धीरूभाई अंबानी अस्पताल पर अनियमितता का आरोप लगाने वाले डॉक्टर ने कहा, मिला समझौते का प्रस्ताव; सेबी और कारपोरेट मंत्रालय ने रोकी शिकायत

1998 में रिलायंस समूह ने महाराष्ट्र के रायगढ़ जिले में मुंबई-पुणे राजमार्ग पर धीरूभाई अंबानी अस्पताल के नाम से अपना पहला अस्पताल बनाया. 2014 से रिलायंस फाउंडेशन मैनेजमेंट सर्विसेज प्राइवेट लिमिटेड के माध्यम से अस्पताल को रिलायंस फाउंडेशन द्वारा वित्त पोषित किया गया. शैलेश अंद्रादे / रॉयटर्स

महाराष्ट्र के रायगढ़ जिले के धीरूभाई अंबानी अस्पताल (डीएएच) के पूर्व चिकित्सा निदेशक डॉ. संजय ठाकुर से रिलायंस इंडस्ट्रीज लिमिटेड (आरआईएल) के प्रतिनिधियों ने नवंबर 2020 की शुरुआत में संपर्क किया और अस्पताल के खिलाफ अवैध बर्खास्तगी के मामला में समझौते की पेशकश की. ठाकुर को जून 2017 में अस्पताल ने निकाल दिया था. इससे पहले उन्होंने आरआईएल की एथिक्स कमेटी से डीएएच में वित्तीय अनियमितताओं, कुप्रबंधन और कारपोरेट गवर्नेंस विफलता के विभिन्न मामलों की शिकायत की थी. ठाकुर की शिकायतों की प्रकृति के चलते उन्हें व्हिसल ब्लोअर माना जाएगा. बर्खास्तगी के बाद ठाकुर ने भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (सेबी) और राज्य तथा केंद्र सरकार के अधिकारियों को अपनी शिकायतों से अवगत कराया. ठाकुर ने मुझे बताया कि 2020 के अंत में आरआईएल से मिले समझौता प्रस्ताव में उन्हें अपनी सभी शिकायतें वापस लेने के बदले लालच दिया गया.

ठाकुर जनवरी 2015 से 26 जून 2017 तक डीएएच के चिकित्सा निदेशक थे. पहली बार उन्होंने 19 जनवरी 2017 को आरआईएल की एथिक्स कमेटी को ईमेल किया था. इस ईमेल में डीएएच में मरम्मत एवं खरीद में देरी और बढ़े-चढ़े बिलों जैसी अकेन अनियमितताओं और धन के दुरुपयोग की शिकायत की थी. अगले कुछ महीनों में उन्होंने मुकेश अंबानी सहित वरिष्ठ आरआईएल अधिकारियों को अपनी शिकायतें भेजीं. शुरूआत में ठाकुर की शिकायतों पर कोई ध्यान नहीं दिया गया और फिर कंपनी ने रातोंरात ठाकुर का तबादला कर दिया. जब ठाकुर ने तबादले के आदेशों में कानूनी बाधाओं की तरफ इशारा किया और आदेश मानने से इनकार कर दिया तो उन्हें बर्खास्त कर दिया गया. ठाकुर की पत्नी विद्या उसी अस्पलातल के एचआईवी एड्स से पीड़ित लोगों के एंटी रेट्रो वायरल (एआरटी) केंद्र में वरिष्ठ चिकित्सा अधिकारी थीं. ठाकुर की बर्खास्तगी के तुरंत बाद उन्हें भी नौकरी से निकाल दिया गया.

इस बात के पर्याप्त सबूत हैं कि ठाकुर ने डीएएच के कामकाज पर जो आरोप लगाए थे वे निराधार नहीं हैं. 2017 से 2020 तक महाराष्ट्र के स्वास्थ्य अधिकारियों की निरीक्षण रिपोर्टें और पत्र और इस अवधि की मीडिया रिपोर्टें इस बात की पुष्टि करती हैं कि अस्पताल में उपकरणों एवं कर्मचारियों की कमी और साथ ही इलाज के लिए अधिक दाम वसूलाना जैसी अनियमितताएं ठाकुर की बर्खास्तगी के बाद भी डीएएच में जरी थीं.

जुलाई 2017 से ठाकुर ने सेबी, वित्त मंत्रालय, कारपोरेट मामलों के मंत्रालय (एमसीए), महाराष्ट्र के स्वास्थ्य विभाग, प्रधानमंत्री कार्यालय और राष्ट्रपति सचिवालय से संपर्क किया. प्रत्येक को लिखी अपनी शिकायतों में उन्होंने जारी गलत कामों की एक पूरी सूची संलग्न की थी. इनमें सतर्कता तंत्र की विफलता, आवाज उठाने वाले को प्रता​ड़ित करना, व्हिसल ब्लोअर की शिकायतों के निवारण में विफलता और आरआईएल, रिलायंस हॉस्पिटल मैनेजमेंट सर्विसेज प्राइवेट लिमिटेड, जो डीएएच का संचालन करती है, और रिलायंस फाउंडेशन द्वारा सीएसआर अनियमितताएं शामिल हैं. फाउंडेशन आरआईएल की सीएसआर परियोजनाओं का क्रियान्वयन करता है. इसके बाद जुलाई 2018 में ठाकुर ने मुंबई सिटी सिविल कोर्ट में अपनी बर्खास्तगी को चुनौती दी.

