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6 नवंबर 2019 के दिन कोलकाता की बेंटिंक स्ट्रीट पर एमके पॉइंट बिल्डिंग के नीचे जमा भीड़ एक अद्भुत नजारा देख रही थी. बिल्डिंग में ऊंचाई पर स्थित एक दफ्तर की खिड़कियों से उनके ऊपर 500 और 2000 के नोटों की बरसात हो रही थी. कुछ लोग अवाक खड़े थे, कुछ वीडियो बना रहे थे और कुछ में नोटों को हड़पने की गुत्थमगुत्था जारी थी. भीड़ बढ़ने के बाद भी नोटों की बौछार जारी रही. तभी खिड़की से फर्श साफ करने का वायपर थामे एक हाथ बाहर निकला और पास के छज्जे पर फंसे रुपयों के बंडलों को वहां से नीचे फेंकने लगा.
इस इमारत में कई दफ्तर थे. छठी और सातवीं मंजिल पर हक ग्रुप्स ऑफ कंपनीज के दफ्तर थे, जहां उस दिन राजस्व खुफिया निदेशालय (डीआरआई) ने छापा मारा था. डीआरआई अधिकारियों ने बाद में कहा कि जब तक वो वहां पहुंचे, तब तक दफ्तर के अंदर ही एक कर्मचारी को अवैध नकदी को खिड़की से बाहर फेंकने का आदेश दिया जा चुका था. टाइम्स ऑफ इंडिया ने दो हफ्ते बाद लिखा कि डीआरआई के अधिकारियों के अनुसार उन्होंने दफ्तर से लगभग 7 लाख रुपए जब्त किए थे, जिनका मालिक, रिपोर्ट के मुताबिक, "कथित रूप से एक पशु तस्करी रैकेट में शामिल था." ये छापा, जैसा रिपोर्ट में उल्लेख किया गया है, "एक कथित इनपुट टैक्स क्रेडिट धोखाधड़ी की जांच का हिस्सा था."
इस मामले का नाटकीय घटनाक्रम चौंकाने वाला था. इसके चलते भारत के मवेशी तस्करी नेटवर्क की एक दुर्लभ झलक भी स्पष्ट रूप से सामने आई. मवेशियों की तस्करी को अक्सर सीमावर्ती क्षेत्रों तक सीमित एक छिटपुट गतिविधि के रूप में देखा जाता है, जिसमें छोटे-मोटे अपराधी शामिल होते हैं. लेकिन बेंटिंक स्ट्रीट की घटना ने बताया कि शायद इस व्यवस्था के बड़े खिलाड़ी लंबे-चौड़े व्यावसायिक तानेबाने की शह में छिपे बैठे हैं.
इस छापे में जो एक नाम सामने आया, वो था होक मर्केंटाइल नामक कंपनी के निदेशकों में से एक- मोहम्मद इनामुल हक. शुरूआती खबरों में इस नाम का खुलासा नहीं किया गया था. कुछ दस्तावेजों में इसे 'होक' भी लिखा गया है. उसे पहले भी मार्च 2018 में जिबू डी मैथ्यू नामक सीमा सुरक्षा बल के कमांडेंट को पश्चिम बंगाल से बांग्लादेश में मवेशियों की तस्करी के लिए घूस खिलाने के आरोप में गिरफ्तार किया गया था. मैथ्यू के खिलाफ एफआईआर में कहा गया है कि उसने "बीएसएफ कमांडेंट, 83 बटालियन के पद पर रहते हुए भारत-बांग्लादेश सीमाओं के तस्करों की मदद के एवज में" उनसे पैसा लिया था.
हक को जमानत दे दी गई थी, लेकिन नवंबर 2020 में दिल्ली, कोलकाता, अमृतसर, रायपुर और अन्य स्थानों पर छापेमारी के बाद उसे फिर से गिरफ्तार कर लिया गया. उसी महीने केंद्रीय जांच ब्यूरो ने इस मामले के संबंध में सतीश कुमार नाम के एक अन्य बीएसएफ कमांडेंट को गिरफ्तार किया.
इस घटना से एक तस्वीर सुर्खियों में है- एक मुस्लिम व्यवसायी, जो अवैध गतिविधियों के लिए सीमा रक्षकों को घूस देता था. लेकिन हक के कारोबार से जुड़े दस्तावेजों से पता चलता है कि वह ऐसी कई अन्य कंपनियों और व्यक्तियों से जुड़ा था, जिनमें से अधिकांश का नाम अब तक किसी रिपोर्ट में नहीं आया है. हक के मुस्लिम होने के कारण इस धारणा पर बल दिया जा रहा है कि उसके समुदाय के सदस्यों द्वारा बड़े पैमाने पर मवेशियों की तस्करी की जाती है. लेकिन जिन लोगों के साथ उसके तार जुड़े हुए हैं, उनमें से कई हिंदू हैं. हक की गतिविधियों में उनकी भागीदारी की सटीक जानकारी केवल जांच एजेंसियों द्वारा निर्धारित की जा सकती है. लेकिन उसकी कंपनियों के खातों से जुड़े कई संदिग्ध पहलू, जैसे आसमान छूते राजस्व, सुझाव देते हैं कि उनकी भी जांच की जानी चाहिए.
इन कंपनियों में एक नाम है ओरिएंट मूवीटोन कॉर्पोरेशन, जो बेंटिंक स्ट्रीट पर उस एमके पॉइंट बिल्डिंग के मालिक हैं, जहां नवंबर 2019 में छापा पड़ा था. इस इमारत में कभी 'ओरिएंट सिनेमा' नामक एक लोकप्रिय लैंडमार्क था, जिसे 1940 के दशक में एक मारवाड़ी परिवार कांकरियों द्वारा बनाया गया था, जिनकी कपड़े और रियल एस्टेट के व्यापार में भी दिलचस्पी थी. 2009 में कांकरिया परिवार ने इस इमारत को एक खुदरा बाजार के रूप में ब्रांड किया और अपनी संपत्ति के लिए बेहतर अवसर तलाशने लगे.
