्रम जैसेसाउथ एशिया न्यूजलाइन का इस्तेमाल करते हुए, एजेंसी ने प्रचार के भूखे राजनेताओं से अपने अमरीकी कांटेक्ट विकसित किए. वाशिंगटन में रहने वाले भारत-अमरीका संबंधी मामलों के विशेषज्ञ ने बताया कि एएनआई न्यू जर्सी या जैक्सन हाइट्स जैसी जगहों, जहां भारतीय मूल के लोग अधिक रहते हैं, के राजनेताओं का प्रचार करता है. “इनमे से कई सांसदों को न्यूयॉर्क टाइम्स या वाशिंगटन पोस्ट जैसे अखबारों में जगह नहीं मिल पाती. अगर वे इन महत्वपूर्ण समुदायों के बीच प्रचलित हो जाते हैं, तो इससे उनको मदद मिलती है.” ये संपर्क, फिर सूचना पाने और प्रभाव कायम करने में सूत्र का काम करते हैं.

यूपीए के शासन के दौरान एएनआई पर विदेश मंत्रालय का भरोसा, सबसे ज्यादा 2009 में वाशिंगटन तथा 2010 में दिल्ली में तत्कालीन अमरीकी राष्ट्रपति बराक ओबामा और भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की जॉइंट प्रेस कांफ्रेंस में दिखा. दोनों ही मौकों पर अफसरों ने भारतीय मीडिया दल में से सवाल करने के लिए स्मिता प्रकाश को चुना. “सर, आपने बार-बार कहा है कि बतौर उभरती शक्ति के रूप में भारत के अंदर अमरीका का सबसे महत्वपूर्ण सामरिक पार्टनर बनने की क्षमता है. भारत को लेकर आपका अगले दशक के लिए क्या विजन है? और ये संबंध आपके प्रशासन के लिए कितना मायने रखते हैं? स्मिता ने दिल्ली में ओबामा से सवाल किया. “दो पत्रकारों को चुना गया था और वे उनमें से एक थीं,” विदेश मंत्रालय कवर करने वाले एक वरिष्ठ संवाददाता ने बताया. “परमाणु संधि के बाद इतना कुछ घटित हो रहा था. वे इस मुत्तालिक कोई सीधा सवाल भी पूछ सकतीं थीं. हम सब अपनी आंखें तरेर रहे थे कि सवाल करने का मौका ही जाया कर दिया ...जब भी कभी चुनिंदा सवाल होता है तो हमेशा एएनआई को ही पूछने का मौका दिया जाता है और सवाल हमेशा विदेश मंत्रालय तय करता है.”

ANI ने डीडी कश्मीर के लिए कई कार्यक्रमों का निर्माण करने के लिए एक सौदा भी किया था.

2000 के दशक के मध्य में एएनआई के सामने जो एकमात्र चुनौती आई वह बाजार की दशा के रूप में थी. “2005 के बाद जब चैनलों ने एएनआई को महंगा पड़ने के कारण ‘अनसब्सक्राइब’ करना शुरू किया तो वह नेपथ्य में जाने लगी,” एक पूर्व एएनआई रिपोर्टर ने बताया. “चैनलों ने सोचा कि रिपोर्टर लोग उतनी मेहनत नहीं कर रहे थे. उनके लिए एएनआई एक बहाना बन गया था. उन्होंने सोचा, वे इसके बिना भी काम चला सकते हैं. यह ठहराव पुरानी तकनीक के कारण भी था.”

2010 में पहली बार एएनआई ने, यूएनआई टीवी के रूप में पहली बार प्रतिस्पर्धा का सामना किया, जिसे यशवंत देशमुख ने शुरू किया था. यूएनआई टीवी के साथ काम करने वाले एक पूर्व संपादक ने मुझे बताया कि उनकी एजेंसी के पास दो ओबी वैन थीं. “उस वक्त एएनआई के पास एक भी नहीं थी. बाद में उनके पास भी एक आ गई. हमने धड़ाधड़ लाइव कवरेज करना शुरू कर दिया. सभी चैनल यूएनआई टीवी सब्सक्राइब करने लगे. कुछ ने एएनआई को पूरी तरह से त्याग दिया. यहां तक कि दूरदर्शन ने भी हमें सब्सक्राइब कर लिया. थोड़े समय के लिए हम एएनआई से आगे निकल गए. हमारी ओर से तीन महीने तक मुफ्त सेवा दी जा रही थी, जिसकी वजह से एएनआई पर बहुत दबाव आ गया था. उस समय की विदेश सचिव निरुपमा राव ने मुझे बताया, ‘हां, हम इसी का इंतजार कर रहे थे.’”

2011 में, संजीव और स्मिता का बेटा ईशान प्रकाश अमेरिका से लौट आया. उसने संगठन में नए आक्रमक तेवर दिखाने शुरू किए. पिछले दशक में एएनआई ने अपने खिलाफ सभी प्रतिस्पर्धाओं को धराशाई कर अपना एकाधिकार जमा लिया था. वह अब सरकार के साथ मिलकर पहले से भी ज्यादा काम कर रही थी.

यूएनआई टीवी के साथ एएनआई की प्रतिस्पर्धा ज्यादा समय नहीं चली. एएनआई ने उच्च कार्यक्षमता वाले वीडियो मोबाइल यूनिटस, ‘लाइव यू’ नामक कंपनी से खरीद लिए और सेलुलर बॉन्डिंग तकनीक को अपना लिया, जो वीडियो  का कुशलतापूर्वक लाइव स्ट्रीमिंग कर सकती थी. लाइव यूनिटस को आसानी से छोटे बैग में ले जाया जा सकता था, जो ओबी वैन से बेहतर तकनीक थी. एएनआई के पास ऐसे कोई एक दर्जन यूनिट आ गए थे, जिन्होंने बाकि एजेंसियों को पीछे छोड़ दिया था. “ईशान हर जगह से लाइव दिखाने लगे,” पूर्व रिपोर्टर ने बताया. “अचानक सभी चैनल उसके पास वापस लौट आए. एजेंसी ने जल्द ही एएनआई सेलेक्ट नाम से एक नई फीड शुरू कर दी.” पहली बार एजेंसी ने कुछ रिपोर्टरों को भी नियुक्त किया.

2010 और 2014 के बीच, प्रतिस्पर्धात्मक वीडियो न्यूज एजेंसियां शुरू करने के कई प्रयास किए गए, लेकिन कोई भी मौजूदा बाजार की स्थिति के कारण टिक नहीं पाया. “अगर स्थितियां एकाधिकार वाली हैं तो वे इसलिए हैं क्योंकि उन्हें बनाया गया है,” एक न्यूज एजेंसी के संपादक ने बताया. “अगर किसी कंपनी को सरकार से अच्छा बिजनेस मिल रहा है, तो वह कंपनी बाजार के मूल्य को काटना गंवारा कर सकती है. कोई चीज जिसे बाजार में 10 रुपए में बेचा जा सकता है, उसे 3 रुपए में बेचा जा रहा है. आप यह तभी कर सकते हैं जब कोई आपको फंड कर रहा हो. इसने बाजार को बहुत असंगत बना दिया.

2014 के बाद कई छोटी कंपनियां जैसे न्यूजस्ट्रीट, न्यूजपॉइंट, एशियन प्रेस न्यूज सर्विसेज और एनएनआईएस को मजबूरी में अपना काम बहुत कम करना पड़ा क्योंकि एएनआई सबका काम काट रहा था. एएनआई ने सरकार में अपनी पैठ के चलते प्रतिस्पर्धियों के रास्ते में रोड़े भी अटकाए.

