तेलंगाना में ओबीसी के नेतृत्व में दलित-विरोधी हिंसा का बढ़ना राज्य में हिंदुत्व की घुसपैठ का संकेत

2017 में तेलंगाना के नारायणखेड़ कस्बे में शिवाजी की एक प्रतिमा के उद्घाटन समारोह में तेलंगाना के बीजेपी विधायक राजा सिंह.
11 December, 2020

इस साल 14 नवंबर को दिवाली के दिन उत्तरी तेलंगाना के सिद्दीपेट जिले में गुववलेगी गांव के दलित गांव के एक केंद्रीय स्थान पर बीआर आंबेडकर की प्रतिमा स्थापित करना चाहते थे. जिस स्थान पर वे मूर्ति स्थापित करना चाहते थे वह दलित बस्ती और मुदिराज समुदाय की बस्ती के बीच थी. मुदिराज समुदाय तेलंगाना की एक प्रमुख कृषक जाति है जिसे राज्य में अन्य पिछड़ा वर्ग वर्गीकृत किया गया है. उस दिन मुदिराज समुदाय के कुछ मर्दों ने दलितों को गांव की उस सार्वजनिक जमीन में घुसने से कह कर  रोक दिया कि वे वहां हिंदू देवता गणेश की प्रतिमा रखने जा रहे हैं.

राज्य में भारतीय जनता पार्टी मुदिराज समुदाय का प्रतिनिधित्व करती है. हाल के हैदराबाद नगर निगम चुनावों में मुदिराज समुदाय के चार उम्मीदवारों को पार्टी ने टिकट दिया था. गणेश प्रतिमा के लिए मुदिराज समुदाय की मांग तेलंगाना में ओबीसी समुदायों के बीच हिंदुत्व की राजनीति के फैलने को दर्शाती है. राज्य में ओबीसी समुदाय अधिक मुखर भी हुआ है और उसकी मुखरता अक्सर दलित विरोधी हिंसा में बदल जाती है.

तेलंगाना के दलित बहुजन फ्रंट के गुववलेगी के कार्यकर्ता जंगपल्ली सेलू ने मुझे बताया कि गांव में आंबेडकर की प्रतिमा के लिए दलित परिवारों ने 35000 रुपए जमा किए थे. उन्होंने आगे बताया कि ए मुदिराज व्यक्ति को दलितों से कहा था, “अगर तुम आंबेडकर की मूर्ति चाहते हो, तो इसे अपनी कॉलोनी में लगाओ. यह अनुसूचित जाति की मूर्ति है इसलिए यह गांव के बीच में नहीं लग सकती है.”

सेलू ने मुझे बताया कि अगले दिन दोनों समुदायों के नेताओं ने गांव का दौरा किया. उन्होंने यह भी कहा कि मुदिराज समुदाय के लोगों ने दलितों पर हमला कर दिया और झगड़ा भड़क गया. बाद में पुलिस ने दखल देकर मामला शांत कराया.

जब मैंने 20 नवंबर को गुववलेगी का दौरा किया, तब भी गांव में हल्का तनाव था. वहां एक छोटा पुलिस बल तैनात था. जिला पुलिस द्वारा 20 नवंबर को समझौता करने के लिए समुदाय के नेताओं और ग्रामीणों की एक बैठक आयोजित की गई थी. हैदराबाद के एक नागरिक स्वतंत्रता कार्यकर्ता ने नाम न प्रकाशित करने का निवेदन करते हुए मुझे बताया कि ऐसे समझौते आम बात है. उन्होंने कहा, "कोई कानूनी स्थिति नहीं है. यह पुलिस के द्वारा अदालत के बाहर ही मामले को निपटाने की तरह है और मुझे यह आश्चर्यजनक भी नहीं लगा. अंतर-जातीय और अंतर-सामुदायिक विवाह के मामले में पुलिस हमेशा ऐसा करती है. पुलिस स्टेशन बातचीत की जगह बन जाता है.”

