चेन्नई की स्लम संसद

नवंबर 2023 में चेन्नई के एक इलाके बॉर्डर थोट्टम में स्लम संसद की तस्वीर. अनुज साहेबराव रायते

चेन्नई के ट्रिप्लिकेन के पास बॉर्डर थोट्टम में एक तंग जगह पर स्लम संसद का सत्र चालू था. नवंबर 2023 में यह बैठक क्षेत्र में रहने वाले लोगों की यूनियन के कार्यालय में आयोजित की गई थी. यह संसद एक समिति और एक परिषद से बनी होती है. समिति का गठन झुग्गी बस्ती के निवासियों द्वारा किया जाता है, जबकि परिषद में राज्य सरकार, चेन्नई शहर प्रशासन, इंजीनियरिंग, संरक्षण और स्वास्थ्य जैसे विभागों के प्रतिनिधि शामिल होते हैं.

स्लम के निवासी और स्लम संसद के कोषाध्यक्ष ईएस रेजी ने अपनी मांगों को पूरा करने में विफल रहने पर इंजीनियरिंग और संरक्षण विभागों के प्रतिनिधियों से एक प्रश्न पूछते हुए कहा, ''पिछले महीने गड्ढों को भरने पर सहमति बनी थी. इस काम में हुई देरी से लोगों को काफी असुविधा हुई है. क्या हम इस महीने काम के आगे बढ़ने की उम्मीद कर सकते हैं?" अधिकारियों ने कमियों को स्वीकार किया और आने वाले पखवाड़े में बेहतर काम करने का वादा किया.

थोट्टम में स्लम संसद चेपॉक-थिरुवल्लिकेनी निर्वाचन क्षेत्र के भीतर दो संसदों में से एक है, जो स्लम पुनर्विकास के लिए वास्तुशिल्प और शहरी-डिजाइन फर्म रीसाइकल बिन, गैर-सरकारी संगठन चीयर और राज्य सरकार के कई सरकारी विभागों द्वारा शुरू की गई एक पायलट परियोजना है. रीसाइकल बिन सामाजिक और सामुदायिक मामलों से संबंधित परियोजनाओं पर काम करती है.

चेन्नई में 48 झुग्गी बस्तियों का दौरा करने के बाद इन बस्तियों में संसदीय प्रक्रियाओं को लाने का विचार किया गया. फर्म के संस्थापक गंगा दिलीप सी ने मुझे बताया, "हमने कुछ भी नया नहीं किया है. बस इसमें सरकारी विभागों को जोड़ने के बाद संगम को फिर से सक्रिय कर दिया. अधिकांश संगम निष्क्रिय हैं लेकिन उनके पास स्थान और उनके पंजीकरण हैं. हमने अपने उपयोग के लिए जगह को ठीक किया. ”

अकादमिक एडम माइकल ऑउरबैक ने अपनी पुस्तक “डिमांडिंग डेवलपमेंट: द पॉलिटिक्स ऑफ पब्लिक गुड्स प्रोविजन इन इंडियाज अर्बन स्लम्स” में भोपाल और जयपुर सहित इसी तरह की परियोजनाओं के बारे में लिखा है, जहां झुग्गी निवासियों द्वारा स्थापित विकास समितियां कल्याणकारी संघों के रूप में कार्य करती हैं और सार्वजनिक सेवाओं के लिए सरकारी अधिकारियों को संगठित करने, याचिका दायर करने और नीतियों के बारे में जानकारी फैलाने जैसे कार्य करती हैं.

संसद की बैठक हर महीने होती है. इन बैठकों में अगले महीने का रोडमैप तैयार किया जाता है और पिछले महीने के काम की समीक्षा की जाती है. समुदाय के सदस्यों के अलावा दर्शक भी चर्चा में सक्रिय रुचि लेते हैं और सुझाव देते हैं.

नवंबर की उस बैठक को होते देख झुग्गी-झोपड़ी के कई नौजवान लड़के ब्लॉक के सामने जमा हो गए, जिससे वहां चहल-पहल बढ़ गई. महिलाओं ने हैंडपंप लगाने और सड़क में गड्ढों की मरम्मत के बारे में सुझाव दिए और अन्य शिकायतें भी उठाईं. सभी शिकायतों को रीसाइकल बिन के सामुदायिक विकास पर्यवेक्षक जॉन एबेनेजर नोट कर रहे थे. उन्होंने मुझे बताया कि जब मांगें रखने की बात आती थी तो झुग्गी बस्ती के सदस्य बेहद मुखर होते थे. बैठक में रेजी ने सड़क के पुनर्निर्माण कार्य में हो रही देरी पर भी निराशा व्यक्त की. अधिकारियों ने जवाब दिया कि ग्रेटर चेन्नई कॉर्पोरेशन की विभिन्न इकाइयों के बीच गलत संचार के कारण देरी हुई. दिसंबर की बैठक आते-आते गड्ढों की मरम्मत कर दी गई.

