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(एक)
अठारहवीं सदी में उपनिवेशवाद की उंगली पकड़ कर क्रिकेट खेल भारतीय तटों पर पहुंचा. बाद के सालों में यह शहरी मध्यम वर्ग का शौक बन गया और आज यह एक बड़े खेल उद्योग में तब्दील हो चुका है. इस खेल ने अलग-अलग क्षेत्रों और वर्गों के खिलाड़ियों और दर्शकों को आकर्षित किया है. ब्रॉडकास्ट ऑडियंस रिसर्च काउंसिल के अनुसार, 2018 में लगभग 71.5 करोड़ दर्शकों ने टैलीविज़न पर क्रिकेट देखा, यह आंकड़ा देश के कुल 76.6 करोड़ खेल-दर्शकों का 93 प्रतिशत है. क्रिकेट के ये टीवी दर्शक, जो अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट परिषद (आईसीसी) के अन्य सभी पूर्ण सदस्यों की कुल आबादी से ज़्यादा हैं और संयुक्त राज्य अमेरिका की जनसंख्या से दोगुना हैं, भारतीय क्रिकेट नियंत्रण बोर्ड (बीसीसीआई) को अभूतपूर्व वित्तीय ताकत देते हैं.
1983 में भारत के क्रिकेट विश्व कप जीतने के बाद इस खेल की विकास यात्रा उदारीकरण के समानांतर चली. इसने सैटेलाइट टीवी के जरिए उम्मीदें, सपने और कोका-कोला बेचा. 1990 के दशक में लाइव टीवी ने इस खेल को भारत के विशाल अंदरूनी इलाकों में पहुंचा दिया. इसके प्रमुख क्रिकेटर छोटे कस्बों और शहरों से निकलने लगे.
2008 में आईपीएल की शुरूआत ने भारतीय क्रिकेट की वित्तीय स्थिति को चर्चा के केंद्र में ला दिया. 2021-22 तक बीसीसीआई की कुल संपत्ति 23,159 करोड़ रुपए थी. पिछले पंद्रह सालों में भारतीय क्रिकेट प्रशंसकों की निष्ठा और उत्साह को टैलीविज़न विज्ञापन, मार्केटिंग और कॉमेंट्री में साफ़ तौर पर अंधराष्ट्रवाद की एक मजबूत ख़ुराक से पोषित किया गया है.
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