इलाहाबाद विश्वविद्यालय में भेदभाव का शिकार हुए दलित प्रोफेसर विक्रम हरिजन

01 November, 2019

आखिरी बार क्लास लेने के 51 दिन बाद इलाहाबाद विश्वविद्यालय के सहायक प्रोफेसर विक्रम हरिजन 17 अक्टूबर को दो सशस्त्र पुलिसकर्मियों के सुरक्षा घेरे में विश्वविद्यालय लौटे. उत्तर प्रदेश पुलिस ने उन्हें यह सुरक्षा मुहैया कराई है. विक्रम हरिजन विश्वविद्यालय में मध्यकालीन और आधुनिक इतिहास पढ़ाते हैं.

हरिजन ने मुझे बताया कि वह 26 अगस्त से "फरार" थे. फरार होने के कुछ दिन पहले कॉलेज के एक छात्र ने उन्हें चेतावनी दी थी कि उनकी जान को खतरा है. उनकी “लिंचिंग” हो सकती है. उसने प्रोफेसर हरिजन को "सावधान और सतर्क रहने" की सलाह भी दी. उसी दिन छात्रों का एक समूह हरिजन से मिलने आया और बताया कि उन पर दबाव है कि वे लोग उनके खिलाफ कार्रवाई करें. घबराकर हरिजन परिसर से भाग गए और अपने घर में खुद को बंद कर लिया. इसके दो दिन बाद वह शहर छोड़कर भाग गए.

20 अगस्त को हरिजन का एक पुराना वीडियो इंटरनेट पर वायरल हो गया. बीआर आंबेडकर की जयंती के अवसर पर अप्रैल 2017 में हरिजन ने प्रयागराज के एक छात्रावास में भाषण दिया था. भाषण तर्कसंगत होने और आलोचनात्मक दृष्टिकोण के महत्व पर था. अंधविश्वास के खिलाफ इस बहस में हरिजन ने बताया था कि छठी कक्षा में उन्होंने शिव लिंग पर पेशाब किया था. “इससे किसी भगवान ने मुझे नहीं रोका.”

यह वीडियो पूरे परिसर में वायरल हो गया और जल्द ही व्हाट्सएप ग्रुप और फेसबुक पोस्ट पर इसकी चर्चा होने लगी. कुछ ही दिनों में हरिजन के छात्र उनकी सुरक्षा की चिंता लेकर उनके पास आने लगे. 27 अगस्त को जब हरिजन अपने घर के अंदर बंद थे तब राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के छात्र संगठन अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद ने विश्वविद्यालय में उनके खिलाफ शिकायत दर्ज कराई. इन छात्रों का कहना था कि वीडियो में हरिजन ने जो कहा वह "हिंदू विरोधी" बात थी जिससे उनकी "भावनाएं" आहत हुई हैं. "अगले दिन, एबीवीपी की शिकायत को आधार बनाकर विश्वविद्यालय प्रशासन ने हरिजन को कारण बताओ नोटिस जारी कर दिया. नाराज लोगों, विश्वविद्यालय के अधिकारियों और खुद हरिजन से हुई मेरी बातचीत से पता चलता है कि उनका दलित होना उनके विरोध का प्रमुख कारण है.

एबीवीपी के तीन कार्यकर्ताओं से मैंने बात की. उनके मुताबिक, हरिजन कैंपस के ऐसे एकमात्र दलित प्रोफेसर हैं जो हमेशा उनकी "धार्मिक और राष्ट्रवादी भावनाओं" पर “हमला” करते हैं. एबीवीपी के सदस्य और हरिजन के पूर्व छात्र वीरेंद्र सिंह चौहान ने बताया, "वह मांसाहार पर बार-बार बात करते हैं जिससे मेरे जैसे ग्रामीण परिवेश से आए छात्रों की भावनाओं को ठेस पहुंचती है.” वीरेंद्र का कहना है कि हरिजन “बार-बार खुद को चमार कहते है” और “क्लासरूम तो ऐसी जगह होनी चाहिए जहां सकारात्मक बहस हो. भारत की अखंडता की बात न कर वह सरकार के प्रति बहुत नफरत का भाव रखते हैं.”

