पत्रकार जेन बोरजिस और मनोचिकित्सक शीना मरिया पिएदाद ने दि सिटिज़ंस आर्काइव ऑफ़ इंडिया के साथ मिलकर सोबोइकर नामक संग्रहालय की शुरुआत की है. पारिवारिक एल्बमों और अन्य वस्तुओं से बना यह संग्रहालय दक्षिणी मुंबई के ईसाई समाज की सामूहिक स्मृति को समर्पित है. इसका नाम कोंकणी शब्द 'बोमोइकर' से बना है जो मुंबई में रहने वाले गोवानीज़ (गोवा के लोगों) को कहा जाता है. बोरजिस और मरिया पिएदाद इस शहर के इतिहास और पीढ़ियों की कहानियों को जमा कर रहे हैं.
संग्रहालय बताता है कि मुंबई में ऐसा क्या था जिसने गोवा के लोगों को आकर्षित किया और क्यों उन्होंने इसे अपना घर बनाया. इस शहर को बनाने में गोवा के लोगों के योगदान और विभिन्न सांस्कृतिक, सामाजिक और राजनीतिक आंदोलनों में उनकी भागीदारी को भी इस संग्रहालय के माध्यम से समझा जा सकता है. यह संग्रहालय मुख्य रूप से शोध और अध्ययन के लिए है लेकिन बोरजिस का उद्देश्य शहर की इस आबादी के बदलते विचारों को सामने लाना भी है.
बोरजिस का परिवार तीन पीढ़ियों से मुंबई में रह रहा है. उनके दादा-दादी 1900 के दशक की शुरुआत में यहां आए और दक्षिणी बॉम्बे में बस गए, जो उस वक़्त के प्रवासियों के पसंदीदा इलाकों में एक था. उनके दादा और नाना-नानी कर्नाटक से आए थे, जबकि उनकी दादी ओल्ड गोवा से थीं. शादी के बाद उनके दादा-दादी ने मडगांव में अपना घर बना लिया और फिर ग्रांट रोड शिफ्ट हो गए. तब उनके नाना-नानी मालाबार हिल में रहते थे. उनके आस-पड़ोस में मराठी, गुजराती, मारवाड़ी और पारसी रहते थे. दादा-दादी के रहन-सहन में पड़ोसियों का प्रभाव पड़ा.