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22 अप्रैल 1498 की दोपहर. पूर्वी अफ्रीका के मालिंदी बंदरगाह से कुछ किलोमीटर दूर कप्तान मेजर वास्को द गामा की खुशी का ठिकाना नहीं है. इस महाद्वीप में मोजाम्बिक से मोम्बासा के बीच दक्षिणपूर्वी तट पर चार महीनों तक बहते रहने के बाद इस पुर्तगाली कप्तान को एक ऐसा नाविक मिल गया था जो उसे भारत ले जाने वाला था. अपनी यात्रा में द गामा को स्थानीय शासकों, अरब और अफ्रीकी व्यापारियों की शत्रुता का सामना करना पड़ा था.
''एशिया का समुद्री मार्ग खोजने वाले'' के रूप में मशहूर द गामा को कालीकट पहुंचाने वाले नाविक का नाम कांजी मालम था. वह गुजराती था. कपास और नील का यह व्यापारी सोने और हाथीदांत के बदले अपने माल का सौदा करने अफ्रीकी तटों पर अक्सर जाया करता था. आश्चर्य की बात नहीं कि एक गुजराती, द गामा को भारत लेकर आया था. जहाज चलाने, समुद्र में सफर करने और व्यापार करने के मामले में गुजारती कौशल का पहले ही लोहा माना जा चुका था. साथ ही गुजरातियों ने फारस की खाड़ी से लेकर मलेशिया और इंडोनेशिया तक व्यापार मार्ग स्थापित कर रखे थे.
पुर्तगालियों के यहां पहुंचने के दो शताब्दी पहले गुजरात, दुनिया के दो मुख्य व्यापार अक्षों सिल्क और मसाला व्यापार का जंक्शन पर रह चुका है. ये उपमहाद्वीप में प्रवेश करने वाले अफ्रीकी, अरब और एशियाई बंदरगाहों के सामानों के लिए एक प्रमुख वितरण का केंद्र था. समुद्री किनारे से एक अंतर्देशीय व्यापार मार्ग बिहार, दूसरा उत्तर में मथुरा और तीसरा दक्षिण में मराठावाड़ को जाता था. यूरोप के लोगों के भारत में कदम रखने से सदियों पहले ग्रीस, अरब, फारस, अफ्रीका और चीन के व्यापारी गुजरात में व्यापार करने आते थे.
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