हरिजन के अनुसार, उनकी जाति ने छात्रों के बीच भी उनकी अकादमिक साख को कमजोर बनाया है. उन्होंने मुझे बताया कि उच्च जाति के छात्र उनके साथ अपमानजनक व्यवहार करते हैं क्योंकि वह उनके पूर्वाग्रहों को चुनौती देते हैं. उन्होंने कहा, "जैसे ही छात्र मेरा नाम देखते हैं वह मुझे एक दलित की तरह देखने लगते हैं.”

हरिजन ने एक घटना सुनाई जिसमें उन्होंने एक खास पार्टी का नाम लिया था और उस पार्टी के छात्र कार्यकर्ताओं ने उनकी शिकायत कर दी. वह भारतीय जनता पार्टी का जिक्र कर रहे थे. इन छात्रों ने लाइब्रेरी कैंटीन के पास, प्रॉक्टर कार्यालय के निकट, हरिजन से पूछा कि उन्होंने पार्टी का नाम क्यों लिया. “जर्मनी और मुसोलिनी को पढ़ाते हुए मैं भला उस पार्टी का नाम कैसे नहीं लेता?" उन्होंने मुझसे कहा कि मैं ऐसे संदर्भों में पार्टी का नाम न लूं." उन्होंने कहा, "मैं लड़ाई शुरू नहीं करना चाहता था इसलिए उन लोगों से कह दिया कि दुबारा जिक्र नहीं करूंगा.” हरिजन ने बताया कि इस तरह की घटनाएं उनके साथ रोजाना होने लगीं.

एक बार हरिजन डॉक्टरल शोध विषयों की समीक्षा पैनल का हिस्सा थे. उन्होंने कहा, "मैं कुछ छात्रों से उनके प्री-सबमिशन के बारे में सवाल कर रहा था," लेकिन मुझे नहीं पता था कि छात्र मेरा सवाल पूछना पसंद नहीं करते. उन्होंने कहा कि सत्र के दौरान "एक छात्र उठा और कहने लगा कि यह जेएनयू नहीं है कि मैं इतने सवाल करूं.”

अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के काशी प्रांत के सहमंत्री अश्विनी कुमार मौर्य ने हरिजन की शिकायत की थी. विश्वविद्यालय के इस पूर्व छात्र को हरिजन ने नहीं पढ़ाया लेकिन मौर्य का कहना है कि प्रोफेसर अपनी कक्षाओं में "हिंदू देवताओं के खिलाफ हिंसक बयानबाजी करते हैं." मौर्य ने कहा कि प्रोफेसर क्लास में कहते हैं कि पूजापाठ करने से कुछ नहीं होता बल्कि “आपके काम करने से होता है.” मौर्य ने कहा, “उनके पढ़ाने में कोई शक नहीं है. शिक्षक है तो पढ़ाएगा अच्छा ही लेकिन वे धर्म के खिलाफ लोगों को भड़काते हैं.” उन्होंने हरिजन की अकादमिक सफलता पर भी यह कहते हुए सवाल उठाया कि प्रोफेसर झूठ बोल रहे हैं कि वह टॉपर थे. “वह सैकेंड डिविजन से पास हुए हैं और जेएनयू में वह स्कॉलरशिप और आरक्षण की वजह से पहुंचे थे.”

हरिजन ने यह भी बताया कि विश्वविद्यालय का प्रशासन मुख्यतः उच्च-जाति का है और उसकी चुप्पी के कारण उनके प्रति शत्रुता बढ़ी है. विश्वविद्यालय के कुलपति, प्रॉक्टर और मध्यकालीन और आधुनिक इतिहास विभाग के प्रमुख सभी उच्च जाति के हिंदू हैं. हरिजन ने कहा कि एबीवीपी की शिकायत पर तुरंत कारण बताओ नोटिस जारी करने वाले प्रशासन ने उनका साथ नहीं दिया. “फैकल्टी से कोई मेरा साथ देने के लिए आगे नहीं आया,” उन्होंने मुझे बताया. “यहां तक कि अगर कोई मेरे साथ देना भी चाहे तो डर के चलते ऐसा नहीं कर सकता.” हरिजन ने कहा, "लोग जानते हैं कि मेरे साथ गलत हो रहा है लेकिन पेट की खातिर चुप हैं. उनको लगता है कि अगर वे बोलेंगे तो उनकी नौकरी चली जाएगी.”

