स्मृति ईरानी आगे बढ़ीं और कैमरे और माइक्रोफोन के जमावड़े के सामने खड़ी हो गईं. ये दिसंबर 2004 का दूसरा हफ्ता था. अनुभवहीन नेता के अलावा एक टीवी स्टार, जो भारतीय इतिहास में सबसे ज्यादा देखे जाने वाले टीवी सीरियलों में से एक की प्रमुख अभिनेत्री थी. तब उन्होंने गुजरात के सूरत में एक गहनों की दुकान का उद्घाटन किया था. इस दौरान वहां मौजूद ज्यादातर रिपोर्टर मनोरंजन चैनलों के थे. उन्हें उम्मीद थी कि ईरानी उन्हें उनके सीरियल क्योंकि सास भी कभी बहू थी से जुड़ी कोई बाइट या स्कूप देंगी. रिपोर्टरों ने सुना था कि इसके अगले एपिसोड में ईरानी अपने मनमौजी बेटे पर बंदूक तानने वाली हैं. लेकिन उन्होंने जो कहा उसकी किसी ने कल्पना भी नहीं की थी.
ईरानी ने उस नरेंद्र मोदी पर करारा हमला बोला जो तब गुजरात के मुख्यमंत्री थे और जिन्हें भारतीय जनता पार्टी के सबसे प्रबल नेताओं में से एक के तौर पर देखा जा रहा था. ईरानी पिछले साल ही इस पार्टी का हिस्सा बनी थीं. बीजेपी छह महीने पहले संसदीय चुनाव हारी थी. पूर्व प्रधानमंत्री और पार्टी के सीनियर नेता अटल बिहारी वाजपेयी ने हार के लिए 2002 के दंगों को जिम्मेदार ठहराया था. इन दंगों के आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार, इसमें 254 हिंदू और 790 मुस्लिम मारे गए थे. अंग्रेजी में बोलते हुए ईरानी ने, मोदी को पार्टी और गुजरात की छवि के साथ-साथ वाजपेयी की साख को नुकसान पहुंचाने के लिए जमकर लताड़ लगाई. उन्होंने दंगों के बाद मुख्यमंत्री की कुर्सी पकड़े रहने के मोदी के फैसले को, "बेहद चौंकाने वाला और भयानक" करार दिया और कहा, "अगर नरेंद्र-भाई गुजरात का मुख्यमंत्री पद छोड़ देते हैं, तो यह साबित होगा कि बीजेपी एक अलग तरह की पार्टी है." इसके बाद ईरानी ने एक बड़े राजनीतिक दांव की घोषणा की. उन्होंने कहा कि अगर मोदी अपना पद नहीं छोड़ते, “तो अटल जी के जन्म दिन यानि 25 दिसंबर को मैं एक उपवास शुरू करूंगी जो उनके पद छोड़ने तक जारी रहेगा, “मेरा जीवन समाप्त होने तक का उपवास.”
तब बीजेपी को दो गुटों में बंटा माना जाता था, पहला वाजपेयी और ईरानी के गुरू प्रमोद महाजन का गुट और दूसरा उस समय पार्टी अध्यक्ष आडवाणी और 2001 में गुजरात के मुख्यमंत्री बने मोदी का उदीयमान गुट. गुजरात में 2004 के चुनाव से कुछ समय पहले मोदी के साथ एक संवाददाता सम्मेलन में वाजपेयी ने उन्हें अपने "राज धर्म" का पालन करने की सलाह दी थी. एक शासक के तौर पर उनका धर्म याद दिलाया और कहा कि "राजा और शासक जन्म, जाति या धर्म के आधार पर भेदभाव नहीं कर सकते हैं." व्यापक तौर पर इस टिप्पणी को मोदी प्रशासन के हिंसा को संभालने की आलोचना के तौर पर देखा गया था. उसी साल बाद में बीजेपी की चुनावी हार के बाद वाजपेयी ने प्रेस को इस बात के संकेत दिए थे कि मोदी को अभी भी हटाया जा सकता है.
सूरत में ईरानी का दांव वाजपेयी के पक्ष में जीतने के लिए सोच समझकर उठाया गया कदम लगा. ईरानी को लगता था कि बीजेपी में उनके पास सबसे ज्यादा ताकत है. गुजरात यूनिट के वरिष्ठ बीजेपी नेता ने मुझे जुलाई में बताया, “अटल जी द्वारा ऐसा कहा जाना अलग बात थी लेकिन स्मृति जैसी नए सदस्य का ये कहना ठीक नहीं था, हमें झटका लगा.” उन्होंने आगे कहा कि राज्य में किसी नेता ने कभी भी खुलकर मोदी की आलोचना नहीं की थी. उन्होंने कहा, “चाहे वह अपनी चेतना से बात कर रही हों या धूर्तता से, मैं इस बात से प्रभावित था कि वह कितना जोखिम उठाने को तैयार हैं.”
लेकिन ईरानी का गणित गलत था. बीजेपी मोदी के खिलाफ ऐसे जोरदार असंतोष को सहन करने के मूड में नहीं थी, खासतौर पर एक नए नेता से तो बिल्कुल नहीं. आउटलुक मैगजीन के मुताबिक, पार्टी ने "यह साफ कर दिया कि वे या तो अपना बयान वापस लें या अनुशासनात्मक कार्रवाई का सामने करने के लिए तैयार रहें." ईरानी ने कदम वापस खींच लिए. उसने उस रात देर से जारी एक संक्षिप्त बयान में कहा, “आज दोपहर मैं सूरत गई थी जहां मैंने गुजरात के मुख्यमंत्री के बारे में बयान दिया था. मुझे बाद में एहसास हुआ कि पार्टी के एक जिम्मेदार सदस्य के रूप में मुझे यह नहीं कहना चाहिए था. इसलिए मैं बिना शर्त के अपना बयान वापस लेती हूं.” वरिष्ठ बीजेपी नेता ने उस दिन यही सोचा, “ये यहीं समाप्त होता है, उसका राजनीतिक करियर गया. वह इतनी ताकतवर नहीं कि इससे उबर सके.”
कई और नेताओं की तरह इस नेता ने भी ईरानी को कम करके आंका था. बीजेपी को कवर करने वाले एक अनुभवी पत्रकार के मुताबिक ईरानी ने उसी सप्ताह दिल्ली में आडवाणी से मिलने के लिए उड़ान भरी और उनसे माफी मांग ली. आडवाणी ने दो महीने बाद सबके सामने मोदी के साथ संघर्ष विराम करवा दिया. 7 फरवरी 2005 की शाम को भारतीय सिनेमा में देशभक्ति पर एक डॉक्यूमेंट्री की स्क्रीनिंग के लिए कई बीजेपी सदस्य आडवाणी के घर इकट्ठे हुए थे, डॉक्यूमेंट्री उनकी बेटी ने बनाई थी. यहां टीवी कैमरों के सामने ईरानी ने झुककर मोदी के पैर छुए. इसके बाद मोदी ने उनके सर पर अपना हाथ रख दिया और उन्हें “गुजरात की बेटी” बुलाया.
गांधीनगर में वरिष्ठ बीजेपी नेताओं के करीबी एक व्यक्ति ने मुझे बताया कि पार्टी ने सार्वजनिक सुलह से पहले अहमदाबाद में मोदी और ईरानी की मुलाकात की भी व्यवस्था की थी. इस मई एनडीटीवी के साथ एक इंटरव्यू में ईरानी ने उस बैठक की चर्चा की. उन्होंने कहा, “बीजेपी के सितारे मोदी पार्टी से कह सकते थे कि लड़की ने जो किया है उससे काफी कुछ पता चलता है, उसे बाहर का रास्ता दिखाया जाए.” ईरानी ने आगे कहा, “उल्टे वह मेरे साथ बैठे. उन्होंने पूछा, ‘मुझे बताओ कि तुम इस निष्कर्ष तक कैसे पहुंची.” ईरानी ने मीडिया रिपोर्ट से खुद के प्रभावित होने की बात कही. मोदी ने जाहिर तौर पर जवाब दिया, “मुझे संपादकीय के पैमाने पर मत तौलो, ये तय करो कि तुम मुझे उस काम के सहारे देखोगी जो मैं कर रहा हूं,” ईरानी ने कहा, “मोदी किसी माफी या सफाई की उम्मीद नहीं लगाए बैठे थे.” इसके बजाय उन्होंने ईरानी को किसी भी कार्यक्रम में खुद को शामिल करने की सलाह दी. “मुझे इसे सफल बनाने में मदद करो, तुम्हें पार्टी के लिए ऐसा कुछ करना चाहिए.” ईरानी ने कहा, “मेरे भीतर इस व्यक्ति के लिए रातों रात सम्मान बढ़ गया.”
इस सुलह ने ईरानी को एक ऐसी गलती से बचा लिया जो उनका करियर समाप्त कर देता. लेकिन वह सिर्फ बची ही नहीं बल्कि आने वाले दशक में वे पार्टी के सबसे प्रमुख नेताओं में से एक बनने के लिए बीजेपी में पुरुष वर्चस्व वाले रैंक में तेजी से बढ़ीं. यह एक अनिश्चित यात्रा थी. कांग्रेस में जयंती नटराजन और अंबिका सोनी जैसी महिला नेताओं ने गांधी परिवार के लिए अडिग वफादारी के जरिए समय के साथ अपनी स्थिति मजबूत की. अखिल भारतीय अन्ना द्रविड़ मुनेत्र कडगम की जयललिता और बहुजन समाज पार्टी की मायावती को उनके पार्टी के संस्थापकों द्वारा चुना गया था. बीजेपी में साफ नहीं था कि एक युवा नेता को खुद को सफल बनाने के लिए किसके करीब जाना चाहिए. ईरानी ने पार्टी के भीतर की कई ताकतों के साथ सामंजस्य बिठाया, पहले वाजपेयी से आडवाणी, फिर 2014 में आडवाणी से मोदी. ये वह समय था जब मोदी ने आडवाणी से ताकत छीन ली और पार्टी के पीएम पद के उम्मीदवार के तौर पर उभरे. दिल्ली स्थित एक बीजेपी सदस्य ने कहा, “उनका (ईरानी) भाग्य नरेंद्र-भाई के उदय से जुड़ा हुआ था.”
बीते सालों में ईरानी ने चतुराई के साथ अपनी जगह बनाई और जब मोदी 2014 में सत्ता में आए तो वे भारत के नए दक्षिणपंथी शासन के स्टार के रूप में उभरीं. उन्हें शिक्षा मंत्रालय जैसा अहम और काफी दबाव वाला मंत्रालय दिया गया, खास तौर पर बीजेपी और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की हिंदुत्व विचारधारा को देश की शिक्षा प्रणाली में समाहित करने की रुचि को देखते हुए ये एक महत्वपूर्ण मंत्री पद है. इस दौरान राजनीतिक जोखिम के लिए ईरानी की भूख उतनी ही तेज रही जितनी तब थी जब उन्होंने सूरत में बयान दिया था.
लेकिन उनके उसी सहज ज्ञान, जिसने उन्हें सालों तक प्रासंगिक रहने में मदद की थी और उन्हें एक प्रतियोगी राजनेता के रूप में प्रतिष्ठा दिलाई थी, उनका मंत्रालय चलाने में बाधा साबित हो रहा थी. ईरानी ने नियमित रूप से सरकार के सबसे विस्फोटक विवादों को जन्म दिया और कैंपस में हुए विवादों को विद्रोही स्तर की राष्ट्रीय राजनीतिक लड़ाई में तब्दील होने दिया. संघ को ये सब पसंद था लेकिन वह अपने दीर्घकालिक एजेंडे को अंतत: शांति और दक्षतापूर्ण तरीके से लागू करवाना चाहता था. यह बात मुझे इसके छात्र संघ, अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के एक वरिष्ठ सदस्य ने बताई. ईरानी को जुलाई के कैबिनेट में फेरबदल में इसकी कीमत चुकानी पड़ी जब उन्हें कम प्रभाव वाला कपड़ा मंत्रालय दे दिया गया. चारों ओर यह कदम प्रधानमंत्री के भीतर उन्हें लेकर विश्वास में आई कमी के तौर पर देखा गया.
जब मैं जून महीने में एक वरिष्ठ एबीवीपी सदस्य से मिली तो उसने मजाकिया लहजे में कहा, “ईरानी को सोशल मीडिया से प्यार है इसलिए उनकी भाषा में हम कह सकते हैं कि बीजेपी ने उन्हें ‘लिमिटेड प्रोफाइल’ दिया है.”
बहुत से लोगों की खुशी जो ईरानी के संभावित पतन की वजह से थी, उस जटिल और परस्पर-विरोधी चुनौतियों को बयां कर रही थीं जिनका सामना एक महिला नेता को भारत में करना पड़ता है. दक्षिण में एक निराश बीजेपी महिला नेता ने मुझे बताया, “आपको एक महान वक्ता होने के लिए आत्मविश्वास की आवश्यकता होती है. लेकिन आपको अपनी ही पार्टी के मर्दों यहां तक कि जूनियरों से भी विनम्र होना पड़ता है. बीजेपी युवा महिलाओं का कांग्रेस की तुलना में अधिक खुले तौर पर स्वागत करती है. लेकिन जैसे ही आप अधिक सफल होते हैं सब कुछ कठिन होता जाता है.”
एक वरिष्ठ बीजेपी महिला विंग की नेता और पूर्व विधायक ने पार्टी को "लोकतांत्रिक, लेकिन महिलाओं के मामले में कम लोकतांत्रिक" बताया. एक वरिष्ठ पत्रकार के मुताबिक अगर महिलाएं बीजेपी में सफलता की सीढ़ी चढ़ना चाहती हैं तो या तो वे सामाजिक रूप से बेहद मजबूत हों या उन्हें पहले से मजबूत समर्थन हासिल हो यो कोई ताकतवर गुरु हो. बीजेपी ने 2007 में आंतरिक पार्टी आरक्षण शुरू किया जिससे राष्ट्रीय कार्यकारी समिति में महिलाओं की संख्या में बढ़ोतरी हुई. लेकिन वह शायद ही कभी पार्टी के कार्यकारी समूहों का हिस्सा होती हैं जहां अर्थव्यवस्था, सुरक्षा या कानून जैसे मुद्दों पर नीतिगत निर्णय किए जाते हैं. 2009 लोकसभा चुनाव में बीजेपी का टिकट पाने वालों में से केवल 11 प्रतिशत ही महिलाएं थीं. 2014 में पार्टी के 428 उम्मीदवारों में केवल 38 महिलाएं थीं. दिल्ली स्थित बीजेपी महिला राजनेता के सहयोगी ने मुझे बताया कि हालांकि कई महिलाओं को अपने करियर के दौरान "सेक्स के लिए ‘हां’ कहने" का सामना करना पड़ता है, लेकिन ये वह पहलू नहीं था जो इस व्यक्ति के बॉस को सबसे मुश्किल लगा. सहायक ने कहा, “अपने विवेक से आप अपनी हदें तय करना सीख जाते हैं.” उल्टे जिस बात से इस नेता को परेशानी थी वह उन्हें लगातार कम कर के आंका जाना और “महत्वाकांक्षा के लिए सजा” जैसी बातें थीं.
तमाम राजनीतिक पार्टियों की कई महिलाओं ने कहा कि ऐसी कठिन डगर से पार पाकर सफलता पाने के लिए वे ईरानी की तारीफ करती हैं. लेकिन इनके लिए ईरानी उस गला काट पृतिसत्तात्मक राजनीति का भी प्रतीक हैं, जो महिलाओं को महिलाओं के खिलाफ खड़ा करती है. दिल्ली स्थित एक बीजेपी नेता ने कहा कि आदर्श तौर पर महिलाओं को एक-दूसरे का साथ देना चाहिए. लेकिन ऐसा तब तक संभव नहीं है जब तक असीमित शक्ति कुछ लोगों के हाथों में केंद्रित हों, जिनमें लगभग सभी मर्द हैं. महिला नेता ने कहा, “यहां तक की स्मृति ईरानी और बाकी सब भी इन्हें ही प्रभावित करने में लगे रहते हैं.” मुंबई स्थित एक महिला बीजेपी नेता ने ईरानी की सफलता के बारे में कड़वाहट भरे लहजे में कहा, “उन्होंने यह साबित किया है कि युवा महिलाएं बीजेपी में सफल हो सकती हैं लेकिन पार्टी में मौजूद हर महिला को दरकिनार करने की कीमत पर.”
अपने पूरे व्यस्क जीवन में ईरानी लोगों की नजरों में रही हैं. जो उन्हें एक अदाकारा के तौर पर जानते हैं उन्हें याद है कि हालांकि उन्होंने मनोरंजन की दुनिया में 20 की उम्र के बाद ही कदम रखा था, उस समय उनका नाम स्मृति मल्होत्रा था, वे आत्मविश्वास से लबरेज और पहचान पाने की इच्छा से भरी हुई थीं. क्योंकि सास भी कभी बहू थी में ईरानी की सह अभिनेत्री और उनकी पुरानी दोस्त अपारा मेहता ने जून में मुझे अहमदाबाद में बताया, “वह हमेशा चीजों को तेजी से करना चाहती थीं.” क्योंकि वह शो था जिसने ईरानी को स्टार बना दिया. यह उनके किरदार तुलसी के बारे में था, इसमें वह पूजा पाठ करने वाली बेटी होती हैं जो एक अमीर गुजराती व्यापारी परिवार में शादी करती है और एक आदर्श बहू साबित होती है.
मेहता को याद है कि जब उन्होंने ईरानी को पहली बार देखा था तो वह उनसे प्रभावित हो गई थीं. वाकिया मुंबई के एक प्रोडक्शन हाउस के गलियारे का था, यहां एक “प्यारी लड़की” रोल पाने के लिए ऑडिशन का इंतजार कर रही थी. मेहता कहती हैं, “वह एक हॉट पिंक कुर्ती और जींस में थीं. उनके पास एक किताब थी, आम तौर पर ये चीज आपको किसी टीवी के प्रोडक्शन स्टूडियो में दिखाई नहीं पड़ती.” पहले ही स्टारडम हासिल कर चुकीं मेहता जब एक मीटिंग से लौटीं तो उन्हें चौंकाते हुए युवा ईरानी उन तक पहुंचीं. मेहता ने बताया, “उसने कहा कि उसे मेरा काम पसंद है और फिर मुझसे पूछा, ‘मुझे एक रोल मिल रहा है. मुझे नहीं पता कि मैं करूं या नहीं?’” ईरानी के “संतुलन” के अलावा मेहता को ये भी लगा कि ईरानी “के चेहरे पर कई भाव हैं, जो बाकियों से काफी अलग हैं.”
कुछ महीने बाद मेहता क्योंकि की शूटिंग के सेट पर पहुंचीं. इसमें उन्हें सास का किरदार मिला था. याद करते हुए मेहता कहती हैं, वही लड़की एक पुराने ट्रंक पर बैठी है और कह रही है, 'क्या मैं आपको याद हूं? मैं आपकी बहू का रोल निभाने जा रही हूं.'"
