स्मृति ईरानी आगे बढ़ीं और कैमरे और माइक्रोफोन के जमावड़े के सामने खड़ी हो गईं. ये दिसंबर 2004 का दूसरा हफ्ता था. अनुभवहीन नेता के अलावा एक टीवी स्टार, जो भारतीय इतिहास में सबसे ज्यादा देखे जाने वाले टीवी सीरियलों में से एक की प्रमुख अभिनेत्री थी. तब उन्होंने गुजरात के सूरत में एक गहनों की दुकान का उद्घाटन किया था. इस दौरान वहां मौजूद ज्यादातर रिपोर्टर मनोरंजन चैनलों के थे. उन्हें उम्मीद थी कि ईरानी उन्हें उनके सीरियल क्योंकि सास भी कभी बहू थी से जुड़ी कोई बाइट या स्कूप देंगी. रिपोर्टरों ने सुना था कि इसके अगले एपिसोड में ईरानी अपने मनमौजी बेटे पर बंदूक तानने वाली हैं. लेकिन उन्होंने जो कहा उसकी किसी ने कल्पना भी नहीं की थी.
ईरानी ने उस नरेंद्र मोदी पर करारा हमला बोला जो तब गुजरात के मुख्यमंत्री थे और जिन्हें भारतीय जनता पार्टी के सबसे प्रबल नेताओं में से एक के तौर पर देखा जा रहा था. ईरानी पिछले साल ही इस पार्टी का हिस्सा बनी थीं. बीजेपी छह महीने पहले संसदीय चुनाव हारी थी. पूर्व प्रधानमंत्री और पार्टी के सीनियर नेता अटल बिहारी वाजपेयी ने हार के लिए 2002 के दंगों को जिम्मेदार ठहराया था. इन दंगों के आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार, इसमें 254 हिंदू और 790 मुस्लिम मारे गए थे. अंग्रेजी में बोलते हुए ईरानी ने, मोदी को पार्टी और गुजरात की छवि के साथ-साथ वाजपेयी की साख को नुकसान पहुंचाने के लिए जमकर लताड़ लगाई. उन्होंने दंगों के बाद मुख्यमंत्री की कुर्सी पकड़े रहने के मोदी के फैसले को, "बेहद चौंकाने वाला और भयानक" करार दिया और कहा, "अगर नरेंद्र-भाई गुजरात का मुख्यमंत्री पद छोड़ देते हैं, तो यह साबित होगा कि बीजेपी एक अलग तरह की पार्टी है." इसके बाद ईरानी ने एक बड़े राजनीतिक दांव की घोषणा की. उन्होंने कहा कि अगर मोदी अपना पद नहीं छोड़ते, “तो अटल जी के जन्म दिन यानि 25 दिसंबर को मैं एक उपवास शुरू करूंगी जो उनके पद छोड़ने तक जारी रहेगा, “मेरा जीवन समाप्त होने तक का उपवास.”
तब बीजेपी को दो गुटों में बंटा माना जाता था, पहला वाजपेयी और ईरानी के गुरू प्रमोद महाजन का गुट और दूसरा उस समय पार्टी अध्यक्ष आडवाणी और 2001 में गुजरात के मुख्यमंत्री बने मोदी का उदीयमान गुट. गुजरात में 2004 के चुनाव से कुछ समय पहले मोदी के साथ एक संवाददाता सम्मेलन में वाजपेयी ने उन्हें अपने "राज धर्म" का पालन करने की सलाह दी थी. एक शासक के तौर पर उनका धर्म याद दिलाया और कहा कि "राजा और शासक जन्म, जाति या धर्म के आधार पर भेदभाव नहीं कर सकते हैं." व्यापक तौर पर इस टिप्पणी को मोदी प्रशासन के हिंसा को संभालने की आलोचना के तौर पर देखा गया था. उसी साल बाद में बीजेपी की चुनावी हार के बाद वाजपेयी ने प्रेस को इस बात के संकेत दिए थे कि मोदी को अभी भी हटाया जा सकता है.
सूरत में ईरानी का दांव वाजपेयी के पक्ष में जीतने के लिए सोच समझकर उठाया गया कदम लगा. ईरानी को लगता था कि बीजेपी में उनके पास सबसे ज्यादा ताकत है. गुजरात यूनिट के वरिष्ठ बीजेपी नेता ने मुझे जुलाई में बताया, “अटल जी द्वारा ऐसा कहा जाना अलग बात थी लेकिन स्मृति जैसी नए सदस्य का ये कहना ठीक नहीं था, हमें झटका लगा.” उन्होंने आगे कहा कि राज्य में किसी नेता ने कभी भी खुलकर मोदी की आलोचना नहीं की थी. उन्होंने कहा, “चाहे वह अपनी चेतना से बात कर रही हों या धूर्तता से, मैं इस बात से प्रभावित था कि वह कितना जोखिम उठाने को तैयार हैं.”
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