फ़तेहपुर सीकरी के युवा गाइड

चित्रण/शरन एस मेनन

We’re glad this article found its way to you. If you’re not a subscriber, we’d love for you to consider subscribing—your support helps make this journalism possible. Either way, we hope you enjoy the read. Click to subscribe: subscribing

उत्तर प्रदेश के आगरा जिले के फ़तेहपुर सीकरी, जिसे विजय के शहर के रूप में भी जाना जाता है, में ग्यारह वर्षीय अदनान के दिन की शुरुआत उन पर्यटकों की तलाश से होती है, जो उसे टूर गाइड के रूप में काम पर रख सकें. अदनान ने मुझे बताया, “कभी-कभी यह कठिन हो जाता है. पर्यटक आमतौर पर हमें यह सोचकर भगा देते हैं कि हम धोखेबाज हैं और हमें कुछ नहीं आता.'' पांच वर्ष से लेकर किशोरावस्था तक के अदनान जैसे बच्चे स्मारकों के किलेदार लाल बलुआ पत्थर वाले परिसर में प्रवेश करते ही पर्यटकों के चारों ओर झुंड बना लेते हैं और सभी उन्हें अपनी तरफ लाने के लिए प्रतिस्पर्धा करते हैं.

अदनान आकर्षक तरीके से कहानी बताने वाला बच्चा है. जब मैं अदनान से फ़तेहपुर सीकरी के प्रवेश द्वार पर मिली, तो उसने 50 रुपए में गाइड की अपनी सेवाएं देने की पेशकश की. छोटे टूर गाइड से प्रभावित होकर मैं सहमत हो गई. उसने मुझे कहानियों के माध्यम से वहां का इतिहास सुनाया. मुझे आश्चर्य हुआ कि उसकी कहानियां सटीक थीं, जो अन्य गाइडों से समझकर और दोस्तों के सामने अभ्यास करने का परिणाम थीं.

मुगल काल में अकबर द्वारा सोलहवीं शताब्दी के अंत में निर्मित फ़तेहपुर सीकरी को 1986 में यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल के रूप में मान्यता दी गई थी. इसके बावजूद यह क्षेत्र गरीब बना हुआ है, स्थानीय लोग पर्यटन से जुड़े छोटे व्यवसायों पर निर्भर हैं. कॉम्प्लेक्स के अंदर एक विक्रेता मोहम्मद कासिम ने मुझे बताया, "फतेहपुर सीकरी में बहुत गरीबी है, यहां काम के विकल्प सीमित हैं." लोग या तो टूर गाइड बन जाते हैं या कालीन उद्योग में काम करते हैं, जिसके लिए ऐसे कौशल की आवश्यकता होती है जो बच्चों के पास नहीं है.

नतीजतन, जो माता-पिता प्रतिदिन बमुश्किल तीन से चार सौ रुपए कमाते हैं, वे अपने बच्चों को अपनी पारिवारिक आय बढ़ाने के लिए गाइड बनने के लिए प्रोत्साहित करते हैं. कासिम ने बताया, "फतेहपुर सीकरी के पीछे बस्ती के लगभग हर परिवार के बच्चे इस काम में शामिल हैं."

पिछले आठ वर्षों से इस व्यवसाय में काम कर रहे 19 वर्षीय टूर गाइड साहिल मोहम्मद ने मुझे बताया, "आपको हर दिन लगभग पैंतालीस से पचास बच्चे टूर गाइड के रूप में काम करते हुए मिलेंगे. यह काम सीखने की कोई विशेष प्रक्रिया नहीं है. बच्चे अधिकतर अनुभवी गाइडों के साथ रहते हैं और वह सब कुछ सीखते हैं जो बड़े गाइड कहते हैं. कभी-कभी, उनके माता-पिता उन्हें इतिहास बताते हैं.