ओरिएंट मूवीटोन के एक निदेशक ललित कुमार कांकरिया ने उस वर्ष द टेलीग्राफ को बताया, "जबसे हमने हॉल को बंद किया है, तब से हमें इसे फिल्म स्टूडियो से लेकर दफ्तरी इमारत बनाने जैसे कई प्रस्ताव मिले हैं. लेकिन हम किसी भी व्यवसाय योजना पर तभी विचार करेंगे, जब हम पूरी इमारत को विकसित करने की स्थिति में होंगे. हम अपने इतिहास के अनुरूप कुछ करना चाहेंगे." हक ने 2017 में ओरिएंट मूवीटोन से एमके प्वाइंट में 1.35 करोड़ रुपए में जगह खरीदी थी.
एक कथित पशु तस्कर का दफ्तर इस इमारत में कैसे आया, यह स्पष्ट नहीं है. एक अन्य कंपनी, जेएचएम इम्पोर्ट एक्सपोर्ट प्राइवेट लिमिटेड, जिसके हक से संबंध हैं, ने भी अक्टूबर 2017 में ओरिएंट मूवीटोन से 1.2 करोड़ रुपए में एक संपत्ति खरीदी. जेएचएम समूह की करीबी कंपनी कोलेट बिल्डर्स प्राइवेट लिमिटेड ने दिसंबर 2016 में ओरिएंट मूवीटोन से 1.1 करोड़ रुपए में एक संपत्ति खरीदी.
अभी तक जांच एजेंसियों ने यह खुलासा नहीं किया है कि हक, उनसे जुड़ी कंपनियों और कांकरिया कंपनियों के बीच कोई संबंध है या नहीं. लेकिन कॉर्पोरेट मामलों के मंत्रालय (एमसीए) के पास दायर दस्तावेजों से पता चलता है कि जब हक से जुड़ी कंपनियों में असामान्य व्यावसायिक गतिविधि देखी गई, तब ओरिएंट मूवीटोन के राजस्व ने भी आसमान छुआ. एमसीए के दस्तावेजों की जांच से रवि प्रकाश खेमका और अनिल खेमका सहित अन्य मारवाड़ी नाम सामने आते हैं, जो हक के व्यवसायों से करीबी रूप से जुड़े रहे हैं.
हक, जो पश्चिम बंगाल के सीमावर्ती जिले मुर्शिदाबाद से है, ने 21 मई 2014 को शहर के तिलजला रोड पर एक संपत्ति की खरीद के साथ कोलकाता के मारवाड़ी नेटवर्क में अपनी यात्रा की शुरूआत की. एमसीए दस्तावेजों के अनुसार उसने इस संपत्ति को 2005 में खुली खेमका व्यापार प्राइवेट लिमिटेड नामक एक ट्रेडिंग कंपनी को "किराए-मुक्त आधार पर" दिया. कंपनी (जिसे ट्रेड मार्केटिंग वेबसाइट ट्रेडइंडिया पर कोलकाता के पते के साथ एक साड़ी व्यवसाय के रूप में सूचीबद्ध किया गया है) के निदेशक रवि प्रकाश खेमका और अनिल खेमका थे. कंपनी को 20 दिसंबर 2014 से हक की संपत्ति का उपयोग करने की अनुमति दी गई थी. लेकिन इस तिथि तक खेमका कंपनी के निदेशक नहीं थे और उनकी जगह अजय सारावोगी, शेख अब्दुल लतीफ और मोहम्मद इनामुल 'होक' ने ले ली थी. हक से मिलते-जुलते इस तीसरे नाम में बस एक वर्तनी का अंतर था (कॉर्पोरेट दस्तावेजों में ये दोनों नाम एक ही पैन नंबर से जुड़ते हैं, जो ये दर्शाता है कि वे एक ही व्यक्ति के हैं). जिन दस्तावेजों में उन्होंने कंपनी के निदेशक के रूप में कार्य करने की सहमति दी थी, उनमें तीनों ने एक ही ईमेल पता दिया: samsungiphone333 @gmail.com.
खेमका परिवार द्वारा अपनी कंपनी के निदेशक का पद सौंपे जाने के बाद इसके बहीखाते में तेजी से बढ़ोतरी हुई. इसकी नकदी और बैंक बैलेंस में 330 प्रतिशत का उछाल आया. ये संख्या 2014 में लगभग 8.7 लाख रुपए से बढ़कर 2015 में लगभग 38 लाख रुपए हो गयी. इस दौरान कंपनी की व्यापार देय राशि, इन्वेंट्री सामग्री के लिए आपूर्तिकर्ताओं की बकाया राशि, तीन सौ सत्तर प्रतिशत से अधिक बढ़ी. ये संख्या मार्च 2014 में 3.3 लाख रुपए से बढ़कर मार्च 2015 में 15 लाख रुपए पर पहुंच गई.
खेमका कंपनी से हक और मारवाड़ी वित्तीय दुनिया के अन्य संबंधों का भी खुलासा होता है: इसके ऑडिटर, पोद्दार एंड एसोसिएट्स, निदेशकों के बदलने के बाद भी कंपनी के साथ बने रहे और हक बोर्ड में शामिल हो गए. वे हक द्वारा 2015 में स्थापित हक मर्केंटाइल प्राइवेट लिमिटेड नामक दूसरी कंपनी और जेएचएम समूह की जेएचएम लॉजिस्टिक्स नामक कंपनी के ऑडिटर भी बने.
खेमका व्यापार के निदेशक का परिवर्तन स्थायी नहीं था. दिसंबर 2015 में एक बार फिर खेमका उसी भूमिका में अपनी कंपनी में शामिल हो गए. इसके तुरंत बाद हक, सारावोगी और लतीफ ने बोर्ड से इस्तीफा दे दिया.
अप्रैल 2019 में कंपनी को एक प्राइवेट लिमिटेड कंपनी से सीमित देयता भागीदारी (लिमिटेड लायबिलिटी पार्टनरशिप) में परिवर्तित कर दिया गया. इस समय तक जहां खेमका की कंपनी फल-फूल रही थी, वहीं हक कानून-प्रवर्तन के जाल में फंस चुका था. दिसंबर 2018 में वरिष्ठ अधिवक्ता रमन पिल्लई के नेतृत्व में वकीलों के एक समूह ने केरल उच्च न्यायालय में हक के लिए दलील दी कि उसे अपने कुछ बैंक खातों को संचालित करने की अनुमति दी जाए, जो उसकी गिरफ्तारी के बाद फ्रीज़ हुए थे. अदालत ने अपने आदेश में कहा, "ये एक उदाहरण है, जहां एक व्यक्ति के सभी बैंक खाते सीबीआई द्वारा फ्रीज़ कर दिए गए हैं. वह कोई आम व्यक्ति नहीं है. वह एक व्यापारी भी है. क्या उसका व्यवसाय अवैध है, या उसने कोई आर्थिक अपराध किया है या नहीं, यह इस स्तर पर चिंता का विषय नहीं है." अदालत ने हक को उनके बंद किए गए 26 खातों में से तीन को संचालित करने की अनुमति दी थी.
