(एक)
जैसे ही हम नोएडा में इंडिया टुडे कॉम्प्लेक्स के ग्राउंड फ्लोर पर पहुंचे, हमें आजतक की एक्जीक्यूटिव एडिटर अंजना ओम कश्यप टेलीविजन समाचारों की बदहाली को लेकर चिंतित दिखीं. वह तेजी के साथ बिल्डिंग की खचाखच भरी कैंटीन की तरफ मुड़ीं, अंजना ने कहा कि “जिस तरह की बातें वे कह रहे हैं, आप इस तरह से स्पष्ट बातें नहीं कह सकते, यह पत्रकारिता नहीं है.”
22 अगस्त को जब दोपहर के बाद मेरी टैक्सी इंडिया टुडे कॉम्प्लेक्स के गेट पर रुकी, तब कश्यप ने गर्मजोशी से स्वागत करने के साथ ही माफी मांगते हुए कहा था कि उन्हें अपने बुलेटिन के लिए देर हो रही है. कश्यप ने कहा, “यह ब्रेकिंग चिदंबरम के बारे में हैं, आप जानती ही हैं कि यह सब कैसा होता है.”
कॉम्प्लेक्स की लॉबी में चमचमाती ट्रॉफियों से भरा एक कैबिनेट था जो इंडिया टुडे के पत्रकारों के काम की ढींगें हांक रहा था. इनमें से तीन कम से कम कश्यप के नाम की थीं, जो संभवत: उनकी रिपोर्टों या उनके शो के लिए मिली हों. जिस वक्त मैं इंतजार कर रही थी, मेरे बगल में बैठा एक पेशेवर जनसंपर्क अधिकारी, संस्थान के ही एक सुस्त से नजर आ रहे पत्रकार को एक के बाद एक स्टोरी आइडिया दे रहा था. फिर तुरंत ही उस पत्रकार की जगह दूसरा आ गया और मेहरबान जनसंपर्क अधिकारी ने उसे कारों की बिक्री में भारी गिरावट की पिच और बेबी-पिंक क्रोक से नवाज दिया. अधिकारी ने कहा कि उसके ग्राहक, जो लक्जरी कारों के कारोबार में हैं, इस विषय पर किसी भी स्टोरी में अपना योगदान दे सकते हैं, निश्चित रूप से यह योगदान उनके “अपने ब्रांड के कुछ उल्लेख के साथ” होना था. पत्रकार अपनी टीम के साथ इस रिपोर्ट पर काम करने के लिए राजी हो गया.
दो दिन पहले, 20 अगस्त को, दिल्ली उच्च न्यायालय ने भ्रष्टाचार के आरोपों के मामले में, कांग्रेस नेता और पूर्व गृहमंत्री पी चिदंबरम को अग्रिम जमानत देने से इनकार कर दिया था. चिदंबरम ने फैसले की तत्काल समीक्षा के लिए सुप्रीम कोर्ट में याचिका डाली, लेकिन अदालत ने सुनवाई की तारीख कुछ दिन बाद की दी. उस शाम जब केंद्रीय जांच ब्यूरो के कर्मचारी उनके दिल्ली स्थित घर पर पहुंचे, तो चिदंबरम का कहीं अता-पता नहीं था. अगले दिन चिदंबरम खुद पर लगे सभी आरोपों को खारिज करते हुए, कांग्रेस मुख्यालय में नजर आए. यह बेहद नाटकीय घटनाक्रम था. इसके कुछ ही घंटों बाद सीबीआई के अधिकारियों ने उनके घर की दीवार फांदकर उन्हें गिरफ्तार कर लिया.
न्यूज चैनलों ने इस घटना का सबसे ज्यादा फायदा उठाया था. जिस दौरान हम कैंटीन में चाय पी रहे थे, कश्यप ने कहा कि इस मामले में आजतक चैनल के प्रतिस्पर्धी हद से ज्यादा ही आगे बढ़ गए. “वे कह रहे हैं चिदंबरम चोर है. आप ऐसा नहीं कह सकते! वह अभी एक आरोपी हैं, आपको इसे समझना होगा. मतलब कि इनमें तथ्य नदारद थे. आप तथ्यों को सामने रख सकते हैं, आप उनसे सवाल कर सकते हैं. वह एक आरोपी हैं. आप उन्हें दो हजार दफा आरोपी कह सकते हैं, लेकिन आप उन पर अपराधी का लेबल तो नहीं चिपका सकते न! यह लाइन अब फीकी पड़ गई है.” वास्तव में अन्य चैनल “कई बार इस मामले में सरकार की ही भाषा बोल रहे थे. वे इतना बढ़-चढ़ कर बोल रहे हैं जितने की सरकार को जरूरत भी नहीं है.”
अपने डिबेट शो, हल्ला बोल में कश्यप ने पिछली शाम ही चिदंबरम के मामले को लेकर शो किया था. अब वह मुझे अपने एक नए एपिसोड की शूटिंग दिखाने, जो चिंदबंरम के मामले में अगले दिन सुप्रीम कोर्ट में होने वाली सुनवाई को लेकर थी, स्टूडियो में ले जाने के लिए राजी हो गईं.
उस शाम कश्यप के शो की पृष्ठभूमि में चिदंबरम की एक तस्वीर के साथ पंचलाइन थी, “अब तो जेल जाना पड़ेगा”. यह बच्चों के एक खेल “पोशम्पा भाई पोशम्पा” की एक तुकबंदी वाली लाइन है. यह खेल एक चोर की कहानी को बताता है जो सौ रुपए की घड़ी चुराने के लिए पकड़ा गया है.
कश्यप को हिंदी टेलीविजन समाचार उद्योग के आलोचक के रूप में गंभीरता से लेने से पहले आपको अपने अविश्वास को किनारे रखने की जरूरत है. उनके पत्रकारिता करियर को देखकर ऐसा लगता है कि जिस बात का वह शोक मना रही हैं, उस राह से खुद अंजना कभी अजनबी नहीं रहीं. बल्कि कश्यप तो एक चतुर खिलाड़ी सी हैं, जो एक व्यापारी की तरह नरेन्द्र मोदी के नए भारत के नागरिकों को अपना उत्पाद बेच रही हैं.
यह नया भारत अपने आप में पुराने विरोधाभासों को समेटे हुए है. शहरीकरण और खुले बाजार ने इसमें तेजी से बदलाव किया है, लेकिन अभी भी समाज काफी हद तक पारंपरिक पूर्वाग्रहों और पदानुक्रमों पर ही आधारित है. हालांकि संविधान लोकतांत्रिक मूल्यों की घोषणा जरूर करता है, लेकिन अक्सर जो लोग उन मूल्यों लिए खड़े होते हैं, विशेष रूप से समृद्ध और राजनीतिक रूप से जुड़े हुए लोगों के खिलाफ, तब लोग सरकार के संरक्षण पर भरोसा नहीं कर सकते. भारत अपने मीडिया आउटलेटों की संख्या और विविधता के लिए जाना जाता है, लेकिन इनमें से कई एक ही विचार से संचालित होते हैं.
2014 से राष्ट्रीय राजनीति में शुरू हुए मोदी के उभार ने पुराने विरोधाभासों को केवल तीव्र ही नहीं किया बल्कि इनमें नए विरोधाभास और जोड़ दिए हैं. हिंदू जातीय अभिमान के विस्फोट के साथ-साथ धार्मिक अल्पसंख्यकों और उत्पीड़ित जातियों के खिलाफ बढ़ती हिंसा के बीच विकास के सारे वादे हवा हो गए हैं. देश बेरोजगारी और भयावह आर्थिक संकट का सामना करना रहा है, बावजूद इसके जातीय अभिमान से सराबोर एक बड़ी जमात मोदी के शासन की प्रशंसा करती थकती नहीं है.
कश्यप, जिस उद्योग में काम करती हैं, वह इस तरह के कई विरोधाभासों का एक उत्पाद और एजेंट बनकर रह गया है. कागजों में लिविंग मीडिया इंडिया लिमिटेड के रूप में पंजीकृत इंडिया टुडे ग्रुप की सबसे मूल्यवान धरोहर आजतक अंजना का रंगमंच है. मौजूदा स्थिति में खुलकर रिपोर्टिंग करने वाले पत्रकार खुद को पत्रकारिता से बाहर पाते हैं और कभी-कभी सड़कों पर मारे तक जाते हैं. ठीक इसी बीच, कश्यप को सड़कों से लेकर भारत सरकार के उच्चतम कार्यालयों तक में असाधारण लोकप्रियता हासिल है.
जब मैंने उनसे कहा कि वह एक सेलेब्रटी हैं तो इस पर कश्यप का जवाब था, “मुझे नहीं पता कि लोकप्रियता क्या है. यह हमारे लिए सिर्फ एक काम है, है ना? जैसे आप नौकरी कर रही हैं, वैसे ही मैं भी नौकरी कर रही हूं, बारह से नौ बजे तक की नौकरी.” लेकिन सच तो यह है कि कश्यप जो कर रही हैं, वह किसी नौकरी से एकदम अलग चीज है.
हिंदी टेलीविजन समाचारों की दुनिया में होने वाली रेटिंग पर आजतक का कब्जा है. आजतक हिंदी भाषी इलाकों में राजनीतिक रूप से निर्णायक भूमिका निभाता है. 2011 की जनगणना में दर्ज किए गए हिंदी भाषियों की संख्या लगभग 70 करोड़ थी, जो कुल भारतीय आबादी के आधे से भी अधिक है. यह संख्या दुनिया में किसी भी अन्य दर्शकों-श्रोताओं की तुलना में बड़ी लक्षित जनसांख्यिकी है. आजतक के यूट्यूब चैनल को नियमित तौर पर देखने वाले दो करोड़ 30 लाख से अधिक ग्राहक हैं. भारत के सबसे लोकप्रिय अंग्रेजी समाचार चैनल रिपब्लिक टीवी के यूट्यूब चैनल के देखने वाले 15 लाख हैं और जबकि अमेरिकी प्रसारण के सबसे दिग्गज चैनल सीएनएन के पास ग्राहकों की संख्या 80 लाख से कम है. हल्ला बोल, जिसका साधारण सा मतलब है “अपनी आवाज उठाओ”, अंजना ओम कश्यप का यह शो शाम को प्रसारित होता है. कश्यप इस शो के अलावा आजतक पर कई ब्रेकिंग न्यूज के साथ प्रकट होती रहती हैं.
दूसरा, कश्यप की नौकरी “बारह-से-नौ” की नहीं है. जिस दिन हम मिले उस दिन वह सुबह होने से पहले ऑफिस में थीं और उनका काम सुबह 6 बजे से शुरू हो चुका था. कश्यप ने कहा कि खबरों के लिहाज से यह एक व्यस्त दिन हो सकता है. उन्होंने स्वीकार किया कि यह काम “कमरतोड़ मेहनत” वाला है. कश्यप की दिनचर्या अक्सर कैमरे पर उन्हें सार्वजनिक तौर पर लोगों की नजरों के सामने रखती है, जो कि समाचार स्टूडियो में उनके मौजूदगी के घंटों से परे है. उन्होंने कहा कि उस सप्ताह की शुरुआत में वह अमिताभ बच्चन के मेगा हिट गेम शो “कौन बनेगा करोड़पति” के एक एपिसोड में कैमियो भूमिका की शूटिंग में मशगूल थीं.
खुद के लिए लोगों से मिलने वाले प्यार को लेकर, कश्यप और अधिक स्पष्ट हैं. “मैं आपको बताऊं” उन्होंने कहा, “मैं बहुत ज्यादा बाहर नहीं जाती, लेकिन जब मैं लोगों के बीच जाती हूं, तब यह अलग अनुभव होता है. यह दीवानगी पागलपन जैसी है. मसलन, मैं जब हरिद्वार गई, तब वहां एक शख्स मेरे पास आया और उसने कहा, “मैंने अपनी बेटी का नाम अंजना रखा है.’”
कुछ साल पहले उनकी एक सार्वजनिक प्रस्तुति में, जिसे फिल्माया गया और यूट्यूब पर अपलोड किया गया, दर्शकों में मौजूद एक व्यक्ति ने कश्यप से बड़ी फूहड़ ढंग से कहा कि वह उसकी पहेली का हल करें. उस शख्स ने पूछा, “क्या उन्हें देखना चाहिए या फिर सुनना चाहिए? कश्यप जवाब देने से पहले हंसी और फिर साफ शब्दों में कहा, “मेरी बात सुनो.”
एक युवती ने रोते और लगभग लड़खड़ाती हुई आवाज में कश्यप से कहा, “आज पत्रकारिता के क्षेत्र में, जो भी महिला पत्रकारिता कर रही है, उसकी प्रेरणा आप ही हैं. मेरी प्रेरणा आप हैं.”
“रोओ मत” कश्यप ने उस युवती को आगे बढ़कर गले लगाते हुए कहा. “भगवान तुम्हारा भला करे”, कश्यप ने कहा और फिर उन्हें महसूस हुआ कि उन्होंने जो कहा वह माइक्रोफोन में नहीं सुनाई दिया. इस बार कश्यप ने माइक पर कहा, “भगवान तुम्हारा भला करे.”
कश्यप ने मुझे बताया कि 2016 में एक दिन उन्हें प्रकाश जावड़ेकर का फोन आया, जो तब मोदी कैबिनेट में मंत्री थे और आज सूचना और प्रसारण मंत्री हैं. जावड़ेकर ने उन्हें बताया कि बिहार के एक गांव में उन्होंने कुछ बच्चों से पूछा था कि वे बड़े होने पर क्या बनना चाहते हैं, तब उनमें से एक लड़की ने कहा कि वह एक पत्रकार बनना चाहती है और उसकी रोल मॉडल अंजना ओम कश्यप है.
“मुझे लगा तेल मार रहा है”, कश्यप ने मुझसे कहा. कश्यप यहीं नहीं रुकीं बल्कि उन्होंने इसी घटना का जिक्र करते हुए कहा कि जावड़ेकर ने इंडिया टुडे द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम में दर्शकों के सामने यही बात दोहराई, इसलिए मेरा मानना है कि यह झूठ नहीं हो सकता.
इसी साल मार्च में मोदी ने इंडिया टुडे के एक कार्यक्रम में मंच से बोलते हुए, कश्यप के शो का जिक्र कुछ इस अंदाज में किया, “इन सवालों पर आप चाहें हल्ला बोलें या न बोलें.” इसके बाद कश्यप ने ऑन एयर होने वाली अपनी चिर परिचित शैली में एक ट्वीट पोस्ट करते हुए लिखा, “नमस्कार, मैं हूं अंजना ओम कश्यप और आप और प्रधानमंत्री देख रहे हैं हल्ला बोल.”
इस पूरे घटनाक्रम के अगले महीने, अपने दूसरे कार्यकाल के लिए चुनाव प्रचार के दौरान मोदी ने नाटकीय ढंग से शर्माते हुए आजतक और इंडिया टुडे के कई एंकरों को इकट्ठे एक बोट पर साक्षात्कार दिया. यह एक दुर्लभ मौका था, जो केवल प्रधानमंत्री के सबसे भरोसेमंद पत्रकारों को मिला था. वाराणसी के घाटों को पीछे छोड़ती हुई गंगा में तैरती बोट पर कश्यप ने मोदी से सवाल किए.
साक्षात्कार खत्म होने के बाद कश्यप ने अपने सहयोगियों के साथ कैमरे के सामने खड़े होकर बेहद आत्ममुग्धित स्वर में इस साक्षात्कार को “अविश्वसनीय” अनुभव बताया. बकौल कश्यप “मेरे लिए इस साक्षात्कार का सबसे खास पहलू था साध्वी प्रज्ञा पर उनसे सवाल करना और फिर उसके जवाब में एक और सवाल दागना.” स्वयंभू हिंदू सन्यासी प्रज्ञा सिंह ठाकुर 2008 में हुए बम धमाकों की आरोपी हैं, जिनमें 9 लोग मारे गए थे. इन बम धमाकों में साध्वी के नाम पर पंजीकृत मोटरसाइकिल के चलते उन्हें गिरफ्तार किया गया था. विभिन्न जांच एजेंसियों द्वारा दायर आरोप पत्र में कहा गया है कि साध्वी ने हमलों की योजना बनाने के लिए कई बैठकों में शिरकत की थी. मोदी के नेतृत्व वाली भारतीय जनता पार्टी के सत्ता में आने के बाद साध्वी को जमानत मिल गई. प्रज्ञा अभी भी आतंकवाद के आरोपों की सुनवाई का इंतजार कर रही है. साध्वी प्रज्ञा को 2019 के आम चुनाव में भोपाल से बीजेपी ने अपना उम्मीदवार बनाया था, जिसकी विपक्षी दलों ने कड़ी निंदा की थी.
कश्यप ने मोदी से पूछा था, “चूंकि आपने हमेशा आतंकवाद के प्रति जीरो टॉलरेंस की बात कही है, इसलिए सवाल उठता है कि आपकी पार्टी ने आतंकवाद की आरोपी साध्वी प्रज्ञा को टिकट क्यों दिया?”
मोदी ने इसके जवाब में कहा, “मुझ पर भी कई मामलों को लेकर आरोप लगे और एक तरह का माहौल बनाया गया.” मोदी का इशारा 2002 में गुजरात में हुए नरसंहार की ओर था, जब वे राज्य के मुख्यमंत्री थे. मोदी ने आगे कहा, “झूठ फैलाने का यह उनका मोडसऑपरेंडी है. यह कांग्रेस के असली मोडसऑपरेंडी को दिखाता है.” उन्होंने आगे कहा, “इन लोगों ने हिंदू आतंकवाद कह कर भारत की सदियों पुरानी विरासत को बदनाम किया है. इस तरह की बातों को गंभीरता से नहीं लेना चाहिए. ... तभी उनके मुंह बंद होंगे.” अगर प्रज्ञा इस दृष्टिकोण का प्रतीक बना दी जाती हैं “तब भारत में कोई भी राजनीतिक दल ऐसी बातें नहीं करेगा, निर्दोष लोगों पर आरोप नहीं लगाएगा.”
कश्यप इस बातचीत से पहले और इसके दौरान मोदी के आचरण के बारे में और भी कई फॉलो-अप सवाल पूछ सकती थीं, मसलन इस तथ्य के बारे में कि प्रज्ञा की मोटरबाइक का इस्तेमाल बम विस्फोटों में किया गया था या फिर सरकारी एजेंसियों ने हाल के वर्षों में साध्वी के खिलाफ मामले को कमजोर करने का काम क्यों किया. इसके बजाय उनका फॉलो-अप सवाल था, “आप जो कह रहे हैं उससे मुझे लगता है कि ... भगवा आतंकवाद पर बीजेपी साध्वी प्रज्ञा के साथ फ्रंट फुट पर बैटिंग करने की कोशिश कर रही है.”