ठाकुर ने कहा कि दो साल से आरआईएल के खिलाफ उनकी शिकायतों को सेबी और एमसीए लगातार खारिज करते रहे हैं. 2017 से सेबी ठाकुर की कम से कम दस शिकायतों को बंद कर चुका है, जबकि सीएसआर से संबंधित शिकायतों को कारपोरेट मंत्रालय को भेज दिया गया है. दूसरी ओर ठाकुर और एमसीए के बीच हुए पत्राचार से पता चलता है कि 2018 में एमसीए द्वारा शुरू की गई जांच आगे नहीं बढ़ी है, जबकि अक्टूबर 2020 में शुरू हुई एक और जांच अभी भी जारी है. दस्तावेजों से पता चलता है कि सेबी और एमसीए दोनों ने ठाकुर की शिकायतों पर बिना किसी स्वतंत्र जांच के आरआईएल के जवाब को स्वीकार कर लिया और उसे ठाकुर को भेज दिया. यह भारत की सबसे बड़ी सार्वजनिक सूचीबद्ध कंपनियों में से एक के खिलाफ सीएसआर संबंधी शिकायतों और व्हिसल ब्लोअर के प्रावधानों के अनुपालन में ढिलाई की ओर इशारा करता है. एमसीए की नवीनतम जांच के एक महीने बाद आरएचएमएसपीएल के पूर्व निदेशक श्रीनिवास शानबाग ने समझौते की पेशकश के लिए बातचीत शुरू की.

सभी शिकायतें वापस लेने और मामले को निपटाने के लिए “शानबाग नवंबर में मेरे पास पहुंचे. उन्होंने हम दोनों को 50 लाख रुपए की पेशकश की,'' ठाकुर ने मुझे बताया. कारवां के पास इस और आगे की बातचीत के स्क्रीनशॉट और ऑडियो रिकॉर्डिंग हैं. शानबाग ने ठाकुर को लिखा था कि वह सेवानिवृत्त हो चुके हैं और इसको लेकर बहुत परेशान हैं कि वह “उनकी समस्या” का कोई सौहार्दपूर्ण समाधान नहीं निकाल सके. शानबाग ने उन्हें मिलने के लिए कहा. नवंबर के अंत में वह ठाकुर के वकील और एक्टिविस्ट अ​भिजीत मोरे और रिलायंस के प्रतिनिधि अर्जुन वी बेटकेकर की उपस्थिति में शानबाग से मिले. मोरे ने मुझसे इस बात की पुष्टि की कि ठाकुर को "हर मामले पर समझौता करने" के लिए पैसे की पेशकश की गई थी. ठाकुर ने कहा कि उन्होंने सेबी और अन्य प्राधिकरणों से अपनी शिकायतों को वापस लेने से इनकार कर दिया लेकिन कथित अवैध बर्खास्तगी को लेकर मुआवजा की चर्चा को आगे बढ़ा रहे हैं.

मुंबई-पुणे राजमार्ग में स्थित डीएएच की शुरुआत अक्टूबर 1998 में हुई थी और इसे अंबानी समूह के दिवंगत मालिक धीरूभाई अंबानी ने शुरू किया था. यह क्षेत्र के लगभग 50 निकटवर्ती गांवों के लोगों, आरआईएल के पातालगंगा निर्माण विभाग के कर्मचारियों और मुंबई-पुणे राजमार्ग पर दुर्घटना के शिकार लोगों का इलाज करता है. पुणे मिरर में प्रकाशित हुई जुलाई 2017 की एक रिपोर्ट के अनुसार, स्थानीय निवासियों ने दावा किया कि "उन्होंने अपनी जमीन अस्पताल को दे दी थी जिसके तहत यह अनुबंध था कि यह जरूरतमंदों को रोजगार और मुफ्त चिकित्सा सुविधा प्रदान करेगा." एआरटी केंद्र आरआईएल, महाराष्ट्र एड्स नियंत्रण सोसायटी और राष्ट्रीय एड्स नियंत्रण संगठन एक सार्वजनिक-निजी भागीदारी के तहत काम करते हैं.

1998 में आरएचएमएसपीएल की स्थापना हुई और तभी से वह डीएएच का संचालन कर रहा है. यह रिलायंस समूह की विभिन्न कंपनियों, जैसे कि रिलायंस ग्रुप सपोर्ट सर्विसेज और रिलायंस पेट्रो डिस्ट्रीब्यूशन की तरह प्राइवेट लिमि​टेड कंपनी है. इसके प्रमोटर इसके शेयरधारक हैं.

2014 के बाद से आरआईएल की धारा 8 के तहत रिलायंस फाउंडेशन आरएएचएसपीएल के माध्यम से डीएएच को धन मुहैया करा रहा था. धारा 8 की कंपनी वह होती है जो कला, विज्ञान, खेल, शिक्षा, अनुसंधान, सामाजिक कल्याण, धर्म, दान और पर्यावरण की सुरक्षा जैसे क्षेत्रों को बढ़ावा देने के उद्देश्य से कंपनी अधिनियम 2013 के तहत पंजीकृत होती है. धारा 8 कंपनियां गैर-लाभकारी संस्थान हैं, जो लाभ या आय प्राप्त कर सकती हैं लेकिन इस कमाई का उपयोग केवल अपने विशिष्ट उद्देश्यों के लिए ही कर सकती हैं. कंपनी अधिनियम और 2014 के सीएसआर नियमों के अनुसार, निजी कंपनियां धारा 8 फर्म के माध्यम से अपना सीएसआर फंड खर्च कर सकती हैं. कंपनी की रिपोर्टों के अनुसार, आरआईएल रिलायंस फाउंडेशन को सीएसआर फंड ट्रांसफर कर रही थी. आरआईएल के पास 49.71 प्रतिशत की सार्वजनिक हिस्सेदारी है, जबकि राज्य के स्वामित्व वाले जीवन बीमा निगम के पास आरआईएल की कुल इक्विटी का 6 प्रतिशत है.

ठाकुर पहली बार 1998 में पूर्णकालिक चिकित्सक के रूप में डीएएच में शामिल हुए और जनवरी 2003 तक वहां सेवा की. अगले दशक में उन्होंने संयुक्त अरब अमीरात और ऑस्ट्रेलिया में काम किया. जनवरी 2015 में वह चिकित्सा निदेशक के रूप में फिर से डीएएच में शामिल हो गए. उनकी पत्नी विद्या भी नवंबर 2014 में डीएएच में नौकरी करने लगीं. वह भी क्लिनिक में बार-बार कर्मचारियों और सुविधाओं की कमी और दवाओं के वितरण में देरी सहित विभिन्न मुद्दों को उठाती रहीं थीं. 15 सितंबर 2017 को उन्हें डीएएच से निकाल दिया गया.

