ब्रिटेन में जिंदगी के नए मायने तलाशते फिलिस्तीनी शरणार्थी

मई 2021 में गाजा पर इजराइल के सैन्य हमला करने के एक महीने बाद प्रदर्शनकारियों ने फिलिस्तीन के लिए न्याय की मांग करते हुए लंदन में मार्च किया. उस समय यूनाइटेड किंगडम में फिलिस्तीन के समर्थन में बड़े पैमाने पर विरोध किए गए. ये न केवल लंदन और कार्डिफ जैसे बड़े शहरों में बल्कि वेल्स के स्वानसी और न्यूपोर्ट जैसे छोटे शहरों में भी हुए जहां आम तौर पर ऐसे प्रदर्शन नहीं होते थे. क्रिस जे रैटक्लिफ/गैटी इमेजिस

2021 की मई में राजन मधून को 11 दिनों तक एक ही किस्म का बुरा सपना आता रहा. तब इजराइल ने गाजा पर सैन्य कार्रवाई की थी. अपने सपने में मधून आकाश में मिसाइलों को यूं तैरते देखतीं गोया वे टूटते हुए तारे हों. वह अपनी दो जवान बेटियों के साथ जान बचने के लिए सुरक्षित स्थान ढूंढ रही होतीं कि तभी कान के पर्दे फाड़ देने वाली आवाज के साथ एक मिसाइल उनकी एक बेटी पर गिरती. इसके साथ ही उनका सपना टूट जाता और वह पसीने में तर उठतीं.

मधून 33 वर्षीय फिलिस्तीनी शरणार्थी हैं. वह 2015 में ब्रिटेन चली आई थीं और अब अपनी बेटियों के साथ स्कॉटलैंड में रहती हैं. पिछले साल मई में इजराइल और फिलिस्तीन के बीच संघर्ष के बढ़ने से 2014 में ठीक इसी तरह के इजराइली सैन्य हमले की उनकी यादें ताजा हो गईं. उस वक्त वह गाजा में रहते हुए अपनी बेटियों को सुरक्षित रखने की कोशिशें कर रही थीं. उन्होंने मुझ बताया, “इस तरह के जख्म कभी भर नहीं पाते. लोग आपको बताते हैं कि युद्ध खत्म हो चुका है लेकिन युद्ध एक अर्थ में कभी खत्म नहीं होता. आप जीवन भर उसके दिए जख्मों से जूझते हैं." मधून ने बताया कि अब वह उस लड़ाई से बेहद दूर हैं लेकिन फिर भी युद्ध ने उनके मन पर एक अमिट लकीर खींच दी है. अपनी 13 वर्षीय बेटी द्वारा हाल ही में बनाई गई एक ड्राइंग के बारे में मधून बताती हैं कि उसमें वह बम से बच कर भाग रही है. उस पेंटिंग में युद्ध के गहरे प्रभाव देखे जा सकते हैं.

मधून ने बताया, "2014 में जब हम गाजा में थे तब हमले के कारण हमारे पड़ोसी का घर जमींदोज हो गया था और हमारा घर तबाह हो गया था. तब बेटी ने यह सब अपनी आंखों से देखा था. मैंने पहली बार उसके चेहरे पर सदमे के भाव देखे थे."

पिछले साढ़े तीन दशकों में इजराइल-फिलिस्तीन युद्ध में कम से कम चौदह हजार लोगों की मौत हुई है. मधून इस बात की शुक्रगुजार हैं कि उनकी बेटियों को कोई नुकसान नहीं हुआ. लेकिन उन्हें गाजा में रह रहे अपने माता-पिता की चिंता होती है. उन्होंने मुझे बताया, “मई 2021 में हमले बढ़ने के तुरंत बाद मैंने उससे बात की थी. मैं सिर्फ यह जानना चाहता थी कि वे जीवित हैं. कभी-कभी मुझे चिंता होती है कि अगर वे इस बार भी वहां से नहीं निकल पाए तो क्या होगा?" मधून ने बताया कि वह आखिरी बार अपने माता-पिता से छह साल पहले मिली थीं. उसके बाद उन्हें ब्रिटेन में शरण मिल गई. उन्होंने बताया, “हम अपने घर वापस नहीं जा सकते क्योंकि ऐसा करने से हम यहां की नागरिकता खो देंगे.” इस सबके बीच उसके माता-पिता चुनौतीपूर्ण वीजा प्रक्रिया के कारण उनके पास नहीं आ पा रहे हैं.

