(एक)
जम्मू और कश्मीर विधानसभा अपने शरद कालीन सत्र के लिए 3 अक्टूबर 2015 को पहली बार बैठ रही थी. वह दिन कई जानी-मानी शख्सियतों, जिनमें अधिकतर सियासतदान थे, जैसे पूर्व मंत्री मीर गुलाम मोहम्मद पूंची, गुलाम रसूल कर, और अब्दुल गनी शाह वीरी, को श्रद्धांजलि देने में गुजर जाने वाला था. इस सूची में पूर्व राष्ट्रपति ए.पी.जे. अब्दुल कलाम का नाम भी था.
सत्र के अंत में राज्य के मुख्यमंत्री और सभा के नेता मुफ्ती मोहम्मद सईद बोलने के लिए खड़े हुए. अपनी बाज-सरीखी नाक, सफेद बर्फ-सरीखे बाल, आंखों के नीचे भारी थक्कों और संजीदा चेहरे के साथ, सईद किसी चिड़चिड़े प्रोफेसर जैसे दिखाई दे रहे थे.
सईद ने अपनी बात अपने साथी दिवंगत विधायकों को भावपूर्ण श्रद्धांजलि देने से शुरू की. उन्होंने मक्का, सऊदी अरब में पिछले महीने हज करने गए हजारों तीर्थयात्रियों, जिनमे दो कश्मीरी भी शामिल थे, के भगदड़ में मारे जाने पर भी शोक व्यक्त किया. सईद ने हादसे की “विश्वसनीय जांच” की मांग रखी और अवाम को आरोपण-प्रत्यारोपण के खेल से दूर रहने का मशविरा दिया. इसके बाद कुरान की आयत पढ़ना शुरू किया.
हालांकि, बीच में ही उनकी याददाश्त जवाब दे गई और जुबान लड़खड़ाने लगी. आयत याद करने की जुगत में हवा में आयें बाएं अपने हाथ लहराए और मदद के लिए अपनी दाईं ओर बैठे साथी की तरफ देखा; लेकिन वहां पर उन्होंने पीपल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) के सदस्य की बजाय, भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के निर्मल कुमार सिंह को बैठा पाया, जो उस वक्त मिलीजुली सरकार में उप मुख्यमंत्री थे. इस बात का एहसास किए बिना कि एक हिन्दू को भला कुरान की आयत कैसे याद होगी, सईद ने उनकी तरफ बड़ी उम्मीद भरी निगाहों से देखा. सिंह की नज़र में कठोरता थी. सदन में मुस्कुराहटें और दबी हुई हंसी के फुव्वारे बिखर गए. आखिरकार ट्रेज़री बेंचों पर बैठे साथी सदस्यों ने सईद को आयत याद दिलाकर शर्मसार होने से बचाया.
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