वकील मिलिंद पखाले ने पुलिस में एक शिकायत दर्ज करायी है कि नागपुर के सरकारी अतिथि गृह रवि भवन के रजिस्टर में उन्होंने जो प्रविष्टि की थी, उससे छेड़छाड़ की गई है। पखले एक प्रतिष्ठित शख्स हैं और महाराष्ट्र के खैरलांजी में 2006 में हुए दलितों के नरसंहार के बाद गठित खैरलांजी ऐक्शन कमेटी के संयोजक हैं। जज बृजगोपाल हरकिशन लोया, जिनकी मौत 30 नवंबर और 1 दिसंबर 2014 की दरमियानी रात नागपुर के दौरे पर अचानक हुई थी, वे आखिरी रात को कथित रूप से रवि भवन में ही ठहरे हुए थे। रजिस्टर में पखाले की प्रविष्टि लोया के ठहरने से जुड़ी दो प्रविष्टियों के ठीक पहले दर्ज है।
अपनी मौत के वक्त लोया सोहराबुद्दीन शेख के कथित फर्जी मुठभेड़ हत्याकांड के मामले की सुनवाई कर रहे थे जिसमें मुख्य आरोपी भारतीय जनता पार्टी के मौजूदा अध्यक्ष अमित शाह थे। द कारवां द्वारा प्रकाशित रिपोर्टों में मरहूम जज के लिए कई परिजनों और सहयोगियों ने उनकी मौत की परिस्थितियों को लेकर सवाल खड़े किए हैं और कहा है कि लोया ने उन्हें बताया था कि सोहराबुद्दीन शेख के मामले में उनके फैसले को प्रभावित करने की कोशिशें की जा रही थीं और ऐसा करने वालों में बॉम्बे हाइकोर्ट के तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश मोहित शाह भी शामिल थे।
पखाले ने 20 दिसंबर 2017 को नागपुर के सदर थाने में शिकायत दर्ज करवायी है। उन्होंने शिकायत की प्रति लोक निर्माण विभाग के कार्यकारी अभियंता को भी भेजी है, जो रवि भवन का संचालन करता है। नागपुर पुलिस ने शिकायत प्राप्त होने की पुष्टि द कारवां से की है। कार्यकारी अभियंता ने द कारवां को बताया कि वे इस मामले को इसलिए नहीं देख पाए क्योंकि असेंबली का सत्र चल रहा था और वे क्रिसमस के बाद ही इसे देख पाएंगे।
पुलिस में की गई शिकायत कहती है, ”किसी ने 30.11.2014 को हुई जघन्य घटना के संबंध में सरकारी रिकॉर्ड से छेड़छाड़ की है जिसका उद्देश्य मेरे पंजीकरण के साक्ष्य को मिटाना था और इसके लिए दस्तावेज़ में हेरफेर कर के एक फर्जी काग़ज़ का इस्तेमाल किया गया।” पखाले का कहना है कि उन्होंने अपने हाथ से 2014 की वह एंट्री की थी लेकिन आज वही एंट्री उसी रजिस्टर में आगमन और प्रस्थान की तारीख की जगह 2017 दर्शा रही है और हाथ की लिखावट भी किसी और की है। उनका कहना है कि आगमन और प्रस्थान की तारीख के अलावा बाकी प्रविष्टि उन्हीं की लिखावट में अब भी दर्ज है। पखाले लिखते हैं, ”मैं यह शिकायत दर्ज करवाते हुए इस हेरफेर के लिए जिम्मेदार अफसरों और कर्मचारियों के खिलाफ तत्काल जांच की मांग करता हूं।”
