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9 मार्च की देर शाम पाकिस्तान में सर्वाधिक पढ़े जाने वाले अखबार डॉन की आरंभिक रिपोर्टें भरमाने वाली थीं. खबर थी कि पाकिस्तान के पंजाब प्रांत के शहर चन्नू मियां में एक निजी विमान दुर्घटनाग्रस्त हो गया है लेकिन उसका पायलट बच गया है. विमान में और कोई यात्री नहीं था. रिपोर्ट में कहा गया कि, "पुलिस ने इलाके की घेराबंदी कर दी और बचाव अधिकारियों को भी जेट के करीब नहीं जाने दिया. सबूत इकट्ठा करने के लिए सेना के अधिकारियों के पहुंचने पर ही बचाव कर्मियों को विमान के निकट जाने दिया गया. बाद में सेना के अधिकारियों ने जांच कर जेट के अवशेष इकट्ठे किए.”'
पाकिस्तानी सैन्य प्रवक्ता की अगले दिन की प्रेस कॉन्फ्रेंस में स्थिति ज्यादा साफ हुई. उन्होंने कहा कि पाकिस्तानी वायु सेना (पीएफए) ने पता लगाया है कि भारत, हरियाणा के सिरसा शहर से दगी गई एक भारतीय मिसाइल पाकिस्तान में 124 किलोमीटर तक घुस आई. यह मिसाइल कुल 406 सेकेंड हवा में रही और पाकिस्तानी हवाई क्षेत्र में यह 224 सेकेंड तक रही. पीएफए ने मिसाइल के मार्ग को दर्शाता एक नक्शा जारी किया जिसमें बताया गया है कि "अपनी शुरुआती उड़ान से अचानक मिसाइल पाकिस्तानी क्षेत्र की ओर बढ़ी और पाकिस्तान के हवाई क्षेत्र का उल्लंघन करते हुए शाम 6.50 बजे मियां चन्नू के पास गिरी.” उन्होंने दावा किया कि पीएएफ ने मानक संचालन प्रक्रियाओं के अनुसार अपेक्षित सामरिक कार्रवाई शुरू कर दी थी.
तब तक वरिष्ठ पाकिस्तानी सैन्य अधिकारी मान रहे थे कि भारत ब्रह्मोस क्रूज मिसाइल का परीक्षण कर रहा था जिसे राजस्थान पोखरण फील्ड फायरिंग रेंज में गिरना था लेकिन कुछ खराबी के चलते वह पाकिस्तान में घुस गई. पीएफए की भारतीय मिसाइल का जवाब देने में काबीलियत और भारतीय मिसाइलों की खराबियों के दावे से इतर, जो हुआ उसका झटका दिमाग में पड़ने लगा.
मार्च की उस शाम दुनिया अपने किस्म की इस तरह की पहली घटना की गवाह बनी जब एक परमाणु क्षमता वाले राज्य ने दूसरे परमाणु क्षमता वाले राज्य के क्षेत्र में कोई क्रूज मिसाइल दागी हो.
इस बीच भारत ने पत्रकारों के बार-बार पूछे जाने के बावजूद पूरी तरह चुप्पी साधे रखी. दक्षिण एशिया से संबंधित अमेरिकी कांग्रेस समितियों के वरिष्ठ अधिकारियों ने भी इस घटना के बारे में पूछताक्ष शुरू कर दी. ऐसे ही एक कर्मचारी ने मुझे बताया कि वॉशिंगटन डीसी में भारतीय दूतावास के अधिकारियों ने पाकिस्तानी दावे को मनगढ़ंत बताकर खारिज कर दिया था. पाकिस्तानी सेना का कॉन्सप्रेसी थियरी को फैलाने और अजीबोगरीब दावों का रिकॉर्ड रहा है. इसके अलावा अब जबकि अमरीका अफगानिस्तान से वापस जा चुका है और उसके लिए पाकिस्तान की उपयोगिता कम हो गई है इसलिए भी अमरीका ने पाकिस्तान के इस दावे पर जल्द विश्वास नहीं किया.