लेकिन एएनआई के प्रोपागेंडा कंटेंट की कोई खास अच्छी प्रोडक्शन वैल्यू नहीं है. इसकी न्यूजफीड का एक दिलचस्प पहलू है कि यह पाक-अधिकृत कश्मीर के गिलगिट-बल्तिस्तान सूबे पर, जिस पर भारत भी अपना हक जताता है, नियमित स्टोरीज करता रहता है. अमूमन वीडियो ज में इन विषयों पर चर्चा करने वाले पश्चिमी देशों में रह रहे चंद लोग कहीं एकत्रित होकर विरोध में पाकिस्तान के खिलाफ नारेबाजी करते हुए दिखाए जाते हैं. मिसाल के तौर पर, “विश्वसिंधी सम्मेलन ने लंदन में पाकिस्तान उच्चायोग के सामने प्रदर्शन किया.” सितंबर 2018 में ,एग्जीक्यूटिव प्रोड्यूसर रवि खंडेलवाल जेनेवा में थे, उन्होंने वहां से एक-दो वीडियो भेजे जिनका शीर्षक था: “पाक और चीन की सेनाएं हमारे लोगों को अगुआ करके उनके शरीर के अंगों का व्यापार करती हैं: बलोच कार्यकर्त्ता नेला कादरी,” और “पाकिस्तान द्वारा बलोचिस्तान के संसाधनों का दोहन तथा चीन के साथ उन्हें बांटना: बलोच कार्यकर्ता मामा कादिर.” कादिर वैसे तो एएनआई पर ज्यादा दिखाई देते हैं, लेकिन वे अन्य भारतीय चैनलों पर भी नमूंदार होते रहते हैं. पाकिस्तान के साथ, भारत के प्रोपगेंडा वार वाली कहानियों में वे अमूमन नजर आ जाते हैं. पाकिस्तान उन्हें रॉ का एजेंट बताता है. दो वीडियो एडिटरों के अनुसार, खंडेलवाल की टीम विभिन्न सरकारी महकमों के लिए बनने वाले कार्यक्रमों के लिए जिम्मेवार है.

अपने दबदबे और प्रतिद्वंदियों के न होने के कारण भी एएनआई को अपनी मनमर्जी करने का मौका मिल जाता है.

वीडियो एडिटरों ने मुझे बताया कि एजेंसी कुछ ऐसे भी वीडियोज बनाती है जिसकी फुटेज को वह पाकिस्तानी चैनलों, जैसे जिओ टीवी, एआरवाई और दुनिया चैनल के दर्शकों को यह दिखाने के लिए किए चैनल एएनआई के कंटेंट का इस्तेमाल कर रहे हैं, उन पर चस्पा कर देती है. एएनआई के सूत्रों ने मुझे कुछ सैंपल मुहैय्या करवाए, जहां इसकी फुटेज पर उर्दू वॉइसओवर और टिकर जोड़ दिए गए थे. जिन वीडियोज को मैंने देखा वे साफ तौर पर फर्जी थे और पाकिस्तान टीवी पर कभी नहीं दिखाए गए.

उदाहरण के लिए ‘आसियान समिट’ के एक वीडियो पर उर्दू वॉइसओवर और जिओ टीवी का लोगो लगा दिया गया है. इसकी क्लिप शुरू होने से पहले स्क्रीन की इबारत कहती है कि इस फुटेज को जिओ टीवी पर 24 नवंबर 2018 को रात 8 बजे दिखाया गया. शुरू होते ही यह कथित तौर पर चैनल के एक पाकिस्तानी पत्रकार को दिखाता है, जो समिट में नरेन्द्र मोदी की शिरकत के बारे में बात कर रहा है. हालांकि जब मैंने चैनल के यू ट्यूब अकाउंट पर उस दिन के पूरे बुलेटिन पर नजर डाली तो मुझे वहां यह वीडियो कहीं नहीं दिखाई दिया. जिओ टीवी के प्रतिनिधि ने भी मुझसे इस बात की पुष्टि की कि कथित वीडियो फर्जी था और चैनल पर ऐसा कुछ नहीं दिखाया गया है.

एएनआई द्वारा निर्मित मूल वीडियो :

एएनआई से प्राप्त वीडियो :

एक अन्य वीडियो, नवंबर 2018 का है, जिसमें श्रीनगर में बहरे बच्चों के लिए आयोजित एक खेल प्रतियोगिता को दिखाया गया है. वीडियो  पर एआरवाई का लोगो लगा है और उर्दू में एक टिकर और वॉइसओवर चल रहा है. “हमारे रिकॉर्ड के अनुसार, ऐसा कुछ नहीं दिखाया गया,” एक वरिष्ठ एआरवाई प्रतिनिधि ने मुझे बताया. इस प्रतियोगिता को लेकर एक फीचर स्टोरी विदेश मंत्रालय की “इंडिया फाइल” की सूची में दिखाई दी.

एएनआई द्वारा निर्मित मूल वीडियो :

एएनआई से प्राप्त वीडियो :

वीडियो एडिटर मुझे यह तो नहीं बता पाए कि इन वीडियो को बनाने से क्या मकसद पूरा होता है लेकिन ऐसा लगता है कि एएनआई इनका निर्माण यह भ्रम फैलाने के लिए करता है कि पाकिस्तानी चैनलों पर भी मोदी तथा भारत-प्रशासित कश्मीर के बारे में सकारात्मक पक्ष दिखाया जा रहा है. हालांकि यह तयशुदा बात है कि जो भी इसके लिए पैसा दे रहा है वह बेवकूफ बन रहा है.

“मुझे नहीं पता आप किस वीडियो की बात कर रहे हैं,” संजीव ने मेरे ईमेल के जवाब में लिखा. “उर्दू जुबान, भारत में भी बोली जाती है फिर आपको यह क्यों मान लेना चाहिए कि उर्दू बोलने वाला कोई पाकिस्तानी ही होगा? इन्टरनेट पर ऐसे कई वीडियोज हैं जिन पर एएनआई, एनडीटीवी, टाइम्स नाउ, आज तक, के लोगो लगे हैं. अब हममे से कोई भी यह चेक करता तो नहीं फिरेगा कि उनमे से कौन से सही हैं और कौन से फर्जी. जैसा कि आपको मालूम होगा कि आजकल बच्चे भी क्रोपिंग और फोटोशॉप करना जानते हैं.” लेकिन संजीव की दलील के उलट, जो वीडियो मेरे कब्जे में हैं, उन्हें एएनआई से ही लिया गया है.

वीडियो एडिटरों ने यह भी बताया कि उन्हें पाकिस्तान पर बीबीसी के वीडियो डाउनलोड करने की हिदायत थी, और बीच में भारत सरकार की सकारात्मक छवि वाले क्लिप डालने के लिए कहा जाता था. उन्होंने कहा कि इन वीडियो को अफसरों को दिखाया जाता, जिन्हें लगता कि उनके क्लिप दिखाए गए हैं. ये अफसर तकनीकी को उतना नहीं समझते और उन्हें लगता है कि वीडियो सच्चा है और इसका प्रभाव पड़ा है,” पूर्व वरिष्ठ वीडियो एडिटर ने बताया.

प्रसार भारती के पूर्व सीईओ ने इशारों-इशारों में बताया कि एएनआई अपना सारा पैसा खबरों के धंधे से नहीं बनाता है. “अगर कोई धंधे में पैसा बना रहा है, तो उसकी आय के श्रोत को देखना चाहिए,” उन्होंने कहा. “अगर यह उसके मुख्य धंधे से नहीं आ रहा है तो वह मुख्य धंधा पैसे बनाने वाले अन्य धंधों का महज जरिया भर है.”

प्रकाश परिवार की कई कंपनियां हैं और सभी अच्छा व्यवसाय कर रही हैं. ‘द केन’ वेबसाइट के अनुसार, रायटर्स के 49 प्रतिशत वाली एएनआई मीडिया प्राइवेट लिमिटेड और एशियन फिल्म्स टीवी प्राइवेट लिमिटेड ने “2017-18 में 68.23 करोड़ रुपए का व्यवसाय किया, जिसमें उनका मुनाफा 9.91 करोड़ रुपए था. सबसे ज्यादा आय और मुनाफा, एएनआई मीडिया से आता है. दोनों में से किसी कंपनी पर कोई उधार नहीं है.” रिपोर्ट में कहा गया कि रायटर्स ने एएनआई को 2017-18 में मीडिया सर्विस के लिए 2.54 करोड़ रुपए दिए.

एएनआई ने भी उस साल रायटर्स फीड को लोकल चैनलों में वितरण करने और उसकी मार्केटिंग करने से बतौर कमीशन 31.77 लाख रुपए कमाए. प्रेम प्रकाश, उनकी पत्नी दया और उनके बच्चे संजीव और सीमा कुकरेजा, कंपनी में शेयरहोल्डरस हैं. एक अन्य कंपनी, पैसिफिक न्यूज प्राइवेट लिमिटेड पर मुख्य तौर पर संजीव, स्मिता और ईशान का मालिकाना हक है. 2017-18 में, इसका कुल मूल्य 36.79 करोड़ रुपए था. अन्य कंपनियां जिनसे परिवार जुड़ा हुआ है में, प्रेम दया होल्डिंगस प्राइवेट लिमिटेड, कोलोनिया सांता मारिया होटल्स प्राइवेट लिमिटेड – जिसकी पूंजी में गोवा का एक रिसोर्ट भी है – और येल्लो गेट वेंचरस प्राइवेट लिमिटेड शामिल हैं, जिसमे स्मिता और ईशान को डायरेक्टर दिखाया गया है.

