नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के दो महीने बाद 26 जुलाई 2014 को सन्डे गार्डियन ने एक खबर में खुलासा किया कि मोदी कैबिनेट के मंत्री नितिन गडकरी के सरकारी आवास पर अत्याधुनिक श्रवण यंत्र पाए गए हैं. भारतीय जनता पार्टी से नजदीकी संबंध रखने वाले अखबार ने गुमनाम स्रोत के हवाले से यह दावा भी किया कि यंत्रों को वहां लगाने के पीछे अमेरिकी गुप्तचर एजेंसी और बीजेपी के सांसद सुब्रह्मण्यम स्वामी और कांग्रेस के नेतृत्व वाली पिछली सरकार का कथित रूप से हाथ है.
अगली सुबह गडकरी ने खुद ट्वीट करके सफाई दी और खबर को “अति काल्पनिक” करार दिया लेकिन साथ ही वे इस खबर को पूरी तरह नकारने से भी बचे रहे. विपक्ष ने संसद में इस विषय पर छानबीन तथा प्रधानमंत्री के वक्तव्य की मांग की, जिसके चलते अगले दो दिनों तक सदन की कार्यवाही अवरुद्ध रही. गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने खबर को सही मानने से इनकार कर दिया, लेकिन विपक्ष फिर भी नहीं माना. यह एक अजीबोगरीब स्थिति थी: एक तरफ विपक्ष सत्तारुढ़ पार्टी के मंत्री के खिलाफ जासूसी किए जाने के प्रति अपना विरोध जता रहा था; जबकि दूसरी तरफ उनकी पार्टी के सदस्य इस विषय पर बोलने से कतरा रहे थे.
माइक्रोफोन लगाए जाने की खबर इस अफवाह की पृष्ठभूमि में छपी थी कि प्रधानमंत्री कार्यालय द्वारा मंत्रियों पर नजर रखी जा रही है. इसी दौरान एक और खबर भी प्रसारित हुई कि पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावेडकर जब जींस पहन कर विदेश यात्रा के सिलसिले में हवाई अड्डे जा रहे थे तभी उन्हें एक फोन आया कि वे कुछ ज्यादा ही अनौपचारिक कपड़े पहने हुए हैं. टीवी की बहसों में, सरकार या बीजेपी के भीतर के किसी आदमी द्वारा माइक्रोफोन लगाए जाने का मसला बार-बार आता रहा. कांग्रेस के नेताओं ने 2013 की तरफ इशारा किया, जब गुजरात के मुख्यमंत्री रहते हुए मोदी ने बिना किसी वाजिब कानूनी कारण के एक महिला की जासूसी की थी. कांग्रेस नेता दिगविजय सिंह ने कहा कि मोदी और उनके दायें हाथ और गुजरात के तत्कालीन गृहमंत्री, अमित शाह का “ऐसा इतिहास रहा है.”
साफ तौर पर गडकरी ने खबर के छपने के दूसरे दिन ही उसे नकारा. करीब एक महीने बाद, आउटलुक पत्रिका के अनुसार, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अध्यक्ष मोहन भागवत ने, जो गडकरी के करीबी माने जाते हैं, हस्तक्षेप कर कथित रूप से गडकरी को “जासूसी की खबर को सार्वजनिक तौर पर खारिज करने के लिए कहा था क्योंकि इससे बीजेपी और प्रधानमंत्री की छवि को नुकसान पहुंच सकता था.”
संघ के गढ़ नागपुर में, यह एक स्वीकृत सच है कि गडकरी संघ के चहेते बेटे हैं. इसकी पुष्टि 2009 में ही हो गई थी जब उन्हें बीजेपी का सबसे युवा राष्ट्रीय अध्यक्ष बना दिया गया, वह भी दिल्ली में बैठे पार्टी के वरिष्ठ नेताओं को नाखुश कर. और फिर 2012 में पार्टी के संविधान में संशोधन कर उन्हें एक और मौका दिया गया. हालांकि बतौर अध्यक्ष वे अपनी दूसरी पारी पूरी नहीं कर पाए. इस बात के बावजूद कि पहले कभी चुनावी सफलता प्राप्त नहीं हुई थी, उन्होंने 2014 के आम चुनावों में नागपुर से बीजेपी का प्रतिनिधित्व किया. वे लोक सभा के लिए चुन लिए गए. जब मोदी ने अपनी सरकार का गठन किया तो उन्हें दो मंत्रालय सौंपे गए: सड़क परिवहन और राजमार्ग तथा जहाजरानी मंत्रालय. इसमें सड़क परिवहन और राजमार्ग महत्वपूर्ण था क्योंकि एक तो इसमें भारी पूंजी वाली इन्फ्रास्ट्रक्चर परियोजानाएं होती हैं और दूसरा बनने वाली सड़कों से सरकार के कामों का बहुत प्रचार-प्रसार होता है. 2017 में उन्हें जल संसाधन, नदी विकास और गंगा जीर्णोद्धार मंत्रालय भी सौंप दिया गया. जबकि मोदी का अमूमन लगभग सभी मंत्रालयों पर अतिउत्साही नियंत्रण रहता है, गडकरी ने अपनी शक्तियां अपने पास बना कर रखी हैं और उनका इस्तेमाल दिख सकने वाले नतीजों को देने के लिया किया है. यह उन्हें मोदी मंत्रीमंडल में एक अपवाद बनाता है – एक ऐसे मंत्री के रूप में जो अच्छा काम कर रहा है और जिसके काम का नोटिस भी लिया जा रहा है तथा जिसे आसानी से दबाया भी नहीं जा सकता. “अधिकतर मंत्री इस बात से चिढ़े रहते हैं कि प्रधानमंत्री उन पर नजर रखे हुए हैं,” एक लॉबिस्ट ने मुझे बताया. “वे किसी से नहीं डरते क्योंकि उनके ऊपर आरएसएस का हाथ है. वे प्रधानमंत्री के प्रति श्रद्धा का भाव भले रखते हों, लेकिन डरते तो हरगिज नहीं हैं.”
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