जब 11 मार्च की शाम को भारतीय रक्षा मंत्रालय ने इस घटना के बारे में एक आधिकारिक बयान जारी किया तब दुनिया हैरान रह गई. बयान में कहा गया है, "नियमित रखरखाव के दौरान एक तकनीकी खराबी के कारण अचानक मिसाइल दग गई." इस बात का जिक्र सिरे से गायब था कि मिसाइल कौन सी थी या किस जगह पर दुर्घटना हुई या घटना के दौरान किन रक्षा सेवाओं को शामिल किया गया था. 16 मार्च को संसद में रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने अपने बयान में कुछ नया नहीं जोड़ा लेकिन "तकनीकी खराबी" के पहले के संदर्भ को छोड़ दिया. उन्होंने संसद को बताया कि "नियमित रखरखाव और निरीक्षण के दौरान गलती से एक मिसाइल दग गई थी."
जैसे-जैसे और खबरें आने लगीं यह साफ हो गया कि सतह से सतह पर मार करने वाली ब्रह्मोस मिसाइल को उत्तर भारत में भारतीय वायु सेना के एक सेटेलाइट अड्डे से दागा गया था. उस समय भारतीय वायुसेना के अड्डे का निरीक्षण किया जा रहा था और इसी दौरान कथित दुर्घटना हुई थी. मिसाइल को पहले से ही पीएएफ के बेस को लक्षित करके रखा गया था. भारत और पाकिस्तान दोनों ही देश अपने बेस में क्रूज मिसाइलों को इसी तरह तैयार स्थिति में रखते हैं. ब्लूमबर्ग की एक रिपोर्ट बताती है कि पहली मिसाइल दगने के बाद लॉन्चर पर और भी मिसाइलें तैयार थीं जिन्हें पावर सप्लाई काटकर जबरन रोकना पड़ा. उसी रिपोर्ट में कहा गया है कि वह मिसाइल इसलिए नहीं फटी क्योंकि वह अपने निशाने तक नहीं पहुंची यानी साफ है कि उसमें वॉरहेड (विस्फोटक) जड़ा हुआ था. रिपोर्ट में कहा गया है कि पाकिस्तान ने जवाबी मिसाइल हमले की तैयारी कर ली थी लेकिन हमला नहीं किया क्योंकि शुरुआती आकलन से उसे संकेत मिल गया कि कुछ गड़बड़ हुई है.
निरीक्षण के दौरान ऐसा क्या गलत हुआ होगा जिसके चलते अचानक मिसाइल दग गई? रक्षा मंत्री के संसदीय बयान में तकनीकी खराबी का जिक्र तक नहीं क्योंकि सरकार अपनी स्वदेशी क्रूज मिसाइल की तकनीकी मजबूती के बारे में कोई शक नहीं होने देना चाहती. इसलिए भी कि वह इसका निर्यात करने की उम्मीद कर रही है.
इस घटना की भारतीय वायुसेना की जांच के बारे में दि वीक में एक रिपोर्ट में मानवीय भूल होने की बात कही गई है. उसमें दावा किया गया है कि मानवीय भूल न होती, तो मिसाइल अपने तय निशाने को भेद देती. भारत के पश्चिमी वायु कमान के एक पूर्व प्रमुख ने नाम न छापने की शर्त पर मुझे बताया कि रक्षा मंत्री का बयान मानवीय भूल की ओर भी इशारा करता है. उन्होंने कहा कि उनका मानना है कि इस तरह की अप्रत्याशित घटना "केवल तभी हो सकती है जब तकनीकी और मानवीय भूल का संगम हो न कि कोई एक कारण से." उन्होंने यह भी कहा कि "जानबूझकर दागने का दावा अजीब और ज्यादा ही असंभव प्रतीत होते हैं."
