शिरोमणि अकाली दल के शासन में पंजाब के राजस्व मंत्री रहे शक्तिशाली मजीठिया परिवार के वंशज, बठिंडा सांसद हरसिमरत कौर बादल के छोटे भाई और अकाली प्रमुख सुखबीर सिंह बादल के बहनोई बिक्रम सिंह मजीठिया का नाम आखिरकार 20 दिसंबर को नारकोटिक ड्रग्स एंड साइकोट्रोपिक सबस्टेंस एक्ट, 1985 के तहत एफआईआर में दर्ज कर लिया गया. करोड़ों रुपए के ड्रग्स मामले में पहली बार नाम सामने आने के लगभग आठ साल बाद उसके खिलाफ प्राथमिकी दर्ज हो सकी. मजीठिया का नाम 2013 भोला ड्रग केस, मनी लॉन्ड्रिंग के मामले में सामने आया था जिसकी कीमत प्रवर्तन निदेशालय 6000 करोड़ रुपए आंकी थी. बाद में 2017 में पंजाब में कांग्रेस सरकार द्वारा गठित एक एंटी-ड्रग्स स्पेशल टास्क फोर्स द्वारा एक रिपोर्ट में उनका नाम आया था. 2018 में सीलबंद लिफाफे में पेश एसटीएफ रिपोर्ट का निष्कर्ष था कि "बिक्रम सिंह मजीठिया की भूमिका की आगे की जांच के लिए पर्याप्त सबूत हैं."
दर्ज प्राथमिकी ईडी द्वारा भोला ड्रग्स मामले की जांच और 2018 से एंटी-ड्रग एसटीएफ की रिपोर्ट पर बहुत अधिक निर्भर करती है. भोला मामले के संबंध में उच्च न्यायालय को पंजाब मानवाधिकार संगठन ने सुझाव दिया था कि मजीठिया की कथित संलिप्तता के चलते मामले में कार्रवाई में देरी हुई. पीएचआरओ ने मामले में कनाडाई आरोपियों का जिक्र करते हुए कहा, "इस घोटाले में अंतरराष्ट्रीय लिंक के पहलू को फिर से दफ्न कर दिया गया और सट्टा, पिंडी और लड्डी की संलिप्तता को रिकॉर्ड में लाने नहीं दिया गया. इन ड्रग कारोबारियों के बारे में एक भी शब्द नहीं है और इसका एकमात्र कारण मजीठिया के खिलाफ कार्रवाई न करना है."
पीएचआरओ के प्रमुख अन्वेषक सरबजीत सिंह ने बताया कि इस प्राथमिकी में भी मजीठिया का नाम किसी भी मौजूदा जांच में नहीं था. “6000 करोड़ रुपए के भोला ड्रग मामले में कई प्राथमिकी पहले ही दर्ज की जा चुकी हैं. नया मामला दर्ज करना उचित नहीं है, बल्कि मामले की आगे की जांच की इजाजत के लिए अदालत का दरवाजा खटखटाना जरूरी है.” उन्होंने कहा, "यह जांच का विषय होना चाहिए- ड्रग पेडलर्स सट्टा, पिंडी और लड्डी के नाम अकाली शासन के दौरान पुलिस फाइलों के रिकॉर्ड में क्यों नहीं आने दिए गए?"
21 दिसंबर 2021 को केंद्रीय गृह मंत्रालय ने मजीठिया के खिलाफ लुक आउट सर्कुलर जारी किया. पंजाब पुलिस के अनुरोध पर इमिग्रेशन ब्यूरो द्वारा जारी एलओसी का उद्देश्य मजीठिया को देश से भागने से रोकना है. 24 दिसंबर को विशेष अदालत ने मजीठिया की अग्रिम जमानत की अर्जी खारिज कर दी.
मजीठिया के खिलाफ पंजाब पुलिस की अपराध शाखा ने मोहाली में एनडीपीएस एक्ट के तहत प्राथमिकी दर्ज की थी. उन पर नशीली दवाओं के उत्पादन के लिए वित्त उपलब्ध कराना, नशीली दवाओं से संबंधित अपराधों के लिए जानबूझकर अपनी कार और घर का उपयोग करने देने और एक आपराधिक साजिश में शामिल रहने का आरोप लगाया गया है. प्राथमिकी में कहा गया है कि जनवरी 2004 से दिसंबर 2014 के बीच, मजीठिया कथित अंतरराष्ट्रीय ड्रग कारोबारियों से निकटता से जुड़े थे और उन्हें घर और सुरक्षा मुहैया कराई थी.