ठाकुर और आरआईएल अधिकारियों के बीच ईमेलों, साथ ही सेबी और एमसीए को दी गई कंपनी की प्रतिक्रियाएं बताती हैं कि 19 जनवरी 2017 को ईमेल से आरआईएल की एथिक्स कमेटी को ठाकुर ने सबसे पहले धनराशि की अनियमितता और कुप्रबंधन की रिपोर्ट की, जिसमें मरम्मत, खरीद और डीएएच के बढ़े-चढ़े बिल शामिल हैं. अगले दिन, उन्होंने फोन कर अपनी शिकायतों को दोहराया. उन्होंने मुझे बताया कि मार्च की शुरुआत में उन्होंने एथिक्स कमेटी और आरआईएल के समूह नियंत्रक लक्ष्मी दास वी. मर्चेंट को व्यक्तिगत रूप से अपनी शिकायतों से अवगत कराया था.

आरआईएल की आचार संहिता के अनुसार, एथिक्स कमेटी को "पूरी ईमानदारी के साथ वास्तविक या संदिग्ध प्रथाओं से संबंधित चिंताओं, जैसे कि आरआईएल पुस्तकों और रिकॉर्डों के साथ अनुचित छेड़छाड़, को देखते हुए" संरक्षित प्रकटीकरण और जांच की प्रक्रिया अपनानी चाहिए. शिकायतों और समाधान प्रक्रिया को संचालित करने के लिए आरआईएल की ऑडिट कमेटी द्वारा समिति को नामित किया जाता है. आरआईएल के सदस्यों के बोर्ड द्वारा गठित ऑडिट कमेटी और कारपोरेट सामाजिक जवाबदेहिता कमेटी दोनों का नेतृत्व आरआईएल के स्वतंत्र अध्यक्ष योगेंद्र पी त्रिवेदी कर रहे हैं. त्रिवेदी महाराष्ट्र में सत्तारूढ़ राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के पूर्व राज्यसभा सदस्य हैं.

एथिक्स कमेटी की अपनी आचार संहिता कहती है कि कि "व्हिसल ब्लोअर की पहचान और संरक्षित प्रकटीकरण को गोपनीय रखा जाए." समिति को अनिवार्य रूप से सेबी की लिस्टिंग बाध्यता और प्रकटीकरण विनियम 2015 का अनुपालन करना है. लिस्टिंग बाध्यता और प्रकटीकरण विनियम 2015 एक नियामक तंत्र है जो सभी सार्वजनिक-सूचीबद्ध संस्थाओं द्वारा सूचना के प्रकटीकरण को नियंत्रित करता है. नियम यह निर्धारित करते हैं कि किसी सूचीबद्ध कंपनी के पास गैरकानूनी या अनैतिक प्रथाओं के बारे में अपनी चिंताओं को संप्रेषित करने के लिए व्यक्तिगत कर्मचारियों सहित हितधारकों को सक्षम करने वाला एक प्रभावी व्हिसल ब्लोअर तंत्र होना चाहिए.

सेबी के साथ हुए ठाकुर के पत्रव्यवहार के अनुसार, ठाकुर द्वारा उठाई गई अनियमितताओं को देखने के बजाय एथिक्स कमेटी ने उन्हें 24 फरवरी 2017 को एक ईमेल के माध्यम से राजस्व बढ़ान के लिए 3 करोड़ रुपए के निवेश की एक योजना और एक बिजनेस मॉडल तैयार करने के लिए कहा. जब मैंने जनवरी 2021 में ठाकुर से बात की, तो उन्होंने कहा, "अगर मेरी शिकायतें ओछी हैं, जैसा कि वे दावा करते हैं तो वह इसका प्रस्ताव क्यों देते?" इसके अलावा, ठाकुर ने मुझे बताया कि उन्हें डर था कि व्हिसल ब्लोअर की शिकायत को संबोधित करने की प्रक्रिया की शुरुआत में ही समझौता कर लिया गया था क्योंकि एथिक्स कमेटी को अपनी शिकायतें भेजने के कुछ दिनों के भीतर ही शानबाग ने ईमेल से संपर्क किया और मुलाकात का प्रस्ताव दिया.

21 फरवरी को ठाकुर ने मुकेश और नीता अंबानी सहित आरआईएल के दो अन्य वरिष्ठ अधिकारियों को ईमेल लिखा. ठाकुर ने लिखा कि "वित्त, पैथोलॉजी, फार्मेसी, रेडियोलॉजी, विक्रेता संलग्नता और कर्मचारियों के कामकाज में गंभीर अनियमितताएं हैं." पत्र के लगभग एक पृष्ठ में इन अनियमितताओं का विवरण है, जैसे कि उन उपकरणो का वार्षिक रखरखाव लागत भुगतान किया जा रहा था जो गैर-कार्यात्मक थे और 18 साल पुरानी अल्ट्रा साउंड मशीन की मरम्मत तीन सालों से लंबित थी. पत्र का एक अन्य पृष्ठ इन गंभीर बाधाओं की स्थिति में अस्पताल द्वारा किए गए कार्यों को सूचीबद्ध करता है. उन्होंने यह भी लिखा कि "केपीएमजी द्वारा वित्त की लेखापरीक्षा ने कमियों की ओर इशारा किया था," लेकिन अंतरराष्ट्रीय ऑडिटिंग फर्म द्वारा उजागर किए गए मुद्दों को हल करने के लिए कोई कदम नहीं उठाया गया.

पत्र में यह भी उल्लेख किया गया है कि एक बेहतर-सुसज्जित प्रयोगशाला को दरकिनार करते हुए, बिना लाइसेंस की एक छोटी प्रयोगशाला के साथ अनुबंध करने के लिए उन पर दबाव डाला जा रहा है. ठाकुर ने मुझे बताया कि उन्होंने सरकार के माध्यम से इस मुद्दे को अलग से आगे बढ़ाने का फैसला किया. ठाकुर ने 9 जनवरी 2019 को महाराष्ट्र के श्रम और रोजगार विभाग में शिकायत दर्ज की. उस महीने, महाराष्ट्र के मुख्य सचिव के कार्यालय ने "आवश्यक कार्रवाई" के लिए श्रम सचिव को ठाकुर की शिकायत को अग्रेषित किया. राज्य के श्रम विभाग ने मामले पर अभी तक कोई कार्रवाई नहीं की है.

