The Caravan Baatcheet is a Hindi talk show featuring engaging discussions on politics, culture and society. Every fortnight, our host Vishnu Sharma will be in conversation with journalists, writers, experts and observers on pivotal issues that matter to you.
In this episode of The Caravan Baatcheet, host Vishnu Sharma talks to Jagdeep Chhokar, a founding member of the Association for Democratic Reforms, to understand just how democratic elections are in India. Chhokar also discusses the impact of costly elections on Indian democracy, saying that the elections have become so expensive that it is almost impossible for the common citizens to contest the elections unless they are extremely wealthy.
कारवां बातचीत हिंदी टॉक शो है जिसमें राजनीति, संस्कृति और समाज से जुड़े महत्वपूर्ण मुद्दों पर होस्ट विष्णु शर्मा हर पखवाड़े पत्रकारों, लेखकों, विशेषज्ञों और संपादकों से बातचीत करते हैं.
कारवां बातचीत के इस एपिसोड में होस्ट विष्णु शर्मा ने Association for Democratic Reforms के संस्थापक सदस्य जगदीप छोकर से महंगे होते चुनावों का भारतीय लोकतंत्र पर पड़ रहे असर पर बात की.
छोकर ने बताया कि चुनाव इतने महंगे हो चुके हैं कि आम आदमी का चुनाव लड़ पाना लगभग नामुमकिन है क्योंकि जब तक आप धनाड्य नहीं हैं तब तक आप चुनावों में खड़े नहीं हो सकते. उनका कहना है राजनीतिक दलों का देश की चुनाव प्रक्रिया पर कब्जा हो गया है. कारवां बातचीत में चुनाव से संबंधित कुछ जरूरी आंकड़ों पर भी चर्चा की गई, मसलन :
1. पिछले सालों में चुनाव के प्रति लोगों की बढ़ती जागरुकता के बावजूद चुनाव उम्मीदवारों की संख्या में न के बराबर वृद्धि हुई है. पिछले कई चुनावों में तो यह संख्या घटी ही है. 1996 में 13952 उम्मीदवारों ने चुनाव लड़ा था जबकि 2014 में 8251 ने और 2019 में 8040. इस बीच हुए चुनावों में संख्या और भी कम थी लेकिन उसका एक कारण मध्यावधि चुनाव थे जिसने उम्मीदवारों पर खर्च का बोझ बढ़ा दिया था.
2. लोकसभा में कुल 543 सीटें हैं. हाल की संसद में 475 करोड़पति सांसद हैं.
3. महंगे चुनाव ने भारतीय चुनाव में कुछ चुनिंदा पार्टियों का एकाधिकार कायम कर दिया है. मसलन, आजादी के बाद से हुए अब तक के हुए लोकसभा चुनावों में केवल 0.49 प्रतिशत निर्दलीय उम्मीदवार ही जीते हैं. 1952 में हुए पहले लोकसभा चुनाव में 36 निर्दलीय उम्मीदवार चुनाव जीते थे और 1957 में 42. इसी प्रकार 1962 में 20, 1967 में 35, 1971 में 14 और 1989 में 12 निर्दलीय उम्मीदवार लोकसभा चुनाव जीते थे. इसके बाद हुए 10 चुनावों में निर्दलीय उम्मीदवारों की संख्या दहाई का आंकड़ा नहीं छू पाई है.