महाराष्ट्र के रायगढ़ जिले के धीरूभाई अंबानी अस्पताल (डीएएच) के पूर्व चिकित्सा निदेशक डॉ. संजय ठाकुर से रिलायंस इंडस्ट्रीज लिमिटेड (आरआईएल) के प्रतिनिधियों ने नवंबर 2020 की शुरुआत में संपर्क किया और अस्पताल के खिलाफ अवैध बर्खास्तगी के मामला में समझौते की पेशकश की. ठाकुर को जून 2017 में अस्पताल ने निकाल दिया था. इससे पहले उन्होंने आरआईएल की एथिक्स कमेटी से डीएएच में वित्तीय अनियमितताओं, कुप्रबंधन और कारपोरेट गवर्नेंस विफलता के विभिन्न मामलों की शिकायत की थी. ठाकुर की शिकायतों की प्रकृति के चलते उन्हें व्हिसल ब्लोअर माना जाएगा. बर्खास्तगी के बाद ठाकुर ने भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (सेबी) और राज्य तथा केंद्र सरकार के अधिकारियों को अपनी शिकायतों से अवगत कराया. ठाकुर ने मुझे बताया कि 2020 के अंत में आरआईएल से मिले समझौता प्रस्ताव में उन्हें अपनी सभी शिकायतें वापस लेने के बदले लालच दिया गया.
ठाकुर जनवरी 2015 से 26 जून 2017 तक डीएएच के चिकित्सा निदेशक थे. पहली बार उन्होंने 19 जनवरी 2017 को आरआईएल की एथिक्स कमेटी को ईमेल किया था. इस ईमेल में डीएएच में मरम्मत एवं खरीद में देरी और बढ़े-चढ़े बिलों जैसी अकेन अनियमितताओं और धन के दुरुपयोग की शिकायत की थी. अगले कुछ महीनों में उन्होंने मुकेश अंबानी सहित वरिष्ठ आरआईएल अधिकारियों को अपनी शिकायतें भेजीं. शुरूआत में ठाकुर की शिकायतों पर कोई ध्यान नहीं दिया गया और फिर कंपनी ने रातोंरात ठाकुर का तबादला कर दिया. जब ठाकुर ने तबादले के आदेशों में कानूनी बाधाओं की तरफ इशारा किया और आदेश मानने से इनकार कर दिया तो उन्हें बर्खास्त कर दिया गया. ठाकुर की पत्नी विद्या उसी अस्पलातल के एचआईवी एड्स से पीड़ित लोगों के एंटी रेट्रो वायरल (एआरटी) केंद्र में वरिष्ठ चिकित्सा अधिकारी थीं. ठाकुर की बर्खास्तगी के तुरंत बाद उन्हें भी नौकरी से निकाल दिया गया.
इस बात के पर्याप्त सबूत हैं कि ठाकुर ने डीएएच के कामकाज पर जो आरोप लगाए थे वे निराधार नहीं हैं. 2017 से 2020 तक महाराष्ट्र के स्वास्थ्य अधिकारियों की निरीक्षण रिपोर्टें और पत्र और इस अवधि की मीडिया रिपोर्टें इस बात की पुष्टि करती हैं कि अस्पताल में उपकरणों एवं कर्मचारियों की कमी और साथ ही इलाज के लिए अधिक दाम वसूलाना जैसी अनियमितताएं ठाकुर की बर्खास्तगी के बाद भी डीएएच में जरी थीं.
जुलाई 2017 से ठाकुर ने सेबी, वित्त मंत्रालय, कारपोरेट मामलों के मंत्रालय (एमसीए), महाराष्ट्र के स्वास्थ्य विभाग, प्रधानमंत्री कार्यालय और राष्ट्रपति सचिवालय से संपर्क किया. प्रत्येक को लिखी अपनी शिकायतों में उन्होंने जारी गलत कामों की एक पूरी सूची संलग्न की थी. इनमें सतर्कता तंत्र की विफलता, आवाज उठाने वाले को प्रताड़ित करना, व्हिसल ब्लोअर की शिकायतों के निवारण में विफलता और आरआईएल, रिलायंस हॉस्पिटल मैनेजमेंट सर्विसेज प्राइवेट लिमिटेड, जो डीएएच का संचालन करती है, और रिलायंस फाउंडेशन द्वारा सीएसआर अनियमितताएं शामिल हैं. फाउंडेशन आरआईएल की सीएसआर परियोजनाओं का क्रियान्वयन करता है. इसके बाद जुलाई 2018 में ठाकुर ने मुंबई सिटी सिविल कोर्ट में अपनी बर्खास्तगी को चुनौती दी.
ठाकुर ने कहा कि दो साल से आरआईएल के खिलाफ उनकी शिकायतों को सेबी और एमसीए लगातार खारिज करते रहे हैं. 2017 से सेबी ठाकुर की कम से कम दस शिकायतों को बंद कर चुका है, जबकि सीएसआर से संबंधित शिकायतों को कारपोरेट मंत्रालय को भेज दिया गया है. दूसरी ओर ठाकुर और एमसीए के बीच हुए पत्राचार से पता चलता है कि 2018 में एमसीए द्वारा शुरू की गई जांच आगे नहीं बढ़ी है, जबकि अक्टूबर 2020 में शुरू हुई एक और जांच अभी भी जारी है. दस्तावेजों से पता चलता है कि सेबी और एमसीए दोनों ने ठाकुर की शिकायतों पर बिना किसी स्वतंत्र जांच के आरआईएल के जवाब को स्वीकार कर लिया और उसे ठाकुर को भेज दिया. यह भारत की सबसे बड़ी सार्वजनिक सूचीबद्ध कंपनियों में से एक के खिलाफ सीएसआर संबंधी शिकायतों और व्हिसल ब्लोअर के प्रावधानों के अनुपालन में ढिलाई की ओर इशारा करता है. एमसीए की नवीनतम जांच के एक महीने बाद आरएचएमएसपीएल के पूर्व निदेशक श्रीनिवास शानबाग ने समझौते की पेशकश के लिए बातचीत शुरू की.
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