यह परियोजना सीधे बातचीत के मॉडल पर काम करती है. इसका लक्ष्य अधिकारियों और निवासियों को आमने-सामने लाकर मुद्दे सुलझाना और जवाबदेही तय करना है. रीसाइकल बिन की मीनाक्षी मीरा ने मुझे बताया, “स्लम बस्तियों में विकास परियोजनाएं ज्यादातर लोगों को आवास देने और शहर को झुग्गी मुक्त बनाने के बारे में हैं, हालांकि, इन बस्तियों की आत्मनिर्भरता पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया गया है. केवल घर देने पर विचार किया जाता है लेकिन रहने योग्य स्थान पर नहीं. स्लम संसद शासन और नागरिकों को एक साथ लाती है और संवाद के लिए एक मंच प्रदान करती है. इसका मुख्य उद्देश्य समुदाय में से नेता तैयार करना और उन्हें अपने क्षेत्र के विकास की बागड़ोर संभालने देना है.

स्लम की समिति के सदस्य विभिन्न कार्यक्षेत्रों के प्रतिनिधियों के रूप में कार्य करते हैं. प्रत्येक कार्यक्षेत्र स्लम विकास के एक पहलू से संबंधित है, जैसे कि "इको बैंक", जिसके माध्यम से स्वच्छता से जुड़े मुद्दों को उठाया जाता है; महिला सशक्तिकरण को प्राथमिकता देने के लिए "शी प्रोजेक्ट" और बच्चों की शिक्षा और विकास में सुधार के लिए "कुट्टी प्रोजेक्ट". प्रत्येक कार्यक्षेत्र राज्य सरकार या नागरिक निकाय से जुड़ा होता है. मीरा ने बताया कि शून्य-अपशिष्ट पहल के तहत, एक स्वयं सहायता समूह की महिलाएं चिंताद्रिपेट क्षेत्र में एक कपड़ा अपसाइक्लिंग इकाई चलाती हैं, जहां कचरे से गुड़िया बनाई जाती हैं. स्लम संसद का यह मॉडल सीधे बातचीत और गुणात्मक सेवा प्रदान करने के कारण निवासी संघों के पारंपरिक रूप से अलग है.

झुग्गी बस्ती में रहने वाली 42 वर्षीय वसंती ने मुझे बताया, "संगम ने हमारे लिए पानी के पंप और सड़कें बनाईं और पूरे क्षेत्र को साफ रखने में मदद की है." कई निवासी अभी भी स्लम संसद के लिए "संगम" शब्द का उपयोग करते हैं. “पहले सिर्फ एक पानी का टैंकर होता था, अब तीन हैं.”

चेपॉक के चिंताद्रिपेट इलाके में स्लम संसद के बारे में गंगा ने मुझे बताया कि एक बैठक के दौरान एक महिला ने समुदाय में महिलाओं के गुप्तांग को प्रभावित करने वाले संक्रमण को लेकर चिंता जताई. इसके बाद स्वास्थ्य विभाग ने निवासियों के लिए एक शिविर का आयोजन किया. यह पाया गया कि समस्या आम टैंक में पैदा होने वाले शैवाल से जुड़ी थी, जो ई. कोली और साल्मोनेला जैसे बैक्टीरिया को पनपने में मदद करती है. इसके बाद विभाग ने टंकी को ठीक करने का काम किया. चिंताद्रिपेट स्लम के विधायक मुख्यमंत्री एमके स्टालिन के बेटे उदयनिधि स्टालिन हैं, जिन्होंने कथित तौर पर कुछ संसद बैठकों में भाग भी लिया है. जबकि स्लम-संसद मॉडल स्लम के विकास करने की रणनीतियां बनाने में सहायक हो सकता है, इसे लेकर कुछ शोधकर्ता संशय में हैं. 2009 के एक शोधपत्र में, नीदरलैंड स्थित शोधकर्ताओं जोप डी विट और एरहार्ड बर्नर ने, चेन्नई, मुंबई और बेंगलुरु जैसे भारतीय शहरों में जमीनी स्तर के नेतृत्व वाले शहरी विकास, स्लम संघों और समुदाय-आधारित संगठन गठबंधनों की आलोचनात्मक जांच की.

लेखकों ने गरीबों का प्रतिनिधित्व करने में इन संघों की वैधता पर सवाल उठाया, खासकर "अगर निशाना सभी या झुग्गी निवासियों के एक जरूरी बहुमत की वास्तविक भागीदारी और लाभ है.