जस्टिस लोया की रहस्यमय मौत में जांच की मांग को यह शिकायत और ताकत देती है। अब तक लोया के परिवरवालों, सहयोगियों, पूर्व सहकर्मियों आदि ने लगातार उनकी मौत की जांच की मांग उठायी है। हाल ही में कुछ अवकाश प्राप्त सम्मानित जजों, नौकरशाहों और सेना के अफसरों ने भी इस मामले में जांच की मांग की थी।
द कारवां ने 21 दिसंबर को एक लंबी रिपोर्ट प्रकाशित करते हुए बताया था कि लोया की जिंदगी की आखिरी रात से जुड़े अब तक सार्वजनिक हुए तमाम विवरण कैसे आपस में विराधाभासी और विसंगतिपूर्ण हैं। इसी रिपोर्ट में रवि भवन की उपस्थिति पंजिका में दर्ज प्रविष्टियों में हेरफेर की बात की गई थी। रजिस्टर के ये पन्ने पत्रिका को सूचना के अध्रिकार के तहत किए गए एक आवेदन के जवाब में पीडब्लूडी विभाग द्वारा मुहैया कराए गए थे। आवेदन नागपुर के वकील सूरज लोलागे ने किया था(लोलागे ने बंबई हाइकोर्ट की नागपुर खंडपीठ में लोया के मामले में एक जनहित याचिका भी दाखिल की है)।रिपोर्ट रजिस्टर में की गई तीन रिक्त प्रविष्टियों की ओर ध्यान दिलाती है। ये तीनों प्रविष्टियां जस्टिस लोया से जुड़ी दो प्रविष्टियों से ठीक पहले की गई थीं। इनमें आने और जाने की तारीख में 2014 की जगह 2017 की तारीख पड़ी है। रिपोर्ट कहती है कि इस प्रविष्टि में अतिथि का नाम ”बाबासाहेब आंबेडकर मिलिंद…” है जिसमें आखिरी शब्द पढ़ा नहीं जा सका। उस वक्त रिपोर्टर यह अंदाजा नहीं लगा सके कि आखिर यह प्रविष्टि किसकी है।
यही वह एंट्री है जिस पर मिलिंद पखाले ने दावा ठोका है कि यह उनकी है और इसे छेड़ा गया है। पखाले पुलिस शिकायत में कहते हैं कि उन्होंने 30 नवंबर 2014 को यह एंट्री अपने हाथ से पूर्व सांसद और बीआर आंबेडकर के पौत्र प्रकाश आंबेडकर के लिए की थी जिन्हें लोग प्यार से से बालासाहेब आंबेडकर कह कर पुकारते हैं। पखाले के मुताबिक प्रकाश आंबेडकर जब नागपुर में होते हैं तो रवि भवन में ही ठहरते हैं।
पुलिस में की गई शिकायत कहती है, ''मैंने रवि भवन में 30-11-2014 को हुई जघन्य घटना के बारे में अकसर सुना है। उसी दिन यानी 30-11-2014 को मैंने अपने सांसद श्री बालासाहेब आंबेडकर के लिए गेस्टहाउस के रजिस्टर पर एक कमरा पंजीकृत करवाया था। माननीय बालासाहेब आंबेडकर जब 30-11-2014 को रवि भवन पहुंचे, तब मैंने खुद अपने हाथों से कमरा उनके नाम से दर्ज किया।'' पखाले कहते हैं कि रजिस्टर के प्रासंगिक पन्नों की जो प्रति उन्होंने हासिल की है, उसमें ''ऐसा लगता है कि रजिस्टर में मेरे पंजीकरण के अंतर्गत चेक-इन टाइम 30-11-2017 को 1.38 पीएम दर्ज किया गया है और चेक-आउट टाइम 30-11-2017 दर्ज है। मैंने गेस्टहाउस के रजिस्टर में 30-11-2014 को पंजीकरण किया था, 30-11-2017 को नहीं। 30-11-2017 वाली दर्ज तारीख (30.11.2017 के रूप में लिखी गई) मेरी लिखावट में नहीं है।'' पखाले यह दावा नहीं करते कि तारीख के अलावा इस प्रविष्टि का कोई और हिस्सा छेड़ा गया है।
