31000 करोड़ के घोटाले से बीजेपी को मिला हिस्सा : कोबरापोस्ट

29 जनवरी 2019 को कोबरापोस्ट के एडिटर अनिरुद्ध बहल ने दिल्ली में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस की. इसमें उन्होंने अपनी ताजा रिपोर्ट को सबके साथ साझा किया. रिपोर्ट का नाम “द एनाटॉमी ऑफ इंडियास बिगेस्ट स्कैम” है. कारवां/ शाहिद तांत्रे

मुंबई स्थित दीवान हाउसिंग फाइनेंस कॉर्पोरेशन लिमिटेड (डीएचएफसीएल) से संबद्ध रियल स्टेट कंपनियों का एक समूह खुले तौर पर भारतीय जनता पार्टी को चंदा देते रहा है. ये आरोप खोजी-न्यूज वेबसाइट कोबरा पोस्ट द्वारा लगाए गए हैं. रिपोर्ट में आरोप है कि डीएचएफसीएल के साथ काम करने वाली कंपनियां - आरके डब्ल्यू डेवलपर्स, स्किल रिलटर्स और दर्शन डेवलपर्स- “शेल कंपनियांं और संदिग्ध कंपनियां” हैं और इन्होंने 31000 करोड़ का घोटाला किया है. कोबरापोस्ट ने ये दावा भी किया है कि 2014 और 2017 के बीच इन कंपनियों ने कथित तौर पर बीजेपी को 20 करोड़ का चंदा दिया है. कोबरापोस्ट ने इसे साझा करने के लिए 29 जनवरी को दिल्ली में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस की. इस रिपोर्ट का नाम “द एनाटॉमी ऑफ इंडियास बिगेस्ट स्कैम” है. रिपोर्ट साझा करने में इसके एडिटर अनिरुद्ध बहल, पूर्व बीजेपी नेता यशवंत सिन्हा, पत्रकार जोसी जोसेफ, परांजय गुहा ठाकुरता और वकील प्रशांत भूषण मौजूद थे.

रिपोर्ट में प्लेसिड नोरोन्हा और भगवत शर्मा के नामों का जिक्र है. ये दोनों डीएचएफसीएल के प्रमोटर्स हैं और इनका नाम आरकेडब्ल्यू के प्रमोटर्स के तौर पर भी लिस्टेड है. डीएचएफसीएल के मुख्य प्रमोटर्स कपिल वाधवां, अरुणा वाधवां और धीरज वाधवां हैं. नोरोन्हा और धीरज आरकेडब्ल्यू डेवलपर्स और दर्शन डेवलपर्स के भी डायरेक्टर हैं.

कोबरापोस्ट की रिपोर्ट बताती है कि बीजेपी ने चुनाव आयोग को अपनी घोषणा में बताया है कि आरकेडब्ल्यू, दर्शन और स्किल रिलेटर्स ने पार्टी को 2014-17 के बीच 20 करोड़ रुपए का चंदा दिया है. जो कंपनी कानून 2013 के अनुच्छेद 182 का उल्लंघन है. अनुच्छेद 182, कंपनियों द्वारा राजनीतिक पार्टियों को दिए जाने वाले चंदे के निषेध और प्रतिबंध से जुड़ा है. इसके मुताबिक किसी कंपनी ने पिछले तीन वित्त वर्षों में जो कमाई की है उससे हुए विशुद्ध फायदे का 7.5 प्रतिशत ही चंदे के रूप में दे सकती है. कोबरापोस्ट की रिपोर्ट के मुताबिक आरकेडब्ल्यू डेवलपर्स ने बीजेपी के 2014-15 में 10 करोड़ की रकम दी. ये रकम कंपनी को 2012-13 में हुए 25 लाख के घाटे के बावजूद दी गई. वहीं, कंपनी ने अगले तीन सालों में महज 18 लाख का शुद्ध मुनाफा दिखाया था.

कोबरापोस्ट का ये भी दावा है कि स्किल रिलेटर्स ने 2014-15 में बीजेपी को 2 करोड़ दिए हैं, ये रकम बावजूद इसके दी गई है कि उस साल कंपनी ने महज 27000 का फायदा दिखाया था जिसका औसत 4500 के करीब बैठता है. दर्शन डेवलपर्स ने 2016-17 में फिर से 7.5 करोड़ रुपए का दान दिया. इसमें कंपनी कानून का उल्लंघन हुआ. कंपनी ने 2013-14 में 5.13 लाख और 2014-15 में 4650 रुपए के घाटे दिखाए थे. हालांकि, 2016-17 में इसे 2.83 लाख रुपए का फायदा हुआ था. कोबरापोस्ट का दावा है कि इसने जो दान दिया है वो साफ तौर पर कंपनी कानून का उल्लंघन करता है.

अनुच्छेद 182 के मुताबिक हर कंपनी को “इसके फायदे और घाटे के अलावा ये साफ करना होता है कि इसने किसी पार्टी को कितना चंदा दिया है” और इसे “कुल रकम की डिटेल और चंदा पाने वाली पार्टी का नाम” भी बताना होता है. कोबरापोस्ट का दावा है कि तीनों में से किसी कंपनी ने अपने बैलेंस शीट में चंदा की जानकारी नहीं दी है. कंपनी कानून का उल्लंघन करने पर जितना चंदा दिया गया है जुर्माने के तौर पर उसका पांच गुना वसूला जा सकता है. इसका उल्लंघन करने वाला कंपनी का हर अधिकारी छह महीने की जेल की सजा भी काट सकता है.