प्रॉक्टर राम सेवक दुबे के साथ जब मैंने बात की तो मुझे हरिजन की बात सही लगी. दुबे संस्कृत के प्रोफेसर और इलाहाबाद विश्वविद्यालय शिक्षक संघ के अध्यक्ष हैं. उन्होंने हरिजन के वीडियो की निंदा की और मुझसे कहा कि "किसी के धर्म का अनादर नहीं करना चाहिए." एबीवीपी की शिकायत के बाद हरिजन को गुमनाम फोन कॉल आने लगे कि उनकी लिंचिंग हो जाएगी. जब हरिजन ने दुबे को धमकी के बारे में बताया तो उनका जवाब था कि वह कुछ नहीं कर सकते और अगर उन्हें सुरक्षा की चिंता है तो पुलिस के पास जाना चाहिए.

हरिजन ने बताया कि उन्होंने विश्वविद्यालय में जाति-विरोधी कार्यक्रम आयोजित किए थे इसलिए प्रशासन में बैठे उच्च-जाति के लोग और एबीवीपी के नेता भड़क गए. जब मैंने इलाहाबाद विश्वविद्यालय के जनसंपर्क अधिकारी चितरंजन कुमार से उच्च-जाति के प्रशासन द्वारा हरिजन पर जातिगत भेदभाव किए जाने के आरोपों के बारे में पूछा, तो वह नाराज हो गए. उन्होंने मुझे बताया कि विश्वविद्यालय में सभी नियुक्तियां आरक्षण नीति का पालन कर की गई हैं. उन्होंने जातिगत भेदभाव के आरोपों से इनकार कर दिया. मैंने मध्यकालीन और आधुनिक इतिहास विभाग के प्रमुख योगेश्वर तिवारी से संपर्क किया लेकिन उन्होंने टिप्पणी करने से इनकार कर दिया.

मैंने हरिजन के अधीन डॉक्टरेट कर रहे रणजीत कुमार से संपर्क किया. कुमार ने ही यह वीडियो इंटरनेट पर अपलोड किया था. कुमार अपने गाइड से इस बात के लिए नाराज थे कि उनके “भाग जाने” से “सात-आठ महीनों से उनकी फैलोशिप रुकी हुई है.” प्रोफेसर हरिजन ने मुझे बताया था कि कुमार ने उनको ब्लैकमेल करने के लिए वीडियो अपलोड किया था. इस पर कुमार का कहना है कि “वीडियो अपलोड करने से उनको ज्यादा से ज्यादा लोग देखेंगे. इसमें नुकसान क्या है?” कुमार सामाजिक न्याय के लिए काम करने वाले संगठन अखिल भारतीय आंबेडकर महासभा के सदस्य भी हैं लेकिन उन्होंने दावा किया, “आंबेडकर द्वारा तैयार किए गए संविधान के अनुसार, किसी भी समूह की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने की बात की निंदा की जानी चाहिए.” कुमार का मानना है कि शहर से भागकर हरिजन ने इस मुद्दे को अनावश्यक रूप से बड़ा बना दिया है. उन्होंने कहा, "यह उतना बड़ा मुद्दा नहीं है जितना वह सोचते हैं. लेकिन अगर वह इसे आगे बढ़ाते रहेंगे, तो जिस तरह की सरकार है, वह मुश्किल में पड़ जाएगा.”

मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक 30 अगस्त को हरिजन ने वीडियो के लिए माफी मांग ली थी. उन्होंने कहा, “अगर किसी को मेरे बयान से दुख होता है तो मुझे वास्तव में खेद है, लेकिन मेरा इरादा हिंदू भगवान या धर्म का अनादर करने का नहीं था. मैं सिर्फ छात्रों को अंधविश्वास से दूर रहने और अपनी प्रतिभा पर विश्वास करने के लिए कहना चाहता था.” जब मैंने उनसे माफी के बारे में पूछा, तो उन्होंने कहा कि वह किसी भी धर्म या धार्मिक व्यक्ति को बदनाम करने की कोशिश नहीं कर रहे थे बल्कि अपने छात्रों में आलोचनात्मक सोच को बढ़ा रहे थे. “क्या विश्वविद्यालय परंपरा बनाए रखने के लिए बने हैं? क्या हम ऐसी परंपराओं को बनाए रखने वाले लोग हैं जो हमारे बच्चों के दिमाग को बंद कर दें?”