क्योंकि में काम करने के लिए एक रिश्तेदार की भूमिका में एक नए कलाकार की पसंद ने शो के सितारों को आश्चर्यचकित कर दिया था. तुलसी के पति मिहिर का किरदार निभा रहे अमर उपाध्याय ने मुझे अप्रैल में मुंबई के अपने घर पर बताया, “उस समय हम में से ज्यादातर के पास उससे ज्यादा अनुभव था और वह ग्लैमरस भी नहीं थी.” उपाध्याय को इस बात पर आश्चर्य हुआ कि बालाजी टेलीफिल्म्स और शो की मुख्य निर्माता एकता कपूर, ईरानी को शुरु से ही इतना महत्व क्यों दे रही हैं. उन्होंने कहा जब वे मिले तो, "मैंने सोचा कि वह कहेंगी, 'अमर इस नई लड़की स्मृति से मिलो', लेकिन इसके बजाय, वह स्मृति देखती और पूछती है, 'फिर? आपको आपका मिहिर कैसा लगा?"
मेहता और उपाध्याय के अलावा 10 अन्य कलाकार और टीम के सदस्यों ने मुझसे बात की और उन्होंने बताया कि जब ईरानी शूटिंग नहीं कर रही होतीं तो आमतौर पर किताब पढ़ते मिलती थीं. साक्षात्कार में भी ईरानी ने अक्सर सेट पर एक किताब के साथ खुद की छवि बनाने की कोशिश की है. क्योंकि के एक स्क्रिप्ट राइटर ने कहा, “उनकी भाषा शैली से लगता था कि उन्होंने सच में बहुत पढ़ाई की है या संभव है कि वह किताब इसलिए रखती थीं ताकि वे दूसरों को बता सकें कि वह भी एक गंभीर अदाकारा हैं. ताकि उनसे किसी मूर्ख की तरह पेश न आया जाए.” पटकथा लेखक कमलेश पांडे जिन्होंने बाद में एक फिल्म और दो धारावाहिकों पर ईरानी के साथ काम किया है का कहना है, "कितना अजीब है कि उन्हें, मनोरंजन जगत के लिए बहुत पढ़ा लिखा और राजनीतिक के लिए बेहद कम पढ़ा लिखा माना जाता है."
2000 के मध्य में क्योंकि शो लॉन्च होने वाला था इसीलिए सब इसकी शूटिंग में लगे हुए थे और वह सह कलाकारों का दिल जीतने में लगी थीं. उपाध्याय याद करते हैं कि ईरानी उनसे तिथि क्रम से हटकर शूटिंग के तकनीकी पहलुओं से जुड़े सवाल पूछती थीं. उन्होंने कहा, “हम लोकेशन के हिसाब से शूटिंग कर रहे थे जैसे कि बेडरूम के 12 सीन, लिविंग रूम के 10 सीन और इसकी वजह से शुरुआत में उन्हें सीन्स को जोड़ने और समझने में दिक्कत होती थी. मैंने उन्हें समझाया, उन्होंने साथ अभ्यास करने पर भी जोर दिया. आपको पता है, मैंने इन सबको उनके नए होने से जोड़कर देखा.”
मेहता के साथ ईरानी का रुख कुछ और था. ये एक मझे हुए अदाकारा की गति हासिल करने जैसा था. मेहता कहती हैं, “स्मृति और मेरे, साथ में बहुत सारे दृश्य थे और वह हमेशा अपनी लाइनों के साथ तैयार रहती थीं. हमारा उद्देश्य एक टेक में शूट पूरा करने का रहता था क्योंकि हम दोनों के पास डायलॉग की फोटोग्राफिक याद रहती थी.” वे याद करती हैं कि ईरानी ने उन्हें इमानदारी से जीत लिया." एक दिन उसने मुझसे बहुत साफ-साफ कहा, 'अपारा, आप मेरी सबसे करीबी दोस्त हैं, लेकिन आप मेरे लिए सबसे बड़ा चैलेंज भी हैं.' ये काम शुरू करने वाले युवा तब तक मेरी खूब तारीफें किया करते जब तक सफलता उनके दिमाग पर सवार नहीं हो जाती लेकिन अब ये मुझे लगता है कि ईरानी लोगों को खूब समझती थीं.
ईरानी एक ऐसी महिला हैं जो लंबे समय से सार्वजनिक निगाहों में रही हैं, ऐसे में उनके निजी जीवन के तथ्यों को पता लगाना मोटे तौर पर मुश्किल है. (ईरानी ने इस स्टोरी से जुड़े साक्षात्कार के लिए किए गए कई अनुरोधों का जवाब नहीं दिया.) मेहता सेट पर हुई बातों को याद करते हुए कहते हैं कि ईरानी शर्मीली नहीं थीं लेकिन, "अपने माता-पिता या परिवार या भाई बहनों के बारे में कभी बात नहीं करती थीं. यह एक ऐसा विषय था जिस पर मैंने उनसे कभी बात नहीं की. मैंने मान लिया कि वहां कुछ दुखी करने वाली बात होगी जिससे वे आगे बढ़ना चाहती थीं." दिल्ली स्थित पत्रकार जो शिक्षा मंत्रालय को रोजाना कवर करते हैं उन्होंने कहा कि ईरानी अपने निजी जीवन के प्रति सुरक्षात्मक है, "जैसे कि मनोरंजन से जुड़े लोगों के लिए आम है. लेकिन यह एक राजनेता के लिए अजीब है." ईरानी के शिक्षा मंत्री के रूप में शपथ लेने के बाद वे पत्रकार जो उनकी प्रोफाइलिंग में रूचि रखते थे, उन्होंने उनके माता-पिता से मिलने का असफल प्रयास किया. पत्रकार ने कहा जब मीडिया ने ईरानी की मां से संपर्क किया तो ईरानी बेहद गुस्से में थीं. पत्रकार ने कहा, “ऐसे लोग मौजूद नहीं जिनसे हम बात करते हैं. ऐसे में स्मृति इकलौता विकल्प हैं जो अपने बारे में सब बताती हैं. और उनके द्वारा बताई गई बातें पहले से सबको पता हैं.”
साक्षात्कारों में ईरानी बताती आई हैं कि उनके दादा संघ के सदस्य थे और उनकी “परवरिश एक संघ परिवार में हुई है” और उनकी मां बीजेपी की बूथ कार्यकर्ता हुआ करती थीं. ईरानी के एक परिवारिक मित्र और आरएसएस से संबद्ध विद्या भारती (विद्या भारती देश भर में 12000 स्कूलों का संचालन करती है) के राष्ट्रीय सचिव शिव कुमार ने यह पूछे जाने पर कि क्या वह ईरानी के दादा को जानते था या कनेक्शन की पुष्टि कर सकते हैं. इस पर उन्होंने बेहद हल्की प्रतिक्रिया दी. उन्होंने पहले कहा, “हां, उनके दादा संघ में थे. देखिए, अगर कोई व्यक्ति एक बार शाखा में जाता है या एक आरएसएस की बैठक में हिस्सा लेता है तो वह कह सकता है कि वह संघ से है. हम ये नहीं कहने जा रहे कि वह संघ से नहीं हैं.” उसके बाद उन्होंने अनुमान लगाया कि ईरानी के "पैतृक दादा" उत्तर प्रदेश में आरएसएस के साथ जुड़े रहे होंगे. एक अन्य आरएसएस सदस्य ने अंदाजा लगाया कि पंजाबी होने की वजह से उन्हें पंजाब में संगठन में शामिल होना चाहिए था. अपारा मेहता का परिवार भावनगर में जनता पार्टी का हिस्सा था. उन्होंने कहा कि वे अक्सर ईरानी के साथ अपने राजनीतिक पालन-पोषण से कहानियां साझा करतीं लेकिन "उसने मुझे कभी नहीं बताया कि उसका भी ऐसा कोई कनेक्शन था. उसके बीजेपी में शामिल होने के बाद मैंने उसके इंटरव्यू में ये बातें सुनीं."
बंगाली मां शिवानी बागची और पंजाबी पिता अजय मल्होत्रा की तीन बेटियों में ईरानी सबसे बड़ी थीं. उसने अक्सर विनम्र जीवन के बारे में बात करते हुए कहा है कि उनके पिता एक कूरियर कंपनी चलाते थे. मुंबई में उनके एक पुराने दोस्त ने मुझे बताया कि ईरानी की मां एक समृद्ध परिवार से थी, लेकिन जब उन्होंने अपनी जाति से बाहर जाकर शादी की, तो इस जोड़े को "परिवार की मदद के बिना सबकुछ शुरू से करना पड़ा."
नवंबर 2015 में एनडीटीवी की बरखा दत्त से साक्षात्कार में ईरानी ने कहा कि उनकी मां ने दिल्ली में पांच सितारा होटल ताज मानसिंह में एक हाउसकीपर के रूप में काम किया था. ईरानी ने कहा, “उन्हें बाथरूम और फ्लोर साफ करना पड़ता था. ईरानी ने कहा,“मुझे याद है, खाना बनाने वाले बहुत दयालु थे. वह कहते थे, 'मैं एक अच्छा क्लब सैंडविच बना रहा हूं, इसे अपने बच्चों के लिए ले जाइएगा, मुझे यकीन है कि वे इसे पसंद करेंगे.” ईरानी ने कहा है कि वह भी अपने टेलीविजन करियर से पहले इसी तरह का काम कर चुकी हैं, खास तौर से मुंबई में मैकडॉनल्ड्स में खाना देने और फ्लोर की सफाई का काम. 2008 के एक साक्षात्कार टॉक शो की होस्ट कोएल पुरी से उन्होंने कहा, "इस नौकरी ने उन्हें "श्रम की गरिमा" सिखाई. जैसे कि अगर मैं सब कुछ खो देती हूं तो भी मैं वापस जा सकती हूं और यह कर सकती हूं. मैं फर्श की सफाई से शुरू कर सकती हूं." जब वह पहली बार संसद सदस्य बनीं तो ईरानी को ताज मानसिंह के सामने एक घर दिया गया था. उन्होंने दत्त से कहा, “मैं ताज गई और वही क्लब सैंडविच मंगवाया. मैंने अपनी मां को फोन किया और मैंने उन्हें बताया कि आज मैंने इसकी कीमत देकर इसे खरीदा है. लेकिन मैं इस मलामती चीज को खा नहीं पा रही हूं.”
दिल्ली में वसंत विहार के होली चाइल्ड ऑक्सिलियम स्कूल में ईरानी के साथ पढ़ने वाले और शिक्षक उन्हें एक कमजोर छात्रा के रूप में याद करते हैं. हालांकि आज वह स्कूल की सबसे प्रसिद्ध पूर्व छात्र हैं लेकिन दोस्त और शिक्षक उनके बारे में अधिक नहीं बता पाते और बस इतना कहते हैं कि वह एक "साधारण लड़की" थीं. स्कूल के एक सेवानिवृत्त अंग्रेजी के शिक्षक ने मुझे बताया, “वह एक औसत छात्रा थीं और उन्हें प्रथम आने या टॉप 10 में आने की कोई लालसा नहीं रहती थी. अगर आज के उनके हावी हो जाने वाले व्यक्तित्व से उनकी तुलना करें तो वह ऐसी बिल्कुल नहीं थीं.”
ईरानी के दोस्तों का समूह पांच लड़कियों का था. हर्षली सिंह जो एक लेखक और कलाकार हैं, ईरानी को उनके किंडरगार्टन के दिनों से जानती हैं. वह भी पांच लड़कियों में से एक हैं. उन्होंने मुझे बताया, "हम मशहूर तो बिल्कुल नहीं थी और ना ही टीचरों के करीब थे बल्कि हम बेवकूफ, अजीब और सिर्फ एक-दूसरे के साथ में सहज थे." इस समूह की एक और लड़की परमिंदर कौर जो अब खालसा कॉलेज में प्राणि विज्ञान की शिक्षक हैं, उन्होंने मुझे बताया, “हम लड़कियां बावजूद इसके की इस पर स्कूल में पाबंदी थी, हिंदी में बात करते थे, स्मृति को ठीक से अंग्रेजी बोलना नहीं आता था.”
सिंह कहती हैं कि समूह की लड़कियां ईरानी को लेकर बेहद रक्षात्मक रहती थीं. उन्होंने कहा, “वह शर्मिली नहीं थी लेकिन सबको खुश करने में लगी रहती थी. अगर हम क्लास नहीं जाने को कहते तो वह ‘हां’ कहती, हम पढ़ने को कहते तो वह ‘हां’ कहती. वह सबके बीच बने रहना चाहती थी और उसकी यह असुरक्षा साफ दिखाई देती थी.” कौर कहती हैं कि ईरानी इस बात को लेकर भी शंका में रहती थीं कि वे कैसी दिखती हैं? "वह लंबी और पतली थीं और वास्तव में बेढब थीं और अक्सर कहा करती थीं कि वह कितनी साधारण दिखती हैं." सिंह ने कहा कि स्कूल में एक दिन लड़कियां सपनों की बातें कर रही थीं कि वे बड़े होकर क्या बनना चाहती हैं. एक ने कहा कि वह एक शिक्षक, एक ने संगीतकार, एक और ने कहा कि वह व्यवसायी बनेगी. सिंह को लगा कि ईरानी कहेंगी कि वह एक गृहणी बनना चाहती हैं लेकिन वह आश्चर्यचकित रह गईं जब ईरानी ने कहा कि वह “एयर होस्टेस” बनना चाहती हैं.
ग्यारहवीं और बारहवीं कक्षाओं में ईरानी ने मानविकी का अध्ययन शुरू किया और साथ ही बास्केटबाल भी खेलना शुरू कर दिया. यही वह समय था जब कुछ बदल सा गया. पेशे से इंटीरियर डेकोरेटर सोनाली शर्मा के मुताबिक वह हाई स्कूल के इस दौर में ईरानी की सबसे करीबी थी और उनका कहना है, “वह काफी आत्मविश्वास से भरी थीं और बहस, खेल, सह-पाठ्यचर्या वाली गतिविधियों में भाग लेती थीं.” हालांकि ईरानी के ग्रेड में सुधार हुआ और उन्हें स्कूल के शांति हाउस का कप्तान बना दिया गया, लेकिन फिर भी उनकी सामाजिक असहजता बनी रही. सोनाली कहती हैं, “वह लड़कियों के बीच बहुत लोकप्रिय नहीं थीं. वह हमेशा दोस्तों की तलाश में रहती थीं, उन्हें इस बात का डर था कि वह अकेली रह जाएंगी. मुझे लगता इसने एक इंसान के तौर पर काफी हद तक स्मृति का निर्माण किया.”
ईरानी एक रूढिवादी परिवार में पली बढ़ीं और अपना जीवन बनाने के लिए उन्हें इससे अलग होना पड़ा था. संभवत: महिला भ्रूणहत्या के बारे में एक सवाल के जवाब में उन्होंने इसका सबसे स्पष्ट उदाहरण दिया था. उनसे ये सवाल भोपाल में एक समारोह के दौरान उनके शिक्षा मंत्री रहते हुए पूछा गया था. उन्होंने कहा, “मैं इस बारे में पहली बार बात कर रही हूं. जब मैं पैदा हुई थी तो किसी ने मेरा मां से कहा, ‘बेटी तो बोझ होती है. इस वजह से उन्हें, मुझे मार देना चाहिए.’ लेकिन मेरी मां बहादुर थी और उसने यह नहीं किया. जिसकी वजह से मैं आज यहां आपके सामने खड़ी हूं.” बीबीसी पर करण थापर के साथ 2001 के इंटरव्यू में ईरानी ने कहा कि उनके परिवार की एकमात्र महत्वाकांक्षा थी कि उनकी शादी "लंदन में बसे किसी लड़के से" हो जाए. उन्होंने कहा लेकिन, “मुझे ये सब नहीं चाहिए था.” सोनाली ने कहा कि उनके समूह की सभी लड़कियों ने आश्रित जीवन जिया लेकिन ईरानी दूसरों की तुलना में अधिक बेचैन हो उठीं. वह कहती हैं, “लेकिन एक खास तरह के मध्यम वर्ग के सुरक्षात्मक परिवार का होने की वजह से आप आवाज नहीं उठा सकते इसलिए वह अपने आप में रहीं.” ईरानी के दोस्तों का कहना है कि वह कभी भी उनके घर नहीं गए या उनके माता-पिता से मुलाकात नहीं की. कौर ने कहा, “सिवाय इसके कि वह थोड़ा सख्त थे और खासकर उनके पिता, मुझे उसके परिवार के बारे में कोई जानकारी नहीं थी.”
वह खास तौर पर अपने नाना जी के बेहद करीब थीं जिनके साथ वह अपनी छुट्टियां बिताती थीं. ईरानी ने ‘आप की अदालत’ शो में रजत शर्मा के साथ 2014 के एक साक्षात्कार में कहा, “केवल मेरे नाना जी को विश्वास था, कि यह लड़की एक दिन बहुत बड़ी बनेगी.” जब ईरानी युवा थीं तब उनके नाना की मृत्यु हो गई जो उनके ऊपर विपत्ति बनकर टूटी और उनके आजादी पाने के संकल्प को बल दिया. ईरानी कहती हैं, “मैंने सोचा कि मुझे उनके लिए कुछ बनना चाहिए, ताकि मैं उन्हें सही साबित कर सकूं.”
जब ईरानी 18 वर्ष की हुईं तो उन्होंने घर छोड़कर मुंबई जाने की ठानी. उन्होंने थापर से कहा, “ये मेरे पिता के लिए किसी झटके की तरह था. लेकिन मेरे लिए ये ऐसा था कि जो सबकुछ मैंने अपने भीतर दबा रखा था, समय आ गया है कि उसे बाहर आने दूं. मैं एक खास तरह की जिंदगी बिताने के लिए बनी थी, मुझे बड़ा बनना है.” उन्होंने रजत शर्मा से कहा कि उनके पिता को लगता था कि मनोरंजन और मीडिया जगत “अनपढ़ों के लिए है.” लेकिन उन्हें लगता था, “यह एक ऐसा क्षेत्र था जिसमें मेरे माता-पिता किसी को नहीं जानते थे. मैं स्वतंत्र रूप से काम करना चाहती थी.”
