आईपीएल का जारी रहना लोगों का अपमान, रोक लगे तुरंत

आईपीएल का आखिरी मैच 30 मई को अहमदाबाद के नरेन्द्र मोदी स्टेडियम में होगा. महामारीविदों का अनुमान है कि कोविड की दूसरी लहर मई माह में चरम पर पहुंचेगी और मरने वालों की संख्या और मामलों में भयानक वृद्धि होगी. सैम पेंटकी/ एएफपी/ गैटी इमेजिस

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26 अप्रैल को भारत के जाने-माने क्रिकेट पत्रकार प्रदीप मैगजीन ने ट्वीट किया कि “भारतीय क्रिकेटरों की चुप्पी भयानक है. क्या ये लोग शीर्ष लोगों की सलाह को कट एंड पेस्ट करने का इंतजार कर रहे हैं.”

प्रदीप मैगजीन की यह बात एकदम सही है. इस महामारी के बीच भारतीय क्रिकेटरों की सामूहिक चुप्पी उनकी हरकत से एकदम अलग है जो फरवरी में किसान आंदोलन के समय दिखाई दी थी. इन लोगों को किसान आंदोलन के मुद्दों का कोई ज्ञान नहीं था लेकिन ये उस आंदोलन का मजाक उड़ाने और चिढ़ाने वाले ट्वीट वर्तमान सत्ता के समर्थन में कर रहे थे. फिलहाल भारत के करोड़पति क्रिकेटर भारतीय प्रीमियर लीग (आईपीएल) में भाग लेकर लाखों कमा रहे हैं जबकि लीग के प्रति अडिग श्रद्धा रखने वाली और दुनिया में सबसे अधिक क्रिकेट देखने वाली भारत की जनता की सांस उखड़ रही है.

भारतीय क्रिकेट, भारतीय समाज और मोदी के नेतृत्व में भारतीय राज्य के विवेचक कोविड की दूसरी लहर की तबाही के बीच भारतीय क्रिकेटरों की चुप्पी को अप्रत्याशित नहीं मानते. वे कहते हैं, “एक माफिया राज का वफादर ओमर्टा का नियम कभी नहीं तोड़ता.” एक औसत भारतीय क्रिकेटर जो भारतीय मध्यम वर्ग के खुदगर्ज सिद्धांतों की पैदाइश होता है और प्रतिशोधी एवं राजनीतिक रूप से शक्तिशाली क्रिकेट प्रशासकों की मनमानी दया के सहारे शीर्ष पर पहुंचता है वह दब्बू किस्म का होता है. आज इन व्यक्तिवादी क्रिकेट सुपर स्टारों की चुप्पी जुड़ी है भारतीय क्रिकेट के बॉस जय शाह से जो भारत के दूसरे नंबर के सबसे शक्तिशाली आदमी की संतान हैं. इस खेल में उनका पूर्व में कोई अनुभव नहीं है लेकिन गृहमंत्री की संतान होने के चलते उन्हें भारतीय क्रिकेट की सबसे महत्वपूर्ण पद पर विराजमान कर दिया गया है. हालांकि आधिकारिक रूप से भारतीय क्रिकेट बोर्ड के अध्यक्ष सौरव गांगुली हैं लेकिन उनकी हैसियत कठपुतली अध्यक्ष से ज्यादा की नहीं है.

अब आप भारतीय क्रिकेटरों की इस चुप्पी की तुलना क्रिकेट जगत के अन्य देशों के खिलाड़ियों की ओर से आ रही हमदर्दी की लहर से करके देखिए. पूर्व पाकिस्तानी क्रिकेट शोएब अख्तर ने पिछले महीने एक वीडियो जारी कर भारत की चिंताजनक स्थिति के प्रति अपना खेद जाहिर किया. उनके वीडियो का कैपशन था, “इस महामारी में हम सब साथ हैं और हमें एक दूसरे की मदद करने की जरूरत है.” पाकिस्तान के वर्तमान कप्तान बाबर आजम ने जिस तरह की चिंता के साथ ट्वीट किया वैसी चिंता अभी तक भारतीय कप्तान विराट कोहली में नजर नहीं आई है. आजम ने लिखा, “मेरी दुआएं भारत के लोगों के साथ हैं. इस महामारी में हमें एकता दिखाने और साथ में दुआ करने की जरूरत है. हम सब मिलकर यह लड़ाई जीत लेंगे.”

