15 नवंबर 1949 की सुबह, फांसी लगने से पहले मोहनदास करमचंद गांधी का हत्यारा, हिंदू राष्ट्रवादी धर्मांध नाथूराम विनायक गोडसे एक प्रार्थना पढ़ रहा था :
नमस्ते सदा वत्सले मातृभूमे
त्वया हिन्दुभूमे सुखं वर्धितोऽहम्.
महामङ्गले पुण्यभूमे त्वदर्थे
पतत्वेष कायो नमस्ते नमस्ते.
(हे प्यार करने वाली मातृभूमि! मैं तुझे सदा नमन करता हूं.
तूने मेरा सुख से पालन-पोषण किया है.
हे महामंगलमयी पुण्यभूमि! तेरे ही कार्य में मेरा यह शरीर अर्पण हो.
मैं तुझे बारम्बार नमस्कार करता हूं.)
संस्कृत में इन चार वाक्यों के पहले तीन वाक्य, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) की आधिकारिक प्रार्थना में इस्तेमाल होते हैं, जो आज तक संघ की शाखाओं में शारीरिक और वैचारिक प्रशिक्षण के दौरान पढ़ी जाती हैं.
गोडसे का इन्हीं पंक्तियों को चुनने का कारण कदाचित असमंजस में डालने वाला है. सामन्यत: यह धारणा रही है कि वह 1938 के आसपास आरएसएस को छोड़कर उस समय की सबसे बड़ी हिंदू राष्ट्रवादी पार्टी, अखिल भारतीय हिंदू महासभा में शामिल हो गया था. लेकिन मराठी प्रार्थना की जगह आरएसएस ने इस संस्कृत प्रार्थना को अपनाया जिसे 1939 में लिखा गया था, जो आगे कई सालों बाद, शाखा स्वयंसेवकों के बीच प्रचलन में आई. जाहिर है कि अगर गोडसे इस प्रार्थना से अवगत था, तो इसका मतलब उसका संबंध संघ से 1939 के बाद भी बना रहा होगा.
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