डीएएच में चल रही परेशानियों को मीडिया ने बड़े पैमाने पर कवर किया और ठाकुर को निकाल दिए जाने के बावजूद मीडिया में अस्पताल के कामकाज से संबंधित गंभीर मुद्दों की रिपोर्टें आती रहीं. इसी तरह राज्य सरकार की कई जांच रिपोर्टें और पत्राचार डीएएच की कमियों की तरफ इशारा करती हैं.

जुलाई 2017 में पुणे मिरर ने बताया कि अस्पताल में जरूरी सुविधाएं धूल खा रही हैं और आस-पास के गांवों के गरीब पृष्टभूमि के रोगियों का इलाज नहीं किया जा रहा है. मिरर ने उल्लेख किया कि आईसीयू इकाई को बंद कर दिया गया है और सारी मशीनरी और चिकित्सा उपकरणों का स्टोर रूम में ढेर लगा है. "कोई डॉक्टर नहीं है और आपातकालीन वार्ड में दो नर्सें हैं." स्थानीय लोगों ने अखबार को यह भी बताया कि हालांकि एआरटी केंद्र को सरकार से दवाओं के लिए फंड मिलाता है लेकिन फार्मेसी चलाने वाला कोई नहीं है.

सितंबर 2017 में रायगढ़ जिला महिला और बाल विकास अधिकारी ने विद्या सहित दो कर्मचारियों की शिकायत के बाद अस्पताल का निरीक्षण किया और जिला कलेक्टर को इस मामले की जांच करने और आवश्यक कार्रवाई करने के लिए लिखा. रिपोर्ट में कहा गया है कि अन्य कमियों के साथ-साथ, एआरटी केंद्र में आवश्यकता से केवल 54 प्रतिशत कर्मचारी हैं. कोई चिकित्सा अधिकारी नहीं है और चार काउंसलर पदों में से तीन खाली पड़े हैं. एक महीने बाद, द हिंदू ने स्टाफ की कमी, पर्याप्त चिकित्सा उपकरणों की कमी और आपातकालीन रोगियों का इलाज करने से इनकार किए जाने के मामलों की रिपोर्ट की.

दिसंबर 2017 में ठाकुर ने इन मुद्दों को मुंबई प्रशासन के स्वास्थ्य सेवाओं के निदेशक के सामने उठाया. 22 दिसंबर को स्वास्थ्य सेवाओं के उप निदेशक ने निरीक्षण किया और एक रिपोर्ट प्रस्तुत की. एक बार फिर रिपोर्ट ने अस्पताल के कामकाज में अनियमितता और खामियों को उजागर किया. रिपोर्ट में कहा गया है कि केवल एक चिकित्सक उपलब्ध है जो आईसीयू, इन-पेशेंट और आउट-पेशेंट सेक्शन और एआरटी सेंटर सहित पूरे हफ्ते 24 घंटे विभिन्न विभागों की देखभाल कर रहा है. उप निदेशक के अनुसार, डीएएच ने भूमि अधिग्रहण, योग्यता और कर्मचारियों के वेतन विवरण के बारे में आवश्यक दस्तावेजों को भी ठीक से नहीं रखा है.

आखिरकार, जनवरी 2019 में महाराष्ट्र के सार्वजनिक-स्वास्थ्य विभाग के प्रमुख सचिव प्रकाश व्यास ने परिवार कल्याण के आयुक्त और एनएचएम के निदेशक अनूप कुमार यादव को एक पत्र लिखा. व्यास ने पत्र में उल्लेख किया कि इन सभी शिकायतों को 2018 के बाद से डीएएच के खिलाफ उठाया गया है और यादव से सभी रिपोर्टों को देखने और दो सप्ताह में जवाब देने के लिए कहा. यादव ने इस संबंध में पूछे मेरे प्रश्नों का जवाब नहीं दिया.

इसके बाद मार्च 2019 में पुणे मिरर ने बताया कि डीएएच मरीजों का उपचार करने से मना कर रहा है और निवासियों द्वारा बताई गईं अनियमितताएं "महाराष्ट्र मेडिकल प्रैक्टिशनर्स एक्ट और इंडियन मेडिकल काउंसिल एक्ट से धोखा और उल्लंघन" है. इन रिपोर्टों के बारे में पूछे जाने पर, आरएचएमएसपीएल के एक पूर्व वरिष्ठ कर्मचारी ने नाम जाहिर न करने की शर्त पर मुझे बताया कि इन सभी रिपोर्टों को ठाकुर ने "हवा" दी है.

यह सब आरआईएल द्वारा प्रस्तुत अपनी वार्षिक रिपोर्ट में डीएएच के कामकाज की रिपोर्टिंग के विपरीत है. 2016-17 की अपनी वार्षिक रिपोर्ट में, आरआईएल ने दावा किया था कि डीएएच "महाराष्ट्र के रायगढ़ जिले में औद्योगिक और ग्रामीण आबादी के लिए बना 82-बेड का अत्याधुनिक अस्पताल है." यह दावा किया गया कि रोगियों को "नि: शुल्क परामर्श, सलाह, जांच और उपचार प्रदान किया जाता है." उस वर्ष के लिए सीएसआर व्यय के तहत, आरआईएल ने डीएएच पर 4.1 करोड़ रुपए का व्यय दिखाया और जो तब तक कुल 9.6 करोड़ रुपए था.