ईशान की आक्रमकता ने हालांकि, यूपीए सरकार के साथ कंपनी को थोड़े समय के लिए ही सही लेकिन मुसीबत में डाल दिया था. 2012 में, दिल्ली में बलात्कार और हत्या के उस खौफनाक हादसे, जिसे निर्भया केस के नाम से जाना गया, के बाद जब देश भर में गुस्से और विरोध की लहर दौड़ गई और कुछ हिंसात्मक वारदातें सामने आईं, तो प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने दूरदर्शन और एएनआई के जरिए देश को संबोधित करने का निर्णय लिया. दो मिनट तक अपना वक्तव्य पढ़ने के बाद, वे कुछ सेकंडों के लिए रुके और कैमरामैन से पूछा, “ठीक है?” एएनआई के दो पूर्व कर्मचारियों के अनुसार, ईशान ने प्रधानमंत्री निवास के बाहर पार्किंग लॉट से ही, वीडियो  को बिना संपादित किए ‘लाइव’ करने की इजाजत दे दी. “कैमरामैन ने कहा भी कि यह फुटेज हमारा एक्सक्लूसिव है, हम दफ्तर जाकर भी इसको कर सकते हैं,” पूर्व वीडियो एडिटर ने मुझे बताया, “लेकिन ईशान ने उसे उसी वक्त चलाने का आदेश दिया. कैमरामैन को यह नहीं पता था कि कहां रुकना है.” वह क्लिप सोशल मीडिया पर मनमोहन सिंह की असत्यता और असंवेदनशीलता के लक्षण के रूप में वायरल हो गई, जिससे लोगों का गुस्सा और बढ़ गया. “सॉरी, लेकिन पीएम का भाषण संवेदनाविहीन था, बिल्कुल काठ की तरह और स्थिति की नजाकत से दूर. अंत में उस “ठीक है” ने इसकी नाटकीयता को उजागर कर डाला था,” पत्रकार सागरिका घोष ने ट्वीट किया. “क्योंकि इसके लिए ईशान जिम्मेवार थे इसलिए इस पर पर्दा डाल दिया गया. उनकी जगह कोई और होता तो उसे तुरंत निकाल बाहर कर दिया जाता,” पूर्व एएनआई एडिटर ने बताया. दूरदर्शन के लोग प्रधानमंत्री का संबोधन रिकॉर्ड करने नहीं पहुंच पाए थे और एएनआई वहां पर अकेली वीडियो एजेंसी थी,” प्रधानमंत्री के तत्कालीन कम्युनिकेशन सलाहकार पंकज पचौरी ने कहा. “उन्होंने गैर-पेशावर तरीके से पहले तो प्रधानमंत्री की रिकार्डिंग बिना संपादित किए चला दी थी और फिर लिखित तथा सार्वजनिक रूप से माफी मांग ली. कुछ ही महीनों बाद उन्हें फिर से बुला लिया गया.”

मेरे द्वारा किए गए साक्षात्कारों से पता चला कि संजीव, स्मिता और ईशान के दौर की एक और विशेष पहचान है. वह पहचान है : कर्मचारियों के साथ किया जाने वाला व्यवहार. सभी पूर्व कर्मचारियों जिनसे मैंने मुलाकात की ने शिकायत की कि प्रेम प्रकाश के बाद, जो पुराने मूल्यों में यकीन रखने वाले इंसान थे और अपने कर्मचारियों के साथ उनका व्यवहार भी अच्छा था, संजीव, स्मिता, और ईशान के काल में कंपनी के मूल्यों का पतन ही हुआ है. भले ही इसकी छवि आज भी ब्रॉडकास्ट पत्रिकारिता में करियर बनाने के चाह रखने वाले नौजावानों के लिए एक अच्छे ट्रेनिंग ग्राउंड की बनी हुई है लेकिन यहां नौकरी छोड़ने वालों की दर काफी ऊंची है. कई पूर्व कर्मचारियों ने मुझे बताया कि अभी हाल तक ही एएनआई में कोई ह्यूमन रिसोर्सेज विभाग नहीं हुआ करता था. कई मामलों में ज्वाइन करने वालों को ऑफर लेटर ही नहीं मिले. बर्खास्त करने की भी कोई निश्चित नीति नहीं है. “सुरक्षा गार्ड आपको गेट पर अचानक रोक लेता है. कोई पूर्व चेतावनी या स्पष्टीकरण नहीं दिया जाता,” हाल ही में बर्खास्त एक पूर्व कर्मचारी ने बताया. “क्योंकि वे सब कुछ जुगाड़ से करते हैं इसलिए शायद वे अपने लिए काम करने वालों की कद्र नहीं कर पाते.”

कई लोगों ने कैमरामैन विक्रम बिष्ट का मामला याद किया, जो संसद पर 2001 के आतंकवादी हमले में रीढ़ की हड्डी में दो गोलियां लगने से गंभीर रूप से जख्मी हो गए थे और जिनकी दो साल बाद मृत्यु हो गई. एनडीए सरकार से अच्छे संबंध होने की बावजूद भी, एएनआई ने बिष्ट को कोई खास मदद नहीं दिलवाई, जो चोट लगने के बाद व्हीलचेयर पर आ गए थे. “जब कर्मचारियों ने परिवार की मदद के लिए हर महीने प्रत्येक कर्मचारी से 500 रुपए एकत्रित करना शुरू किया, तो मैनेजमेंट ने इसे यूनियन बाजी करार दिया,” एक पूर्व वरिष्ठ कर्मचारी ने बताया. “दो साल बाद उसके अंतिम संस्कार वाले दिन ही उसके परिवार को उसकी आखिरी महीने की तनख्वाह दी गई.”

नवंबर 2018 में, मैं दिल्ली के एम्स के कैंसर वार्ड के बाह, एएनआई के आगरा ब्यूरो चीफ ब्रिजेश सिंह से मिला. 2013 में उन्हें किडनी कैंसर से ग्रसित पाया गया था. उन्होंने बताया, “एएनआई ने मेरी बिल्कुल मदद नहीं की. उन्होंने कहा बीजेपी नेता राजनाथ सिंह ने एम्स में उनके इलाज की व्यवस्था करने में सहायता की. “2008 में, राजस्थान के गुज्जर आंदोलन के दौरान, 43 लोगों की गोली लगने से मौत हो गई. मैंने लोगों के सीने पर गोली लगते देखा. मैं उस गोलीकांड का चश्मदीद गवाह था,” सिंह ने बताया. “मैंने जमीन पर रेंगते हुए इस घटना को कवर किया था. मेरा पेशाब तक निकल गया था. एनडीटीवी की ओबी वैन आ चुकी थी. मैंने उनसे वीडियो को मेरे ऑफिस पहुंचाने की विनती की. उनके लिए मैंने अपनी जान तक खतरे में डाली है, लेकिन इन लोगों ने मेरी कोई परवाह नहीं की.”

सिंह ने मुझे हिमाचल प्रदेश के 28 वर्षीय कैमरामैन प्रेम ठाकुर के बारे में बताया जो 2013 में रोहतांग पास में सरकती हुई बर्फ की चट्टान के बीच फंस गए थे. बाद में बर्फ साफ करने के दौरान करीब चार घंटे बाद उनकी लाश मिली थी. “पहले उन्होंने कहा कि वह उनका कर्मचारी नहीं है,” ठाकुर की पत्नी जितेन्द्र ने मुझे बताया, जो दुर्घटना के समय गर्भवती थीं. “उन्होंने मुझे कॉल भी नहीं किया. मैंने ब्यूरो चीफ हेमंत भाई के जरिए उन्हें फोन किया, जिन्होंने उन्हें मुआवजे के लिए मनाया. हमें तीन लाख रुपए मिले.” ठाकुर का एएनआई के साथ करार था और वे स्ट्रिंगर नहीं थे. मैनेजमेंट ने इस बार भी कर्मचारियों को डोनेशन उगाहने से हतोत्साहित किया.

