मुंबई के रेहड़ी-पटरी वालों का लाइसेंस के लिए लंबा इंतजार

मुंबई में ग्रांट रोड ट्रेन स्टेशन के पास, भाजी गली में स्ट्रीट वेंडर सुबह 7 बजे के आसपास अपनी दुकान लगाते हुए. सुकृति आनाह स्टैनली

लगभग हर दिन कुर्ला रेलवे स्टेशन के पास मुंबई की सबसे व्यस्त सड़कों पर बृहन्मुंबई महानगर पालिका की एक वैन पैदल यात्रियों के लिए बनाए गए मार्गों से अतिक्रमण हटाने के लिए इलाके में गश्त करती है. जैसे ही बीएमसी की वैन आती है, सड़क पर रेहड़ी लगाने वाले सामान जब्त होने से बचने के लिए जल्दी-जल्दी अपना सामान बांधने लगते हैं और छिप जाते हैं. ऐसा लगभग रोज होता है. जुलाई में तिलक नगर में एक स्ट्रीट वेंडर सुधा रानाडे ने हमें बताया, "बीएमसी के डर के कारण सभी अपना सारा सामान बांध लेते हैं और जब कार चली जाती है, तो वे फिर से सामान लगा लेते हैं. हर चीज को पैक करना और फिर से उसे जमाना मुश्किल होता है."

भारत के शहरों में लगभग 14 प्रतिशत अनौपचारिक रोजगार स्ट्रीट वेंडिंग से होता है, जो देश में स्व-रोजगार करने वाले लोगों के सबसे बड़े वर्गों में से एक है. नेशनल हॉकर फेडरेशन के अनुसार, चार करोड़ से अधिक स्ट्रीट वेंडर हैं और उनका दैनिक कारोबार 80 करोड़ रुपए है.

हालांकि इसके लिए अपेक्षाकृत कम पूंजी निवेश की आवश्यकता होती है और लचीले कामकाजी घंटे होते हैं, अधिकांश स्ट्रीट वेंडर प्रतिदिन चौदह से अठारह घंटे काम करते हैं और उनके पास कोई सुरक्षा नहीं होती है. नेशनल एलायंस ऑफ स्ट्रीट वेंडर्स इन इंडिया द्वारा किए गए एक अध्ययन में तीन-चौथाई से अधिक लोगों ने कहा कि वे छापे से बचने के लिए पुलिस या नगरपालिका कर्मचारियों को दैनिक रिश्वत देते हैं. एक अन्य अध्ययन में पाया गया कि मुंबई में रिश्वत एक विक्रेता की दैनिक कमाई का दस से बीस प्रतिशत हिस्सा होती है.

बीएमसी मुंबई नगर निगम अधिनियम की धारा 314 (सी) के तहत स्ट्रीट वेंडरों के खिलाफ कार्रवाई कर रही है, जो उसे लाइसेंस के बिना या पैदल चलने वालों या यातायात में बाधा डालने वाले ठेलों को बिना नोटिस के वहां से हटाने, जब्त करने या निलामी करने का अधिकार देती है. बेदखली बॉम्बे पुलिस अधिनियम की धारा 67 और 102 के तहत भी की जाती है, जो यातायात के प्रवाह में बाधा डालने वाले किसी भी व्यक्ति को हिरासत में लेने या हटाने का अधिकार देती है. यह काम  शहर सौंदर्यीकरण परियोजनाओं के हिस्से के रूप में भी किया जाता है.

