24 अक्टूबर 2018 एक चमकीली धूप की शाम कोच्चि में बैंकों और बीमा क्षेत्रों में काम करने वाले लगभग 200 पुरुष और महिलाएं ऑफिस के बाद एक भाषण सुनने इकट्ठा हुए. वे चित्तूर रोड पर यंग मेन्स क्रिश्चियन एसोसिएशन (वाईएमसीए) के विक्टोरिया हॉल में बने एक ऑडिटोरियम में उपस्थित थे. हॉल के एक छोर पर बने दो फुट के स्टेज पर एक दुबला-पतला आदमी सफेद मुंडु और फीके हरे रंग का हैंडलूम कुर्ता पहने खड़ा था. लकड़ी के पोडियम का सहारा लेकर वह अगले एक घंटे तक बोला. बीच-बीच में वह अपने जगमगते दांतों से मुस्कुराता रहता.
उसके पीछे एक हाथी दांत के रंग का पर्दा लटका हुआ था, जिस पर आयोजकों के नाम के साथ उस सार्वजनिक लेक्चर का नाम लिखा था- "सबरीमालाः द कोर्ट वर्डिक्ट एंड केरला रिनोसेंस." लगभग एक घंटे के इस भाषण की रिकॉर्डिंग हुई और यूट्यूब पर अपलोड कर दिया गया. अगले तीन महीनों में इस वीडियो को 15 लाख बार देखा गया. भाषण की छोटी-छोटी क्लिप फेसबुक और वॉट्सऐप पर अनगिनत बार शेयर की गई. पोडियम पर खड़े व्यक्ति का नाम सुनील पी इलाईडोम है. वह कलाड़ी की सरकारी श्री संकराचार्य यूनिवर्सिटी में मलयालम के प्रोफेसर हैं. पिछले कुछ समय में इलाईडोम दुनियाभर में रहने वाले मलयाली लोगों के बीच जाना-पहचाना नाम बन गए हैं.
इलाईडोम अपने भाषण में बार-बार पूछते हैं, "धर्म का विचार क्या है? क्या धर्म को संस्कारों का समुच्चय होना चाहिए या धर्म को मूल्यों के संग्रह के रूप में देखा जाना चाहिए?" उन्होंने हिंदुत्व द्वारा शोषित जातियों के अपमान का उल्लेख किया, जिन्हें बाहर आने की इजाजत नहीं थी और जिन्हें एक जगह से दूसरी जगह जाने के लिए झाड़ियों में छिपकर जाना होता था. वह कहते हैं, "यह सदियों पुरानी बात नहीं है. 20वीं सदी में भी ऐसा होता रहा है. लोगों को दिन में सिर उठाकर नहीं चलने दिया जाता था, उन्हें घुटनों से नीचे मुंडु पहनने की इजाजत नहीं थी, अगर वे किसी दुकान में जाकर नमक के लिए पूछ लेते तो भीड़ उनकी हत्या कर दी जाती थी." वह बताते हैं कि जो भी प्रगति हुई है वह किसी की उदारता का परिणाम नहीं है बल्कि यह भेदभाव वाली रीतियों के खिलाफ लगातार होने वाले संघर्षों की वजह से है. जिसका नाम था "नवोधनम"- पुनर्जागरण.
इस तरह लोगों से बात करना इलाईडोम के लिए नया नहीं है. उन्हें इसका 30 साल से अधिक का अनुभव है. वह अपने कॉलेज के दिनों से ऐसा करते आए हैं. मध्य केरल के लहजे के साथ उनके भाषणों में कविता की लय होती है. जब वह आमतौर पर नहीं बोले जाने वाले शब्द इस्तेमाल करते हैं तो उन्हें समझाते भी हैं. उनका मजाक और गुस्सा जटिल है. वह एक असामान्य दयालुता के साथ मजाक और आलोचना करते हैं और उनकी मुस्कुराहट उनके भाषणों से पैदा होने वाले तनाव को कम करती है.
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