14 जून 2017 को, ठाकुर द्वारा एथिक्स कमेटी और आरआईएल के शीर्ष अधिकारियों को रिपोर्ट किए जाने के चार महीने बाद, उन्हें स्थानांतरण आदेश प्राप्त हुआ, जिसमें उन्होंने गुजरात के दहेज में रिलायंस समूह द्वारा संचालित अस्पताल में ड्यूटी करने के लिए कहा गया. उन्हें अगले दिन वहां रिपोर्ट करने के लिए कहा गया और आरएचएमएसपीएल के तत्कालीन निदेशक शानबाग को सूचित करने के लिए कहा गया. रातोंरात स्थानांतरण आदेश ने इस तथ्य की अनदेखी की कि महाराष्ट्र मेडिकल काउंसिल के नियमों के अनुसार, मेडिकल डॉक्टर के स्थानांतरण के लिए महाराष्ट्र मेडिकल बोर्ड की अनुमति और गुजरात मेडिकल बोर्ड के साथ पंजीकरण की आवश्यकता होती है. जब ठाकुर ने वापस लिखकर इस बात की ओर इशारा किया तो आरआईएल ने 26 जून 2017 को उनको सेवा से बर्खास्त कर दिया.

ठाकुर ने उस वर्ष जुलाई में सेबी में अपनी पहली शिकायत दर्ज की, लेकिन संगठन ने कहा कि मामला उसके दायरे में नहीं आता. सितंबर में, उन्होंने सेबी को फिर से सीएसआर अनियमितताओं, सतर्कता तंत्र की विफलता, व्हिसल ब्लोअर पर हो रहे जुल्म और शिकायत का खुलासा न करने के बारे में लिखा. दो महीने बाद, सेबी ने एमसीए के तहत रजिस्ट्रार ऑफ कंपनीज को सीएसआर फंड के गलत इस्तेमाल की शिकायत को आगे बढ़ाया.

लेकिन सेबी ने व्हिसल ब्लोअर प्रावधानों के उल्लंघन और व्हिसल ब्लोअर शिकायत का खुलासा नहीं करने पर कोई कार्रवाई नहीं की. सेबी ने अक्टूबर 2017 में पहली बार आरआईएल को लिखा. अगले महीने आरआईएल ने दो प्रतिक्रियाएं भेजीं, जिसे सेबी ने बिना किसी जांच के स्वीकार कर लिया. सेबी ने इस तथ्य की अनदेखी की कि 2016-17 की वार्षिक रिपोर्ट में ठाकुर की व्हिसल ब्लोअर शिकायत का उल्लेख नहीं किया गया था. आरआईएल की बाद की वार्षिक रिपोर्टों में से किसी ने भी इसका उल्लेख नहीं किया है और 2016-17 और 2017-18 की वार्षिक रिपोर्टों में कहा गया है कि कंपनी ने सेबी के दिशानिर्देशों का अनुपालन किया है और उन शिकायतों को सूचीबद्ध किया जिन पर सेबी ने कार्रवाई की है. सेबी ने इन पर पूछे गए मेरे सवालों का जवाब नहीं दिया.

2016-17 की रिपोर्ट में यह भी कहा गया, "समीक्षाधीन वर्ष के दौरान किसी भी कर्मचारी को ऑडिट कमेटी तक पहुंचने से वंचित नहीं किया गया था." एलओडीआर 2015 में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि कंपनी की वार्षिक रिपोर्ट में सतर्कता तंत्र की स्थापना, व्हिसल ब्लोअर नीति और इस पुष्टि के विवरण का खुलासा होना चाहिए कि किसी भी कर्मचारी को लेखा परीक्षा समिति तक पहुंच से वंचित नहीं किया गया है. कंपनी अधिनियम 2013 की धारा 177 के तहत भी प्रत्येक सूचीबद्ध कंपनी को अपने निदेशकों और कर्मचारियों के लिए वास्तविक चिंताओं और शिकायतों की रिपोर्ट करने के लिए एक सतर्कता तंत्र स्थापित करना बाध्यकारी है.

एलओडीआर 2015 को आगे एक कंपनी की आवश्यकता है जो ऐसे तंत्र का उपयोग करने वाले व्यक्तियों के उत्पीड़न के खिलाफ पर्याप्त सुरक्षा उपायों को पेश करे और उचित या असाधारण मामलों में लेखा परीक्षा समिति के चेयरपर्सन तक सीधे पहुंच प्रदान करे. ठाकुर ने मुझे बताया कि उन्होंने सेबी को बार-बार यह बताने के लिए लिखा था कि एलओडीआर 2015 का उल्लंघन करते हुए उन्हें अभी तक ऑडिट कमेटी के समक्ष बात नहीं रखने दी गई.

7 दिसंबर 2017 को वित्त मंत्रालय ने सेबी के कार्यकारी निदेशक एसवी मुरलीधर राव को आवश्यक कार्रवाई करने और जवाब प्रस्तुत करने के लिए लिखा. मंत्रालय 21 सितंबर 2017 को ठाकुर की शिकायत का जवाब दे रहा था, जिसे 28 सितंबर और 5 अक्टूबर को राष्ट्रपति सचिवालय द्वारा दो बार संदर्भित किया गया था. इसके बाद 18 दिसंबर को सेबी ने ठाकुर को आरआईएल की प्रतिक्रिया अग्रेषित की, जिसका उन्होंने बिंदुवार खंडन के साथ जवाब दिया.

नवंबर 2017 में सेबी के जवाब में आरआईएल ने शिकायतों को "एक निराश कर्मचारी का काम" के रूप में खारिज कर दिया और कहा कि उन्होंने शिकायतों को "कंपनी द्वारा डीएएच को बंद करने के निर्णय के बाद" उठाया जबकि ठाकुर ने अपनी शिकायत में वित्तीय अनियमितताओं और कुप्रबंधन के विशिष्ट उदाहरण उठाए थे आरआईएल ने लिखा कि अंबानी को लिखा उनका फरवरी 2017 का पत्र "अस्पष्ट था और भ्रष्टाचार या दुराचार का विशिष्ट उदाहरण नहीं था." लेकिन वह आगे कहता है, "संजय ठाकुर द्वारा उठाए गए मुद्दों को खुद संजय ठाकुर को सुलझाना चाहिए था क्योंकि वह अस्पताल के प्रमुख थे."

