रक्त चरित्र : केरल में आरएसएस का खूनी इतिहास

जब सुप्रीम कोर्ट ने सबरीमाला में महिलाओं के प्रवेश पर लगे प्रतिबंध को समाप्त कर दिया तो आरएसएस ने केरल में भारी विरोध प्रदर्शन किया. एएफपी/गैटी इमेजिस
जब सुप्रीम कोर्ट ने सबरीमाला में महिलाओं के प्रवेश पर लगे प्रतिबंध को समाप्त कर दिया तो आरएसएस ने केरल में भारी विरोध प्रदर्शन किया. एएफपी/गैटी इमेजिस

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(पहला)

वह कोई आम बृहस्पतिवार नहीं था. 9 जुलाई 2015 की सुबह मोहम्मद फहाद अपनी बहन शहला और एक दोस्त अब्दुल अनस के साथ स्कूल जा रहा था. उनके घर से क्ल्लीओट के सरकारी उच्च-माध्यमिक स्कूल तक जो पगडंडी जाती थी वह सालों से अच्छी बातचीत, पसंदीदा क्रिकेटरों और अदाकारों पर बहस, चॉकलेट के लिए छोटे-मोटे झगड़े और किताब से क्रिकेट की गपबाजी के लिए एक आदर्श जगह रही है. केरल के उत्तरी मालाबार का एक जिला है क्ल्लीओट.

फहाद की उम्र आठ और शहला की 11 साल थी. दोनों वामपंथी झुकाव वाले, मजदूर वर्ग के मुस्लिम परिवार में पले-बढ़े थे. बीते सालों में मालाबार में तेजी से बढ़ी साम्प्रदायिकता के बावजूद फहाद और शहला अपनी पहचान को लेकर जरा भी असुरक्षित महसूस नहीं करते थे. क्ल्लीओट के हिंदू-मुसलमानों में साम्प्रदायिक सौहार्द का इतिहास रहा है. फहाद का परिवार हमेशा वायानथ्थू कुलावम थेय्यम के आयोजन में हिस्सा लेता था. दक्षिणी मालाबार में उत्पीड़ित जाति के हिंदू हर साल इसे मनाते हैं.

1990 की शुरुआत में कासरगोड, इंडोसल्फान से जुड़े कोहराम का केंद्र था. इंडोसल्फान एक कीटनाशक है जिसे जिले की काजू की फसल पर अंधाधुंध तरीके से इस्तेमाल किया गया था. जब पता चला कि इसकी वजह से राज्य के 5000 लोगों को शारीरिक विकृति और स्वास्थ्य से जुड़ी समस्या का सामना करना पड़ा है तब सुप्रीम कोर्ट ने 2011 में इसके इस्तेमाल पर बैन लगा दिया. इन पीड़ितों में फहाद भी था. उसे जन्म से ही क्लब फुक (मुद्गरपाद) की बीमारी थी और , उसके दाहिना पैर बेकार था.

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