2014 में प्रधानमंत्री बनने के बाद नरेन्द्र मोदी अमेरिका की यात्रा पर गए. लगभग दस साल के वीसा प्रतिबंध के बाद यह उनकी पहली यात्रा थी. न्यूयॉर्क के मैडिसन स्क्वायर गार्डन में प्रवासी भारतीयों ने उनका जोरदार स्वागत किया. मीडिया में उन्हें बहुत ज्यादा कवरेज मिला. उस वक्त कनाडा में वैंकूवर के पत्रकार गुरप्रीत सिंह अपने रेडियो कार्यक्रम की तैयारी कर रहे थे. इस कार्यक्रम में अन्य बातों के साथ प्रधानमंत्री की यात्रा का विरोध करने की योजना बनाने वाले किसी शख्स के बारे में भी बताया जाना था. सिंह को अपने सहयोगियों से यह निर्देश मिलने लगे कि वह प्रधानमंत्री के खिलाफ किसी भी व्यक्ति या किसी भी तरह की सामग्री का प्रसारण न करें. हमने समझ आया कि यह रेडियो चैनल के मालिक की इच्छा है. भारतीय दूतावास के जरिए यह दबाव बनाया गया था. लेकिन गुरप्रीत ने अपनी पहले की योजना के अनुसार ही उस व्यक्ति को बोलने का मौका दिया. बदले में उन्हें नौकरी से निकाल दिया गया. उस वक्त मैं भी उसी रेडियो नेटवर्क का भारतीय प्रतिनिधि था. जब गुरप्रीत सिंह को नौकरी से निकाला गया, तो प्रतिरोध स्वरूप मैंने भी नौकरी से इस्तीफा दे दिया.
गुरप्रीत सिंह बताते हैं, “भारतीय उच्चायोग के अधिकारियों द्वारा अब तक मेरी स्वतंत्र पत्रकारिता में बाधा डालने की कोशिशें की जाती हैं. कई मंचों पर वे मेरे खिलाफ नफरत और बेइज्जती वाला रवैया अपनाते हैं.''2018 में केरल के बाढ़ पीड़ितों के लिए एक संस्था की ओर से कार्यक्रम आयोजित करवाया गया था. इस कार्यक्रम में बतौर वक्ता भारतीय उच्चायोग अधिकारी के साथ गुरप्रीत सिंह भी आमंत्रित थे. जब कार्यक्रम में उनके बोलने की बारी आई, तो उच्चायोग अधिकारी ने प्रबंधकों को चेतावनी दी कि अगर गुरप्रीत को अपनी बात रखने की इजाजत दी गई, तो वे उठ कर चले जाएंगे. सिंह ने बताया, “आखिर में प्रबंधकों ने मुझे बोलने से रोक दिया. कमाल की बात है कि आप भारत में तो लेागों की जुबान बंद कर रहे हो पर कनाडा जैसे मुल्कों में भी हमारे बोलने के अधिकार को कुचल रहे हो.” गुरप्रीत सिंह ने बताया कि भारतीय उच्चायोग वाले अब अपने किसी भी कार्यक्रम में न तो उन्हें और न ही उस रेडियो नेटवर्क के सीईओ को आमंत्रित करते हैं.
ऐसी ही कहानी कनाडा की पत्रकार तेजिंदर कौर की है. उन्होंने मोदी की यात्रा के समय ‘2002 का गुजरात हत्याकांड’ नामक रेडियो रिपोर्ट तैयार की थी जिस पर उनके रेडियो और भारतीय उच्चायोग ने एतराज जाहिर किया था. तेजिंदर कौर बताती हैं, “मुझे मानव अधिकारों के मुद्दे उठाने और मोदी की अमेरिका यात्रा के खिलाफ प्रदर्शन में शामिल होने के कारण निशाना बनाया गया.” कौर आगे बताती हैं, “मुझे सोशल मीडिया के इस्तेमाल के बारे भी सख्त निर्देश दिए गए. सोशल मीडिया अकाउंट पर क्या लिखना है और क्या नहीं लिखना इस बारे भी मुझे हिदायतें दी गईं. मुझे कहा गया कि मैं मोदी की आलोचना न करूं. मैंने भी साफ-साफ कह दिया कि यह मेरा निजी माध्यम है. इसके बाद मुझे मेरे मीडिया संस्थान ने कुछ समय के लिए छुट्टी पर जाने का सुझाव दिया. मैंने अपना पक्ष रखते हुए कहा कि या तो मुझे कार्यक्रम करने दिया जाए या फिर मैं इस्तीफा दे रही हूं. और आखिरकार मुझे रेडियो छोड़ना पड़ा.”
ब्रिटिश कोलंबिया में पंजाबी प्रैस क्लब के पूर्व अध्यक्ष गुरविंदर सिंह धालीवाल को पिछली यूपीए सरकार और मौजूदा एनडीए सरकार दोनों के ही विरोध का सामना करना पड़ा है. सन 2010 में जब उन्हें भाषा विभाग पंजाब की ओर से साहित्यिक पत्रकारिता के लिए शिरोमणि अवार्ड देने का एलान किया गया तो उस समय उनका बहुउद्देश्यीय वीसा रद्द कर दिया गया. धालीवाल ने बताया कि अपना वीसा दुबारा हासिल करने में उन्हें दो साल का समय लगा. यह भी तब संभव हो पाया जब पंजाबी यूनिवर्सिटी पटियाला के अधिकारियों ने मामले में दखल देकर कहा कि अपने पीएचडी के काम के लिए गुरविंदर को यूनिवर्सिटी आना जरूरी है.
गुरविंदर धालीवाल बताते हैं, “मुझसे औपचारिक तौर पर अधिकारियों ने ऐसे सवाल किए जैसे कि मैं भारत विरोधी हूं, मसलन मैं कभी किसी खालिस्तानी मुहिम का हिस्सा तो नहीं रहा?” गुरविंदर का कहना है, “मैंने सिर्फ तथ्य आधारित पत्रकारिता करने की कोशिश की है, मेरा मानना है कि मैं मानव अधिकारों के मुद्दों पर बात करता रहूंगा चाहे वह 1984 का सिख कत्लेआम हो या फिर 2002 का गुजरात कत्लेआम.” वह बताते हैं कि स्थानीय संस्थाओं में दबाव डाल कर उच्चायोग के अधिकारी पत्रकारों को चुप करवाने की कोशिशें करते हैं और पत्रकार तब भी नहीं झुकते तो उन्हें व्यक्तिगत तौर पर निशाना बनाया जाता है.
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