ईरानी के मुताबिक मुंबई में उन्होंने जेट एयरवेज की एयरहोस्टेस के लिए आवेदन किया था लेकिन उन्हें यह काम नहीं मिला. इसके बाद उन्होंने मैकडॉनल्ड्स में काम किया. लेकिन जल्द ही उनके पैसे खत्म हो गए और मदद के लिए उन्होंने घर फोन किया. ईरानी के पिता ने इस शर्त पर 2 लाख रुपये देने की सहमति जताई कि वे एक साल के भीतर ये रकम चुका देंगी. उन्होंने ये स्वीकार किया और अपना करियर बनाने के लिए अपने संघर्ष को फिर से शुरू कर दिया. एक दोस्त की चुनौती पर उन्होंने ‘मिस इंडिया पेजेंट’ में भाग लिया और टॉप फाइव में शामिल रहीं लेकिन जीत नहीं सकी. वे कुछ छोटे प्रोजेक्ट्स का हिस्सा बनीं. इनमें गायक मीका सिंह का एक म्युजिक वीडियो और एक सैनिटरी पैड का एड शामिल था. इसके अलावा उन्होंने टीवी में कुछ छोटे रोल भी किए. जिस दिन उन्होंने अपने पिता से पैसे उधार लिए उसके ठीक एक साल बाद बालाजी टेलिफिल्मस ने उन्हें क्योंकि शो के लिए साइन कर लिया.
स्टार प्लस पर दिखाया जाने वाला यह शो तुरंत हिट हो गया और कुछ ही हफ्तों के भीतर खास तौर पर ईरानी इसकी प्रमुख स्टार बन गईं. आठ सालों में क्योंकि के 1833 एपिसोड आए और उस समय यह भारत में सबसे लंबे समय तक चलने वाला सीरियल बन गया. अपने सबसे अच्छे समय में इसने दहाई अंक की टीआरपी हासिल की और ऐसा आज तक कोई नहीं कर सका. इसे भारतीय दर्शकों के लिए तमिल, तेलुगू, कन्नड़ और बंगाली में डब किया गया था, वहीं श्रीलंका के लिए सिंहला और अफगानिस्तान के लिए दारी में भी डब किया गया था. अफगानिस्तान में सीरियल के कई हिंदू प्रतीकों और मूर्तियों को धुंधला कर दिया गया था. जैसा कि क्योंकि के एक पूर्व निर्माता शादाब खान इसके बारे में कहते हैं, इस शो ने “सास-बहू सीरियल” जैसे अपमानजनक उपनामों को भी जन्म दिया जिसे अब “गृहणियों” के लिए दिखाए जाने वाले पिछड़े जमाने के शो के लिए इस्तेमाल किया जाता है.
उपाध्याय और ईरानी को बहुत जल्दी एहसास हो गया कि एकता कपूर अपने पात्रों द्वारा हिंदू पौराणिक प्रतीकों को दिखाने का इरादा रखती हैं. उपाध्याय ने कहा कि हमारे साथ के पहले शो से पहले, “एकता ने हमें बताया कि मिहिर और तुलसी वीरानी परिवार के केंद्र में एकदम परफेक्ट जोड़े हैं, जैसे आधुनिक समय के राम और सीता. मिहिर आदर्श पति और आदर्श पुत्र थे, और तुलसी सीता, कोई शिकायत नहीं करने वाली, नैतिक और अपने पति को समर्पित.” (असल में ईरानी ने 2001 में जी टीवी पर आए एक रामायण में सीता का किरदार निभाया था, हालांकि ये सीरियल ज्यादा दिनों तक नहीं चला.) अपारा मेहता ने मुझसे कहा कि उन्हें यह “बेहद कमजोर करने वाला और हल्का” लगा लेकिन ईरानी “इस तरह के उल्लेख से बेहद खुश थीं. उन्होंने कहा कि यह भारतीय लोगों को बहुत अच्छा लगेगा.” वे सही थीं: दर्शकों ने ईरानी के चरित्र की हिंदू मूल्यों की झलक के रूप में सराहना की और उस समय के शादी के कुछ इश्तिहारों में तुलसी जैसी बहू की मांग की गई. मेहता कहते हैं कि ईरानी शो के परंपरावादी वैश्विक दृष्टिकोण के प्रति समर्पित थीं. “वह चीजों को लेकर बिल्कुल साफ थीं. मिहिर और तुलसी शायद ही कभी हाथ भी पकड़ते थे.”
क्योंकि की बढ़ती सफलता के साथ इसके प्लाट और डायलॉग को लेकर ईरानी ने अपनी बातें मनवानी शुरू की. खास तौर पर शो के तीसर सीजन के बाद जो 2002 में आया था. कहानी भविष्य में 20 साल आगे चली गई और तब इस 27 साल की अदाकारा ने 55 साल की दादी का रोल निभाया जिसके लिए उनके बाल सफेद रंगवाने पड़े. मेहता कहते हैं, “उन्होंने तुलसी को लगभग स्मृति बना दिया- सबसे अच्छी पत्नी, बहू और मां. लेकिन वह कभी किनारे का किरदार नहीं बनीं.” आलोचकों ने कहानी को दमनकारी बताया और दावा किया कि उनकी भूमिका पितृसत्ता और रूढ़िवाद को बढ़ावा देती है लेकिन ईरानी ने दृढ़ता से इसका बचाव किया और एक साक्षात्कार में अपना पक्ष रखते हुए कहा, "परंपरागत होना रुढ़ीवादी होना नहीं है."
2001 में स्मृति ने जुबीन से शादी कर ली. ये क्योंकि के एक साल से कम समय में एक ऐसे छोटे समारोह में हुआ, जिसका बालाजी में उनके साथ काम करने वालों को भी पता नहीं चला. जब वह अपनी शादी के दिन स्टूडियो में शूट करने के लिए आईं, तो कपड़ों की टीम ने उन्हें पहनने के लिए एक सफेद साड़ी दी. तुलसी के पति मिहिर का पिछले एपिसोड में एक रहस्यमई एक्सिडेंट हो गया था और वह विधवा हो गई थीं. अमर उपाध्याय की पत्नी हेतल सेट पर इसलिए मौजूद थीं क्योंकि उनके बच्चे को तुलसी के नवजात बेटे का रोल मिला था, वे अचरज जताते हुए कहती हैं, “दिक्कत यह थी कि स्मृति के हाथों पर दुल्हन वाली मेंहदी थी! डायरेक्टर शोर मचाते हुए आए और कहा, ‘ईरानी, ये क्या है?’ तभी उन्होंने मुस्कुराते हुए सबको बताया कि उन्होंने शादी कर ली है.” इस दौरान बच्चे को हाथों में लिए हुए हेतल के हाथों को ईरानी के हाथ बनाकर शूट किया गया जबकि “कैमरे में रोता हुआ चेहरा ईरानी का था.”
ये जुबीन की दूसरी शादी थी (उनकी पहली पत्नी मोना एक मॉडल कोऑर्डिनेट और ईरानी की दोस्त थीं) और मीडिया ने इसके बारे में ऐसे लिखा जैसे कि ये किसी सीरियल की कहानी का अनोखा मोड़ हो. ईरानी ने कोयल पुरी से कहा, “लोगों ने पहली शादी के टूटने को मुझसे जोड़कर अफवाहें लिखीं.” ये पहला मौका था जब प्रेस ईरानी के बारे में बुरी बातें लिख रहा था.
कुछ साक्षात्कारों में ईरानी ने कहा है कि जुबीन को वे 11 साल की उम्र से जानती हैं. ईरानी ने करण थापर को शर्माते हुए बताया, “जुबीन एक बहुत अच्छे दोस्त थे.” उन्होंने कहा मुंबई में, “जब भी कोई मुझे ना कहता था तो मैं जुबीन की कहानी से इसे जोड़कर देखती थी.” उन्होंने कहा, “शादी की वजह से इस रिश्ते में बातचीत समाप्त नहीं हुई है.” साक्षात्कार में उन्होंने बाद में कहा, “ईमानदारी से कहूं तो मैं उनकी वजह से सफलता को संभाल पाई हूं.”
ईरानी ने जुबीन का सरनेम अपना लिया और उसी साल उन्हें एक बेटा हुआ, जिसका नाम उन्होंने ‘जोहर’ रखा जो पारसियों के मौलिक पाठ ‘पारसी रहस्यवाद’ पर आधारित है. दोनों को एक बेटी भी हुई जिसका नाम इन्होंने ‘जोइश’ रखा. उन्होंने जुबीन को मोना से हुई बेटी के साथ अपने बच्चों को पालने का फैसला किया और जुबीन के परिवार का पारसी धर्म अपना लिया. लेकिन ईरानी ने हमेशा एक हिंदू शादीशुदा महिला का भेष की अख्तियार किया, जो टीवी से दूर तुलसी की तरह था.
पत्रकारों और उनके सहयोगियों ने मुझे बताया कि ईरानी सक्रिय रूप से बच्चों के साथ लगे रहने वाली मां हैं और वह अगर घर से दूर भी हों तो भी उनके बच्चों को सही समय पर सोने और सीमित स्तर तक टीवी या कंप्यूटर इस्तेमाल करने जैसी बातों का पालन करना पड़ता है. दिल्ली के सरदार पटेल विद्यालय के एक फैकल्टी ने मुझे बताया कि शिक्षा मंत्री रहते हुए भी उन्हें माता-पिता की शिक्षकों से मुलाकात की याद सताती रही. उन्होंने कहा, “वह अपनी बारी का इंतजार करते हुए लाइन में खड़ी रहती थीं.”
कुछ कपल दोस्त और ईरानी के सह कलाकार साफ बता पाए कि जुबीन क्या काम करते हैं? उपाध्याय ने कहा, “व्यापार.” अपनी प्रोडक्शन कंपनी शुरू करने के समय ईरानी के साथ काम करने वाले एक प्रोड्यूसर के मुताबिक, “मुझे लगता है कि वे खेती या रियल एस्टेट का काम करते हैं.” दोनों की शादी के समय कुछ समाचार लेखों का दावा है कि जुबिन खेल और चिकित्सा उपकरण बेचने का व्यपार करते हैं. मेहता कहते हैं, “मुझे लगता है कि असल काम करने वाली ईरानी हैं और अपने पति से ज्यादा कमाती हैं. मुझे पता है कि उनके लिए यह एक संघर्ष था.”
जोड़े के पास मुंबई में एक घर है लेकिन जुबीन के पास दहानू में एक फार्महाउस भी है. शहर के बाहर 125 किलोमीटर के आसपास एक सुंदर तटीय शहर, जहां उनके परिवार के पास एक पैतृक घर भी था. फार्महाउस के लकड़ी के द्वार पर जोरोस्ट्रियन फरवाहर के कांस्य का एक प्रतीक है. एक चौड़ा डिस्क, जिस पर हिंदू ओम लिखा है. शादी के बाद ईरानी ने प्रांगण में चमकते-नारंगी रंग का दुर्गा मंदिर बनवाया.
लेकिन वह ईरानियों के पूर्वजों का घर है जो गाड़ी से वहां से 15 मिनट की दूरी पर है, ये इनका सामाजिक केंद्र है. वह जगह जहां चचेरे भाईयों और बाकी के रिश्तेदारों का बड़ा परिवार इकट्ठा होता है. यहीं ईरानी ज्यादातर वक्त बिताती हैं. जुबिन के चचेरे भाई रोनी परिवार के नाशपाती और चीकू के खेतों की देखभाल करते हैं और उस विशाल विरासत हवेली की भी, जिसका हिस्सा एक होटल और एक रेस्तरां के रूप में चलाया जाता है. रोनी की पत्नी पल्ली कहती हैं कि जब जुबिन ने घोषणा की कि वे फिर से शादी कर रहे है तो परिवार वाले चकित रह गए. उन्होंने कहा, “मतलब, ईरानी काफी युवा थीं और एक टीवी स्टार भी. मुझे लगा, ‘हे भगवान! जुबीन क्या कर रहे हैं, क्या उनका दिमाग खराब है?’ लेकिन कुछ ही महीनों में ईरानी ने हम सबका दिल जीत लिया.” पल्ली कहती हैं कि परिवार का दिल जीतने के लिए ईरानी ने उन रिवाजों को तुरंत अपना लिया जो उनके दिल के करीब थे. शादी के कुछ साल बाद पारसियों के नए साल नवरोज पर जब पूरा परिवार दोपहर के भोजन के लिए जुटा, “स्मृति टेबल ठीक कर रही थीं और जब मैं खाना रखने आई तो मैंने देखा कि उसने इसे पूरे पारसी तरीके से सजाया था.” पल्ली कहती हैं, “इतने पक्के तरीके से तो मैं भी टेबल नहीं सजाती.”
दहानू ही वह जगह थी जहां ईरानी ने राजनीति की ओर पहला कदम रखा. 2003 में जब उनके पेट में बेटी थी और वह शूट करने मुंबई नहीं जा सकती थीं तो टीम ने कुछ दिनों तक परिवार के घर में ही शूटिंग का सेट लगा दिया. दहानू में यह बात तेजी से फैल गई और जल्द ही वहां उत्साहित निवासी शूट देखने के लिए इकट्ठा हो गए. हवेली में जुटने वाले लोगों में से भाजपा के महाराष्ट्र विंग के सदस्य और दहिसर की वर्तमान विधायक मनीषा चौधरी भी थीं. उन्होंने मुझे बताया कि दहानू में चौधरी एक दोस्त से मिलने आई थीं “जिनका संबंध जुबीन से था.”
मैं मुंबई में बोरीवली पश्चिम में स्थित उनके अपार्टमेंट में अप्रैल की एक शाम 54 साल की चौधरी से मिली, जहां उन्हें अतिथि मिलने आ रहे थे, इनमें नमस्ते कहने वाले पड़ोसी, राजनीतिक नेटवर्क वाले, स्कूल और कॉलेज में दाखिले को लेकर चिंतित परिवार वाले और एक जोड़ा, जिन्हें उनका घर गिरा देने की धमकी मिली थी. उनके पति रहने वाले कमरे में सोफे के एक छोर पर बैठे थे और चौधरी के लिए बैठने को रसोई का कोना बचा था. वहां से वह उन वड़ों पर नजर बनाए हुए थीं जो वहां आने वाले लोगों के लिए तल रही थीं. वह खुद को एक “सेवक” बुलातीं, इसे बीजेपी के पुराने नेताओं के अतिसंवेदनशील विनम्रता के तौर पर देखा जाता है. लेकिन घर की विनम्रता और व्यक्तित्व के पीछे एक राजनेता है जो बीजेपी की महाराष्ट्र महिला मोर्चा या महिला विंग की उपाध्यक्ष रही हैं. भाजपा राष्ट्रीय कार्यकारी समिति की सदस्य और अपने पति के गृहनगर दहनू के एक नगरपालिका की नगरसेवक भी.
दहनू में 2003 की शूटिंग का जिक्र करते हुए चौधरी ने कहा, “मैं क्योंकि और तुलसी की फैन थी.” उन्होंने अफवाहें भी सुनी थी कि कांग्रेस से किसी ने पार्टी में शामिल होने के लिए ईरानी से संपर्क किया था, कांग्रेस के अभिषेक सिंघवी ने भी ये दावा किया है लेकिन ईरानी ने कभी इसकी पुष्टि नहीं की. चौधरी ने कहा, “मैंने फैसला किया कि मैं उसे भाजपा में आमंत्रित करूंगी.” उन्होंने महिलाओं का एक समूह इकट्ठा किया और ईरानी के घर गईं. उन्होंने कहा, “मैंने उन्हें खुद के और हमारी पार्टी के बारे में बताया. स्मृति ने कहा कि उन्हें अटल जी के काम पसंद है.” वर्तमान में भाजपा की मुंबई इकाई के अध्यक्ष आशीष शेलर ने इसकी पुष्टि करते हुए कहा, "मनीषा जी वह व्यक्ति थीं जिन्होंने पहली बार स्मृति जी को भाजपा के बारे में बताया था. स्मृति ने खुद को अपने भाषणों में यह स्वीकार किया है."
मुंबई वापस लौटने के दौरान चौधरी ने बीजेपी के पूर्व उपमुख्यमंत्री गोपीनाथ मुंडे को फोन किया और उन्हें उनकी बैठक के बारे में जानकारी दी. “उन्होंने कहा कि वे प्रमोद महाजन से बात करेंगे,” जो वाजपेयी के करीबी भाजपा के नए युग के एक शक्तिशाली नेता थे. चौधरी ने मुंबई में ईरानी, मुंडे, महाजन और कुछ अन्य वरिष्ठ पार्टी के नेताओं के बीच एक बैठक की व्यवस्था की. वे उद्योगपति मेका विजय पापाराओ के घर वर्ली में मिले, जो मुंडे को जानते थे और उनकी पत्नी चौधरी की दोस्त थीं. चौधरी ने कहा, “बैठक बहुत अच्छी रही और इस दौरान स्मृति बहुत खुश थीं.” उस शाम के बाद, महाजन ने चौधरी को बुलाया. "उन्होंने स्मृति को महाराष्ट्र में नहीं बल्कि राष्ट्रीय स्तर पर लेने का फैसला किया था."
अगले सप्ताह ईरानी, जुबिन और चौधरी जिन्हें अब ईरानी ‘मनीषा-ताई’ बुलाने लगी थीं, पार्टी के राष्ट्रीय कार्यकारी से मिलने के लिए दिल्ली गए जिसमें महाजन, मुंडे, मुख्तार अब्बास नकवी, प्रधान मंत्री वाजपेयी और उप प्रधान मंत्री लालकृष्ण आडवाणी शामिल थे. 15 नवंबर 2003 को, 11 अशोक रोड पर पार्टी कार्यालय में ईरानी को भाजपा सदस्य के रूप में शामिल किया गया. इस अवसर पर एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में, ईरानी ने साबित किया कि उन्होंने पार्टी की स्थिति पर अपना होमवर्क किया था. जब एक पत्रकार ने कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी पर ईरानी की राय मांगी तो केवल सदस्यता रसीद हासिल करने वाली ईरानी ने जवाब दिया, "सभी महिलाओं को सम्मान दिया जाना चाहिए. लेकिन आत्म-सम्मान हमें विदेश में पैदा होने वाली महिला द्वारा शासित होने की सोचने की अनुमति नहीं देता." चौधरी रोमांचित थीं- उन्होंने कहा,“वह बेहद चतुर थीं और सबकी कल्पना की तुलना में बहुत अच्छी तरह से तैयार थी.”
मैंने महाराष्ट्र बीजेपी के नेताओं द्वारा पार्टी में ईरानी को स्वीकार किए जाने की ये कहानी सुनी, हालांकि दिल्ली वाले अधिक क्रूर थे और महाजन के साथ उनकी नजदीकी को उन्हें शामिल किए जाने का श्रेय दिया जो पार्टी में हस्तियों और व्यापारियों को लाने या चुनाव के दौरान उनके समर्थन को लेकर उत्सुक थे. दिल्ली स्थित एक विद्वान जो कई बीजेपी नेताओं के करीब हैं के अनुसार (विद्वान व्यक्ति ने मजाकिया लहजे में कहा, "मैं व्यावहारिक रूप से शिकायत कक्ष हूं") पार्टी केवल चुनाव रैलियों में भीड़ खींचने के लिए ईरानी की स्टार वाले व्यक्तित्व के इस्तेमाल का इरादा रखती थी. "लेकिन हेमा मालिनी या सचिन तेंदुलकर के विपरीत, उनकी बड़ी महत्वाकांक्षाएं थीं और उन्होंने इसे बहुत साफ कर दिया."