द कारवां ने जब पखाले से संपर्क किया, तो पुलिस में दी गई शिकायत के हर बिंदु पर कायम रहे। पखाले ने द कारवां से कहा, ”यह कल्पना ही नहीं की जा सकती कि कोई 2014 में तारीख लिखते वक्त [20]17 डाले।” द कारवां ने प्रकाश आंबेडकर से भी संपर्क किया, जिन्होंने खुद इस बात को माना कि वे नागपुर में होते हैं तो रवि भवन में ही रुकते हैं और उनके ठहरने और बुकिंग व पंजीकरण आदि का इंतज़ाम पखाले आदि उनके सहयोगी करते हैं।
इस रजिस्टर में 2014 में ही तीन साल बाद की तारीख में प्रविष्टि किए जाने की बात अस्पष्ट है। यह तकरीबन असंभावित है कि 2014 में कोई व्यक्ति 2017 की तारीख सही मंशा से दर्ज करेगा। इस मामले में ऐसी गड़बड़ी दो बार हुई है- चेक-इन और चेक-आउट की तारीख में। अगर तुलना करें तो हम पाते हैं कि आज की तारीख में कोई दो बार किसी होटल या गेस्टहाउस के रजिस्टर में 2020 की तारीख गलती से डाल दे, इसकी गुंजाइश बेहद कम है।
रजिस्टर में पाई गई और गड़बडि़यां दस्तावेजों के साथ संभावित हेरफेर पर सवाल खड़ा करती हैं। सूचना के अधिकार के तहत किए गए एक आवेदन के जवाब में रवि भवन का संचालन करने वाले महाराष्ट्र सरकार के लोक निर्माण विभाग ने रजिस्टर के 26 पन्नों की प्रति मुहैया करायी। इन पन्नों में एक भी रिक्त प्रविष्टि नहीं है और ऐसे किसी भी रजिस्टर से ऐसी ही उम्मीद की जानी चाहिए क्योंकि होटलों और अतिथि गृहों के ऐसे रजिस्टरों में कमरे की बुकिंग ही दर्ज होती है, कमरा बुक न होने की सूचना नहीं होती है। इकलौती रिक्त प्रविष्टि कुल 26 पन्नों में अकेले पृष्ठ 45 और 46 पर दिखती है, जिनमें 45 पर पखाले की प्रविष्टि दर्ज है और 46 पर उन दो सुइट की जहां लोया नागपुर आकर ठहरे रहे होंगे जब वे अपने सहकर्मियों के साथ एक साथी जज की बेटी की शादी में हिस्सा लेने आए थे।
ये दोनों सुइट 10 और 20 हैं, जो क्रमश: एस कुलकर्णी और श्रीमती फनसालकर-जोशी के नाम से पंजीकृत थे। रजिस्टर में कुलकर्णी की पहचान बॉम्बे हाइकोर्ट के रजिस्ट्रार के तौर पर की गई है। नवंबर 2014 में श्रीकांत कुलकर्णी नाम के एक जज इस पद पर थे। फनसालकर-जोशी की पहचान रजिस्टर के मुताबिक बॉम्बे हाइकोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल के तौर पर की गई है। आज शालिनी शशांक फनसालकर जोशी नाम की एक जज बॉम्बे हाइकोर्ट में तैनात हैं। कुलकर्णी के नाम की प्रविष्टि के अंतर्गत आगमन की तारीख ''30-11-14'' यानी 30 नवंबर 2014 दर्ज है। इस प्रविष्टि को करीब से देखने पर ऐसा लगता है कि इसे पहले ''30-12-2014'' यानी 30 दिसंबर 2014 लिखा गया था, मतलब लोया के यहां प्रवास और उनकी मौत के पूरे एक महीने बाद की तारीख। उसके बाद ''12'' के ऊपर दोबारा लिखकर उसे ''11'' बनाया गया।