संजीव प्रकाश को छोड़कर, जो सोशल मीडिया पर नहीं हैं, परिवार के सभी सदस्य अपने राजनीतिक विचार ऑनलाइन खुलकर अभिव्यक्त करते रहते हैं. लेकिन कर्मचारियों को ऐसा करने से रोका जाता है. अगर ईशान को ऐसा कभी कुछ दिखाई दे जाता है तो वह कर्मचारियों को तुरंत अपने कैबिन में बुलाकर ट्वीट वापस लेने के लिए कहते हैं. नए नियम के मुताबिक रिपोर्टर से अपनी लोकेशन हर रोज व्हाट्सअप ग्रुप पर शेयर करने की अपेक्षा की जाती है. “यह दिखाता है कि उन्हें अपने रिपोर्टर पर भरोसा नहीं है,” एक रिपोर्टर ने बताया. ”यह अपमानजनक है. इस वजह से कई लोग छोड़ कर चले गए.” परिवार के सदस्यों के अलावा, सुरिंदर कपूर के बेटे नवीन विदेश मंत्रालय कवर करते हैं और रविखंडेल वाल मैनेजमेंट के विश्वासपात्र वजीर हैं. कई वर्तमान और पूर्व कर्मचारियों के अनुसार, बाकि किसी भी और को कभी भी तिलांजलि दी जा सकती है. कोई भी यहां ज्यादा नहीं टिकता. जो ठहर जाते हैं उन्हें भी मनगढ़ंत आरोपों के आधार पर निकाल-बाहर कर दिया जाता है या उन्हें इस्तीफा देने के लिए मजबूर किया जाता है.

पूर्व रॉ प्रमुख विक्रम सूद के एएनआई के साथ लंबे समय से करीबी संबंध रहे हैं. बीसीसीएल

चार वरिष्ठ कर्मचारियों और परिवार के करीबी सूत्रों के अनुसार, 2014 की शुरुआत में प्रेम प्रकाश को भी गेट पर ही रोक कर बिल्डिंग में नहीं घुसने दिया गया. यह किसी पारिवारिक झगड़े के कारण था, जिसके एक खेमे में प्रेम, दया और सीमा कुकरेजा थे और दूसरे खेमे में संजीव, स्मिता और ईशान.

“दरार तब खुले में आई, जब 80-वर्षीय प्रेम ने एक ऑडी ए-6 गाड़ी खरीदी क्योंकि अपने खराब घुटनों के कारण उन्हें अपनी फॉर्च्यूनर में चढ़ने-उतरने में दिक्कत आ रही थी,” मैनेजमेंट के करीबी एक कर्मचारी ने मुझे बताया. कर्मचारी के अनुसार, यह झगड़ा इतना बढ़ गया कि प्रेम को अपनी सुरक्षा के लिए एक गनमैन रखना पड़ा. “उन्हें बिल्डिंग में इसलिए नहीं घुसने दिया गया क्योंकि उनका सुरक्षागार्ड बन्दूक से लैस था,” कर्मचारी ने कहा. “उन्हें तीन घंटे तक बिठा कर रखा गया.” कई सूत्रों ने इस बात की पुष्टि की कि संजीव, स्मिता और इशान के स्वामित्व वाली पैसिफिक न्यूज प्राइवेट लिमिटेड ने एएनआई पर भी कब्जा करने का प्रयास किया था, लेकिन ऐसा इसलिए नहीं हो पाया क्योंकि कंपनी में सबसे ज्यादा शेयरों के मालिक, प्रेम प्रकाश अड़ गए. कंपनी में स्मिता और ईशान शेयर होल्डरस नहीं हैं.

“प्रेम प्रकाश तुरंत रायटर्स गए और अपनी यह कहानी सुनाई,” पूर्व वरिष्ठ कर्मचारी ने बताया. “स्मिता, अरुण जेटली के पास पहुंच गयीं और उन्हें सीमा और उनके परिवार पर भरोसा न करने के लिए कहा. लेकिन जेटली उनके परिवार को बहुत लंबे समय से जानते हैं. प्रेम प्रकाश को चेयरमैन की सीट पर पुनः बिठाने में जेटली ने एक बड़ी भूमिका निभाई.”

राजनेताओं और रायटर्स द्वारा बीच-बचाव के बाद, परिवार के बीच अंत में समझौता हो गया. नवंबर 2016 में, स्मिता के जन्मदिन पर उन्हें एशियन फिल्म्स प्राइवेट लिमिटेड का डायरेक्टर बना दिया गया. प्रेम ने डायरेक्टर के पद से सुरिंदर कपूर को हटा दिया और चार्टर्ड अकाउंटेंट संजय मेहरा, जो मार्केटिंग टीम को हेड करते थे, को हिदायत दी गई कि वे ऑफिस में कदम न रखें. हालांकि उन्हें उनकी तनख्वाह मिल रही है. प्रेम ने अपने बेटे के लिए ऑडी क्यू-7 भी खरीदी. रायटर्स के पूर्व संपादक ने बताया, “यह सीमा और स्मिता के बीच वर्चस्व की लड़ाई है: उस सिस्टम पर किसका ज्यादा प्रभाव है, जिसने एएनआई को उस मुकाम पर पहुंचाया, जहां वह आज है.” पूर्व कर्मचारियों के अनुसार, दोनों के बीच आज भी शीत युद्ध की स्थिति बनी हुई है.

आगरा ब्यूरो के पूर्व चीफ ब्रिजेश सिंह ने मुझे बताया परिवार के इस आपसी झगड़े में उन्हें शिकार बनना पड़ा. उन्होंने बताया कि जब उन्हें अपनी बीमारी का पता चला, “प्रेम प्रकाश ने मुझे बुलाया और पूछा कि क्या मैं सहायता से खुश हूं. मैंने कहा मुझे ऑफिस की तरफ से कोई सहायता नहीं मिली. सुरिंदर कपूर की तरफ से व्यक्तिगत सहायता के रूप में मुझे सिर्फ 25000 रुपए मिले थे, और ऑफिस की तरफ से 50000 रुपए. इसके अलावा कुछ नहीं. मैंने उन्हें बताया कि अगर मुझे सहायता मिलती तो मैं आज जिंदा और अपने पैरों पर खड़ा हो पाता. प्रेम प्रकाश ने कहा, ‘क्या तुम मुझे लिखकर दे सकते हो? तुम्हारे अकाउंट के मुताबिक तुम्हे 20 लाख रुपए की सहायता राशि प्राप्त हुई है.’ वे इस मसले को रायटर्स की टेबल तक ले गए जहां पारिवारिक झगड़ा निपटाया जा रहा था. इसके तुरंत बाद मुझे निकाल दिया गया. उन्होंने मेरी समस्या का दुरूपयोग किया.” सिंह ने मुझे वे ईमेल भी दिखाईं जो उन्होंने मदद की गुहार लगाते हुए प्रेम को लिखीं थीं. “प्रेम प्रकाश ने कहा, ‘मैं ऑफिस की मामलों में दखलंदाजी नहीं करता,” उन्होंने मुझसे कहा.

सवाल जबकि प्रेम, संजीव, स्मिता और ईशान को भेजे गए थे, लेकिन सिर्फ संजीव ने उनका जवाब दिया. कब्जाने की कोशिश के बारे में संजीव ने कहा, “मेरे माता-पिता, मेरी बहन और मैं, एएनआई परिवार का हिस्सा हैं और हम मजबूती के साथ, एक साथ खड़े हैं.”

{चार}

2 नवंबर 2018 को एक प्रेस कांफ्रेंस में कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने इंगित किया कि डसॉल्ट के चीफ एग्जीक्यूटिव एरिक ट्रेपियर के अनुसार राफेल सौदे में अनिल अंबानी की रिलायंस डिफेंस को इसलिए चुना गया क्योंकि रिलायंस के पास नागपुर में जमीन थी. यह एक सफेद झूठ था. असल में कथित जमीन को डसॉल्ट द्वारा रिलायंस के खाते में ट्रान्सफर किए गए पैसे से खरीदा गया. पूर्व बीजेपी नेता यशवंत सिन्हा और अरुण शौरी ने वकील प्रशांत भूषण के साथ मिलकर एक याचिका दायर की जिसमे सुप्रीम कोर्ट की देखरेख में इस सौदे की जांच की मांग की गई थी.