जब ईरानी भाजपा में शामिल हुईं उस वक्त पार्टी को लगातार सफलताएं मिल रही थीं, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में पार्टी को जीत मिली थी. अपारा मेहता के अनुसार, जिन्होंने बीजेपी के लिए प्रचार किया है, ईरानी ने इस संगठन को इसलिए चुना क्योंकि "शायद उन्हें पता था कि वह कांग्रेस की तरह एक वंशवाद वाली पार्टी में हार जाएंगी. मेहता ने कहा कि ईरानी, "भाजपा में महिलाओं की जगह ले सकती थीं, जहां कांग्रेस के उल्ट सुषमा स्वराज और उमा भारती के अलावा कुछ ही गंभीर महिला नेता थीं."
अगले पांच सालों तक ईरानी ने अपने एक्टिंग करियर और राजनीतिक करियर के बीच जबरदस्त सामंजस्य बिठाने की कोशिश की जिसकी वजह से क्योंकि के लोगों को शूटिंग के लिए उनके समय के लिए काफी संघर्ष करना पड़ा. मेहता कहती हैं कि ईरानी ने जब अपने पहले बच्चे को जन्म दिया था तब घबराहट में एक शेड्यूल बनाने वाले ने उससे पूछा कि वह फिर कब से काम करने के लिए उपलब्ध होंगी. “ईरानी ने उसे फटकार लगाई, ‘कम से कम पहले ये तो पूछ लो कि मेरा बच्चा लड़का है या लड़की!’ लेकिन फिर चौथे दिन वह काम पर लौट गईं”
उपाध्याय एक दिन टेलीविजन पर खबर देख रहे थे जिसमें बीजेपी के युवा विंग के सदस्यों को कांग्रेस के नेतृत्व वाली सरकार के खिलाफ मुंबई में विरोध प्रदर्शन करते देखा. उन्होंने कहा, “भीड़ में स्मृति थीं, मुझे झटका लगा, वे चिल्ला रही थीं, उनके साथ धक्का-मुक्की हो रही थी और पुलिस ने उन लोगों पर लाठी चार्ज कर दिया.” ईरानी समेत प्रदर्शनकारियों को गिरफ्तार कर लिया गया.
निर्माताओं को ईरानी के जमानत पर रिहा होने तक शूटिंग कार्यक्रम बदलना पड़ा और नतीजा ये रहा कि सबको विरोध प्रदर्शन में उनके हिस्सा लेने के बारे में पता चल गया. ईरानी के शूट को पास से व्यवस्थित करने वाले शहबाद खान का कहना है, “मेरा मतलब है वह एक प्रसिद्ध अदाकारा थीं, वे इस घिनौनी राजनीति से नहीं निपट सकतीं.” उन्हें आश्चर्यचकित करते हुए ईरानी कुछ ही दिनों में अपनी चोट और मुस्कुराहट के साथ काम पर लौट आईं. मेहता कहते हैं, “अगर मेरे साथ ये सब होता तो मैं बर्दाश्त नहीं कर पाती. लेकिन ईरानी किसी भी चीज के लिए तैयार थीं.” जैसा उपाध्याय कहते हैं, “एक समय मुझे लगा कि तुलसी अपनी राजनीति के साथ नहीं थीं. तुलसी राजनीति थीं.” आशीष शेलर ईरानी के साथ ही युवा मोर्चा का हिस्सा थे, वे कहते हैं उन्हें एक सेलिब्रिटी को “डिनर डिप्लोमेसी की जगह जमीन पर असली राजनीति करते” देख राहत महसूस हुई.
2004 में पार्टी ने ईरानी को महाराष्ट्र युवा विंग का उपाध्यक्ष नियुक्त किया और बीजेपी की केंद्रीय समिति के कार्यकारी सदस्य के रूप में भी नामित किया. महाजन के समर्थन से उन्हें कांग्रेस के कपिल सिब्बल के खिलाफ दिल्ली में चांदनी चौक से 2004 का आम चुनाव लड़ने का टिकट भी दिया गया. दिल्ली स्थित महिला भाजपा नेता ने मुझे बताया कि ईरानी इस सीट को लेकर उत्सुक थीं जो तब भाजपा के विजय गोयल के हिस्से थी. वाजपेयी के राजनीतिक सलाहकार महाजन और पार्टी के अध्यक्ष वेंकैया नायडू ने उनके अनुरोध को हरी झंडी दे दी.
चांदनी चौक में एक बीजेपी आयोजक ने मुझे बताया, “उनके पास हारने के लिए कुछ भी नहीं था, लेकिन पार्टी को इसके बारे में सोचना चाहिए था.” दिल्ली इकाई ने गोयल या महाजन के एक और वफादार शहर के कारोबारी सुधांशु मित्तल को सीट दिए जाने की उम्मीद की थी. अधिकांश पार्टी कार्यकर्ताओं को लगा कि सिब्बल जैसे दिग्गज के खिलाफ ईरानी का कोई चांस नहीं है. फिर भी ईरानी की सबसे बड़ी ताकत को भुनाने के लिए प्रचार मैनेजरों ने एक नारा दिया, "घर घर की रानी, तुलसी वीरानी." स्थानीय आयोजक ने कहा, “हमें लगा हम एक हारा हुआ मैच खेल रहे हैं. वे भले ही दिल्ली में पली बढ़ी थीं लेकिन टीवी में उनके काम की वजह से लोग उन्हें मुंबई का समझते थे.” एक बीजेपी सदस्य जिसने ईरानी के अभियान में मदद की थी, उसने कहा कि वह "पूरी तरह से धारा के खिलाफ थीं और चुनाव के बारे में अनुभवहीन थी." उन्होंने आगे कहा इसके बावजूद, "उनकी कड़ी मेहनत उन्हें अलग बनाती थी, वह कभी थकती नहीं थीं."
जैसा कि वह लगातार प्रचार और काम एक साथ कर रही थीं, क्योंकि उनकी टीम भी इस कला की कायल हो गई थी. वह दिन में दिल्ली में प्रचार करतीं, शाम को मुंबई जातीं, अपने परिवार से मिलतीं, रात में शो के लिए शूट करतीं और सुबह 6 बजे दिल्ली लौट आतीं. तब ईरानी का शेड्यूल तय करने वाले संदीप त्रिपाठी ने कहा, “उन्होंने मुझे बताया कि वह कारों और उड़ानों में नींद ले लेती थीं. वह लगभग हर एपिसोड में थी, और शायद ही कभी कोई शूट छोड़ती थीं.”
हालांकि, जैसा कि बीजेपी कार्यकर्ताओं का डर था परिणाम किसी आपदा की तरह ही आया. ईरानी को जैसे-तैसे 48000 वोट मिले, जबकि सिब्बल ने करीब 130000 वोटों से जीत हासिल की. लेकिन वह अकेली नहीं थीं, क्योंकि बीजेपी ने आम चुनाव में 543 सीटों में से केवल 138 जीती थीं, जिसने कांग्रेस की अगुआई वाली यूपीए को सत्ता में लौटा दिया. सुधांशु मित्तल ने मुझसे कहा, “चुनाव प्रचार से उनके बोलने की ताकत और असली सेलिब्रिटी ताकत का सबको पता चला.” हार के बाद ईरानी पार्टी के काम में लग गईं. मित्तल कहते हैं, “उन्होंने महिला मोर्चा की अध्यक्षता की, गोवा में चुनाव का नेतृत्व किया. इस तरह की स्थिति बनाने में ज्यादातर लोगों को जीवन भर का समय लगता है.”
हालांकि उनका करियर रफ्तार से आगे बढ़ रहा था, लेकिन ईरानी ने मोदी से पंगा लेकर 2004 में इसे पटरी से उतार दिया जब उन्होंने मोदी के पद छोड़ने तक उपवास की घोषणा की. मोदी के साथ उनका सबके सामने रिश्ता सुधारना और बैठक ने पार्टी को चेहरे को बचाने में मदद की लेकिन इससे पूरी तरह उबरने में उन्हें कई साल लगे.
उनकी स्थिति उन नेताओं के बेकार भाग्य से और कमजोर हो गई जिनके प्रति वे वफादार थीं. वाजपेयी के खराब स्वास्थ्य ने उन्हें पिछली सीट लेने के लिए मजबूर कर दिया और मई 2006 में महाजन की भाई ने हत्या कर दी. जिससे अगले कुछ सालों तक उन्होंने पार्टी की परिधि में काम किया. अभी भी उनके सार्वजनिक बोलने के कौशल के लिए उन्हें वाहवाही मिलती रही लेकिन वह कोई गलती करने से पूरी तरह बचती रहीं.
संभवत: अपने राजनीतिक भाग्य में गिरावट को देखते हुए उन्होंने जुबिन के साथ उग्रया एंटरटेनमेंट नाम का एक प्रोडक्शन हाउस खोलकर टेलीविजन में अपनी जगह सुरक्षित करने की कोशिश की और क्योंकि के साथ भी काम जारी रखा. लेकिन उनका प्रोडक्शन हाउस नहीं चला. कंपनी के शो- वारिस, विरुद्ध, और थोडी सी जमीन थोड़ा असमान, जिनमें से बाद के दो में ईरानी भी थी, में उनकी सराहना की गई लेकिन वे कभी भी क्योंकि की शानदार सफलता के करीब भी नहीं आए.
लेखक कमलेश पांडे ने विरुध का सह-लेखन किया था. उन्होंने समझाया कि प्रोडक्शन हाउस क्यों विफल रहा, “ईरानी नए ख्यालों और विचारों को लेकर खुली थीं और 9 एक्स, जी टीवी जैसे ब्रॉडकास्टरों को अपनी ताकत के बूते शो बेचने में सक्षम थीं.” वे कहते हैं लेकिन क्योंकि के एक दशक बाद टीवी इंडस्ट्री बदल गया था और पहले की तरह ईरानी इसमें फिट नहीं बैठती थीं. पांडे कहते हैं, “टीवी व्यवसाय अपसे बहुत ज्यादा मांग करता है और प्रोडक्शन, रणनीति का एक खेल है. अपने आप को सीरियल में रख कर हर चीज का नेतृत्व नहीं कर सकते.” उन्होंने कहा कि एक अदाकारा के तौर पर ईरानी “अभी भी ठीक थीं, लेकिन उनका वजन बढ़ गया था. इसके लिए मैं उन्हें दोष नहीं देता. आपको याद दिला दूं की राजनीति, तीन बच्चों, प्रोडक्शन हाउस, और शो होस्ट करने के अलावा लगातार सफर करने के बीच बैलेंस बनाना आपको सोने या व्यायाम करने का समय नहीं देता. अंत में यह एक सतही इंडस्ट्री है और अगर आप इसके पिछले नियमों से नहीं खेलते हैं तो आप हार जाते हैं” करीब इसी समय ईरानी और एकता कपूर एक शो के लिए साथ काम कर रहे थे जिसे लेकर उनका झगड़ा हो गया, कई बालाजी कर्मचारियों ने इस बात की पुष्टि की. 2007 में उनका एक दर्दनाक गर्भपात हो गया, जिसके बारे में उन्होंने वीर सांघवी के साथ एक साक्षात्कार में बात की, उसी साल उन्होंने क्योंकि भी छोड़ दिया.
जैसे-जैसे उनका टीवी करियर समाप्त हुआ, ईरानी राजनीति के साथ बेहद सहज होती चली गईं. उन्होंने महाराष्ट्र बीजेपी राज्य इकाई के प्रमुख और आरएसएस में तगड़ी पैठ वाले नितिन गड़करी के साथ संबंध बेहतर करने पर काम किया. ईरानी को महाराष्ट्र भाजपा के महिला मोर्चा का अध्यक्ष नियुक्त किया गया. 2009 के संसदीय चुनावों में उन्हें लड़ने के लिए सीट नहीं दी गई थी, लेकिन उन्होंने भाषा के हथियारों का इस्तेमाल किया. इनमें बंगाली, हिंदी, पंजाबी और अंग्रेजी शामिल थे, इसके सहारे उन्होंने देश भर में पार्टी के लिए जबरदस्त प्रचार किया.
बीजेपी फिर हार गई पर ईरानी की दशा बदल रही थी. 2010 में गडकरी के भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने के एक साल बाद, ईरानी को अखिल भारतीय महिला मोर्चा का अध्यक्ष नियुक्त किया गया. दिल्ली बीजेपी की एक महिला नेता ने कहा, “गडकरी ये सब अकेले नहीं कर रहे थे. लेकिन एक गुरू के होने का दोहरा फायदा है, पहुंच के मामले में असली ताकत और ताकत का एहसास. जो बाकी लोगों को आपके रास्ते दूर रखता है.” 2011 में जब गुजरात सरकार ने राज्यसभा में नामांकन के लिए नेताओं के चयन की तैयारी की तो गडकरी ने ईरानी की सिफारिश की. मोदी के करीबी पार्टी सदस्य का कहना है, “मोदी”-जो अभी भी राज्य के मुख्यमंत्री थे, “को सीतरमण पसंद थीं. लेकिन अंतत: उन्होंने गड़करी की सुनी.”
गुजरात से संसद सदस्य के रूप में ईरानी ने मोदी की शक्ति के क्षेत्र में काम करना शुरू किया. वे कई बार अहमदाबाद गईं और स्थानीय नेताओं से संपर्क बनाए. उस समय राज्य वित्त आयोग का हिस्सा रहे एक पार्टी सदस्य ने कहा, “2012 में गुजरात में वह सांसदों की बैठक में भाग लेती थीं और मुझे याद है कि काम के मामले में वे हमेशा सबसे ज्यादा तैयार रहती थीं.” उन्होंने कहा कि एक तरफ जहां बाकी के सांसदों को स्थानीय नेताओं द्वारा दी गई जानकारी पर निर्भर रहना पड़ता था, लेकिन ईरानी को “जब भाषण देना होता था तो जिस जिले का वह दौरा करती थीं उसके बारे में सारी जानकारी इकट्ठा कर लेती थीं.” उन्हें गुजरातियों के बारे में खूब पता था, जो अब और बेहतर हो गया. ईरानी ने सद्भावना मिशन में भी हिस्सा लिया, इसके सहारे मोदी ने 2002 के बाद बनी गुजरात की साम्प्रदायिक छवि को ठीक करने की कोशिश की थी.
पूर्व वित्त आयोग सदस्य ने कहा कि हालांकि ईरानी ने मोदी का समर्थन करना शुरू कर दिया, “लेकिन इस यू-टर्न में सबको ऐसा नहीं लगा कि ईरानी का हृदय परिवर्तन हो गया है. क्रूर लहजे में कहें तो अगर कोई बहुत महत्वकांक्षी है तो वह बहुत अवसरवादी भी होगा.” ईरानी के लगातार गुजरात दौरे और मोदी से बढ़ती नजदीकियों ने वैसी अफवाहों को जन्म दिया जिनका शिकार सिर्फ महिलाओं और खासकर तेजी से सफल हो रहीं महिलाओं को होना पड़ता है. एक बीजेपी नेता ने मुझे बताया, “संभव है कि कुछ लोग उस हद तक जाने को तैयार हैं जिसके लिए बाकी नहीं.” मैंने पुरुषों और महिलाओं दोनों ही तरह के बीजेपी नेताओं से इस तरह के आक्षेप सुने, ये गुजरात, महाराष्ट्र और दिल्ली से लेकर बाकी के राजनीतिक पार्टियों के नेताओं और गांधीनगर के अलावा दिल्ली के वरिष्ठ पत्रकारों तक फैले हुए थे. इस तरह की बड़ी अफवाह को प्रमाणित करने का साक्ष्य न के बराबर है और जब भी ईरानी को कोई बड़ा मौका मिलता है ये लौट आती हैं. भारतीय राजनीति में जितना गहरा लिंगभेद है वह कई झूठी कहानियों के तौर पर मेरे सामने आया. इस बारे में बात करने वाला हर कोई नेता के तौर पर ईरानी के टैलेंट के कसीदे पढ़ता, बावजूद इसके उनके बारे में जो “भारी ईनाम” मिलने की बात कही उसे समझना मुश्किल है.
इन अफवाहों से ईरानी को फर्क नहीं पड़ा. वे पार्टी की प्रवक्ता बन गईं और लगभग हर रात टीवी डिबेट में आकर अपनी पार्टी और खास तौर पर मोदी के खिलाफ आलोचनाओं का जमकर जवाब देने लगीं. एक हिंदी समाचार चैनल के एक वरिष्ठ संपादक ने कहा कि ईरानी "आमतौर पर अच्छी तरह तैयार और तार्किक रहती थीं." उन्होंने कहा कि वे उपहास को हल्के में लेतीं लेकिन अपनी बातों को किसी “ब्लेड की धार की तरह” जोरदार तरीके से रखतीं.
2014 के आम चुनाव से पहले मोदी जब पीएम बनने की कोशिश कर रहे थे, बीजेपी दंगों में उनकी भूमिका को कम करके दिखाने की कोशिश कर रही थी. ये गुजरात की उस विकास कथा के लिए खतरा थी जो बीजेपी चुनाव प्रचार में बेच रही थी और इसी की चिंता पार्टी के पुराने दिग्गज नेताओं को भी सता रही थी. लगभग हर बार जब मुद्दे पर बहस गर्म हो जाती, ईरानी को उनके 2004 का बयान याद दिलाया जाता. लेखक आकार पटेल, टाइम्स नाउ चैनल की एक ऐसी ही एक घटना याद करते हैं. पटेल कहते हैं, “मैंने उनसे कहा कि वह भले ही अब मोदी का बचाव कर रही हों लेकिन उन्होंने पहले उनकी आलोचना क्यों की थी. उन्होंने तुरंत जवाब दिया, ‘आपके जैसे लोगों ने अपने लेखों से मुझे भ्रमित किया.’” मोदी के करीबी अहमदाबाद के एक वरिष्ठ पत्रकार के मुताबिक ऐसी ही बातों से ईरानी जल्द ही मोदी की सबसे “प्रखर बचावकर्ता बन गईं.” ईरानी को वह “मोदी फिदायीन कहते हैं जो उनके बचाव के लिए बस के सामने भी कूद सकती हैं.”