इस पर मोदी ने जवाब दिया, “कांग्रेस पार्टी और उसके महामिलावटी लोगों ने इस महान संस्कृति को दाग लगाया है.” मोदी ने कहा, “उन्होंने दुनिया में भारत का अपमान किया है. यह लड़ाई कांग्रेस और उसके महामिलावटी लोगों और उसके चेले चपाटों के खिलाफ है. यह चुनावी लड़ाई नहीं है.”
कश्यप इसके बाद दूसरे सवाल पर चली गईं.
2012 के दौरान, गुजरात राज्य के चुनाव के दरमियान जो कि मुख्यमंत्री के रूप में मोदी को एक और कार्यकाल देने वाला था, कश्यप ने गोधरा की यात्रा की. यह शहर, राज्य के पूर्व में स्थित है, जहां 2002 में ट्रेन में आग लगने के चलते 59 हिंदू कारसेवकों और धार्मिक स्वयंसेवकों की मौत ने गुजरात दंगों की नींव रखी. “ये गोधरा की गलियां हैं”, कश्यप ने कैमरे पर बताया. “और सवाल यह है कि क्या ब्रांड मोदी के विकास की चमक ने गोधरा की गलियों को अछूता छोड़ दिया है?”
एक के बाद एक साक्षात्कार में गोधरा के निवासियों, जिनमें से बड़ी संख्या मुसलमानों की थी, ने यह स्पष्ट भी कर दिया. उनकी शिकायतें खुले सीवेज, टूटी हुई सड़कों और कचरे के टीलों की फुटेज के बीच कहीं दब सी गई थी. रिपोर्ट का शीर्षक था, “मोदी का 'धर्म' राज”.
कश्यप ने एक मुस्लिम धर्मगुरु हुसैन उमरजी के बेटे का साक्षात्कार लिया, जिन पर गुजरात सरकार ने ट्रेन में आग लगाने का “मास्टरमाइंड” होने का आरोप लगाया था. उमरजी ने लगभग एक दशक जेल में बिताया और अंत में अलग-अलग अदालतों ने पाया कि उनके खिलाफ कोई मामला ही नहीं था. “सभ्यता के इतिहास में, एक निर्दोष को दी गई ऐसी सजा के कुछेक ही उदाहरण हैं.” कश्यप ने कहा.
एक अन्य रिपोर्ट में कश्यप एहसान जाफरी के खाली घर और जले हुए कमरों से होकर गुजरते हुए नजर आती हैं. पूर्व सांसद जाफरी की तकरीबन 70 अन्य मुस्लिमों के साथ ही गोधरा कांड के बाद अहमदाबाद की गुलबर्ग सोसाइटी में हुए नरसंहार के दौरान बेरहमी से हत्या कर दी गई थी. कश्यप ने अपनी रिपोर्ट में बताया कि पूरे परिसर को लोगों ने छोड़ दिया और यहां रहने वाले निवासियों ने मोदी पर फिर कभी इस बात को लेकर भरोसा नहीं किया कि अगर वह वापस आ भी गए, तो वे सुरक्षित रह सकेंगे.
एक साल बाद आजतक द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम में कश्यप ने बीजेपी के तत्कालीन अध्यक्ष और देश के मौजूदा रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह का साक्षात्कार लिया. यह साक्षात्कार उस समय मोदी के सबसे करीबी लेफ्टिनेंट और गुजरात के तत्कालीन गृहमंत्री अमित शाह की लीक हुई रिकॉर्डिंग के सामने आने के तुरंत बाद लिया गया था. इसमें शाह “साहेब” के इशारे पर एक युवती पर अवैध ढंग से निगरानी रखने के निर्देश दे रहे थे. यहां साहेब से मतलब मोदी से था. बीजेपी ने इस रिकॉर्डिंग के सामने आने के बाद इस कार्रवाई को सही ठहराया और प्रभावी रूप से यह स्वीकार किया कि ऐसा महिला के पिता के कहने पर हुआ जिन्होंने पूछा था कि उनकी बेटी को सुरक्षा दी जाए. कश्यप ने सिंह से पूछा “साहेब” जिनके बारे में पिछले कुछ दिनों से सभी बात कर रहे हैं, वह साहेब कौन हैं? सिंह ने इस पर कहा, “आम तौर पर लोग कई दफा “साहेब” का उद्बोधन करते हैं” निश्चित है कि इस जवाब पर दर्शकों की हंसी छूट गई थी. “अमित शाह ने जिन “साहेब” का जिक्र किया है वह कौन हैं?” कश्यप ने फिर कोशिश की. सिंह ने कहा कि उन्हें इसको लेकर अमित शाह से पूछना होगा और फिर यह विषय यहीं छूट गया.
इसके छह महीने बाद और गोधरा पर रिपोर्ट के तकरीबन अठारह महीने बाद सब भुला दिया गया. मोदी के प्रधानमंत्री बनने के ठीक बाद कश्यप ने आजतक पर एक विशेष फीचर पेश किया जिसका शीर्षक था, “मित्रों! मेरी कहानी सुनो.” इस फीचर को मोदी के भाषणों के जरिए, जिनमें उन्होंने अपने जीवन के बारे में बताया था, तैयार किया गया था, साथ ही पूरी कहानी को एक रूप देने के लिए वॉयसओवर के साथ ही ग्राफिक्स का इस्तेमाल किया गया था. कश्यप ने सुर में सुर मिलाते हुए कहा, “एक चाय की दुकान से 7 रेसकोर्स रोड तक की यात्रा करने के बाद” प्रधानमंत्री आवास में “नरेन्द्र मोदी ने नया इतिहास लिखा है. पूरा देश जानता है कि मोदी कितने बड़े नेता हैं, लेकिन उनका व्यक्तित्व कैसा है?”
मोदी ने अपनी कहानी में बार-बार यह बात दोहराई थी कि वह बचपन में एक चाय की दुकान पर काम करते थे और इस बात को इस फीचर में तथ्य की तरह प्रस्तुत किया गया. इसमें कहीं भी इस कहानी की सत्यता पर कोई सवाल नहीं उठाया गया था. इसके बजाये इस फीचर में ब्लैक-एंड-व्हाइट टोन में चाय के स्टाल पर एक युवा लड़के को मोदी की तरह पेश किया गया था. इसमें राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से युवा मोदी के जुड़ने की कहानी तो थी, लेकिन संघ के घृणा और हिंसा के इतिहास को लेकर कोई सवाल नहीं था. वॉयसओवर में कहा गया, “मोदी के विरोधियों का कहना है कि आरएसएस ने उन्हें कट्टरपंथी बनाया.” एक दृष्टिकोण और था कि आरएसएस में ही मोदी ने “अनुशासन सीखा और वह सुसंस्कृत बने.”
वॉयसओवर में कहा गया 2002 में हिंसा के बाद से ही मोदी के खिलाफ आवाज उठती रही, उनकी आलोचना हुई, सवाल किए गए और उन पर झूठे आरोप लगाए गए. “नरेन्द्र मोदी ने बड़ी कठिनाई का सामना किया. वह रात में सो नहीं पाते थे. वह मां दुर्गा को पत्र लिखते थे.” नरसंहार के बारे में इसमें कुछ भी नहीं कहा गया था और न ही उन लोगों का जिक्र था, जिन्होंने कई साल बिना अपराध के जेल में ही बिता दिए. मोदी बेहद शातिर ढंग से दया के पात्र बना दिए गए थे.
मोदी ने बतौर प्रधानमंत्री जैसे ही अपना दूसरा कार्यकाल शुरू किया, कश्यप ने हल्ला बोल के एक एपिसोड की मेजबानी की, जिसका शीर्षक था- “क्या मुसलमान मोदी पर भरोसा जताएंगे?” इस शो के शुरुआत में एक छोटी रिपोर्ट में बताया गया कि मोदी के आधिकारिक ट्विटर अकाउंट से ईद को लेकर एक सद्भावना संदेश कैसे उर्दू में पोस्ट किया गया जो कि भाषा को लेकर प्रधानमंत्री के अभूतपूर्व चयन को दिखाता है. एक वॉयसओवर में कहा गया कि इससे पता चलता है कि कि मोदी का पसंदीदा नारा “सबका साथ, सबका विकास” उनके लिए मायने रखता है, जिससे वह सभी का विश्वास जीतना चाहते थे. इसमें यह उल्लेख नहीं किया गया था कि मोदी के सत्ता में आने के बाद से दर्जनों मुस्लिमों की सरेआम लिंचिंग की गई.
सितंबर में जब मोदी ने अपना 69वां जन्मदिन मनाया, तब हल्ला बोल का एक पूरा शो मोदी के जन्मदिन को समर्पित था. इसका शीर्षक था, “क्या वास्तव में मोदी जैसा कोई नहीं है?”
नवंबर में प्रज्ञा सिंह ठाकुर को रक्षा मामलों की संसदीय समिति में नियुक्त किया गया था. जब नियुक्ति की घोषणा की गई थी, तब कश्यप ने एक वीडियो ट्वीट किया, जिसमें उन्होंने इस साल के शुरुआत में आम चुनाव के दौरान एक संवाददाता सम्मेलन में मोदी से सवाल किया था. यह वीडियो मोदी को याद दिलाने के साथ शुरू हुआ, जिसमें वह साध्वी प्रज्ञा को महात्मा गांधी के हत्यारे नाथूराम गोडसे को देशभक्त बताने के लिए कभी दिल से माफ नहीं करने की बात करते सुनाई दे रहे थे. तब कश्यप ने पूछा, “अगर वह बीजेपी के टिकट पर जीतती हैं, तो क्या पार्टी उसका स्वागत करेगी या उन्हें बाहर निकालेगी?”
कश्यप ने ट्विटर पर लिखा कि उन्हें अपने सवाल का जवाब मिल गया है और प्रज्ञा ने अपना पुरस्कार पा लिया. उन्होंने अपने शो हल्ला बोल के एक एपिसोड को शीर्षक दिया, “विवादास्पद साध्वी को मिला सरकार से पुरस्कार.”
(प्रज्ञा को उनकी नियुक्ति के एक हफ्ते बाद ही संसदीय समिति से हटा दिया गया था, असल में प्रज्ञा ने दोबारा संसद के भीतर गोडसे को फिर से देशभक्त कहा जिस पर हंगामा मच गया.)
अगर कश्यप के इस ट्वीट को आप उनके जोखिम उठाने वाली पत्रकारिता के सबूत के तौर पर देख रहे हैं, तो यह सही नहीं होगा. 2016 में अपने शो हल्ला बोल में कश्यप ने राष्ट्रीय जांच एजेंसी के द्वारा प्रज्ञा के खिलाफ लगे आरोपों को छोड़ने के फैसले को, साध्वी की जमानत पर रिहाई का मार्ग प्रशस्त करने के तौर पर देखा था. कश्यप ने शो पर चर्चा के दौरान कुछ ऐसे सवालों को पेश किया था, “क्या साध्वी प्रज्ञा को कांग्रेस के इशारे पर फंसाया गया था और क्यों? ... क्या भगवा आतंक “कांग्रेस की एक राजनीतिक साजिश थी?”
प्रेस कॉन्फ्रेंस में मोदी ने प्रेस के सामने चुप्पी साध ली थी और अमित शाह ने बतौर बीजेपी अध्यक्ष पत्रकारों के सभी सवालों का जवाब दिया. प्रधानमंत्री ने कश्यप के सवाल के साथ भी ऐसा ही किया था और शाह ने ही इसका जवाब दिया. कश्यप के सहयोगी और इंडिया टुडे ग्रुप के अंग्रेजी भाषा के एंकर राजदीप सरदेसाई ने बाद में उनकी इस बात के लिए आलोचना भी की कि उन्होंने मोदी से खुद अपने सवाल का जवाब क्यों नहीं मांगा. इसके जवाब में कश्यप ने राजदीप पर तंज कसते हुए एक पत्रकार के बारे में ट्वीट किया जो “एक प्रसिद्ध साक्षात्कार में, सास और बहू के बीच के रिश्ते के अलावा कुछ भी पूछने में कामयाब नहीं रहे.” असल में सालों पहले, सरदेसाई ने कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी का एक साक्षात्कार किया था. इसमें उन्होंने सोनिया गांधी के अपनी सास इंदिरा गांधी के साथ उनके संबंधों को लेकर पूछा था.
2016 में मोदी के नोटबंदी जैसे विनाशकारी फैसले के बाद कश्यप ऑन-एयर जुबान फिसलने को लेकर भी खूब विख्यात हुई हैं. इस फैसले के बाद अपने शो की शुरुआत में, कश्यप ने अपने दर्शकों का अभिवादन किया- “नमस्कार, आप हल्ला बोल देख रहे हैं, और मैं अंजना ओम मोदी, ओह, अंजना ओम कश्यप हूं.”
(दो)
कश्यप आजतक के बिना अपनी मौजूदा लोकप्रियता को कभी हासिल भी नहीं कर पाती. एक दिग्गज टेलीविजन पत्रकार ने मुझे बताया कि इससे पहले कश्यप ने जिन चैनलों में काम किया “उनकी ओर किसी का ध्यान तक नहीं था”. लेकिन “अगर आप आजतक में हैं और अगर आप अपने काम में अच्छे हैं, तब आपकी अपनी शख्सियत होती है. लोग आपको पहचानने लगते हैं. जैसा कि आपने देखा है.”
हिंदी टेलीविजन समाचारों की दुनिया में आजतक के वर्चस्व का एक कारण है और इसलिए समाचार उद्योग में कश्यप जैसी शख्सियत भी लोकप्रियता के मुकाम पर जा पहुंचती हैं. दरअसल 1990 के दशक के मध्य में आजतक समाचार बुलेटिन के रूप में शुरू हुआ था और लगभग दो दशकों में यह अब एक विशाल मीडिया हाउस में तब्दील हो गया है. टेलीविजन समाचार उद्योग में नाटकीय रूप से बदलाव आए हैं. शीर्ष पर रहने के लिए, आजतक भी नाटकीय रूप से बदल गया है और हमेशा बदलाव पत्रकारिता के लिए बेहतर नहीं होते हैं.
एक वरिष्ठ हिंदी संपादक ने कहा कि, “आजतक की कहानी हिंदी पत्रकारिता के ढहने की कहानी भी है और अंजना ओम कश्यप उस कहानी का एक हिस्सा हैं.”
इंडिया टुडे ग्रुप ने 1975 में अंग्रेजी भाषा में ग्रुप के नाम से ही एक समाचार पत्रिका के प्रकाशन के साथ अपनी शुरूआत की थी. 1980 के दशक के आखिरी वर्षों में इंडिया टुडे न्यूजट्रैक भी निकाल रहा था, जो कि अंग्रेजी में एक नियमित समाचार-पत्रिका शो था और इसे दर्शकों तक वीडियो कैसेट के जरिए पहुंचाया जाता था. 1990 के दशक के उन्हीं वर्षों में इसकी एक छोटी सी टीम ने दूरदर्शन के लिए एक पायलट शो बनाने के लिए न्यूस्ट्रेक की कुछ क्लिप्स को मिलाकर हिंदी में एक वॉयसओवर के साथ एक कार्यक्रम तैयार किया. राज्य प्रसारक को यह प्रस्ताव जंच गया और अधिकारियों ने समूह को अपने एक चैनल डीडी मेट्रो के लिए दैनिक समाचार बुलेटिन तैयार करवाने पर सहमति दे दी.
इंडिया टुडे के संस्थापकों में से एक और आज इंडिया टुडे ग्रुप के अध्यक्ष और प्रधान संपादक, अरुण पुरी ने इस परियोजना को सुरेंद्र प्रताप सिंह को सौंप दिया, जो हिंदी के एक अनुभवी पत्रकार हैं. सुरेंद्र प्रताप सिंह इससे पहले समूह की हिंदी मैगजीन को संपादित करने के लिए काम पर रखे गए थे. “उन्हें टेलीविजन का बहुत कम अनुभव था, लेकिन मुझे पता था कि उन्हें खबरों की बेहतर समझ है. वह अपने काम को लेकर गजब के विश्वसनीय हैं और भाषा के माहिर हैं.” पुरी ने उनके बारे में बाद में लिखा, “बहुत अधिक हीलाहवाली किए बिना, उसने बालसहज मुस्कान के साथ कहा, ‘क्यों नहीं,चलो कोशिश करते हैं.’”
सिंह ने पुरी के लिए एक संभावित कर्मचारी के तौर पर कमर वहीद नकवी का साक्षात्कार करने की व्यवस्था की, जो तब एक हिंदी अखबार के संपादक थे. इंडिया टुडे ग्रुप के एक दिग्गज ने मुझे बताया कि जब नकवी को मध्य दिल्ली में समूह का छोटा सा स्टूडियो दिखाया जा रहा था, तब उन्होंने वहां पीछे की ओर एक लकड़ी पर “आज” शब्द लिखा हुआ देखा. नकवी ने बताया कि उस नाम का पहले से ही एक हिंदी दैनिक अखबार निकल रहा है. बुलेटिन की शुरुआत से पहले ही अब नाम की समस्या खड़ी हो गई थी तो आनन-फानन में “आज” के साथ कुछ नए शब्दों को जोड़ने का विचार कौंधा. “आज कल” पर विचार किया गया, इंडिया टुडे ग्रुप के दिग्गज ने कहा, लेकिन यह एक बंगाली अखबार का नाम है. “आज दिनांक” और “आज ही” पर भी चर्चा हुई लेकिन यह नाम उत्साहित करने वाला नहीं था. तब नकवी ने “आजतक” पर विचार करने को कहा और वह सिंह की अगुवाई वाली टीम में दूसरे महत्वपूर्ण व्यक्ति बन गए जो कि आगे चलकर चैनल के समाचार निदेशक बने.
1995 में आजतक ने डीडी मेट्रो पर अपना डेब्यू किया था, जिसके एंकर सिंह थे और उन्हीं ने इस शो को एडिट भी किया था. सिंह को खबरों की दुनिया में एसपी के नाम से जाना जाता है. तब आज की तरह कोई प्रतिस्पर्धा थी ही नहीं, ऐसा कह सकते है. एक दिग्गज टेलीविजन पत्रकार अल्का सक्सेना जो शुरुआत में आजतक के साथ थीं, उन्होंने याद करते हुए कहा, “हिंदी समाचार केवल डीडी पर आते थे और वे भी समाचार नहीं थे, फील्ड रिपोर्टिंग नहीं थी. वे सिर्फ सुर्खियां पढ़ रहे होते थे.” निजी चैनल जी टीवी के पास खुद का एक समाचार बुलेटिन था, लेकिन वह भी संसाधनों के लिए तरस रहा था. आजतक और जी दोनों समूहों में काम कर चुके एक पूर्व निर्माता ने मुझे बताया, “पत्रकार जो टेप अपने साथ लाते थे, वे बसों और ट्रेनों पर आते थे.” इसका मतलब जी “ताजा समाचारों का प्रसारण नहीं कर रहा था.”