रिलायंस की प्रतिक्रिया के अपने खंडन में, ठाकुर ने कहा था कि "जैसा कि मैंने ईमेल में बताया है डीएएच के बारे में मुद्दों को संबोधित करने के प्रयासों को विभिन्न अनुमोदन प्रक्रियाओं द्वारा बड़ी चतुराई से अवरुद्ध किया गया." फरवरी 2017 में आरआईएल के प्रबंधन को अपने पहले पत्र में ठाकुर ने कहा था कि उन्हें अनुमोदन प्रक्रियाओं के बारे में गुमराह किया जा रहा था और बताया था कि "पिछले साल के बजट को अभी तक मंजूरी नहीं दी गई है और अब नए बजट को बिना मुझसे चर्चा किए प्रस्तावित किया जा रहा है."

आरआईएल के अनुसार, इसकी बिजनेस इंटिग्रिटी टीम ने अस्पताल का दौरा किया था और शिकायतों को "तुच्छ और निराधार" पाया था. आरआईएल ने आगे दावा किया कि एथिक्स कमेटी ने ठाकुर की सेवा समाप्त करने के तीन महीने बाद 10 अक्टूबर 2017 को आयोजित एक बैठक में इस मामले पर चर्चा की और यह निष्कर्ष निकाला कि शिकायत "तुच्छ, गैर-विशिष्ट हैं और आगे की कार्रवाई की आवश्यकता नहीं है." आरआईएल ने एलओडीआर 2015 के तहत व्हिसल ब्लोअर नीति का पालन करने का दावा किया.

अपने खंडन में, ठाकुर ने कहा कि आरआईएल ने अपने जवाब में एथिक्स कमेटी की रिपोर्ट भेजने का झूठा दावा किया है. ठाकुर के अनुसार, डीएएच को बंद करने का निर्णय उन्हें औपचारिक रूप से कभी नहीं बताया गया था और न ही अस्पताल के बंद होने के बारे में उचित अधिकारियों को सूचित किया गया था. आरआईएल का दावा द हिंदू रिपोर्ट के विपरीत भी है, जिसमें कहा गया है, "रिलायंस इंडस्ट्रीज लिमिटेड के प्रवक्ता ने द हिंदू को बताया कि अस्पताल को बंद करने पर कोई औपचारिक निर्णय नहीं लिया गया है." ठाकुर द्वारा खंडन भेजे जाने के बाद सेबी ने कोई जवाब नहीं दिया.

यह महसूस करते हुए कि उनकी शिकायतों पर रोक लगाई जा रही है, ठाकुर ने 4 अप्रैल 2018 को केंद्रीय सतर्कता आयोग को शिकायत को देख रहे सेबी की अधिकारियों की विफलता की सूचना दी. ठाकुर की शिकायत की जांच करने के बाद, सीवीसी ने केंद्रीय सतर्कता अधिकारी या सेबी की सीवीओ आरती छाबड़ा श्रीवास्तव, जिन्होंने आवश्यक कार्रवाई के लिए नवंबर 2018 में कार्यभार संभाला था, को शिकायत अग्रेषित कर दी. आयोग ने लिखा है कि सीवीओ को एक महीने के भीतर शिकायत की जांच करनी चाहिए और "निर्णय लेना चाहिए कि क्या किसी भी कार्रवाई की आवश्यकता है." सीवीसी के निर्देशों के बावजूद, ठाकुर को श्रीवास्तव से कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली. श्रीवास्तव ने ठाकुर के मामले के संबंध में पूछे गए सवालों का जवाब नहीं दिया.

2017-20 से ठाकुर ने सेबी के स्कोर्स पोर्टल (सेबी शिकायत निवारण प्रणाली) पर दस शिकायतें दर्ज कीं. स्कोर्स सूचीबद्ध कंपनियों के खिलाफ शिकायतों को दर्ज कराने का ऑनलाइन मंच है. सेबी ने इस सभी दस शिकायतों को बंद कर दिया है. ठाकुर ने तीन बार सीवीसी को निष्क्रियता की सूचना दी, जिसने सीवीओ सेबी को आवश्यक कार्रवाई करने का निर्देश दिया लेकिन ठाकुर को सीवीओ सेबी से कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली. इस पूरी प्रक्रिया के दौरान ठाकुर ने लगातार वित्त मंत्रालय, पीएमओ और राष्ट्रपति सचिवालय को लिखा. वित्त मंत्रालय और एमसीए के कई आधिकारिक ज्ञापन बताते हैं कि पीएमओ और राष्ट्रपति सचिवालय के संदर्भों के आधार पर इन दोनों मंत्रालयों ने सेबी को ठाकुर की शिकायतों को देखने के लिए निर्देशित किया था. हालांकि, सेबी ने आरआईएल की प्रतिक्रिया पर ठाकुर के सभी खंडनों को नजरअंदाज कर दिया और आरआईएल की प्रतिक्रिया को पीएमओ, एमसीए और वित्त मंत्रालय को भेज दिया और कहा कि इस मामले को देख लिया गया है और कार्रवाई की गई है.

सेबी के निगम वित्त विभाग में अनुपालन और निगरानी विभाग से अद्वैत दहले ने 17 जून 2020 को एक कार्रवाई रिपोर्ट पेश की जिसमें उन्होंने लिखा, "व्हिसल ब्लोअर के रूप में प्रताड़ना के संबंध में आरोपों को उठाया गया और यह पाया गया कि आरआईएल ने व्हिसल ब्लोअर नीति के अनुसार और सतर्कता तंत्र से संबंधित प्रावधानों का अनुपालन करते हुए प्रक्रियाओं का पालन किया है.” सेबी के आरआईएल के जवाबों के आधार पर, दहले ने आगे लिखा है कि एलओडीआर 2015 का "प्रथम दृष्टया कोई उल्लंघन नहीं" पाया गया. उन्होंने लिखा कि सेबी ने पहले ही रिपीट शिकायतों का जवाब दे दिया था और सीएसआर फंड के दुरुपयोग पर ठाकुर को एमसीए से पता करने को कहा गया.