बीजेपी देखने वाले एक वरिष्ठ पत्रकार के मुताबिक ईरानी को बढ़ावा देना, मोदी के नेतृत्व में भाजपा नेताओं की नई फसल के पैदा करने के प्रयासों का भी हिस्सा था, जिसके सहारे इन्हीं गुणों से लबरेज पार्टी की सबसे वरिष्ठ महिला नेता सुषमा स्वराज का कद कम किया जा सके. आडवाणी की करीबी सुषमा स्वराज को मोदी और पार्टी के वर्तमान अध्यक्ष अमित शाह की खुली आलोचना के लिए जाना जाता है. पत्रकार के मुताबिक, “बीजेपी को स्वराज की जरूरत थी क्योंकि वे चुनाव जीत सकती हैं और एक विश्वसनीय प्रशासक हैं लेकिन वे सुषमा का अपना संस्करण तैयार करके उन्हें दरकिनार कर देना चाहते थे.” कोई भी राजनीतिक संगठन एक या दो से अधिक शक्तिशाली महिला नेताओं को समायोजित करने में सक्षम होना चाहिए लेकिन यह शायद पार्टी की सीमित कल्पना का संकेत है और आम तौर पर भारतीय राजनीति का भी कि ईरानी और स्वराज को हमेशा एक दूसरे के लिए प्रतिस्पर्धा के रूप में देखा जाता रहा. जबकि, स्वराज के उल्ट, जिन्होंने तीन विधानसभा और छह संसदीय चुनाव जीते थे, ईरानी ने केवल एक लड़ा और इसमें भी वह हार गईं.
एक जीर्ण जगह- अमेठी, जो उत्तर प्रदेश के अन्य सैंकड़ों जगहों से अलग नहीं है, इस पर जरूरत से ज्यादा लोगों की नजर रहती है. जिले में दलितों और मुसलमानों की बड़ी आबादी है, और नेहरू-गांधी परिवार के कई सदस्यों के लिए यह पसंद का लोकसभा क्षेत्र रहा है. 1977 और 1998 के चुनाव को छोड़कर कांग्रेस यहां कभी नहीं हारी और 2004 से यह सीट राहुल गांधी की है.
बीजेपी आम तौर पर अमेठी में केवल एक दिखावे की लड़ाई लड़ती है. अमेठी में बीजेपी के चुनाव एजेंट उमाशंकर पांडे ने मुझे अगस्त में बताया, “यहां लोगों और बीजेपी के कार्यकर्ताओं को लगता है कि गांधी परिवार के खिलाफ चुनाव लड़ने वाला कोई भी सिर्फ एक कैंडिडेट मात्र होता है.” उन्होंने अमेठी को "संक्षिप्त आगंतुकों" की एक सूची दिखाई. जनता दल से, "राजमोहन गांधी, राजीव गांधी के खिलाफ लड़े, हार गए, और चले गए." उन्होंने, "शरद यादव, रविंद्र प्रताप, मेनका गांधी" जैसे दूसरे नाम बताए, जो जनता दल (यूनाइटेड), जनता पार्टी और बीजेपी से थे, यहां तक कि दलितों के प्रतीक कांशीराम भी. उन्होंने कहा कि इन तमाम सालों में विकास के मामले में, “अमेठी को कुछ नहीं मिला. लेकिन वे सब हारे और चले गए.”
2014 आम चुनावों में, बीजेपी ने ईरानी को अमेठी के उम्मीदवार के रूप में चुना. पांडे ने कहा कि जब वह प्रचार के लिए आईं तो बीजेपी कार्यकर्ताओं ने मान लिया कि वह भी बदतर तरीके से हारेंगी- "लडेंगी, हार जाएंगी, भाग जयंगी." कई बीजेपी सदस्यों ने मुझे बताया कि राहुल गांधी के खिलाफ ईरानी को मैदान में उतारने का विचार मोदी का था. गांधीनगर में वरिष्ठ बीजेपी नेता के करीबी व्यक्ति ने कहा, “मोदी और शाह उत्तर प्रदेश प्रचार के प्रमुख थे और दोनों खुद में एक टीम हैं. दोनों बिना लड़े किसी भी सीट पर हार नहीं मानते.” अमेठी और पड़ोस की रायबरेली जो कांग्रेस का एक और गढ़ है, इसके बारे में उन्होंने कहा, "जीतना मुश्किल है, इसलिए उन्होंने सोचा कि वे इससे जितना हो सके लाभ प्राप्त करेंगे." ईरानी में दोनों ने "एक ऐसे व्यक्ति को देखा जो अच्छी लड़ाई लड़ेंगी और मीडिया भी उनका पीछा करना पसंद करती है." एक मजबूत प्रचारक राहुल गांधी को वह अमेठी में अधिक समय बिताने और देश भर में अन्य रैलियों में कम समय देने के लिए मजबूर करेगी.
2009 के आम चुनाव में बीजेपी को अमेठी में महज़ 37570 वोट मिले थे. ऐसे में ईरानी के पास खोने को शायद ही कुछ था. उन्हें इस चुनावी लड़ाई में प्रचार मिलने वाला था लेकिन कांग्रेस के गढ़ में हार के बाद भी कोई उनके बारे में कुछ नहीं कहता. 2004 के उलट इस बार उनके पास मोदी लहर और खुद के चुनावी अनुभव का फायदा था.
ज्ञान सिंह अमेठी के गौरीगंज शहर में जाना-माना ‘आलोक ढाबा’ चलाते हैं, उन्हें तब ईरानी को नजदीक से देखने का मौका मिला जब उनकी टीम ढाबे से अपने काम को अंजाम दे रही थी. इमारत में छह वातानुकूलित कमरे हैं जहां ईरानी के सहयोगी और उनके जनसंपर्क अधिकारी रह रहे थे. इस दौरान पार्टी कार्यकर्ता रेस्तरां के खुले हॉल में मिलते, चाय और मक्खन का सेवन करके बैठक के लिए तैयार होते या एक दिन के प्रचार के बाद आराम करते. उन्होंने कहा, "पोर्टली सिंह जो आमतौर पर एक नीली सफारी सूट और लाल पान से भरे मुंह के साथ नजर आता, बीजेपी का एक पुराना वफादार है, वह पहले कल्याण सिंह और अब मोदी के भक्त हैं." बीजेपी के सदस्य याद करते हैं कि उन्होंने हमेशा उनके लिए एक अच्छे मेजबान की भूमिका अदा की है. सिंह ने मुझे अगस्त में बताया, “मैंने इतने सारे चुनाव देखे हैं, लेकिन 2014 में एक अलग वातावरण था. स्मृति जी सिर्फ लड़ने के लिए नहीं लड़ रही थीं. वह जीतने के लिए लड़ रही थीं.” उन्होंने स्मृति को एक अच्छा अतिथि बताया जिसे सिर्फ अपने चिल्ली पनीर और रोटी में दिलचस्पी थी.
चाहे उनका उत्साह रहा हो या आत्मविश्वास, ईरानी की उत्साहित लड़ाई ने अमेठी में ठंडे पड़े बीजेपी कार्यकर्ताओं के अन्दर जोश भर दिया. पांडे कहते हैं, “उन्होंने हमारे भीतर विश्वास जगाया.” उन्हें दीदी बुलाया जाने लगा. ऐसा उस लगाव की वजह से हुआ जो उन्होंने अपने भाषणों से पैदा किया. (राहुल गांधी को इस क्षेत्र में भैया बुलाया जाता है.) अमेठी में बीजेपी के मीडिया मैनेजर गोविंद सिंह चौहान ने देखा कि जब पार्टी के कार्यकर्ता ने उन्हें "मैडम" कह कर संबोधित किया तो वह काफी गुस्सा हो गईं. उन्होंने मुझे बताया, “मैडम तो सोनिया गांधी हैं.”
लोगों में उनके मोदी के करीबी होने की भावना ने ईरानी के अभियान को काफी फायदा पहुंचाया. चौहान कहते हैं, “हम एक बार कार में थे और उन्हें सीधे उनके मोबाइल पर किसी का फोन आया. उन्होंने सामने वाले को सीएम साहेब कह कर संबोधित करते हुए अलग अंदाज में बात की.” जब चौहान ने कार में तेज आवाज में बात कर रहे सहयोगी को शांत करने का निर्देश दिया क्योंकि ईरानी मोदी से बात कर रही थी, तो ईरानी ने मुड़कर पूछा कि उन्हें कैसे पता. वे ईरानी की टांग खिंचाई याद करते हुए कहते हैं कि उन्होंने कहा, “तुम बहुत खतरनाक आदमी हो.” चौहान ने आगे कहा, “हम सबको पता था कि अमित शाह, अरुण जेटली और स्मृति ईरानी वे लोग हैं जिनका मोदी के साथ सीधा संपर्क है. हमारे बीच कोई बकरा नहीं था जो हलाल होने आया हो, हमारे पास बेहद अहम व्यक्ति आया था.”
चुनाव के महज एक महीने पहले अप्रैल 2014 में ईरानी को उम्मीदवार घोषित किया गया था. योजना बनाने और व्यवस्था करने के बाद, प्रभावी ढंग से उनके पास 20 दिनों का समय था. पांडे कहते हैं कि टीम ने इस संदेश पर पूरा ध्यान केंद्रित किया की “कांग्रेस ने 10 सालों में कुछ नहीं किया.” उनका मानना था कि यह बात निर्वाचन क्षेत्र में गूंज जाएगी, जहां 90 प्रतिशत से अधिक आबादी के पास नल वाला पानी नहीं था और 65 प्रतिशत के पास बिजली कनेक्शन नहीं था. स्थानीय बीजेपी नेताओं ने समुदाय के उन नेताओं के साथ ईरानी की बैठकें आयोजित कीं जो कांग्रेस, समाजवादी पार्टी और बसपा से असंतुष्ट थे. पांडे जिनके परिवार के साथ स्मृति ठहरी थीं ने कहा, “उनकी ऊर्जा असीमित थी, एक भी ऐसा दिन नहीं था जब उन्होंने आधी रात से पहले खाना खाया हो.”
ईरानी ने जमीन से जुड़े नेता की छवि पेश की जिसके लिए वह लोगों के घरों में घूमीं और गांव वालों से बात करने के लिए जमीन पर बैठीं. वह अपनी बैठकों की अगली पंक्तियों में महिलाओं के बैठने पर जोर देतीं. पांडे कहते हैं, “हमारा लक्ष्य था कि उन्हें राहुल के विपरीत, जो लोकप्रिय है लेकिन राजकुमार की तरह हैं, आम आदमी की पहुंच वाले की तरह पेश किया जाना चाहिए.” अमेठी में उर्वरक की दुकान के मालिक राम सिंह ने कहा कि वह ईरानी के प्रचार से प्रभावित थे, खास बात यह रही कि हालांकि बीजेपी की राजनीति अक्सर पहचान के समीकरणों पर केंद्रित रहती है, "ईरानी ने हमेशा खुद को संस्कृतियों के मिश्रण के रूप में पेश किया, इसलिए वे कभी विभाजनकारी नहीं रहीं."
कैंपेन शुरू होने के कुछ दिनों बाद चौहान ने ध्यान दिया कि टी-शर्ट, टोपी और चश्मा पहने एक युवा प्रचार से जुड़ी मुलाकातों में स्मृति ईरानी के आस-पास घूम रहा है और अक्सर अकेले में ईरानी से उनकी कार में बात कर रहा है. उन्होंने कहा, “मुझे महसूस हुआ कि हमारे अलावा एक सीक्रेट टीम भी है.”
अमेठी अभियान शुरू करने से पहले, ईरानी का उत्तर प्रदेश में कोई अहम कनेक्शन नहीं था. भाजपा में उनके कई मित्र भी नहीं थे, और जो थे उन पर वह बहुत अधिक निर्भर थीं. जिनमें मोदी, गडकरी और गोवा के तत्कालीन मुख्यमंत्री मनोहर पर्रिकर शामिल थे. गुजरात के एक बीजेपी सदस्य ने बताया कि "सबको ये अच्छी तरह से पता था कि अमित शाह स्मृति को बहुत पसंद नहीं करते, लेकिन उन्हें ईरानी का राजनीतिक महत्व पता था." उन्होंने कहा, “उन्हें नहीं पता था कि पार्टी के नेताओं के साथ संबंध कैसे बनाएं. जब ईरानी राज्यसभा सांसद बनीं, “अक्सर संसद शायद इस बात से चिंतित थे कि उन्हें बीजेपी की स्थानीय इकाई का पूरा समर्थन नहीं मिलेगा, लेकिन ईरानी ने अपनी खुद की चुनावी टीम बनाई और सेंट्रल हॉल में अकेले बैठीं मटन बिरयानी खाती रहतीं.”
शायद इस बात से चिंतित कि उन्हें बीजेपी की स्थानीय इकाई का पूरा समर्थन नहीं मिलेगा, ईरानी ने अपनी खुद की चुनावी टीम बनाई जिसमें फैन, सोशल मीडिया एक्सपर्ट, आईटी एक्सपर्ट और स्वयंसेवक शामिल थे. टीम का नेतृत्व कर रहीं वास्तुकार और सोशल मीडिया एक्सपर्ट शिल्पी तिवारी ने मुझे अगस्त में बताया, “मुझे लगता है कि उनकी औसत उम्र 30 साल के लोगों की थी और इस टीम का एक भी व्यक्ति बीजेपी से नहीं था.” मोदी के सद्भावना मिशन के दौरान 2012 में पहली बार तिवारी, ईरानी से मिलीं और तब से दोनों संपर्क में हैं. तिवारी ने कहा कि जब ईरानी ने उन्हें अमेठी का प्रचार संभालने के लिए बुलाया, “तो प्रेग्नेंसी के चरम पर होने के बावजूद मैंने इसे स्वीकार किया क्योंकि मैडम ने मुझे हमेशा एक बहन का प्यार दिया है.”
ये गुप्त टीम आलोक ढाबा के पीछे बने एक नव निर्मित दो मंजिला घर से काम कर रही थी. तिवारी कहती हैं, “प्रचार का मुख्य भाग बीजेपी के डिजाइन से लिया गया था. हम नए मीडिया को संभाल रहे थे, जिसने उस चुनाव में एक बड़ी भूमिका निभाई थी.” उनकी टीम ने व्हाट्सएप ग्रुप और फेसबुक पर वीडियो और फोटो भेजे, कई टेंपररी हैंडलों के माध्यम से ट्विटर पर माहौल तैयार किया और टेक्स्ट मैसेज भेजे. उन्होंने मतदान पैटर्न, बेरोजगारी दर गरीबी और जनसांख्यिकीय विश्लेषण सहित निर्वाचन क्षेत्र पर भी डेटा इकट्ठा किया. वे कहती हैं कि ईरानी की याद्दाश्त जबरदस्त है जिसकी वजह से “स्वयंसेवकों में भय का माहौल था.” वे “बेहद सहज” नेता भी हैं और “अगर एक मैसेज भी भेजा जा रहा होता था तो वह हर शब्द सही करवाती थीं.”
बीजेपी के सदस्यों और तिवारी की टीम के अलावा अमेठी अभियान के दौरान ईरानी ने एक तीसरे समूह ‘एबीवीपी’ से काम लिया. इस दल के अधिकांश सदस्यों को दिल्ली में जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में 26 साल के एबीवीपी सदस्य और जैविक विज्ञान के डॉक्टरल छात्र आलोक कुमार सिंह ने चुना था, जहां वे पहले से ही छात्र राजनीति में सक्रिय थे. ईरानी के साथ अपनी पहली चुनाव बैठक में अमेठी के दलगंजान गांव में बड़े हुए आलोक सिंह ने सुझाव दिया कि वे अक्सर जिले की खराब सड़कों का जिक्र करें, क्योंकि वोटर उन्हें लेकर काफी शर्मिंदा हैं. “मैंने उनसे कहा, “मैंने सुना है कि सड़क पर गड्ढे होते हैं, पर अमेठी में तो गड्ढों पर सड़क बनी हुई है.” उनकी खुशी के लिए ईरानी ने कई रैलियों में इस लाइन का इस्तेमाल किया जिसे बहुत प्रशंसा मिली. मोटरबाइक पर जिले की यात्रा करते हुए सिंह ने पांच विधानसभा क्षेत्रों में लगभग 25 मित्रों और साथ पढ़ने वालों को भर्ती किया इन लोगों को वह "प्रेरित युवा जो बुद्धिमान और गुस्से में हैं" बताते थे.
जब अभियान का बुखार चरम पर था तो यह साफ हो गया कि ईरानी सच में कांग्रेस के देश में घुसपैठ कर रही थीं. एक वरिष्ठ कांग्रेस सदस्य अखिलेश प्रताप सिंह जो अक्सर अमेठी जाने के दौरान राहुल गांधी के साथ रहते थे, उन्होंने ईरानी के प्रयासों को "स्वयं प्रचार" बताकर खारिज कर दिया. उन्होंने कहा कि अगर अभूतपूर्व पार्टी समर्थन नहीं होता तो ईरानी शायद ही कुछ कर पातीं. उन्होंने तर्क दिया कि मोदी की बीजेपी के लिए अमेठी ने गांधी को कमजोर करने के बड़े प्रयासों का प्रतिनिधित्व किया. वह कहते हैं, “केवल स्मृति ईरानी ही नहीं थीं जो 2014 में राहुल के खिलाफ लड़ रही थीं बल्कि पूरी बीजेपी उनके खिलाफ लड़ रही थी.”
इस समर्थन की सीमा 5 मई 2014 को देश भर में प्रचार के आखिरी दिन स्पष्ट हो गई थी, जब नरेंद्र मोदी ने अमेठी जाने का फैसला किया था. शहर में एक बड़ी रैली को संबोधित करते हुए उन्होंने जिले को समझने के लिए ईरानी के अथक प्रयासों की सराहना की और उन्हें "अपनी छोटी बहन" बुलाया.
चारों ओर से चलाए गए अपने अभियान के बावजूद ईरानी, राहुल गांधी से हार गईं. उन्हें 300748 वोट मिले जो काफी अच्छा था और यह राहुल गांधी को मिले वोटों से महज एक लाख कम था. बीजेपी को भी 2009 की तुलना में काफी फायदा हुआ. बरखा दत्त के साक्षात्कार में ईरानी ने कहा, "मैंने 2014 में देश में सबसे कठिन राजनीतिक लड़ाई लड़ी और नैतिक जीत हासिल की."
तब से शिक्षा मंत्री के रूप में ईरानी हर तीन महीने में कम से कम एक बार इस निर्वाचन क्षेत्र में आती हैं और बाकी योजनाओं के अलावा उन्होंने एक स्कूल शुरू करने और बीमा योजना के लिए पैसे देने में मदद की है. खुद को “पक्का कांग्रेसी” कहने वाले राजेश कुमार बताते हैं, “वह हमारे एमपी राहुल गांधी की तुलना में यहां अधिक रुचि रखती हैं.” अपने परिवार के चारों ओर देखते हुए उन्होंने कहा, "हम अभी भी भाजपा के लोग नहीं हैं, लेकिन हम स्मृति के लोग हैं."
