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मोदी सरकार में अरुण जेटली के सबसे महत्वपूर्ण मंत्री बनने से दो साल पहले, 2012 में एक खबर ने तहलका मचा दिया कि यूनाइटेड प्रोग्रेसिव एलायंस (यूपीए) सरकार द्वारा कोयला खदानों के आवंटन से सरकार को हजारों करोड़ का घाटा हुआ और निजी क्षेत्र को फायदा पहुंचा. इसके बाद संसद का मानसून सत्र पूरी तरह से ठप कर दिया गया. भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के सांसदों ने सामूहिक इस्तीफा देने की धमकी दे डाली. राज्य सभा में विपक्ष के नेता अरुण जेटली ने खूब आक्रमकता के साथ इसका न सिर्फ विरोध किया बल्कि इसे “स्वतंत्र भारत में अब तक का सबसे बड़ा घोटाला” करार दिया.
अगस्त में, जब गतिरोधित संसद का सत्र पूरी तरह से ठप कर दिया गया तो जेटली और लोक सभा में उनकी प्रतिरूप, सुषमा स्वराज, ने एक संयुक्त वक्तव्य जारी किया. उन्होंने लिखा “हमने इस सत्र का उपयोग देश की जनता की आत्मा को झिंझोड़ने के लिए किया है, यह सिर्फ एक राजनीतिक लड़ाई नहीं, बल्कि सार्वजनिक भलाई के लिए देश के आर्थिक संसाधनों को बचाने की लड़ाई है.” प्रेस कांफ्रेंस के दौरान जेटली ने आवंटन प्रक्रिया को “मनमानी”, “विवेकहीन” और “भ्रष्ट” बताया. उन्होंने यहां तक कहा कि यह “क्रोनी” पूंजीवाद की सबसे खराब मिसाल है. द हिन्दू के एक लेख, “डिफेंडिंग दी इनडिफेंसिबल” में उन्होंने लिखा, “सरकार आवंटन की इस विवेकहीन प्रक्रिया को चालू रखने में इस कदर इच्छुक थी कि उसने “प्रतिस्पर्धात्मक नीलामी की प्रक्रिया” को ही प्रारंभ नहीं किया, जिससे एक बेहतर आवंटन प्रक्रिया को सुनिश्चित किया जा सकता था.
कुछ साल पहले बतौर वकील जेटली ने स्ट्रेटिजिक एनर्जी टेक्नोलोजी सिस्टम्स प्राइवेट लिमिटेड, टाटा संस और साउथ अफ्रीकन कंपनी के एक महत्वकांक्षी जॉइंट वेंचर की तरफदारी करते हुए बिल्कुल अलग किस्म का तर्क दिया था. 2008 में कोयला खदानों को लेकर सरकार को अर्जी देते वक्त इस जॉइंट वेंचर ने, जिसे सरकार की इस आवंटन प्रक्रिया से सबसे ज्यादा फायदा पहुंचा था, यह जानने के लिए कि क्या सरकार के साथ किसी भी प्रकार का मुनाफा बांटे बगैर करार किया जा सकता था? उन्होंने जेटली से संपर्क कर इस मसले पर उनकी राय जाननी चाही थी. कॉलेज के जमाने के अपने वकील दोस्त, रायन करांजवाला के दफ्तर के हवाले से जेटली ने अपनी एक 21-पृष्ठ लंबी कानूनी राय उन्हें दी थी, जिसमें उन्होंने साफ कहा था कि भारत सरकार को यह अधिकार है कि वह कोयला खदानों के आवंटन को लेकर मनचाही प्रक्रिया अपना सकती है, और कंपनी सरकार के साथ प्रस्तावित मुनाफा बांटने के लिए कानूनी रूप से बाध्य नहीं है. उक्त कंपनी के समर्थन में जेटली की राय से यह संकेत मिलता है कि मौजूदा कोयला खदान आवंटन की प्रक्रिया से, जिसे उन्होंने “विशालकाय घोटाले” की संज्ञा देकर खूब हो-हल्ला मचाया, वे पहले से ही भली-भांति अवगत थे.
कोयला घोटाले का खुलासा होने के कुछ ही समय बाद, चंद यूपीए मंत्रियों ने उक्त कानूनी सलाह प्रेस को उपलब्ध कराई. प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के खिलाफ जब बीजेपी मोर्चा खोल ही रही थी, जिसमें बतौर कोयला मंत्री उन्हें उनकी नाक के नीचे विवादस्पद आवंटन के लिए निशाना बनाया जाता था, यह “कानूनी सलाह” लगातार चर्चा का विषय बनी रही. इस दस्तावेज को टाइम्स ऑफ इंडिया, द इकोनोमिक टाइम्स, हेडलाइन्स टुडे, एनडीटीवी और सीएनबीसी के अलावा कई और वरिष्ठ पत्रकारों के बीच बांटा गया. लेकिन हर बार जेटली की बौखलाहट इस पूरे मसले पर भारी पड़ती दिखाई पड़ी.
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