डीएचएफसीएल नेशनल हाउसिंग बैंक के साथ रजिस्टर्ड है. ये पूरी तरह से रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया की सहायक है, जो भारतीय के हाउसिंग फाइनेंस कंपनियों को रेग्युलेट करती है. ये ऐसी कंपनियां होती हैं जो मुख्य तौर पर उनको लोन देती हैं जो झुग्गियों का पुनर्वास, हाउसिंग डेवलपमेंट और बाकी के रियल स्टेट का धंधा करते हैं. कंपनी 1984 में अस्तित्व में आई और 2017-18 में इसका नेट वर्थ यानी कुल मूल्य 8,795 रुपए का था. कोबरापोस्ट का दावा है कि कंपनी ने अपने प्रमोटर्स के मालिकाना हक वाली कंपनियों को इस रकम से 10 गुणा ज्यादा बड़ी रकम लोन में दे दी. ये रकम कंपनी ने खुद लोन के तौर पर जुटाई थी.

डीएचएफसीएल और इसके प्राथमिक प्रमोटरों ने कथित तौर पर कई शेल कंपनिया बनाईं जिनकी अधिकृत पूंजी एक लाख तक थी. कोबरापोस्ट की जांच की जद में ऐसी 45 कंपनियां आईं जिन्हें 14282 करोड़ का लोन दिया गया है. इसमें 10493 करोड़ का ऐसा लोन भी शामिल है जो सिक्योर्ड नहीं है. इसे डीएचएफसीएल ने 34 शेल कंपनियों को दिया है जो वाधवां ग्रुप से जुड़ी हैं. बाकी 11 कंपनियां सहारा ग्रुप का हिस्सा हैं.

कोबरापोस्ट के मुताबिक इन कंपनियों की मेल आईडी एक है, वहीं पंजीकृत पता भी एक ही है और डायरेक्टरों की शुरुआती लिस्ट में एक जैसे नाम हैं. कई जगहों पर फाइनेंशियल ऑडिटर्स भी एक हैं. रिपोर्ट के मुताबिक, बावजूद इसके डीएचएफसीएल ने बिना किसी सिक्योरिटी के इन कंपनियों को लोन की बड़ी रकम दी है. डीएचएफसीएल के प्रमोटर्स कपिल और धीरज कंपनी के फाइनेंस कमेटी के सदस्य भी हैं. ये कमेटी ही 200 करोड़ से ऊपर के लोन जारी करती है. दावा ये भी है कि इन दो प्रमोटरों ने अपनी विशेष स्थिति का फायदा इसे तय करने में उठाया है कि वो जिस कंपनी को चाहें उसे ही लोन मिले.

ये पैसे ज्यादातर मौकों पर एक किश्त में दिए गए हैं. जो उस नियम का उल्लंघन है जिसके तहत किसी प्रोजेक्ट में हो रहे काम के विकास के हिसाब से किश्तों में पैसे दिए जाते हैं. रिपोर्ट का दावा है कि कई कंपनियों ने बदले में इस लोन का इस्तेमाल डीएचएफसीएल के मालिकाना हक वाली कंपनियों के शेयर खरीदने में किया है. कोबरापोस्ट का दावा है कि उसके पास ऐसे दस्तावेज हैं जिससे पता चलता है कि लोन के सहारे इसे लेने वालों ने देश विदेश में संपत्ति भी खरीदी है. ज्यादातर शेल कंपनियों ने ये जानकारी छुपाई है कि उन्हें लोन देने वाला कौन (डीएचएफसीएल) है. लोन देने और इसे लौटाने से जुड़ी जानकारी भी नदारद है.

रिपोर्ट में आरोप है कि इस घोटाले को छुपाने के लिए महाराष्ट्र में झुग्गी विकास कार्यक्रम को फंड करने जैसी बातों का सहारा लिया गया . ऐसा करने वाली कंपनियों में वामिका रियल स्टेट और पृथ्वी रेसिडेंसी के नाम शामिल हैं. दोनों को ही कथित तौर पर 485-485 करोड़ की रकम मिली है. कनिथा रियल स्टेट को 475 करोड़ और रिप डेवलपर्स को कथित तौर पर 725 करोड़ मिले हैं. रिपोर्ट का दावा है कि महाराष्ट्र के झुग्गी पुनर्वास प्राधिकरण के पास इनमें से किसी कंपनी ने अपने प्रोजक्ट का जिक्र नहीं किया है.

कोबरापोस्ट की रिपोर्ट का दावा है कि डीएचएफसीएल ने शेल कंपनियों को गुजरात और कर्नाटक के विधानसभा चुनावों से ठीक पहले 1,160 करोड़ रुपए की ये रकम दी है. रिपोर्ट का दावा है कि इनमें से ज्यादातर प्रोजेक्ट्स या तो रोक दिए गए हैं या स्थगित कर दिए गए हैं और लोन एनपीए का रूप ले रहे हैं.

रिपोर्ट का दावा है कि अपने संदिग्ध लेन-देन से डीएचएफसीएल और वाधवां ग्रुप शेल कंपनियों ने सेबी की जानकारी साझा करने से जुड़े नियम, जोखिम-प्रबंधन दिशा-निर्देश, एनएचबी के निर्देश, कॉरपोरेट गवर्नेंस के मानदंडों और फेमा का उल्लंघन किया है. अगर डीएचएफसीएल “बैड लोन” का हवाला देकर डूब जाती है तो वो पब्लिक और प्राइवेट सेक्टर बैंक मुश्किल में आ जाएंगे जिन्होंने इसे लोन दिए हैं. ऐसा इसलिए होगा क्योंकि छोटी शेल कंपनियों के पास ना तो इतने पैसे होंगे और ना ही ऐसी संप्त्ति जिसे गारंटी के तौर पर दिखाया जा सके. उनके किसी एसेट पर भी लोन वापसी तक रोक नहीं लगाई जा सकेगी क्योंकि उनके पास ऐसा कुछ होगा ही नहीं.