एक कबूतर-प्रेमी की कहानी

कबूतर-प्रेमी उदय गायकवाड़, कबूतर के आकार को समझाने के लिए अपने एक कबूतर का पंख फैलाकर दिखाते हुए. कारवां के लिए स्टीफन चिनॉय

वह साल 1994 की गर्मियों का समय था. पुणे की अजमेरा कॉलोनी में बच्चों के एक समूह की एक घर में आ रहे कबूतर से दोस्ती हो गई, जिसे पड़ोस के एक बुजुर्ग जोड़े ने छोड़ दिया था. कबूतर उनकी इमारत की छत पर बसेरा करने लगा और जब बच्चे खेलते थे तो उनके चारों ओर उड़ने लगता था, मानो उनके खेल में शामिल हो रहा हो. उन्होंने उसे खाना खिलाया और उसके लिए एक घोंसला बनाया.

ग्यारह से बारह वर्ष के बच्चे, रियाज, गौरव, अमोल, लाल बहादुर और उदय गायकवाड़ उस पक्षी की देखभाल करते और उसका नाम शहंशाह रखा. गायकवाड़ ने मुझसे कहा, "छत उसका साम्राज्य थी. वह किसी अन्य पक्षी को अपने निवास स्थान के आसपास नहीं जाने देता था और जो भी पक्षी उसके क्षेत्र में आने की कोशिश करता था, उसे चोंच मार देता."

गायकवाड़ के लिए वह एक कबूतर-प्रेमी बनने की यात्रा की शुरुआत थी. अब चालीस की उम्र में उनके पास एक सौ पचास से अधिक कबूतर हैं. उन्होंने मुझसे, कबूतरों के प्रकार और उनकी विशेषताओं के बारे में विस्तार से बताते हुए कहा, कबूतर-प्रेमी होना ही "अपने आप में एक दुनिया है,"

गायकवाड़ एक बहुराष्ट्रीय कंपनी में काम करते हैं लेकिन उन्हें अपने करियर को सीमित करना पड़ा क्योंकि वह तीन दिनों से अधिक समय की यात्राओं से बचते हैं. उन्होंने कहा, "मैं अब उन्हें प्रशिक्षित नहीं करता, लेकिन जब करता था, तो हर दिन लगभग नौ घंटे बिताता था." शहंशाह गायकवाड़ को एक ऐसे रास्ते पर ले आया, जो उन्हें उनके शौक को समय की बर्बादी मानने वाले अपने परिवार के विरोध के बावजूद, गुरु की तलाश में पुणे के पक्षी बाजारों से बेंगलुरु की सड़कों तक ले गया.

पुणे पक्षीमित्र एसोसिएशन के सह-संस्थापक राजेश सासर ने मुझे बताया, "लोग सोचते हैं कि जो लोग कबूतरों को पालते हैं वे तुकार है." गायकवाड़ के मामले में पारिवार में एक और व्यक्ति था जिसे पक्षियों से उनके जितना हीलगाव था. वह थे उनसे दस साल बड़े चचेरा भाई सुनील थोराट. थोराट ने स्कूल छोड़ दिया था और एक ऑटोरिक्शा चलाते थे.

गायकवाड़ के माता-पिता आपत्ति जताने वाले अकेले नहीं थे. उसने और उसके दोस्तों ने शहंशाह के साथी के रूप में एक मादा कबूतर खरीदने का फैसला किया था. वे दस किलोमीटर साइकिल चला कर शिवाजी नगर के एक पक्षी बाजार में गए और दस रुपए में एक मादा कबूतर खरीद लाए जो उस समय बहुत बड़ी रकम थी. गायकवाड़ ने कहा, "दो वड़ा पाव की कीमत एक रुपए होती थी इसलिए दस रुपए में आप पूरी पिकनिक मना सकते थे. इसमें हमारी सारी पॉकेट मनी खत्म हो गई थी." बच्चों ने मादा कबूतर को शहंशाह के पास रखा, लेकिन वह उड़ गई. उन्होंने एक और खरीदी जो रुकी रही. लेकिन उनके माता-पिता पढ़ाई के बजाय कबूतरों के साथ समय बिताने से खुश नहीं थे. गायकवाड़ ने कहा, "एक बार रियाज की मां इतनी पागल हो गई कि उसने कबूतरों के लिए जो घोंसला बनाया था उसे छत से नीचे फेंक दिया." बाद में, पड़ोस में हुई एक दुर्घटना के कारण हाउसिंग सोसायटी को सभी छतों पर ताला लगाना पड़ा, जिससे बच्चों का अपने प्यारे पक्षियों से मिलना बंद हो गया.