पूर्व निर्माता ने बताया कि आजतक के साथ यह समस्या नहीं थी. आजतक का शो दूरदर्शन के लिए बनाया जा रहा था. दिल्ली तक फुटेज को अपलिंक करने की सुविधाओं पर आजतक की पहुंच थी. देश भर से नियमित फुटेज प्राप्त हो रहे थे और समाचारों की दौड़ में आजतक अपने प्रतिद्वंद्वियों को मात देने के लिए इसका इस्तेमाल कर रहा था.
आजतक हिट हो चुका था और इसकी वजह सिर्फ तकनीक का लाभ नहीं था. असल में सिंह ने बुलेटिन को एक अलग पहचान दी. शो को शुरू करने के लिए, इसकी अपनी आवाज थी. दूरदर्शन पर इस्तेमाल की जाने वाली हिंदी एक आधिकारिक भाषा के औपचारिक संस्करण का प्रसार भर थी, जो कई दर्शकों के लिए सुलभ नहीं थी. जी के समाचार बुलेटिन में हिंदी और अंग्रेजी “हिंग्लिश” का इस्तेमाल हो रहा था. उस समय आजतक के साथ काम कर चुके एक पत्रकार ने बताया कि कर्मचारियों को “बोल-चाल की भाषा” का इस्तेमाल करने के निर्देश दिए गए थे और यकीनन यह आइडिया दूरदर्शन की आधिकारिक हिंदी वाले बुलेटिन को पछाड़ गया. पुरी ने खुद आजतक के प्रोडक्शन में शामिल सभी लोगों की भाषा पर बहुत ज्यादा निवेश किया था.
एनडीटीवी इंडिया के एक पूर्व पत्रकार ने मुझे बताया, “आजतक ने अपने पत्रकारों की छवि गढ़ी. इसने अपने रिपोर्टरों को ब्रांड के रूप में स्थापित किया, उनकी रिपोर्टों को प्रदर्शित किया और ऐसा नहीं लगा कि वह रिपोर्ट को बहुत प्रभावित करने की कोशिश कर रहे हैं. उसके कारण, जनता का पत्रकारों के साथ एक निश्चित जुड़ाव होता चला गया.”
स्वतंत्र पत्रकार और शोधकर्ता जितेंद्र कुमार ने मुझे बताया कि बुलेटिन को एक सरकार विरोधी झुकाव की तरह माना जाता था, हालांकि मौलिक रूप से ऐसा नहीं था. सरकार द्वारा संचालित दूरदर्शन के इन-हाउस बुलेटिन की तुलना में इस विचार से आजतक को मदद मिली क्योंकि आजतक दूरदर्शन पर ही बुलेटिन प्रसारित कर रहा था. जी और आजतक के साथ काम कर चुके एक पूर्व पोड्यूसर ने कहा, “वे कड़ी मेहनत कर रहे थे.” आजतक की संपादकीय टीम के एक सदस्य ने कहा कि दूरदर्शन ने बुलेटिन की पटकथाओं और रफ-कट पर ध्यान देना और इन्हें प्रभावित करना शुरू कर दिया. “अगर आप उन्हें समझा सकते हैं, आप महान हैं और अगर नहीं, तो आपको समझौता करना होता था.”
पूर्व प्रोड्यूसर ने कहा कि सिंह ने आजतक को अपने तरह से धर्मनिरपेक्ष ही बनाया था. “यह इस्लाम और ईसाई धर्म के बारे में बात नहीं करता था क्योंकि अधिकांशत: हिंदू दर्शकों को इसने आकर्षित किया था. लेकिन यह केवल हिंदू एजेंडे को लेकर काम नहीं कर रहा था.” सितंबर 1995 में एक अफवाह तेजी से फैल गई कि दिल्ली के एक मंदिर में गणेश की मूर्ति दूध पी रही है. जल्द ही यह खबर देशभर में आग की तरह फैल गई. देश भर के मंदिरों में भारी भीड़ उमड़ रही थी. आजतक ने इस अफवाह की सच्चाई जांचने के लिए एक रिपोर्टर को भेजा और सिंह ने इस उन्माद को हवा में उड़ा दिया.
13 जून 1997 को दिल्ली के उपहार सिनेमा में आग लगने से 59 लोगों की मौत हो गई थी. तब आजतक का पूरा बुलेटिन उस दिन की त्रासदी और इसके पीछे जो लापरवाही हुई थी, उसी को समर्पित था. उसी रात सिंह को ब्रेन हैमरेज हुआ और दो हफ्ते बाद उनकी मृत्यु हो गई.
“एसपी के माध्यम से ही आजतक की पहचान बनी थी”, यह बात मुझसे सिंह की शख्सियत से अच्छे से वाकिफ रहे वरिष्ठ हिंदी पत्रकार आनंद स्वरूप वर्मा ने कही. उन्होंने कहा, “आजतक में शामिल होने से पहले ही वह एक प्रसिद्ध और सम्मानित पत्रकार बन चुके थे, जिन पर किन्हीं खास हितों के लिए पक्षपाती होने और लॉबिंग करने का कोई आरोप नहीं था.” वर्मा ने कहा कि अगर सिंह आज होते तो आजतक चैनल वैसा नहीं होता जैसा कि वह अभी है. उन्होंने कहा, “संभवत: यह तब ही होगा जब मौजूदा समय में चैनल के पास जिस तरह के एंकर हैं, जब तक उन्हें दरकिनार नहीं किया जाता और उन पत्रकारों को आगे नहीं बढ़ाया जाता जिन्होंने राष्ट्रवाद के प्रवचन को आगे नहीं बढ़ाया और उनके पिछलग्गू बनकर सत्ता में नहीं आए.”
या शायद आजतक ने आज सिंह की विरासत का दूसरा ही पहलू स्वीकार किया है. बुलेटिन की कमान संभालने से वर्षों पहले दिल्ली के पांच सितारा होटल में उनकी शादी में कई राजनेताओं और सरकार के मंत्रियों ने भाग लिया था. वर्मा ने उस समय के एक संपादकीय में लिखा, “यह घटना अपने आप में पत्रकारिता की स्थिति, विशेष रूप से हिंदी पत्रकारिता और हमारे देश की मौजूदा राजनीति की स्थिति दोनों को दर्शाने के लिए उल्लेखनीय है.”
एक पूर्व प्रोड्यूसर ने याद करते हुए बताया कि सिंह ने एक बार उनसे कहा कहा था कि, “आप बहुत शिक्षित हैं, आपके पास जितनी शिक्षा है, वह मेरे पूरे न्यूज रूम से अधिक है.” जितेंद्र कुमार ने याद करते हुए कहा कि सिंह ने उन्हें आजतक से यह कहते हुए बाहर कर दिया था “यार यह बुद्धिमान लोगों के लिए नहीं है.” कुमार ने कहा कुछ अपवादों को छोड़ दें तो “मुझे ऐसा लग रहा था कि एसपी न्यूज रूम में ऐसे किसी शख्स को नहीं चाहते थे, जो गंभीर सवाल पूछे.” आजतक के इस पुराने कर्मी ने याद करते हुए कहा, “सिंह ने कहा कि वह चाहते हैं कि कुछ अच्छे लोग इसमें शामिल हों क्योंकि अभी चैनल के संवाददाता किसी रेलवे स्टेशन के कुली की तरह नजर आते हैं.”
कुमार के विचार में, सिंह के पास आजतक में अपने हिसाब से कवरेज करवाने की स्थायी स्वतंत्रता थी, लेकिन बावजूद इसके वह हमेशा इसका उपयोग बुद्धिमानी से नहीं करते थे. कुमार ने कहा, “उन्हें तंबाकू का सेवन छोड़ने जा रहे तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव पर स्टोरी नहीं करनी चाहिए थी.” कुमार ने कहा, “सिंह ने टेलीविजन पत्रकारिता की नींव रखी और अगर वह चाहते तो उसे बेहतर बना सकते थे. लेकिन एक बर ट्रेन छूट गई, तो उसे रोकना मुश्किल था.”
1990 के दशक के अंत में बीजेपी के नेतृत्व में गठबंधन सरकार ने सत्ता संभाली. कुछ समय के लिए बीजेपी के प्रमोद महाजन ने सूचना और प्रसारण मंत्रालय का कार्यभार संभाला जो कि दूरदर्शन के नियंत्रण और प्राधिकरण को आधिकारिक तौर पर देखता है. बुलेटिन की संपादकीय टीम के एक सदस्य ने मुझे बताया कि महाजन ने आते ही यह सुनिश्चित करने को कहा था कि बुलेटिन में बीजेपी की कोई आलोचना नहीं होनी चाहिए, “थोड़ी सी भी नहीं.” इसी संपादकीय सदस्य ने बताया कि कारगिल युद्ध के दौरान सरकार ने सैनिकों की मौत पर रिपोर्टिंग को सीमित करने के लिए बुलेटिन पर दबाव डाला ताकि इसे दर्शकों की नजरों के सामने से हटाया जा सके.
आखिरकार, आजतक के पत्रकारों का एक प्रतिनिधिमंडल महाजन से मिला. बैठक में मौजूद एक पत्रकार के अनुसार, महाजन ने यह स्पष्ट किया कि वह एक सरकारी मंच का उपयोग करके सत्ता पक्ष या सरकार की आलोचना करने के लिए आजतक से सहमत नहीं होंगे. पत्रकार ने महाजन को याद करते हुए कहा, लेकिन अगर आजतक का अपना मंच होता तब महाजन को कोई दिक्कत नहीं होती.
जब मैंने इस बारे में एक प्रश्न अरुण पुरी को भेजा, तो इंडिया टुडे समूह की कारपोरेट संचार टीम ने मुझे वापस लिखा कि यह सही नहीं है कि आजतक को महाजन के दबाव का सामना करना पड़ा था. जब बुलेटिन “डीडी नेटवर्क पर चलाया गया था, तो अनुबंध के अनुसार यह निर्धारित किया गया था कि सारी स्क्रिप्ट डीडी द्वारा पूर्व-अनुमोदित होंगी”. प्रतिक्रिया में कहा गया कि, “यह तब डीडी में एक नियम था और यह असामान्य नहीं था.”
31 दिसंबर 2000 को आजतक 24 घंटे के हिंदी समाचार चैनल के रूप में प्रसारित हुआ. तत्कालीन कानून मंत्री और बाद में मोदी के मंत्रिमंडल में वित्त मंत्री रहे अरुण जेटली ने इसकी लॉन्चिंग पर अपनी बात रखी थी. चैनल को शुरू में यूएस नेटवर्क सीएनएन के साथ एक संयुक्त उद्यम के तौर पर चलाया गया, लेकिन पुरी और सीएनएन के संस्थापक टेड टर्नर अंतिम समझौते पर नहीं पहुंच सके.
आजतक के एक पूर्व कार्यकारी अधिकारी ने बताया, “मूल रूप से यह कैसा होगा इसका किसी को इरादा नहीं था. इसमें आधे-आधे घंटे में कुछ समाचार बहुत सारे करंट अफेयर्स होने थे.” तब “किसी को भी विश्वास नहीं था कि कोई भी 24 घंटे का समाचार देखना चाहेगा.”
आजतक में बतौर न्यू प्रोड्यूसर तकरीबन एक दशक तक काम करने वाले संजय कुमार ने बताया, “हम ब्रेकिंग-न्यूज चैनल के रूप में पहचाने जाना चाहते थे.” उन्होंने कहा, “खबर क्या है इससे कोई मतलब नहीं लेकिन इसे सामने लाने वाले हम पहले व्यक्ति हों.” इसी बात को आगे बढ़ाते हुए आजतक के एक पूर्व कार्यकारी अधिकारी ने कहा, “विचार यह था कि संवाददाताओं को आगे बढ़ाया जाए और यही कारण है कि आजतक में रिपोर्टर ब्रांड होते हैं.” यह प्रतिद्वंद्वी चैनलों के विपरीत था, जो समाचार एंकरों को अधिक प्रमुखता देते थे.
आजतक के ऑन-एयर होने के एक महीने से भी कम समय में ही गुजरात एक बड़े भूकंप से दहल गया. चैनल ने पत्रकारों की एक बड़ी टीम को कवरेज के लिए भेजा. चैनल के एक पूर्व रिपोर्टर ने मुझे बताया, “घटना की रिपोर्टिंग से आजतक की ताकत प्रदर्शित हुई. मुझे लगता है कि हमें अपने कवरेज के दौरान ही हमारा पहला प्रायोजक भी मिला.”
आजतक ने रेटिंग में तेजी से बढ़त हासिल कर ली थी. जी टीवी के जी न्यूज को दूसरे स्थान पर संतोष करना पड़ा, हालांकि यह हिंदी समाचारों को समर्पित आजतक से एक साल पहले ही हिंदी समाचार चैनल के रूप में शुरुआत कर चुका था.
आजतक में करीब एक दशक बिताने वाले एक पत्रकार ने बताया कि शुरुआत में इसे “चड्डी-बनियान चैनल” कहा जाता था, क्योंकि इसके विज्ञापन का एक अच्छा खासा हिस्सा इनरवियर के लिए था. “सभी बड़े विज्ञापन जैसे कि कार, अंग्रेजी चैनलों को मिलते थे.” हालांकि, जैसे-जैसे चैनल की बड़े पैमाने पर पहुंच स्पष्ट होती गई, वैसे-वैसे और भी विशेष विज्ञापनदाताओं का आगमन चैनल में हुआ.
आजतक के पूर्व रिपोर्टर ने मुझे चैनल के कुछ शुरुआती कामों के बारे में बताया, जिन्हें वह अभी भी गर्व के साथ देखते थे. इनमें से एक पीएस सुब्रमण्यम के कॉल रिकॉर्ड्स पर उसकी रिपोर्टिंग थी, जिन्हें वित्तीय अनियमितताओं के संदेह में सार्वजनिक क्षेत्र की फाइनेंस कंपनी यूनिट ट्रस्ट ऑफ इंडिया के नेतृत्व से बाहर कर दिया गया था. इन कॉल रिकॉर्ड्स ने उन्हें प्रधानमंत्री के कार्यालय के प्रमुख अधिकारी एनके सिंह और अन्य शक्तिशाली हस्तियों से जोड़ा. यह 2000 के दशक की शुरुआत की बात है, जब प्रधानमंत्री कार्यालय में अभी भी बीजेपी के अटल बिहारी वाजपेयी विराजमान थे. रिपोर्टर ने कहा, “यह इस तरह की रिपोर्ट थी, जो वर्तमान सरकार के खिलाफ कभी नहीं गई.”
आजतक ने कई अन्य समाचार चैनलों की तरह 2002 में गुजरात में हुए रक्तपात का लाइव कवरेज किया था. पत्रकार नलिन मेहता ने अपनी पुस्तक इंडिया इन टेलीविजन में लिखा है, “जब 27 फरवरी को गोधरा हिंसा की पहली तस्वीरें प्रसारित की गईं, तीनों प्रमुख टेलीविजन नेटवर्क- जी न्यूज, आजतक और स्टार न्यूज- सांप्रदायिक दंगे के शिकार लोगों के धर्म का नाम न बताने के स्थापित मानदंड तोड़ चुके थे. तीनों चैनलों ने राम सेवकों की हत्या को लेकर तीखी सुर्खियां बटोरीं. इस पुरानी प्रिंट परंपरा के पीछे तर्क यह था कि पीड़ितों की हिंदू या मुसलमान के रूप में पहचान करना जुनून को भड़का सकता है और बदला लेने के लिए उकसा सकता है. टेलीविजन ने अपनी दृश्य छवियों को पहचानने की सुविधा के साथ, पुराने प्रिंट सम्मेलन को कम या ज्यादा निरर्थक बना दिया.”
हालांकि, 28 फरवरी तक जब मुसलमानों को बदला में की गई हत्याओं का शिकार बना लिया गया था, आजतक और जी न्यूज दोनों ने पीड़ितों के धार्मिक समुदाय का नाम नहीं लेने की पुरानी प्रथा को वापस अपना लिया. दरअसल आजतक ने बार-बार अपने पत्रकारों को अल्पसंख्यक और बहुसंख्यक जैसे शब्दों से बचने की सलाह दी. दूसरी ओर, स्टार न्यूज (तब एनडीटीवी के संपादकीय नियंत्रण में) में, एक सचेत संपादकीय निर्णय लिया गया था कि कम से कम हिंसा के पहले कुछ दिनों के लिए पीड़ितों के समुदाय की पहचान बताई जाए, जिससे हिंसा की एक सही तस्वीर दिखाई जा सके.
मेहता अजीब ढंग से तर्क देते हैं कि आजतक की नीति “आवश्यक रूप से मुस्लिम विरोधी नहीं थी.” उन्होंने उस समय के आजतक के समाचार निदेशक उदय शंकर को चिहिन्त करते हुए बताया कि कैसे उन्होंने “पीड़ितों के समुदाय का नामकरण नहीं करने की अपने चैनल की नीति को तो सही ठहराया, लेकिन अन्य चैनलों के समुदायों की पहचान के निर्णय के अधिकार का बचाव भी किया. एक आदमी की जिम्मेदारी दूसरे आदमी की सेंसरशिप थी यह उन्होंने दृढ़ता से किया.”
आजतक के पूर्व अधिकारी चैनल के निर्णय के साथ खड़े थे. उन्होंने मुझसे कहा, “गुजरात दंगों में जो हुआ वह अभूतपूर्व था, लेकिन गोधरा में जो हुआ वह उतना ही घृणित और अभूतपूर्व था. इस पर ध्यान न देना भी उतना ही गलत था.” लेकिन विवाद यह नहीं था कि आजतक को गोधरा पीड़ितों की पहचान बताने से पीछे हटना चाहिए, बल्कि यह था कि विशेष रूप से गोधरा के पीड़ितों की पहचान धार्मिक आधार पर उजागर करने के बाद, उसे "गलत” हुए बिना गोधरा के बाद निशाना बनाए गए लोगों की धर्म पर भी लागू करना चाहिए था और जिस तरह का वह सांप्रदायिक नरसंहार था उसे भी दिखाना चाहिए था.
गोधरा में ट्रेन में लगी आग से मारे गए कारसेवक तब उत्तर प्रदेश के अयोध्या के उस स्थान से एक धार्मिक समारोह में भाग लेकर घर लौट रहे थे, जिसे लेकर वहां राम जन्मभूमि होने का दावा कर रहे थे. यह वही जगह थी जहां बाबरी मस्जिद थी, सदियों पुरानी एक मस्जिद जो तब तक वहां थी जब 1992 में कारसेवकों ने इसे तोड़ नहीं दिया. बीजेपी और अन्य हिंदुवादी संगठन लंबे समय से मस्जिद की इस जगह पर राम मंदिर बनाने की मांग कर रहे हैं.