उन्होंने आगे बताया, "मैं एक दोस्त को जानती हूं जो 12 साल से लंदन में रह रही है. उसके पास ब्रिटिश पासपोर्ट है. जब भी उन्होंने अपनी मां को यूके लाने के लिए आवेदन किया यूके ने यह कहते हुए मना कर दिया कि उनको इस बात का भरोसा नहीं है कि मां यहां आने के बाद वापस चली जाएंगी. मधून यूनाइटेड किंगडम में रह रहे कई फिलिस्तीनी शरणार्थियों में से एक है. इनकी कहानियां उनके संघर्ष बयां करती हैं फिर भी वे यहां एक बेहतर जीवन का निर्माण करने की कोशिश कर रहे हैं.

मधून ने बताया कि उसके माता-पिता की यूनाइटेड किंगडम आने की इच्छा भी नहीं हैं. उन्होंने कहा, "वे बूढ़े हो गए हैं. वे गाजा में रहने के आदी हैं और यहां की संस्कृति और भाषा भी फरक है. मैं केवल यही चाहती हूं कि उन्हें यहां आकर मुझसे मिलने की अनुमति मिल जाए.” मधून ने कहा, “मई 2021 के संघर्ष के दौरान उन्होंने अपने आप किसी भी अनहोनी के लिए तैयार रखा था.” उन्होंन आगे कहा, "मैं दुख और दर्द में थी. मुझे बुरे सपने आते थे लेकिन अब हम इसी तरह जी रहे हैं और इसे लेकर मैं कुछ नहीं कर सकती." कई फिलिस्तीनी शरणार्थियों के लिए अपने देश को छोड़ने का निर्णय लेना कठिन था क्योंकि यह कदम उन्हें अंदर से बेचैन कर देता है.

मधून ने गाजा में जीवन का जिक्र करते हुए बताया, "वहां विकास के अवसर नहीं हैं. मैं गाजा में लोगों को जानती हूं जो चाहे कुछ भी हो जाए देश नहीं छोड़ंगे क्योंकि वही उनका घर है. लेकिन जब मैं यहां अपने बच्चों को ऐसे कार्य करते देखती हूं जो उनके विकास में मदद करते हैं, तब एहसास होता है कि ऐसी चीजें फिलीस्तीनी बच्चे नहीं कर सकते. मैं एक मां हूं. मैं अपने बच्चों का भला चाहती हूं इसलिए वहां वापस जाने और उन्हें उस युद्ध में धकेलने का फैसला मैं नहीं कर सकती."

एक अन्य 33 वर्षीय फिलिस्तीनी शरणार्थी रहीम लबान एक दिन फिलिस्तीन के अपने घर जा पाने की उम्मीद रखते हैं. उनके दादा-दादी 1948 में फिलिस्तीन छोड़कर चले आए थे. उनका जन्म सऊदी अरब में और परवरिश सीरिया में हुई. वह 2012 में एक अंतरराष्ट्रीय छात्र के रूप में यूनाइटेड किंगडम आए और अगले ही साल यहां शरण लेने के लिए आवेदन कर दिया. 2021 में वह ब्रिटिश नागरिक बन गए. लबान ने यूनाइटेड किंगडम की नागरिकता लेने का कारण बताया कि, "इजराइल में शरणार्थियों और उनके वंशजों का वापस लौटना प्रतिबंधित है और ब्रिटिश पासपोर्ट के साथ हम मामूली जांच और कम परेशानी में घर वापस जा सकते हैं.”

