4 अक्टूबर को शाम 4.30 बजे घरेलू कामगार कुसुम को 17 साल की दत्तक बेटी का फोन आया कि जहां वह काम करती है वहां की “आंटी (द्रोपदी बंसल) सीढ़ियों से नीचे गई हैं और दरवाजा लगा लिया है. उन्होंने मुझे ड्राइवर के कमरे में जा कर सोने के लिए कहा है. मैं वहां नहीं जाना चाहती. मैं 2 घंटे से सीढ़ियों पर ही बैठी हूं. मुझे अपने साथ ले जाइए. मुझे यहां रहना अच्छा नहीं लग रहा.” मौत से पहले कुसुम की दत्तक बेटी के ये आखिरी शब्द थे.
पुलिस ने उस युवती की मौत को आत्महत्या बताया है जबकि अब तक फॉरेंसिक जांच का परिणाम नहीं आया है. पुलिस ने इस मामले में किसी तरह की गड़बड़ी या गलत कृत्य से इनकार भी किया है. हम लोग बंसल के घर गए लेकिन हमें द्रौपदी से मिलने नहीं दिया गया. हमने रेनू मित्तल से भी बात करने की कोशिश की लेकिन उन्होंने हमारे सवालों का जवाब नहीं दिया.
कुसुम और उनका परिवार निषाद समाज से आते हैं. परिवार ने स्थानीय एमएलए और दिल्ली महिला आयोग से भी मदद की गुहार लगाई लेकिन कोई लाभ नहीं हुआ. इन अवरोधों के बावजूद कुसुम और उनके पड़ोसी बेटी की मौत की जांच करवाने के लिए प्रतिबद्ध हैं. 18 अक्टूबर को कुसुम ने राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के समक्ष इस मामले की शिकायत दर्ज कराई है.
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