गलती से दग जाने के दावे के बावजूद यह खबर भारत के लिए अच्छी नहीं है. वॉशिंगटन डीसी में स्टिमसन सेंटर में एशिया रणनीति के सीनियर फेलो समीर लालवानी ने मुझे बताया, "यह घटना इसलिए बहुत चिंताजनक है क्योंकि यह मिसाइल बमों पर भारत की कमान और नियंत्रण की कमी को उजागर करती है, फिर चाहे वह मानवीय भूल हो, प्रक्रिया से जुड़ी गड़बड़ी रही हो या फिर सॉफ्टवेयर—हार्डवेयर की समस्या रही हो."
यह एक ऐसा करीबी मामला था जो खुशकिस्मती से इस इलाके को एक अपूरणीय क्षति होने से बचा सका. दो परमाणु हथियार वाले पड़ोसी भाग्यशाली थे कि कई दूसरी चीजें, जो विपरीत परिणाम वाली हो सकती थीं, दोनों देशों ने नहीं की. ब्रह्मोस मिसाइल ने पाकिस्तान के अंदर संवेदनशील सैन्य, परमाणु या राजनीतिक लक्ष्य को नहीं भेदा. चूंकि संचालन केंद्रों में क्रूज मिसाइलों को उनके तय लक्ष्यों के साथ प्रोग्राम्ड रखा जाता है इसलिए स्पष्ट है कि मियां चन्नू मिसाइल का निशाना नहीं था. मिसाइल अनजाने में वहां गिर गई.
जरा सोचिए कि अगर मिसाइल रफीकी पीएएफ बेस से टकराई होती, जो मियां चन्नू से ज्यादा दूर नहीं है, जिसके बारे में कई लोगों का मानना है कि इसी को संभावित लक्ष्य बना कर मिसाइल तैनात की गई थी, तब पाकिस्तानी प्रतिक्रिया तीखी बयानबाजी, इस्लामाबाद में भारतीय कूटनयिकों को समन करने और पाकिस्तानी मंत्रियों और अधिकारियों के तीखे ट्वीट्स तक सीमित नहीं होती. इसके अलावा वैश्विक उड़ान-ट्रैकिंग सेवा फ्लाइटरडार 24 के आंकड़ों के अनुसार मिसाइल दगने के एक घंटे के भीतर कई वाणिज्यिक विमान मिसाइल के प्रक्षेपवक्र से गुजरे थे. अगर मिसाइल ने उनमें से किसी को भी मार गिराया होता, तो भारत वैश्विक समुदाय के बहुत अलग सवालों के जवाब दे रहा होता.
अच्छी बात यह रही कि जब मिसाइल पाकिस्तान में गिरी तो कोई विस्फोट नहीं हुआ. क्या ऐसा इसलिए हुआ था क्योंकि मिसाइल में कोई वॉरहेड नहीं था या इसलिए क्योंकि मिसाइल निर्धारित लक्ष्य पर नहीं गिरी? जो भी हो यह कई मामलों में दैवीय हस्तक्षेप जैसा ही था. इसने पाकिस्तानी अधिकारियों को यह सोचने का मौका दिया कि प्रक्षेपण में कुछ अगल बात है. कल्पना कीजिए कि अगर मियां चन्नू में निजी दीवार से टकराने के बजाए मिसाइल से बड़ा विस्फोट हुआ होता और बड़ी संख्या में लोग हताहत होते तो क्या होता? यहां तक कि अगर पाकिस्तानी सैन्य अधिकारी तब भी यही मानते की मिलाइल गलती से चली है तो भी उन पर जवाबी कार्रवाई करने का राजनीतिक और सार्वजनिक दबाव होता ही.