9 नवंबर 2019 को सुप्रीम कोर्ट द्वारा एक विवादास्पद फैसले ने इस जगह पर जारी एक लंबी कानूनी लड़ाई को समाप्त कर दिया. अदालत ने इसे एक ट्रस्ट को सौंप दिया, जिसे वर्तमान बीजेपी नेतृत्व वाली सरकार द्वारा गठित किया जाना है. फैसले में सरकार को मंदिर निर्माण के लिए एक ट्रस्ट बनाना है, जिसकी देख-रेख में मंदिर निर्माण होना है. यह भी आदेश दिया गया है कि सरकार मुस्लिम दावेदारों को एक मस्जिद के निर्माण के लिए अयोध्या में ही अलग से पांच एकड़ का एक वैकल्पिक भूखंड दे.
देश फैसले के लिए इंतजार कर रहा था, कश्यप उस सुबह स्टूडियो के भीतर ही एक कोर्टरूम नुमा बने सेट से लाइव हुईं. कश्यप ने कहा, “एक विश्वसनीय चैनल के रूप में, हम मामले को उसी गंभीरता और संयम से देख रहे हैं, जिसे इस देश के प्रत्येक नागरिक को बनाए रखना चाहिए.” जब तक अदालत ने अपने फैसले की घोषणा नहीं की, वह जोर देकर कहती रहीं कि अटकलों के लिए कोई गुंजाइश नहीं होनी चाहिए.
इससे ठीक दस महीने पहले आजतक को उस सार्वजनिक सर्वेक्षण को प्रसारित करना उचित लगा, जिसमें कई अन्य प्रश्नों के साथ इस प्रश्न को भी शामिल किया गया था कि क्या सरकार को विवादित ढांचे पर राम मंदिर का निर्माण करना चाहिए? चैनल ने दावा किया कि इस सर्वे में 13000 लोगों ने अपनी राय रखी और यह अपनी तरह का अनूठा और एक व्यापक पैमाने पर किया गया सर्वे है. कश्यप ने प्रतिक्रियाओं पर चर्चा प्रस्तुत करते हुए कहा कि इनमें से लगभग एक तिहाई का जवाब था कि हां सरकार को ऐसा ही करना चाहिए. अयोध्या के उस स्थल की तरह दिखने वाले ग्राफिक्स की मदद से तैयार इस कार्यक्रम में राम की छवि के बगल में दर्शकों की स्क्रीन पर सर्वेक्षण के परिणाम सामने उभर आए. कश्यप ने शो में पूछा कि केंद्र में मोदी की सरकार के साथ ही उत्तर प्रदेश में सत्ता पर काबिज बीजेपी के बावजूद “राम मंदिर कहां है, जिसका सपना आपने इस देश को दिखाया है?”
अयोध्या विवाद वर्षों से उच्चतम न्यायालय के समक्ष था. अक्टूबर 2018 में जब अदालत ने इस मामले में एक सुनवाई को टाल दिया तब हल्ला बोल ने एक एपिसोड प्रसारित किया, जिसका शीर्षक था, “हे राम! तारीख पर तारीख”. बीजेपी प्रवक्ता संबित पात्रा से बात करते हुए कश्यप ने कहा, “राम मंदिर की चौखट पर तो इस देश का राम भक्त पहुंच नहीं पा रहा है.”
कश्यप ने जल्द ही इसके बाद एक और बहस की मेजबानी की, जहां एक बैनर हेडलाइन में यह जानना चाहा गया था कि “राम मंदिर का दीया कब जलेगा?” जब उन्होंने बीजेपी नेता प्रेम शुक्ला से पूछा कि मंदिर बनाने के लिए उनकी पार्टी क्या कर रही है, तो उन्होंने दावा किया कि, “धर्म गुरुओं के निर्देश के तहत हमने कारसेवकों का समर्थन किया. गुरुओं के निर्देश पर ही हमने बाबरी के दाग को मिटाने के लिए सक्रिय रूप से भाग लिया था.” एक अन्य बहस का शीर्षक था, “5 एकड़ जमीन, अब भिड़ गए मुसलमान”.
जैसे ही इस विवाद पर फैसला सुनाया गया, कश्यप ने अपने दर्शकों से कहा कि यह किसी एक पक्ष की जीत को नहीं दर्शाता है. यह पूरी तरह से मोदी सरकार के दृष्टिकोण पर ही सहमती को दर्शा रहा था. आजतक और उसके सभी प्रमुख प्रतिद्वंद्वियों ने फैसले को इसी तरह से कवर किया था. आजतक ने बाद में दावा किया कि किसी भी प्रतिद्वंद्वी हिंदी चैनल की तुलना में फैसले की सुबह कश्यप के शो को देखने वालों की संख्या सबसे ज्यादा थी.
उस शाम अपने शो हल्ला बोल में कश्यप ने घोषणा की कि “मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम” के मंदिर के लिए रास्ता साफ हो गया है. उसने शो में कहा “आप अपनी स्क्रीन पर तस्वीरों में देख सकते हैं कि पवित्र शहर अयोध्या में सरयू नदी में आरती हो रही है.” कश्यप ने इसको लेकर कहा- “यह एक पवित्र दिन है!” कश्यप की अयोध्या कवरेज की स्क्रिप्ट पूरी तरह से हिंदुत्व की भावनाओं को ध्यान में रखते हुए लिखी गई थी. ऐसे ही कई अन्य मुद्दों पर कश्यप के काम ने हालिया दिनों में हिंदू कट्टरपंथ के रास्ते के लिए भूमिका निभाई है, कम से कम उसने भारत के मुसलमानों को जैसे चित्रित किया है, उसको देखकर तो यही लगता है.
2015 में, उन्होंने अपना एक पूरा शो एक मुस्लिम उपदेशक को समर्पित किया, जिसने दावा किया था कि हिंदू भगवान शिव वास्तव में एक मुस्लिम पैंगबर थे. 2017 के मध्य में कश्यप ने इस बात पर एक परिचर्चा की कि क्या बकरीद पर बकरे की बलि दी जानी चाहिए, यह उसी दौरान हो रहा था जब आरएसएस और उसके सहयोगियों ने बकरियों के अधिकारों के प्रति अपने प्यार को फिर से खोज निकाला था, जिसका कि कश्यप ने खुद भी डिबेट के दौरान जिक्र किया था.
कश्यप ने अपने एक अन्य शो की मेजबानी की, जिसका शीर्षक था, “जितने हो बच्चे ... सियासत के लिए अच्छे!” बैकग्राउंड में मुस्लिम टोपी और दाढ़ी लिए हुए अजमल की तस्वीर को टाइटल के ऊपर लगाया गया था.
पिछले साल जुलाई 2019 में राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने आंकड़े जारी किए थे, जिनमें पिछले तीन वर्षों में सभी तरह के घृणा अपराधों के चालीस प्रतिशत से अधिक मामले उत्तर प्रदेश में हुए थे, जहां मार्च 2017 से बीजेपी नेता आदित्यनाथ की सरपरस्ती में सरकार चल रही है. आयोग ने अल्पसंख्यकों के लिए राज्य को सबसे कम सुरक्षित घोषित किया था. एक विपक्षी विधायक ने अपने समर्थकों से बीजेपी को समर्थन देने वाले दुकानदारों का बहिष्कार करने का आह्वान भी इसी दौरान किया था. इस पर कश्यप ने अपने जिस शो की मेजबानी की थी, उसका शीर्षक था “अब मजहब देखकर होगा कारोबार? हर शाख पे जिन्ना बैठा है” और इस शो में विधायक को समाज को विभाजित करने के लिए अंजना ने खूब खरी-खोटी सुनाई थी.
एनएचआरसी के आंकड़ों के जारी होने के बाद सार्वजनिक क्षेत्र की कई महत्वपूर्ण हस्तियों ने मोदी को सांप्रदायिक हमलों के खिलाफ कार्रवाई करने के लिए एक खुला पत्र लिखा था. इस पत्र में उन्होंने कहा कि इन हमलों के दौरान अपराधी “जय श्री राम” का उद्घोष युद्ध के नारों की तरह कर थे. इस पत्र के जरिए मांग की गई कि “इस देश के सर्वोच्च कार्यकारी के रूप में आपको (मोदी) इस तरह के आपराधिक कार्यों को रोकने और राम का नाम लेकर अपराध करने की घटनाओं पर अंकुश लगाना चाहिए.” इसके तुरंत बाद कश्यप ने शो होस्ट किया, जिसका शीर्षक था “क्या भड़काऊ नारा बन गया है 'जय श्री राम'?” बैनर हैडलाइन में कहा गया कि क्या पत्र राजनीति से प्रेरित था. एनएचआरसी के आंकड़ों पर चर्चा करने के बजाय कश्यप ने अपने शो में पत्र लिखने वालों पर ही सवालिया निशान लगाते हुए कहा कि उन्हें इस मामले में “जय श्री राम!” के प्रयोग पर ध्यान ही क्यों केंद्रित करना पड़ा. क्या कभी किसी हिंदू को कभी भी मुसलमानों के द्वारा नहीं मारा जाता है, कश्यप ने आश्चर्य प्रकट करते हुए कहा.
बीते साल अक्टूबर में असम में बीजेपी की अगुवाई वाली राज्य सरकार ने कहा कि वह सरकारी नौकरियों में दो से अधिक बच्चों वाले लोगों को अयोग्य घोषित करने के लिए एक नियम बनाने जा रही है. इसके जवाब में प्रतिद्वंद्वी पार्टी के प्रमुख बदरुद्दीन अजमल ने कहा कि मुसलमानों को परेशान होने की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि उन्हें वैसे भी नौकरी नहीं मिलती है. बीजेपी ने इस बयान को अजमल पर हमला करने के लिए गोला-बारूद की तरह इस्तेमाल किया. कश्यप ने अपने एक अन्य शो की मेजबानी की, जिसका शीर्षक था, “जितने हो बच्चे ... सियासत के लिए अच्छे!” बैकग्राउंड में मुस्लिम टोपी और दाढ़ी लिए हुए अजमल की तस्वीर को टाइटल के उपर लगाया गया था. कश्यप ने ग्राफिक्स के जरिए भारत और चीन की मौजूदा आबादी को दिखाते हुए अपने दर्शकों से पूछा, “क्या भारत निकट भविष्य में दुनिया का सबसे अधिक आबादी वाला देश बन जाएगा?”
यह इस्लाम का डर पैदा करने की कोशिश थी, जिसका खेल मुस्लिम अतिपिछड़ों की आड़ में खेला जा रहा था. जबकि 2018 में जब उत्तर प्रदेश के एक बीजेपी विधायक ने प्रत्येक हिंदू जोड़े से कम से कम पांच बच्चे पैदा करने का आग्रह किया था ताकि हिंदुत्व को संरक्षित किया जा सके, तब कश्यप ने इस पर कोई ध्यान नहीं दिया था. यह विरोधाभाष को दिखाता है.
कश्यप अक्सर महिलाओं को लेकर रूढ़िवादी इस्लामी रवैये पर बात करती रहती हैं. एक बार जब एक मुस्लिम अभिनेत्री ने घोषणा की कि उसने धर्म पर अपने विश्वास पर कायम रहने के लिए अभिनय को छोड़ने का फैसला लिया है, तब हल्ला बोल में पूछा गया, “क्या अल्लाह को अभिनय पसंद नहीं है?” एक अन्य अवसर पर जब एक एक धर्मगुरू ने पश्चिम बंगाल से मुस्लिम सांसद के एक दुर्गा पूजा पंडाल में नाचने पर आलोचना की तब कश्यप ने रूढ़िवादी मौलानाओं को जमकर लताड़ लगाई.
हल्ला बोल शो में शामिल होने वाले कई मुस्लिम पैनलिस्टों के पास मुस्लिम समुदाय के प्रतिनिधित्व बनने के तौर पर भड़कीले दावों से ज्यादा और कुछ नहीं होता है. वे पैनल में शामिल अन्य लोगों के लिए अच्छे ढंग से ढाल का ही काम करते हैं. सबसे खराब होता है उनका पंचिग बैग की तरह इस्तेमाल होना और अंत में औंधे मुंह गिर पड़ना. एक वरिष्ठ मुस्लिम पत्रकार ने मुझे बताया, “ऐसा लगता है कि उनके लिए कोई मुद्दा ही नहीं है, जब भी मुसलमानों को उनके दृष्टिकोण के लिए बुलाया जाता है तो आप चुनकर ऐसे लोगों को लाते हैं जो रूढ़ीवादी विचारों का ही प्रतिनिधित्व करते हैं. जब आप केवल उन लोगों को बुलाते हैं जो समुदाय के पिछड़े दृष्टिकोण का ही प्रतिनिधित्व करते हैं, तब आप समुदाय की मदद करने की कोशिश तक नहीं कर रहे होते हैं. आप इसे शून्य की ओर धकेलने का प्रयास कर रहे होते हैं.”
हाल ही में मुस्लिम पर्सनल लॉ के तहत मान्यता प्राप्त होने से पहले तक अंजना ओम कश्यप कई दफा तीन तलाक के मसले पर शो की मेजबानी कर चुकी हैं. बीजेपी और आरएसएस ने लंबे समय तक यह तर्क दिया है कि यह प्रथा महिलाओं के अधिकारों के लिए अपराध है और मुस्लिम महिलाओं के लिए यह फैसला महत्वपूर्ण है. हालांकि कई आलोचकों का तर्क है कि हिंदुवादी संगठनों ने बहुत चालाकी से इस धारणा को आगे बढ़ाने के लिए कि इस्लाम स्वाभाविक रूप से प्रतिगामी है, तीन तलाक बहस में महिलाओं के अधिकारों के पक्ष में आगे बढ़कर काम किया. राज्यसभा द्वारा तीन तलाक को बतौर अपराधिक विधेयक पारित करने के बाद, कश्यप के शो का शीर्षक था, “तीन तलाक के खिलाफ पारित हुआ ऐतिहासिक बिल, विपक्ष ने क्यों किया विरोध?”
बीजेपी और आरएसएस ने पिछले साल सुप्रीम कोर्ट के उस फैसले, जिसमें सभी तीर्थयात्रियों को उम्र या लिंग की परवाह किए बिना और मासिक धर्म की उम्र की औरतों को केरल के सबरीमाला मंदिर में प्रवेश की अनुमति का आदेश था, उस पर नाराजगी जताई थी. आरएसएस ने पहले सभी औरतों के लिए मंदिर के द्वार खोलने का समर्थन किया था, लेकिन अदालत के फैसले के बाद अपना रुख बदल लिया और कहा कि इससे नाराज तीर्थयात्रियों की भावनाओं का सम्मान किया जा सकता है. भीड़ ने मंदिर में प्रवेश करने की कोशिश करने वाली महिला श्रद्धालुओं के साथ मारपीट की. विरोध में केरल में महिलाओं ने 620 किलोमीटर लंबी मानव श्रृंखला का बनाने को आयोजन किया.
2016 में एक संपादकीय में कश्यप ने लिखा, “हां मुझसे खून बहता है”. कश्यप ने सबरीमाला के उदाहरण के साथ-साथ हिंदू और मुस्लिम दोनों के ही अन्य धार्मिक स्थलों की ओर इशारा करते हुए लिखा “परंपरा के नाम पर पंडित संविधान के साथ खिलवाड़ करते हैं. वे धर्म के पालन के लिए एक महिला के अधिकार को चुनौती देते हैं. वहां आदेश ही आदेश हैं : आप यहां प्रार्थना कर सकते हैं, आप वहां प्रार्थना नहीं कर सकते. महावारी की अनुमति नहीं है. आप अशुद्ध हैं. आपको यह विश्वास दिलाया जाता है कि ये सभी आदेश आपके भले के लिए हैं. आपको धार्मिक भावनाओं के नाम ऐसा करने के लिए मजबूर किया जाता है.” 2018 तक वह इस मुद्दे पर भी चुप्पी साध गईं. मुझे सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद सबरीमाला पर हल्ला बोल में कोई बहस नहीं मिली, यहां तक कि यह खबर जब पूरी तरह चर्चाओं में थी तब भी नहीं.
एक चैनल के रूप में अपने आगमन के एक दशक के भीतर ही आजतक को कई नए हिंदी समाचार चैनलों की बढ़ती संख्या से प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ा. रेटिंग पर इसका प्रभुत्व अब सुनिश्चित नहीं रह गया था. वित्तीय दबाव और सार्थक रिपोर्टिंग के लिए भुगतान करने की अनिच्छा के चलते कई चैनलों ने ध्यान खींचने के लिए अपने कंटेट के साथ समझौता करते हुए नए प्रकार की सामग्री की तलाश शुरू कर दी थी. सब कुछ एक निष्पक्ष खेल की तरह था. पौराणिक कथाएं, अंधविश्वासी अफवाहें, बॉलीवुड गपशप और जितना अधिक यह हो सके उतना अधिक उनके लिए बेहतर था. प्रतिद्वंद्वी एक-दूसरे की विज्ञापन दरों को कम करते हैं इससे अच्छी सामग्री के लिए वित्तपोषण और भी मुश्किल हो जाता है. आजतक सहित हर कोई एक ही दौड़ में शामिल हो गया, जिसने टेलीविजन मीडिया में खबरों की परिभाषा को बदल कर रख दिया.
दर्शकों की संख्या को तय चैनल-टेलीविजन रेटिंग या टीआरपी में मापा जाता है. दर्शकों की संख्या का यह तर्क सरल और क्रूर था. हिंदी समाचार के एक अनुभवी पत्रकार ने बताया कि, “आपकी टीआरपी आपकी कमाई के लिए सीधे तौर पर जिम्मेदार है. ऐसी कई स्टोरी की गईं जो समाचार के दायरे में नहीं आतीं. ये ऐसी स्टोरियां थीं जो वास्तव में किसी टीवी चैनल पर नहीं होनी चाहिए थी.” इनमें सांप के रूप में एक पीड़ित जोड़े के पुनर्जन्म की स्टोरियां थीं, स्वर्ग जाने वाली सीढ़ी की स्टोरियां थी और गायों के दूध का सेवन करने वाले एलियन के किस्से थे. ऐसी ढेरों स्टोरियों की बाढ़ सी आ गई थी.
