उत्तर प्रदेश के हर गांव में कोरोना का कहर : घर-घर मौत, हर घर मातम

4 मई 2021 को उत्तर प्रदेश के मुरादाबाद के एक श्मशान के बाहर कोविड-19 हताहतों के अंतिम संस्कार के लिए अपनी बारी का इंतजार करते मृतकों के परिजन. यूपी में हाल में हुए पंचायत चुनाव के चलते कोविड के मामलों में तेजी से वृद्धि हुई है. अनन्दिता मुखर्जी / ब्लूमबर्ग / गैटी इमेजिस
08 May, 2021

उत्तर प्रदेश के गांव कोरोना की दूसरी लहर से तबाह हैं. इन गांवों के लोग डरे हुए हैं. अस्पतालों और अन्य चिकित्सीय सहायता की पहुंच से दूर होने के चलते मजबूरी में लोग घरेलू नुस्खों से अपना-अपनों का इलाज कर रहे हैं. प्रदेश के मुख्यमंत्री अजय सिंह बिष्ट या आदित्यनाथ चाहे बयान दे रहे हों कि स्थिति नियंत्रण में है लेकिन जिन भी गांवों के लोगों से मैंने हाल में बात की, उन्होंने मुझे बताया है कि उनके यहां अधिकांश लोगों को बुखार है. उन्हें खांसी, कमजोरी, जुखाम हो रहा है. महामारी का एक और असर यह पड़ रहा है कि गांवों का भाईचारा और ताना-बाना टूट रहा है और लाचारी इस कदर है कि मरने वालों को कंधा देने वाले लोग नहीं मिल रहे हैं.

मैंने उत्तर प्रदेश के कई जिलों- संत कबीरनगर, बलिया, बनारस, कानपुर देहात, मुजफ्फरनगर, बागपत- के गांवों के लोगों से बात की. संत कबीरनगर के रक्सौल के रमेश कुमार, जो लखनऊ के बाबा साहब भीमराव आंबेडकर विश्वविद्यालय में ‘कबीर दास और उनका समाज, उनका पंथ’ विषय पर शोध कर रहे हैं, ने बताया कि उनके गांव के लोग डरे हुए हैं. उन्होंने कहा, “बुनियादी जानकारी का इतना आभाव है कि लोग समझ रहे हैं कि जो वैक्सीन ले रहा है वह मर रहा है.” पिछले महीने लखनऊ में कुमार के मकान मालिक को कोरोना हो गया था तो वह गांव आ गए थे. कुमार ने मुझसे कहा, “इस भ्रांति की वजह है कि ऐसे तीन लोगों की मौत हुई है जिनको वैक्सीन लगी थी. एक मेरे घर के पास ही और दो बगल के गांव में.”

कुमार के गांव की आबादी 1500 के करीब है. गांव में पंचायत चुनाव 15 अप्रैल को हुए थे जिसके बाद गांव में वायरल बुखार बढ़ने लगा और खांसी, सर्दी में वृद्धि आई. कुमार ने बताया कि गांव के लोग कोरोना की जांच कराने से भी बच रहे हैं और करीब ऐसे 20 लोगों को वह जानते हैं जिनमें कोरोना के लक्षण दिख रहे हैं लेकिन वह टेस्ट नहीं करवा रहे. कुमार ने कहा, “सरकार और प्रशासन को कुछ भी लेना-देना नहीं है कि कौन मर रहा और कौन जी रहा है. मौत के सही आंकड़ें भी बाहर नहीं आ रहे हैं.”

इससे पहले अपनी एक रिपोर्ट में मैंने बताया था कि बागपत जिले के मेरे गांव धनौरा के में लगभग 15 लोगों की मौत हुई है. लेकिन यह आंकड़ा रोज बढ़ रहा है. पिछले 20 दिनों में 50 से ज्यादा लोगों की मौत मेरे गांव में हो चुकी है. कल मेरे गांव के 40 वर्षीय जबर सिंह अपने चाचा ब्रह्मपाल का अंतिम संस्कार कर घर लौटे और गाय को रोटी देने लगे. अचानक वह गिर पड़े और तुरंत उनकी मौत हो गई. जबर सिंह मजदूरी करते थे.