इस मामले में, 12 नवंबर को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई से ठीक एक दिन पहले, एएनआई ने स्मिता प्रकाश द्वारा लिया गया ट्रेपियर का इंटरव्यू रिलीज किया. स्मिता ने इस इंटरव्यू में 46 मिनट में करीब 46 सवाल किए. ट्रेपियर ने जोर देकर कहा कि उन्होंने ही रिलायंस को ऑफसेट पार्टनर के लिए चुना और इसके लिए मोदी सरकार ने उन पर कोई दबाव नहीं डाला. “अगर आप बतौर सीईओ मेरी जगह पर हों, तो आप झूठ नहीं बोल सकते,” उन्होंने कहा. इस बिंदु पर आकर स्मिता, ट्रेपियर की मदद करती हुई प्रतीत हुईं: “क्या यही वजह है कि फ्रेंच मीडिया ने सौदे को लेकर कोई सवाल नहीं उठाए हैं, फ्रेंच मीडिया में इसको लेकर शायद ही कहीं कुछ छपा हो?” ट्रेपियर ने इस पर अपनी सहमति जताई, पर साथ ही जोड़ दिया कि पूर्व राष्ट्रपति फ्रांस्वा ओलांद की इस मसले पर टिप्पणी एक अपवाद था. ओलांद ने कहा था, “भारतीय पक्ष ने ही इस ग्रुप का प्रस्ताव रखा था. इसलिए ही डसॉल्ट ने अंबानी के साथ कारोबार का करार किया. हमारे पास कोई विकल्प नहीं था, हमने उसे ही चुना जिसकी हमारे सामने पेशकश की गई.”

दर्शकों के सामने स्मिता ने शक की कोई गुंजाइश नहीं छोड़ी कि वे किसके साथ हैं, जिसके परिणामस्वरुप सोशल मीडिया पर उनकी खूब आलोचना हुई. “कमाल है, इस इंटरव्यू में इंटरव्यू लेने वाला नदारद है. सिर्फ इंटरव्यू देने वाला दिखता है...एरिक ट्रेपियर और दो प्रॉप्स: एक राफेल फाइटर और एएनआई की एडिटर. स्मिता ने एक भी मुश्किल प्रश्न नहीं पूछा. मिनिस्ट्री ऑफ प्रोपगेंडा जीवंत और भला-चंगा है,” सुरक्षा मामलों के विश्लेषक अजय शुक्ल ने ट्वीट किया. कांग्रेस ने इस इंटरव्यू को बीजेपी सरकार, डसॉल्ट और पीएम मोदी के पीआर स्टंट के बीच एक फिक्स्ड मैच करार दिया.”

12 नवंबर को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई से ठीक एक दिन पहले, एएनआई ने स्मिता प्रकाश द्वारा लिया गया ट्रेपियर का इंटरव्यू रिलीज किया. कांग्रेस ने इस इंटरव्यू को बीजेपी सरकार, डसॉल्ट और पीएम मोदी के पीआर स्टंट के बीच एक फिक्स्ड मैच करार दिया.” एरिक पियरमोन्ट/एएफपी/गैटी इमेजिस

ट्रेपियर मेल न खाते दावों से साफ बच कर निकल गए. उदाहरण के लिए उन्होंने कहा, “हमने रिलायंस के साथ जाने का फैसला इसलिए किया क्योंकि उनके पास बड़ी इंजीनियरिंग फैसलिटी का अनुभव है.” इसी इंटरव्यू में बाद में उन्होंने कहा, अनिल अंबानी की गैर अनुभवी कंपनी को इसलिए चुना गया क्योंकि, “मैं एकदम शुरू से शुरूआत करना चाहता था.” इस बार उन्होंने एहतियात बरती कि रिलायंस के पास जमीन होने की शर्त का जिक्र न किया जाए और स्मिता ने भी इस पर उन्हें न घेरने का फैसला किया.

स्मिता ने राहुल गांधी का नाम कई बार लिया जिससे यह आभास मिलता था कि वे चाह रहीं थीं कि ट्रेपियर अपनी बात सीधे कांग्रेस अध्यक्ष को संबोधित करते हुए बोलें. ट्रेपियर ने सीधे राहुल को तो संबोधित नहीं किया, लेकिन मीडिया ने इंटरव्यू को कुछ यही रूप दे डाला. दक्षिणपंथी न्यूज चैनल रिपब्लिक ने इस इंटरव्यू को #डसॉल्ट वर्सेज राहुल के रूप में प्रमोट किया. अगले दिन इंडियन एक्सप्रेस में हेडलाइन थी” “डसॉल्ट के सीईओ ने राहुल को आड़े हाथों लिया: मैं झूठ नहीं बोलता ...नया राफेल 9 प्रतिशत सस्ता है.” इंटरव्यू को बीजेपी के ट्विटर हैंडल पर भी प्रमोट किया गया और कई मंत्रियों ने इसे रिट्वीट किया.

सरकार के इस रक्षा सौदे को सही साबित करने में एएनआई सतत प्रयास करता आया है. जेटली एएनआई को अब तक दो साक्षात्कार दे चुके हैं: पहला, अगस्त 2018 में स्मिता प्रकाश  और दूसरा, सितंबर में ईशान को. लेकिन इन तमाम प्रयासों के बावजूद भी, भ्रष्टाचार-विरोधी लहर के बल पर सत्ता में आने वाली मोदी सरकार द्वारा राफेल सौदे में ‘क्रोनी कैपिटलिज्म’ को बढ़ावा देने के आरोप लगातार बने हुए हैं. राफेल सौदे में की गई गड़बड़ियों की खबरें लगातार सामने आते रहने और एजेंसी द्वारा इन आरोपों को खारिज करने के प्रयास एएनआई के वर्तमान सरकार के साथ विशेष संबंधों को रेखांकित करते हैं. ऐसी यारी पिछली किसी सरकार के साथ इसने नहीं दिखाई. प्रकाश परिवार की विचारधारा बीजेपी के राष्ट्रवाद से बहुत मेल खाती प्रतीत होती है. मीडिया के साथ तिकड़म भिड़ाने में बीजेपी की दक्षता ने भी इस परस्पर लाभकारी रिश्ते को मजबूत किया है.

स्मिता की यह स्वतंत्र, निष्पक्ष पत्रकारिता जाया नहीं गई है. मार्च 2018 में, जब केंद्रीय प्रेस-मान्यता समिति, जो यह निर्णय करती है कि प्रेस सूचना ब्यूरो (पीआईबी) किसे मान्यता-प्राप्त पत्रकार का दर्जा देगा, का पुनर्गठन किया गया तो स्मिता प्रकाश को इसकी सदस्यता प्राप्त हुई. पत्रकारों की कई यूनियनों ने इस फैसले पर विरोध जताया और आरोप लगाया कि पहले भी स्मिता के पिता, पीआईबी के मुखिया के बतौर इसके सदस्यों को बिना पारदर्शिता के चुन चुके हैं. उनका कहना था कि इसके फलस्वरूप पीआईबी का प्रतिनिधिक चरित्र न केवल नष्ट हुआ है; बल्कि पत्रकारों के हितों की रक्षा करने की इसकी क्षमता पर भी प्रतिकूल असर पड़ा है.

एनडीटीवी पर चर्चा में भाग लेने के दौरान, स्मिता ने खुद को तरजीह दिए जाने से इंकार किया. “मैं कौन होती हूं यह कहने वाली कि मुझे ही क्यों चुना गया. यह सवाल आपको श्रीमती (स्मृति) ईरानी या सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय में किसी से करना चाहिए. मैं सिर्फ इतना कह सकती हूं कि मेरे पास पत्रकारिता का 29 सालों का अनुभव है और मैं एक न्यूज एजेंसी में कई सालों से एकमात्र महिला एडिटर हूं, जहां कोई और महिला एडिटर नहीं है. शायद मुझे इसी कारण चुना गया हो. मुझे सच में नहीं मालूम.” अक्टूबर 2018 में उन्हें सरकारी इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ मास कम्युनिकेशन की कार्यकारी कौंसिल में भी चुन लिया गया. उन्होंने इसी इंस्टिट्यूट से अपनी पत्रकारिता की शिक्षा ग्रहण की थी.

इस साल मोदी से साक्षात्कार के बाद, स्मिता ने राजनीतिक पत्रकारिता के कई पहलुओं पर डिजिटल मीडिया, टॉकिंगस्टाफ से बात की. उन्होंने मोदी की इस आलोचना को खारिज किया कि वे चुनिंदा पत्रकारों को ही साक्षात्कार देते हैं. उन्होंने कहा कि मोदी सोशल मीडिया के जरिए लोगों से सीधे बात करते हैं. “मीडिया इस बात से नाहक ही उत्तेजित होता रहता कि मोदी प्रेस कांफ्रेंस नहीं करते. लोगों को उनसे ऐसी कोई शिकायत नहीं है.” साफगोई के एक पल में ‘एक्सेस जर्नलिज्म’ पर बात करते हुए उन्होंने स्वीकारा, “कब आपको ‘एक्सेस’ मिलता है, कब दे दिया जाता है. कभी आपसे खबर दबाने की अपेक्षा की जाती है, कभी रंगीन जामा पहनाने के लिए कहा जाता है. मैं इस सब से इंकार नहीं करती.”