यह तथ्य भी उतना ही अप्रत्याशित था कि इस संकट के दौरान भारत की ओर से दो दिनों तक बातचीत न होने के बावजूद पाकिस्तानी सुरक्षा अधिकारियों ने इस घटना पर बड़ी परिपक्वता दिखाई. यह अक्षम्य है कि दोनों देशों के सैन्य अभियानों के महानिदेशकों के बीच मौजूदा हॉटलाइन को सक्रिय नहीं रखा गया गया था और यह भी कि नई दिल्ली ने पाकिस्तानी नेतृत्व को सूचित रखने के लिए वैकल्पिक चैनलों को सक्रिय नहीं किया था. भारतीय पक्ष ने सोचा होगा कि मिसाइल भारत के अंदर ही गिरी है और बाद में इसे वापस लाया जा सकता है लेकिन इसका मतलब यह था कि घातक प्रक्षेपास्त्र को भारत की वायु रक्षा प्रणाली के जरिए ट्रैक नहीं किया गया. उपरोक्त किसी भी मामले में, भारतीय खुफिया अधिकारियों को पता होना चाहिए था कि डॉन ने पहले ही इस पर क्या रिपोर्ट की है. अगर उन्होंने ऐसा नहीं किया तो ऐसी अक्षमता गंभीर उपचारात्मक कार्रवाई की मांग करती है.
भारत ने जैसा व्यवहार किया उसके मद्देनजर पाकिस्तान के लिए यह मानना पूरी तरह से जायज ही होता कि दुष्ट विचार रखने वालों के हाथों में भारतीय मिसाइल प्रणाली का कब्जा है. पाकिस्तान ने पिछली जानकारियों के आधार पर दक्षिण एशिया और शायद पूरी मानवता के हित में सबसे अच्छा फैसला लिया. एक जिम्मेदार परमाणु शक्ति के रूप में नई दिल्ली से उम्मीद की जाती है कि वह किसी गुस्सैल, चिड़चिड़े बच्चे की तरह बर्ताव न कर परिपक्वता का परिचय दे.
यदि यह घटना किसी और वक्त में हुई होती जब भारत और पाकिस्तान के बीच संबंध आज की तुलना में खराब होते तो बड़ी तबाही हो सकती थी. अगस्त 2019 में अनुच्छेद 370 हटाने के बाद से न ही भारतीय मंत्रियों और जनरलों की ओर से पाकिस्तान के खिलाफ कोई राजनीतिक बयानबाजी हुई है और न ही कश्मीर में नियंत्रण रेखा पर भारी गोलाबारी के कारण सैन्य तनाव बढ़ा है. जैसा कि 2020 से पहले देखा गया था. अगर इस मिसाइल को एक गंभीर सैन्य संकट के बीच गलती से दागा गया होता तो हालात बदतर होते.
लालवानी ने मुझे बताया, "हम जानते हैं कि भारत और पाकिस्तान के बीच पिछले बड़े सैन्य संकट में, 2019 में, तनाव ज्यादा था, स्थिति तेजी से बदतर हुई, संभवतः दोनों पक्षों को मिसाइल हमलों का खतरा था और संघर्ष के कोहरे के बीच वास्तव में दुर्घटनाएं हुई थीं, जैसे कि तब भारत ने अपने खुद के एक विमान को मार गिराया था. तो असल खतरा यह है कि अगर एक पक्ष अपने बलों पर कड़ा नियंत्रण नहीं करता है, तो संकट की आंच में एक आकस्मिक मिसाइल प्रक्षेपण आग्नेयास्त्रों की बौछार शुरू कर सकता है. खासकर अगर इस तरह की दुर्घटना को तुरंत स्पष्ट करने और जिम्मेदारी लेने के लिए कोई तंत्र या प्रयास नहीं किया जाता है तो सामने वाला देश खतरा मान कर उसी तरह से जवाब देता है.”
