आसाराम और आस्था का संकट

अश्विनी व्यास
अश्विनी व्यास

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जोधपुर का सेशन कोर्ट परिसर 9 फरवरी को खचाखच भरा था. दोपहर दो बजे तक करीब 200 लोगों की भीड़ बिल्डिंग के बाहर जमा हो चुकी थी. भीड़ में हर उम्र और अलग-अलग पृष्ठभूमि के लोग थे. हालांकि, जवान लड़कियों की तादाद ज्यादा थी. कुछ जींस और स्वेटशर्ट पहने थीं; कुछ ने सलवार-कमीज और ऊनी स्वेटर डाले हुए थे. कई लोग शहर के बाहर से आए थे और अपने साथ छोटे रुकसैक और कपड़े लेकर चल रहे थे. एक परिवार ने मुझे बताया कि वह हजार किलोमीटर दूर उत्तर प्रदेश के गोरखपुर से आया है; एक आदमी कोई दो हजार किलोमीटर की दूरी तय कर पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी से आया था.

भीड़ को काबू में रखने के लिए दोपहर 2 बजे के बाद पुलिस ने बिल्डिंग के गेट पर अर्धवृत्त आकार में हदबंदी करनी शुरू कर दी. लोगों का हुजूम लगातार बढ़ता चला जा रहा था और सभी की नजरें परिसर के गेट पर जमी थीं.

थोड़ी देर बाद एक नीले रंग की वैन, जिस पर “रायट कंट्रोल” लिखा था, गेट के अंदर दाखिल हुई. वैन के चारों तरफ अफरातफरी मच गई. कुछ वैन के पीछे “बापू! बापू!” चिल्लाते हुए भागने लगे. सीटियां बजाते और लाठियां भांजते, पुलिसकर्मी उन्हें वैन से दूर धकेल रहे थे. तोतिया रंग की सलवार-कमीज पहने और हाथों में अपना बैग और स्मार्टफोन थामे एक औरत वैन के साथ-साथ दौड़ रही थी. कोर्ट बिल्डिंग से थोड़ा पहले, जब वैन दायें मुड़ी तो वह सामने आ गई और अपने दोनों हाथों को याचना की मुद्रा में जोड़कर “बापू! बापू!” चिल्लाने लगी.

जिस बूढ़े इंसान को वह पुकार रही थी, जब उसकी नजरें उससे मिलीं तो उसके चेहरे पर सहसा मुस्कान खिल आई. वैन में मोटी-मोटी जालियों वाली खिड़की के पीछे बैठा वह आदमी आसाराम यानी आसुमल हर्पलानी यानी स्वयंभू गॉडमैन था. बापू ने आशीर्वाद की मुद्रा में अपना हाथ उठाया. औरत को लगभग बचाते हुए वैन ने तीखा मोड़ काटा और परिसर के पिछले गेट की तरफ मुड़ गई. आम लोगों और मीडिया वालों को कोर्ट तक पहुंचने न देने के लिए पुलिस पूरे परिसर में फैली हुई थी.

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