12 जून 2010 की सुबह 40-साला खातून, रुबीना मट्टू, श्रीनगर के बीचों-बीच सैदा कदाल मोहल्ले में अपने दुमंजिले घर के बाहर खड़ी थीं. पूरा पड़ोस बिलखने के गगनभेदी कृन्दन में डूबा था. इस दुख में डूबे परिवारजनों, नाते-रिश्तेदारों और पड़ोसियों से आंगन खचाखच भरा था. तभी लकड़ी के एक ताबूत में मैय्यत को कांधा दिए लोगों का हजूम दाखिल होता है. उस ताबूत के अंदर, रुबीना का मरा हुआ बेटा है, जिसके गम में वे रात से ही मुसलसल रोए जा रहीं थीं; कभी अपनी छाती पीटतीं, कभी बाल नोचतीं, कभी अपने मरहूम बेटे की शान में कसीदे पढ़तीं. “वालो मैंने महाराजू (आजा मेरे दुल्हे राजा),” एक दर्दभरी रुदाद गले से पुकारती, “मैंज हीथ हा चेसई पयारान (मैं हिना लिए तुम्हारी मुंतजिर हूं).” एक दिन पहले 11 जून के दिन ग्यारवीं जमात का विद्यार्थी, 17-वर्षीय उनका बेटा तुफैल मट्टू, ट्यूशन से घर लौट रहा था, जब उसके सर में अचानक पुलिस द्वारा प्रदर्शनकारियों को छितराने के लिए चलाया गया अश्रुगैस का खोल आकर लगा.
मट्टू की बालकनी में खातूनों का हजूम, तुफैल की एक झलक पाने के लिए अपनी गर्दने उचका-उचका कर देख रहा था. उनकी आंखों से लगातार आंसुओं की धारा बहे जा रही थी. आंगन के दूसरी तरफ, अपने कांधों पर ताबूत उठाए मर्दों ने नारा बुलंद किया: “हमें आजादी दो! कातिलों को सजा दो!” तुफैल के तमाम दोस्त शून्य में तकते एक तरफ उदास, चुपचाप खड़े थे; दूसरी तरफ, बाकि लोग मैय्यत तैयारियों पर टकटकी लगाए थे. रुबीना को यकीन ही नहीं हो रहा था कि उनका बेटा अब नहीं रहा. वे बार-बार यही दोहराती रहीं कि कुछ दिन पहले ही उनके बेटे ने कार पसंद की थी. तुफैल के वालिद, मुहम्मद अशरफ चौके में गुमसुम स्तब्ध बैठे अपने हाथों के नाखून चबा रहे थे. “मैं बम्बई में था, अशरफ ने कहा, “मुझे क्या मालूम था कि मैं अपने बेटे को दफनाने के लिए ही घर लौटकर आया हूं.”
कश्मीर, गुस्से की ज्वाला में उफन पड़ा. हजारों की तादाद में, इस कत्ल की खिलाफत में गुस्से में तमतमाए कदमों से लोग आजादी के नारे लगाते हुए सड़कों पर उतर आए. हिंदुस्तानी फौज और राज्य पुलिस ने जवाबी कार्रवाई में गोलियां दाग दीं. हर विरोध प्रदर्शन के बाद हत्या; और, हर ह्त्या के बाद विरोध प्रदर्शन का यह सिलसिला यूं ही चलता रहा. शहर पर कर्फ्यू थोप दिया जाता और लोग उसे तोड़कर फिर सड़कों पर एकत्रित हो जाते. तुफैल की मौत के बाद, दो महीनों में पुलिस और अर्धसैनिक बलों की गोलियों ने 60 युवा कश्मीरियों को लील लिया था. 19 अगस्त तक, मरने वालों में नौ साल का एक लड़का भी था, जो दक्षिण कश्मीर के अनंतनाग जिले में हर्नाग नाम की जगह पर 10 अगस्त के दिन सुरक्षा बलों की गोलियों का शिकार बना था. डॉक्टरों ने पुष्टि की कि गोली उसकी खोपड़ी को भेद कर अंदर घुसी थी, जिससे उसके मस्तिष्क को क्षति पहुंची थी. इस विद्रोह से निपटने के लिए, जम्मू और कश्मीर सरकार ने और अधिक शक्ति का प्रदर्शन किया. मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्लाह ने सेना की मदद की गुहार लगाई, जो श्रीनगर की सड़कों पर मार्चपास्ट करने लगी. लेकिन असंतोष की लहर थी कि थमने का नाम ही नहीं ले रही थी. कश्मीर की वादियां, आजादी! आजादी!! के नारों से गूंज उठीं. जवान लड़कों ने बेधड़क अपने हाथों में पत्थर लिए सड़कों पर उतरना जारी रखा.
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