2019 में सैन्य संकट के बीच दुनिया को राजनीतिक गैर-जिम्मेदारी की दंभ भरी ऐंठन का नजारा देखने को मिला. भारतीय वायुसेना द्वारा पाकिस्तान के अंदर बालाकोट में एक मदरसा पर हमला करने के एक दिन बाद भारत ने राजौरी-पुंछ सेक्टर में पाकिस्तान के हवाई हमले का जवाब देते हुए अपना एक मिग-21 लड़ाकू जेट खो दिया. इसी प्रक्रिया में भारतीय वायुसेना ने श्रीनगर के पास अपने ही एक एमआई-17 हेलीकॉप्टर को मार गिराया. इस दुर्भाग्यपूर्ण मिग -21 को चला रहे भारतीय वायुसेना के अधिकारी विंग कमांडर अभिनंदन पाकिस्तानी क्षेत्र में जा गिरे और उन्हें बंदी बना लिया गया. पहले से ही एक चुनाव अभियान के बीच में मोदी सरकार ने पकड़े गए पायलट को तुरंत रिहा नहीं करने पर मिसाइल हमलों की धमकी दी. पाकिस्तान ने भी भारतीय शहरों पर तीन गुना मिसाइलों के साथ जवाबी हमले की धमकी दी.
पश्चिमी देशों ने दखल दिया और इस मामले को अंततः बिना किसी नुकसान के सुलझा लिया गया. लेकिन दो परमाणु अस्त्र संपन्न देश युद्ध की ओर अग्रसर हो ही चुके थे. यहां तक कि दोनों ने परमाणु विकल्प भी खुला रखा था. कुछ हफ्ते बाद राजस्थान में एक भाषण के दौरान मोदी ने लोगों से कहा, "क्या हमने अपने परमाणु बम दिवाली के लिए रखे हुए हैं?” इससे पहले गुजरात की एक रैली में उन्होंने कहा था कि पाकिस्तान ने अभिनंदन को वापस नहीं किया होता, तो वह "कत्ल की रात" का आदेश दे देते.
अगर मोदी ने भारतीय मिसाइल हमलों के लिए अंतिम मंजूरी दे दी होती, तो ऐसा माना जा सकता है कि उन मिसाइलों में राजस्थान में कहीं से दागी गई सतह से सतह पर मार करने वाली ब्रह्मोस मिसाइलें भी होतीं. ब्रह्मोस को तीन कारणों से चुना गया होता : पाकिस्तान को यह संकेत देने के लिए कि हमला गैर-परमाणु था क्योंकि भारत के परमाणु हथियारों को ले जाने में; पूर्ण सटीकता के साथ लक्ष्य पर हमला करने में और पाकिस्तानी वायु रक्षा प्रणाली की सीमित क्षमता का दोहन करने में ब्रह्मोस सक्षम नहीं है.
मिसाइल घटना से कुछ अन्य प्रश्न भी उठे हैं. क्या पाकिस्तानियों ने ब्रह्मोस को परमाणु हथियार से लैस दूसरी मिसाइल समझ लिया होगा? एक क्रूज मिसाइल स्व-चालित होती है और वह पृथ्वी के वायुमंडल के भीतर ही उड़ती है और जेट-इंजन तकनीक का उपयोग करती है. इस तरह यह बैलिस्टिक मिसाइल की तुलना में कम वजन ले जा पाती है. ब्रह्मोस 200 किलोग्राम का वॉरहेड ले जा सकती है और इसे यूएस नेवल एयर एंड स्पेस इंटेलिजेंस सेंटर द्वारा एक पारंपरिक मिसाइल के रूप में वर्गीकृत किया गया है. अगर भारत ने 200 किलोग्राम से कम वजन का एक विखंडन परमाणु उपकरण विकसित किया है, जैसा कि कुछ तिमाहियों में अनुमान लगाया गया है, तो भविष्य में ब्रह्मोस का उपयोग परमाणु हथियार ले जाने के लिए किया जा सकता है.
ब्रह्मोस के हमले से बचाव करने की पाकिस्तान की क्षमता सीमित है. अगर पाकिस्तानी सैन्य कमान ने उड़ती ब्रह्मोस मिसाइल का पता कर लिया था और उसके पास यह जानने का कोई तरीका नहीं था कि वह बिना वॉरहेड के है, तो उन्होंने इसे गिरा क्यों नहीं दिया?
