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अगस्त के शुरुआत में एक सुबह अपर हिमालय के एक छोटे से गांव में रहने वाले कार्तिक राणा ने ऑल इंडिया रेडियो में मौसम का अनुमान सुना कि बहुत तेज बारिश होने वाली है. 80 साल के राणा ने अपनी पत्नी, बेटियों, बहुओं और पोते-पोतियों को आवाज दी कि भेड़ों को घर ले आओ कि बादल फटने वाले हैं.
मैं उसी दिन सुबह लता खारक पहुंचा था. उस दिन भारी वर्षा और हिमस्खलन के चलते, कुछ घंटे पहले ही खारक से उत्तर की ओर करीब 100 मील की दूरी में स्थित लेह में बादलों के फटने से 200 लोगों की मौत हो गई थी. इन पर्वतों में, चीन तक, हुए भूस्खलनों में 1000 लोगों की जान चली गई थी.
लता खारक में भयानक बिजली गिर रही थी. यह गांव समुद्र तल से 2370 मीटर की ऊंचाई पर है. बिजली ऐसी कौंध रही थी कि डर लग रहा था, और कुछ सैकेंडों में भेड़, बकरियां और नंगे-पुंगे बच्चे झाड़ियों से निकले और बचने के लिए जगह तलाशने लगे. लता खारक के लता और रैणी गांव मानव उपस्थित वाले सबसे ऊंचे स्थान हैं. इनके ऊपर मनुष्य या पालतू जानवरों की मौजूदगी नहीं है.
यहां से और ऊंचाई पर स्थित है नंदा देवी, जो भारत की दूसरी सबसे ऊंची पर्वत चोटी है. यह समुद्र तल से 7816 मीटर की ऊंचाई पर है. कार्तिक राणा पोपले मुंह वाले, छोटी कद-काठी के फुर्तीले इंसान हैं. इस उम्र में भी वह कुशाग्र हैं और उनमें जवान लड़को जैसा उत्साह है. वह तिब्बती मूल के बंजारा समुदाय जाड भोटिया से तालुल्ख रखते हैं.
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