सेंट्रल मुंबई के पास एक पॉश इलाके, चेंबूर, में किराए के ठेले पर सब्जियां बेचने वाले धनंजय शिंदे ने बताया,  "हर बार जब कोई यहां का निवासी शिकायत करता है, तो बीएमसी मेरा वाहन जब्त कर लेती है और फिर मुझे पच्चीस सौ से तीन हजार रुपए का भुगतान करना पड़ता है." शिंदे ने कहा कि वह अपने वाहन के लिए प्रति माह 12000 रुपए का भुगतान करते हैं और आमतौर पर उन्हें हर महीने लगभग दस पुलिस अधिकारियों को रिश्वत के रूप में 100-100 रुपए देने पड़ते हैं. इसके अलावा, उन्होंने कहा, ग्राहक और पुलिस कभी-कभी विक्रेताओं पर दबाव डालने के लिए बेदखली कानूनों का फायदा उठाते हैं. "मेरे एक ग्राहक ने सब्जियां खरीदने के बाद मुझसे मुफ्त में करी पत्ता मांगा. मैंने मना कर दिया और गुस्से में आकर उसने फोटो खींच ली और बीएमसी से शिकायत की और मेरी गाड़ी जब्त कर ली गई." एक युवा फल विक्रेता साहिल सरदार खान ने हमें बताया कि पुलिस अक्सर मुफ्त में फल मांगती है. "हालांकि, मैं इससे इनकार करता हूं. हम उन्हें मुफ्त में चीजें क्यों दें? हम पहले से ही उन्हें रिश्वत दे रहे हैं.”

जब हम कथित रिश्वत के बारे में कुर्ला रेलवे पुलिस स्टेशन पहुंचे, तो एक हेड कांस्टेबल ने नाम न छापने की शर्त पर हमें बताया कि चूंकि बीएमसी ने विक्रेताओं को लाइसेंस प्रदान नहीं किया है, "हम उन्हें अतिक्रमणकारी मानते हैं इसलिए उन्हें बेदखल करना होता है. कभी-कभी, हम उनसे 1200 रुपए का जुर्माना वसूलते हैं. हालांकि, अदालत द्वारा 250 रुपए काटने के बाद बाकी रकम वापस दे दी जाती है.”

फेरीवालों के बारे में जनता का दृष्टिकोण बंटा हुआ है. तिलक नगर की रहने वाली दर्मिस्ता मोदी ने हमें बताया, "अगर वे हमारे घर के पास आकर हमें सस्ती कीमत पर सामान उपलब्ध करा रहे हैं, तो हम दूर क्यों जाएं? बल्कि वे बेहतर सामान उपलब्ध कराते हैं." हालांकि, एक 29 वर्षीय पेशेवर, जो हर दिन काम पर जाने के लिए लगभग छह किलोमीटर पैदल चलता है, को ऐसा नहीं लगता. उन्होंने कहा, "सड़कों पर अक्सर विक्रेताओं द्वारा अतिक्रमण कर लिया जाता है जिससे पैदल चलने वालों के लिए चलने के लिए कम जगह बचती है."

स्ट्रीट वेंडरों को किसी भी पूजा स्थल, शैक्षणिक संस्थान या अस्पताल के सौ मीटर के भीतर और किसी भी बाजार या रेलवे स्टेशन के पचास मीटर के भीतर फेरी लगाने की मनाही है. हालांकि, साइनबोर्ड लगाकर फेरीवालों के लिए प्रतिबंधित की गई पैदल यात्री लेन पर बहुत सारी वेंडिंग गाड़ियां देखना या इन क्षेत्रों में ऑटोरिक्शा चालकों को खाना खाते हुए देखना असामान्य नहीं है. नेशनल हॉकर फेडरेशन से जुड़ी एक शोधकर्ता शलाका चौहान ने हमें बताया, "स्ट्रीट वेंडर शहर को सुरक्षा, पोषण, अर्थव्यवस्था, पर्यावरण, आजीविका, शिक्षा और चक्रीय अर्थव्यवस्था प्रदान करते हैं." उदाहरण के लिए 2010 में वडोदरा पुलिस ने हॉक आई नामक एक परियोजना शुरू की जिसमें सड़क विक्रेताओं को सामुदायिक पुलिसिंग के लिए चुना गया था. हालांकि, कुर्ला में हेड कांस्टेबल ने कहा कि उन्हें "इस बात की जानकारी नहीं है कि सड़क विक्रेता निवासियों की सुरक्षा बढ़ाने में मदद कर सकते हैं या नहीं."

