'हिंदू हृदय सम्राट' स्वामी असीमानंद

04 जनवरी 2019
विवेक सिंह/कारवां
विवेक सिंह/कारवां

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जेलर ने हुक्म दिया, “स्वामीजी को बुलाओ.” दो सिपाही जेलर के ऑफिस से बाहर आए और दौड़ने लगे. कानों के पर्दे भेद देने वाला शोर कमरे में गूंजने लगा. लग रहा था जैसे सैकड़ों लोग एक साथ चीख रहे हों. साल 2011 की जनवरी में अंबाला केन्द्रीय कारावास में कैदियों से मिलने वालों की भीड़ है.

कुछ देर बाद फायरब्रांड नेता असीमानंद जिनके ऊपर 2006 से 2008 तक देश के कई नागरिक ठिकानों पर आतंकी हमले करने का आरोप है जेलर के कार्यालय के दरवाजे से भीतर दाखिल हुए. उन्होंने घुटनों तक लंबे गेरुए रंग के वस्त्र धारण किए हुए थे. उनके कपड़ों से साफ था कि इन्हें थोड़ी देर पहले इस्त्री किया गया था. उन्होंने एक बंदर टोपी पहन रखी थी जिससे उन्होंने अपना ललाट ढंक रखा था और गले में एक गेरुआ शॉल लपेट रखा था. ऐसा लगा कि मुझे देखकर वे आश्चर्यचकित हैं. हमने एक-दूसरे को प्रणाम किया और फिर वे वहां से मुझे साथ वाले एक कमरे में ले गए. इस कमरे में सफेद धोती-कुर्ते में किरानी बैठे थे और बेहद भारी-भरकम खातों पर काम कर रहे थे. वो दरवाजे के पीछे रखे सफेद लकड़ी के ट्रंक पर बैठे और मुझे पास की मेज से कुर्सी खींचकर बैठने का इशारा किया. वो एक अच्छे मेजबान की तरह अनौपचारिक थे और मुझसे वहां आने के बारे में पूछा. मैंने कहा, “किसी को तो आपकी कहानी कहनी ही है.”

ये असीमानंद के उन चार साक्षात्कारों में एक की शुरुआत थी जो मैंने दो सालों से कुछ अधिक समय में लिए थे. उनके ऊपर फिलहाल हत्या, हत्या का प्रयास, आपराधिक षडयंत्र और देशद्रोह जैसे आरोप लगे हैं. ये आरोप उन धमाकों के मामले में लगे हैं जिनमें कम से कम 82 लोगों को अपनी जानें गंवानी पड़ी थी. इसकी भी आशंका थी या है कि उन पर दो मामले और चल सकते हैं जिनमें आरोपपत्र में उनका नाम तो है लेकिन उन्हें औपचारिक तौर पर आरोपी नहीं बनाया गया है. इन पांच धमकों में 199 लोगों को अपनी जानें गंवानी पड़ी थी और इसने भारतीय समाज के समरसता के धागे को तोड़ने का काम किया था. यदि असीमानंद दोषी सिद्ध होते हैं तो उन्हें फांसी के फंदे पर चढ़ना पड़ सकता है.

हमारी बातचीत के दौरान असीमानंद बेहद हार्दिक बने रहे और खुलकर बातचीत की. उन्होंने अपने जीवन की जो कहानी बताई वह शानदार होने के साथ बेहद डरावनी भी थी. उन्होंने जिन हिंसा की घटनाओं को अंजाम दिया है उस पर उन्हें बेहद गर्व है और उन्हें उन आदर्शों पर भी गर्व है जिनके आधार पर उन्होंने अपना जीवन जिया है. चार दशकों से अधिक समय तक उन्होंने तहे दिल से हिंदू राष्ट्रवाद का प्रचार प्रसार किया है; इस दौरान उन्होंने ज्यादातर समय राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (आरएसएस) के आदिवासी मामलों की शाखा वनवासी कल्याण आश्रम के झंडे तले काम किया है. इस दौरान उन्होंने संघ आधारित हिंदुत्व की विचारधारा और हिंदू राष्ट्र की इसकी परिकल्पना को फैलाने का काम किया है. इस अपने जीवन के 60वें दशक को जी रहे असीमानंद ने अपने विचारों में रत्ती भर का क्षय नहीं आने दिया है.

लीना रघुनाथ अमेरिका में स्वतंत्र पत्रकार और कारवां की एडिटोरियल मैनेजर रह चुकी हैं. द न्यू इंडियन एक्सप्रेस, द हिंदू, टाइम्स आफ इंडिया, हिंदुस्तान टाइम्स में लेख आदि प्रकाशित, अंग्रेजी साहित्य में एमए और एलएलबी. 2015 और 2018 में रिपोर्टिंग के लिए मुम्बई प्रेस कल्ब ने रेडइंक पुरस्कार से सम्मानित.

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