शिल्पी तिवारी भी ईरानी की सशक्त समर्थक बनी रहीं और लेखों में उनकी नीतियों का बचाव करना जारी रखा. तिवारी बार-बार विवादों में आती रहीं, जैसे कि तब जब ये खबर सामने आई कि ईरानी ने सलाहकार के रूप में उन्हें नौकरी देने के लिए सरकारी नियमों को ताक पर रखा है. (रिपोर्ट प्रकाशित होने से पहले तिवारी ने इस नौकरी के लिए मना कर दिया था.) तिवारी के ऊपर जेएनयू से जुड़ी एक छेड़छाड़ की गई वीडियो को भी सर्कुलेट करने का आरोप लगा है, ये वही वीडियो है जिसमें लगाए जा रहे नारों को ईरानी देशद्रोह से भरे नारे बताती हैं. हालांकि तिवारी ने इससे साफ मना कर दिया है. उन्होंने मुझसे कहा, “मुझे इन विवादों में जबरदस्ती घसीटा गया जिसके पीछे मैम के ऊपर हमला करने के अलावा कोई और कारण नहीं था.”
ईरानी ने छात्र संघ के साथ जो संबंध स्थापित किए थे वे 2014 के चुनावों के बाद भी मजबूत रहे. आलोक सिंह दिल्ली लौटकर जेएनयू में एबीवीपी के अध्यक्ष बने और लेफ्ट छात्र संघों और शिक्षकों के खिलाफ कई दुष्प्रचारों का नेतृत्व किया. उनके 18 वर्षीय भाई अमित और चार लड़कों को आलोक सिंह ने परिसर में आमंत्रित किया (उन्होंने मुझे बताया कि वे "अपरिचित बाहरी लोग" थे और आसानी से भीड़ के साथ घुल मिल सकते थे) इन्होंने लेफ्ट-विंग छात्रों के कथित देशद्रोही नारे लगाने वाले 19 फोन वीडियो बनाए. आलोक सिंह ने कहा कि फरवरी के शुरूआत में उन्होंने जी न्यूज और एएनआई को "एक्सक्लुसिव" देने की पेशकश की और चैनलों को वीडियो सौंप दिया. बीजेपी के नेताओं के हमले के साथ हुई कार्रवाई और कई छात्रों की गिरफ्तारी से यूनिवर्सिटी बंद होने की कगार पर आ गई. यह शिक्षा मंत्री के तौर पर ईरानी के सबसे विनाशकारी दौर के तौर पर याद किया जाएगा.
जैसा कि इरानी ने कहा है कि उन्हें कैबिनेट मंत्री बनाए जाने की उम्मीद नहीं थी. मई 2014 में बीजेपी 543 लोकसभा सीटों में से 282 पर अपनी बड़ी जीत का जश्न मना रही थी. इस समय ईरानी शिमला में अपने पति के साथ छुट्टियां मना रही थीं और अपने चुनावी नुकसान से उबर रही थीं. वह अमिताभ और ऋषि कपूर अभिनित फिल्म ऑल इज वेल के लिए लिए एक कैमिओ भी शूट कर रही थीं. लेकिन ऐसा लगा जैसे उनका दिमाग दिल्ली में था.
कई पत्रकारों को ईरानी ने एक ही तरह की कहानी बताई जिसमें वे कहती हैं कि उन्होंने अपने साथी पीयूष गोयल से शपथ ग्रहण समारोह का एक अतिरिक्त पास मांगा था क्योंकि उनकी बेटी भी इसमें जाना चाहती थी. आगे कि कहानी में ईरानी से गोयल पूछते हैं, “आपको क्यों लगता है कि आपको एक ही पास मिलेगा?” ईरानी ने पूछा, “क्या राज्यमंत्रियों को सिर्फ एक ही पास नहीं मिलता?” वह इस ओर इशारा कर रही थीं कि उन्हें ये पद दिए जाने का भरोसा दिया गया है. गोयल ने कहा, “स्मृति, मुझे लगता है आपको मंत्रिमंडल में शामिल किया जाएगा, बेहतर होगा कि आप दो पास लें.”
उन्होंने पत्रकारों को यह एहसास कराया कि शिक्षा मंत्रालय मिलना और भी आश्चर्यचकित करने वाला था. शपथ ग्रहण कवर करने वाले दिल्ली के एक पत्रकार ने मुझे बताया, “जिस तरह स्मृति इस बारे में बताती हैं, ऐसा लगता है कि यह उनके लिए विश्वास से परे था. वह जरूरत से ज्यादा उत्सुक थीं.” लेकिन बहुत से लोगों को लगता है कि वे इस पद के लिए अयोग्य थीं.
भारत में शिक्षा लंबे समय से गहरे संकट में रही है. स्कूलों में लगभग सबका नामांकन होता है लेकिन अध्ययनों से पता चला है कि देश के कक्षा 5 के आधे से अधिक छात्र कक्षा 2 की किताबें नहीं पढ़ सकते. उच्च शिक्षा खराब नामांकन और पहुंच, कम शैक्षिक प्रासंगिकता और बुनियादी ढांचे की कमी से जूझ रही है, यहां तक कि निजी संस्थानों में बढ़ोतरी ने व्यावसायीकरण को नियंत्रण से बाहर कर दिया है. भारत में 220 से अधिक निजी विश्वविद्यालय हैं जो भारत के कुल उच्च शिक्षा नामांकन का 61 प्रतिशत हैं, लेकिन उन्हें फैकल्टी के वेतन या भर्ती के लिए सरकारी मानदंडों का पालन नहीं करना पड़ता है. कई तकनीकी और प्रोफेशनल संस्थानों में भारी भ्रष्टाचार है जो व्यापम जैसे घोटालों में सामने आया है. आलोचकों को लगा कि 38 साल की ईरानी का कोई अकादमिक अनुभव नहीं है इसलिए वह इन चुनौतियों से निपटने के योग्य नहीं हैं. उन्होंने ईरानी पर जमकर हमला किया.
कांग्रेस के संचार प्रमुख अजय माकन ने ट्वीट किया, “मोदी की क्या कैबिनेट है?” शिक्षा मंत्री (जिनके जिम्मे शिक्षा की देखभाल है) स्मृति ईरानी ग्रैजुएट भी नहीं है! चुनाव आयोग की साइट पर उनके हलफनामे को देखें- पेज नंबर 11 पर. कार्यकर्ता और अकादमिक मधु किश्वर ने मोदी को अपनी ट्वीट्स में संबोधित किया, "@narendramodi स्मृति ईरानी महज 12वीं पास हैं, वह मॉडल से टीवी सीरीयल की बहू बन गईं. क्या भारत के शिक्षा मंत्री के लिए इतनी शिक्षा पर्याप्त है?” किश्वर के एक अन्य ट्वीट ने एक गहरी चिंता का खुलासा किया: “@narendramodi शिक्षा मंत्रालय जैसे अहम जगह पर किसी मजबूत आदमी को होना चाहिए जो मुख्यमंत्रियों, वीसी और अनुसंधान संस्थान से निपट सके, जो वामपंथ के गढ़ हैं.
किश्वर संघ में और कई बीजेपी समर्थकों के बीच व्याप्त चिंता की आवाज उठा रही थीं कि ईरानी के पास काफी हद तक लेफ्ट झुकाव वाले अकादमिक और नौकरशाही प्रतिष्ठान को लोहा लेने और राइट विंग की शिक्षा परियोजना को लागू करने की क्षमता और बल नहीं है.
जैसे ही विवाद कम हो रहा था किश्वर ने ईरानी की उन शैक्षिक योग्यता में विसंगतियों के बारे में ट्वीट किया, जिनके बारे में ईरानी ने 2004 और 2014 से अपने चुनावी हलफनामे में दावा किया था. उनके हलफनामे में लिखा था, "बीए 1996 दिल्ली विश्वविद्यालय (पत्राचार स्कूल)." 2014 में उन्होंने लिखा, "बैचलर ऑफ कॉमर्स पार्ट- 1, स्कूल ऑफ ओपन लर्निंग (पत्राचार), दिल्ली विश्वविद्यालय, 1994." विपक्षी दलों ने ईरानी पर चुनाव आयोग से झूठ बोलने का आरोप लगाया और दावा किया कि उन्हें अयोग्य ठहराया जाना चाहिए. कांग्रेस के प्रवक्ता अभिषेक सिंघवी ने एक लिखित बयान में कहा कि यह मुद्दा "शैक्षिक योग्यता रखने का नहीं, चाहे वह 5 वीं कक्षा, 8 वीं कक्षा पास, पीएचडी या एमए हैं." उन्होंने कहा कि इसके बजाय यह "2014 के हलफनामे में बदलाव करना" है, जो एक गंभीर अपराध है."
जल्द ही एक याचिकाकर्ता ने दिल्ली उच्च न्यायालय में एक मामला दर्ज किया जिसमें मांग की गई कि ईरानी स्नातक या नामांकन का प्रमाण प्रस्तुत करे. (अक्टूबर में अदालत ने ईरानी के खिलाफ शिकायत खारिज कर दी.)
गांधीनगर में एक व्यक्ति ने मुझे बताया कि ईरानी 2004 से ही फॉर्म भरने में लगातार लापरवाही कर रही थीं, तब उन पर "नजदीक से ध्यान देने के लिए कोई नहीं था." लेकिन उन्होंने स्वीकार किया कि एक राजनीतिक युद्ध के मामले में, जैसे कि बीजेपी और कांग्रेस के बीच होता है, "तकनीक भी प्रतिद्वंद्वी को गिराने के लिए तीर बन सकता है."
ज्यादातार प्राप्त जानकारी के मुताबिक ये बात पार्टी से बाहर आई थी. कई बीजेपी नेताओं और आरएसएस के सदस्यों ने मुझे बताया कि एक प्रतिद्वंद्वी नेता था जिसने जानकारी लीक की थी. गांधीनगर में वरिष्ठ भाजपा नेताओं के करीबी, जो इस मामले में बीजेपी की आंतरिक जांच में शामिल थे, उन्होंने मुझे बताया, “एक महिला जिन्हें कैबिनेट में जगह नहीं मिली उन्होंने बदले की भावना में ऐसा किया.” एक लोकप्रिय हैंडल वाले एक ट्विटर यूजर ने मुझे यह भी बताया कि महिला ने मुझे "ट्विटर पर इसे सीधे पोस्ट करने के लिए कहा था."
टेलीविजन चैनलों ने निरंतर इस मुद्दे पर चर्चा की. फिर भी, मंत्रालय के अधिकारियों ने कहा कि आंतरिक रूप से, ईरानी ने अपना कार्य सकारात्मक नोट पर शुरू किया. उन्होंने पहली बार शास्त्री भवन की वसंत ऋतु में होने वाली सफाई की निगरानी की, जहां से मंत्रालय काम करता है और डेस्क और स्टोरेज ठीक किया. एक नौकरशाह जो बाद में किसी और मंत्रालय में चली गईं ने कहा, "यह निःस्वार्थ था, किसी ने हमारे लिए कभी यह नहीं किया था और हम सच में खुश थे." उन्होंने यह भी बताया कि पहले कुछ हफ्ते तो ईरानी आसानी से सबके पास आती थी, अक्सर अधिकारियों, विशेष रूप से महिलाओं तक आतीं, कुछ पूछतीं, साड़ी की तारीफ करती या अन्य बातों का आदान-प्रदान करती.
लेकिन जैसे ही उनकी शैक्षणिक योग्यता पर हमले जारी रहे, ईरानी की प्रारंभिक मित्रता समाप्त हो गई. जल्द ही ऑफिस में एक साफ पदक्रम स्थापित हो गया. मंत्रालय में एक स्कूल शिक्षा सलाहकार ने मुझे बताया, "केवल ऊपर के संयुक्त सचिव और अधिकारी उसके कमरे में जा सकते थे. पिछले मंत्रियों ने हमसे ऐसा व्यवहार नहीं किया था. "उन्होंने कहा कि ईरानी किसी पर भरोसा नहीं कर रही थी और हर ज्ञापन, दस्तावेज और निर्णय को देखने और नियंत्रित करने लगी थीं. अमेठी में प्रचार के मामले में काम करने वाला माइक्रो-मैनेजमेंट ईरानी के लिए यहां उल्टा साबित हुआ.
कई अधिकारियों ने शिकायत की कि ईरानी में दिशा की कमी थी और उन्हें एक परियोजना से दूसरी परियोजना में फंसना पड़ रहा था. इस वर्ष जून में लॉन्च होने वाले एक स्कूल स्वयंसेवी कार्यक्रम ‘विद्यांजली’ के लिए एक बैठक में सलाहकार ने पंजाब के शिक्षा मंत्री का अपने पड़ोसी के साथ मजाक याद करते हुए कहा, "बहन जी हर महीने कुछ नया लॉन्च करती हैं." शिक्षा के अधिकार कानून को लागू करने पर काम करने वाले एक अधिकारी ने मुझे बताया कि ईरानी उन्हें "कम पढ़ी लिखी" और "ब्रीफिंग को लेकर उदास" लगीं, सिवाय इसके कि उन्हें संसदीय प्रश्नों का उत्तर देना हो या प्रधान मंत्री कार्यालय के साथ उनकी बैठक हो. मंत्रालय के एक वरिष्ठ नौकरशाह ने कहा, “उसकी याददाश्त अच्छी थी इसलिए वह आंकड़ों के मामले में ठीक थीं लेकिन प्राथमिकता और नेतृत्व के मामले में हमें निराशा हाथ लगी.”
ईरानी के तहत शिक्षा मंत्रालय मोदी सरकार के लिए सबसे संघर्षपूर्ण साबित हुआ. कम से कम पांच संयुक्त सचिव स्तर के अधिकारियों को कार्यालय से दो साल में हटा दिया गया. इसके उलट, यूपीए- 2 सरकार के पूरे पांच सालों में केवल दो अधिकारी ही हटाए गए थे. कार्यालय में निराशा तब गहराई तक पहुंच गई जब ईरानी ने मंत्रालय के सचिव को हटा दिया. सबसे उच्च अधिकारी, एक अनुभवी नौकरशाह वृंदा सरप जो कई लोगों की सलाहकार थीं और कार्यकर्ताओं और शिक्षाविदों के बीच जिनका व्यापक सम्मान था. स्कूल सलाहकार ने कहा, “वह 20 सालों से वहां थीं और संस्थागत निरंतरता लाई थीं जो लंबी अवधि की शिक्षा नीतियों के लिए जरूरी है. जब उन्हें हटाया गया तो सब बहुत निराश थे और हमने स्मृति के लिए सम्मान खो दिया.”
ईरानी का प्रदर्शन इसलिए भी खराब रहा क्योंकि उनके पास राज्यों में सीमित नेटवर्क था. बीजेपी शासित राज्य के एक शिक्षा सचिव ने मुझे बताया, “वह एक स्पष्ट नेता हैं जो जब चाहें तब बहुत उदार हो सकती हैं. लेकिन उन्होंने राज्य शिक्षा टीमों के साथ संबंध बनाने की जहमत नहीं उठाई.” विद्यांजली ऐप लॉन्च करने के लिए एक जून के कार्यक्रम पर मंत्रालय को 1 करोड़ रुपए का खर्च आया, लेकिन पंजाब और जम्मू-कश्मीर से केवल दो शिक्षा मंत्रियों ने इसमें भाग लिया. कार्यक्रम में शामिल स्कूल सलाहकार ने मुझे बताया, “बीजेपी शासित राज्यों के शिक्षा मंत्रियों द्वारा भी उन्हें गंभीरता से लिया जाना मुश्किल था.” कुछ अधिकारियों को लगा कि ईरानी के लिए लोगों का उपहास शायद उनकी "डरावनी" प्रवृति के वजह से था. अब किसी और मंत्रालय में काम कर रहे नौकरशाह ने बताया, "एक तरफ उनके लिए सहानुभूति थी और दूसरी तरफ लोग उनसे ऑर्डर नहीं लेना चाहते थे क्योंकि पहले वह एक अभिनेत्री थीं."
ईरानी को लेकर शिक्षाविद बेहद कठोर थे. आईआईटी, आईआईएम और विश्वविद्यालयों के प्रोफेसरों ने उन्हें "अपमानजनक", "बेहद उत्तेजित" और "विशेषज्ञता या अनुभव के बगैर घमंडी" व्यक्ति बताया. आईआईटी दिल्ली के एक वरिष्ठ शिक्षाविद ने कहा कि ईरानी के निजी कर्मचारियों ने उनसे ईरानी को "श्रीमती ईरानी" नहीं बल्कि "मंत्री" कहने का निर्देश दिया था. हरियाणा के सूरजकुंड में कुलपतियों की एक बैठक में ईरानी ने इस पर पर्याप्त ध्यान नहीं देने के लिए एक वरिष्ठ शिक्षाविदों को झाड़ लगा दी. इन शिक्षाविदों में से एक ने मुझसे ईरानी का वर्णन करते हुए कहा कि "वह ताकत दिखाने के अलावा बद दिमाग" हैं. आईआईटी दिल्ली के एक वरिष्ठ प्रोफेसर ने कहा कि यूपीए के शिक्षा मंत्री अर्जुन सिंह और वाजपेयी के शिक्षा मंत्री मुरली मनोहर जोशी भी जिद्दी थे लेकिन उनमें पढ़े-लिखे लोगों से पेश आने का सलीका था. मुझे शैक्षणिक योग्यता के बिना घमंड से चूर व्यक्ति का बॉस होना अच्छा नहीं लगा जिन्हें हर बात में बखेड़ा खड़ा करने की आदत थी.
दिल्ली यूनिवर्सिटी टीचर्स एसोसिएशन यानि डूटा की अध्यक्ष नंदीता नारायण की तब उनसे लगातार मुलाताक होती थी जब ईरानी मंत्री थीं. लेकिन उन्होंने मुझे बताया कि उन्हें ईरानी कभी घमंडी या अपमानजनक नहीं लगीं. उन्होंने कहा, “पिछले मंत्री भी शिक्षा की बारीकियों के बारे में इतने ही अनभिज्ञ थे.” लेकिन उन्होंने स्वीकार किया कि ईरानी को लिंगभेद और एलिट लोगों की अतिरिक्त बाधाओं का सामना करना पड़ा. ईरानी के स्कूल की दोस्त परमिंदर कौर खालसा कॉलेज में पढ़ाती हैं और उन्होंने ईरानी की कुछ योजनाओं के खिलाफ विरोध में भाग लिया था. उनका कहना है कि जब महिला प्रोफेसरों को “काफी छुपे लहजे में” पुरुष प्रोफेसर नीचा दिखाते हैं तो शिक्षा मंत्री के लिए तो कम से कम ये “दस गुना” बदतर होगा. लेकिन दोनों इसे लेकर स्पष्ट थीं कि ईरानी की विफलताओं का ये बहाना नहीं हो सकता. एक वरिष्ठ विश्वविद्यालय प्रशासक ने कहा कि उनकी असली असफलता ये भी है कि “वह सही आलोचना को भी लिंगभेद बताती थीं, हालांकि उनके खिलाफ ऐसा हो रहा था.”