मार्च 2018 में जब बीएसएफ कमांडेंट जीबू डी मैथ्यू को अलाप्पुझा रेलवे स्टेशन पर गिरफ्तार किया गया था, तो उसके पास 45 लाख रुपए से अधिक की नकदी का एक बैग बरामद हुआ था, जिसका कोई हिसाब नहीं था. मैथ्यू ने सीबीआई को बताया कि मुर्शिदाबाद के एक मवेशी तस्कर बिशु शेख ने उसे पैसे दिए थे. सीबीआई मार्च में शेख को गिरफ्तार कर केरल ले गई, जहां मैथ्यू से पूछताछ की जा रही थी. बाद में उसकी जमानत अर्जी के समर्थन में अदालत में जमा किए गए दस्तावेज़ों से शेख का असली नाम सामने आया : मोहम्मद इनामुल हक.
बीएसएफ के एक अन्य कमांडेंट, 36 बटालियन के सतीश कुमार, की गिरफ्तारी के बाद नवंबर 2020 में हक की अगली गिरफ्तारी से जांचकर्ता उत्तर प्रदेश के एक मूल निवासी भुवन भास्कर तक पहुंचे, जिसे एमसीए दस्तावेजों में भास्कर भुवन के रूप में सूचीबद्ध किया गया है. दस्तावेजों में भास्कर का नाम हक की कंपनियों में से एक, हक इंडस्ट्रीज के निदेशक के रूप में दर्ज है. कुमार के खिलाफ की गई एफआईआर, जिसमें हक का भी नाम है, तीन व्यक्तियों को एक-दूसरे से जोड़ती है: भास्कर सतीश कुमार का बेटा है. एफआईआर में कहा गया है, "यह आरोप है कि श्री सतीश कुमार ने अपने बेटे श्री भुवन भास्कर को मैसर्स हक इंडस्ट्रीज प्राइवेट लिमिटेड में नियुक्त किया, जो मोहम्मद इनामुल हक द्वारा प्रवर्तित कंपनी है. भास्कर को मई 2017 से दिसंबर 2017 के बीच 30000/- से 40000/- रुपए प्रति माह का वेतन दिया गया, जो इस साजिश के भागीदारों के साथ उसके घनिष्ठ संबंध को दर्शाता है." (एफआईआर की त्रुटि में होक इंडस्ट्रीज प्राइवेट लिमिटेड को हक इंडस्ट्रीज प्राइवेट लिमिटेड नाम से लिखा गया है. एक ऐसी कंपनी जो अस्तित्व में नहीं है.)
एफआईआर के अनुसार कुमार 2015 और 2017 के बीच पश्चिम बंगाल के सीमावर्ती जिले मालदा में तैनात थे. इस दौरान बीस हजार से अधिक गायों को बीएसएफ ने सीमा पार तस्करी से पहले ही जब्त कर लिया था, लेकिन इसमें शामिल लोगों और वाहनों को छोड़ दिया गया.
इस रिपोर्ट के दौरान मेरा और मेरे सहयोगी अजय प्रकाश का उत्तर प्रदेश से बांग्लादेश की सीमा तक पशु-तस्करी के मुख्य मार्गों से परिचय हुआ. सीमावर्ती जिलों में स्थानीय लोगों के साथ हमारी बातचीत से हमें अंदाजा हुआ कि बीस हजार की हालिया संख्या दोनों देशों के बीच सीमा पार हजारों किलोमीटर में फैली भूमि और नदी द्वारा तस्करी किए गए मवेशियों का एक अंश मात्र है. ये लोग एक ही मौके पर अलग-अलग क्रॉसिंग पॉइंट से सैकड़ों मवेशियों की तस्करी देखने के आदी थे. कुछ गांवों के स्थानीय लोगों ने हमें यह भी बताया कि वहां के अधिकांश निवासी प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से इस व्यापार के निचले पायदान का हिस्सा हैं. कुछ लोग तस्करी से पहले मवेशियों को अपने घरों में छुपाकर थोड़ा बहुत पैसा कमा लेते हैं; अन्य, मुख्य रूप से सक्षम युवा पुरुष, जो आमतौर पर दिहाड़ी मजदूर के रूप में काम करते हैं, तस्करों को मवेशियों को सीमा पार ले जाने में मदद करते हैं.
मनी कंट्रोल में जनवरी 2021 में छपी एक रिपोर्ट के अनुसार राष्ट्रीय सुरक्षा गार्ड के एक पूर्व सदस्य "जो एक बार बंगाल में गुप्त ऑपरेशन का हिस्सा थे" के हवाले से कहा गया है कि औसतन, "हक ने सप्ताह में पांच दिन, हर दिन 5,000 से अधिक मवेशियों को सीमा पार भेजा.” रिपोर्ट के अनुसार, हक “वयस्क मवेशियों के लिए 50,000 रुपए और बछड़ों के लिए 15,000 रुपए चार्ज करता था. वह तीन-चौथाई नकदी अपने पास रखता था और बाकी पैसे बीएसएफ के कुछ भ्रष्ट जवानों और स्थानीय नेताओं में बांट देता था." रिपोर्ट आगे बताती है कि बांग्लादेश में प्रत्येक जानवर को साठ हजार और एक सौ पचास हजार टका में बेचा जाता (53 हजार से 1.3 लाख रुपए के बीच). इन आंकड़ों के आधार पर, हक द्वारा हर साल तस्करी किए जाने वाले मवेशियों की कुल कीमत 6,890 करोड़ रुपए से 16,900 करोड़ रुपए या 900 मिलियन डॉलर से 2.2 अरब डॉलर के बीच आंकी जा सकती है.