नवंबर 2013 में पंजाब पुलिस ने मामले में पुरस्कार विजेता पहलवान जगदीश सिंह भोला को गिरफ्तार किया और उसके घर से 20 करोड़ रुपए की ड्रग्स बरामद की. उसे मनी लॉन्ड्रिंग एक्ट के तहत मार्च 2013 में ईडी द्वारा दर्ज एक मामले के सिलसिले में गिरफ्तार किया गया था. बाद में मामले में सात अन्य प्राथमिकी भी जोड़ी गईं.
जनवरी 2014 में भोला ने ड्रग व्यापार में अपनी भूमिका स्वीकार की और विभिन्न अंतरराष्ट्रीय ड्रग व्यापारियों और विक्रेताओं का नाम लिया. इनमें कनाडा के निवासी सतप्रीत सिंह (उर्फ सट्टा), परमिंदर सिंह (पिंडी) और अमरिंदर सिंह (लड्डी) और अमृतसर निवासी मनिंदर सिंह औलख (बिट्टू औलख) और जगजीत सिंह चहल शामिल थे. भोला ने कहा कि मजीठिया इन लोगों से भी जुड़े थे.
जबकि इस मामले को बाद में केंद्रीय जांच ब्यूरो ने अपने हाथ में ले लिया ईडी ने तस्करी से जुड़े धन-शोधन की समानांतर जांच शुरू की. 2014 की शुरुआत और मध्य में ईडी ने इनमें से कुछ व्यक्तियों के विस्तृत बयान दर्ज किए. कबूलनामे साफ बता रहे थे कि जिन प्रमुख लोगों के नाम भोला ने बताए थे उनके बीच की कड़ी मजीठिया थे और इनके बीच की लेनदेन में सीधे शामिल थे. कारवां ने इस पर दो रिपोर्ट की हैं जिनमें से एक में बादल के दशक भर के अशांत शासन की पड़ताल की गई थी और दूसरी में ड्रग्स पर पंजाब सरकार के दिखावटी युद्ध पर रिपोर्ट की गई थी.
भोला के स्वीकारोक्ति ने उसके पास से जब्त की गई दवाओं को व्यवसायी चहल से जोड़ा जिसे कुछ ही समय बाद गिरफ्तार कर लिया गया. चहल ने बताया कि वह औलख के साथ कई बार सट्टा, पिंडी और लड्डी से मिल चुका है. उन्होंने ईडी को बताया, "ये लोग मेरे पास नकली-इफेड्रिन खरीदने आए थे और बिट्टू औलख ने मुझे बताया कि बिक्रम सिंह मजीठिया ने कहा है कि मुझे इन लोगों की मदद करनी चाहिए." चहल ने बाद के एक बयान में यह भी कहा कि 2007 और 2012 के बीच उन्होंने मजीठिया को 35 लाख रुपए किश्तों में दिए थे क्योंकि राजनेता को "चुनाव के लिए पैसे की जरूरत थी."
औलख ने कहा कि "बिक्रम सिंह मजीठिया ने सतप्रीत सिंह सट्टा को अपने सबसे अच्छे दोस्त के रूप में पेश किया," और "सट्टा मजीठा निर्वाचन क्षेत्र से विधायक के चुनाव अभियान का कॉर्डिनेटर था." औलख के अनुसार, मजीठिया ने उसे सट्टा की मदद करने के लिए भी कहा था. औलख और चहल दोनों ने ईडी को बताया कि सट्टा जब मजीठिया के साथ भारत आया था तब अमृतसर में उसके आवास पर और चंडीगढ़ में उसे आधिकारिक तौर पर आवंटित सरकारी आवास पर रुकाया गया था. बिट्टू ने ईडी को बताया कि बिक्रम सिंह मजीठिया सतप्रीत सट्टा सिंह को पंजाब में रहने के दौरान इनोवा कार, एक ड्राइवर और एक बंदूकधारी मुहैया कराते थे. चहल ने भी इस बात का जिक्र किया. उन्होंने कहा कि मजीठिया और औलख रेत-खनन के धंधे में भी लगे थे जो जांच के तहत ड्रग्स के मामले से जुड़ा था.
