छत्तीस साल पहले 23 जून 1985 को एयर इंडिया का एक यान (उड़ान संख्या 182) एक बम विस्फोट के बाद अटलांटिक महासागर में दुर्घटनाग्रस्त हो गया. उसमें 13 साल से कम उम्र के 82 बच्चों और छह शिशुओं सहित सभी 329 सवार मारे गए. इस हमले को कनाडा स्थित खालिस्तानी समूह बब्बर खालसा इंटरनेशनल ग्रुप के सदस्यों ने अंजाम दिया था. भारत और कनाडा की आपराधिक न्याय प्रणाली से मोहभंग हो चुके पीड़ितों के दो परिवार मानते हैं कि उन्हें अब तक न्याय नहीं मिला है. हमले में अपने पति को खोने वाली अमरजीत कौर भिंडर ने मुझे बताया, "जहाज के साथ-साथ मेरी दुनिया भी उजड़ गई."
मरने वालों में भारतीय मूल के 268 कनाडाई, 24 भारतीय और 27 ब्रिटिश नागरिक थे. विस्फोट के बाद के 36 वर्षों में कनाडा के अधिकारियों ने आरोपियों में से केवल कनाडाई ऑटो मैकेनिक इंद्रजीत सिंह रेयात, जिसने बम बनाया था, को दोषी ठहराया है. चूंकि अधिकांश पीड़ित और संदिग्ध कनाडाई हैं, कुछ भारतीय हैं और दुर्घटना स्थल आयरिश समुद्र तट है इसलिए न्यायाधिकार क्षेत्र पर विवाद के कारण अपराध की जांच कमजोर रही है.
हमले के शिकार लोगों में 32 वर्षीय मंजरी शंकरत्री और उनके दो बच्चे, श्रीकरण और शारदा भी हैं, जिनकी उम्र क्रमशः छह और तीन साल थी. मंजरी के पति चंद्रशेखर शंकरात्री, जो हमले के वक्त कनाडा में थे, ने मुझे बताया कि हमले के बाद के महीनों में उन्हें इतना अकेलापन महसूस हुआ कि उन्हें लगा कि उनकी जिंदगी का कोई अर्थ नहीं है. चंद्रशेखर एक जीवविज्ञानी हैं. वह 1967 में 23 साल की उम्र में कनाडा पहुंचे थे. उन्होंने मुझे बताया, "कनाडा में मेरे बच्चों का शैक्षणिक वर्ष का खत्म हो गया था. मेरी पत्नी और बच्चे मेरे साले की शादी में शामिल होने के लिए गए थे. मुझे जुलाई के आखिरी हफ्ते में उनसे मिलना था. उन्हें खोने के बाद मैंने सोचा कि मैं इस दुनिया में अकेला रह गया हूं." चंद्रशेखर ने कहा, “अपनी पत्नी और बच्चों के बिना मेरी जिंदगी का क्या उद्देश्य है इसे समझने के लिए मैं तीन साल तक तड़पता रहा. मैं कनाडा के स्वास्थ्य मंत्रालय का वैज्ञानिक मूल्यांकनकर्ता था. फिर मैंने अपनी नौकरी छोड़ दी और वापस आंध्र प्रदेश के काकीनाडा आ गया, मेरी पत्नी यहीं की रहने वाली थी. मेरी पत्नी गरीबों के प्रति बहुत दयालु थी. मैंने ग्रामीण भारत का सर्वेक्षण किया और आंध्र प्रदेश के दूरदराज के इलाकों में अच्छी शिक्षा और स्वास्थ्य उपलब्ध करा कर ग्रामीण समुदायों के उत्थान के लिए अपना जीवन समर्पित करने का फैसला किया.” उन्होंने मुझे बताया कि उनकी पत्नी अक्सर ग्रामीण आंध्र प्रदेश में पर्याप्त स्वास्थ्य देखभाल और शिक्षा उपलब्ध कराने की दिशा में काम करने की बात करती थीं. चंद्रशेखर ने 1989 में काकीनाडा में मंजरी संकुरथरी मेमोरियल फाउंडेशन नामक एक ट्रस्ट की स्थापना की.
1989 से चंद्रशेखर ग्रामीण आंध्र प्रदेश में अपनी पत्नी के सपने को सकार रूप देने के लिए काम कर रहे हैं. 1992 में उन्होंने राज्य में अपनी बेटी के नाम पर शारदा विद्यालय नामक एक हाई स्कूल की स्थापना की. स्कूल आर्थिक रूप से पिछड़े समुदायों से आने वाले ग्रामीण बच्चों को मुफ्त शिक्षा प्रदान करता है और अब तक 3000 से अधिक बच्चे यहां पढ़ चुके हैं. उन्होंने मुझे बताया, "स्कूल का लक्ष्य गरीब ग्रामीण परिवारों के बच्चों को पढ़ाई जारी रखने के लिए प्रेरित करना है.”
1993 में उन्होंने अपने बेटे के नाम पर श्रीकिरण इंस्टीट्यूट ऑफ ऑप्थल्मोलॉजी की स्थापना की. संस्थान ने 2.7 लाख सर्जरी सहित 34 लाख से अधिक रोगियों को नेत्र चिकित्सा सेवाएं प्रदान की हैं और 90 प्रतिशत मुफ्त हैं. मंजरी संकुरथरी मेमोरियल फाउंडेशन 11 दृष्टि केंद्र और दो शल्य चिकित्सा केंद्र भी चलाता है. इसमें स्पंदन नामक एक शाखा भी है, जो आपदा-राहत कार्यक्रम आयोजित करती है. उनके काम को मान्यता देते हुए 2001 में आंध्र प्रदेश सरकार ने श्रीकिरण संस्थान को राज्य में नेत्र विज्ञान के क्षेत्र में सर्वश्रेष्ठ एनजीओ पुरस्कार से सम्मानित किया.
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