एफआईआर में आरोप लगाया गया है कि "मोहम्मद इनामुल हक, अनारुल एसके और मोहम्मद गुलाम मुस्तफा जैसे व्यापारियों के साथ बीएसएफ और सीमा शुल्क अधिकारियों की घनिष्ठ सांठगांठ के कारण" जब्ती सूचियों में हेरफेर की गई और जानवरों के आकार और नस्ल को इस तरह सूचीबद्ध किया गया, जिससे उसके बाद की नीलामी के दौरान उनके आरक्षित मूल्य को कम किया जा सके. एफआईआर में कहा गया है, "इन मवेशियों की फिर तत्काल (जब्ती के 24 घंटे के भीतर) निकटतम सीमा शुल्क स्टेशन यानी जंगीपुर, मुर्शिदाबाद की मदद से नीलामी की गई." चूंकि मवेशियों को कागज पर कमजोर या कम मूल्यवान नस्लों से संबंधित दिखाया जाता, इसलिए उनकी कीमतें गिर जाती और तस्कर जानवरों को फिर से सीमा पार ले जाने के पहले अपने जब्त किए गए बेड़े को कम कीमतों पर खरीद लिया करते. इस रणनीति को 'रीसायकलिंग' कहा जाता है.
अप्रैल 2020 में पश्चिम बंगाल सीमा पर तैनात बीएसएफ के एक अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर 'द हिंदू' को बताया, “तस्कर आराम से उस कीमत से 10,000-15,000 ज्यादा रुपए खर्च कर सकते थे, जिस कीमत पर उन्होंने गाय खरीदी होती थी, क्योंकि उनके बांग्लादेशी ग्राहक उन्हें अच्छा भुगतान करते हैं.” मवेशियों की 'रीसायकलिंग' रोकने के लिए बने एक सरकारी निर्देश के बारे में उन्होंने कहा, “इस आदेश के चलते कस्टम्स जब्त किए गए मवेशियों का निपटान नहीं कर पाता है और हम पर जानवरों का बोझ बढ़ जाता है. इस आदेश से बस इतना ही बदलाव हुआ है कि अब मवेशी बांग्लादेश में मारे जाने के बजाय यहीं बिना देखभाल के अपने प्राण त्याग रहे हैं. अगर सरकार हमें मवेशियों के प्रबंधन के लिए कुछ धनराशि देती तो इस स्थिति से बचा जा सकता था.”
सतीश कुमार के खिलाफ एफआईआर में आरोप लगाया गया है कि तस्करी की जाने वाली प्रत्येक गाय के लिए हक बीएसएफ अधिकारियों और सीमा शुल्क अधिकारियों को 500 रुपए देता था. इसमें लिखा गया है कि "इसके अलावा भारतीय कस्टम्स के अधिकारी इनामुल हक, मो. गुलाम मुस्तफा, अनारुल एस.के. जैसे सफल बोली लगाने वालों से रिश्वत में नीलामी की राशि का दस प्रतिशत हिस्सा लेते थे."
जब एक बांग्लादेशी पत्रकार ने एक ऐसे व्यक्ति से बात की, जो देश में तस्करी कर लाए गए मवेशियों को खरीदता है, तो उन्हें तस्करी का संचालन करने वालों के तंत्र के बारे में पता चला. इस पत्रकार ने मुझे बताया कि सरगना जानवरों के लिए सीधे पैसे नहीं लेता; इसके बजाय भारत में उससे जुड़ी एक कंपनी क्रेडिट पर बांग्लादेश से कपड़े खरीदती है. उस क्रेडिट राशि का निपटान बांग्लादेश में उस व्यक्ति द्वारा किया जाता है, जो तस्करी किए गए मवेशियों को प्राप्त करता है. इससे भारतीय तस्कर काफी हद तक अपनी गैरकानूनी गतिविधि छिपा पाते हैं.
हक की पहली गिरफ्तारी के बाद अखबारों में उसका नाम छपने के बावजूद उससे जुड़ी व्यापारिक संस्थाओं की गतिविधियां बंद नहीं हुई. उसके गिरफ्तार होने के एक दिन बाद 6 मार्च 2018 को बांग्ला संबाद प्राइवेट लिमिटेड नाम की एक कंपनी बनाई गई. हक ने अपनी कुछ अन्य कंपनियों को पंजीकृत करने के लिए जिस ईमेल पते का इस्तेमाल किया था, उसका इस्तेमाल इस कंपनी को पंजीकृत करने के लिए भी किया गया और वह इसके निदेशकों में से एक था. कंपनी के दो अन्य निदेशक थे: संस्थापक निदेशक मेहदी हसन और बिस्वजीत मालाकार. जब हक ने 2017 में कांकरियों से संपत्ति खरीदी थी, तब मालाकार उस सौदे का गवाह था, जबकि हसन जेएचएम समूह चलाने वाले तीन भाइयों में से एक है. जेएचएम वेबसाइट के अनुसार ये समूह चावल, लाल मिर्च, प्याज, चिप्स सहित कई वस्तुओं का कारोबार करता है. मालाकार को इस वेबसाइट पर जेएचएम समूह के मुख्य वित्तीय नियंत्रक और ग्रुप चार्टर्ड प्रमुख के रूप में भी सूचीबद्ध किया गया है, और उसका नाम यूएई टीम के तहत है (वह उस टीम का एकमात्र सदस्य है). कागज पर हक दो और हफ्तों के लिए बांग्ला संबाद का निदेशक बना रहा. हक के 20 मार्च के त्याग पत्र पर उसके हस्ताक्षर हैं.
बांग्ला संबाद प्राइवेट लिमिटेड ज़्यादा समय बरकरार नहीं रहा: गठन के ठीक एक महीने बाद 20 अप्रैल को इसे बंद कर दिया गया. मालाकार और हसन, जिनके पास इस समय कंपनी के क्रमशः 97.26 प्रतिशत और 2.74 प्रतिशत शेयर थे, ने कंपनी के बंद होने के बाद उठने वाले दावों के निदान जैसे दायित्वों को पूरा करने का वादा करते हुए एक क्षतिपूर्ति बांड पर हस्ताक्षर किए. उन्होंने कहा कि कंपनी "किसी अच्छे व्यवसाय के अवसर की कमी के कारण निष्क्रिय थी. और कंपनी का कोई व्यवसाय या व्यावसायिक गतिविधि करने का इरादा नहीं है." इस दस्तावेज में दो गवाहों के हस्ताक्षर थे: अशोक कुमार चौधरी और सुपार्थ कुमार दीवान. दोनों व्यक्ति एक अन्य कंपनी से जुड़े थे: जेएचएम समूह की सहायक कंपनी जेएचएम ओवरसीज प्राइवेट लिमिटेड. वे दोनों मालाकार के साथ 2017 में कुछ महीनों के लिए इस कंपनी के निदेशक के रूप में काम कर चुके थे.