2021 के अंत में पाकिस्तान ने अपने पुराने वायु रक्षा नेटवर्क को बदलने के लिए चीनी मूल के एचक्यू-9/पी उच्च-से-मध्यम वायु रक्षा प्रणालियों की एक अघोषित संख्या को सेवा में शामिल करने की घोषणा की. इसने दावा किया कि एचक्यू-9/पी सौ किलोमीटर से अधिक दूर तक क्रूज मिसाइलों और विमानों को निष्क्रिय करने की उच्च "एकल शॉट संभावना" से युक्त है. एक सुविचारित नजरिए से पता चलता है कि यह विस्तारित सीमा केवल विमान के खिलाफ ही लागू होती है और यह कि एचक्यू-9/पी केवल 25 किलोमीटर की सीमा पर क्रूज मिसाइलों को बेअसर कर सकता है. इसका मतलब यह है कि अपने अस्पष्ट दावों के बावजूद पाकिस्तान ब्रह्मोस मिसाइलों को नजदीक से मार गिराने में असमर्थ है. जैसा कि एक पूर्व नौसेना प्रमुख ने मुझे बताया, “हमने अनजाने में ही पाकिस्तान की वायु रक्षा खामियों को परखा और उजागर किया है. ब्रह्मोस का खतरा यह है कि यह भारत को और ज्यादा आत्मविश्वासी और आक्रामक बना सकती है और यह बात पाकिस्तान को परमाणु हथियारों के इस्तेमाल करने की दहलीज पर लाने का खतरा पैदा कर सकती है.”
जबकि अब तक ज्ञात स्थितियों में ब्रह्मोस भारतीय परमाणु हथियार नहीं ले जा सकती है, अचानक दगे मिसाइल ने फिर भी भारत और पाकिस्तान के बीच परमाणु संघर्ष का खतरा बढ़ा दिया है. इसका स्पष्ट कारण हमले की बढ़ती प्रकृति है, जिसमें दोनों पक्ष शत्रुता के अगले चरण में तेजी से बढ़ने में सक्षम हैं. दूसरा इस दुर्घटना के बाद भारतीय व्यवस्था में विश्वास में कमी आई है और भारतीय अधिकारियों के बातचीत से बचने के फैसले ने इसे और गंभीर बना दिया. लालवानी ने मुझे बताया कि “हालांकि, दुर्घटनाएं कभी न कभी हो ही जाती हैं. पर ज्यादा चिंताजनक पहलू यह है कि हम जो जानते हैं, उससे ऐसा लगता है कि भारत ने खतरनाक स्थिति को रोकने के लिए तुरंत अपने समकक्षों को इसकी जानकारी नहीं दी. मिसाइल दगने के दो दिन बाद और वह भी पाकिस्तान की सेना द्वारा सार्वजनिक रूप से इस पर जानकारी देने के एक दिन बाद जा कर भारत ने इसकी सुध ली." यह दो प्रतिद्वंद्वियों के बीच अविश्वास पैदा करता है, जो दो परमाणु हथियारों से लैस पड़ोसियों के लिए स्वस्थ स्थिति नहीं है. इसके अलावा पाकिस्तान तो पहले इस्तेमाल न करने के सिद्धांत को नहीं मानता है.
जब मामला ज्यादा आगे नहीं बढ़ा तो कई लोगों ने दावा किया कि भारत ने गैर-परमाणु विकल्प के साथ एक उप-पारंपरिक आतंकी हमले का जवाब देकर तनाव को कस कर नियंत्रित कर सकने की अपनी क्षमता का प्रदर्शन किया है. इस तरह उसने पाकिस्तान के परमाणु जोखिम की छाया में पारंपरिक सैन्य कार्रवाई की जगह बनाई है. हालांकि, सच्चाई कम सुकून देने वाली है. राजनीतिक विज्ञानी विपिन नारंग और क्रिस्टोफर क्लैरी ने चेतावनी दी है कि "दक्षिण एशिया गंभीर रूप से भड़क पड़ने से कुछ ही दूर था." एक पूर्व विदेश सचिव, जिन्होंने नाम न छापने का अनुरोध किया, ने मुझे बताया कि कोई भी ऐसी स्थिति को नियंत्रित नहीं कर सकता है और हमें यह सबक बालाकोट से सीखना चाहिए था. पाकिस्तान ने एक तेज सैन्य हमले की जवाबी कार्रवाई की और हम उन पर मिसाइलों की बारिश की धमकी दे रहे थे.
