Prime Minister Narendra Modi has made India’s presidency of the G20, like all other events in the country, a means for his own propaganda.
In this episode of The Caravan Baatcheet, host Vishnu Sharma talks to Sushant Singh, senior journalist and consulting editor of The Caravan, and lecturer at Yale University about how the G20 summit has become a branding exercise, that must always be about Modi and peddle the narrative of India as a vishwaguru. Singh says that despite the saturated publicity, the summit is not going to improve Modi's image on the international stage, due to various geopolitical factors. He adds that India has failed to resolve the conflicts among the G20 countries, an expectation from the host country.
The Caravan Baatcheet is a Hindi talk show featuring engaging discussions on politics, culture and society. Every fortnight, our host Vishnu Sharma will be in conversation with journalists, writers, experts and observers on pivotal issues that matter to you.
Read Singh’s essay on how the G20 summit is not the crowning glory Modi hoped for.
9-10 सितंबर को राजधानी दिल्ली में जी20 शिखर सम्मेलन होने जा रहा है. इस शिखर सम्मेलन को, भारत से जुड़े अन्य आयोजन की तरह, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने स्वयं अपने प्रचार का जरिया बना दिया है जबकि दुनिया और देश के जरूरी मुद्दों पर गंभीर फैसले होते नहीं दिखाई दे रहे हैं. चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग और रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के दिल्ली शिखर सम्मेलन में शामिल न होने से भी इसकी गरिमा कम हुई है.
कारवां बातचीत के इस एपिसोड में वरिष्ठ पत्रकार, कारवां के कंसल्टिंग एडिटर और अमेरिका के येल विश्वविद्यालय के लेक्चरर सुशांत सिंह से हमने उपरोक्त स्थिति पर चर्चा की. सुशांत का कहना है कि तमाम प्रचार के बावजूद अंतरराष्ट्रीय मंच पर मोदी की छवि में कोई सुधार नहीं करने जा रहा है दिल्ली में आयोजित हो रहा शिखर सम्मेलन. उनका कहना है कि जी20 देशों के आपसी अंतरविरोधों को हल करने में भारत विफल रहा है जबकि प्रेसिडेंट देश होने के नाते उससे इसकी उम्मीद की जा रही थी.
कारवां बातचीत हिंदी टॉक शो है जिसमें राजनीति, संस्कृति और समाज से जुड़े महत्वपूर्ण मुद्दों पर होस्ट विष्णु शर्मा हर पखवाड़े पत्रकारों, लेखकों, विशेषज्ञों और संपादकों से बातचीत करते हैं.