शिकायतें होने के बाद दोनों पक्ष एक समझौते पर पहुंचे कि विवादास्पद स्थान पर दोनों ही मूर्तियां स्थापित न कर इस जगह पर बस स्टॉप बनाया जाएगा. समझौते के अनुसार, आंबेडकर की प्रतिमा दस फीट दूर स्थापित की जाएगी. "आंबेडकर हमारे लिए गर्व का प्रतीक हैं लेकिन हमें नहीं पता था कि मुद्दा इतना भड़क जाएगा," सेलू ने मुझे बताया. मुदिराज समुदाय से गुववलेगी के उप सरपंच बोनी रवि ने कहा कि वह आंबेडकर विरोधी नहीं हैं. उन्होंने कहा कि लड़ाई इसलिए हुई क्योंकि दलित समुदाय ने अन्य समुदायों से परामर्श किए बिना या अधिकारियों की अनुमति के बिना प्रतिमा स्थापित करने की कोशिश की. उन्होंने कहा कि उनका बीजेपी के साथ कोई संबंध नहीं है.

25 अक्टूबर को गुववलेगी के उत्तर में लगभग 70 किलोमीटर दूर रामोजीपेटा गांव में एक और हिंसक घटना हुई. आंबेडकरवादी ऑनलाइन पोर्टल राउंड टेबल इंडिया ने एक फैक्ट फाइंडिंग मिशन के बाद बताया कि 2013 में रामोजीपेटा ग्राम पंचायत ने गांव के केंद्र में आंबेडकर की मूर्ति स्थापित करने का निर्णय लिया था. हालांकि, पिछले सात वर्षों में पंचायत ने कभी प्रतिमा नहीं बनवाई. लेकिन उसी स्थान पर इस साल अगस्त में रामोजीपेटा के मुदिराज समुदाय ने एक भूमि पूजन समारोह किया जिसमें 17वीं शताब्दी के मराठा राजा शिवाजी की मूर्ति की स्थापना की गई.

रामोजीपेटा के दलित समुदाय के 60 वर्षीय इदुल्ला बलैया ने कहा, "यह बीजेपी का किया-धरा है. मुदिराज समुदाय के युवाओं ने पिछले साल के चुनावों में बीजेपी के लिए प्रचार किया और उनकी विचारधारा से प्रभावित हुए और फिर शिवाजी की प्रतिमा स्थापित करने का प्रयास किया." इसके जवाब में 4 सितंबर को गांव के दलित निवासियों ने आंबेडकर की मूर्ति के लिए इसी तरह के समारोह का आयोजन किया. रामोजीपेट के 30 वर्षीय बेजानकी रमेश ने मुझे बताया, "आंबेडकर की शिक्षाओं के कारण ही हमारी चेतना विकसित हुई है. इसीलिए हम उनकी प्रतिमा स्थापित करना चाहते हैं."

बलैया ने कहा कि मुदिराज समुदाय की एक भीड़ ने दलित समारोह को यह कहते हुए रोकने की कोशिश की थी कि "तुम गांव के बीच में आंबेडकर की मूर्ति कैसे रख सकते हो. उसे अपने घरों में रखो." उसके बाद दो समुदायों के बीच कहा-सुनी हुई और अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 के तहत मुदिराज समुदाय के दस पुरुषों के खिलाफ जातिसूचक गालियां देने के लिए रिपोर्ट दर्ज की गई. बलैया ने मुझे बताया कि इस घटना के बाद दोनों समुदायों के बीच बातचीत हुई जिसमें फैसला किया गया कि आंबेडकर और ज्योतिबा फुले की मूर्तियों को घटनास्थल पर स्थापित किया जाएगा. बलैया ने यह भी कहा कि दलित शिकायतकर्ता प्रतिमाएं स्थापित करने के बाद एफआईआर वापस लेने पर सहमत हुए.

समुदायों के समझौता कर लेने के बावजूद रामोजीपेटा के कई दलितों ने मुझे बताया कि उन्हें अगले ही हफ्ते मुदिराज समुदाय से नए सिरे से दुश्मनी का सामना करना पड़ा. रामोजीपेटा में दलित समुदाय के अधिकांश लोग मडिगा उप-जाति से हैं जो पारंपरिक उत्सवों में ढप्पू बजाते हैं. बलैया ने मुझे बताया कि 25 अक्टूबर से पहले जब गांव वार्षिक पुष्प उत्सव बथुकम्मा का जश्न मना रहा था तो मुदिराज समुदाय ने मडिगों को ढप्पू बजाने से रोका. राउंड टेबल फैक्ट-फाइंडिंग रिपोर्ट ने उल्लेख किया कि 25 अक्टूबर को दशहरा के त्योहार के दौरान मुदिराज समुदाय ने मडिगा जाति के पंचायत उपाध्यक्ष बैजंकरी श्रीनिवास को त्योहार पर नारियल नहीं फोड़ने दिया. उन्होंने किसी भी मडिगा को गांव के मंदिर में नहीं जाने दिया.