युवा गाइड पर्यटकों को पूरा क्षेत्र दिखाते हैं, उन्हें आकर्षक दुकानों पर रोकते हैं, उन्हें कुछ खरीदने के लिए प्रेरित करते हैं और इसके अंत में उनकी मेहनत की कमाई को एक रिश्तेदार के पास जमा कर देते हैं जो आमतौर पर परिसर के अंदर छोटा व्यवसाय चलाने वाला होता है. इस व्यवसाय में भी स्तर दिखाई पड़ते हैं. छोटे बच्चे कविता सुनाते हैं और एक बार जब वे पर्यटकों को आकर्षित कर लेते हैं, तो वे तेजी से पैसे मांगते हैं. जिन बच्चों ने अपनी कहानी बताने की कला में सुधार कर लिया है, उन्हें और अधिक कहानी सुनाने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है और अंततः वे बिना लाइसेंस वाले टूर गाइड के रूप में काम करते हैं.

मुझे दस साल का रेहान कुरेशी अपने सबसे अच्छे दोस्त बिलाल के साथ हाथ में हाथ डाले चलते हुए मिला. रेहान ने यह काम अपने पिता से सीखा था, जो एक टूर गाइड थे. उन्होंने रेहान को कहानियां रटा दी और पहली कुछ यात्राओं में उसके साथ रहे. दस साल का बिलाल भी अपने पिता के साथ परिसर के अंदर स्मृति चिन्ह बेचता है. जब उनसे पूछा गया कि उन्होंने पढ़ाई की है या नहीं, तो उन्होंने बताया कि उन्होंने स्थानीय दरगाह कमेटी द्वारा संचालित मदरसे में पढ़ाई की है. वे सुबह 8 बजे से 10 बजे तक मदरसा जाते हैं और उसके बाद काम पर लग जाते हैं.

अदनान ने बताया, "जब मैं छोटा था तब मेरे माता-पिता का निधन हो गया था, तब से मैं आगरा में अपनी दादी के साथ रह रहा हूं." वह तीसरी कक्षा में पढ़ता है और उसने मुझे बताया कि वह सप्ताह के दिनों में आगरा के एक स्कूल में पढ़ने जाता है और कमाने के लिए सप्ताहांत में वापस फ़तेहपुर आ जाता है. अन्य युवा गाइडों की तरह अदनान भी टूर गाइड का काम करके पैसे कमाने के लिए ज्यादातर समय अपनी कक्षाएं छोड़ देता है. वह अपनी कमाई अपने चाचा पप्पू खान के पास जमा करता है जो दरगाह परिसर के अंदर फूल और चादरें बेचते हैं.

अदनान ने मुझे बताया कि उसने इतिहास की कोई किताब कभी देखी या पढ़ी नहीं है. उसे फ़तेहपुर सीकरी से जुड़ी कहानियों के अलावा कोई इतिहास नहीं पता था. और यह जानकारी भी उसने अन्य गाइडों से सीखी थी. लेकिन गाइड का काम करना निश्चित रूप से पेशे के लिए उसकी पहली पसंद नहीं थी. अदनान जैसे कई लोगों की आकांक्षाएं टूर गाइड बनने से परे हैं. अदनान घर के पास रहने वाले एक स्टाइलिश इलेक्ट्रीशियन से प्रेरित होकर इलेक्ट्रीशियन बनने का सपना देखता है. उसने बताया, “मेरे घर के पास रहने वाला इलेक्ट्रीशियन शाहरुख खान की तरह कपड़े पहनता है. वह बेहद स्टाइलिश दिखता है. मैं उनके जैसा बनना चाहता हूं.'' उसके अनुसार, एक इलेक्ट्रीशियन बनने से उनकी जिंदगी बदल जाएगी और वह बेहतर स्थिति में आ जाएंगे क्योंकि टूर गाइड की आर्थिक स्थिति काफी खराब होती है.

