झारखंड के सदियों पुराने महापाषाण स्थल पर मंडरा रहा खनन और औद्योगिकरण का खतरा

पुंकरी बरवाडीह अन्य जनजातीय कब्रगाहों की तरह नहीं है लेकिन यह पुरातत्व-खगोल विज्ञान के शोधकर्ताओं के लिए दिलचस्प विषय है क्योंकि इसके निर्माण में ग्रेट ब्रिटेन के स्टोनहेंज और आयरलैंड के महापाषाण स्थलों की तरह ही खगोल विद्या और गणित का प्रयोग किया गया था.
दीपांविता गीता नियोगी
पुंकरी बरवाडीह अन्य जनजातीय कब्रगाहों की तरह नहीं है लेकिन यह पुरातत्व-खगोल विज्ञान के शोधकर्ताओं के लिए दिलचस्प विषय है क्योंकि इसके निर्माण में ग्रेट ब्रिटेन के स्टोनहेंज और आयरलैंड के महापाषाण स्थलों की तरह ही खगोल विद्या और गणित का प्रयोग किया गया था.
दीपांविता गीता नियोगी

दिन ढल रहा था और आसमान में छाए हुए बादलों से डूबते सूरज की अंतिम किरणें झांक रही थीं. प्रागैतिहासिक शैलकला के लिए प्रसिद्ध इस्को गांव में मेरे गाइड ने अपनी मोटलसाइकल रोक दी. यह गांव झारखंड के हजारीबाग से पच्चीस किलोमीटर दूर बरकागांव के पास पुंकरी बरवाडीह महापाषाण स्थल के पास है. मौजूद रौशनी में मैं दो आश्चर्यजनक स्मारकों की तस्वीरें लेने लगी. फिर दिन पूरी तरह ढल जाने के बाद मैं दो दशकों से महापाषाणों का अध्ययन कर रहे स्वतंत्र शोधकर्ता सुभाषिस दास से मिली. उन्होंने बताया कि इन महापाषाणों का अपना एक अस्तित्व है और पुंकरी बरवाडीह स्थल विलुप्त होने के कगार पर है. हजारीबाग में लगभग नौ हजार साल पुरानी मेसो-कैलकोलिथिक शैलकलाओं वाली प्राचीन गुफाओं के क्षेत्र को कोयला खनन ने काफी तबदील कर दिया है. दो झुके हुए स्मारक स्तंभो द्वारा बनाई गई अंग्रजी के वी अक्षर की आकृति के पास खड़े होकर मैं थोड़ी दूरी पर स्थित राष्ट्रीय ताप विद्युत निगम संयंत्र को देख रही थी. दास ने मुझे बताया, “मेरे शोध के अनुसार यहां महापाषाण स्थल बनाने के लिए सबसे जरूरी चीज पहाड़ियां थीं. उनके बिना, एक भी महापाषाण स्थल नहीं बनाया जा सकता था. इसलिए इस बात की सराहना करना जरूरी है कि किस तरह प्राचीन काल में लोगों ने पत्थरों को आसपास की पहाड़ियों की चोटियों और खांचों में स्थापित किया था. लेकिन दुख की बात है कि अब इन संरचनाओं को खराब किया जा रहा है.”

महापाषाण पर शोध करने वाले रांची के पुरातत्वविद हिमांशु शेखर ने मुझे बताया कि प्रत्येक महापाषाण स्थल उसे बनाने वाले वंश की मान्यताओं के अनुरूप एक विशेष अभिविन्यास पर आधारित है. उदाहरण के लिए, छोटानागपुर पठार के मुंडा प्रजाति के लोगों ने प्राकृतिक कारणों से मरने वालों की याद में उत्तर-दक्षिण अभिविन्यास में सासंदिरी और अप्राकृतिक कारणों से मरने वालों और समाज में विशेष स्थान रखन वालों की याद में पूर्व-पश्चिम अभिविन्यास में बिरिदरी का निर्माण कराया था. दास ने बताया, “पुंकरी बरवाडीह अन्य जनजातीय कब्रगाहों की तरह नहीं है लेकिन यह पुरातत्व-खगोल विज्ञान के शोधकर्ताओं के लिए दिलचस्प विषय है क्योंकि इसके निर्माण में ग्रेट ब्रिटेन के स्टोनहेंज और आयरलैंड के महापाषाण स्थलों की तरह ही खगोल विद्या और गणित का प्रयोग किया गया था." उन्होंने आगे कहा, पुंकरी बरवाडीह का उपयोग प्राचीन काल में वसंत और शरद ऋतु में समय को देखने के लिए किया जाता था.