चुनाव सर पर मंडरा रहे हैं और एएनआई निर्लज्जता के साथ बीजेपी का प्रचार करने में जुटी है. पिछले साल जून में, सत्तारुढ़ पार्टी ने जन समर्थन जुटाने की मंशा से “समर्थन के लिए संपर्क” पहल को लांच किया और इस सिलसिले में कई प्रभाशाली सेलेब्रिटीज से संपर्क किया. इस पहल के चलते बीजेपी नेता भूपिंदर यादव, एएनआई के दफ्तर गए, जहां उन्होंने ईशान प्रकाश और सुरिंदर कपूर से मुलाकात की. बाद में उन्होंने इस मुलाकात की तस्वीरों को ट्विटर पर भी शेयर किया. इसी पहल के तहत बीजेपी नेताओं ने उद्योगपति रतन टाटा, अभिनेत्री माधुरी दीक्षित और योगाचार्य रामदेव से भी मुलाकात की. 2015 में एएनआई ने अमेजॉन के लिए वर्चुअल असिस्टेंट उपकरण “अलेक्सा एप्लीकेशन” को विकसित किया, जो मोदी के रेडियो कार्यक्रम, मन की बात का प्रसारण करता है. 2016 में, सरकारी ‘माईगव पोर्टल’ के दो वर्ष पूरे होने के उपलक्षय में आयोजित जलसे में स्मिता ने कहा, “यह सरकार सूचना को उदारता के साथ साझा करती है और पिछली “अपारदर्शिता अब समाप्त हो चुकी है.” उस समय मंच पर अरुण जेटली और कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद भी मौजूद थे.

एएनआई, राजनीतिक हवा की दिशा पहचानने में माहिर है. इसी वजह से इसने यूपीए सरकार की दूसरी पारी के अंत में, बीजेपी से अपनी घनिष्ठता बढ़ाना शुरू कर दिया था. 2014 का चुनाव, भारत के राजनीतिक इतिहास में सबसे महंगा चुनाव था. मोदी के राष्ट्रपति-सरीखे अभियान में ढेरों मीटिंगों और रैलियों का आयोजन किया गया था. “जहां भी मोदी जाते हैं, एएनआई उसका लाइव कवरेज करता है,” एक चैनल के वरिष्ठ इनपुट एडिटर ने बताया.

“बीजेपी मोदी के लिए मल्टिपल कैमरे लगाती है और एएनआई को बीजेपी की फीड सीधे मिला करती थी, जिसे फिर वह अलग-अलग चैनलों को प्रेषित करती थी,” एक पूर्व वरिष्ठ कर्मचारी ने बताया. “एएनआई और चैनलों को बीजेपी से पैसा मिलता था.” एक पूर्व वीडियो एडिटर ने कहा कि चुनावों से पहले नितिन गडकरी एएनआई के दफ्तर आए थे. चुनावों से पहले, बड़े नेताओं में से केवल मोदी ने ही एएनआई को टीवी इंटरव्यू दिया.

एक पूर्व न्यूज एडिटर के अनुसार, जब वे गुजरात के मुख्यमंत्री थे उस वक्त संजीव ने मोदी से एक-दो मुलाकातें की थीं. अहमदाबाद स्थित एएनआई के वरिष्ठ कैमरामैन उदय अर्धव्यु ने इन मुलाकातों को करवाने में संजीव की मदद की. मोदी की उदय से जान-पहचान, उनके संघ के विद्यार्थी विंग अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद् के दिनों से है. एक अन्य वरिष्ठ कर्मचारी ने बताया कि हालांकि उदय, मोदी और अमित शाह को अच्छे से जानते हैं और आज भी उनके संपर्क में रहते हैं, उन्होने केवल मीटिंग करवाने में संजीव की मदद की थी. “मोदी, संजीव प्रकाश और एएनआई से वाजपेयी के दिनों से परिचित हैं.”

इनके बीच नैसर्गिक संबंध भी थे. प्रेम प्रकाश, और खासकर उनकी बेटी सीमा कुकरेजा और उनके पति सुंदर कुकरेजा, जेटली के करीब हैं और कम से कम एक बार उनके वकील भी रह चुके हैं. पूर्व अमृतसर संवाददाता के अनुसार, प्रेम प्रकाश ने 2014 में जेटली के लिए प्रचार भी किया था, जब वे अमृतसर संसदीय क्षेत्र से चुनाव लड़ रहे थे.

कांग्रेस से अधिक बीजेपी से एएनआई की घनिष्ठता का इशारा सोशल मीडिया पर परिवार द्वारा अभिव्यक्त, अति राष्ट्रवाद में मिलता है, खासकर पाकिस्तान के खिलाफ. “(इंडियनस) कभी सीख नहीं लेंगे,” प्रेम प्रकाश ने 20 सितंबर 2018 को ट्वीट किया जिसे ईशान ने रिट्वीट किया. “इतिहास इस बात का गवाह है. पृथ्वीराज चौहान ने मोहम्मद गौरी को शिकस्त देने के बाद मारा नहीं और उसे दुबारा न आने की चेतावनी देकर जाने दिया. वह आया और दिल्ली पर काबिज हो गया और उसके बाद, जो भारतीय, करीब 1000 साल बाद दिल्ली के तख्त पर बैठा, वह नेहरु था.” एक अन्य मौके पर प्रेम प्रकाश ने गुप्त कार्यवाही की वकालत की. “पख्तून बलोच इलाकों में पाकिस्तानी पंजाबियों के खिलाफ बहुत रोष है. पंजाबी पाकिस्तानी सेना को जबरदस्त हानि पहुंचाने के लिए उनका उपयोग करो,” उन्होंने 4 जनवरी 2016 को ट्वीट किया.

ईशान क्रिकेट को लेकर अक्सर ट्विटर पर पोस्ट करते रहते हैं. इसके अलावा जिम में कसरतें करते हुए अपनी तस्वीरें पोस्ट करना और कश्मीर में आतंकवादियों के साथ मुठभेड़ों की खबरों का जश्न मनाने का काम भी वे करते रहते हैं. “तो क्या आतंकवादियों को मारने की दर, 4-5 दिन में 19 तक पहुंच गई है? अगर ऐसा है तो यह शानदार स्ट्राइक रेट है,” उन्होंने 28 नवंबर 2018 को ट्वीट किया. स्मिता भी पाकिस्तान को गरियाने में किसी से कम नहीं. जब पूर्व क्रिकेटर और पंजाब से कांग्रेस विधायक नवजोत सिंह सिद्धू, इमरान खान के प्रधानमंत्री पद के शपथ ग्रहण समारोह में शिरकत के लिए पाकिस्तान गए और उन्होंने पाक सेना के चीफ जनरल कमर जावेद बाजवा को गले लगाया तो स्मिता और ईशान ने ट्विटर पर उन्हें कई दोनों तक ट्रोल किया. “क्या किसी ने चेक नहीं किया कि सिद्धू जैसे नौसिखिये को इस्लामाबाद भेजने से कितनी शर्मिंदगी उठानी पड़ सकती है? जैसे पाक सेना के चीफ को गले लगाना अभी काफी नहीं था, सिद्धू दब्बू से बनकर पाक अधिकृत कश्मीर के प्रेसिडेंट की बगल में जाकर बैठ गए,” उनके एक ट्वीट में कहा गया. ईशान ने भी पीछे ना रहते हुए ट्वीट किया, “कलेजा ठंडा हुआ @शैरीटनटॉप? उसी आदमी को गले लगाकर जो आतंकवादी भेजता है और भारतीय जवानो को मारता है.” बीजेपी और उसके समर्थकों ने भी कुछ इसी अंदाज में सिद्धू को ट्रोल किया.