फ़तेहपुर सीकरी में टूर गाइड बनने का लाइसेंस मिलना बेहद मुश्किल है. फ़तेहपुर का धार्मिक पहलू इसे सीकरी का प्रबंधन करने वाले भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के अधिकार क्षेत्र से बाहर रखता है. हालांकि यह एएसआई द्वारा संरक्षित स्मारक बना हुआ है, लेकिन बड़े फैसले उत्तर प्रदेश सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड द्वारा लिए जाते हैं. बोर्ड के तहत, एक दरगाह समिति जिसमें मुगल काल के सूफी संत सलीम चिश्ती के परिवार के लोग शामिल हैं, पूरे परिसर की देखभाल करती है. इसके अलावा, सीकरी में लाइसेंस प्राप्त गाइडों का जीवन लाइसेंस के उच्च शुल्क और नवीनीकरण लागत सहित कई चुनौतियों से भरा है. उनकी फीस एएसआई की निर्धारित राशि से काफी कम है क्योंकि कई पर्यटक इसे ज्यादा मानते हैं. 56 वर्षीय इब्राहिम खान, जो तीस वर्षों से टूर गाइड हैं, बताते हैं, "पर्यटक हमें जितने भी पैसे स्वेच्छा से देंगे, हम उससे सहमत हैं क्योंकि यह हमारी आय का एकमात्र स्रोत है. हमें सरकार से वेतन नहीं मिलता है. हमें हर छह महीने में अपना लाइसेंस नवीनीकृत करना होता है. इसकी कीमत 7,000 रुपए है. फिर हमें एएसआई द्वारा आयोजित एक परीक्षा में शामिल होना होता है. यह सब करने के लिए हमें पैसों की आवश्यकता होती है.”

फ़तेहपुर सीकरी में 14 साल की उम्र में टूर गाइड के रूप में काम करना शुरू करने वाले 21 वर्षीय गाइड जायद क़ुरैशी ने इस बात पर ज़ोर दिया कि पर्यटक अक्सर बच्चों को गाइड रखते हैं, यहां तक कि स्थानीय लोगों से बहस भी करते हैं जो इसे रोकने की कोशिश करते हैं. इस चलन ने पुराने गाइडों में निराशा पैदा कर दी है, जिसमें वे स्वयं भी शामिल हैं, जो छोटे, अधिक आकर्षक युवा गाइडों के कारण मिलने वाला थोड़ा सा काम खो देते हैं. उन्होंने कहा कि इन बच्चों, जिनमें से कई ने विदेशी भाषाएं सीख ली हैं, को पढ़ाई पर अधिक ध्यान देना चाहिए.

दिल्ली की रहने वाली वकील स्वाति ड्रैक ने मुझे बताया, "सात या आठ साल से अधिक उम्र के बच्चे, जो ऐसी नौकरियों में शामिल हैं, आम तौर पर बाल श्रम के अंतर्गत नहीं आते हैं. सबसे पहले, वे खुद ऐसा काम करना चुनते हैं. दूसरे, ये नौकरियां खतरनाक नहीं हैं." ड्रेक के अनुसार, बच्चों को टूर गाइड के रूप में काम करने से रोका जाना चाहिए, लेकिन क्योंकि यह अवैध नहीं है इसलिए सरकार इसे नजरअंदाज कर देती है.

अदनान ने सलीम चिश्ती की कब्र का जिक्र करते हुए कहा, “यह दरगाह है. परिसर के अंदर अन्य सभी स्मारकों की तरह, यह दरगाह भी लाल बलुआ पत्थरों से बनाई गई थी, लेकिन जब जहांगीर राजा बन गए तब उन्होंने अपने नाम के सम्मान में इसे सफेद संगमरमर का उपयोग करके फिर से बनवाया. "दीदी, अंदर जाओ," यह महसूस करने के बाद कि मैं अंदर जाने से झिझक रही हूं, उसने मुझे बताया कि "लड़कियां प्रवेश कर सकती हैं." मैंने उनसे पूछा कि अगर लड़कियां प्रवेश कर सकती हैं तो आसपास एक भी महिला टूर गाइड क्यों नहीं है. उसने कहा, “अगर मेरी कोई बहन होती, तो मैं नहीं चाहता कि वह काम करे. मैं चाहता कि वह घर पर रहे, पढ़ाई करे और आराम करे.''

Thanks for reading till the end. If you valued this piece, and you're already a subscriber, consider contributing to keep us afloat—so more readers can access work like this. Click to make a contribution: Contribute