यह महसूस करते हुए कि पक्षियों को बेहतर देखभाल की जरूरत है, गायकवाड़ और उनके दोस्तों ने वह जोड़ा शिवाजी नगर में 25 रुपए में बेच दिया. गायकवाड़ ने बताया, "हमने पक्षियों को इतनी बड़ी रकम में बेचा, जो हमारे लिए बहुत बड़ी थी, लेकिन हमें इससे खुशी महसूस नहीं हुई." हालांकि, कुछ दिनों बाद, उसे उसी छत पर वापस देखा गया.

गायकवाड़ ने आगे कहा, "मैं शुरू में कैच-एंड-कीप गेम में शामिल था, जहां अगर किसी का पक्षी भटक जाता है या दूसरे के मचान पर बैठ जाता है, तो उसे आम तौर पर पकड़ लिया जाता है और पकड़ने वाले द्वारा अपने पास रख लिया जाता है. जिसका पक्षी पकड़ा गया उसे बदनामी झेलनी पड़ती और जिसने उसे पकड़ा उसे आस-पड़ोस के लोगों के बीच प्रतिष्ठा प्राप्त होती." स्वाभाविक रूप से खेल ने तीखी प्रतिद्वंद्विता को बढ़ावा दिया और लगातार झड़पों का कारण बना. ये लोग, जिनमें से अधिकांश अपनी किशोरावस्था में थे, कभी-कभी "चोर कबूतर" का उपयोग करते थे. वे आकर्षक युवा कबूतर होते थे जो अन्य कबूतरों को अपनी छत पर वापस ले जाने के लिए लुभाते थे.

ये शौकीन लोग अधिक महंगे और बेहतर प्रदर्शन करने वाले पक्षियों को खरीदने के लिए दौड़ मशक्कत करते हैं. और यदि वे समर्थ होते हैं, तो अंतरराष्ट्रीय चैंपियन पक्षियों की नस्ल भी खरीदते हैं. 2020 में बेल्जियम की एक मादा रेसिंग कबूतर, न्यू किम ने 1.6 मिलियन यूरो में बेचे जाने के बाद एक नया रिकॉर्ड बनाया, जिसने आर्मंडो नामक एक अन्य स्टार रेसिंग कबूतर को पीछे छोड़ दिया, जो पिछले वर्ष 1.25 मिलियन यूरो में बेचा गया था.

कबूतरों की चोरी या हत्या और ईर्ष्या के कारण लोगों की हत्या की खबरें असामान्य नहीं है. 1997 में जब उन्हें विभिन्न नस्लों के अनूठे जोड़े के बारे में अधिक जानकारी मिली, तो गायकवाड़ एडिसन थॉमस से मिलने के लिए बैंगलोर गए. जिन्होंने बाद में कर्नाटक रेसिंग पिजन क्लब के अध्यक्ष के रूप में कार्य किया. उन्होंने थॉमस से 1500 रुपए प्रति पक्षी में दो पक्षी खरीदे. गायकवाड़ ने कहा, थॉमस कैच-एंड-कीप के उन शौकीन लोगों से अलग थे जिन्हें वह जानते थे. वह शिक्षित थे, उन्होंने एक राष्ट्रीय दैनिक के लिए पत्रकार के रूप में काम किया था और पक्षियों के प्रति उनका एक अनूठा दृष्टिकोण था. “पहली बार, मैंने देखा कि एक शौकीन व्यक्ति पक्षियों के लिए पालक माता-पिता की तरह हो सकता है. वह वास्तव में अपने पक्षियों की परवाह करता था.” थॉमस से मुलाकात ने गायकवाड़ के जीवन को मौलिक रूप से बदल दिया. उन्होंने गुरुओं और शिक्षकों की तलाश की और कबूतरों के बारे में सब कुछ सीखा जैसे की उनके प्रकार, विशेषताएं, बुद्धि, प्रशिक्षण, पालन और पोषण.