नीति तैयार करने और लागू करने के मामले में ईरानी असफल रहीं. जून 2014 में अपने पहले बड़े फैसले में उन्होंने विवादास्पद चार साल के स्नातक कार्यक्रम यानि ‘एफवाईयूपी’ को वापस ले लिया जिसे उनके पूर्ववर्ती एमएम पल्लम राजू ने दिल्ली विश्वविद्यालय में मंजूरी दे दी थी और जिसका सभी छात्र और शिक्षक समूह में विरोध कर रहे थे. नारायण कहती हैं, “हमने सोचा कि आखिर में एक मंत्री हैं जिन्होंने हमें सुना और मैं बहुत खुश थी कि वह एक औरत हैं.”
लेकिन नारायण को निराशा हाथ लगीं. लगभग एक साल बाद ईरानी ने विश्वविद्यालय अनुदान आयोग यानि यूजीसी को पसंद-आधारित क्रेडिट सिस्टम यानि सीबीसीएस को लागू करने का आदेश दिया जो एफवाईयूपी के सिद्धांतों पर आधारित था. छात्र और शिक्षक समूहों ने तर्क दिया कि इस बदलाव का प्रभाव ये होगा कि नए पेश किए गए सेमेस्टर सिस्टम के साथ पाठ्यक्रम तो बढ़ जाएंगे लेकिन शिक्षकों की भारी कमी होगी.
छात्र अपने पाठ्यक्रम में आवश्यक अनिवार्य और वैकल्पिक विषयों के संतुलन के बारे में भी उलझन में थे. अब एक सालाना परीक्षा की जगह दो परिक्षाएं होनी थीं. सीबीसीएस प्रणाली ने क्रेडिट ट्रांसफर और एक जैसा पाठ्यक्रम शुरू किया, लेकिन कई शिक्षकों को डर था कि ऐसा करने से गुणवत्ता कम हो जाएगी. मिरांडा हाउस में भौतिकी के एक व्याख्याता आभा देव हबीब ने मुझे जून में बताया, “कागज पर हर विचार अच्छा लगता है पर सतह पर ऐसा नहीं होता. ये पूरी अराजकता फैलाने वाला होता है.” इस दौरान नारायण ने ईरानी से अस्थायी अनुबंध और भारी फीस वृद्धि जैसे मुद्दों पर शिक्षकों की शिकायतों को व्यक्त करने के लिए कई बार मुलाकात की. उन्होंने कहा, “ऐसा लगा जैसे उन्हें बेहद बुरी सलाह मिली हैं. विश्वविद्यालयों में हानिकारक परिवर्तनों को लागू करने के बाद विचार-विमर्श के लिए वे हितधारकों से मुलाकात कर रही थीं.”
जैसे ही ईरानी ने और नीतियां लागू की आलोचकों ने महसूस किया कि वह सार्वजनिक वित्त पोषित विश्वविद्यालयों पर जोर देने से दूर जा रही थीं. उन्होंने अक्टूबर 2015 में गैर-नेट फैलोशिप को हटा दिया लेकिन छात्र आंदोलन के उपजे भयंकर विरोध के बाद इस कदम को वापस ले लिया. यह एमफिल और पीएचडी विद्वानों के लिए एक विशेष मासिक सरकारी राशि है. इसे आक्यूपाइ यूजीसी के नाम से जाना जाता है. उन्होंने और नीति आयोग ने विदेशी विश्वविद्यालयों को भारत में आने की इजाजत दी (हालांकि, संघ द्वारा इस कदम के खिलाफ दबाव ने ईरानी के उत्साह को कम किया). 2016 में सरकार ने यूजीसी के बजट को कम कर दिया जिससे कई विश्वविद्यालयों को अपनी फीस बढ़ाने को मजबूर होना पड़ा. अप्रैल में ईरानी ने आईआईटी की फीस दोगुना करने को मंजूरी दे दी (हालांकि कुछ छात्र उनकी पारिवारिक आय के आधार पर फीस छूट का लाभ उठा सकते हैं). एक साथ इतनी और अन्य घटनाओं ने एहसास कराया कि ईरानी शिक्षा के उस मॉडल का समर्थन करती हैं जहां छात्रों को ज्यादा फीस देनी होगी और सरकारी समर्थन कम हो जाएगा, दोनों ही परिवर्तन ऐसे हैं जो गरीब और हाशिए वाले छात्रों पर प्रतिकूल प्रभाव डालने वाले हैं.
शिक्षा के प्रोफेसर और नेशनल काउंसिल ऑफ एजुकेशन रिसर्च एंड ट्रेनिंग यानि एनसीईआरटी के पूर्व निदेशक कृष्णा कुमार ने हिंदुस्तान टाइम्स में 2015 में लिखा, “कोई भी नहीं जानता कि मौजूदा सुधारों को कौन सी नीति आकार दे रही है.” तर्क देते हुए उन्होंने कहा कि "उच्च शिक्षा के सुधारकों" को जमीन की वास्तविकताओं से अलग कर दिया गया है. उन्होंने लिखा था कि "पुरानी नीतियों को नया करके" पेश किया गया और शिक्षकों और छात्रों के बीच दूरियां बढ़ा दी गईं. “हमें जबरदस्ती एक बात को सही समझने के लिए मजबूर किया गया, जिसके तहत ये समझाया गया कि भारतीय विश्वविद्यालयों की अच्छी रैंकिंग के लिए हमें अमेरिकी यूनिवर्सिटियों को जल्द से जल्द कॉपी करना चाहिए.”
ईरानी के शिक्षा मंत्रालय के पास एक सुसंगत दृष्टि नहीं है, ये तब और हुआ जब उन्होंने एक नई समिति की सिफारिशों यानि एनईपी के लिए सिफारिशें देने की समिति की रिपोर्ट जारी नहीं की, ‘1986 से अपनी तरह की पहली’. जिसके बारे में उन्हें लगा कि वह उनकी सबसे बड़ी विरासत होगी. हालांकि वह समिति के अध्यक्ष और पूर्व कैबिनेट सचिव टीएसआर सुब्रमण्यम से अपील की अनदेखी करती रहीं. रिपोर्ट लीक कर दी गई.
इसके कई सुझावों में नो-डिटेंशन पॉलिसी को हटाना, पाठ्यक्रम में आध्यात्मिक शिक्षा को शामिल करना और शिक्षा के माध्यम के रूप में मातृभाषा के उपयोग जैसी बाते शामिल थीं, ये सभी आरएसएस की प्राथमिकता रही हैं. रिपोर्ट में कौशल विकास, एक जैसा विश्वविद्यालय पाठ्यक्रम, छात्र राजनीति पर बैन, निजी निवेश के लिए आसानी और विदेशी विश्वविद्यालयों के साथ संबंध, जैसी सरकारी प्राथमिकताओं पर ध्यान देने की भी सिफारिश की गई थी. शिक्षा के अधिकार फोरम के शिक्षाविद अमबरिश राय समझाते हैं कि एचआरडी मंत्रालय एक नया मॉडल ला रहा है जिसमें "शिक्षक, छात्रों को निचोड़कर अपनी फीस कमाते हैं, लेकिन सरकार स्लेबस और एडमिशन में दखल देती है." इस सुधार की दिशा ईरानी से पहले मौजूद थी और उनके बाद भी जारी है. उन्होंने जो नुकसान किया वह नीतियों को लागू करने में अलोकतांत्रिक, गैर परामर्शकारी तरीके को अपनाना था, ऐसी नीतियां संसद में बहस के बाद कभी पारित नहीं होतीं.
ईरानी के साथ बैठक में एक प्रमुख शिक्षा एनजीओ के एक विशेषज्ञ ने महसूस किया कि ईरानी के "शिक्षा पर सरल विचार ये हैं कि सरकारी स्कूलों और कॉलेजों की समस्याओं के समाधान के लिए इन्हें निजी लोगों के हाथों में दे देना चाहिए." जब विशेषज्ञ ने फिनलैंड और ब्रिटेन की अद्भुत राज्य प्रायोजित सार्वभौमिक शिक्षा के उदाहरणों का हवाला दिया तो मंत्री ने बैठक समाप्त कर दी. उन्होंने ईरानी के कहे को याद करते हुए कहा, “वह सब यहां काम नहीं करेगा, आपको सिर्फ इस बात का डर है कि हम आपके एनजीओ का धंधा बंद कर देंगे.”
बीजेपी पर आरएसएस के प्रभाव को देखते हुए, इस बात पर कोई संदेह नहीं था कि शिक्षा के लिए संगठन के एजेंडे को लागू करना, (एक प्रक्रिया जिसे अक्सर "भगवाकरण" कहा जाता है) एचआरडी मंत्री के रूप में ईरानी के एजेंडे का एक बड़ा हिस्सा होगा. एनडीए के पिछले शिक्षा मंत्री मुरली मनोहर जोशी शैक्षणिक प्रतिष्ठान से मजबूत प्रतिरोध के बावजूद हिंदू संस्कृति को दर्शाने के लिए लिखी कुछ पाठ्यपुस्तकों को छपवाने में कामयाब रहे और सुप्रीम कोर्ट में भी जीत हासिल की, जिसने धार्मिक मूल्यों को स्कूलों में पढ़ाने की इजाजत दी. आरएसएस में कई लोग महसूस करते थे कि ईरानी इस मामले में और मजबूत हैं. दीनानाथ बत्रा के आरएसएस से जुड़े ‘शिक्षा बचाओ आंदोलन’ के अतुल कोठारी ने मुझे अगस्त में बताया, “अटल जी को अपने गठबंधन सहयोगियों को मनाने पड़ता था. बीजेपी की इस सरकार के पास बहुमत है, जो कई बदलावों को तेजी से करने का मौका है.” मंत्रालय से जुड़े बीजेपी के सदस्यों और पत्रकारों ने कहा कि ईरानी एक आरएसएस के अनुभवी व्यक्ति कृष्ण गोपाल के करीब थीं जिन्होंने संघ की आवश्यकताओं की पूर्ति करने में ईरानी की मदद की.
कार्यालय में अपने पहले छह महीनों में ईरानी ने आरएसएस के नेताओं के साथ कम से कम छह बैठकें की थीं. आरएसएस संचार प्रमुख अनिरुद्ध देशपांडे ने मुझे जून में बताया, “हम इस सरकार के साथ खुले तौर पर कई सारी चीजों पर चर्चा कर सकते हैं, वे हमारी सुनते हैं.” शिक्षा समिति पर सरकार के साथ बातचीत करने वाले 11 संगठनों के एक आरएसएस समूह, शिक्षा समूह के अध्यक्ष अतुल कोठारी ने स्वीकार किया कि पिछले, गैर-बीजेपी शासनों में, आरएसएस नेताओं को कभी भी एचआरडी मंत्रालय के साथ नियुक्तियां नहीं मिलीं. कोठारी ने कहा, “आखिरकार हमें सुना जा रहा है.”
हालांकि ईरानी ने संघ के लिए अपने दरवाजे खोल दिए लेकिन शुरुआती संकेत थे कि संगठन ईरानी पर पूरी तरह से भरोसा नहीं करता. इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक 30 अक्टूबर 2014 को उन्होंने शिक्षा समूह के प्रतिनिधियों के साथ एक बैठक आयोजित की जो छह घंटे चली. दो हफ्ते से भी कम समय में एक पूर्व आरएसएस प्रचारक राम शंकर कठेरिया को शिक्षा राज्य मंत्री नियुक्त कर दिया गया. कोठारी ने मुझे बताया कि कठेरिया को "स्मृति-जी की सलाह देने के लिए" नियुक्त किया गया था. लेकिन यह पहला संकेत था कि आरएसएस, मंत्रालय में किसी अपने को रखने की इच्छा रखता था.
फिर भी ईरानी ने संघ का दिल जीतने के लिए कई उपाय किए. इनमें सबसे प्रमुख फैसले के तहत उन्होंने उस नो-डिटेंशन पॉलिसी को पलट दिया जिसे सिब्बल ने लागू किया था. ये 2009 के शिक्षा के अधिकार कानून का हिस्सा था जिसने सुनिश्चित किया कि भले ही कोई फेल हो जाए लेकिन कक्षा 8 तक के छात्रों को अगली क्लास में भेजा जाएगा और उनकी प्रगति का लगातार मूल्यांकन किया जाएगा. दुनिया भर में शिक्षाविदों का कहना है कि ऐसी प्रणाली एक नहीं डराने वाला और सही तरीके से सीखने का माहौल बनाती है. इससे परीक्षा के डर और स्कूल छोड़ने के दर में भी कमी आती है. लेकिन आरएसएस के अलावा 18 राज्यों की सरकारें भारत में इसकी घोर विरोधी हैं जिनमें से सभी एक रूढ़िवादी और स्थाई नीति के पक्ष के तहत मानते हैं कि फेल होने वाले को रोक लेना चाहिए. देशपाडें कहते हैं, “इससे अच्छे छात्रों को नुकसान और खराब छात्रों को फायदा होता है. इसकी वजह से छात्र प्रतिस्पर्धी दुनिया में असफल हो जाएंगे.”
एचआरडी मंत्रालय में काम करने वाले स्कूल परामर्शदाता के मुताबिक, ईरानी ने नीति को रोकने के लिए आरटीई अधिनियम में तकनीकी कार्यवाही की सिफारिश करने के लिए एक पन्ने का कानूनी नोट तैयार किया था. उनके मंत्रालय में वरिष्ठ नौकरशाहों ने मुझे बताया कि उन्हें परामर्श की किसी भी प्रक्रिया का हिस्सा नहीं बनाया गया था. मंत्रालय में पूर्व वरिष्ठ नौकरशाह ने कहा, “अगर स्मृति के पास नो-डिटेंशन को हटाने के लिए राजनीति के अलावा कोई रिसर्च और तर्क थे तो हमें इस बारे में नहीं पता.” सेंट्रल एडवाइजरी बोर्ड ऑफ एजुकेशन के एक सदस्य ने मुझे बताया, "मूल तर्क यह था कि कांग्रेस के मंत्रियों ने जो भी किया उस सब को पलटकर वह सब करो जो आरएसएस कहे." (ईरानी के बाद शिक्षा मंत्री बने जावड़ेकर का भी यही मंत्र है.)
उनकी मंत्रालय की नियुक्तियों में भी, ईरानी ने आरएसएस को खुश करने की कोशिश की. सितंबर 2015 में दिल्ली सम्मेलन में बीजेपी मंत्रियों ने संघ के नेताओं को सम्मानित किया. इसमें हिस्सा लेने वाले एक व्यक्ति ने मुझे बताया, "आरएसएस ने स्पष्ट रूप से ईरानी और संस्कृति राज्य मंत्री महेश शर्मा को प्रतिष्ठित संस्थानों के शीर्ष स्तर पर पश्चिमी प्रभाव को हटाने की जिम्मेदारी दी और शिक्षा, कला ऐतिहासिक और वैज्ञानिक अनुसंधानों में "भारतीय मूल्य" लाने को भी कहा. लेकिन इस मामले में संघ ईरानी से असंतुष्ट लगा. एक वरिष्ठ आरएसएस कार्यकर्ता ने मुझे बताया कि "नियुक्तियों के मामले में वह ईरानी को 50 प्रतिशत अंक देगा." दूसरी तरफ संस्कृति मंत्री शर्मा संघ द्वारा दी गई नियुक्तियों की लंबी सूची बनाने में कामयाब रहे. कार्यकर्ता ने मुझे बताया कि वह शर्मा को "80 प्रतिशत" अंक देंगा. गौर करने लायक बात है कि शर्मा के पास अभी भी उनका मंत्रालय है.
सत्ता में रही हर पार्टी पर प्रशासकों को उनके एजेंडे से सहानुभूति रखने वालों को चुनने का आरोप लगाया जा सकता है. लेकिन ईरानी के समर्थक आरएसएस वाली नियुक्तियों में से कई को भी कम योग्यता वाला माना जाता है. ‘इंडियन काउंसिल ऑफ हिस्टोरिकल रिसर्च’ के चेयरमैन के तौर पर ईरानी ने आरएसएस के करीबी वाई सुदर्शन राव को नियुक्त किया जो ‘जाति व्यवस्था का बचाव’ करने के लिए जाने जाते हैं. बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के कुलपति के रूप में ईरानी ने उत्तर प्रदेश के एक आरएसएस कार्यकर्ता गिरीश चंद्र त्रिपाठी को चुना जो इलाहाबाद विश्वविद्यालय में अर्थशास्त्र के प्रोफेसर हैं और उनके नाम पर कुछ भी नहीं छपा. लेफ्ट झुकाव वाले वरिष्ठ शिक्षाविद प्रवीण सिंक्लेयर एनसीईआरटी की अध्यक्षता करते थे. ये संस्था सरकारी स्कूलों के लिए पाठ्यक्रम निर्धारित करती है और पाठ्यपुस्तकों को प्रकाशित करती है. उन्होंने अपना कार्यकाल पूरा होने के पहले अक्टूबर 2014 में इस्तीफा दे दिया. वह ईरानी द्वारा उनके ऊपर लगाए गए भ्रष्टाचार के आरोपों से खफा थे. मुझे शिक्षा मंत्रालय के और एनसीईआरटी के कई कर्मचारियों ने बताया कि ये आरोप झूठे थे. ईरानी ने शिमला स्थित इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ एडवांस स्टडीज की अध्यक्षता के लिए चंद्रकला पड़िया को नामित किया, पड़िया के नाम से चीजें छपी हैं लेकिन ज्यादातर लोगों को मानना है कि उन्हें जो पद मिला उसके हिसाब से उनका काम पर्याप्त नहीं है. आरएसएस द्वारा प्रकाशित पत्रिका पंचंज्या के पूर्व संपादक बलदेव शर्मा को राष्ट्रीय पुस्तक ट्रस्ट का अध्यक्ष नियुक्त किया गया. देशपांडे ने स्वीकार किया कि आरएसएस ने "सिफारिश वाले उम्मीदवारों की लिस्ट सरकार को दी" लेकिन जोर देकर कहा कि "निर्णय मंत्री के हाथों में है."
एनडीटीवी पर एक साक्षात्कार में इतिहासकार रामचंद्र गुहा ने तर्क दिया कि “उच्च शिक्षा में गिरावट 20 से 30 साल पहले शुरू हुई, लेकिन ईरानी ने इसे गति दी.” हालांकि, यूजीसी के पूर्व सदस्य और राजनीतिक कार्यकर्ता योगेंद्र यादव ने मुझे बताया कि ईरानी ने वास्तव में आरएसएस एजेंडा को उम्मीद से कम लागू किया. उन्होंने कहा, “धर्मनिरपेक्ष विरोधियों के लिए हर बार सचेत करना जरूरी है लेकिन महत्वपूर्ण बात यह है कि स्मृति ईरानी कितना कम बदलाव कर पाईं. निश्चित रूप से कुछ बुरी नियुक्तियां खबर बनीं लेकिन यह दिलचस्प है कि वे आरएसएस की इच्छाओं को प्रभावशाली तरीके से एनसीईआरटी पाठ्यपुस्तकों में भी लागू नहीं कर पाईं. उन्होंने आगे कहा, "ऐसा इसलिए नहीं है क्योंकि स्मृति उदार या संतुलित है बल्कि बीजेपी में शिक्षा नीति में सुधार के लिए पर्याप्त बौद्धिक समर्थन मौजूद नहीं है. लेफ्ट और कांग्रेस के पास ये थे लेकिन बीजेपी के पास अब भी नहीं है.” ईरानी के तहत यादव शिक्षा के भगवाकरण को "गिरावट" के रूप में नहीं देखते.