भारतीय प्रीमियर लीग के खिलाड़ियों में ऐसी बात ऑस्ट्रेलिया के खिलाड़ियों ने दिखाई है. ये खिलाड़ी एक अलग किसम के सामाजिक परिवेश की पैदाइश हैं और विदेशी क्रिकेटर भारत के संकट के प्रति ज्यादा सचेतन हैं. कोलकाता नाइट राइडर्स की ओर से खेलने वाले ऑस्ट्रेलिया के उपकप्तान पेट कमिंस ने कोविड संकट पर चिंता व्यक्त की. 26 अप्रैल को कमिंस ने कोविड राहत कोष में 50000 डॉलर का सहयोग दिया और अपने वक्तव्य में कहा कि यह राशि उन्होंने मुख्यतः भारतीय अस्पतालों के लिए ऑक्सीजन आपूर्ति के लिए दी है. इसके अगले दिन पूर्व ऑस्ट्रेलियाई खिलाड़ी ब्रेट ली ने भी एक बिटकॉइन का सहयोग दिया जो लगभग 40 लाख रुपए के बराबर है.

पूरा अप्रैल गुजर गया लेकिन भारतीय क्रिकेटर चुप रहे. एकाध अवसरों में उन्होंने सुरक्षा प्रोटोकॉल की दुहाई दी लेकिन इससे ज्यादा कभी कुछ नहीं कहा. ये खिलाड़ी एक हद तक मोदी सरकार की उदासीनता और उपेक्षा के एजेंट बने हुए हैं. आईपीएल में भाग लेकर इन खिलाड़ियों ने एक सर्कस की कठपुतलियों की तरह काम किया है और सरकार को जवाबदेहिता से बचा रहे हैं. मोदी और शाह देश को आईपीएल बना देंगे लेकिन मौत की त्रासद तस्वीरों और तबाही, जो उनकी अक्षमता का सीधा परिणाम है, से निबटने के लिए अपना समय नहीं लगाएंगे.

जैसे-जैसे यह महामारी बढ़ रही है, भारतीय क्रिकेटरों में से सिर्फ वसीम जफर, जो वर्तमान में पंजाब किंग्स के कोच हैं और जिन्हें हाल में उत्तराखंड क्रिकेट एसोसिएशन की सांप्रदायिक प्रताड़ना झेलनी पड़ी थी जबकि बीसीसीआई चुप्पी साधी रही, ने दर्जनभर प्रभावशाली नागरिकों की तरह ट्विटर पर ऑक्सीजन सिलेंडर और अस्पतालों में बेड की जरूरत वाले ट्वीट साझा किए. भले यह समुद्र में पानी की एक बूंद के समान हो लेकिन उनका काम महत्वपूर्ण है. जबकि देशवासी जिंदगी और मौत से लड़ रहे हैं क्या बीसीसीआई को यह बताना पड़ेगा कि उसे क्या करना चाहिए.

बीसीसीआई जो दुनिया की सबसे बड़ी खेल संस्थाओं में गिना जाता है, वह अपने अनगिनत स्टेडियमों में से एक को क्या कोविड अस्पताल में नहीं बदल सकता? इस फ्रेंचाइजी के मालिक, उन शहरों को जिनका वे प्रतिनिधित्व करते हैं, चिकित्सीय उपकरण और राहत प्रदान कर सकते हैं. आईपीएल के प्रति लोगों के आकर्षण के मद्देनजर वे दर्शकों का ध्यान इस महामारी की ओर खींच सकते हैं और उनसे सहयोग की अपील कर सकते हैं. यदि बीसीसीआई ने उपरोक्त कामों में से एक भी किया होता तो शायद वह यह दावा कर सकती थी कि वह संघर्षरत राष्ट्र को मनोवैज्ञानिक राहत देने के लिए आईपीएल का आयोजन कर रही है. लेकिन इसके विपरीत भारतीय क्रिकेट ने अपने नागरिकों के प्रति एकबद्धता और संवेदनशीलता का नाम मात्र भी मुजाहिरा नहीं किया. यहां तक की उसने एक मिनट का मौन या हाथों में काली पट्टी बांधने जैसे प्रतीकात्मक कार्य भी नहीं किए.