करीब ठीक सात साल पहले 26 दिसंबर 2014 को मजीठिया से उस समय ईडी के सहायक निदेशक निरंजन सिंह ने पूछताछ की थी. लेकिन प्राथमिकी में इस बात के बहुत कम संकेत हैं कि क्या ईडी ने अपने निष्कर्षों पर कार्रवाई की और सबूत सुरक्षित करने के लिए क्या कदम उठाए. पीएचआरओ के सरबजीत ने बताया कि मजीठिया की जांच में देरी के कारण महत्वपूर्ण सबूतों का नुकसान हुआ है क्योंकि किसी भी कानून-प्रवर्तन एजेंसी ने मजीठिया और उन लोगों के खिलाफ बुनियादी जांच तक नहीं की. सिंह का कहना है, “इन व्यक्तियों के मोबाइल की जानकारी को संरक्षित क्यों नहीं किया गया? इससे पहले भी, मजीठिया को भोला ड्रग मामले में आरोपी के रूप में नामित नहीं किया गया था जबकि उनकी भूमिका के बारे में अन्य आरोपियों ने बताया था. आज तक अंतरराष्ट्रीय ड्रग पेडलर्स और उनके सहयोगियों के यात्रा रिकॉर्ड को किसी भी जांच में पेश नहीं किया गया है."
सरबजीत ने भोला मामले की सुनवाई के दौरान एक विशेष अदालत के समक्ष 2018 में दिए गए ईडी के उप निदेशक निरंजन सिंह के एक बयान की ओर इशारा किया. निरंजन ने अदालत से कहा था कि ईडी "सतप्रीत सिंह उर्फ सट्टा द्वारा इस्तेमाल किए गए मोबाइल फोन का पता नहीं लगा सकी जबकि वह भारत में था." निरंजन ने कहा कि मजीठिया ने दूसरी बार ईडी के सामने पेश होने से इनकार कर दिया था लेकिन निरंजन ने स्वीकार किया कि वह मजीठिया को गिरफ्तार करने के लिए नहीं गए थे.
सरबजीत ने कहा, "मजीठिया की संपत्ति में वृद्धि की जांच ईडी या पंजाब पुलिस ने नहीं की. उन्होंने 2014 में दर्ज बिट्टू, भोला और चहल के बयानों का हवाला दिया लेकिन वर्तमान में उनका रुख अनिश्चित है." उन्होंने कहा कि मजीठिया ने कथित तौर पर ड्रग कारोबारियों को जो वाहन मुहैया कराए थे उनके रिकॉर्ड का पता लगाना अब लगभग असंभव होगा.
49 पन्नों की प्राथमिकी भोला मामले की विभिन्न जांचों के दौरान एकत्र किए गए सबूतों के विषय पर मौन है. प्राथमिकी में कहा गया है, "रेत खनन से कमाए धन और मजीठिया, बिट्टू औलख और अन्य को तस्करों से कथित रूप से प्राप्त धन के बीच संबंध की जांच करना आवश्यक है." प्राथमिकी में यह भी कहा गया है कि भोला से पहली बार पूछताछ किए जाने के आठ साल बाद भी सट्टा और पिंडी के बयान दर्ज किए जाने बाकी हैं.
पंजाब में नशे की समस्या लंबे समय से राज्य में एक राजनीतिक प्रश्न रही है. यह विषय उन प्रमुख मुद्दों में से एक था जिसके कारण अंततः अमरिंदर सिंह ने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया और इस साल नवंबर में कांग्रेस से बाहर हो गए. नशीले पदार्थों की समस्या पर साहसिक कार्रवाई का वादा करने के बाद 2017 में कांग्रेस सरकार सत्ता में आई थी. चुनाव प्रचार के दौरान अमरिंदर सिंह ने वादा किया था कि चार हफ्ते में ड्रग्स को खत्म कर दिया जाएगा. उन्होंने यह भी साफ किया था कि वह मजीठिया के खिलाफ कार्रवाई करेंगे.
2017 में गठित एक विशेष जांच दल की रिपोर्ट - जो फरवरी और मई 2018 के बीच सीलबंद लिफाफे में उच्च न्यायालय को भी प्रस्तुत की गई - ने पंजाब पुलिस के शीर्ष अधिकारियों सहित ड्रग व्यापार में वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों और राजनेताओं के बीच सांठगांठ का आरोप लगाया. ऐसा लगता है कि जानबूझकर जांच में बाधा डाली जा रही है. हमने सितंबर में लिखा था: "ये दस्तावेज एक गहरी समझौता प्रणाली की एक तस्वीर की तरफ इशारा करते हैं जिसमें राजनेताओं और वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों ने नशे के व्यापार को आसान बनाया है और संभवतः इसके व्यापार से लाभ उठाया है."