शाम 6 बजे मुदिराज और यादव समुदायों से लगभग पचास लोगों की भीड़ ने दलितों के समूह पर हमला किया. मुदिराज और यादव दोनों ही ओबीसी में आती हैं. राउंड टेबल ने बताया कि भीड़ का नेतृत्व गांव की सरपंच पेंडेला मुंडैया के पति और गांव के मुखिया चोपपारी भूमिया कर रहे थे. रामोजीपेटा के कई निवासियों ने मुझे बताया कि भीड़ लाठी और अन्य हथियार लेकर लोगों और संपत्ति पर हमला करने के लिए आगे बढ़ी. उन्होंने खिड़कियों और दरवाजों को तोड़ दिया, एक दर्जन मोटरसाइकिलों को गिरा दिया, दलितों के घरों में पत्थर और मिर्च पाउडर फेंके. दलितों को दो घंटे तक आतंकित करने के बाद भीड़ नरम पड़ी.

बलैया के माथे पर चोट लगी और उन्हे तेरह टांके लगाने पड़े. बलैया ने कहा कि चार अन्य दलित गंभीर रूप से घायल हुए. फैक्ट-फाइंडिंग टीम ने निष्कर्ष निकाला कि हमला पहले से तय की गई साजिश थी. द न्यूज मिनट ने बताया कि मामले के कई आरोपियों को बाद में पुलिस ने अत्याचार निवारण अधिनियम के तहत गिरफ्तार किया.

रामोजीपेटा के मुदिराज की सरपंच पेंडेला मेघम्मा ने इस बात से इनकार किया कि उनका समुदाय हिंसा में शामिल था. हालांकि, बाद में उसी बातचीत में उन्होंने अपने दावे के विपरीत बातें कहीं. उन्होंने मुझे बताया कि दशहरा की शाम को दलित हंगामा कर रहे थे और जब उनके पति ने उन्हें रोकना चाहा, तो उन पर हमला कर दिया और इसके बाद उनके समुदाय ने प्रतिक्रिया की. "हमारे युवाओं ने शिवाजी की एक मूर्ति स्थापित करने का फैसला किया और उसके बाद उन्होंने आंबेडकर की मूर्ति लगाने का फैसला किया," उन्होंने कहा. फैक्ट-फाइंडिंग रिपोर्ट पूरी तरह से मेघम्मा के दावों को खारिज करती है. रामोजीपेटा में अन्य मुदिराज नेताओं से बात करने के लिए किए गए फोन कॉल का जवाब ​नहीं मिला.

तेलंगाना में रामोजीपेटा और गुववलेगी जैसी घटनाएं लगातार बढ़ रही हैं. दोनों को साथ मिलाकर देखा जाए तो यह राज्य की तेजी से बदलती राजनीति की तरफ इशारा करती है. हैदराबाद में एनएएलएसएआर यूनिवर्सिटी ऑफ लॉ के राजनीति विज्ञान के प्रोफेसर हरथी वागेशन ने मुझे बताया कि पिछले चार दशकों में जमीन की मालिक उच्च जातियां काफी हद तक ग्रामीण तेलंगाना से बाहर हो गई हैं और खाली जगह ओबीसी ने भरी थी. इसके साथ, आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में शिक्षा में सार्वजनिक सेवाओं के व्यापक निजीकरण ने समुदायों के मेलजोल की कोई जगह नहीं छोड़ी है. “सामान्य स्कूल प्रणाली समुदायों के मिलने के लिए एक मुफीद जगह थीं, जो खत्म हो गई हैं,” वागेशन ने कहा.