दुर्घटनाएं जीवन का एक तथ्य हैं. सेनाएं गलतियां कर सकती हैं और ऐसी दुर्घटनाएं खतरनाक और घातक हो सकती हैं. यह भारतीय वायुसेना द्वारा बालाकोट हमले के बाद अपने ही हेलीकॉप्टर को मार गिराने से एकदम स्पष्ट हो गया था. ब्रह्मोस के अचानक दग जाने के बाद, भारतीय नीति निर्माताओं को यह सीखना चाहिए कि वे इन हथियारों को पूरी तरह से नियंत्रित नहीं कर सकते हैं. यह अच्छी तरह से स्थापित है कि दुर्घटनाएं, झूठा दोषारोपण या संकेतों को गलत समझ लेना अनियंत्रित आपदा का सबसे संभावित जोखिम है. दो परमाणु अस्त्र पड़ोसियों के बीच ऐसी आपदा सर्वनाश ला सकती है.
12 मार्च को पाकिस्तान ने मिसाइल फायरिंग की संयुक्त जांच की मांग की, जिसका इस्लामिक सहयोग संगठन ने समर्थन किया. इस मांग को नई दिल्ली द्वारा मानने की संभावना नहीं है. भारत सरकार ने इसके बजाए घटना की उच्च-स्तरीय आंतरिक जांच का आदेश दिया है जिसमें भारत की मिसाइल प्रणालियों के लिए मानक संचालन प्रक्रियाओं की समीक्षा शामिल होगी.
पश्चिमी वायु कमान के पूर्व प्रमुख को चिंता थी कि समीक्षा के बाद सुधारात्मक कदम के तहत इस्तेमाल के लिए परमाणु बमों के लिए अपनाई जाने वाली “मंजूरी प्रणाली” अपनाई जा सकती है जिससे आकस्मिक फायरिंग की संभावना कम तो हो जाएगी लेकिन उन्हें डर था कि इससे प्रतिक्रिया देने के समय में काफी वृद्धि होगी.
भारतीय सुरक्षा योजनाकार इस बात से भी परेशान होंगे कि पाकिस्तान और चीन ने ब्रह्मोस मिसाइल के बचाए गए मलबे का इस्तेमाल विस्तार से अध्ययन करने के लिए किया है जिससे वे भविष्य में इसके लिए बेहतर तरीके तैयार कर सकेंगे. एक डर यह भी है कि पाकिस्तान अपनी खुद की एक बेहतर क्रूज मिसाइल विकसित करने के लिए ब्रह्मोस की इंजीनियरिंग का इस्तेमाल कर सकता है. वैसे भी पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री नवाज शरीफ ने 2020 में पत्रकारों से कहा था कि उनके देश ने अमरिकी टॉमहॉक मिसाइल की रिवर्स इंजीनियरिंग करके बाबर क्रूज मिसाइल विकसित की थी. अमरीका की वह मिसाइल 1998 में उस वक्त बलूचिस्तान में बेअसर गिर गई थी जब अमरिकी राष्ट्रपति बिल क्लिंटन ने अफगानिस्तान पर मिसाइल हमले का आदेश दिया था. भारत शायद भाग्यशाली है कि मियां चन्नू में गिरने के बाद उसकी मिसाइल सलामत नहीं रही.
