सीलबंद लिफाफे और फैसले

एनआरसी : रंजन गोगोई का सरकार को तोहफा

13 मार्च 2020
अजय अग्रवाल/हिंदुस्तान टाइम्स/गैटी इमेजिस
अजय अग्रवाल/हिंदुस्तान टाइम्स/गैटी इमेजिस

(एक)

2018 की जुलाई में जब इंडियन एक्सप्रेस ग्रुप ने सुप्रीम कोर्ट के उस समय के दूसरे वरिष्ठतम जज रंजन गोगोई को रामनाथ गोयनका मेमोरियल लेक्चर के लिए बतौर वक्ता चुना तो कुछ प्रगतिशील लोगों ने उनके इस चुनाव पर सवाल खड़ा कर दिया.

जल्दी ही भारत के मुख्य न्यायाधीश बनने वाले गोगोई का परिचय देते हुए इंडियन एक्सप्रेस के प्रधान संपादक राजकमल झा ने उनकी तारीफ की झड़ी लगा दी. झा ने कहा कि पत्रकार और न्यायपालिका के सदस्य दोनों को “बगैर किसी डर या पक्षपात के” काम करना पड़ता है ताकि वे अपनी जिम्मेदारी बेहतर ढंग से निभा सकें और गोगोई ने उनकी निगाह में उसी तरह काम किया.

झा ने कहा कि इंडियन एक्सप्रेस के संस्थापक रामनाथ गोयनका को इससे ज्यादा उचित श्रद्धांजलि नहीं दी जा सकती. उन्होंने कहा, “न्यूज रूम की लाल स्याही की एक मोटी लकीर, जिसे हम अपने रिपोर्टर को बताते हैं, वह कभी किसी फैसले या जज के इरादे पर आरोप नहीं है... मैं वह लकीर खींचने जा रहा हूं और मैं यहां कुछ छूट लूंगा. जस्टिस गोगोई की कथनी और करनी इस भाव को, इस धारणा को और मजबूत करती है... कि न्याय की तलाश भय और पक्षपात के बगैर ही होती है. गुवाहाटी से लेकर पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय हो या सुप्रीम कोर्ट से लेकर जनवरी की सर्दियों की सुबह की वह लॉन, जस्टिस गोगोई ने हमेशा उस फर्क को पाटने का काम किया है जिसे वह संवैधानिक आदर्शवाद और संवैधानिक यथार्थवाद के बीच का फर्क कहते हैं.”

झा उस लॉन का जिक्र कर रहे थे जहां उस वर्ष 12 जनवरी को गोगोई सहित उच्चतम न्यायालय के चार कार्यरत जजों ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस किया था. सुप्रीम कोर्ट के इतिहास में पहली बार मीडिया को संबोधित करने के लिए चार कार्यरत जज एक साथ आए थे. उन्होंने मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा के तौर-तरीकों को लेकर सार्वजनिक तौर पर अपनी शिकायत का इजहार किया था. उन्होंने बीजेपी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार के पक्ष में दीपक मिश्रा के विवादास्पद फैसलों का जिक्र करते हुए आरोप लगाया था कि वह उन महत्वपूर्ण मामलों को, जिनमें सरकार शामिल है, उन जजों को सौंप रहे हैं जिनके बारे में लगता है कि वे सरकार का पक्ष लेंगे. इस प्रेस कॉन्फ्रेंस की व्यापक आलोचना हुई. जस्टिस दीपक मिश्रा के संभावित उत्तराधिकारी रंजन गोगोई के साहस की जमकर तारीफ हुई और लोगों ने अटकलें लगायीं कि ऐसा करके उन्होंने मुख्य न्यायाधीश बनने का अपना अवसर गंवा दिया. गोगोई हीरो बन गए और उन्होंने एक ऐसे प्रधान न्यायाधीश की उम्मीद पैदा कर दी जो संविधान के रक्षक के रूप में उच्चतम न्यायालय की साख को वापस स्थापित कर सकता है.

अर्शु जॉन कारवां के सहायक संपादक (वेब) है. पत्रकारिता में आने से पहले दिल्ली में वकालत कर रहे थे.

Keywords: Ranjan Gogoi Supreme Court of India Supreme Court NRC Citizenship (Amendment) Act
कमेंट