स्ट्रीट वेंडर्स (आजीविका का संरक्षण और स्ट्रीट वेंडिंग का विनियमन) अधिनियम, 2014 ने नगर निगम अधिकारियों और विक्रेता संघों के प्रतिनिधियों से बनी टाउन वेंडिंग समितियों के निर्माण को अनिवार्य कर दिया, जो स्ट्रीट वेंडरों की पहचान करेंगी, प्रमाण पत्र जारी करेंगी और रिकॉर्ड बनाए रखेंगी. उस वर्ष, बीएमसी ने एक सर्वेक्षण किया जिसमें मुंबई में 99435 स्ट्रीट वेंडरों की पहचान की गई. महाराष्ट्र सरकार ने अधिनियम के तहत नियमों को अधिसूचित किया और 2016 में टीवीसी का गठन किया. हालांकि, इसने अधिनियम के अनुसार, टीवीसी के कम से कम 40 प्रतिशत सदस्यों को सड़क विक्रेताओं के प्रतिनिधियों के रूप में निर्वाचित करने का प्रावधान नहीं किया. बॉम्बे हाई कोर्ट द्वारा इस योजना को अधिनियम का अनुपालन न करने के लिए दोषी ठहराए जाने के बावजूद, सरकार ने ऐसा करने वाली कोई नई योजना जारी नहीं की है.

मई 2021 में स्क्रॉल ने बताया कि अव्यवहारिक चुनाव के कारण केवल लगभग पंद्रह हजार स्ट्रीट वेंडरों के पास ही लाइसेंस थे. दिसंबर 2022 में ही महाराष्ट्र सरकार ने एक प्रतिबंधात्मक अधिवास नियम को खत्म कर दिया था, जिसके तहत आवेदकों को - जिनमें से अधिकांश प्रवासी हैं - राज्य में पंद्रह वर्षों तक रहना आवश्यक था. यहां तक ​​कि 2034 तक के लिए शहर की विकास योजना का मसौदा भी, अस्थायी वेंडिंग जोन प्रदान करने के बावजूद, सड़क विक्रेताओं को एकीकृत करने में विफल रहा है. इस रवैये के कारण रेहड़ी-पटरी वालों को बेदखल होना पड़ा और उन्हें कम आवाजाही वाले क्षेत्रों में स्थानांतरित कर दिया गया.

नेशनल एसोसिएशन ऑफ स्ट्रीट वेंडर्स ऑफ इंडिया के राज्य समन्वयक गुरुनाथ सावंत ने हमें बताया, "फिलहाल, वेंडिंग जोन निर्धारित करने के बजाय, बीएमसी ने सड़कों के किनारे पैंतीस हजार वेंडिंग स्थानों की पहचान की है. "हालांकि, यदि सभी विक्रेताओं का सर्वेक्षण नहीं किया गया, उन्हें प्रमाण पत्र नहीं दिए गए और वेंडिंग ज़ोन निर्धारित नहीं किए गए हैं, तो विक्रेताओं का स्थानांतरण नहीं हो सकता है." उन्होंने कहा कि स्ट्रीट वेंडर्स एक्ट के तहत लाइसेंस के लिए योग्य माने जाने वाले वेंडरों को अभी तक उनके प्रमाणपत्र नहीं मिले हैं. बीएमसी ने पूछे जाने पर इस मामले पर कोई जवाब नहीं दिया.

टीवीसी में कम प्रतिनिधित्व होने और सरकार की उदासीनता ने इन लोगों के जीवन को कठिन बना दिया है क्योंकि लाइसेंस प्राप्त करना कठिन है. भले ही स्थानीय नगरपालिका परिषदें सीमित ने कुछ क्षेत्रों को स्ट्रीट वेंडिंग जोन के रूप में नामित किया है फिर भी बिना लाइसेंस वाले विक्रेताओं को इन क्षेत्रों से बेदखल किया जा सकता है. स्ट्रीट वेंडर से सड़क सुरक्षित रहती है और शहरी जीवन को सस्ता करने में ये भूमिका निभाते हैं,” अंतरराष्ट्रीय नेटवर्क महिलाओं के अनौपचारिक रोजगार वैश्वीकरण और आयोजन की प्रतिनिधि शालिनी सिन्हा ने हमें बताया. सिन्हा कहती हैं, “उन्हें बढ़ावा दिया जाना चाहिए और सुरक्षित किया जाना चाहिए. विभिन्न शहरी संस्थानों जैसे सड़क या सार्वजनिक-कार्य विभाग या रेलवे को सड़क विक्रेताओं को विकास संबंधी योजनाओं में एकीकृत करके शहर में विकास को बेहतर बनाने के लिए काम करना होगा."