हक से बांग्ला संबाद से जेएचएम समूह तक के दस्तावेजों की कड़ी से पता चलता है कि हक अकेले काम नहीं कर रहा था, बल्कि बहुत सी कंपनियों के एक गहरे सीमा-पार नेटवर्क का हिस्सा था. जेएचएम समूह की स्थापना तीन भाइयों मोहम्मद मेहदी हसन, मोहम्मद जहांगीर आलम और मोहम्मद हुमायूं कबीर ने की थी, जिनके मतदाता कार्ड पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद और उत्तर 24 परगना के सीमावर्ती जिलों से हैं. उन्होंने कोलेट बिल्डर्स प्राइवट लिमिटेड नाम की एक कर्ज में डूबी मारवाड़ी कंपनी को खरीदकर अपना काम शुरू किया. हक की तरह जेएचएम समूह ने भी कांकरियों के साथ संबंध विकसित किए और एमके प्वाइंट बिल्डिंग में अपने दफ्तर के लिए जगह खरीदी, जहां हक का भी दफ्तर था. जून 2016 में समूह ने जेएचएम राइस मिल्स प्राइवेट लिमिटेड नामक एक कंपनी के गठन के साथ अपने व्यापारिक हितों का विस्तार किया. कंपनी का मेमोरेंडम ऑफ असोसिएशन एक जानी-पहचानी संस्था से जुड़ा हुआ था: दस्तावेज की एक गवाह, मेघा बजाज, कागजी कार्रवाई में खेमका व्यापार के ऑडिटर पोद्दार एंड एसोसिएट्स के भागीदार के रूप में सूचीबद्ध थी.
जेएचएम और हक समूह की बहुत सी कंपनियों के राजस्व में 2015 के बाद आश्चर्यजनक वृद्धि हुई. 2017 और 2018 के बीच होक मर्केंटाइल के राजस्व में 18.6 करोड़ रुपए से 173.7 करोड़ की वृद्धि के साथ 830 प्रतिशत से अधिक का इजाफा हुआ, जो अगले साल फिर तेजी से गिरा. इसी अवधि में जेएचएम इम्पोर्ट एक्सपोर्ट प्राइवेट लिमिटेड का राजस्व 350 प्रतिशत बढ़कर 80.9 करोड़ रुपए से 364.6 करोड़ रुपए हो गया. जेएचएम राइसमिल्स का राजस्व 39000 प्रतिशत से अधिक बढ़कर 51 लाख रुपए से 201.3 करोड़ रुपए हो गया. इस बीच जेएचएम ओवरसीज प्राइवेट लिमिटेड का राजस्व 2018 और 2019 के बीच लगभग दोगुना होकर 9 करोड़ रुपए से 17 करोड़ रुपए हो गया. ये वही समय था जब कांकरियों के ओरिएंट मूवीटोन का राजस्व भी आसमान छू रहा था. ये 650 प्रतिशत से अधिक की वृद्धि के साथ 2014 में 8.8 लाख रुपए से बढ़कर 2015 में 67 लाख रुपए हो गया; और फिर 2017 में 4500 प्रतिशत से अधिक की वृद्धि के साथ बढ़कर 31.8 करोड़ रुपए हो गया.
होक मर्केंटाइल के कागजात उनके एक विदेशी संस्था के साथ व्यावसायिक संबंधों को भी उजागर करते हैं, जिसके एक अन्य जेएचएम कंपनी के साथ संबंध थे. वैश्विक शिपिंग पर रिपोर्ट करने वाली एक निजी फर्म की वेबसाइट 52wmb.com से प्राप्त शिपमेंट डेटा के अनुसार, होक मर्केंटाइल प्राइवेट लिमिटेड ने मार्च 2017 में संयुक्त अरब अमीरात स्थित ब्लू आइस जनरल ट्रेडिंग एलएलसी नामक एक कंपनी को "मैन मेड फाइबर की फैंसी महिला कुर्ती" बेचकर कम से कम 934,537.5 डॉलर कमाया. ब्लू आइस ने जीरावाला एक्सपोर्ट नामक कंपनी से कम से कम 811,687.5 डॉलर की खरीदारी भी की, जिसका पता कोलकाता में दर्ज था. वेबसाइट इंडियामार्ट, जो भारतीय कंपनियों के बारे में जानकारी प्रदान करती है, जीरावाला एक्सपोर्ट को "कोलकाता, पश्चिम बंगाल में ताजा आम, कोको उत्पादों और ककड़ी और खीरा के निर्यातक" के रूप में सूचीबद्ध करती है. जीरावाला में निदेशक के रूप में काम करने वाले भरत वोरा ने जेएचएम ओवरसीज के निदेशक के रूप में भी काम किया था. उनकी पत्नी, हीना वोरा, जो जीरावाला की निदेशक भी रह चुकी थीं, ने कोलकाता में भरत वोरा के जेएचएम ओवरसीज का निदेशक बनने पर उन्हें लेनिन सरानी पर पंजीकृत दफ़्तर खोलने के लिए जगह दी थी. वोरा परिवार की रियल एस्टेट में भी रुचि थी.
कस्टम दस्तावेज़ों के डेटा से हक, जीरावाला और जेएचएम कंपनियों के बीच और घनिष्ठ संबंधों का पता चलता है. 2016 और 2017 के बीच संयुक्त अरब अमीरात में पंजीकृत कंपनी बेत अल फराशा ने इस नेटवर्क की कई कंपनियों से टेक्स्टाइल उत्पाद खरीदे. इनमें से कुछ कंपनियों के नाम एक दूसरे से मिलते-जुलते से थे। यह वित्तीय गतिविधियों को गुप्त रखने के लिए आम तौर पर इस्तेमाल होने वाली एक रणनीति है. ये नाम थे जीरावाला एक्सप प्राइवेट लिमिटेड, जीरावाला एक्सपोर्ट प्राइवेट लिमिटेड, जेएचएम लॉजिस्टिक्स प्राइवेट लिमिटेड, जेएचएम एक्सप प्राइवेट लिमिटेड, जेएचएम एक्सपोर्ट प्राइवेट लिमिटेड और होक मर्केंटाइल प्राइवेट लिमिटेड. एक नाम, जो किसी व्यक्ति का लगता है- विनोद कुमार ढोलकिया, भी सूची में है. विनोद कुमार ढोलकिया का दर्ज पता "5, वाटकिंस लेन, हावड़ा, पश्चिम बंगाल" है. यही पता एमसीए दस्तावेजों में जुलाई 2018 से जीरावाला एक्सपोर्ट प्राइवेट लिमिटेड के निदेशक मनोज कुमार ढोलकिया के पते के रूप में दर्ज है. इसके अलावा यह पता खेमका इलेक्ट्रिक एंड इंजीनियरिंग के पते के रूप में भी दर्ज है, जिसका नाम एमसीए की वेबसाइट पर चूककर्ता कंपनियों की सूची में शामिल है.
