शब्द संसार

भारतीय सड़कों की रंगीन भाषा

कोलकाता के बोबाज़ार में सेंको ज्वेलरी हाउस के बाहर लगा नियॉन साइन अलग ही दिखाई देता है. स्टाइल भले ही पारंपरिक हो, लेकिन इन बांग्ला अक्षरों को ख़ास सावधानी से लगाया गया है. इन्हें लंबाई में लगाना मुश्किल होता है क्योंकि स्वर और दूसरे निशान अक्षरों के ऊपर और नीचे दोनों तरफ़ लगते हैं.
कोलकाता के बोबाज़ार में सेंको ज्वेलरी हाउस के बाहर लगा नियॉन साइन अलग ही दिखाई देता है. स्टाइल भले ही पारंपरिक हो, लेकिन इन बांग्ला अक्षरों को ख़ास सावधानी से लगाया गया है. इन्हें लंबाई में लगाना मुश्किल होता है क्योंकि स्वर और दूसरे निशान अक्षरों के ऊपर और नीचे दोनों तरफ़ लगते हैं.

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शहर में आप जिधर भी देखें, शब्द ही शब्द हैं. शब्द जो बताते हैं कि आप कहां हैं और आपको कहां जाना है, क्या ख़रीदना है और क्या खाना है. इन शब्दों के ग्राफ़िक आस-पास के इलाके के बारे में जानकारी देते हैं. लेकिन ये शब्द कौन लिखता है? इस सवाल के जवाब की खोज में मेरी मुलाक़ात हुई दिल्ली के एक साइन पेंटर मोहनलाल सिहानी से, जो बिना शोर-शराबे के अपनी कला से अपने इलाकों की सूरत बदल रहे हैं.

बाएं: इक़बाल आर्ट्स द्वारा बनाया गया यह साइन दिखाता है कि किसी साइन को बेहतर बनाने के लिए टाइपोग्राफ़िक स्टाइल और उनकी रचना सही तरह से करना कितना ज़रूरी हैं. दाएं: बेंगलुरु में इस तरह के लकड़ी के साइन आम हैं. हालांकि कन्नड़ और लैटिन टेक्स्ट में स्टाइल में समानता नहीं है, लेकिन इसमें एक ही मटीरियल को सही तरह से लाइन में बैठा कर मल्टी-स्क्रिप्ट साइन को एक जैसा बनाया गया है.
मुश्ताक अहमद चेन्नई के ट्रिप्लिकेन में तमिल भाषा में साइन पेंट कर रहे हैं.

इस काम में लगे व्यक्ति को शहरों को विभिन्न साइनों से भरने, ऐतिहासिक और महत्वपूर्ण इमारतों के वास्तुशिल्प और यहां तक ​​कि छपाई के विकल्पों का जानकार होना होता है. रोज़मर्रा के संकेतों, जैसे कि दवा की दुकान और खाने-पीने की दुकानों पर लगे संकेतों पर शायद ही कभी गौर किया जाता है. इसी तरह, स्थानीय संकेतों का मान जानने के लिए, हमें उन लोगों को समझना होगा जो उन्हें डिज़ाइन करते और बनाते हैं.

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