पुंकरी बरवाडीह में दिन ढल चुका था. गोधूलि अपने साथ सुनेपन लेकर आई थी जिसे हजारीबाग से बड़कागांव को जोड़ने वाली मुख्य सड़क के किनारे बने ढाबों की चहल-पहल कुछ हद तक दूर कर पा रही थी. उन्हीं में से एक ढ़ाबे के सामने एक स्थानीय निवासी ने मुझे बताया कि 2002 में एनटीपीसी द्वारा क्षेत्र में कोयला खनन परियोजना के लिए शुरू किए गए सर्वेक्षण के तुरंत बाद से ही विरोध शुरू हो गया था. नाम न छापने की शर्त पर उन्होंने कहा, "आज भी कई लोग इस पर खुलकर बात नहीं करेंगे. एनटीपीसी का विरोध करने पर 542 लोगों के खिलाफ मामले दर्ज किए गए हैं और कुछ का झुकाव कंपनी की तरफ बना हुआ है. हममें से कुछ लोग अभी भी आंदोलन को जिंदा रखे हुए हैं. मेरे खिलाफ भी कुल 18 मामले दर्ज किए गए हैं.” तीन हजार हेक्टेयर से अधिक में फैली पुंकरी बरवाडीह ओपन कास्ट कोयला खदान में खनन कार्य 2016 में शुरू हुआ था. प्रतिवर्ष 15 मिलियन टन की उत्पादन क्षमता वाली खदान महापाषाण स्थल से पांच किलोमीटर से भी कम दायरे में स्थित है.

एक स्वतंत्र शोध निकाय लैंड कॉन्फ्लिक्ट वॉच के अनुसार इस परियोजना से चालीस हजार से अधिक लोग प्रभावित हुए हैं. पुलिस ने 2013, 2015 और 2016 में, तीन बार प्रदर्शनकारियों पर गोलियां चलाईं जिसमें सात लोगों की मौत हुई और 18 घायल हुए थे. दास ने कहा कि खनन और उससे संबंधित निर्माण परियोजनाओं ने महापाषाण स्थल के संरेखण को खराब कर दिया है जिसके परिणामस्वरूप इस स्थान ने अपना खगोलीय महत्व खो दिया है. एनटीपीसी ने मुझे एक ईमेल में आश्वासन देते हुए लिखा कि यह स्थल खतरे में नहीं है और यह उस क्षेत्र में स्थित है जहां 2050 के बाद ही खनन कार्य शुरू होगा. स्थानीय निवासियों ने मुझे बताया कि स्थानीय लोगों और जिला प्रशासन ने महापाषाण परिसर को पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करने की कोशिश की, लेकिन इस बात को लेकर कोई प्रगति नहीं हुई.

पुंकरी बरवाडीह अन्य जनजातीय कब्रगाहों की तरह नहीं है लेकिन यह पुरातत्व-खगोल विज्ञान के शोधकर्ताओं के लिए दिलचस्प विषय है क्योंकि इसके निर्माण में ग्रेट ब्रिटेन के स्टोनहेंज और आयरलैंड के महापाषाण स्थलों की तरह ही खगोल विद्या और गणित का प्रयोग किया गया था.

दीपांविता गीता नियोगी दिल्ली की पत्रकार हैं और पर्यावरण एवं विकास संबंधी मामलों पर लिखती हैं.

Keywords: Jharkhand Adivasis tourism Coal mining culture subculture
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