कर्ज और बेजमीनी के साए में "खोए हुए जमीर" को तलाशतीं पंजाब की आंदोलनकारी औरतें

22 दिसंबर 2020
5 दिसंबर 2020 को हजारों आंदोलनकारियों ने दिल्ली-हरियाणा सीमा पर एक छोटे से शहर सिंघू में डेरा डाल दिया. आंदोलन की शुरुआत 26 नवंबर को हुई थी जब पंजाब और हरियाणा के किसानों, मजदूरों और खेत मजदूरों ने सितंबर 2020 में केंद्र सरकार द्वारा लागू किए गए तीन कृषि कानूनों का विरोध करने के लिए दिल्ली मार्च आयोजित किया. प्रदर्शनकारी औरतें, हालांकि तुलनात्मक रूप से संख्या में कम हैं, लेकिन उनकी मौजूदगी ध्यान खींचती है.
शाहिद तांत्रे/कारवां
5 दिसंबर 2020 को हजारों आंदोलनकारियों ने दिल्ली-हरियाणा सीमा पर एक छोटे से शहर सिंघू में डेरा डाल दिया. आंदोलन की शुरुआत 26 नवंबर को हुई थी जब पंजाब और हरियाणा के किसानों, मजदूरों और खेत मजदूरों ने सितंबर 2020 में केंद्र सरकार द्वारा लागू किए गए तीन कृषि कानूनों का विरोध करने के लिए दिल्ली मार्च आयोजित किया. प्रदर्शनकारी औरतें, हालांकि तुलनात्मक रूप से संख्या में कम हैं, लेकिन उनकी मौजूदगी ध्यान खींचती है.
शाहिद तांत्रे/कारवां

पंजाब के संगरूर जिले के घरचोन गांव में पूरे दिन आसमान में बादल छाए रहे. ठंड थी और शाम तक बारिश भी होने लगी थी. नरेन्द्र मोदी सरकार द्वारा हाल ही में लागू किए गए तीन कृषि कानूनों का विरोध करने के लिए पंजाब के किसान संगठनों द्वारा अगले ही दिन बुलाई गई “चलो दिल्ली” रैली में जाने से गुरमेल कौर को इनमें से कोई भी अवरोध रोक न सका. उनका इरादा 26 और 27 नवंबर को राजधानी पहुंचने का था. गुरमेल लगभग अस्सी साल की हैं. अपना एक छोटा बैग पैक कर मुस्कुराते हुए वह बोलीं, “मैं अपनी जमीन के लिए मरने को तैयार हूं.” उनके बैग में एक पीली चुन्नी, एक तौलिया, एक टूथब्रश, टूथपेस्ट और एक कंबल था. उन्होंने मुझे बताया कि वह केवल शादी-ब्याह और किसी की मरनी पर ही घर से बाहर जाती हैं, वह भी अपने परिवार के साथ. वह पहली बार किसी आंदोलन में शामिल हो रहीं थीं.

“मैं घर से बाहर घूंघट करके निकलती थी. अब तो कौन घूंघट लेता है पर इस चुन्नी से कभी छुटकारा नहीं मिला मुझे. अब मैं इस चुन्नी की बिल्कुल परवाह नहीं करती. मुझे अब अपना घर पसंद नहीं है. मोदी के खिलाफ इस लड़ाई को जब तक जीत नहीं लेते मैं वापस नहीं आऊंगी.” पंजाब पुलिस की वर्दी में उनके बेटे की एक तस्वीर दीवार से लटकी हुई थी. बीस साल पहले उसकी मौत हो गई थी. अगले दो हफ्तों में किसानों ने दिल्ली की सीमाओं को हरियाणा के सिंघू और टीकरी बॉर्डर पर जाम कर दिया. गुरमेल सिंघू बॉर्डर  के विरोध स्थल पर लगातार नजर रखे हुए थीं.