एएनआई के अधिकतम क्लिप्स में यह साफ दिखता है कि उसके कैमरामैन सरकार के नुमाइंदों से बाईट लेते वक्त बिरले ही कभी कोई सवाल करते हैं. केवल विपक्ष के नेताओं से असहज प्रश्न पूछे जाते हैं. नवंबर 2014 में उस वक्त विवाद सा खड़ा हो गया जब राहुल गांधी के जीजा, रोबर्ट वाड्रा ने जमीन को लेकर भ्रष्टाचार के संबंध में किए गए सवाल का का जवाब देने से इनकार कर दिया. यह उस समय हुआ जब एएनआई के रिपोर्टर ने उन्हें उनके मित्र के जिम उद्घाटन समारोह के बाहर घेर लिया था. इस घटना ने एएनआई को मोदी सरकार के और ज्यादा करीब ला खड़ा किया. एक अन्य मौके पर लंदन में एएनआई के स्ट्रिंगर ने राहुल गांधी से सवाल किया: “मैं आपको महिला सशक्तिकरण पर बहुत जोश से बोलते हुए सुन रहा हूं. फिर भी आपने कोर्ट और संसद में तीन तलाक के मुद्दे पर रोड़े अटकाए और लाखों मुसलमान महिलाओं की उम्मीदों पर पानी फेर दिया. आपका इस बारे में क्या कहना है?” स्मिता प्रकाश ने इस लिंक को शेयर किया और ट्वीट किया, “जब आप खबरें लोगों तक पहुंचाना चाहते हों तो दूरियां बेमानी हो जाती हैं.” डसॉल्ट के सीईओ के इंटरव्यू के कुछ ही समय बाद, एएनआई के एक नौजवान रिपोर्टर ने कांग्रेस प्रवक्ता रेणुका चौधरी को अंग्रेजी में सवालों की एक फेहरिस्त थमाई, जिसे वे खुद पढ़ पाने में अक्षम थे

कई विपक्षी दलों ने एजेंसी के आचार पर प्रश्न उठाए हैं. मई 2018 में, एएनआई ने एक झगड़े के विडियो जारी किए, जिन्हें “तृणमूल कांग्रेस के कार्यकर्ताओं ने मतदाताओं को अपने मत देने से रोका” बताया गया.” तृणमूल कांग्रेस ने ट्वीट किया, “क्यों@एएनआई कुछ छुटपुट घटनाओं को बढ़ा-चढ़ाकर पेश कर अफवाह फैला रही है? हमें पता चला है कि लोकल एएनआई के रिपोर्टर और स्ट्रिंगर दिल्ली में बैठे अपने आकाओं से निर्देश पाकर बंगाल को #बदनाम करने पर तुले हैं. इनकी खबरें एक निश्चित एजेंडा लिए हुए होती हैं: डेरेक ओ. ब्रायन.” स्मिता प्रकाश ने आरोप को सिरे से खारिज कर दिया और जैसा कि वे अमूमन करती हैं उन्होंने तृणमूल को “मीडिया को बदनाम” करने से बचने की राय दी.

एएनआई ने बीजेपी और मोदी को खुश करने के लिए अपनी ‘हाउस-स्टाइल’ शीट भी बदल डाली. “शुरू में किसी एक स्टोरी में एक बार प्रधानमंत्री शब्द लिखने का चलन था,” प्रिंट सेक्शन में, डेस्क पर काम करने वाले उप-संपादक ने बताया. “उदाहरण के लिए हम पहली पंक्ति में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी लिखते थे और उसके बाद सिर्फ मोदी.” जल्दी ही इसे बदल दिया गया. “अब हर वाक्य में प्रधानमंत्री मोदी होता है.” एएनआई द्वारा वाजपेयी की मृत्यु पर लिखे गए लेख में हर बार उनके नाम के पीछे “जी” लगाया गया. जब कि अन्य पार्टियों के नेताओं को यह सम्मान नहीं बक्शा जाता.

बीजेपी की राज्य सरकारें भी एएनआई के साथ मिलकर काम करतीं हैं. अप्रैल 2018 में, उत्तर प्रदेश सरकार ने एक सर्कुलर जारी किया जिसमें कहा गया था कि मुख्यमंत्री और उत्तर प्रदेश सरकार अपने कार्यक्रमों की लाइव स्ट्रीमिंग, एएनआई द्वारा की जाएगी ताकि नौजवानों से संपर्क स्थापित किया जा सके. दिसंबर 2018 तक, राजस्थान, छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश में भी बीजेपी सरकारें यही करतीं थीं. “उनके ओड़िसा और कर्नाटक सरकारों से भी इसी तरह के अनुबंध हैं,” एक पूर्व कर्मचारी ने बताया. “वे सक्रिय तौर पर नवीन पटनायक और योगी आदित्यनाथ जैसे अलग-अलग धाराओं वाले राजनेताओं का समर्थन कर रहे हैं.”

रायटर्स और एएनआई के बीच की साझेदारी, इस तरह, अंतर्विरोधों का गठ्ठर बन कर रह जाती है. ग्लोबल न्यूज एजेंसी ने “भरोसे का सिद्धांत” अपनाया है, जो रायटर्स के कर्मचारियों और उसके साथियों को ऐसे बर्तावों में उलझने से रोकता है, जो खासतौर पर एएनआई की बपौती है. इस भरोसे के सिद्धांत में शामिल है, “थॉमसन रायटर्स अपनी सत्यनिष्ठा, स्वावलंबन और स्वतंत्रता को हर समय पूर्णत: बरकारर रखेगा”; कि रायटर्स अखबारों, न्यूज एजेंसियों, ब्रॉडकास्टरों और अन्य मीडिया ग्राहकों तथा व्यवसायों, सरकारों, संस्थानों और व्यक्तियों एवं अन्यों, जिनसे रायटर्स का अनुबंध है, को निष्पक्ष तथा विश्वसनीय न्यूज सर्विस मुहैय्या करवाएगा.”

लेकिन यह स्पष्ट है कि रायटर्स को एएनआई के सरकारों से संबंध उपयोगी लगते हैं और सरकारों को भी एएनआई में एक उपयोगी साथी नजर आता है, जिसकी रायटर्स जैसी ग्लोबल एजेंसी तक पहुंच है. कम से कम रायटर्स की इंडियन फीड के साथ तो साफ तौर पर समझौता किया ही जाता है. रायटर्स के लिए काम करने वाले दो वरिष्ठ संपादकों ने बताया कि एजेंसी एएनआई के काम की गुणवत्ता से एक लंबे समय से नाखुश है. “रायटर्स ने अकेले जाने की कोशिश भी की, लेकिन एएनआई ने उसे धमकाया. इसलिए वे डरते हैं,” रायटर्स के एक पूर्व वरिष्ठ संपादक ने बताया. उनकी बात का आशय था कि सरकार के साथ अपनी सांठगांठ के चलते एएनआई, रायटर्स के लिए भारत में काम करना मुश्किल बना सकती है.

इस विषय पर रायटर्स के अंदर मतभेद नजर आते हैं. “लंदन न्यूजरूम ने गुणवत्ता को लेकर शिकायत की,” लंदन स्थित रायटर्स के एक पूर्व वरिष्ठ प्रोड्यूसर ने बताया. “हमें कॉपी को ऊपर से नीचे तक दुबारा लिखना पड़ता था. हमें अपनी ओर से तथ्यों की पुष्टि करनी पड़ती थी. हर क्रिसमस को रायटर्स, इस अनुबंध से बाहर निकलने की सोचता है. लेकिन पूरे भारत से फुटेज देने वाली एकमात्र एजेंसी एएनआई ही है.” रायटर्स के एक पूर्व संवाददाता ने एएनआई को रायटर्स की “मीडिया फैक्ट्री” बताया.

