भास्करण कुमारस्वामी पूर्व लिट्टे सदस्य हैं और 2004 से भारत के तमिलनाडु राज्य में रह रहे हैं. अब तमिलनाडु पुलिस की आतंकवाद और संगठित अपराध के लिए समर्पित शाखा आपराधिक जांच विभाग की क्यू ब्रांच ने उनके शरणार्थी दर्जे पर ही सवाल खड़े कर दिए हैं और उनके ऊपर निर्वासित कर दिए जाने का खतरा मंडरा रहा है. कुमारस्वामी ने मुझसे कहा, “अब मुझे डर है कि वे मुझे किसी भी वक्त श्रीलंका की सरकार के हवाले कर देंगे. लगता है कि अब मेरे भाग्य में बस मौत है.” कुमारस्वामी का डर बेवजह नहीं है. पूर्व में जिन लिट्टे सदस्यों को श्रीलंका के हवाले किया गया है वे वहां पहुंच कर लापता हो जाते हैं. यह बात मनावाधिकार संगठन भी मानता है.
मुझे कुमारस्वामी ने बताया कि वह 2004 में अपनी पत्नी शकुंतला और अपनी दो बेटियों, सोबना और सोबीआ को लेकर भारत आए थे. उस वक्त उनकी बेटियों की उम्र क्रमशः 8 और 6 साल थी. उन्होंने हथियार डाल दिए थे और जाफना में नल्लूर में स्थित अपना घर छोड़ दिया था. परिवार तमिलनाडु के रामेश्वरम आ गया और मंडपम शरणार्थी शिविर में रहने लगा. भारत सरकार ने इनके नाम शरणार्थी पहचान पत्र भी जारी कर दिए. पत्रों की प्रतियां कारवां के पास हैं. इस परिवार को 5 जून 2004 को शरणार्थी दर्जा मिल गया था लेकिन 23 जून 2021 को मद्रास उच्च न्यायालय ने फैसला सुनाया कि कुमारस्वामी अब शरणार्थी नहीं है.
अदालत दिल्ली स्थित स्विट्जरलैंड के दूतावास में जाने की उनकी अपील पर सुनवाई कर रही थी. कुमारस्वामी ने मुझे बताया कि वह स्विट्जरलैंड से इसलिए शरण मांगने की कोशिश कर रहे हैं क्योंकि क्यू ब्रांच के अधिकारी उन्हें पिछले दो सालों से श्रीलंकाई सरकार को सौंपने की धमकी दे रहे हैं. इस शाखा ने नवंबर 2019 में उनके खिलाफ निर्वासन का नोटिस जारी किया. अदालत की सुनवाई में शाखा ने कहा कि अब श्रीलंका तमिल शरणार्थियों के लिए सुरक्षित है और भारत में रह रहे शरणार्थियों को मिली सुरक्षा उस स्थिति में खत्म हो जाएगी यदि वे देश छोड़ते हैं. 23 जून के अदालत के फैसले ने कुमारस्वामी को श्रीलंका निर्वासित करने की प्रक्रिया को सुगम कर दिया है.
हैरान करने वाली बात यह है कि करीब एक वर्ष पहले इसी अदालत ने अपने इस फैसले के उलट फैसला सुनाया था और कहा था कि कुमारस्वामी को श्रीलंका में जान का खतरा है और उन्हें निर्वासित नहीं किया जाना चाहिए. अदालत ने अपने फैसले में कहा था कि पिछले 13 सालों से कुमारस्वामी अपने परिवार के साथ भारत में है. साथ ही, उनके पिता, भाई और भाभी और उनकी बेटी की हत्या श्रीलंका की सेना ने की है. उपरोक्त तथ्यों के मद्देनजर उन्हें श्रीलंका सरकार को सौंपना उनके हित में नहीं है. उनके लिए न्याय इस बात पर है कि उनके निर्वासन को अगले आदेशों तक के लिए रोक दिया जाए.
2019 में उनके खिलाफ जब निर्वासन का नोटिस जारी हुआ था तब उन्होंने अदालत का दरवाजा खटखटाया था. पिछले साल 20 नवंबर को कुमारस्वामी को क्यू ब्रांच के सुपरिंटेंडेंट और चेन्नई स्थिति श्रीलंका के उप उच्चायुक्त का एक आदेश मिला था जिसमें उन्हें निर्वासित किए जाने की बात थी लेकिन उस आदेश में निर्वासन का कारण नहीं बताया गया था. निर्वासन के आदेश के साथ ही कुमारस्वामी को श्रीलंकाई उच्चायुक्त की ओर से पासपोर्ट भी जारी किया गया था. फिलहाल यह स्पष्ट नहीं है कि भारत व श्रीलंका में से कौन सी सरकरा ने कुमारस्वामी के निर्वासन की पहल शुरू की है लेकिन यह बात साफ है कि क्यू ब्रांच श्रीलंका सरकार के साथ मिलकर ऐसा कर रही है.
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