अफ्रीकी प्रोफेसर ओबाडेले कम्बोन क्यों मानते हैं गांधी को नस्लवादी

कम्बोन गांधी के पक्ष में हो रहे प्रचार को ध्वस्त करने की बात करते हैं क्योंकि “गांधी अंग्रेजों के खिलाफ लड़ने के बजाए सवर्ण हिंदुओं के पक्ष में लड़े”. साभार-ओबाडेले कम्बोन

गांधी के समर्थक अक्सर कहते हैं कि वे एक खास स्थिति में पले-बढ़े, बनिया जाति के थे, जो वैश्यों की एक उप जाति है. इसका मतलब ये है कि वे जहां भी रहे, हमेशा इंडो-आर्यों की लड़ाई लड़ते रहे. ये उनके कहे के मुताबिक ही है. गांधी अश्वेतों के लिए नहीं लड़ रहे थे.

उनके बचाव में यह भी कहा जाता है कि उन्होंने अपनी युवा अवस्था में नस्लीय बातें कहीं. लेकिन नस्लवादी ओछी बातें कहने के बारे में किसी को शिकायत नहीं है. अगर आप टेलीग्राफ ऑफिस के प्रवेश द्वार पर दरबान की पोस्ट को अलग करने में, जेलों को अलग करने में, जुलू लोगों के खिलाफ युद्ध में उनकी भूमिका को देखें- जहां वो हथियारों, बंदूकों और सैन्य ट्रेनिंग के लिए आंदोलन कर रहे थे, तो आप असली गांधी को देख सकेंगे जो युद्ध की वकालत करता है. असली वाला वब नहीं, जिसने झूठ कहा कि उसका दिल जुलू लोगों के साथ है.

उन्हें शायद इसका भी पता था कि उन्हें जुलू बुलाया जाता है. तब गांधी ने उन्हें काफिर करार दिया था. बाद में गांधी ने स्वीकार किया कि उन्हें पता था कि इस शब्द का इस्तेमाल अपमानजनक है. उनका बचाव करने वाले ये भी कहते हैं कि काफिर उस वक्त अपमानजनक शब्द नहीं था. ऐसे में “जंगली”, “बिना धर्म वाले”, “जनवरों से थोड़ा बेहतर” जैसी बातों को कैसे देखें? क्या हिंदी और गुजराती में इनका इस्तेमाल प्रेम प्रदर्शन के लिए होता है? मुझे ऐसा नहीं लगता. यह धोखा देने वाली बात है. उन्हें पता था कि ये आपत्तिजनक है. वो कहते थे कि हम (भारतीय) को “कूली” मत बुलाओ, ये अपमानजनक है. और अगला ही वाक्य होता है, “वे लोग काफिर हैं.”

भारत में डॉक्टर अंबेडकर जैसे गांधी के समकालीन हैं जिन्होंने काले लोगों से नफरत नहीं करने का जादुई तरीका ढूंढा और उन्हें काफिर भी नहीं कहा. उनके खिलाफ युद्ध नहीं लड़ा. गांधी ने पूना पैक्ट पर दस्तखत करवाने के लिए अंबेडकर को झुकाने का फैसला किया. 1932 का ‘पूना पैक्ट’ गांधी के आमरण अनशन से अंबेडकर को झुकाने का परिणाम था. इससे गांधी ने दलितों को अलग मतदाता बनने या दोहरा वोट पाने से रोका, जो उन्हें पहले दिया जा चुका था. आपने देखा होगा कि दलितों को शहरों के बाहरी हिस्सों में समेट दिया गया है ताकि वे किसी क्षेत्र से अपना प्रतिनिधित्व करने की स्थिति में न हों. इसके पीछे का विचार मूल रूप से उन्हें कुछ हद तक बराबरी का मौका देने का था. गांधी ने कहा कि वे इन लोगों को इनके हक से वंचित करने के लिए आमरण अनशन करेंगे.

बेचारों को अपने कदम पीछे खींचने पड़े क्योंकि अंबेडकर को पता था कि उपवास के दौरान अगर गांधी का निधन हो गया तो भारी नरसंहार होगा. दलितों को जिम्मेदार ठहरा कर खून की नदियां बहा दी जाएंगी.

गांधी सिर्फ हिंदुओं को साथ रखना चाहते थे ताकि उनके पास बहुमत हो. इसलिए उन्होंने दलितों का हक मार लिया. वे सिर्फ हिंदुओं के बहुमत को लेकर चिंतित थे ताकि उन्हें किसी और को सत्ता न सौंपनी पड़े, चाहे ये मुसलमान हो या कोई भी.

(पूरी खबर यहां पढ़ें)