ब्रिटिश पासपोर्ट धारकों को फिलिस्तीन या इजराइल जाने के लिए वीजा की आवश्यकता नहीं होती है. लेकिन लबान ने बताया कि यूनाइटेड किंगडम इजराइल समर्थक है जिससे अजीबोगरीब आंतरिक परेशानियां पैदा होती है. उन्होंने कहा, “मुझे खुशी है कि इस देश ने मुझे शरण और शिक्षा दी है लेकिन दुख की बात है कि ब्रिटेन इजराइल समर्थक है.” एक लंबा विराम लेने के बाद उन्होंने कहा, “आप सालों तक एक घर में रह कर भी असुरक्षित महसूस कर सकते हैं. अगर खुद का बचाव करना अच्छा है तो मैं हमेशा पलायन करने के लिए तैयार हूं. मुझे खुद को गुनहगार नहीं मानता. मैं कोई आदर्शवादी नहीं हूं."

मई 2021 में ब्रिटिश सांसद जाराह सुल्ताना ने संसद में कहा कि फिलिस्तीन की स्वतंत्रता की मांग आज पहले से तेज हो चुकी है फिर भी ब्रिटिश सरकार इस पर ध्यान नहीं दे रही है. उन्होंने कहा कि सरकार को 2015 से अब तक इजराइल को हथियारों की बिक्री से 400 मिलियन पाउंड प्राप्त हुए हैं. समाचार पत्र दि इंडिपेंडेंट की एक रिपोर्ट के अनुसार मई 2021 में ब्रिटिश में बने सैन्य हथियार और हार्डवेयर का इस्तेमाल इजराइली सेना ने गाजा पर हवाई हमले के लिए किया." इजराइली सेना के प्रवक्ता ने बात की पुष्टि भी की कि बमबारी में F-35 जेट का इस्तेमाल किया गया था. रिपोर्ट में कहा गया है कि जेट के निर्माता लॉकहीड मार्टिन ने दावा किया है कि ब्रिटिश कौशल के निशान विमान के दर्जनों प्रमुख पुर्जों पर पाए जा सकते हैं." 2021 में इजराइल पर हमले के बाद यूनाइटेड किंगडम में फिलिस्तीनियों के समर्थन में बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन किए गए.

ये प्रदर्शन न केवल लंदन और कार्डिफ जैसे बड़े शहरों में हुए बल्कि वेल्स के स्वानसी और न्यूपोर्ट जैसे छोटे शहरों में भी हुए जहां आम तौर पर ऐसे प्रदर्शन नहीं होते थे. अकेले लंदन में लगभग डेढ़ लाख लोगों के प्रदर्शन में शामिल होने का अनुमान था. संघर्ष विराम की घोषणा के बाद भी ये प्रदर्शन जारी रहे. एमनेस्टी इंटरनेशनल के अनुसार, 1948 में इजराइल के अस्तित्व में आने के बाद से सात लाख से अधिक फिलिस्तीनी विस्थापित हुए हैं. एमनेस्टी के एडवोकेसी डायरेक्टर फिलिप लूथर ने उनकी संस्था द्वारा जारी एक विज्ञप्ति में कहा है, "इजराइल बनने के चलते 70 से अधिक वर्ष पहले जिन फिलिस्तीनियों को उनके घरों से बाहर धकेल कर बेदखल कर दिया गया था, वे विनाशकारी परिस्थितियों का सामना आज भी कर रहे हैं.” ह्यूमन राइट्स वॉच ने कहा है कि फिलीस्तीनी शरणार्थियों, जो शुरू में वहां से निकल आए थे और उनके वंशज दोनों को उनके घरों में लौटने की अनुमति दी जानी चाहिए. लबान ने बताया, “मेरे पिता कहते है कि यदि फिलिस्तीनी शरणार्थियों को लौटने की इजाजत मिलती है तो वह सबसे पहले लौटेंगे. उन्हें बार-बार जमीन से उजड़ना पसंद नहीं है लेकिन वह फिर भी लौट जाएगें."

 


चाहत अवस्थी यूके में रहने वाली मल्टीमीडिया पत्रकार हैं. राजनीति, संस्कृति, कारोबार और वित्तीय मामलों पर रिपोर्टिंग करती हैं.