लेखकों ने तर्क दिया, कई मामलों में ऐसे संगठनों का नेतृत्व स्थानीय अभिजात वर्ग द्वारा किया जाता था और "समुदाय-आधारित संगठन" शब्द का उपयोग "कुछ चालाक उद्यमियों के एक समूह द्वारा उन लाभों को प्राप्त करने के लिए किया जाता था जिन्हें व्यापक रूप से साझा नहीं किया जाता, चाहे वह पैसे से जुड़ा हो या जानकारी से." ऑरबैक भी इस बात पर प्रकाश डालते हैं कि कैसे, सार्वजनिक सेवाओं का दावा करने के लिए झुग्गी-झोपड़ी के निवासी अक्सर "झुग्गी-झोपड़ी के नेताओं की सहायता लेते हैं, जिनमें से कई बड़े पार्टी में शामिल पार्टी कार्यकर्ता हैं."

बॉर्डर थोट्टम में कमरे में सरसरी नज़र से देखने पर जो पहली चीज मैंने संसद के बारे में देखी, वह थी कमरे में महिलाओं की कमी. इसके अलावा, रीसाइकल बिन के एक कर्मचारी ने मुझे बताया कि स्लम संसद के नेता वर्तमान सत्तारूढ़ दल, द्रविड़ मुनेत्र कड़गम से जुड़े थे.

63 वर्षीय निवासी कल्याणी ने कहा, "केवल पुरुष ही समिति का नेतृत्व करते हैं. जब लोग लड़ते हैं, तो महिलाएं समस्या को सुलझाने नहीं जा सकतीं. अगर पुलिस को परिसर में प्रवेश करने से रोकना है, तो केवल पुरुष ही उनसे बात करने और उन्हें रोकने के लिए जा सकते हैं." गंगा ने संगम की पारंपरिक पुरुष-प्रधान प्रकृति को इसका एक कारण बताया.  “अधिकांश संगमों में “अधिकांश थलाइवा” (नेता) पुरुष हैं. उन्होंने कहा, “यह एक ऐसा क्षेत्र है जहां हमने अभी तक शुरुआत नहीं की है, लेकिन हम यह बात जानते हैं कि कई महिलाएं नेतृत्व करना चाहती हैं.” उन्हें उम्मीद थी कि उनकी कंपनी जल्द ही इसका समाधान करना शुरू कर देगी. हालांकि, जिन सभी लोगों से मैंने बात की, उनमें झुग्गी बस्ती के निवासी भी शामिल थे, उन्होंने संसद को अपनी दैनिक जरूरतों को पूरा करने वाली चीज की तुलना में एक बड़े अवसर के रूप में देखा. बॉर्डर थोट्टम में बैठक में मौजूद एक स्वास्थ्य निरीक्षक कविप्रियन ने कहा, “स्लम संसद न केवल निवासियों के लिए बल्कि विभागों के लिए भी उपयोगी है. यह सीधे जानकारी के एक अच्छे चैनल के रूप में कार्य करता है और हमें कार्य में अधिक स्पष्टता प्रदान करता है.'' पांच पीढ़ियों से झुग्गी में रहने वाली 55 वर्षीय एस्वारी ने भी इसकी मध्यस्थता क्षमता को स्वीकार किया. उन्होंने मुझसे कहा, "संगम ने यहां शांति बनाए रखने में मदद की है."

एक सफाई निरीक्षक, एनएम सुरेश ने अपशिष्ट पृथक्करण के बारे में जागरूकता को मॉडल से सबसे बड़ी उपलब्धि के रूप में देखा. मेट्रो-जल विभाग के एक इंजीनियर नरेश कुमार ने कहा, “संसद वंचितों को सामाजिक और वित्तीय मामलों में मदद करेगी. जब सत्ता उनके पास होती है तो लोग खुश रहते हैं. वे सुनिश्चित करेंगे कि कोई शिकायत न हो और समस्याओं का तुरंत समाधान किया जाए.'' परियोजना अभी भी अपने शुरुआती चरण में थी और ट्रिप्लिकेन में अन्य बस्तियों में भी शुरू की जाने के लिए तैयार थी. कुमार ने कहा, "अगर इसे अच्छी तरह से लागू किया जाए, तो अस्सी प्रतिशत संभावना है कि यह मॉडल शहर में हर जगह काम करेगा." बॉर्डर थोट्टम में इसके सकारात्मक परिणामों के बावजूद, मीरा विस्तार से आने वाली चुनौतियों को लेकर चिंतित थी. उन्होंने कहा, "निर्वाचन क्षेत्र में 48 झुग्गियां हैं. अधिकारियों के लिए एक महीने में इन बैठकों में शारीरिक रूप से भाग लेना असंभव होगा."


अनुज साहेबराव रायते चेन्नई में एशियन कॉलेज ऑफ जर्नलिज्म में नामांकित एक छात्र पत्रकार हैं. उन्होंने हैदराबाद स्थित डिजिटल समाचार वेबसाइट सियासत में लेखों का योगदान दिया है, और बेंगलुरु के एक स्वतंत्र डिजिटल समाचार पोर्टल न्यूज़हैम्स्टर में सामग्री प्रमुख थे.