कबूतरबाजी की दुनिया में गुरु ढूंढना आसान नहीं है. मास्टर व्यक्ति अपने रहस्यों और पारंपरिक ज्ञान को साझा करने से सावधान रहते हैं. छात्र और शिक्षक के बीच का बंधन गठ बंधन से बंधा होता है. गायकवाड़ के गुरु हरि पटोले थे, जिन्होंने उन्हें कबूतर पालने और स्वस्थ पक्षियों को पालने की शिक्षा दी. गायकवाड़ ने कहा, "बहुत से लोग चाहते थे कि वह उन्हें अपना कुछ गुप्त मिश्रण दें जो साल में एक बार सभी पक्षियों को दिया जाता था और पक्षियों को ठीक करने और उन्हें पूरे साल स्वस्थ रखने के लिए प्रसिद्ध था. लेकिन वह लोगों की बातों में कभी नहीं आए."

गायकवाड़ के कबूतरखाने में जाकर मैंने देखा कि अंदर की हवा में महीन सफेद धूल के कण थे, जो ज्यादातर कबूतरों की बीट के कारण थे. अंदर जाने के आधे मिनट के भीतर ही मुझे छींक आने लगी. "ओह, आपको धूल से एलर्जी है," मेरे साथ आए फोटोग्राफर स्टीफन चिनॉय ने चिंता जाहिर करते हुए कहा. "मुझे भी छींक आती है." उसने काले रंग की शर्ट पहन रखी थी और जब वह मचान से बाहर आया, तो ऐसा लगा जैसे उस पर हल्के से सफेद पाउडर छिड़क दिया गया हो. जबकि जिन नए शौकीनों के पास मैं गया उनके घर अपेक्षाकृत साफ-सुथरे थे, गायकवाड़ ने मुझे बताया कि अधिकांश अनुभवी शौकीन कबूतरों के हिसाब से मचान बनाते हैं, न कि लोगों के हिसब से, जो आरामदायक लगता है. इन मचानों में कबूतर टहनियों और गोबर से घोंसले बनाने की कोशिश करते हैं.

मैंने गायकवाड़ से पूछा कि क्या वह अपने सभी कबूतरों को पहचानतें है. उन्होंने कहा, “हां, बिल्कुल. हर पक्षी की आंखें अनोखी होती है, जैसे इंसान की उंगलियों के निशान.” उसने मुझे अपने फोन पर कबूतर की आंख की एक तस्वीर दिखाई. "देखिए, अगर मैं कबूतर की आंख पर रोशनी डालूं, तो पुतली सिकुड़ जाएगी और आप परितारिका को ठीक से देख पाएंगे," उन्होंने पक्षी की पुतली के चारों ओर बने छल्ले की ओर इशारा करते हुए समझाया.

इसमें गति रेखाएं और दूरी रेखाएं हैं जो आपको पक्षी की गति और सहनशक्ति के बारे में बताती हैं. कबूतर के बच्चों को पहचान के लिए उनके टखने के चारों ओर एक अंगूठी पहनाई जाती है. टैग में आमतौर पर जन्म वर्ष, पंजीकरण संख्या और कभी-कभी मालिक का संपर्क विवरण और पक्षी को ट्रैक करने के लिए एक जीपीएस चिप होती है. चूंकि अधिकांश शौकीनों के पास सौ से अधिक कबूतर हैं, इसलिए केवल कुछ विशेष पक्षियों को ही नाम दिए गए हैं. पिछले साल तेलंगाना के एक गांव में उस समय अफरा-तफरी मच गई जब किसानों ने संभवतः भटक रहे होमर कबूतर के टैग को जासूसों द्वारा इस्तेमाल किया जा रहा एक कोडित संदेश समझ लिया. पुलिस को बुलाया गया और "जासूस कबूतर" को हिरासत में ले लिया गया. आंध्र प्रदेश और ओडिशा में इस तरह की घटनाएं सामने आई हैं. ओडिशा में वाहक कबूतर सेवा भी है, जिसे 1946 में शुरू किया गया था और आज इसमें सौ से अधिक बेल्जियम होमर कबूतर हैं.