जहां इसके प्रतिद्वंद्वियों के पास सनसनी, क्राइम रिपोर्टर और क्राइम फाइल जैसे सनसनीखेज और अपमानजनक अपराध शो थे, जो देर रात तक भी दर्शकों को आकर्षित करते थे, आजतक ने इसकी भरपाई जुर्म और वारदात जैसे कार्यक्रमों से की. चैनल ने “सास, बहू और बेटी” का प्रसारण शुरू कर दिया, जिसमें रोजमर्रा के टेलीविजन धारावाहिकों के एपिसोड में आने वाले ट्विस्ट को दोहराया जाता. आजतक ने इसके अलावा सुबह के वक्त ज्योतिष पर आधारित “आपके तारे” जैसे शो की शुरुआत भी की. अन्य चैनलों की तरह आजतक ने भी अधिक धार्मिक सामग्री प्रसारित करना शुरू कर दिया. आजतक के एक पूर्व प्रोड्यूसर संजय कुमार ने बताया कि, “अगर गुरुवार होता, तो साईं बाबा का दिन माना जाता, उस पर एक शो होता और मंगलवार हनुमान का दिन होता, तो उस पर कुछ प्रसारण होता. अगर यह त्योहार का समय होता, तब त्योहार का कवरेज होता.”
कुमार ने कहा “अमेरिका से कृपालु महाराज हुआ करते थे, जो सुबह 6.30 बजे से सुबह 7 बजे तक अपना शो किया करते थे, क्योंकि अमरीका के समयानुसार यह प्राइम टाइम था.” “इस स्लॉट का भुगतान होता था. यह कार्यक्रम लंबा होता था और संपादित भी नहीं किया जाता था, इसलिए कभी-कभी हमारे सुबह के बुलेटिन में भी देरी हो जाती थी.” इसके अलावा चैनल ने स्वयंभू गुरु निर्मल बाबा से भी पैसे लेकर उनका कंटेट प्रसारित किया.
रामायण के मिथकों में से एक लंका और उसमें वर्णित पौराणिक राम सेतु की कथित खोज के बारे में प्रोग्राम किए गए. शो में हिंदू धर्म और केवल हिंदू-मान्यताओं व प्रथाओं को लेकर ही काम किया जाता था. यह डॉक्यूमेंटी की तरह निर्मित किए जाते थे. एक पत्रकार जो कि इस अवधि में चैनल के साथ था, उसने मुझे बताया कि जल्द ही “हनुमान से जुड़ी हुई कहानियां, उदाहरण के लिए- उनकी ताकत के बारे में या फिर हर इच्छा को पूरा करने वाली कहानियां या एक मंदिर के बारे में जहां का प्रसाद खाने से ही सारी इच्छाओं की पूर्ति हो जाती है जैसे कार्यक्रमों की बाढ़ सी आ गई.”
कुमार ने मुझे बताया कि चैनल ने एक तैयार समाचार बुलेटिन के बदले एक डूबते हुए घोड़े की स्टोरी को चलाना ज्यादा जरूरी समझा जिससे खिन्न होकर उन्होंने आजतक को छोड़ने का फैसला किया. “वे उसे बचाने की कोशिश कर रहे थे और वहां एक क्रेन भी रखी हुई थी.” उन्होंने याद करते हुए कहा “यह बहुत ही अच्छा दृश्य था.”
आजतक के कई पूर्व पत्रकारों से मैंने उस कुख्यात घटना का जिक्र भी किया जब चैनल ने कथित ड्राइवर रहित कार का एक धुंधली क्लिप को प्रसारित किया था.
वरिष्ठ पत्रकार अनिल चमड़िया ने मुझे बताया, “जब आप समाचार के साथ धर्म का मिश्रण कर रहे होते हैं और जब आप इसे समाचार बनाने की कोशिश कर रहे होते हैं, तब जाहिर है कि इसके लिए बहुत पहले से तैयारियां कर ली जाती हैं. ऐसे फैसले रातों रात नहीं लिए जाते हैं.” उन्होंने आगे कहा, “गंभीर समाचार के अर्थ के मायने बदलकर रख दिए गए, जिसका परिणाम यह हुआ कि हिंदुत्व, धर्म और राष्ट्रवाद जैसे मसले समाचार के विकल्प बन गए हैं.”
आजतक के कई पूर्व पत्रकारों ने मुझे बताया कि चैनल केवल अपने प्रतिद्वंद्वियों की नकल कर रहा था और टीआरपी की लड़ाई में ऐसा करने के अलावा उनके पास और कोई चारा नहीं था. जब मैंने प्रतिद्वंद्वी चैनलों के साथ काम करने वाले पत्रकारों से बात की तो उनमें से कई ने कहा कि वे आजतक का अनुसरण करने के लिए मजबूर हैं. ऐसे में किसी को भी इस खेल में निर्दोष देखना थोड़ा मुश्किल है.
आजतक के साथ इस दौर में काम कर चुके एक पत्रकार ने कहा, “आजतक एक स्थापित चैनल के रूप में तैयार हो चुका था. वे अच्छी पत्रकारिता जारी रख सकते थे और इसके बावजूद अपनी बढ़त बनाए रखने के लिए काम कर सकते थे. यह काम आसान नहीं था, लेकिन यह संभव हो सकता था. इसके बजाय आजतक ने दूसरा रास्ता चुना, आसान रास्ता, शॉर्टकट.”
चैनल के एक पूर्व कर्मचारी ने मुझे बताया कि उस समय समाज खुद को धार्मिकता और सनसनीखेजवाद के पक्ष में बदल रहा था. उन्होंने कहा टेलीविजन पर मौजूद सामग्री और लोगों की मानसिकता में परिवर्तन के बीच, “मेरे लिए यह पहचानना मुश्किल है कि ऐसा कौन सा कारण था और दर्शकों को क्या प्रभावित कर रहा था”. हालांकि, संजय कुमार ने मुझे बताया कि “यह सब गैर-जरूरी था. कहने के लिए हम ऐसी चीजों से खेल रहे थे जिसका कोई विकल्प नहीं था, क्योंकि तब लोग यही सब देखना चाहते थे.” उन्होंने आगे कहा कि “मेरे हिसाब से असल में लोग वही देख रहे थे, जो हम उन्हें दिखा रहे थे.”
इसी अवधि में आजतक के साथ काम कर चुके एक पत्रकार ने कहा, “आज अगर हम देखें कि मोदी इस सबके बीच कैसे उभरे, तो हमें उस माहौल पर पहले विचार करना होगा, जिसमें टेलीविजन ने सबसे ज्यादा योगदान दिया था.” उन्होंने आगे कहा, “हमारे दर्शक उस सामग्री से रूबरू हो रहे थे जिसे हम उन्हें दिखा रहे थे. इसी में हमारी राजनीति भी परिलक्षित होती है.” “देखिए, ऐसा ही हुआ” आजतक के एक संपादकीय सदस्य ने मुझे बताया. उन्होंने कहा “लेकिन कुछ वर्षों में हमें एहसास हुआ कि हम ऐसा नहीं कर सकते हैं और हमने इसे सही करना शुरू किया.” हालांकि आजतक के हालिया काम पर एक सरसरी नजर डालें, तब भी यह दर्शाता है कि उस अवधि की आदतें अभी भी चैनल में जीवित हैं.
कुछ साल पहले रोहित सरदाना जो कि पहले जी न्यूज पर शाम 5 बजे आने वाले एक लोकप्रिय शो ताल ठोक कर के होस्ट थे, आजतक में चले आए थे. सरदाना 2016 में कई अन्य मसलों के साथ ही जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में जब कई छात्रों पर देशद्रोह का आरोप लगाया गया था और उसके बाद उपजे विवाद पर अपने पक्षपाती और अति-राष्ट्रवादी कवरेज के चलते चर्चाओं में आए थे. मीडिया समीक्षक विनीत कुमार ने सवालिया लहजे में कहा “क्या आजतक नहीं जानता था कि रोहित सरदाना किस तरह की एंकरिंग के लिए पहचाने जाते हैं? लेकिन रोहित सरदाना की नियुक्ति से पहले ही उन्होंने उसके शो के लिए वह दर्शक जुटा लिए थे, जो उनके साथ पहले ही जुड़ चुके थे. ...और यह हर जगह होता है, सफलता सबको चाहिए.”
आजतक की एंकर श्वेता सिंह ने 2017 में “ईश्वर एक खोज : रामायण के पीछे राज” नाम से एक सीरीज पेश की. धर्म आज भी हवा में मौजूद है. इस साल की शुरुआत में जब खबरें आनी शुरू हुईं कि बेरोजगारी की दर पिछले चार दशक में अपने उच्च स्तर पर पहुंच गई है, इसके एक एपिसोड का शीर्षक था, “बेरोजगारी हो या बीमारी, हर कष्ट हरेंगे ये हनुमान जी के मंत्र”. हाल ही के अन्य एपिसोड के शीर्षक थे, “ऐसी है केदारनाथ की महिमा, जहां चौथी बार पहुंचे मोदी” और “शिव की शक्ति, मोदी की भक्ति”.
आजतक के पूर्व प्रोड्यूसर ने कहा, “जिस विचार के साथ इसे शुरू किया गया था, वह पूरी तरह से खत्म हो गया है.” उन्होंने आगे कहा, “अगर भगवान दिखाने से उन्हें टीआरपी मिलती है तो वे भगवान को दिखाएंगे, अगर यह हनुमान से मिलेगी तब वे हनुमान को दिखाएंगे और अगर यह किसी ड्राइवर रहित कार से मिलती है तब यही चलेगा और अब चूंकि यह मोदी से मिल रही है, इसलिए मोदी.”
आजतक की शुरुआत के पहले दशक के अंत तक टेलीविजन, समाचारों को भुनाने के मौके पर जुटा रहा. कांग्रेस की अगुवाई वाली सरकार ने पत्रकारों को घोटालों और घोटालों की बंपर पैदावार की कवरेज का तोहफा दिया और कुछ ने ऐसा ही किया. सामाजिक कार्यकर्ता अन्ना हजारे 2011 में एक देशव्यापी भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन के प्रतीक बन गए और भ्रष्टाचार विरोधी कानून की मांग को लेकर बड़े पैमाने पर प्रदर्शन इसके अगले वर्ष भी जारी रहे.
चार साल तक आजतक के साथ काम कर चुके एक पत्रकार ने कहा, “विरोध की आवाजों वाली खबरों की बाढ़ आ गई. कुछ समय के लिए, ऐसा लगा कि भारतीय समाचार प्रतिष्ठान शक्तिशाली हैं और यह नैतिक हैं.” मीडिया समीक्षक विनीत कुमार ने मुझसे कहा, “अन्ना आंदोलन का सबसे बड़ा योगदान उस विश्वसनीयता को बहाल करना था जो समाचार चैनलों ने खो दी थी.”
लेकिन टीआरपी की लत कभी नहीं छूटी. आजतक के एक अन्य दिग्गज पत्रकार ने मुझे बताया कि “एक तरह से यह दुखद था, क्योंकि अन्ना हजारे टीआरपी बटोरने के आइकन बन गए थे. उन्हें बहुत कवरेज मिली और इससे उन्हें खूब पैसे भी मिल रहे थे.”
यह वही दौर था जब अर्नब गोस्वामी राष्ट्रीय स्तर पर पहचान बटोर रहे थे. अंग्रेजी भाषा के चैनल टाइम्स नाउ पर उनके ब्लॉकबस्टर डिबेट शो में गोस्वामी सरकार के खिलाफ जमकर आग उगलते हुए पैनेलिस्टों पर भड़कते हुए नजर आते थे. नाराजगी और शोर के बीच दर्शकों की रात रोमांचित हो रही थी. आजतक के साथ चार सालों तक काम कर चुके पत्रकार ने मुझे बताया कि गोस्वामी का मॉडल कुछ “ऐसा था कि उसमें रिपोर्टर की भूमिका बेहद कम थी या फिर उनकी जरूरत ही नहीं थी, एंकर ही सब कुछ था. चेहरा ही कंटेंट था, यही विचारधारा थी और यही संपादकीय निर्णय भी था.” उन्होंने कहा, “देखते-देखते अन्य सभी एंकर भी ऐसे ही बनते चले गए. उन सभी ने एक ही फॉर्मूला अपनाया.”
आजतक के कई पूर्व कर्मियों ने मुझे बताया कि ग्रुप ने एसपी सिंह की मृत्यु के बाद किसी एक व्यक्ति के साथ खुद की पहचान बनाने के ख्याल को ही दूर कर दिया. आजतक के एक पूर्व रिपोर्टर ने कहा, “विचार यह था कि बजाए इसके एंकरों को बदल-बदल कर काम किया जाए, ताकि विभिन्न प्रकार के चेहरे चैनल की पहचान हों. इसके चलते लंबे समय तक एंकर्स को प्रोमोट नहीं किया गया. हाल ही में कम से कम पाँच साल पहले तक ऐसा रहा.”
गोस्वामी ने 2016 के अंत में टाइम्स नाउ छोड़ दिया और इसके अगले ही वर्ष एक नया चैनल रिपब्लिक टीवी लॉन्च किया. रिपब्लिक टीवी को भारी-भरकम विज्ञापन अभियान चलाकर प्रचारित किया गया. देश के कई प्रमुख शहरों में होर्डिंग बोर्ड लटकाए गए. इनमें से एक में गोस्वामी की एक तस्वीर के साथ कहा गया “अर्नब, जल्द ही आपके बीच.” इंडिया टुडे ग्रुप ने भी इसी युक्ति को अपनाया और अर्नब को चुनौती देते हुए अंजना ओम कश्यप के होर्डिंग्स तन गए जिन पर लिखा था, “अंजना पहुंच चुकी हैं आपका इंतजार कर रही हैं”.
(तीन)
चिदंबरम प्रकरण को शूट करने के बाद जब मैं फिर से बात करने के लिए बैठी तब कश्यप ने अपने स्कूली दिनों के बारे में मुझे बताया, “मेरे अंक हमेशा 90 फीसदी के आस-पास होते थे”. 1970 के दशक के मध्य में जन्मी कश्यप की परवरिश रांची शहर में हुई है जो कि तब बिहार में था और अब झारखंड की राजधानी बन गया है. कश्यप अपने बड़े भाई के साथ ही रांची में स्थित अपने घर में पली-बड़ी, जहां उनके माता-पिता ने यह सुनिश्चित किया कि वे इस तथ्य को कभी नहीं भूलें कि उन्हें अपना करियर भी बनाना है.
कश्यप ने लोरेटो कॉन्वेंट स्कूल में कुछ प्रारंभिक वर्ष बिताए. उन्होंने कहा “कॉन्वेंट बहुत ही अलग तरह की जगह होती है, जहां सिस्टर्स होतीं हैं और बाकी चीजें होती हैं. सौभाग्य से, जब हम स्कूल में थे, हमारे पास आयरिश संकाय था और वे वास्तव में बहुत अच्छे थे. इसके अलावा, इसने मेरे व्यक्तित्व को संवारने और हर चीज में काफी मदद की, खास तौर से अंग्रेजी भाषा में.”
कश्यप के पिता ओम प्रकाश तिवारी 1971 में जब भारत-पाकिस्तान युद्ध में शामिल होने के लिए गए, तब वह भारतीय सेना में शॉर्ट-सर्विस कमीशन पाकर एक डॉक्टर के रूप में वहां तैनात थे. उनकी तैनाती जम्मू-कश्मीर के एक सुदूर जिले पुंछ में की गई थी, जो नियंत्रण रेखा और तीन तरफ से सीधे सैन्य टकराव वाला इलाका था. “इधर देखो” कहकर कश्यप ने मुस्कुराते हुए अपने फोन पर एक ब्लैक एंड व्हाइट फोटो दिखाई. इसमें पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के साथ कई वर्दीधारी पुरुष नजर आ रहे थे, जिनमें उनके पिता भी शामिल थे, जो चौड़े कंधों वाले और सख्त शख्सियत जान पड़ रहे थे. कश्यप ने कहा, “मेरी परवरिश इस तरह की शख्सियत के साथ हुई है, जो मुझसे कहते- 'आपको राज करना है.' मुझे लगता है कि यह एक अनोखा परिवार था, जिसमें बेटे से ज्यादा तवज्जो मुझे मिलती थी. शायद इसलिए मेरे घर में बेटे को सिर पर चढ़ाकर नहीं रखा जाता.”
पहले लोरेटो में और जब वह बाद में रांची के दिल्ली पब्लिक स्कूल में पढ़ने लगीं, तो कश्यप को हेड गर्ल बनाया गया, इसका जिक्र कम से कम तीन दफा पूरी बातचीत में उन्होंने मुझसे किया मानों यह उनकी शख्सियत के लिए कितना महत्वपूर्ण हो. वह बहस करने से प्यार करने लगी. उसने कहा, “आप जानते हैं, छोटे शहरों में यह कैसा होता है. आप महत्वाकांक्षी होते हैं और आप जीवन में आदर्शों और उन विचारों की तलाश कर रहे होते हैं जो जीवन को प्रेरित कर सकें.”
जब तक कश्यप ने स्नातक नहीं कर लिया, तब तक उनकी शैक्षणिक योग्यता का मतलब था कि उनका रास्ता साफ है. कश्यप ने कहा “आप जानते हैं कि आपके पास विज्ञान का अध्ययन करने के अलावा कोई विकल्प नहीं है. कला का मतलब था कि आप सिर्फ एक गृहिणी होंगी, इसका मतलब था आप किसी और चीज की तलाश में नहीं हैं.”तो असल में वह विज्ञान पढ़ रही थीं, हालांकि उनका इसे पेशेवर रूप में आगे बढ़ाने का कोई इरादा नहीं था.
कश्यप रांची से बाहर निकलना चाहती थीं. उन्होंने मुझसे कहा, वहां रुकना ऐसे था जैसे फंसे हुए मेंढकों का कुएं में रहना. दिल्ली विश्वविद्यालय में प्रवेश के लिए पंजीकरण कराने के लिए कश्यप को अपने पिता के साथ दिल्ली की यात्रा करनी थी, लेकिन उनकी मां बीमार हो गई और उनके पिता को घर पर ही रुकना पड़ा. वह अकेले ही दिल्ली आईं जहां वह अनजान थीं. उन्हें दिल्ली विश्वविद्यालय में वनस्पति विज्ञान में एडमिशन मिल गया, जहां उन्होंने ऑनर्स की उपाधि प्राप्त की.
विश्वविद्यालय में रहते हुए, उन्होंने अनिच्छा से मेडिकल कॉलेज के लिए एक प्रवेश परीक्षा दी, जिसे वह पास करने में असफल रहीं. इस दौरान उन्होंने बहस में शिरकत करना भी जारी रखा और अपने कॉलेज के छात्रावास की अध्यक्ष बन गईं. कश्यप ने कहा “यह मेरे खून में है, एकदम. हमारा नेता कैसा होता है. मुझ पर इन कार्यक्रमों के आयोजन की जिम्मेदारी थी, जहां संकाय सदस्य और छात्र बोलने के लिए मौजूद होते थे, यह छोटी वाद-विवाद प्रतियोगिता जैसा होता था.”