भारतीय क्रिकेट के प्रशंसक उपयोग करके फैंकने वाली चीज हैं. कमिंस और ली ने जो किया और लोगों की नाराजगी जो आईपीएल के लिए खतरा है, के बाद आईपीएल की टीमों और खिलाड़ियों ने सहयोग और राहत के वादे किए. अप्रैल के आखिरी सप्ताह में राजस्थान रॉयल्स और दिल्ली कैपिटल ने क्रमाशः साढ़े सात करोड़ रुपए और डेढ़ करोड़ रुपए सहयोग की घोषणा की और पंजाब किंग्स ने ऑक्सीजन कंसंट्रेटर उपलब्ध कराने का वादा किया. 30 अप्रैल को जयदेव उनादकट और शिखर धवन ने कोविड-19 के लिए चंदा देने की घोषणा की. वे ऐसा करने वाले पहले खिलाड़ी हैं.

लेकिन यह काम अब बहुत देर से शुरू हुआ है. यह बात कि कोविड राहत कोष जैसी चीज प्रतियोगिता की शुरुआत में स्थापित न करना, जबकि टीमें और खिलाड़ी अक्सर अपने प्रशंसकों से ऐसे कामों को करने की अपील करते रहते हैं, आईपीएल की जनता के प्रति बेरुखी को दिखाती है.

जिस बायो बबल के अंदर आईपीएल आयोजित हो रहा है उसमें बड़ा मेडिकल इंफ्रास्ट्रक्चर है जिसमें जांच सुविधाएं, एम्बुलेंसें और हमेशा तैयार रहने वाले डॉक्टर की फौर्स मौजूद हैं. दिल्ली के लोकनायक जयप्रकाश अस्पताल से फिरोज शाह कोटला स्टेडियम केवल एक किलोमीटर दूर है लेकिन उस अस्पताल के बाहर सिलेंडर और बैड के लिए लोग कतार लगाए खड़े हैं.

वरिष्ठ क्रिकेट पत्रकार शारदा उग्रा ने अभी हाल में एनडीटीवी से कहा था, “ऐसे समय में दिल्ली में मैच का आयोजन पूरी तरह से गैर वाजिब और असंवेदनशील है.” उन्होंने आगे कहा, “यहां चिता की आग और क्रिकेट मैदान की फ्लड लाइट एक साथ जल रही हैं.” ऑस्ट्रेलिया के क्रिकेटर एंड्रयू टाय ने गैर इरादतन इस टूर्नामेंट की आलोचना कर दी. वह राजस्थान रॉयल्स की ओर से खेलते हैं लेकिन वह बीच में ही आईपीएल छोड़ कर घर लौट गए. लौटकर उन्होंने ऑस्ट्रेलियाई मीडिया से कहा, “भारतीय दृष्टिकोण से देखें तो मैं समझ नहीं पाता कि कैसे ये कंपनियां और फ्रेंचाइजी और सरकार आईपीएल पर इतना सारा पैसा खर्च कर रही हैं जबकि वहां ऐसे लोग हैं जिन्हें अस्पतालों में बेड नहीं मिल रहा.”

आईपीएल का आखिरी मैच 30 मई को अहमदाबाद के नरेन्द्र मोदी स्टेडियम में होगा. महामारीविदों का अनुमान है कि कोविड की दूसरी लहर मई माह में चरम पर पहुंचेगी और मरने वालों की संख्या और मामलों में भयानक वृद्धि होगी. इसके बावजूद मोदी नीरो बने लाशों के ढेर से अपनी आंखें चुराए रहते हैं.

राष्ट्रीय आपदा के बीच आईपीएल का जारी रहना भौंडा है. वरिष्ठ पत्रकार सुशांत सिंह ने एक ट्वीट में कहा है, “किसी दिन यह लिखा जाएगा कि जब आईपीएल एम्बुलेंसों, जांच और स्वास्थ्य सुविधाओं के साथ हो रहा था तब दिल्ली के बगीचों और पार्किंगों में शव जल रहे थे और श्मशान में शव जलाने के लिए लोगों को 20-20 घंटे इंतजार करना पड़ रहा था.”

खेल अपने सार में जीवन और संभावनाओं का उत्सव है और इसीलिए मौत और आपदा के क्षणों में इसकी उपस्थिति न केवल कर्कश है बल्कि लोगों का अपमान भी है. आज करोड़ों लोग और क्रिकेट प्रशंसकों के लिए जरूरी है कि वे पुरजोर ताकत से कहें कि यह टूर्नामेंटॉ तुरंत बंद होना चाहिए. इस वक्त आईपीएल का जारी रहना न केवल अनैतिक है बल्कि डार्विन के सामाजिक ऑर्डर को मान्यता देना भी है.