भारतीय हैं गोरों से ज्यादा नस्लवादी : अरुंधति रॉय

13 जून 2020
अफ्रीकी-अमरीकी नागरिक जॉर्ज फ्लॉयड के सम्मान में हुए प्रदर्शन के बाद 8 जून 2020 को देश में पुलिस बर्बरता का शिकार हुए अफ्रीकी-अमरीकियों का नाम सड़क पर लिखते हुए एक शख्स.
टॉम विलियम्स/सीक्यू-रोल कॉल इंक /गैटी इमेजिस
अफ्रीकी-अमरीकी नागरिक जॉर्ज फ्लॉयड के सम्मान में हुए प्रदर्शन के बाद 8 जून 2020 को देश में पुलिस बर्बरता का शिकार हुए अफ्रीकी-अमरीकियों का नाम सड़क पर लिखते हुए एक शख्स.
टॉम विलियम्स/सीक्यू-रोल कॉल इंक /गैटी इमेजिस

अमेरिका में अफ्रीकी-अमरीकी नागरिक जॉर्ज फ्लॉयड की पुलिस द्वारा हत्या कर दिए जाने के बाद वहां आंदोलन भड़क गया है. 46 साल के फ्लॉयड की हत्या 25 मई को एक गोरे पुलिस अधिकारी डेरेक चौविन ने कर दी थी. फ्लॉयड की हत्या का विरोध बहुत से जाने माने भारतीयों ने भी किया है लेकिन इसके विपरीत भारत में मुस्लिम और दलितों पर होने वाले अत्याचारों पर शायद ही कभी सार्वजनिक बहसें होती हैं. मिसाल के तौर पर नवंबर 2019 और मार्च 2020 के बीच चले नागरिका संशोधन कानून के खिलाफ देशव्यापी आंदोलन के खिलाफ पुलिस की बर्बरता पर लगभग खामोशी की स्थिति रही.

फ्लॉयड की हत्या और उसके बाद अमेरिका में जारी आंदोलन और भारतीय समाज पर उस आंदोलन के असर पर लेखिका और एक्टिविस्ट अरुंधति रॉय से दलित कैमरा ने बात की. रॉय का मानना है कि “हम एक नस्लवादी संस्कृति हैं” और भारतीय लोग गोरों से ज्यादा नस्लवादी हैं.

दलित कैमरा : हम अमेरिका में चल रहे आंदोलन का समर्थन किस तरह करें और भारत में विरोध कर रहे लोगों के साथ कैसे एकजुटता जाहिर करें?

अरुंधति रॉय : मेरे ख्याल से आपका आशय श्वेत अमेरिकी पुलिस द्वारा अफ्रीकी अमरीकियों की हत्याओं की लंबी श्रृंखला में नवीनतम जॉर्ज फ्लॉयड की निर्मम हत्या के बाद बड़े पैमाने पर भड़के विरोध प्रदर्शनों से है. मेरे विचार से इस आंदोलन का समर्थन करने का सबसे अच्छा तरीका सबसे पहले यह समझना है कि इसका मूल कहां है. गुलामी का इतिहास, जातिवाद, नागरिक-अधिकार आंदोलन- इन सबकी सफलताओं और असफलताओं की जड़ें कहां हैं. अत्यंत सूक्ष्म तरीके से जांच करने की आवश्यकता है कि उत्तरी अमेरिका में अफ्रीकी अमरीकियों को "लोकतंत्र" के ढांचे के भीतर आखिर इतनी क्रूरता, असंगतता और असंतोष का सामना क्यों करना पड़ता है? इससे पूर्व यह भी समझना होगा कि अमेरिका में भारतीय समुदाय के अधिकांश लोगों की इसमें क्या भूमिका है? पारंपरिक रूप से भारतीय समुदाय किसके साथ जुड़ा रहा है? इन प्रश्नों के उत्तर हमें अपने समाज के बारे में बहुत कुछ बताएंगे. विभिन्न संस्कृतियों और समुदायों के सामुहिक रोष और प्रदर्शनों का समर्थन हम तभी कर सकते हैं, अगर हम ईमानदारी से अपने स्वयं के मूल्यों और कार्यों का आकलन करें. हम खुद एक ऐसे बीमार समाज में रहते हैं, जिसमें भाईचारे और एकजुटता की भावनाओं के लिए कोई जगह नहीं है.

दलित कैमरा : क्या अमेरिका के “कू क्लक्स क्लान” और भारत के “गौ-रक्षक हिंदुओं” की विचारधारा और कार्य-प्रणाली में समानताएं हैं?

दलित कैमरा जाति और जातीय उत्पीड़न को कवर करने वाली मीडिया संस्था है.

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