यह वह दौर भी था जब वह अपने पति मंगेश कश्यप से मिली थीं. उन्होंने सार्वजनिक सेवा की परीक्षा उत्तीर्ण की और दिल्ली, अंडमान और निकोबार द्वीप समूह में पुलिस सेवा में शामिल हो गए. वह 1995 कैडर के रूप में अपनी सेवाएं दे रहे हैं.
विश्वविद्यालय ने कश्यप को सक्रियता का जुनून दिया. उन्होंने अपनी मास्टर डिग्री के लिए दिल्ली स्कूल ऑफ सोशल वर्क में दाखिला लिया. शुरुआत में उनके माता-पिता ने इसका विरोध किया, लेकिन बाद में वह इसके लिए राजी हो गए. कश्यप ने शोध और फील्ड विजिट को एक “जीवन बदलने वाले” वर्ष की तरह याद किया और कहा, “आपको लगता है कि आप कुछ बदलाव कर रहे हैं, आप उन लोगों में से हैं जो बदलाव के बारे में बात करते हैं.”
1990 के दशक के अंत में कश्यप बहुराष्ट्रीय कंपनी डॉव मोटर्स में शामिल हो गईं. “मैं डॉव मोटर्स के कारखाने में जाती थी, कामगारों के साथ काम करती थी और अपने कर्मचारियों को सलाह देती थी.” एक साल में ही वह इस नौकरी से ऊब गईं. “मुझे मजा नहीं आ रहा था इसलिए मैंने वह नौकरी छोड़ दी.”
एनडीटीवी इंडिया के पूर्व पत्रकार ने कहा, “अंजना ओम कश्यप से पहले, ऐसी बहुत कम महिला एंकर्स थीं, जिन्हें आक्रामक माना जाता था. इस पर काफी हद तक पुरुषों का वर्चस्व था. विशेष रूप से हिंदी मीडिया में आपने वास्तव में इससे पहले महिलाओं को इस भूमिका में नहीं देखा होगा.”
शुरुआत में वह एक गैर सरकारी संगठन में शामिल हो गईं और उत्तरी-पूर्वी दिल्ली में सुंदर नगरी इलाके की एक झुग्गी में काम करना शुरू कर दिया. कश्यप का काम यहां महिलाओं को परामर्श देना और उन्हें कानूनी सहायता मुहैया करवाना था. खासकर तलाक के लिए. कश्यप ने याद करते हुए कहा, “इतनी सारी मुस्लिम महिलाएं अपने घरों में केवल तीन तलाक के चलते कैद थी.”
कश्यप ने यौन उत्पीड़न के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए कई कार्यक्रमों का आयोजन किया- “जहां बताया जाता था कि लड़कियों को आगे आकर बताना चाहिए और उन्हें सूचित करना चाहिए कि कोई व्यक्ति गलत तरीके से छू रहा है, ये इस तरह की चीजें थी.” कश्यप ने कहा इन बातों को अच्छे स्कूलों में पढ़ाया जाता है, लेकिन यह वास्तव में उस तबके के बच्चों तक कभी नहीं पहुंचता जहां इसकी ज्यादा जरूरत है. कश्यप ने यौन उत्पीड़न के पीड़ित लोगों के साथ भी काम किया, जिनमें किशोर और बच्चे भी शामिल थे. इस दौरान विशेष रूप से एक मामला उनके जेहन में ताजा रहा, जिसका उन्होंने मुझसे असहज रूप से जिक्र भी किया.
कश्यप ने कहा, “मैं उसका चेहरा कभी नहीं भूल सकती. मुझे अभी भी याद है, उसकी पूरी योनि फट गई थी. उसे बहुत सारे टाँके लगे थे. गरीब बच्ची, वह केवल पाँच साल की थी. वह बहुत सुंदर थी.” कश्यप ने आगे कहा “बच्ची अपने एक पड़ोसी के घर गई थी, जहां उस शख्स, जो कि एक गार्ड या कुछ और था, उसने इस घृणित काम किया था.”
कश्यप ने कहा कि वह इस मामले को लेकर स्थानीय पुलिस आयुक्त के पास गई और कानूनी तौर पर भी उस बच्ची का मुकदमा लड़ा, बहुत दबाव डाला. कश्यप ने कहा “आप मुझ पर इसके प्रभाव की कल्पना कर सकती हैं”. यह मेरे जीवन का एक भयानक दौर था.
कश्यप ने देखा कि यह उसको सकारात्मक दिशा में नहीं ले जा रहा. “यह कुछ ऐसा था जैसे कि आप किस छोटे से दफ्तर में जाते हैं तो आप कुछ ऐसे व्यक्तियों से मिल रहे होते हैं, जो भीतर तक हिले हुए हैं. आप शायद ही किसी के जीवन को यहां बदल पाते हैं.” इसके कुछ ही सालों के बाद कश्यप ने सामाजिक कार्यों से दूरी बना ली.
कश्यप ने मीडिया में अपने आने को लेकर कहा कि “यह मेरे पति की वजह से हुआ. वह इस बात को लेकर काफी सकारात्मक थे कि मुझे मास कम्युनिकेशन कर लेना चाहिए.”
2000 के दशक की शुरुआत में कश्यप ने दिल्ली में जामिया मिलिया इस्लामिया विश्वविद्यालय में टेलीविजन पत्रकारिता के एक साल के डिप्लोमा कोर्स में एडमिशन ले लिया. कश्यप की अब परवरिश करने के लिए एक जवान बेटी भी थी. उन्होंने बताया कि उनके पास एक निर्धारित समय था, लेकिन पति के समर्थन के चलते वह अपने काम में सफल रही. मंगेश कश्यप तब दिल्ली पुलिस में अपना करियर बना रहे थे. कुछ साल बाद, कश्यप के टेलीविजन में काम करने के शुरुआती वर्षों में, दंपति का एक बेटा भी हुआ.
जामिया ने कुछ साल पहले कश्यप को एक प्रतिष्ठित एलुमुनाई के रूप में सम्मानित किया था. इस अवसर पर एक भाषण में उन्होंने विश्वविद्यालय को श्रेय देते हुए कहा, “इसने मुझे पंख दिए”. उन्होंने कहा कि यह उन्होंने यहीं सीखा कि “भावनाओं का होना महत्वपूर्ण है, लेकिन आप एक पत्रकार हैं, समाचार की रिपोर्ट करें, भावुक न हो जाएं.” और यह भी कहा कि “यदि कोई ऐसा व्यक्ति है जो सोच रहा है कि वह गलती कर बच जाएगा, तब यह आपका कर्तव्य है कि उसकी गलतफहमी को दूर करें.”
कश्यप ने मुझे पाठ्यक्रम के बारे में बताते हुए कहा, “ऐसा ही था, ठीक था मतलब. वे आपको मूल बातें बताते हैं.” उन्होंने वहां रिपोर्ट बनाना और कैमरा चलाना सीखा. इस पाठ्यक्रम के दो प्रशिक्षकों ने मुझे बताया कि उन्हें कश्यप के जामिया में बिताए गए समय की याद नहीं है.
स्नातक होने के बाद, “मैं डीडी में काम के लिए गई और मुझे काम मिल गया.” कश्यप ने कहा. यहां उनकी मुलाकात दूरदर्शन पर एक खोजी शो आंखो देखी के समाचार संपादक शहजाद अख्तर से हुई. अख्तर ने शो की एंकर नलिनी सिंह के साथ मुलाकात कराने में उनकी मदद की. कश्यप को शो के डेस्क पर काम करने के लिए रखा गया था. निस्संदेह, उसने कहा, “अगर दिल्ली में कोई बड़ी घटना होती, तो वे एक रिपोर्टर भेजते हैं.”
एक साल के भीतर ही कश्यप जी न्यूज जैसे बड़े चैनल में पहुंच चुकी थी. उन्हें यहां एक बार फिर से डेस्क पर रखा गया. चैनल में काम करने वाले एक संपादक ने मुझे बताया कि उनकी नियुक्ति को लेकर प्रबंधन की ओर से निर्देश आए थे. “वह एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी की पत्नी हैं.” उन्होंने याद करते हुए कहा, “उन्होंने अतीत में हमारी मदद की थी.”
संपादक ने मुझे बताया, “वह इसे लेकर स्पष्ट थी कि उन्हें एक न्यूज एंकर बनना है.” हालांकि कश्यप के बोलने के अंदाज में चैनल के संपादकों को वह हुनर नजर नहीं आ रहा था. संपादक ने कहा कि उन्होंने कश्यप को बताया कि जब वह खबर पढ़ रही हों, “तब कोई भी यह न बता पाए कि आप बिहारी हैं.”
कश्यप ने जी न्यूज में अपने डेस्क में किए गए काम के बारे में कहा कि “मैं किसी को प्रभावित नहीं कर रही थी, लेकिन किसी तरह, मैं हार भी नहीं मानना चाहती थी.” यह डिजिटलीकरण से पहले का दौर था और सभी फुटेज टेप पर होते थे. “भगवान बचाए, हम उन टेपों के साथ भागते रहते थे. रात की पाली में काम करते थे. यह पागलपन वाला दौर था.”
कश्यप ने कहा कि चैनल में उनके कार्यकाल के दौरान जी न्यूज की संपादक अल्का सक्सेना “मुझे बताती रहती थी कि 'ऑडिशन टेप बनाओ, एंकरिंग करने की कोशिश करो'.” धीरे-धीरे अपनी भाषा पर काम करते हुए कश्यप ने प्रोड्यूसर से एक स्पेशल फीचर की एंकर तक की प्रगति का अपना सफर तय कर लिया था.
2007 में कश्यप ने जी न्यूज को अलविदा कह न्यूज 24 का दामन थाम लिया जो कि एक नया हिंदी समाचार चैनल था. न्यूज 24 ने कश्यप के आने के कुछ सालों बाद एक डिबेट शो दो टूक को लॉन्च किया और इसका एंकर उन्हें बना दिया गया. न्यूज 24 के एक प्रोड्यूसर ने कहा, “इसका बहुत बड़ा आधार यह था कि इसमें ठहराव और हिचकिचाहट के लिए कोई जगह नहीं थी.” उन्होंने बताया, “जो कुछ भी उनके दिमाग में था, वह उसे कहते थे, अगर किसी ने ऐसा कुछ न कहा हो जिसे चुनौती देने की जरूरत समझी जाए.” कश्यप ने उस चरित्र को बहुत अच्छी तरह से जिया. “वह भी सोशल मीडिया पर गंभीरता से लिए जाने वाली पहली समाचार एंकरों में से एक थी.”
कश्यप ने ऑन-एयर एक खास मुखर शैली विकसित कर ली थी. प्रोड्यूसर ने कहा अपनी शैली में उन्होंने कई सारी तरकीबें अर्णब गोस्वामी से ली थीं. द टाइम्स नाउ के एंकर के पास अपनी बातों पर जोर देने के लिए एक पेन या पेंसिल से इधर-उधर इशारे करने की शैली थी, “उन्होंने भी पेंसिल से इशारे की शैली को अपनाया. अब भी आप इसे कभी-कभी देख सकते हैं.”
एनडीटीवी इंडिया के पूर्व पत्रकार ने कहा, “अंजना ओम कश्यप से पहले, ऐसी बहुत कम महिला एंकर थीं जिन्हें आक्रामक माना जाता था. पुरुष पत्रकार ही इस पर काबिज थे.” विशेष रूप से हिंदी मीडिया में, “आपने वास्तव में महिलाओं को उस भूमिका में नहीं देखा है.”
2012 में कश्यप ने स्टार न्यूज पर एंकर बनने के लिए न्यूज 24 को छोड़ दिया जो कि रूपर्ट मर्डोक के न्यूज कॉर्प की सहायक स्टार इंडिया का हिंदी न्यूज चैनल था. कुछ ही महीनों के भीतर स्टार इंडिया समाचार व्यवसाय से पीछे हट गया और स्टार न्यूज को एक प्रतिद्वंद्वी मीडिया समूह को बेच दिया गया. कश्यप अब नए अवसर की तलाश में थी.
स्टार के एक पूर्व कार्यकारी ने मुझे बताया कि एक समय पर, “किसी ने मुझे उन्हें अपने साथ जोड़ने के लिए कॉल की थी.” और “यह उल्लेख किया गया था कि उनका पति पुलिस में है.” कार्यकारी ने उन्हें अनदेखा कर दिया था. “मेरा नियम था कि यदि आप एक पत्रकार बनना चाहते हैं और कोई रसूखदार आदमी आपको मुझसे मिलाए, तो यह कोई बड़ी बात नहीं हो सकती.” उन्होंने जोर देकर कहा, “निश्चित रूप से वे मेरे कार्यकाल में नियुक्त नहीं की गई थीं.”
2012 के अंत तक उन्होंने आजतक में नौकरी पा ली थी. कश्यप ने मुझे बताया, “ऐसे बहुत सारे चैनल हैं जो सरकारी चैनलों की तरह दिखते हैं”. उन्होंने आगे कहा, “आप उसका हिस्सा नहीं बनना चाहेंगे.” आजतक से जुड़ने को लेकर जब मैंने उनसे पूछा, उन्होंने कहा “यहां किसी की चाटुकारिता नहीं करते हैं.”
कश्यप ने कहा, “आप तो जानती ही हैं, मैं हमेशा महिलाओं के मुद्दों को लेकर बहुत ही मुखर रही हूं. लैंगिक न्याय और यही सब. खासकर यदि आप एक छोटे शहर से हैं, तब बहुत भेदभाव झेलते हैं, जो आपके चारों ओर बहुत बारीकी से मौजूद रहता है. आप मुक्त मन से ही इससे लड़ सकते हैं.”
दिसंबर 2012 की एक रात दिल्ली में मॉल से घर लौट रही एक लड़की के साथ जघन्य रूप से सामूहिक बलात्कार किया गया. 13 दिन बाद उसकी मौत हो गई. मामला मीडिया में छा गया. इसके बाद उपजे आक्रोश में सड़कों पर भारी भीड़ उमड़ पड़ी. इस अपराध के परिणामस्वरूप बलात्कार के खिलाफ सख्त कानून बनाए जाने की मांग उठने लगी और इसमें शामिल हर वयस्क के लिए मौत की सजा को लेकर लोग आवाज उठाने लगे.
कश्यप तब आजतक के साथ अपनी पारी की शुरुआत ही कर रही थी. उन्होंने याद करते हुए कहा “मैं तब वहीं थी और हम इसे जुनून के साथ कवर कर रहे थे.” कश्यप ने कहा केवल इतने ही मामले नहीं हैं जिन्हें मीडिया कवर कर सकती है, लेकिन अगर “एक चीज प्रतीक बन जाती है, तो यह कुछ बदलाव लाती है. यह जागरूकता बढ़ाती है.”
बलात्कार की इस घटना के कुछ ही दिनों बाद कश्यप अपने एक कैमरपर्सन के साथ रात में राजधानी की सड़कों पर यह जांचने के लिए निकली कि स्थानीय पुलिस ने सुरक्षा में सुधार के कुछ उपाय किए भी हैं या नहीं. जब वह एक व्यस्त सड़क के मुहाने पर रिपोर्ट बना रही थीं, ठीक उसी समय एक कार उनके पास आकर रुकी. “चल चलें” अंदर बैठे तीन लोगों में से एक ने उनसे कहा और जब उन्होंने कैमरे पर गौर किया, तो वे लोग वहां से भाग गए. आजतक ने इस घटना का पूरा एपिसोड प्रसारित किया.
बलात्कार के आरोपों को दबाने के लिए सरकार ने अहम फैसले लिए उदाहरण के लिए- “पुलिस आयुक्त ने मुझे खुद बुलाया” ऐसा कश्यप ने दावा किया. “उन्होंने मुझे सबसे पहले फोन किया ताकि मुझे सारी खबरों के बारे में पता चल सके.”
कांग्रेस की अगुवाई वाली सरकार ने इस घटना पर प्रतिक्रिया देने और देश भर में महिलाओं की सुरक्षा में कमी की जवाबदेही को लेकर खूब जूझना पड़ा. जगह-जगह बढ़ रहे विरोध प्रदर्शन एक नया राजनीतिक रंग ले रहे थे. “आप विश्वास नहीं करेंगी, उस समय जिस तरह के दबाव और फोन कॉल मुझे सरकार की ओर से मिल रहे थे.” कश्यप ने विशिष्ट मंत्रियों का नाम लिए बगैर कहा, लेकिन वे फोन कर रहे थे और कह रहे थे “अब इसे रोको, यह पागलपन की ओर बढ़ रहा है.” हालांकि कश्यप ने रिपोर्ट करना जारी रखा, जैसा कि कई अन्य पत्रकारों ने भी किया. “मैं बहुत अडिग थी. यहां तक कि जब अभी मैं यह कह रही हूं, तब भी मैं रोमांचित हो जाती हूं.”
हालांकि मोदी सरकार के कार्यकाल में लैंगिक न्याय पर कश्यप का रिकॉर्ड उतना ब्लैक एंड व्हाइट नहीं रहा है. फरवरी 2017 में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद ने दिल्ली विश्वविद्यालय में आयोजित एक कार्यक्रम में शामिल हुए वक्ताओं को “राष्ट्र-विरोधी” कहा था. इसके विरोध में डीयू की एक छात्रा गुरमेहर कौर तब काफी चर्चित हुईं. कौर ने एबीवीपी के चरम राष्ट्रवाद और इस्लामोफोबिया के खिलाफ ऑनलाइन अपनी बात रखी. गुरमेहर कौर के पिता कार्तिक युद्ध में मारे गए थे. लेकिन कौर को बलात्कार की धमकियां मिलीं. कश्यप ने इस मुद्दे को लेकर दर्शकों से भरे एक स्टूडियो में “हल्ला बोल” शो में बहस आयोजित की थी.
इस शो के पैनलिस्ट में से एक बीजेपी के प्रवक्ता संबित पात्रा थे, जो एबीवीपी की तरह आरएसएस से जुड़े हुए हैं. डीयू में एबीवीपी के हमले के बाद, एक और विश्वविद्यालय ने 1991 में सेना के जवानों द्वारा कुनैन और पोशपोरा के गांवों में कश्मीरी महिलाओं के सामूहिक यौन उत्पीड़न पर एक पूर्वनियोजित चर्चा को रद्द कर दिया था. पात्रा ने इस चर्चा की ओर इशारा करते हुए कहा था कि यह विश्वविद्यालय देश के खिलाफत करने वाला है.