कस्टम विभाग और एमसीए के आंकड़ों की तुलना से होक मर्केंटाइल के पते में गड़बड़ियों का भी पता चलता है. 2021 के शिपमेंट डेटा में कंपनी का पता "9, अमरटोला स्ट्रीट, पहली मंजिल, कोलकाता" के रूप में सूचीबद्ध है, जो एमसीए के दस्तावेजों के अनुसार कंपनी के बेंटिंक रोड पर स्थानांतरित होने से पहले 2016 का पता है. लेकिन एमसीए के दस्तावेजों से पता चलता है कि इस पते का उपयोग लिसोम इंफ्राप्रोजेक्ट्स प्राइवेट लिमिटेड नामक कंपनी द्वारा भी किया जाता है (हालांकि यहां "अम्रतोल्ला स्ट्रीट" नाम का उपयोग किया गया है). 2015 में शुरू हुई इस कंपनी में कुछ समय के लिए श्वेता सिंह, सौरव मुखर्जी, प्रकाश बरेलिया और सुरुचि सिंह निदेशक थे. अक्टूबर 2019 में कंपनी में दो नए निदेशक नियुक्त किए गए, जो 29 नवंबर 2019 के बाद इसके अकेले निदेशक बन गए: मोहम्मद अबू सईद और नसीमा खातून. सईद अक्टूबर 2015 से फरवरी 2017 के बीच होक मर्केंटाइल के निदेशक भी रह चुके थे.
मुस्लिम भाइयों द्वारा स्थापित जेएचएम के संबंध में सीमा पार बांग्लादेश में पिनाकी दास नामक एक हिंदू कार्यकर्ता अपने लिंक्डइन प्रोफाइल पर खुद को जेएचएम इंटरनेशनल का निदेशक बताता है. समूह की वेबसाइट पर उसके नाम का उल्लेख नहीं है, लेकिन वह पीएंडपी एंटरप्राइज नामक कंपनी के फेसबुक पेज पर जेएचएम की स्थापना करने वाले भाइयों के साथ जेएचएम इंटरनेशनल की तीसरी वर्षगांठ के जश्न की तस्वीरों में दिखाई पड़ता है. पीएंडपी एंटरप्राइज की वेबसाइट पर कंपनी को इंफ्रास्ट्रक्चर और कृषि आधारित उद्योगों के लिए कच्चे माल के आपूर्तिकर्ता के रूप में दर्शाया गया है. कंपनी एक हिंदू कार्यकर्ता समूह सोनातन इंटरनेशनल फाउंडेशन के साथ अपना पता साझा करती है, जिसमें पिनाकी दास का नाम संयुक्त सचिव के रूप में दर्ज है.
दास खुद को एक धर्मनिरपेक्षता समर्थक कार्यकर्ता के रूप में पेश करता है, लेकिन प्रत्यक्ष रूप से एक ऐसे देश में हिंदुत्व को बढ़ावा देते दिखता है जिसका आधिकारिक धर्म इस्लाम है. पिछले कई वर्षों में उसने बांग्लादेश में हिंदू-विरोधी हिंसा के खिलाफ अभियान चलाए और दुनिया भर के हिंदूवादी समूहों में अपनी साख स्थापित की. 25 सितंबर 2014 को दास की कंपनी ने भारत के प्रधानमंत्री को ट्वीट किया: “@PMOIndia हम बांग्लादेशी हिंदुओं को अपनी भावी पीढ़ी को बचाने के लिए आपकी सहायता की आवश्यकता है. @ConsultancyPnp.”
दास ने हिंदु-समर्थक संगठन जस्टिस फॉर हिंदूज के बांग्लादेश चैप्टर की स्थापना की, जो संयुक्त राज्य अमेरिका में पंजीकृत है और वहां करों से मुक्त है. उसे 2015 में इसका अध्यक्ष नियुक्त किया गया. जस्टिस फॉर हिंदूज की स्थापना विंसेंट ब्रूनो नामक एक अमेरिकी हिंदू ने की थी, जिसने हिंदूज फॉर ट्रम्प नामक एक समूह की भी स्थापना की थी.
वेबसाइट worldhindunews.com पर प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार, दास "बांग्लादेश के उन पहले हिंदुओं में से एक थे, जिन्होंने आगे आकर अपनी सेवाएं प्रदान की. श्री दास का बीडी (बांग्लादेश) में सामाजिक न्याय के लिए हिंदू समुदाय को संगठित करने का एक लंबा इतिहास रहा है और इसलिए वे एक जाना पहचाना और सम्मानित चेहरा हैं. अन्य सभी हिंदू कार्यकर्ताओं की तरह श्री दास भी हर दिन अपने समुदाय के लिए अपना जीवन दांव पर लगाते हैं. उनकी बहादुरी की जितनी तारीफ की जाए कम है."
बांग्लादेश के अंग्रेजी अखबार डेली सन में सितंबर 2020 की एक रिपोर्ट के अनुसार 2017 में हुई एक जांच के बावजूद 2015 के बाद से जेएचएम का ग्राफ लगातार ऊपर की ओर बढ़ा है (सीबीआई ने फरवरी 2020 में जेएचएम इंडिया के परिसरों की तलाशी ली थी). रिपोर्ट में कहा गया है : “प्रधानमंत्री कार्यालय के तत्कालीन निदेशक फरीद अहमद ने 28 दिसंबर 2017 को एक पत्र जारी कर अधिकारियों को सिंडिकेट के खिलाफ अभियान शुरू करने के निर्देश दिए.” रिपोर्ट में यह भी लिखा है कि जेएचएम बंधु मुर्शिदाबाद जिले से थे और उन्होंने 2017 में पत्थर के कारोबार के माध्यम से मनी-लॉन्ड्रिंग की शुरूआत की थी. इसमें दोनों भाइयों के मामा के रूप में एक जाना-पहचाना नाम भी शामिल था. कुछ अलग था तो बस नाम की वर्तनी: इनामुल हुक.