विदेश नीति और राष्ट्रीय सुरक्षा विश्लेषण के एक मंच वॉर ऑन द रॉक्स में लेखक क्रिस्टोफर क्लैरी, जो पहले पेंटागन में सेवारत थे और अब अल्बानी विश्वविद्यालय में पढ़ाते हैं, ने कई विशिष्ट सुझाव दिए हैं. उन्होंने मुझे बताया, "ऐसा लगता है कि समझदारी यही होगी कि भारत और पाकिस्तान दोनों ही मार्गदर्शन प्रणाली में डिफॉल्ट स्टोरेज या अभ्यास के दौरान लक्षित करने के लिए 'सुरक्षित' निर्जन क्षेत्रों का इस्तेमाल करें. अगर फिर भी कोई दुर्घटना होती है, तो इसके चलते मिसाइल किसी परमाणु-संपन्न पड़ोसी के क्षेत्र में टकराने की तुलना में किसी रेत के टीले या समुद्र में दुर्घटनाग्रस्त हो जाएगी." क्लैरी ने वॉर ऑन द रॉक्स में लिखा है कि "ऐसा करना संयुक्त राज्य अमेरिका और रूस के बीच 1994 के समझौते की तरह होगा, जो कि डिफॉल्ट रूप से खुले समुद्री क्षेत्रों में अपनी लंबी दूरी की बैलिस्टिक मिसाइलों को लक्षित करते हैं, ताकि लक्ष्य के स्पष्ट इनपुट के अभाव में मिसाइल ऐसे क्षेत्र में जाए जहां कोई नुकसान नहीं पहुंचे”.
क्लैरी ने मुझे बताया कि हाल की घटना और खासकर संकट के दौरान भारत की संचार की कमी ने नई दिल्ली और इस्लामाबाद के बीच सुरक्षित संचार लाइनों के तर्क को और मजबूत किया है. “हम अभी भी नहीं जानते हैं कि भारत सरकार की प्रेस विज्ञप्ति में उल्लेखित बात के अलावा मिसाइल दुर्घटना के बारे में और क्या बातचीत हुई है. इसलिए अगर भारत एक नई हॉटलाइन स्थापित नहीं करने जा रहा है, तो ऐसा लगता है कि उसे इस बात पर विचार करना चाहिए कि उसने इस दुर्घटना के वक्त संचार की मौजूदा सुरक्षित लाइनों में से किसी का उपयोग क्यों नहीं किया,” उन्होंने कहा. "आखिरकार भारत 1991 के एक समझौते से बंधा है जो हवाई क्षेत्र के उल्लंघन की घटना को रोकने के लिए त्वरित सूचना के आदान प्रदान की बात करता है." क्लैरी ने सुझाव दिया कि भविष्य में ऐसी घटनाओं से बचने के लिए भारत को अपने पड़ोसियों के साथ क्रूज मिसाइल परीक्षणों के बारे में अधिक संवाद करना चाहिए. "चूंकि भारत क्रूज मिसाइल उड़ान परीक्षण से पहले विमान चालकों को नोटिस जारी करता है इसलिए परीक्षण सूचना व्यवस्था को लागू करना भी बहुत आसान होगा." 2005 में पाकिस्तान ने दोनों देशों के बीच बैलिस्टिक मिसाइल परीक्षण सूचना व्यवस्था में क्रूज मिसाइल परीक्षणों को जोड़ने का प्रस्ताव रखा था लेकिन भारत ने इसे अस्वीकार कर दिया था. क्लैरी ने कहा कि "दोनों देश क्या अमरीका-रूस परमाणु जोखिम न्यूनीकरण केंद्र को मॉडल की तरह नहीं अपना सकते?”
लालवानी ने क्लैरी की बात पर सहमति जताई. उन्होंने मुझे बताया, "भारत द्वारा की जा रही आंतरिक समीक्षा के अलावा मुझे लगता है कि यह दोनों पक्षों के हित में है कि संकट संचार तंत्र बनाने पर गंभीरता से काम करें. मैं उम्मीद करता हूं कि इस पर काम शुरू हो गया होगा. इसके लिए किसी भी तरीके के राजनीतिक समझौते की आवश्यकता नहीं है बस थोड़ा विवेक का इस्तेमाल करना है." दुर्भाग्य से आज के भारत में विवेक की कमी है. विवेक एक ऐसा गुण है जो "कत्ल की रात" का दम भरने वाले नेता में नहीं मिल सकता.