इसी में एक अन्य पैनलिस्ट कविता कृष्णन थीं, जो ऑल इंडिया प्रोग्रेसिव वीमेन एसोसिएशन और भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी-लेनिनवादी) की नेता हैं. वह सशस्त्र बलों द्वारा यौन हिंसा की मुखर आलोचक हैं. पात्रा ने कृष्णन को यह कहने के लिए देशद्रोही कहा कि सशस्त्र बल यौन अपराध कर सकते हैं और वह यह कहकर “वंदे मातरम” चिल्लाने लगे. कार्यक्रम में मौजूद एक शख्स ने कृष्णन से पूछा कि क्या उन्हें लगता है कि कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है! दर्शकों और पात्रा द्वारा कृष्णन पर लगातार हेकड़ी जमाई जा रही थी.
कृष्णन ने बाद में लिखा:
एंकर ने बहस की शुरुआत की जो कि बलात्कार के खतरों को लेकर थी, वह शो की एकमात्र महिला पैनलिस्ट के लिए राष्ट्रवाद की परीक्षा में बदल दी गई जो कि एक महिला अधिकार कार्यकर्ता भी है. ...टीवी चैनलों ने दिसंबर 2012 के दिल्ली गैंगरेप की घटना में न्याय को अपने निजी धर्मयुद्ध की तरह लड़ा. लेकिन इन्हीं में से कई चैनलों में यह दिखाने की अनुमति है कि बलात्कार के सभी मामलों में न्याय की मांग के लिए सार्वजनिक रूप से लड़ रही महिला अधिकार कार्यकर्ता पर ही सवाल उठा दिए जाएं क्योंकि इनमें वे अभियुक्त भी शामिल हैं, जिन्हें कानूनी लचरता का फायदा मिलता है क्योंकि वे भारत के सशस्त्र बलों से संबंध रखते हैं.
2018 में, उत्तर प्रदेश के उन्नाव में एक किशोरी के साथ सामूहिक बलात्कार में बीजेपी विधायक को दोषी ठहराया गया था. उसी वर्ष, जम्मू और कश्मीर के कठुआ में आठ वर्षीय लड़की के अपहरण, बलात्कार और हत्या के आरोप में आठ लोगों को गिरफ्तार किया गया था. बीजेपी के दो मंत्रियों ने गिरफ्तारी का विरोध किया. कश्यप ने दोनों मामलों पर दृढ़ता से बात की और एक बीजेपी प्रवक्ता से अपने शो पर पूछा, “क्या आपका सिर शर्म से झुकता नहीं है?” जब बीजेपी के एक अन्य प्रवक्ता से कठुआ में गिरफ्तारी का विरोध करने वाले दो मंत्रियों के बारे में पूछा गया, तो उन्होंने इस मुद्दे को यह कह कर दरकिनार करने की कोशिश की कि यह प्रदर्शन उस इलाके में रोहिंग्या मुसलमानों की घुसपैठ को रोकने के लिए था. कश्यप ने इस पर तंज कसा, “इन चीजों को आपस में मत मिलाइए.” कश्यप ने इसे “सांप्रदायिक रंग देने की कोशिश करने के लिए लताड़ लगाई.”
इस साल की शुरुआत में उत्तर प्रदेश के एक ब्राह्मण बीजेपी विधायक की बेटी ने एक वीडियो जारी कर कहा था कि वह अपनी पसंद से एक दलित व्यक्ति से शादी के बाद अपने जीवन को लेकर डरी हुई हैं. वीडियो वायरल हुआ और कश्यप ने स्टूडियो में उस युवती और उसके पति और उसके पिता की मेजबानी की. दंपति ने विधायक के सहयोगियों पर, जो कि लाइव कॉल पर थे, आरोप लगाया कि उन्होंने अपने लोगों को दोनों को एक होटल में ट्रेस करने के लिए भेजा था. सहयोगी ने इससे इनकार किया और युवती से बात करने की कोशिश की लेकिन कश्यप ने उसे बात नहीं करने दी. उसने दंपति को होटल के मालिक को फोन लगाने को कहा, ताकि वह पीछा करने वाले पुरुषों को देखकर पहचान सके. तब कश्यप ने खुद विधायक को फोन किया. विधायक ने कहा कि उन्हें शादी से कोई समस्या नहीं है और उनकी बेटी को उनसे या किसी से भी कोई खतरा नहीं है. उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि पूरी बात एक राजनीतिक साजिश का परिणाम है और साथ ही चैनल पर आरोप लगाया कि उन्होंने विधायक को आतंकवादी के रूप में चित्रित किया है. इन दोनों बिंदुओं पर उसे कश्यप से डांट-फटकार सुनने को मिली. शो के बाद कश्यप को सोशल मीडिया पर दक्षिणपंथी यूजर्स की नफरत का सामना तक करना पड़ा. (2015 में कश्यप ने “सोशल मीडिया पर लिंचिंग” शीर्षक से एक कॉलम प्रकाशित किया था, जिसमें उन्होंने और अन्य प्रमुख हस्तियों ने हिंसक और अक्सर होने वाली यौन शोषण की घटनाओं का जिक्र किया था.)
कई पत्रकारों ने मुझे कश्यप के लैंगिक न्याय के प्रति कड़े रुख के प्रमाण के रूप में इस प्रकरण का हवाला दिया. जब मैंने उनसे इस बारे में पूछा, तो कश्यप ने कहा, “चाहे जो भी हो, संपादकीय बैठक में अगर तय हो चुका है कि आप इसकी एंकरिंग करेंगे, तो यह तय है कि आपको उस शो की एंकरिंग करनी ही होगी.” कश्यप ने बताया कि उन्होंने विधायक से इससे पहले बात की थी लेकिन उन्होंने केवल ऑन एयर बात करने की ही बात दोहराई. “तो मैंने ऐसा ही किया.” कश्यप ने कहा, “बाद में मुझे जिस तरह की ट्रोलिंग का सामना करना पड़ा उससे मैं स्तब्ध थी.” उन्होंने शिकायती लहजे में कहा, “चैनल द्वारा उठाए जाने वाले बहुत सारे निर्णयों को आपका बना दिया जाता है.”
जी न्यूज के एक पूर्व संपादक ने मुझे बताया कि सरकार और पत्रकारों के बीच एक अनकहा नियम है, “मोदी और शाह के बारे में कुछ मत कहो और आप इनके अलावा किसी पर भी बात करने के लिए स्वतंत्र हैं.”
आजतक में कश्यप के बॉस चैनल के समाचार निदेशक सुप्रिया प्रसाद हैं. प्रसाद को न्यूज 24 में बतौर समाचार निदेशक की उनकी पिछली नौकरी से 2011 में काम पर रखा गया था. प्रसाद के आजतक ज्वाइन करने के बाद कई पूर्व न्यूज 24 कर्मचारियों में से कश्यप भी एक हैं.
प्रसाद इससे पहले भी आजतक में बतौर आउटपुट एडिटर काम कर चुके थे. वेबसाइट मीडियाविजिल पर पिछले साल प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार 2007 में यौन उत्पीड़न की शिकायत के बाद उन्हें इस्तीफा देने के लिए कहा गया था, जब एक महिला कर्मचारी ने उन पर अवांछित सलाह देने और लिफ्ट में उनके साथ जबरदस्ती करने की कोशिश करने का आरोप लगाया था. मीडियाविजिल की रिपोर्ट में कहा गया है कि प्रसाद के खिलाफ आरोप उस समय सही पाए गए थे. रिपोर्ट में यह भी उल्लेख किया गया है कि 2017 में एक ऑनलाइन पोस्ट में आजतक की एक पूर्व कर्मचारी ने प्रसाद पर आरोप लगाया था कि उन्होंने 2012 में चैनल को दुबारा ज्वाइन करने के बाद उसके साथ छेड़खानी की कोशिश की थी. पूर्व कर्मचारी के पोस्ट में कहा गया है कि आजतक ने एक जांच समिति बनाई थी लेकिन इसमें किसी बाहरी सदस्य को शामिल नहीं किया गया था, जैसी कि उन्होंने इच्छा जताई थी और उनकी शिकायत को खारिज करने से पहले एक-डेढ़ साल का समय लिया गया.
मैंने इंडिया टुडे ग्रुप के चेयरमैन अरुण पुरी और प्रसाद को इस रिपोर्ट के बाबत सवाल भेजे. इस पर समूह की कॉर्पोरेट संचार टीम ने जवाब दिया कि रिपोर्ट गलत थी और कहा कि “सभी शिकायतों को विशाखा दिशानिर्देशों में निर्धारित प्रक्रिया के तहत निपटा दिया गया है और विधिवत रूप से मामले को बंद कर दिया गया है.” इसमें कहा गया है, “कार्यस्थल में यौन उत्पीड़न की रोकथाम हमारी एक नीति है.” “एक आंतरिक वितरण, रिपोर्टिंग और शिकायत से निपटने के परिप्रेक्ष्य में 100 फीसदी अनुपालन किया जाता है. हर शिकायत को दोनों पक्षों की लिखित सूचना के साथ संबोधित और बंद किया जाता है. सहकर्मी के लिखित शिकायत दर्ज करने के लिए अनिच्छुक होने पर भी अनुशासनात्मक, सुलह और सहायक उपाय प्रदान किए जाते हैं.”
प्रसाद को टेलीविजन समाचार उद्योग में “टीआरपी किंग” के रूप में पहचाना जाता है और रेटिंग लाने के लिए उनकी प्रतिष्ठा है. आजतक में उनका पहला कार्यकाल चैनल के शुरुआती दौर में सनसनीखेज और धार्मिकता के साथ हुआ. आजतक के कई पूर्व पत्रकारों ने मुझे बताया कि “बिना ड्राइवर वाली कार” के बारे में स्टोरी, उनके दिमाग की उपज थी. उन्होंने हाल के वर्षों में कश्यप के कार्यों समेत उनकी कवरेज पर महत्वपूर्ण प्रभाव डाला है.
पिछले साल उनके काम करने के तरीके का सबसे घटिया उदाहरण, बिहार में राज्य की निराशाजनक स्वास्थ्य सेवाओं के चलते इंसेफेलाइटिस के प्रकोप से कई सारे बच्चों के मरने की घटना की रिपोर्टिंग करने दौरान देखने को मिला. कश्यप ने इस दौरान मुजफ्फरपुर की यात्रा की, जहां हाथ में सुनहरे रंग का माइक्रोफोन लेकर वह बीमार बच्चों से भरे एक अस्पताल के आईसीयू में जा घुसीं. वहां उन्हें कमरे में एकमात्र डॉक्टर मिला और कश्यप उसे गंभीर रोगियों का इलाज करते वक्त परेशान किया. आजतक द्वारा इस घटना को प्रसारित किए जाने के बाद कश्यप के व्यवहार की व्यापक स्तर पर निंदा की गई. इंडियन मेडिकल एसोसिएशन ने कहा कि “(उनकी) गैर-जिम्मेदाराना हरकतें उन बहुत से लोगों के जीवन को खतरे में डालती हैं, जिनकी लड़ाई लड़ने का दावा वह कर रही हैं.”
स्टार न्यूज के एक पूर्व संपादक ने कहा, “आसान रेटिंग पाने की जुनूनी चाह सबसे बड़ी कमजोरी है. एक बार जब आप देखते हैं कि पाकिस्तान पर बहस से आपको रेटिंग मिल रही है, फिर चाहे कुछ भी हो जाए, यह खबर का एक हिस्सा होगी ही.” और “पाकिस्तान या कश्मीर को कोसने के दौरान पाकिस्तान, पाकिस्तान नहीं होता, मुसलमान हो जाता है और कश्मीर, कश्मीर नहीं रहता, वह भी मुसलामान हो जाता है.”
जैसा कि स्टार के एक पूर्व संपादक इसे देखते हैं, “यह एक प्रकार का मोड़ है.” उन्होंने पूछा, “उदाहरण के लिए आर्थिक मंदी के बारे में कितने चैनलों ने रिपोर्ट की?”
पिछले साल अगस्त के अंत में सरकार ने आंकड़े जारी किए जिसमें यह दिखाया गया था कि देश का सकल घरेलू उत्पाद पिछले डेढ़ दशक में सबसे धीमी दर से बढ़ रहा है. आजतक की वेबसाइ में मौजूद सितंबर महीने से “हल्ला बोल” के 28 एपिसोड में से 9 पाकिस्तान पर थे. 4 एपिसोड कश्मीर पर और 2 असम में नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटिजन्स पर आधारित थे, जिसे कई आलोचकों ने मुस्लिमों को कोसने के आधिकारिक प्रयास के तौर पर ही देखा. दो एपिसोड में मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल के पहले 100 दिनों के प्रदर्शन पर चर्चा हुई. इसके अलावा दो अन्य में अच्छे मुस्लिम और बुरे मुस्लिम को लेकर चर्चा थी, जो आरएसएस से जुड़े एक संगोष्ठी के बहाने की गई, जहां एक मुगल राजकुमार दारा शिकोह की तुलना दूसरे यानी कि औरंगजेब से की गई थी. इनमें अर्थव्यवस्था पर कोई एपिसोड नहीं था.
पिछले साल वेबसाइट कोबरापोस्ट के स्टिंग ऑपरेशन में शर्मिंदा हुए कई मीडिया संगठनों में से एक इंडिया टुडे ग्रुप भी था. हिंदू संगठन के प्रतिनिधि के रूप में प्रस्तुत हुए एक व्यक्ति ने मीडिया मालिकों से संपर्क कर तीन चरणों में तीन प्रकार के विज्ञापन बनाने और चलाने का प्रस्ताव दिया. इनमें भगवद गीता से सबक, विपक्षी नेताओं के खिलाफ अभियान चलाना और 2019 के चुनाव तक सांप्रदायिक ध्रुवीकरण को तेज करने के संदेश चलाने का प्रस्ताव रखा गया. जब वह समूह के वाइस चेयरपर्सन और अरुण पुरी की बेटी कली पुरी से मिले, तो उन्होंने उनसे कहा, “पहले चरण में मैं आपके साथ गठबंधन कर रही हूं, क्योंकि मुझे लगता है कि लोग खो गए हैं, विशेष रूप से युवा लोग क्योंकि वे नहीं जानते हैं.” पुरी ने स्पष्ट किया कि “संपादकीय के साथ किसी भी प्रकार का हस्तक्षेप नहीं होगा - संपादकीय वही होगा जो वह कर रहे हैं. उन्होंने कहा, “किसी भी प्रकार की विज्ञापन सामग्री उनके द्वारा तय नहीं की जाती है. जब तक यह दिशा-निर्देशों के भीतर है, तब तक किसी को भी जो भी सामग्री चाहते हैं डालने की अनुमति है.”
इस शख्स ने कहा, “अपने राजनीतिक लाभ के लिए जो भी अभियान आप चला रहे हैं, उसे बदलने में हम काफी होशियार हैं.” उसने आगे कहा “स्वतंत्रता हमारे पास होनी चाहिए इसलिए... बाद में ऐसा नहीं होना चाहिए कि आप लोग प्रचारकों के हाथों में लोगो पाए जाने की शिकायत करें. या कि फिर हिंदुत्व का माहौल बनाया है या हमने ध्रुवीकृत किया है.” पुरी ने कहा, “मैं तुम्हारी दोस्त बनकर खड़ी हूं, लेकिन हम हर चीज के लिए सहमत नहीं हैं.”
कोबरापोस्ट को भेजे कानूनी नोटिस में इंडिया टुडे ग्रुप ने स्टिंग ऑपरेशन को अवैध, दुर्भावनापूर्ण और निंदनीय बताया. जब मैंने कली पुरी के स्टिंग के बारे में सवाल भेजे, तो समूह की कॉर्पोरेट संचार टीम ने उनकी ओर से जवाब दिया, “इंडिया टुडे ग्रुप भारत के अग्रणी मीडिया संगठनों में से एक है और चार दशकों से अधिक समय से मौजूद है. इंडिया टुडे ग्रुप के लिए अखंडता और पारदर्शिता त्रुटिहीन प्रतिष्ठा है. एक संगठन के रूप में यह “पेड न्यूज” की अनैतिक और गैरकानूनी प्रथा में शामिल नहीं है. एक नीति के रूप में, वाणिज्यिक गतिविधियों ने किसी भी प्लेटफॉर्म पर संपादकीय सामग्री को कभी भी प्रभावित नहीं किया है. विज्ञापन और संपादकीय हमारे संगठन और टेलीविजन में अलग-अलग विभाग हैं और प्रिंट में स्पष्ट रूप से विज्ञापन-प्रसार के रूप में विज्ञापन सामग्री को चिह्नित किया जाता है और इस नीति को बनाए रखने के लिए आवश्यक कदम उठाए जाते हैं, जिसका हम सम्मान रखते हैं.”
मैंने अरुण पुरी से उनकी प्रतिक्रिया के बारे में भी पूछा कि आजतक के मानक शुरुआती दिनों के मुकाबले क्यों फिसल गए. संचार टीम ने जवाब दिया, “आजतक के दर्शकों ने चैनल को 19 साल से नंबर एक पर बनाए रखा है. यही तथ्य है, बाकी सभी व्यक्तिगत राय हैं.” इसमें कहा गया है कि इंडिया टुडे ग्रुप को “अपने लोकतांत्रिक न्यूज रूम पर गर्व है, जहां सभी पक्षों को समान रूप से एक्सपोजर दिया गया है. हमारा प्रयास यह सुनिश्चित करना है कि हर रिपोर्ट में हम निष्पक्ष हों. हम किसी पूर्व-निर्धारित ढांचे पर काम नहीं करते हैं, इसके बजाये हर रिपोर्ट/ मुद्दे/नीति की योग्यता उसके संदर्भ के आधार पर तय की जाती है.”
जैसा कि इंडिया टुडे समूह इसे देखता है, “एक ध्रुवीकृत पर्यावरण में दर्शक और टिप्पणीकार एक पूर्वाग्रह की पुष्टिकरण की तलाश में हैं कि क्यों एक नेटवर्क जो एक पक्ष लेने से इनकार करता है, दोनों पक्षों द्वारा अलग-अलग समय पर असंतुलित माना जाएगा और यही इसके संतुलन का प्रमाण है!”
जब मैं इंडिया टुडे स्टूडियो में कश्यप से मिली तो उन्होंने कहा था कि वह मुझसे फिर से बात करेंगी. मैंने दूसरे साक्षात्कार के लिए समय लेने की बार-बार कोशिश की, लेकिन उन्होंने मुझे एक भी जवाब नहीं दिया. मैंने कश्यप से उनकी कवरेज, धर्म और जाति पर उनकी स्थिति के बारे में अपने सवाल उन्हें ईमेल किए. मैंने इस बात का जवाब देने के लिए भी कहा कि क्या उनके पति की स्थिति ने उन्हें पेशेवर अवसरों तक उनकी पहुंच में भूमिका निभाई है? कश्यप ने मुझे फोन पर बताया कि वह मेरे प्रश्नों के उत्तर देंगी, लेकिन उन्होंने नहीं दिए.