दो-एक सालों तक एएनआई और रायटर्स के संबंधों में दरार रही. प्रेम प्रकाश को सिंगापुर और लंदन के कई चक्कर लगाने पड़े. “रायटर्स को प्रोपगेंडा की भनक लग गई थी,” एएनआई के साथ काम करने वाले वरिष्ठ वीडियो एडिटर ने बताया. “हमें हर रोज अंतर्राष्ट्रीय खबरों के लिए मोदी पर चार पांच स्टोरीज नहीं चाहिए.” दोनों के बीच अनुबंध टूटने के कगार पर पहुंच गया था. अब यह बदली हुई शर्तों पर चल रहा है. जून से पहले एएनआई, सबकॉन्टिनेंटल फीड के लिए रायटर्स को एक दिन में 36 न्यूज रिपोर्टें देता था. अब रायटर्स सिर्फ 6 ही चुनता है.” जब मैंने रायटर्स के साथ रिश्तों में आए इस बदलाव के बारे में संजीव से पूछा तो उन्होंने कहा, “आपको हर ग्राहक से बात करनी पड़ेगी. यानी कि तकरीबन 180 देशों में सैकड़ों प्रसारकों से जिन्हें एएनआई की फीड प्राप्त होती है, यह पता करने के लिए कि वे इसका इस्तेमाल कैसे करते हैं. इसके अलावा, तकनीकी बदल रही है और हमारा आउटपुट भी एसडी से एचडी हो गया है.” यह बहुत अजीब लगता है कि रायटर्स जैसी ग्लोबल एजेंसी, एएनआई के साथ अपने अनुबंध की प्रकृति को लेकर बात करने में अनिच्छुक रहती है. द केन को भी इसने कुछ बताने से इंकार कर दिया. एजेंसी ने मेरे द्वारा भेजी गई सवालों की विस्तृत सूची का भी जवाब नहीं दिया, जिसमें एएनआई द्वारा “ट्रस्ट प्रिंसिपल” को तोड़ने को लेकर भी सवाल किए गए थे.

एएनआई द्वारा की गई कुछ स्टोरीज, बीजेपी के साथ निकट सहयोग की तरफ इंगित करती हैं. 22 जनवरी को, बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह पश्चिम बंगाल में प्रचार कर रहे थे. “बंगाल में बम और हथियार बनाने वाले उद्योग मौजूद हैं. जहां कभी रवीन्द्र संगीत बजा करता था, वहां की फिजा में आज बम धमाकों की अनुगूंज सुनाई पड़ने लगी है. बीजेपी बंगाल का गौरव वापिस लाएगी. एक नेता का असली भाषण ऐसा सुनाई पड़ता है,” पश्चिम बंगाल के बीजेपी ट्विटर हैंडल ने ट्वीट किया. एएनआई ने तुरंत ही उस ट्वीट को जस का तस रिट्वीट कर दिया. ट्विटर इस्तेमाल करने वाले एक आदमी ने कहा, “कभी-कभी आप अकाउंट बदलना भूल जाते हैं.” एएनआई ने जल्दी ही बिना किसी सफाई के इस ट्वीट को डिलीट कर दिया. “आजकल न्यूज एजेंसी और राजनीतिक दल में फर्क करना मुश्किल हो गया है,” बीजेपी ने शाम 3 बजे ट्वीट किया, एएनआई का ट्वीट 3.05 मिनट पर आया,” ऑल्ट न्यूज के प्रतीक सिन्हा ने टिप्पणी की. उनकी वेबसाइट फर्जी न्यूज का भंडाफोड़ करने का काम करती है.

ऑल्ट न्यूज ने पहले भी एएनआई की कई फर्जी खबरों का भंडाफोड़ किया है. एजेंसी द्वारा की गई गलतियों की कतार, बीजेपी समर्थन को साफ दिखाती है: एक बीजेपी विधायक को “बेंगलूरु निवासी” कहकर ‘कोट’ किया गया; बीजेपी के अल्पसंख्यक सेल के सदस्य को “मंगलौर निवासी” बताया गया; नोटबंदी के बाद एक एएनआई स्ट्रिंगर ने खुद को ही कोट करते हुए एक चायवाले की ऑनलाइन कैश पेमेंट लेने के लिए तारीफ की; पंजाब में एक ट्रेन द्वारा 60 लोगों को कुचलने की खबर देने वाला “प्रत्यक्षदर्शी”, बीजेपी के युवा विंग, भारतीय जनता युवा मोर्चा का पूर्व अध्यक्ष निकला; एनफोर्समेंट डायरेक्टोरेट द्वारा गिरफ्तार उद्योगपति को गलत तरीके से कांग्रेस विधायक बताया गया; जब मुंबई के डोंबिविली इलाके से बीजेपी उपाध्यक्ष से हथियार बरामद हुए. तो उसे एक छोटा-मोटा बीजेपी कार्यकर्ता बताया गया. अक्टूबर 2017 में, एएनआई ने एक स्टोरी की जिसमे दावा किया गया कि राहुल गांधी के ज्यादातर समर्थक रूस, कजाखिस्तान और इंडोनेशिया में बैठे फर्जी अकाउंट चलाने वाले लोग हैं. ऑल्ट न्यूज ने स्टोरी का विश्लेषण किया और साबित किया कि असल में बीजेपी आईटी सेल के सदस्यों ने ही 10 एकाउंट्स के स्क्रीन शॉटस को ट्वीट किया था, जो एएनआई ने अपनी कहानी में गिनाये थे. उनके ‘टाइमस्टेम्प’ से पता चलता है कि स्क्रीन शॉटस एएनआई के आर्टिकल छपने से कई घंटे पहले लिए गए थे. साफ तौर पर यह लेख प्लांट किया गया था.

“यह देखना बहुत दिलचस्प होगा कि अगर मोदी हार जाते हैं तो क्या होता है,” रायटर्स के लिए कभी काम करने वाले एक पूर्व वरिष्ठ बिजनेस पत्रकार ने कहा. “अब तक उन्हें बदलती हवा का भान हो गया होगा और वे अपना रुख भी उसके अनुसार बदल चुके होंगे.”

सबसे पुराने टीवी चैनलों में से एक, एशियानेट के संस्थापक शशि कुमार ने चुनाव के समय सत्तारुढ़ पार्टी के लिए एएनआई की उपयोगिता के बारे में बोला, “अगर दूरदर्शन सरकार के लिए बिल्ली के पंजे हैं, तो एएनआई उन पंजों पर मखमल के दस्ताने सरीखे हैं.”

16 नवंबर 2018 को, राष्ट्रीय प्रेस दिवस मनाने के लिए आयोजित एक कार्यक्रम में, स्मिता प्रकाश ने इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ मास कम्युनिकेशन के छात्रों को संबोधित किया. उन्होंने “मीडिया की जिम्मेदारियों” के बारे में अपनी बात रखी.

बतौर एक महिला राजनीतिक पत्रकारिता में अपने पैर जमाने की कोशिश में अपने सामने आई दिक्कतों से बात शुरू करते हुए, स्मिता जल्द ही अपने विषय पर लौट आईं. “हमारे देश का जो मीडिया है, वह बहुत ही स्फूर्त है,” उन्होंने कहा. “यहां आजादी है, जिसे हम बहुत हल्के में लेते हैं.” उन्होंने अपनी बात आगे बढ़ाते हुए कहा, “कई लोग कहेंगे कि मीडिया बिक चुकी है, सरकार बिक चुकी है और वे इसी तरह की अनाप-शनाप बाते करेंगे. लेकिन आज भी पत्रकारों को जो आजादी हमारे देश में मिली हुई है, वह दुनिया के कई देशों में नहीं है.” यह बात उन्होंने तब कही जब भारत वर्ल्ड प्रेस फ्रीडम इंडेक्स में 138वें पायदान पर है. 2018 में पाकिस्तान से सिर्फ 1 पायदान ऊपर.

स्मिता ने विदेशों में रिपोर्टिंग के अपने अनुभव के बारे में भी बताया. “जब मुझे एक स्क्रिप्ट करनी थी. मेरी स्क्रिप्ट को सीनियर्स ने कई बार सुधारा. और उन सीनियर्स को उन पदों पर इसलिए बिठाया गया था क्योंकि वे सरकारी ठेके लाते थे और उनकी सरकार में पैठ थी. वे एक मीडिया ग्रुप में सरकार के आंख और कान थे. और यह मैं खुले तौर पर कह रही हूं,” उन्होंने हाथ में कलम लहराते हुए कहा.

“क्योंकि हमारे काम की प्रकृति ऐसी है जो हमें सरकार के बर्खिलाफ सोचना सिखाती है. सरकार तो अपना नजरिया किसी न किसी तरह लोगों तक पहुंचा ही देगी,” उन्होंने कहा. “यह उनका काम है! वे अपना नजरिया रखे ही लेगी. एक मीडियाकर्मी होने के नाते यह देखना आपका काम है कि वह सच बोल रही है या नहीं. आप इसे ऐसे या वैसे किसी भी तरह से देख सकते हैं. लेकिन अगर वह सच बोल रही है तो आपको उसे झूठ में बदलने के लिए तोड़ने-मरोड़ने की जरूरत नहीं है.”

(द कैरवैन के मार्च अंक में प्रकाशित कवर स्टोरी का अनुवाद राजेन्द सिंह नेगी ने किया है. अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)