रिपोर्ट में जेएचएम पर हर दिन 100 करोड़ रुपए की लॉन्ड्रिंग का आरोप लगाया गया. इसमें लिखा गया, "अवैध तरीकों के माध्यम से मोची और किराने वाले भी चंद वर्षों के भीतर करोड़पति बन गए हैं. यह तीनों भाई बीएमडब्ल्यू, प्राडो और लेक्सस जैसी शाही गाड़ियों में घूमते हैं." जेएचएम समूह ने एक प्रेस विज्ञप्ति में इन आरोपों (बिना किसी खास आरोप को संबोधित किए) को खारिज किया. समूह की वेबसाइट अपनी एक शानदार तस्वीर पेश करती है: “जेएचएम एक स्थानीय स्टार्टअप से चलकर दुनिया के सबसे बड़े शक्तिशाली समूहों में से एक बन गया है. 180 मिलियन डॉलर के संचित नेट वर्थ के साथ यह व्यवसाय संचालन के सभी क्षेत्रों में राष्ट्रीय, क्षेत्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर बाकी उद्योगों के बीच एक प्रतिष्ठित स्थान पर काबिज है.
पिनाकी दास के पीएंडपी एसोसिएट्स की वेबसाइट का दावा है कि इसकी शुरूआत 2005 में हुई थी. नवंबर 2012 और जून 2013 के बीच उसने अपने व्यक्तिगत ट्विटर अकाउंट से बार-बार ट्वीट कर अपने व्यवसाय के लिए ग्राहकों की मांग की. 2013 के बाद कुछ वर्षों के लिए उसका अकाउंट चुप रहा. लेकिन 2010 के मध्य से देखें तो उसकी कहानी में एक महत्वपूर्ण उछाल आया है. 2016 में दास ने लिंक्डइन पर बांग्लादेशी निर्यातकों, जो विदेशी ऋण में रुचि रखते थे, को चार से छह प्रतिशत की ब्याज दर पर तीन से बारह साल की अवधि के लिए दस मिलियन डॉलर से ऊपर देने का वादा किया. लिंक्डिन पर छपे एक लेख में दास की योजना का विस्तृत ब्योरा दिया गया है. इसमें लिखा है, "इस प्रणाली में, एक आयातक इकाई को धन प्रदान करने के लिए तीन तरीकों का इस्तेमाल किया जा सकता है." फिर ये दस्तावेज इन तरीकों की व्याख्या करता है: प्रत्यक्ष ऋण, वित्तीय-मध्यस्थ ऋण और ब्याज-दर समानता.
सितंबर 2018 में दास ने फेसबुक पर "सम्मानित खरीदारों" को आमंत्रित किया, जिनकी "स्लैग / क्लिंकर / जिप्सम / फ्लाई-एश / कॉपर / कॉइल" खरीदने में रुचि हो. पीएंडपी के फेसबुक पेज के अनुसार ये सामग्री भारत, इंडोनेशिया, ईरान, ओमान और संयुक्त अरब अमीरात से आने वाली थी.
इस समय के दौरान जेएचएम लगातार मजबूती से बढ़ रहा था. सितंबर 2018 में जेएचएम इंटरनेशनल नामक एक नई कंपनी को समूह में जोड़ा गया. ये भारत के बाहर जेएचएम की पहली कंपनी थी. (उसी समय हक की गिरफ्तारी के बाद, हक से जुड़ी एक कंपनी, तूफान स्टील इंडस्ट्रीज को समूह की वेबसाइट पर अबाउट सेक्शन में जेएचएम के तहत कंपनियों की सूची से हटा दिया गया.) बिस्वजीत मालाकार, जो जेएचएम समूह के मुख्य वित्तीय नियंत्रक और समूह चार्टर्ड प्रमुख के रूप में सूचीबद्ध हैं, ने कंपनी में विविधता लाने और इंडोनेशिया और दुबई जैसे स्थानों में नई साझेदारी स्थापित करने के लिए दुनिया भर में यात्रा की. 2019 आते-आते जेएचएम समूह, जो उस समय तक चावल, प्याज, मिर्च, अदरक और लहसुन के साथ-साथ स्टोन मार्बल्स और रसद का काम करता था, बड़े उद्योगों में शामिल होने लगा.
इसने बांग्लादेश सरकार के साथ भी काम करना शुरू किया और ऐसे भागीदारों को तलाशने लगा जो सीमा के दोनों ओर की सरकारों के साथ प्रभावी रूप से काम कर सकें. पिनाकी दास फरवरी 2020 में जेएचएम में शामिल हुए. अपने फेसबुक अकाउंट पर उसने लिखा, “जेएचएम दुबई में स्थित एक बहुराष्ट्रीय कंपनी है. मैं बांग्लादेश ऑफिस में एक निदेशक के रूप में काम कर रहा हूं, जो बांग्लादेश थोक बाजार में आयातित पत्थर की थोक मात्रा के विपणन और आपूर्ति में शामिल है. सामान दुबई और भारत से आता है और बांग्लादेश में विभिन्न बड़ी निर्माण परियोजनाओं की आवश्यकता को पूरा करता है.''
जब भारत में जेएचएम की जांच चल रही थी, तब भी इसने तेजी से विस्तार किया और भारत और बांग्लादेश के बीच अवैध रूप से पैसों का हेरफेर शुरू किया. जेएचएम इंटरनेशनल के माध्यम से इस समूह ने पुलों, परमाणु ऊर्जा संयंत्रों और रेलमार्गों जैसी परियोजनाओं के लिए भारत से पत्थरों का निर्यात किया.
विदेशी निवेश पर भारतीय रिजर्व बैंक के 2019 के दस्तावेज में कहा गया है कि, बांग्लादेशी इकाई के माध्यम से ये भारतीय समूह बांग्लादेश में "थोक, खुदरा, व्यापार, रेस्तरां और होटल" में भी निवेश कर रहा था.