इस बीच मार्च 2020 में फेसबुक ने रिलायंस ग्रुप की डिजिटल बिजनेस यूनिट, जियो प्लेटफॉर्म लिमि​टेड, में निवेश करने की योजना की घोषणा की और जून तक उसने जियो में दस प्रतिशत हिस्सेदारी के लिए 43574 करोड़ रुपए का निवेश किया. ठाकुर ने मार्च में सीएसआर अनियमितताओं, व्हिसिल ब्लोअर की प्रताड़ना और कारपोरेट प्रशासन की विफलता की अपनी लंबित शिकायतों के बारे में फेसबुक की कानूनी टीम को सचेत कराया और 15 मई को एक ईमेल के जरिए इसका फॉलोअप लिया. फेसबुक की कानूनी टीम ने 26 मई को ठाकुर से इस बात की सहमति मांगी थी कि प्रतिक्रिया पाने के लिए आरआईएल को उनकी शिकायत को आगे बढ़ाया जा सके. विशेष रूप से, 9 जून को सेबी ने स्कोर्स पोर्टल पर ठाकुर की नवंबर 2019 की शिकायत को बंद कर दिया.

31 अगस्त 2020 को सेबी की निष्क्रियता का विरोध करने के लिए, ठाकुर ने फिर डीईए से संपर्क किया. ठाकुर ने डीईए के निदेशक रोजमेरी के. अब्राहम को लिखा, "सेबी ने इस तरह से आरआईएल की खंडन प्रतिक्रिया को आंख मूंदकर स्वीकार कर लिया." उनके पत्र में उल्लेख है कि जून 2020 में सेबी के शिकायत को बंद करने का समय “फेसबुक द्वारा संज्ञान लेने के बाद आरआईएल और सेबी से संबंधित पिछले दरवाजे की गतिविधि का पर्याप्त सबूत था. एक निष्पक्ष जांच निश्चित रूप से सेबी के अंदरूनी सूत्रों के आरआईएल को क्लीन चिट देने का पर्दाफाश कर देगी.” ठाकुर को इस पत्र का कोई जवाब नहीं मिला और फेसबुक की कानूनी टीम ने भी इसके बाद कोई जवाब नहीं दिया. फेसबुक ने ठाकुर के बारे में पूछे गए सवालों का जवाब नहीं दिया.

हालांकि सेबी ने ठाकुर की शिकायतों के व्हिसल ब्लोअर वाले पहलू माना लेकिन नियामक संस्था ने डीएएच में सीएसआर अनियमितताओं के बारे में अपनी शिकायत एमसीए को अग्रेषित कर दी. सेबी के निगम वित्त विभाग के अनुपालन और निगरानी विभाग के एक पत्र के अनुसार, ऐसा 8 नवंबर 2017 को एक पत्र के माध्यम से किया गया था. दिसंबर 2018 में एमसीए ने एक कार्यालय ज्ञापन जारी किया जिसमें कहा गया कि शिकायत "गंभीर कारपोरेट प्रशासन के मुद्दों और सीएसआर में अनियमितताओं के बारे में थी." एमसीए की सीएसआर सेल की डिप्टी डायरेक्टर सीमा रथ ने 12 दिसंबर 2018 को आरआईएल को पत्र लिखा जिसमें रथ ने 2014-15 के बाद से सीएसआर के तहत प्रमुख परियोजनाओं के वित्तपोषण, संचालन और राजस्व मॉडल के बारे में 30 दिन के भीतर दस्तावेजी साक्ष्य प्रस्तुत करने के लिए आरआईएल को निर्देश दिया. इन परियोजनाओं में डीएएच और एचएन रिलायंस हॉस्पिटल फाउंडेशन और रिसर्च सेंटर और जियो विश्वविद्यालय शामिल हैं.

डीएनए में प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार जून 2019 में एमसीए ने सीएसआर के नियमों के उल्लंघन पर आरआईएल को दुबारा नोटिस भेजा. रिपोर्ट में कहा गया है कि कंपनी ने 2014 से 2018 तक 2816 करोड़ रुपए का सीएसआर व्यय दर्ज किया था लेकिन इसे "व्यावसायिक व्यय के रूप में देखा जा रहा था सीएसआर के तौर पर नहीं." इसने एमसीए नोटिस के हवाले से कहा, "पहली नजर में आप कंपनी अधिनियम 2013 के प्रावधान का उल्लंघन करते दिखाई देते हैं क्योंकि मौजूदा व्यवसाय के वित्तपोषण के स्रोत के रूप में सीएसआर के उपयोग की इजाजत नहीं है." रिपोर्ट में कहा गया है कि एमसीए कंपनी के सीएसआर पर 1739 करोड़ रुपए खर्च करने के बारे में विचार कर रहा था, जिसमें एचएन रिलायंस हॉस्पिटल फाउंडेशन और रिसर्च सेंटर पर 1141 करोड़ रुपए, डीएएच पर 8 करोड़ रुपए और जियो विश्वविद्यालय पर 590 करोड़ रुपये खर्च किए गए थे.

रिपोर्ट में आगे कहा गया है कि एमसीए ने कंपनी की पिछली प्रतिक्रिया को "संतोषजनक नहीं" पाया. इसने चेतावनी दी कि "सीएसआर प्रावधानों को किस तरह लागू किया गया इसकी व्याख्या करने के लिए एक अंतिम अवसर दिया जा रहा है ... और व्यक्तिगत रूप से इस मामले की सुनवाई में इस बात के कानूनी दस्तावेजों के साथ हाजिर होने का निवेदन किया जा रहा है कि सीएसआर राशि को किस तरह खर्च किया गया और सीएसआर का अनुपालन कैसे किया गया."

