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प्रियंवदा नटराजन थियोरेटिकल ऐस्ट्रोफ़िज़िसिस्ट हैं. वह अमेरिका के येल विश्वविद्यालय में प्रोफ़ेसर हैं. नटराजन ने ब्रह्मांड की सबसे दिलचस्प और सतत पहेलियों, डार्क मैटर और ब्लैक होल, पर सालों साल काम किया है और समझने की कोशिश की है कि ये अदृश्य ताक़तें किस तरह ब्रह्मांड की हर चीज़ को आकार देती हैं.
हाल ही में जब नटराजन दिल्ली में थीं, तब कारवां के कार्यकारी संपादक हरतोष सिंह बल ने उनसे भौतिक विज्ञान के क्षेत्र में पिछले सालों में हुईं तरक़्क़ियां, नई खोजें और स्थापित नतीजे हमारी भविष्य की समझदारी को कैसा आकर दे सकते हैं, जैसे विषयों पर चर्चा की.
मैंने कहीं पढ़ा था कि बहुत छोटी उम्र में ही नक़्शों, मानचित्रों में आपकी दिलचस्पी हो गई थी. फिर, एस्ट्रोनॉमी से लगाव कब शुरू हुआ?
मैं जब चार या पांच साल की थी, तब मेरे पेरेंट्स ने मेरे एक हाथ में टेलीस्कोप और दूसरे में माइक्रोस्कोप थमा दिया. मैंने टेलिस्कोप चुना, क्योंकि उसके जरिए मैं रात के आसमान में सुदूर ताक-झांक कर सकती थी. मुझे टेलिस्कोप से दूर आकाश की चीज़ें देखना बहुत अच्छा लगता था. एक तरह से मुझे इसकी लत सी लग गई. मानचित्रों के साथ भी यही बात थी. मैं रात के अंधेरे के और पृथ्वी के मानचित्रों की ओर खिंचती चली गई. मेरा मन होता कि मैं उन स्थानों पर जाऊं जहां पहले कभी नहीं गई. तब ये सारी चीज़ें बहुत डराती भी थीं. बाद के दिनों में एक एमेच्योर खगोलशास्त्री के रूप में एस्ट्रोनॉमी में मेरी दिलचस्पी बनी रही, लेकिन मैं पहले फिज़िसिस्ट बनी और ग्रेजुएशन करने के काफ़ी बाद एस्ट्रोनॉमी के रास्ते पर चलना शुरू किया.
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