2019 में जेएचएम इंटरनेशनल ने बांग्लादेश में कोयला खदानों में निवेश करने के लिए एक अंतरराष्ट्रीय कोयला कंपनी टाइगर एनर्जी के साथ भी साझेदारी की. ये साझेदारी अभी भी जारी है. बांग्लादेश के मोंगला पोर्ट अथॉरिटी की वेबसाइट से मार्च 2020 के दस्तावेज़ में कंपनी द्वारा देश में मार्शल आईलैंड के झंडे वाले एक जहाज में समूह द्वारा 33,000 मीट्रिक टन कोयले का शिपमेंट दर्ज किया गया है. अक्टूबर 2020 के एक दस्तावेज़ में उसी बंदरगाह से कंपनी द्वारा देश में माल्टीज़ झंडे वाले एक जहाज में 21,000 मीट्रिक टन कोयले की शिपमेंट को रिकॉर्ड किया गया है.
2020 तक जेएचएम इंटरनेशनल ने बड़ी परियोजनाओं में निवेश करना शुरू कर दिया था. नवंबर में जारी एक प्रेस विज्ञप्ति के मुताबिक इस समूह ने 2023 तक बांग्लादेश में विभिन्न विकास परियोजनाओं पर 16.25 अरब डॉलर खर्च करने का वादा किया था. विज्ञप्ति में कहा गया, "बांग्लादेश दक्षिण एशिया का एक विकासशील देश है. बांग्लादेश के बुनियादी ढांचे को बेहतर करने के लिए बड़ी संख्या में विकास की पहल चल रही हैं, जिसने भारत, रूस, चीन और जापान जैसे देशों से निवेश आकर्षित किया है. जेएचएम इंटरनेशनल लिमिटेड (जेएचएम समूह की एक समूह कंपनी) इन मेगा विकास परियोजनाओं के लिए पत्थरों के प्रमुख आपूर्तिकर्ताओं में से एक है.
भारत और बांग्लादेश में जेएचएम समूह, जिसके एक कथित मवेशी तस्कर से संबंध हैं, की दिन दुगनी रात चौगुनी कहानी भारत के कई ऐसे व्यवसायों के भाग्य के विपरीत है, जो मवेशी व्यापार पर निर्भर हैं. इनमें से चमड़ा व्यवसाय प्रमुख है, जिसमें कानपुर जैसे हब भी शामिल हैं, जहां उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अजय सिंह बिष्ट, जिन्हें आदित्यनाथ के नाम से भी जाना जाता है, ने कच्चे माल के उद्योग की कमर तोड़ते हुए टेनरियों पर कार्रवाई का आदेश दिया है. कानपुर के एक चमड़ा उद्यमी ने मुझे बताया कि कई कंपनियां पश्चिम बंगाल चली गई हैं, जहां मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने कोलकाता के किसी उपनगर में एक चमड़ा परिसर स्थापित कर इस क्षेत्र के विकास को प्रोत्साहित किया है. उन्होंने कहा कि जब भारतीय चमड़ा व्यवसाय केंद्र सरकार की उदासीनता के कारण संघर्ष कर रहा था, तब बांग्लादेशी चमड़ा कंपनियां अंतर्राष्ट्रीय व्यापार मेलों में अपनी मौजूदगी दर्ज करा रही थी.
2014 के बाद से चमड़ा उद्योग में आई यह गिरावट वाणिज्य मंत्रालय की वेबसाइट पर मौजूद आंकड़ों में स्पष्ट रूप से दिखाई देती है. उस वर्ष से चमड़े और संबंधित उत्पादों के निर्यात में लगातार गिरावट आई है. निर्यात मूल्य 2015 में 1.3 बिलियन डॉलर से गिरकर 2020 में 525 मिलियन डॉलर हो गया.इस वर्ष तक ही पूरे आंकड़े उपलब्ध हैं. यह पांच वर्षों में लगभग साठ प्रतिशत की गिरावट का संकेत देते हैं.
इस बीच बांग्लादेश सरकार ने देश के चमड़ा उद्योग को बढ़ावा देने पर ध्यान केंद्रित किया है. प्रधानमंत्री शेख हसीना ने 2019 में एक उद्योग बैठक में घोषणा की कि यह उनके लिए एक प्राथमिकता वाला क्षेत्र है. उन्होंने व्यवसाय से जुड़े लोगों से कहा, “निर्यात के दायरे का विस्तार करने के लिए हमारी सरकार हमेशा नए उत्पादों को बढ़ावा देने और दुनिया भर में नए बाजारों की खोज करने में सक्रिय है. इस सिलसिले में आपको हमारी ओर से भरपूर सहयोग मिलेगा. हम आपको यह आश्वासन दे सकते हैं."
ऐसा प्रतीत होता है कि जहां एक ओर मांस, चमड़ा और मवेशियों पर निर्भर अन्य उद्योगों पर हुई कार्रवाई ने भारतीय व्यापार को ठेस पहुंचाई है, वहीं हक और उससे जुड़े लोग और कंपनियां ख़ूब मुनाफ़े में फल-फूल रहे हैं. एजेंसियों की जांच का पूरा ब्योरा अभी पता नहीं चला है, लेकिन इनमें से कई नाम अब तक न्यूज रिपोर्टों में नहीं आए हैं. मैंने मवेशी तस्करी नेटवर्क, हक की गतिविधियों और उससे जुड़ी कंपनियों के बारे में सीबीआई, डीआरआई और बीएसएफ के साथ-साथ हक समूह, जेएचएम समूह और उनसे जुड़ी अन्य कंपनियों को सवाल भेजे. सीबीआई के प्रवक्ता ने मेरी संपर्क जानकारी के साथ-साथ मेरे सहयोगी अजय प्रकाश और पत्रिका के संपादकों के बारे में भी जानकारी मांगी. मैंने उन्हें जानकारी भेजी, लेकिन समाचार लिखे जाने तक मुझे एजेंसी से कोई जवाब नहीं मिला था. मैंने जिन अन्य लोगों से संपर्क किया, उनमें से भी किसी ने जवाब नहीं दिया. अब यह देखा जाना बाकी है कि क्या इस जांच से भारत के पशु-तस्करी नेटवर्क और अन्य व्यवसायों के साथ उनके संबंध उजागर होंगे या नहीं.
(अनुवाद : कुमार उन्नयन)