19 जून 2019 को बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज ने समाचार रिपोर्ट पर आरआईएल से प्रतिक्रिया मांगी. छह दिनों के बाद, एक भ्रामक प्रतिक्रिया देते हुए आरआईएल ने कहा कि एमसीए समय-समय पर कंपनी के सीएसआर के बारे में जानकारी मांग रहा है और "उसने हाल ही में सीएसआर परियोजनाओं पर अतिरिक्त जानकारी मांगी है और कंपनी एमसीए को यह प्रदान करने की प्रक्रिया में है." हमारे सवालों के जवाब में, रिलायंस फाउंडेशन के प्रवक्ता ने लिखा, "हम यह बताना चाहते हैं कि हमारी कंपनी ने कंपनी अधिनियम, 2013 के तहत सीएसआर से संबंधित विभिन्न वैधानिक प्रावधानों की सभी आवश्यकताओं का विधिवत अनुपालन किया है." प्रवक्ता ने कहा, "हम यह बताना चाहते हैं कि डॉ. एसएस ठाकुर द्वारा लगाए गए आरोप बेबुनियाद और मानहानिकारक हैं. यह स्पष्ट है कि उनके ईमेल परोक्ष, प्रेरित और बदनीयती से संबोधित किए गए हैं और विशुद्ध रूप से उनकी सेवा समाप्त किए जाने की प्रतिक्रिया स्वरूप आए हैं.”

15 जून 2020 को प्रधानमंत्री कार्यालय ने फिर से ठाकुर के पत्र को वित्त मंत्रालय को भेजा जिसके आधार पर मंत्रालय ने 7 दिसंबर को एक कार्यालय ज्ञापन जारी किया जिसमें एमसीए को आवश्यक कार्रवाई करने के लिए कहा गया. दिसंबर 2020 में एमसीए के सहायक निदेशक वेदांत ओझा ने ठाकुर को लिखा कि उन्हें सूचित किया गया जा रहा है कि उन्हें आरआईएल के सीएसआर अनुपालन की जांच करने के लिए कंपनी अधिनियम, 2013 की धारा 206 की उप-धारा 4 के तहत एक निरीक्षक के रूप में नियुक्त किया गया है. इसके अनुसार, यदि रजिस्ट्रार “उपलब्ध सूचना के आधार पर संतुष्ट” है कि कंपनी “धोखाधड़ी कर रही है या गैरकानूनी उद्देश्य में लगी है” या अधिनियम का अनुपालन नहीं कर रही है, तो इस मामले की जांच के लिए एक निरीक्षक नियुक्त किया जाता है. यह निरीक्षक को सूचना और दस्तावेजों की मांग करने की शक्तियां देता है. ”

हालांकि दो हफ्ते बाद ओझा ने ठाकुर को लिखा कि उनकी शिकायतों की "ज्यादातर मीडिया लेख और मेल की गई सामग्री सामान्य प्रकृति की हैं. ये सभी सीएसआर के प्रावधान के उल्लंघन के विशिष्ट उदाहरण प्रदान नहीं करते हैं.” अपने जवाब में, ठाकुर ने लिखा कि कानून के अनुसार निरीक्षक से उम्मीद ​की जाती है कि वह आरआईएल, आरएफ और आरएचएमएसपी से ऑडिट रिपोर्ट प्राप्त करे और "तुरंत सुनवाई के लिए बुलवाए और मेरा बयान दर्ज करे, आरआईएल आरएफ आरएचएमएसपीएल के अधिकारियों को कॉल रिकॉर्ड प्राप्त करने के लिए समन भेजे," ताकि सुनिश्चित हो सके की प्रक्रिया का पालन हुआ है. ठाकुर द्वारा साझा किए गए दस्तावेजों के अनुसार, 30 मार्च 2021 को एमसीए के कार्यालय कंपनी रजिस्ट्रार ने, जो कंपनियों के प्रशासन से संबंधित है, सीएसआर अनियमितताओं के बारे में आरोपों के लिए रिलायंस फाउंडेशन्स की प्रतिक्रिया को आगे बढ़ाया. फाउंडेशन की प्रतिक्रिया ने उन्हीं बिंदुओं को दोहराया जो नवंबर 2017 में सेबी की प्रतिक्रिया में उल्लिखित हैं. लेकिन ठाकुर को अभी तक ओझा का जवाब नहीं मिल है और एमसीए ने ठाकुर की शिकायतों के बारे में किसी भी प्रश्न का उत्तर नहीं दिया है.

12 नवंबर को ओझा द्वारा ठाकुर की शिकायत को सौंपे जाने के एक महीने से भी कम समय बाद, शानबाग ने पहली बार ठाकुर से इस बारे में बात की. बातचीत के स्क्रीनशॉट के अनुसार ठाकुर और रिलायंस के प्रतिनिधियों के बीच पहली बैठक के बाद, शानबाग ने 18 दिसंबर को ठाकुर को फिर से लिखा और कहा कि उन्हें खेद है कि वह चर्चा को आगे नहीं ले जा सकते. उन्होंने ठाकुर को सलाह दी कि वह लंबे चलने वाले संघर्ष की बजाय एक उचित समझौता कर लें. शानबाग ने फिर अकेले मिलने की पेशकश की. शानबाग ने 22 जनवरी को यह प्रस्ताव दोहराया और ठाकुर ने 25 जनवरी को उनसे फिर मुलाकात की.

हालांकि, ठाकुर ने शिकायतों को वापस लेने से इनकार कर दिया है. इसके अलावा उन्होंने कहा कि ठाकुर के वकीलों द्वारा सुझाए गए मुआवजे की तुलना में यह मुआवजा कम था. ठाकुर ने मुझे बताया, "उन्होंने जो पेशकश की वह मेरे वकील द्वारा उन्हें भेजे गए पत्र के अनुरूप नहीं था ... जिसे आमतौर पर कानूनी मिसाल के रूप में जो दिया जाता है जिसमें बकाया, हर्जाना, प्रतिष्ठा की हानि आदि शामिल हैं." सिविल कोर्ट में उनके मामले की अगली सुनवाई 16 अप्रैल 2021 के लिए निर्धारित की गई थी कोविड-19 संकट के कारण अदालतें अवकाश पर हैं. जब मैंने फरवरी के पहले सप्ताह में उनसे बात की, तो उन्होंने कहा कि उनकी मांगें वही हैं जो वह सालों से करते आए हैं यानी डीएएच को बंद करने से रोकना, इसकी बुनियादी सुविधाओं और उपकरणों को अपडेट करना और डीएएच का प्रबंधन एक उचित, जवाबदेह और पारदर्शी तरीके से किया जाना.