समाचार माध्यमों से दूर होने और टीआरपी की ओर टेलीविजन मीडिया की भागदौड़ पर बात करते हुए एनडीटीवी इंडिया के एक पूर्व पत्रकार ने मुझसे कहा, “अगर उन्हें पता होता कि यह ऐसा रूप लेगा, तो वह ऐसा नहीं करते.” उन्होंने अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए कहा, “लेकिन, उन्होंने ऐसा नहीं किया. यह प्रवृति जब से शुरू हुई है, जिनके पास मीडिया की सत्ता है, उनकी पृष्ठभूमि को देखते हुए यह कहना गलत नहीं होगा कि देश में सामाजिक-राजनीतिक परिवर्तन के वही लाभार्थी रहे हैं. इसलिए यह पता लगाने का कोई फायदा नहीं था कि उन्हें किस तरह के मूल्य निर्धारित करने चाहिए थे. हमारे नेताओं में से अधिकांश हाशिए के समुदायों से आते थे, तो वह जरूर सोच सकते हैं कि समाज के भीतर प्रगतिशील विचार प्रक्रिया का परिचय करवाया जा सकता है, लेकिन जो लोग मीडिया संगठनों का नेतृत्व कर रहे थे और उनका नेतृत्व करना जारी रखे हुए थे, उनके पास यह भूख नहीं थी. उनकी भूख प्रभुत्व के लिए थी, परिवर्तन के लिए नहीं.” कश्यप ने मुझसे कहा, “बतौर पत्रकार मुझे यकीन नहीं है कि मैं इस सब पर अपने विचार रखना चाहूंगी क्योंकि तब मुझे पक्षपाती माना जाएगा.” फिर वह अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए कहती हैं, “व्यक्तिगत रूप से मैं आरक्षण विरोधी हूं. मुझे लगता है कि आरक्षण सबसे बड़ा अन्याय है.”
कश्यप ने बताया, “मेरे पिता डॉक्टर ओमप्रकाश तिवारी हैं. हम भूमिहार हैं. मेरे पति ब्राह्मण हैं. हम सभी ऐसे परिदृश्य में पले-बढ़े हैं, जहां हम आरक्षण से घृणा करते हैं क्योंकि हमें हमेशा लगता है कि हमारा हिस्सा हमसे छीन लिया गया है. इसलिए इस तरह की परवरिश हमेशा आपके साथ बनी रहती है.” भूमिहार अच्छी तरह से संगठित और राजनीतिक रूप से शक्तिशाली लोग हैं, जिन्हें लंबे समय से ब्राह्मण का दर्जा प्राप्त है. औपनिवेशिक काल में जनगणना के तहत एक बार शूद्रों के रूप में वर्गीकृत होने के बाद उन्नीसवीं शताब्दी के अंत तक वे पुन: “भूमिहार ब्राह्मण” के रूप में पुनर्वर्गीकृत होने में कामयाब रहे थे. आज आधिकारिक रूर से यह जाति “सामान्य वर्ग” में आती है.
1990 में जनता दल के वीपी सिंह के नेतृत्व वाली सरकार ने अन्य पिछड़ा वर्गों के लिए सभी सरकारी नौकरियों में एक चौथाई से अधिक आरक्षण देने की योजना की घोषणा की. अन्य पिछड़ा वर्ग भारतीय आबादी का आधा हिस्सा है और आमतौर पर इसे शूद्रों के रूप में वर्गीकृत किया जाता है. कांग्रेस की पीवी नरसिम्हा राव के नेतृत्व में सरकार ने 1993 में इन योजनाओं को लागू किया. आरक्षण की सिफारिश मूल रूप से मंडल आयोग द्वारा की गई थी, जो एक दशक पहले शैक्षिक और सामाजिक मापदंडों पर पिछड़ने वाले समुदायों की पहचान करने और उनके उत्थान के लिए कदम उठाने का सुझाव देती थी. संक्षेप में कहें तो वे अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति-समूहों के लिए पारंपरिक रूप से जातिगत सीढ़ी के बहुत नीचे ओबीसी को पहले से ही सकारात्मक कार्रवाई की प्रणालियों में लाकर लगातार जाति-आधारित भेदभाव को ठीक करने का प्रयास कर रहे थे. इस पर अधिक विशेषाधिकार प्राप्त जातियों ने उग्र क्रोध के साथ अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त की. इसके पीछे तर्क दिया गया कि आरक्षण योग्यता के आधार पर नियुक्ति और पदोन्नति का विरोधी है. देश के अधिकांश हिस्सों की तरह बिहार ने भी इसके खिलाफ बड़े पैमाने पर प्रदर्शनों को देखा.
उस समय कश्यप अपनी किशोरावस्था में थीं. उन्होंने कहा, “हमने वह दौर भी देखा जब मंडल कमीशन के साथ सब कुछ आगे खिसक रहा था. जिस तरह का विरोध हमने देखा, हम उसके बारे में बहुत कुछ पढ़ते हैं, लेकिन बावजूद इसके हम उससे नफरत करते हैं.”
कश्यप ने अपनी युवावस्था से जुड़ी कुछ अन्य घटनाओं को भी याद किया. उन्होंने कहा, “रांची सांप्रदायिक रूप से गर्म था.” मुहर्रम के जुलूसों के दौरान, “आप घर से नहीं निकल सकते थे. कभी कोई व्यक्ति गाय काट कर उसे कहीं फेंक देता. मुझे याद है कि ये बीजेपी के उदय से पहले के दिन थे.” कश्यप ने आगे कहा, “देखो मैं बहुत से लोगों से यह कहती रहती हूं कि हो सकता है जिस समय में हम रह रहे हैं, वह बहुत कुछ बदल रहा हो, लेकिन बंटवारा लंबे समय से अस्तित्व में है.”
ओबीसी, अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति को मीडिया सहित सभी नागरिक और व्यावसायिक क्षेत्रों में गंभीर रूप से रेखांकित किया गया है. आमतौर पर निजी मीडिया संस्थानों में आरक्षण निजी संस्थानों की ही तरह अनसुना होता है. 2006 में पत्रकार अनिल चमड़िया, पत्रकार और शोधकर्ता जितेंद्र कुमार और सेंटर फॉर द स्टडी ऑफ डेवलपिंग सोसाइटीज के योगेंद्र यादव ने भारतीय मीडिया की संरचना का एक सर्वेक्षण प्रकाशित किया, जो कि अपनी तरह का पहला सर्वे था. उसमें बताया गया कि “सवर्ण (ब्राह्मण, कायस्थ, राजपूत, वैश्य और खत्री) जातियों में पैदा हुए लोग भारत की आबादी का लगभग 16 फीसदी हैं लेकिन वे प्रमुख मीडिया संस्थानों में निर्णय लेने वाले पदों में लगभग 86 फीसदी हैं. 49 फीसदी अकेले ब्राह्मण (भूमिहार और त्यागी सहित) प्रमुख मीडिया संस्थानों में निर्णयकारी भूमिका में मौजूद हैं.”
इस साल की शुरुआत में गैर-लाभकारी ऑक्सफैम इंडिया और समाचार साइट न्यूज लौंड्री ने मीडिया में प्रतिनिधित्व पर एक रिपोर्ट प्रकाशित की. हिंदी चैनलों- आजतक, न्यूज 18 इंडिया, इंडिया टीवी, एनडीटीवी इंडिया, राज्यसभा टीवी, रिपब्लिक भारत और जी न्यूज में यह देखा गया कि नेतृत्व करने वाले सभी पदों पर सवर्ण पत्रकारों का वर्चस्व था. इन चैनलों के प्रमुख शो के हर पांच एंकरों में से चार उच्च जातियों से थे. कोई भी एंकर एससी, एसटी या ओबीसी वर्ग से नहीं था.
कश्यप की प्रतिभा और “हाड़तोड़ मेहनत” वाले कार्यों से इतर देखें, तो उनका उदय सिर्फ इन गुणों के चलते ही नहीं हुआ है. मीडिया में ओबीसी, एससी और एसटी की स्थिति को देखें तो कश्यप का चमकता हुआ करियर इस बात का सबूत है कि उन्हें जिस तरह के करियर के अवसर मिले, वे शायद ही इन जातियों के लिए उपलब्ध हों. बकौल कश्यप उनके सामाजिक संपर्कों ने उन्हें उनके मीडिया करियर की शुरुआत में आंखों देखी की एंकर नलिनी सिंह तक पहुंच बनाने में मदद की. जी न्यूज के पूर्व संपादक और स्टार के एक पूर्व कार्यकारी दोनों ने कहा कि कश्यप के पति के रुतबे ने उनके लिए मीडिया के दरवाजे खोलने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.
2011 तक मंगेश कश्यप दिल्ली पुलिस के एडिशनल डिप्टी कमिश्नर बन गए थे. उन्हें 2016 में दक्षिणी दिल्ली नगर निगम का मुख्य सतर्कता अधिकारी नियुक्त किया गया था, जहां उन्हें भ्रष्टाचार मामलों का काम सौंपा गया था. नगर निगम बीजेपी द्वारा नियंत्रित है. तब आम आदमी पार्टी की अगुवाई वाली दिल्ली सरकार ने इस पद के लिए एक और उम्मीदवार का चयन किया था, लेकिन उनकी नियुक्ति को बीजेपी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार ने रोक दिया था. एसडीएमसी में मंगेश की नियुक्ति को तुरंत मंजूरी मिल गई, जहां वह आज भी अपने पद पर बने हुए हैं.
न्यूज 24, जहां कश्यप को बतौर एंकर खुद को साबित करने का पहला मौका मिला था, अनुराधा प्रसाद का चैनल का है जो कि बीजेपी नेता रविशंकर प्रसाद की बहन है. रविशंकर प्रसाद वर्तमान में मोदी की कैबिनेट में मंत्री हैं जबकि अनुराधा के पति कांग्रेसी नेता राजीव शुक्ला हैं.
पिछले साल कश्यप इंडिया टुडे ग्रुप में अपने कुछ सहयोगियों के साथ आरक्षण पर एक लाइव-स्ट्रीम चर्चा में शामिल हुईं. उन्होंने जाति-आधारित आरक्षण के खिलाफ बात की और इसे “दीमक-संक्रमित प्रणाली” के रूप में वर्णित किया. कश्यप ने इस चर्चा में कहा, “वर्तमान प्रणाली में न तो एससी और एसटी ही सशक्त बन पाए हैं, न ही इसने समुदाय को कोई सम्मान ही दिया है.” कश्यप ने आगे कहा, “लेकिन यदि आप आर्थिक आधार पर आरक्षण की शुरुआत कर सकते हैं, तो करें.” उन्होंने एक ऐसी प्रणाली के लिए तर्क दिया, जिसमें आप किसी को कह सकते हैं कि, “भाईसाहब, आपने एक बार आरक्षण का लाभ उठा लिया है, अब आपके परिवार के सदस्यों को यह नहीं मिलेगा. अब गरीबों और दलितों को मिलेगा.”
इसके अलावा पिछले साल अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निरोधक) अधिनियम पर “हल्ला बोल” में एक राजपूत संगठन करणी सेना के प्रमुख सूरजपाल अमू को दिखाया गया था. अमू ने 2017 में फिल्म पद्मावत के निर्देशक और नायिका के सिर काटने वाले को ईनाम देने की पेशकश की थी, क्योंकि करणी सेना ने फिल्म को राजपूतों के लिए अपमानजनक माना था. (उस समय, आजतक के एक सहकर्मी के साथ लाइव-स्ट्रीम चर्चा में कश्यप ने तर्क दिया था कि करणी सेना पर प्रतिबंध लगाया जाना चाहिए.) बीजेपी के तत्कालीन सांसद दलित नेता उदित राज भी इस शो में थे. अमू ने राज से पूछा कि क्या वह एक वरिष्ठ नेता के रूप में अधिनियम या आरक्षण के संरक्षण की आवश्यकता को मानते हैं. उसने लगभग चीखते हुए कहा, “क्या आप आजतक चैनल पर घोषणा करेंगे कि आप अपने आरक्षण के लाभों को छोड़ रहे हैं?” जवाब में उदित राज ने पूछा कि “क्या ब्राह्मणों ने पुरोहिती जैसे क्षेत्रों में अपना पारंपरिक आरक्षण छोड़ दिया है!”
जैसा कि कई लोगों ने राज को लेकर बात की, अमू ने कश्यप से कहा, “देखिए अंजना जी, ये जवाब नहीं दे रहे हैं.” कश्यप ने जवाब दिया, “बेशक, वह आपको जवाब नहीं देंगे. इस देश में ऐसा ही होता आया है.”
चार सालों तक आजतक के साथ काम कर चुके एक पत्रकार ने कहा, “अंजना ओम कश्यप कॉन्वेंट एजुकेटेड हैं.” जामिया मिलिया इस्लामिया, जहां से उन्होंने अपनी पत्रकारिता का डिप्लोमा प्राप्त किया है उस संस्थान ने ऐतिहासिक रूप से बड़ी संख्या में मुस्लिम छात्रों को शिक्षित किया है. “विडंबना यह है कि आप ऐसे शैक्षिक संस्थानों से बाहर आ रहे हैं जो बड़े पैमाने पर एक अलग तरह की परवरिश को बढ़ावा देते हैं, लेकिन अब आप अपनी रीढ़ उस हद तक खत्म कर चुके हैं कि आप उन लोगों के तर्क से सहमत हो रहे हैं जो अल्पसंख्यकों पर हमला कर रहे हैं.” पत्रकार ने आगे कहा, “जहां कुछ के लिए शिक्षा सामाजिक उत्थान का एक उपकरण है, इन जैसे लोगों के लिए शिक्षा भी उत्पीड़न के लिए एक और विकल्प बन गई है.”
“हमें जिस तरह से बड़ा किया गया है, हमने क्या देखा, हमने सीखा है कि मुसलमान बुरे हैं”, एक ब्राह्मण पत्रकार ने मुझे बताया. “हमें यह सिखाया नहीं गया है लेकिन हमने इसे फिर भी सीखा है कि वे गंदी परिस्थितियों में रहते हैं और वे साफ-सफाई से नहीं रहते हैं, वे मांस खाते हैं.” उन्होंने ऐसी ही अन्य बातों का भी जिक्र किया. “दलित अच्छे नहीं होते हैं और हमारे लोग इनकी वजह से नौकरी पाने में सक्षम नहीं हैं क्योंकि हम ब्राह्मण हैं.” उन्होंने आगे कहा, “हमने हमेशा खुद को पीड़ित बनाकर इस खेल को खेला है. दिक्कत यह कि जो मोहल्ले में बात करते थे, जो घर-परिवार में बात करते थे, वह अब टीवी पर होती है.”
जितेंद्र कुमार ने मुझसे कहा कि आज मीडिया की जाति की समरूपता को समझने के लिए हमें मंडल आयोग के दौर में वापस लौटना होगा, जिसके बाद उच्च जातियों ने बीजेपी के साथ गठबंधन किया था. कुमार ने कहा इसके लिए व्यक्तिगत, प्रगतिशील लोग अपवाद थे. उन्होंने आगे कहा लेकिन, “वे उच्च-जाति के लोग, जिन्होंने तब बीजेपी के विचारों के साथ साझेदारी की थी, यह उस तबके से बाहर है जिससे हम पत्रकारों, संपादकों और एंकरों को देख रहे हैं.”
इसे लेकर अनिल चमड़िया ने कहा, “हमारे समाज में जाति का अपना अलग व्यक्तित्व है. यह एक मानसिकता के साथ आता है.” अगर कश्यप की “कार्रवाई, उनकी भाषा और उनका दृष्टिकोण तटस्थ होता और उन लोगों के विरोध में नहीं देखा जाता जो समाज में वर्ग और जाति के तौर पर उत्पीड़ित हैं, तो हमें कभी भी जानने की आवश्यकता ही क्यों होती कि वह किस जाति से ताल्लुक रखती हैं? लेकिन जाति अब जांच का विषय बन जाती है क्योंकि हम यह समझने की कोशिश कर रहे हैं कि यह आक्रामकता कहां से आ रही है, यह सारा गुस्सा कहां से आ रहा है.”
“मुझे संतुलित रहना पसंद है.” कश्यप ने मुझे बताया. “मुझे लगता है कि कोई भी सवालों से बाहर नहीं होना चाहिए.” टेलीविजन पर बिताए गए अपने समय में वह समझ गई थी कि “आप लोगों के जीवन को प्रभावित कर रहे हैं.” और इस समझदारी ने उन्हें और अधिक जिम्मेदार बना दिया था. “अब मुझे लगता है कि मुझे जनता की भावना को भी ध्यान में रखना होगा. मुझे अब जनभावनाओं का भी सम्मान करना होगा, जब कोई टेलीविजन पर हो तब भी.”
जिस दौरान मैं कैफेटेरिया में इंतजार कर रही थी, उस समय कश्यप अपना मेकअप करवा रही थी. दस मिनट से भी कम समय के बाद वह एक निकास द्वार के पास से मुझे हाथ हिला रही थी. उन्होंने पहले की तरह ही एक काले रंग का टॉप और एक प्लेड स्कर्ट पहनी हुई थी, लेकिन इस दफा उनके बाल बहुत ही आकर्षक और चेहरा चमकदार था. जैसे ही मैं उनकी ओर बढ़ी, कश्यप पहले ही आगे बढ़ गईं थी. हम स्टूडियो में घुसे.
पिछला शो हाल ही में समाप्त हुआ था. मॉनीटर को एडजस्ट करने, तारों को ठीक करने या सेट करने में लोग जुटे हुए थे. कश्यप ने एक आदमी से मेरा ख्याल रखने के लिए कहा. उसने मेरे लिए एक कुर्सी खींची और मुझे स्टायरोफोम कप में चाय लाकर दी.
कश्यप ने लाल और सफेद रंग के एक गोलाकार सेट पर अपनी जगह ली. आजतक का लोगो फर्श के बीच में था और इंडिया टुडे ग्रुप का लोगो उसके ऊपर बनी एक नकली छत के सहारे झूल रहा था. कश्यप ने मेकअप मैन के साथ थोड़ी देर बात की जो उनके बालों को फिनिशिंग टच दे रहा था. तीन मेहमान कश्यप के दाहिनी ओर बैठे थे और दो उनके बाईं ओर. उन्होंने अपने फोन पर नजर डालने से पहले, उनके साथ सामान्य बातचीत की. उन्होंने सहजता से देखा.
ड्रम की आवाज स्टूडियो में गूंज उठी और एक कैमरा क्रेन के सहारे हवा में लहराया. अंजना ने ऊपर देखा, “नमस्कार, आप देख रहे हैं हल्ला बोल और आपके साथ मैं हूं अंजना ओम कश्यप.”
अनुवाद : शीतल तिवारी