गायकवाड़ ने बताया कि कबूतरों की मोटे तौर पर दो श्रेणियां हैं: शो कबूतर, जिन्हें सुंदरता और कौशल के लिए पाला जाता है और रेसिंग कबूतर. उन्होंने कहा, बाद वाले आमतौर पर हाईफ्लायर्स और रेसिंग होमर्स में विभाजित होते हैं. होमर लंबी दूरी तय करते हैं और उन्हें गति के आधार पर आंका जाता है, जबकि हाईफ्लायर्स, जिन्हें सहनशक्ति के आधार पर आंका जाता है, आमतौर पर लंबी दूरी तक उड़ान भरने के बजाय आकाश में ऊंची उड़ान भरते हैं, घंटों तक अपने मचान का चक्कर लगाते रहते हैं. जो हाईफ्लायर सबसे लंबे समय तक हवा में रहता है उसे विजेता का ताज पहनाया जाता है. होमरों में सबसे तेज पक्षी जीतता है. लेकिन होमर को भी उनके हवाई मार्गों की लंबाई के आधार पर कम दूरी, मध्यम दूरी और लंबी दूरी के रेसर्स के रूप में वर्गीकृत किया जाता है. लंबी दूरी के होमर एक हजार किलोमीटर तक की उड़ान भर सकते हैं. दूसरी ओर, शो कबूतरों में आकार, आकृति, रंग और व्यवहार से संबंधित लक्षण होते हैं. कुछ किस्मों, जैसे ऊंची उड़ान वाले टंबलर में, उड़ान के दौरान पीछे की ओर गिरने या लुढ़कने की क्षमता होती है, जबकि ट्रम्पेटर्स को उनके अद्वितीय स्वरों के लिए पहचाना जाता है, जो कुछ हद तक धीमी हंसी की तरह लगते हैं.

गायकवाड़ ने मुझसे कहा, कबूतरबाजी का मतलब केवल नस्लों की ताकत और गति का प्रदर्शन करना नहीं है. उन्हें पुणे के बाहरी इलाके बोपोडी में थोराट के घर पर हर दिन कॉलेज आते-जाते समय शहंशाह और अन्य पक्षियों से मिलने की याद आई. एक बार, वह कुछ दिनों के लिए वहां नहीं जा पाए और उसके चचेरे भाई ने बताया किया कि जिन पक्षियों को वह रोजाना खाना खिलाते थे, उनमें से एक ने खाना बंद कर दिया है.

उन्होंने मुझसे कहा, "यह किसी और के हाथ से नहीं खाएगा. हरिभाऊ हमेशा कहते थे, 'एक अच्छा कबूतर-प्रेमी बनने के लिए आपको एक अच्छा इंसान बनना होगा. वह सही थे. यदि आपका पक्षियों के साथ भावनात्मक संबंध नहीं होगा, तो वे जब ठीक नहीं होंगे या असुविधा में होंगे तो आप वह संकेत नहीं पहचान पाएंगे."

शौकीन लोगों के बीच प्रतिद्वंद्विता के अलावा कबूतरबाजी की दुनिया का एक स्याह पक्ष भी है. सही कानून नहीं होने के कारण इस क्षेत्र में कबूतरों पर अवैध दांव लगाने वालों, बिना लाइसेंस वाले समूहों और पक्षियों के साथ दुर्व्यवहार के खिलाफ कोई ठोस कदम नहीं उठाए गए है, जिन्हें अक्सर कैद में रखा जाता है और प्रशिक्षण और रेसिंग के लिए बाहर ले जाने के अलावा गंदे और छोटे मचानों तक सीमित रखा जाता है. इसके अलावा, शिकारी पक्षियों द्वारा बेशकीमती कबूतरों की हत्या के कारण कुछ कबूतर-प्रेमी बाज और अन्य शिकारी पक्षियों को मारने लगे हैं. फिर भी कबूतरबाजी एक आकर्षक कला है, जो कबूतरबाजी में फरेब की ओर ले जाती है. गायकवाड़ ने खिलखिला कर हंसते हुए मुझसे कहा, "वे सुंदर प्राणी हैं और बहुत बुद्धिमान हैं, कई लोगों की तुलना में अधिक बुद्धिमान हैं."