हालांकि उनके माफी मांगने से एबीवीपी के कार्यकर्ताओं की नाराजगी कम नहीं हुई. एबीवीपी की प्रयागराज शाखा के संगठन मंत्री रजनीश ने हरिजन के बयान को खारिज करते हुए कहा कि प्रोफेसर ने "शहर छोड़ दिया क्योंकि उन्हें पता है कि उन्होंने कुछ गलत किया है." रजनीश ने कहा, “अगर आपको धर्म की कमियों के बारे में बात करनी है तो सभी धर्मों के बारे में बात करनी चाहिए लेकिन आपने एक ही धर्म पर वीडियो बनाया, क्यों?” सहमंत्री मौर्य ने भी कहा कि “यदि प्रोफेसर वास्तव में माफी मांग रहे हैं तो उन्हें अपने लैटरपैड पर लिख कर देना चाहिए और माफी का वीडियो बनाकर पुराने वीडियो की तरह वायरल कराना चाहिए."

हरिजन ने मुझे बताया कि वह एबीवीपी या अन्य दक्षिणपंथी संगठनों से बस नहीं डरते. “दलितों सहित सभी हिंदुओं को लगता है कि मैंने उनके धर्म का अपमान किया है. इसके कारण उन्होंने सामाजिक रूप से मेरा बहिष्कार किया,” उन्होंने बताया. हरिजन को कई तरह की धमकियां भी मिलीं और सोशल मीडिया पर नफरत का निशाना भी बनाया गया. “नफरत फैलाने वालों में कुछ विश्वविद्यालय के छात्र हैं, जो खुलेआम फेसबुक पर मेरे खिलाफ हिंसक धमकी दे रहे हैं," उन्होंने कहा.

हरिजन का हिंसा का डर निराधार नहीं था. संगठन मंत्री रजनीश ने मुझसे कहा, “कल्पना कीजिए कि आप अपने परिवार के साथ घर पर हैं और एक बाहरी व्यक्ति आपके घर आता है और आपको गालियां देने लगता है. आपको कैसा लगेगा?” उनका विचार था कि ऐसी स्थिति में “न केवल आपको बुरा लगेगा, बल्कि आपमें अगर दम होगा तो आप उसे मार डालेंगे.” 1 अक्टूबर को हरिजन ने प्रयागराज पुलिस अधीक्षक के सामने इसकी शिकायत दर्ज कराई. 9 अक्टूबर को उनकी एफआईआर दर्ज कर ली गई. एसएसपी सत्यार्थ अनिरुद्ध पंकज ने मुझे बताया कि पुलिस "इस मुद्दे के प्रति संवेदनशील है और हम इसे पूरी गंभीरता के साथ देख रहे हैं." उन्होंने कहा कि पुलिस "सावधानीपूर्वक काम कर रही है और आवश्यक कार्रवाई की जा रही है." पुलिस ने हरिजन के जान पर संभावित खतरे पर कार्रवाई की है और "जो भी आवश्यक होगा, वह किया जाएगा."

हरिजन को अब कुछ संगठन समर्थन दे रहे हैं. 13 और 15 अक्टूबर को, कैम्पस फ्रंट ऑफ इंडिया, भीम ब्रिगेड और यादव समुदाय के 70 वकीलों ने हरिजन के पक्ष में प्रयागराज के कंपनी बाजार में विरोध प्रदर्शन किया. यह समूह उनके साथ एसएसपी कार्यालय भी गया.

सहायक प्रोफेसर का पहला दिन आम दिन के जैसा ही था. उन्होंने बताया कि विश्वविद्यालय का माहौल पहले की ही तरह शत्रुतापूर्ण था. हरिजन से दूसरे प्रोफेसर कटे-कटे से रहे. वे लोग उन्हें “एक बाहरी व्यक्ति की तरह देख रहे थे जो उनके जैसा नहीं है."