हैदराबाद स्थित शोध संस्थान हैदराबाद अर्बन लैब के निदेशक अनंत मरिंगंती ने कहा, "संयुक्त आंध्र प्रदेश में कांग्रेस बड़े जमींदारों, रेड्डी, ब्राह्मणों, और गरीब दलितों की पार्टी थी. ओबीसी के पास बहुत जगह नहीं थी. जब नंदामुरी तारक राम राव या एनटीआर सत्ता में आए तो कम्मा और राजुस, दो अन्य प्रमुख जातियों, जो संख्यात्मक रूप से मजबूत नहीं हैं, ने ओबीसी के साथ मिलकर तेलुगु देशम पार्टी का जनाधार बनाया. अब जब तेलंगाना में टीडीपी की मौजूदगी बहुत कम है तो ओबीसी का एक वर्ग- जिसमें मुदिराज भी शामिल हैं- ने बीजेपी की ओर रुख किया है.”

मैंने पहले कारवां के लिए रिपोर्ट में बताया था कि तेलंगाना के दुब्बाक निर्वाचन क्षेत्र में बीजेपी ने कैसे उपचुनाव जीता जो मोटे तौर पर ओबीसी युवाओं के समर्थन के कारण था. ओबीसी का एक वर्ग-जिसमें मुदिराज और यादव शामिल हैं, ने आक्रामक रूप से हिंदुत्व को अपनाना शुरू कर दिया है. उत्तरी तेलंगाना की यात्रा में मैंने नए मंदिरों, हनुमान, शिवाजी की मूर्तियों के साथ अन्य धार्मिक-सांस्कृतिक प्रतिमाओं को देखा. 2019 में बीजेपी के लिए जिन चार संसदीय सीटों के सोशल स्पेस में ये बदलाव हुए उनमें से तीन उत्तरी तेलंगाना में हैं.

वागेशन ने मुझे बताया कि रामोजीपेट में भी ओबीसी समुदायों के भीतर जो राजनीतिक बदलाव बीजेपी लाई है वह दिखाई दे रहा है. उन्होंने कहा, "रामोजीपेटा में शुरू में समझौता हुआ था कि आंबेडकर और फुले की प्रतिमाएं होंगी लेकिन बीजेपी शिवाजी को ले आई. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ तेलंगाना में बहुत ज्यादा काम कर रहा है और अन्य पिछड़ा वर्ग के पास बड़े नेता नहीं हैं. टीडीपी खत्म हो चुकी है और कांग्रेस ने गोलबंद करने की अपनी क्षमता खो दी है. ''

ओबीसी गौरव के प्रतीक के रूप में इस्तेमाल किए जा रहे शिवाजी तेलंगाना में ऐतिहासिक रूप से फिट नहीं बैठते. शिवाजी कौन थे? सत्रहवीं शताब्दी के राजा की एक सबसे अधिक बिकने वाली मराठी जीवनी में तर्कवादी गोविंद पानसरे ने कहा कि शिवाजी एक किसान राजा थे, एक शासक थे जो जमींदारों द्वारा शोषण को समाप्त करते थे और किसानों के लिए कराधान की उचित दर सुनिश्चित करते थे. यह बीजेपी और अन्य हिंदू राष्ट्रवादी संगठनों द्वारा एक राजा के रूप में शिवाजी के चित्रण के विपरीत है.

पानसरे ने लिखा है, "शिवसेना की स्थापना साठ के दशक में हुई थी. यह पार्टी जो कुछ भी करती है वह शिवाजी का नाम पर गैर मराठी और मुसलमानों के खिलाफ होता है. इन बलों ने कई और संगठनों की स्थापना की है : हिंदू एकता, मराठा महासंघ, पतित पावन संगठन. ये सभी शिवजी का नाम जपते हैं. जब उन्होंने आरक्षण के नारे का विरोध किया तो भी वे शिवाजी महाराज की जय कह रहे थे. जब मराठवाड़ा में दलित बस्तियों पर हमला किया गया, तो भा जय शिवाजी नारा लगा.”

पानसरे की 2015 में हत्या कर दी गई. कई लोगों का मानना है कि यह एक ऐसी आवाज को चुप कराने की कोशिश थी जिसने शिवाजी की एक अलग व्याख्या पर जोर दिया था. महाराष्ट्र में उग्रवादी हिंदू आइकन के रूप में शिवाजी के चित्रण के बाद राज्य में ओबीसी आक्रमकता बढ़ गई जो अक्सर दलितों के खिलाफ हिंसा या दलितों के लिए संवैधानिक सुरक्षा को हटाने की मांग करती है. तेलंगाना में बीजेपी के आने से पता चलता है कि राज्य का सामाजिक माहौल बदल रहा है.