उत्तर पूर्वी दिल्ली के मुस्तफाबाद के बृजपुरी इलाके में हिंदू दंगाइयों और पुलिस द्वारा फारुकिया मस्जिद पर धावा बोलने और अंदर नमाज पढ़ रहे लोगों को मार डालने के आठ महीने बाद भी दिल्ली पुलिस ने अब तक हमले की शिकायतों की प्राथमिकी दर्ज नहीं की है. हमले में जीवित बचे लोगों के अनुसार, 25 फरवरी को शाम 6.30 बजे उत्तर पूर्वी दिल्ली में भड़की सांप्रदायिक हिंसा के तीसरे दिन दंगाइयों और वर्दी में आए लोगों ने मस्जिद में आग लगा दी और अंदर नमाज पढ़ रहे लोगों को बेरहमी से पीटा और मरने के लिए छोड़ दिया था. हमले में बचे खुर्शीद सैफी और फिरोज अख्तर, जो उस समय मस्जिद में नमाज पढ़ रहे थे, ने मार्च और अप्रैल में हमले का आरोप लगाते हुए दिल्ली पुलिस और दंगाइयों की नामजद शिकायत दर्ज कराई थी लेकिन सांप्रदायिक हमले में पंजीकृत एकमात्र एफआईआर उनकी शिकायतों को नजरअंदाज करती है.
कारवां ने मार्च में मस्जिद में हमले के बारे में रिपोर्ट की थी और नोट किया कि इस घटना के गवाह बने अख्तर सहित अन्य बचे तीन लोगों ने हमलावरों की पहचान “बल” या “पुलिसकर्मी” के रूप में की. बचे तीन लोग - मुफ्ती मोहम्मद ताहिर, मस्जिद के 30 वर्षीय इमाम जलालुद्दीन, नमाज के लिए बुलावा देने वाले मस्जिद के 44 वर्षीय मुअज्जिन और अख्तर ने कहा कि वर्दीधारी हमलावरों ने लाठियों से उन्हें बेरहमी से पीटा और फिर मस्जिद में आग लगा दी. उन्होंने अनुमान लगाया कि तीस से साठ वर्दीधारी लोगों ने मस्जिद पर हमला किया था. कारवां ने पहले भी रिपोर्ट बताया था कि अगले दिन दिल्ली पुलिस वापिस उस क्षेत्र लौटी और जो भी सीसीटीवी कैमरे पिछली शाम को बच गए थे उन्हें तोड़ दिया और फिर मस्जिद से सटे एक मदरसे को आग लगा दी. इनमें से कोई भी आरोप दिल्ली पुलिस द्वारा दर्ज की गई एफआईआर में नहीं है.
अख्तर पेशे से दर्जी हैं जो हमले के समय मस्जिद में नमाज पढ़ रहे थे. अप्रैल में दायर एक शिकायत में उन्होंने बताया है कि दंगाइयों, पुलिसकर्मियों और "हरी वर्दी पहने कुछ लोग" हथियार लेकर मस्जिद में शाम करीब 6.30 बजे पहुंचे और अंदर आकर बेरहमी से सभी को मारने लगे. अख्तर ने अपनी शिकायत में दयालपुर पुलिस स्टेशन के स्टेशन हाउस ऑफिसर तारकेश्वर सिंह की विशेष रूप से पहचान की. हालांकि अपनी शिकायत में उन्होंने केवल पद से उनकी पहचान की है नाम से नहीं. उन्होंने कहा कि एसएचओ अन्य पुलिस अधिकारियों और "हरी वर्दी पहने लोगों" के साथ मस्जिद में आए और "अंदर नमाज पढ़ रहे लोगों पर हमला कर दिया और जिन लोगों ने मस्जिद से भागने की कोशिश की उन्हें बाहर तैनात पुलिस अधिकारियों ने गोली मार दी."
अख्तर ने मुझे बताया, "मैंने देखा कि पुलिसवाले हमें बेरहमी से पीट रहे हैं और फिर हमें मस्जिद से बाहर खींच रहे हैं." उन्होंने कहा, "पुलिस की वर्दी में एक व्यक्ति ने अपने साथी हमलावरों से यह भी कहा कि कोई भी मुस्लिम लाश मस्जिद के अंदर नहीं रहनी चाहिए क्योंकि इससे जमीन अपवित्र हो जाएगी जिस पर हम अब एक 'मंदिर' बनाएंगे." उन्होंने कहा "मुझे याद है कि हम कम से कम पांच लोग नमाज पढ़ रहे थे जब पुलिसवाले मस्जिद के अंदर आए. उनमें से आधों ने मुझे पकड़ लिया, जबकि बाकी अलग-अलग दिशाओं में भागे, वे हम सभी को डंडों और लोहे की छड़ों से पीट रहे थे. ”
अख्तर ने तीन हिंदू हमलावरों की पहचान की. एक स्थानीय चावला जनरल स्टोर चलाता है, जिस पर उन्होंने मस्जिद के बाहर पुलिस के साथ लोगों को गोली मारने का आरोप लगाया था. एक राहुल वर्मा, जिस पर उन्होंने मस्जिद के अंदर लोगों को गोली मारने का आरोप लगाया था और एक अरुण बसोया, जिसके ऊपर उन्होंने पेट्रोल बम फेंकने का आरोप लगाया था. उन्होंने जोर देकर कहा कि हमलावरों ने इमाम और मुअज्जिन पर हिंसक हमला किया. इमाम पर हुए हमले के बारे में बताते हुए उन्होंने शिकायत में कहा, "मौलाना साहब के पैर ईंटों पर रखे गए थे और फिर एसएचओ के निर्देश पर उन्होंने उनके पैरों पर तब तक मारा जब तक कि वे टूट नहीं गए." अख्तर ने लिखा है कि उन्हें लोहे की रॉड से पीटा गया था जिसके कारण उनके हाथ और सिर पर गंभीर चोटें आईं और फिर जब सीएए विरोधी प्रदर्शन स्थल के टैंट में आग लग गई तो उन्हें उस आग में फेंक दिया गया. उन्होंने आगे बताया कि कि वह किसी तरह बचकर भाग पाए.
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