5 दिसंबर को विरोध प्रदर्शन के नौवें दिन, मैं पंजाब के पटियाला जिले के ककराला भिका गांव की औरतों से टिकरी विरोध स्थल पर मिली. औरतें रात के खाने के लिए रोटियां बेल रही थीं और उन्होंने अपने गांव के उन पुरुषों की ओर इशारा किया जो सब्जी और गाजर की खीर बना रहे थे. 80 साल की मुख्तार कौर ने मुझे अपनी पोती के बारे में बताया. “वह आपकी उम्र है. वह बहुत पढ़ी-लिखी है लेकिन कोई नौकरी नहीं है. अब जमीन भी नहीं रहेगी.” उन्हें सर्दी लग गई थी और सीने में दर्द हो रहा था. फिर उन्होंने कहा, “लेकिन हम लड़ेंगे. मैं अब मरने से नहीं डरती.” 60 साल की अमरजीत कौर अपने पूरे परिवार के साथ विरोध करने आईं थीं. “खेती की हालत पहले भी अच्छी नहीं थी लेकिन अब तो बदतर हो गई है. हमने ही इस सरकार को चुना और अब हम इस तरह के एकतरफा कानूनों के खिलाफ लडेंगे भी.”

गर्मियों के बाद से ही पंजाब के किसान, कृषि उत्पाद व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सुविधा) विधेयक, मूल्य आश्वासन और कृषि सेवा विधेयक और आवश्यक वस्तु और संशोधन (संशोधन) विधेयक पर किसान (सशक्तिकरण और संरक्षण) समझौता, बिलों का विरोध कर रहे हैं. इन्हें पहली बार जून में अध्यादेशों के रूप में लाया गया था और 20 और 22 सितंबर को इन्हें संसद में पारित कर दिया गया. राज्य के कई किसान संगठनों ने 25 सितंबर को पंजाब बंद के साथ 24 से 26 सितंबर तक तीन दिवसीय “रेल रोको” का आयोजन किया. राज्य की औरतें और नौजवान भारी संख्या में विरोध प्रदर्शन में शामिल हुए और विरोध प्रदर्शनों को जन आंदोलन में बदल दिया.

26 नवंबर तक विरोध प्रदर्शन का दायरा पंजाब के किसानों को पार कर गया. हिंदी में इस रिपोर्ट के प्रकाशन के समय तक दिल्ली की सीमाओं पर जारी आंदोलन को 27 दिन हो गए हैं और इसमें हरियाणा, उत्तर प्रदेश और राजस्थान के किसान शामिल हैं. कई अन्य राज्यों के किसानों ने किसान आंदोलनकारियों के साथ एकजुटता जाहिर करते हुए इसी तरह के विरोध प्रदर्शन किए हैं. इसके अलावा 8 दिसंबर को कई क्षेत्रों, जैसे कि खेत मजदूर, श्रमिक, डेयरी किसान, कमीशन एजेंट, खुदरा विक्रेता, महिला अधिकार समूह, सांस्कृतिक कार्यकर्ता और ट्रांसपोर्टरों के सैकड़ों संगठनों ने भारत बंद का आयोजन किया. भारत बंद और विरोध न केवल कृषि कानूनों के लेकर था बल्कि मौजूदा श्रम संहिता में किए गए सुधारों को लेकर भी था, जिन्हें संसद द्वारा 25 सितंबर को पारित किया गया था. ये कानून हैं- औद्योगिक संबंध संहिता कानून 2020, सामाजिक सुरक्षा और व्यावसायिक सुरक्षा संहिता कानून, 2020, स्वास्थ्य और काम करने की स्थिति संहिता कानून 2020.

संगीत तूर सायबर सुरक्षा जानकार हैं और चंडीगढ़ में रहती हैं. वह पंजाब में भूमि अधिकार और किसान संघर्ष का दस्तावेजीकरण कर रहीं हैं.

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