मार्च 2017 में 51 राज्य और केंद्रीय विश्वविद्यालयों के सैकड़ों शिक्षाविद और कुलपति दिल्ली विश्वविद्यालय में दो दिनों तक यह जानने के लिए एकत्र हुए कि शिक्षा जगत में “वास्तविक राष्ट्रवादी विवरण” कैसे लाया जाए. बंद दरवाजे के इस कार्यक्रम को “ज्ञान संगम” का नाम दिया गया. इसके मुख्य वक्ताओं में से एक थे भारतीय जनता पार्टी के वैचारिक अभिभावक, राष्ट्रीय स्वंय सेवक संघ के सर्वोच्च नेता सरसंघचालक मोहन भागवत. कथित रूप से चर्चा के विषय थे “शैक्षिक प्रणाली पर सांस्कृतिक हमले” बुद्धिजीवियों का “उपनिवेशीकरण” और शिक्षा जगत में राष्ट्रवाद का पुनरुत्थान.
इसकी वेबसाइट के अनुसार ज्ञान संगम “2016 में शुरू किया गया सकारात्मक राष्ट्रवादी शिक्षाविदों के लिए मंच बनाने की पहल है”. इसकी साइट विवेकानंद को उद्धृत करते हुए कहती है “सभी विज्ञानों की उत्पत्ति भारत में हुई”. ये कार्यशालाएं आरएसएस से जुड़े प्रज्ञा प्रवाह द्वारा आयोजित की गई हैं जो 25 साल पहले आरंभ की गई संघ की एक विशिष्ट परियोजना है. संगठन कहता है कि इसकी दृष्टि एक ऐसी “तर्कसंगत छतरी है जो लोगों को भारत की अंतर्निहित शक्ति को उस शैक्षिक शक्ति के साथ पहचानने के लिए प्रोत्साहित, प्रशिक्षित और समन्वित करती है जो भारतीय मस्तिष्क को यूरोप केंद्रित औपनिवेशिक प्रभाव को छोड़ने के लिए निर्दिष्ट करती है. ऐसा प्रतीत होता है कि इसकी इच्छा भारत को बदलने तक सीमित नहीं है. “आत्मसाती और आत्म निर्वाहक होने के कारण हिंदुत्व में पश्चिम की तानाशाही नीतियों के माध्यम से एकत्रित शक्ति के अहंकार से दुनिया को मुक्त कराने की ताकत है.
जिस स्तर पर प्रज्ञा प्रवाह इस आयोजन को करने में सक्षम थी वह बताता है कि मोदी शासन के अंतर्गत कितनी बड़ी ताकत संगठन ने हासिल की है. उसी साल संघ में एक महत्वपूर्ण चेहरा और अखिल भारतीय सह प्रचार प्रमुख जे नंदकुमार को प्रज्ञा प्रवाह का राष्ट्रीय संयोजक नियुक्त किया गया था. इसे अक्सर ‘आरएसएस की बौद्धिक शाखा’ कहा जाता है. इस संगठन का मकसद वामपंथ के सांस्कृतिक वर्चस्व से मुकाबला करना है चाहे वह जेएनयू जैसे विश्वविद्यालयों में हो या पश्चिम बंगाल या केरल जैस राज्यों में.
ज्ञान संगम कार्यक्रम से एक महीना पहले “विरोध की संस्कृतियां: असहमति के प्रतिनिधित्व की खोज करता एक सम्मेलन” विषय पर रामजस कालेज द्वारा एक सम्मेल आयोजित किया गया था. आरएसएस की छात्र इकाई अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के सदस्यों ने हिंसक तरीके से इसको बाधित किया था. एबीवीपी ने सेमिनार के आमंत्रित वक्ताओं में उमर खालिद को शामिल किए जाने पर आपत्ति की थी. उस समय जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय से डॉक्टोरेट कर रहे खालिद उन छात्रों में एक थे जो 2016 में जेएनयू में आए तूफान के केंद्र में थे. छात्रसंघ अध्यक्ष कन्हैया कुमार व अन्य के साथ उन्हें देशद्रोह के आरोपों में गिरफ्तार किया गया था. इन घटनाओं ने छात्रों पर कानूनी कार्यवाही और “जेएनयू राष्ट्र विरोधियों का अड्डा है” जैसे विचार पर केंद्रित प्राइम टाइम चर्चा को प्रोत्साहित किया था.
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