बीजेपी और आरएसएस समर्थन के बारे में जब उन्हें साफ समझ नहीं आया तो ईरानी ने तेजी से एबीवीपी से संगठनात्मक समर्थन मांगा. इस संगठन ने देश भर के विश्वविद्यालयों में विवादस्पद संघर्षों का नेतृत्व किया और छात्र राजनीति को राष्ट्रीय स्तर पर ले आए.
उनके मंत्रालय के कर्मचारियों की तरह ही ईरानी की छात्रों के साथ शुरुआती बातचीत अच्छी रही. अपने कार्यकाल के पहले 10 दिनों में जब सैकड़ों गुस्साए प्रदर्शनकारियों ने एफवाईयूपी के खिलाफ दिल्ली में शास्त्री भवन के बाहर प्रदर्शन किया, तो मंत्री अपने कार्यालय से निकलीं और बातचीत के लिए भीड़ तक पहुंच गईं . जेएनयू छात्र संघ के पूर्व अध्यक्ष कन्हैया कुमार ने मुझे बताया, “जैसे ही वे बाहर आईं, मैं समझ गया कि वह चालाक हैं.” हालांकि पहली बार उन्होंने सभी विचारों के छात्रों को सुना लेकिन एबीवीपी ईरानी के लिए खास था. जंतर मंतर पर लगातार होने वाले प्रदर्शनों में एफवाईयूपी और सीबीसीएस जैसे नवउदार नीतियों के विरोध या गैर-नेट फैलोशिप हटाने के मामले में एबीवीपी अन्य छात्र समूहों के साथ एकजुटता में खड़ा रहता. लेकिन ईरानी ने उनसे दर्जनों बार अलग से मुलाकात की. एबीवीपी के दिल्ली राज्य सचिव साकेत बहुगुणा ने कहा, “वामपंथी समूह केवल नरेंद्र मोदी की आलोचना करना और उन्हें गाली देना चाहते थे. हम हल निकालना चाहते थे, बातचीक करना चाहते थे, इसलिए हम स्मृति जी के साथ काम कर सकते हैं. हमने एक ही परिवार के सदस्यों के रूप में बात की”
संबंध दिल्ली से बाहर भी बढ़े. चेन्नई में मई 2015 में एचआरडी मंत्रालय द्वारा एक अज्ञात शिकायत और पूछताछ के बाद आईआईटी मद्रास के डीन ने ‘अम्बेडकर पेरियार स्टडी सर्किल’ की पहचान रद्द कर दी, जिसमें मुख्य रूप से दलित और वामपंथी छात्र शामिल थे. एपीएससी के एक समन्वयक अखिल भारनाथ ने मुझे अप्रैल में चेन्नई में बताया, “हमारा संगठन जातिवाद और धार्मिक प्रथाओं की बुराइयों पर चर्चा करता है जो दलितों और जनजातियों के खिलाफ भेदभाव करते हैं. अम्बेडकर और पेरियार जैसे दार्शनिकों के विचार व्यक्त करने के लिए हमें प्रतिबंधित करके आईआईटी और मंत्रालय ने उसे सही साबित किया जो हम उत्पीड़न के बारे में कहते हैं.” (देश भर में भयंकर विरोध के बाद संस्थान ने एक महीने से कम समय में एपीएससी बहाल कर दिया.)
आईआईटी मद्रास के एक प्रोफेसर ने मुझे बताया कि सवर्ण हिंदू समूहों, जो संस्थान के छात्रों और फैकल्टी पर हावी हैं, उन्होंने केंद्र में बीजेपी के आने के बाद "खुल कर अपना खेल खेलना" शुरू कर दिया. आईआईटी दिल्ली में रसायन विज्ञान विभाग के प्रोफेसर नलिन पंत ने इस बात का समर्थन किया. उन्होंने कहा, “तकनीकी छात्रों के रूप में यहां कुछ लोगों ने उदार राजनीतिक विचारों का सामना किया है. अपने सीमित एक्सपोजर की वजह से सामान्य श्रेणी के छात्र आमतौर पर आरक्षित सीटों पर आने वाले लोगों को धमकाते हैं.” उन्होंने आगे कहा, समस्या तब बढ़ जाती है जब "राजनीतिक प्रतिष्ठान उन्हें बढ़ावा देते हैं" विविधता से मेल जोल बिठाने के बजाए ये बच्चे उन चीजों को बंद करने के लिए राजनीतिक ताकत का उपयोग करेंगे जो उन्हें असहज बनाते हैं.
ईरानी के नेतृत्व में यह खतरनाक स्तर पर हुआ. आईआईटी मद्रास मुद्दे के लगभग एक महीने बाद शिक्षा मंत्रालय ने हैदराबाद विश्वविद्यालय में एबीवीपी और अम्बेडकर स्टूडेंट्स एसोसिएशन यानि एएसए के बीच एक संघर्ष में हस्तक्षेप किया. मंत्रालय से दबाव में यह दिखाने के लिए कि विवाद में उन्होंने क्या कदम उठाया था कुलपति अप्पा राव पोडिल ने छात्रावास के पांच दलित छात्रों को निलंबित कर उन्हें परिसर की सार्वजनिक जगहों का उपयोग करने से रोक दिया. दलित संगठनों ने निलंबन को जातिगत भेदभाव करार दिया. कई हफ्तों के विरोध प्रदर्शन के बाद निलंबित छात्रों में से एक रोहित वेमुला ने छात्रावास के कमरे में फांसी लगा ली. एक ऐसी घटना जिसने कॉलेज परिसरों में बढ़ते जाति पूर्वाग्रह की बातचीत को बल दिया और देश भर में दलित आंदोलनों को तेज कर दिया.
मामले को ठंडा करने की कोशिश करते हुए ईरानी ने 20 जनवरी को दिल्ली में प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा कि हैदराबाद मुद्दे को "जाति की लड़ाई" के रूप में पेश करने का "दुर्भावनापूर्ण प्रयास" किया जा रहा है. उन्होंने कहा कि यह "दलित बनाम गैर-दलित मुद्दा" नहीं है. बाद में उन्होंने सवाल उठाया कि क्या वेमुला वास्तव में एक दलित था? निलंबित छात्रों में से एक डोंथा प्रशांत ने मुझे बताया, “जैसे ही उन्होंने ये कहा हम समझ गए कि यह सीधे एबीवीपी के खेल का हिस्सा है.” अक्टूबर में उस जांच समिति की एक रिपोर्ट आई जो ईरानी ने आत्महत्या के मामले में गठित की थी. इसमें कहा गया कि वेमुला की मां ने अपना अनुसूचित जाति प्रमाण पत्र झूठा बनवाया है. इसके निष्कर्षों की भारी आलोचना की गई और कई अन्य बातों के साथ कहा गया कि समिति ने अपने अनुमोदन की सीमा लांघी है.
वेमुला की आत्महत्या के दो सप्ताह बाद, जेएनयू दिल्ली में एबीवीपी ने, छात्र संघ अध्यक्ष और सीपीआई से संबद्ध अखिल भारतीय छात्र संघ के सदस्य कन्हैया कुमार और अन्य लोगों के खिलाफ कथित तौर पर भारत के खिलाफ नारे लगाने का आरोप लगाया. इसके लिए वीडियो का इस्तेमाल किया गया. उस समय के जेएनयू के एबीवीपी अध्यक्ष आलोक कुमार सिंह ने मुझे जून में बताया, “लेफ्ट समूह हमेशा आतंकवादियों की मौत की सजा की निंदा, योग का विरोध, हमारे हिंदू देवताओं का मजाक उड़ाने जैसी बाते करता है. इस बार हम उन्हें राष्ट्रवाद का एक सबक सिखाना चाहते थे.” केंद्र सरकार ने कुमार और कई अन्य जेएनयू छात्रों को राजद्रोह के आरोप में गिरफ्तार कर लिया. बीजेपी-समर्थक वकीलों ने कन्हैया से अदालत में मारपीट की और संघ के नेताओं ने "भारत विरोधी" जेएनयू को बंद करने की मांग तक कर दी.
संसद में ईरानी ने राष्ट्रवाद, संदिग्ध दावों, कटाक्ष और क्रोध से भरे बनावटी भाषण में हैदराबाद और दिल्ली के छात्रों के खिलाफ हुई कार्रवाई का बचाव किया. (टेलीविजन पर भाषण को देखते हुए बालाजी टेलीफिल्म्स में ईरानी के शेड्यूलर संदीप त्रिपाठी को तुरंत क्योंकि के उस एपिसोड में उनके प्रदर्शन की याद आ गई, जहां तुलसी अपने बेटे को मार देती है.) उन्होंने कहा, “वे वही औरत हैं, बिल्कुल वैसे ही भाव, मदर इंडिया की तरह.” जब बीएसपी अध्यक्ष मायावती ने संसद में पूछा कि यदि रोहित वेमुला मामले की जांच के लिए न्यायिक पैनल में एक दलित शामिल किया जाएगा, तो ईरानी ने उनके खिलाफ आक्षेप लगाना शुरू किया. उन्होंने कहा, “वहां एक दलित प्रोफेसर था जिसका फैसला आप स्वीकार नहीं करतीं. क्या आप मुझसे ये कहलवाना चाहती हैं मायावती जी, कि एक दलित तभी दलित है जब मायावती उसे सर्टिफिकेट दें?” एक आरएसएस के विचारक ने मुझे बताया कि संघ में कुछ ही लोग ईरानी की इस बात से असहमत होंगे, लेकिन "उन्हें हटाना होगा क्योंकि दलित समूहों और मायावती के साथ खुला झगड़ा तब एक बुरी बात है जब यूपी चुनाव आ रहे हैं."
राजनीति वैज्ञानिक आशुतोष वर्षानी ने मुझे बताया कि ईरानी का "छात्र राजनीति में हस्तक्षेप वास्तव में एचआरडी मंत्रालय क्या कर सकता है इसकी लक्ष्मण रेखा को पार कर गया." उन्होंने तर्क दिया कि वह "बुद्धिजीवियों के साथ संबंध नहीं बना सकीं, ये बात दक्षिणपंक्षी बुद्धिजीवीयों के मामले में भी लागू होती है. इसके बजाय उन्होंने एबीवीपी से संबंध बनाए जिसकी वजह से उन्हें विश्वविद्यालयों में इन संघर्षों का सामना करना पड़ा." उनका मानना था कि यह ईरानी के "शक्ति का अहंकार" था, जिसने "एक छात्र को जेल में डाल दिया और दूसरे को मौत की ओर ढकेल दिया." एनडीटीवी साक्षात्कार में गुहा ने कहा, "आरएसएस नहीं बल्कि एबीवीपी, शिक्षा मंत्री को नीति निर्देश दे रहा था." उन्होंने आगे कहा, "एबीवीपी को गुस्सा था कि उन्होंने जेएनयू और हैदराबाद में अच्छा प्रदर्शन नहीं किया और उनकी शिकायतें ही थीं जिससे पूरा विवाद पैदा हुआ." ईरानी की जातीय और धार्मिक पहचान मिली-जुली हो सकती है, लेकिन एक मंत्री के रूप में उनके फैसलों ने एक बहुसंख्यवादी, सवर्ण दृष्टिकोण का खुलासा किया.
पहले तो बीजेपी और संघ ने उनकी सराहना की. संघ के सदस्यों ने मुझसे स्वीकार किया कि उन्होंने देशभक्ति के एक सरलीकृत संदेश में जाति, बहुलतावाद, अलगाववाद, धर्मनिरपेक्षता और असंतोष के जटिल मुद्दों को प्रभावी ढंग से समेट दिया है. गुजरात में एक वरिष्ठ भाजपा सदस्य ने इसे "अवसरवादी हिंदुत्व" करार दिया, लेकिन कहा- “खैर, काम आया.” लेकिन धीरे-धीरे आरएसएस में कई लोगों ने महसूस किया कि शिक्षा के गढ़ों पर उनके तेज हमलों ने वामपंथी, दलितों और धर्मनिरपेक्ष नागरिक-समाज समूहों को और दृढ़ता से संगठित होने के लिए उकसाया है. एक संघ विचारक ने मुझसे कहा, “ऐसे हम कहीं नहीं पहुंचने वाले. एक अच्छा नेता वह नहीं जो हर लड़ाई में लड़ता है बल्कि वह है जो सही युद्ध करता है.”
जैसा कि संघ ईरानी की शासन की शैली से सावधान हो गया, अन्य विवादों ने उन्हें डरा दिया. आईआईटी दिल्ली के निदेशक आरके शेवगांवकर और आईआईटी बॉम्बे के चेयरमैन अनिल काकोदकर के उच्च स्तरीय इस्तीफों का आरोप ईरानी पर लगा. दिल्ली में बीजेपी देखने वाले एक पत्रकार ने मुझसे कहा कि बीजेपी और संघ ये नहीं चाहते थे. संघ विचारक ने कहा, “उसे नहीं पता था कि कार्यक्रम के साथ कैसे लगे रहना है.” उन्होंने शोर पैदा किया, विरोध प्रदर्शन शुरू किया और फिर सब कुछ खराब कर दिया.
हालांकि, सबसे खतरनाक रूप से ईरानी ने बार-बार उन बातों पर जोर दिया जो मोदी के विपरीत थीं. अक्टूबर 2015 में प्रधानमंत्री कार्यालय ने उनकी अवधि के अंत से कुछ हफ्ते पहले दिल्ली विश्वविद्यालय के कुलपति दिनेश सिंह के खिलाफ एक प्रशासनिक कार्रवाई को रोक दिया था. शिक्षा मंत्रालय के कई वरिष्ठ नौकरशाहों ने मुझे यह भी बताया कि पीएमओ के आग्रह के बावजूद ईरानी ने चिन्मय मिशन के प्रस्तावित संस्थान चिन्मय विश्वपीठ को एक डीम्ड यूनिवर्सिटी का स्टेटस देने से इनकार कर दिया और शिक्षक के अलावा व्यापारी बाबा रामदेव के वैदिक शिक्षा बोर्ड की स्थापना के सुझाव के साथ भी यही किया.
ईरानी ने एक कानूनी मसौदे पर भी पीएमओ के अधिकारियों के साथ भी नोंक-झोक की जो आईआईएम की स्वायत्तता को कम कर देता. अन्य बातों के अलावा प्रस्तावित कानून ने आईआईएम बोर्ड में सरकारी उम्मीदवारों को रखने और संस्थानों को फीस से जुड़े फैसलों के लिए मंत्रालय की मंजूरी लेने के लिए मजबूर करने की बात थी. इंडियन एक्सप्रेस ने लिखा कि कुछ संस्थानों के निदेशकों से अपेक्षित विरोध के बाद, "पीएमओ ने आईआईएम बिल के लिए कैबिनेट की मंजूरी को वास्तव में अवरुद्ध करने को खुद जोर लगा दिया क्योंकि शिक्षा मंत्रालय ने इसके द्वारा प्रस्तावित दो सुझाव स्वीकार नहीं किए थे."
मोदी का विरोध करना ईरानी के लिए आखिरी बड़ी बात रही होगी. जुलाई में, उन्हें कपड़ा मंत्रालय में स्थानांतरित कर दिया गया जहां वह विवाद से मुक्त रही हैं. एचआरडी मंत्रालय के दो कर्मचारियों ने मुझे बताया कि अपने विदाई भाषण में ईरानी ने संकेत दिए कि पीएमओ में कुछ नौकरशाह उनका कद घटाने के पीछे हैं.
ईरानी के उत्तराधिकारी प्रकाश जावड़ेकर टकराव पसंद नहीं करने वाले नेता हैं लेकिन दृढ़ता से भगवाकरण और निजीकरण समर्थक भी हैं. वे मंत्रालय के तापमान को अपनी चुपचाप काम करने वाले शैली से नीचे ले आए हैं. उन्होंने आईआईएम को एचआरडी की निगरानी से मुक्त कर दिया है, एक नई एनईपी समिति की स्थापना का संकेत दिया है और नो-डिटेंशन और गैर-अंग्रेजी नीतियों को बढावा दिया है. आरएसएस के शिक्षाविद दीनानाथ बत्रा ने मुझे बताया कि वह खुश हैं, "काम ज्यादा करें, बात काम करें, बस."
हालांकि संघ और बीजेपी के सदस्यों ने ईरानी के स्थानांतरण को दंड के रूप में देखा लेकिन शिल्प संगठन दस्तकर की संस्थापक और हथकरघा समर्थक लैला तैयबजी ने मिंट में लिखा कि किसानी के बाद कपड़ा क्षेत्र देश का सबसे बड़ा काम देने वाला क्षेत्र है. उन्होंने लिखा, “हालांकि, शिक्षा मंत्रालय भारत के भविष्य के बारे में है, कपड़ा मंत्रालय वर्तमान का एक बहुत बड़ा हिस्सा है. ये शायद ही ईरानी के लिए कोई बुरी बात है.”
फिर भी कई पुरुष विशेषज्ञों, राजनेताओं और नौकरशाहों ने मुश्किल से ही अपनी राहत छुपाई. उन्होंने ईरानी के भाग्य की उन शब्दों में व्याख्या की ‘अनजाने में यौनवादी संवेदना में डूब हुए थे.’ एक वरिष्ठ आरएसएस कार्यकर्ता ने कहा कि इस "आसान काम" की वजह से वे अपने बच्चों के साथ अधिक समय बिता पाएंगी. गुजरात भाजपा में ईरानी के पूर्व सहयोगी ने कहा, “स्मृति जी के लिए यह सही चुनाव है. उन्हें साड़ियों की जानकारी मिलेगी, वह हमेशा यही पहनती हैं.” इतने व्यापक तौर पर नकारे जाने को कई महिला नौकरशाहों और नेताओं ने पुरुषों के वर्चस्व वाले उस सिस्टम की जानी पहचानी आवाजों की तरह पाया जो एक महिला उसकी औकात बताते हैं, खास तौर पर उसे, जिसने सत्ता पर दावा करने की हिम्मत की हो.
भले ही अस्थिर लेकिन ईरानी के दृढ़ संकल्प वाले उदय ने भारतीय राजनीति में उन काफी चीजों को सामने लाया है जो सही नहीं हैं. अब किसी और मंत्रालय में काम कर रही महिला नौकरशाह ने मुझे बताया, “देखिए, मुझे भी खुशी है कि उन्हें शिक्षा से हटा दिया गया है. लेकिन इससे जुड़े उत्सव से मुझे घिन्न महसूस हुई. मैं अभी भी स्मृति की गलतियों को माफ करने को राजी नहीं हूं, लेकिन मैं उनकी ललकार को समझती हूं.”