2017 के चुनावों के बाद कांग्रेस के भीतर अमरिंदर के सबसे मुखर विरोधी नवजोत सिंह सिद्धू ने ड्रग्स के मुद्दे पर मुख्यमंत्री के साथ एक बहुत ही खुली लड़ाई शुरू कर दी थी. इस साल जुलाई में पार्टी के भीतर बढ़ते तनाव के बीच सिद्धू को पंजाब प्रदेश कांग्रेस कमेटी का प्रमुख नियुक्त किया गया था. ट्विटर पर उन्होंने अमरिंदर से खुले तौर पर सवाल किया: “मजीठिया पर क्या कार्रवाई की गई है? अगर और देरी हुई तो हम रिपोर्ट को सार्वजनिक करने के लिए पंजाब विधानसभा में एक प्रस्ताव लाएंगे.''
नवंबर 2021 में, दिल्ली में अमरिंदर और कांग्रेस नेतृत्व के बीच तनाव बढ़ गया, और मुख्यमंत्री ने अपने पद के साथ-साथ पार्टी की सदस्यता से भी इस्तीफा दे दिया. उनके बाद सिद्धू के करीबी माने जाने वाले चरणजीत सिंह चन्नी को मुख्यमंत्री बनाया गया. सुखजिंदर सिंह रंधावा, जिन्हें चन्नी के तहत उपमुख्यमंत्री नियुक्त किया गया था, ने कहा कि एसटीएफ और एसआईटी रिपोर्ट अमरिंदर के तहत सरकार को सौंपी गई थी, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं की गई थी. रंधावा ने कहा, "अब, हमने नशीली दवाओं के खतरे को रोकने और इसे राजनीतिक संरक्षण को रोकने के लिए कानून के अनुसार अगला तार्किक काम किया है." अमरिंदर के इस्तीफे के बाद से, सिद्धू वरिष्ठ पुलिस नियुक्तियों पर जोर दे रहे हैं, जिन्हें ड्रग्स पर नकेल कसने के रूप में देखा जाता है, जैसे कि सिद्धार्थ चट्टोपाध्याय, जिन्होंने 2017 एसआईटी का नेतृत्व किया था. इस महीने की शुरुआत में, चट्टोपाध्याय को तब तक के लिए पंजाब में कार्यवाहक पुलिस महानिदेशक नियुक्त किया गया था, जब तक कि पद के लिए पात्र अधिकारियों की एक औपचारिक चयन प्रक्रिया को एक सरकारी समिति द्वारा अनुमोदित नहीं कर दिया जाता है.
इस साल नवंबर में मजीठिया ने पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय से अनुरोध किया कि उसे भोला ड्रग मामलों में एक पक्ष बनाया जाए. उसने दावा किया कि जनहित की आड़ में उसकी छवि खराब की जा रही है. मजीठिया ने डिप्टी सीएम रंधावा और सिद्धू पर "कुप्रचार" का आरोप लगाया. मजीठिया ने अदालत के समक्ष दलील दी कि ड्रग मामलों में पहले पेश किए गए चालानों से उसके खिलाफ कोई सबूत नहीं है.
अमरिंदर ने चन्नी सरकार पर मजीठिया को गलत तरीके से निशाना बनाने का आरोप लगाया है. उन्होंने मीडिया से कहा, “मैं इस मामले को अच्छी तरह जानता हूं. इस मामले की जांच रिपोर्ट पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट में सील है. बावजूद इसके राजनीतिक बदला लेने के लिए मजीठिया के खिलाफ मामला दर्ज किया गया है. यह गलत है." इस बीच बादल परिवार ने इसे “झूठा मामला” बताया है. मजीठिया के बहनोई सुखबीर सिंह बादल ने कहा कि उनकी पार्टी "चुनौती स्वीकार करती है." उन्होंने कहा कि "जो लोग अपने राजनीतिक पदों का दुरुपयोग कर रहे हैं और कानून के शासन के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं [उन्हें] कानूनी परिणामों के लिए तैयार रहना चाहिए." उन्होंने भी कांग्रेस सरकार पर "राजनीतिक प्रतिशोध" का आरोप लगाया. 2022 में होने वाले विधानसभा चुनावों के साथ यह देखा जाना बाकी है कि क्या मामले पर आगे कोई कार्रवाई होगी या राजनीतिक बातों तक ही सीमित रहेगा.