जिले के एक अन्य गांव सिरसली के विजय तोमर ने मुझे फोन पर बताया कि उनका पूरा गांव बीमार है और लोग अस्पताल की हालत देख कर वहां जाना नहीं चाहते. उन्होंने कहा, “अस्पताल में कोई उचित व्यवस्था नहीं है. पिछले 5 दिनों में गांव के 10 लोगों की जान गई है.” तोमर ने बताया कि गांव के ज्यादातर लोग पीपल और नीम के पेड़ों के नीचे यह सोच कर सो रहे हैं कि उन्हें ऑक्सीजन मिलती रहेगी.”

जिले के खेड़ा हटाना गांव के चौधरी विनीत आर्य ने बताया कि “गांव में कोई घर नहीं होगा जिसमें इस समय वायरल फीवर न हो. हर घर इससे पीड़ित है. आर्य ने कहा, “कोरोना की स्थिति पर अगर बात करूं तो मेरे चाचा जीएलएन जेपी हॉस्पिटल में एडमिट हैं. वहां से आने के बाद हम पूरे घर के लोग अपनी जांच कराने कलेक्ट्रेट पर गए . उसमें मेरे बाबा जी (दादा) की रिपोर्ट पॉजिटिव आई और बाकी सभी परिवार वालों की नेगेटिव. बाबा जी को पहले घर में ही आइसोलेट किया गया लेकिन जब हालत बिगड़ने लगी तो खेकड़ा कोरोना सेंटर में एडमिट करा दिया. सेंटर में छह दिन तक रहने के बाद हालत खराब होने लगी तो मेरठ मेडिकल रैफर कर दिया गया जहां दो दिन बाद उनकी मौत हो गई.”

बलिया जिले के कोटवा नारायणपुर गांव के सतेंद्र सिंह ने भी कुमार की तरह ही मुझे बताया कि गांव के आधे से अधिक लोगों में कोरोना के लक्षण दिख रहे हैं लेकिन सरकार की कोई व्यवस्था नहीं होने से लोगों को इलाज नहीं मिल पा रहा है. सिंह को भी कुछ दिन पहले घुटनों में दर्द शुरू हुआ था. उन्होंने कहा, “फिर मैंने सोचा कि हिम्मत नहीं हारनी है. मेरे साथ मेरे दो छोटे बच्चे, माता-पिता एवं भाई और उसका परिवार रहते हैं. हमारा दस लोगों का परिवार है.” सिंह ने बताया कि परिवार का ऐसा कोई सदस्य नहीं है जिसे बुखार न आ रहा हो. सिंह ने बताया कि गांव के झोलाछाप डॉक्टर ही लोगों के भगवान बने हुए हैं क्योंकि कोई दूसरा उपाय नहीं है.

सिंह के गांव में पिछले सात दिनों में करीब सात लोगों की मौत हो चुकी है. गांव में कुछ लोगों ने जिस सरकारी अस्पताल में कोरोना का टीका लगवाया था उस अस्पताल के कर्मचारियों के कोरोना पॉजिटिव हो जाने के बाद उसे बंद कर दिया गया है.

यहां भी प्रधानी चुनाव के बाद वायरल बुखार में तेजी आई है. हालांकि, लोग नहीं समझते कि यह कोरोना है लेकिन लक्षण साफ इस ओर इशारा करते हैं. गांव के लोग पैरासिटामोल, विटामिन-सी और एंटिबायटिक ले रहे हैं और कुछ तो दिन में तीन-तीन बार काढ़ा पी रहे हैं.

बनारस जिले के कोटवा गांव में रहने वाले डॉ. रामखिलावन राजभर ने, जो 2015 में अवकाशप्राप्ति से पहले बीएचयू के आईएमएस में आयुर्वेद विभाग में डॉक्टर थे, बताया कि गांव में किसी तरह का कोरोना टेस्ट नहीं हो रहा है. “हमारे यहां लोगों को टीका भी नहीं लगा. मुझे भी नहीं लगा. मेरी उम्र 70 के पार है और एक सरकारी अस्पताल को मैंने अपनी सेवा दी है फिर भी मुझे टीका नहीं लगा है.”

राजभर ने बताया कि वह पिछले दो महीने से घर के बाहर नहीं निकले हैं. इसका कराण है कि उन्हें सरकार पर भरोसा नहीं है कि यदि वह बीमार हुए तो उन्हें चिकित्सा सुविधा प्राप्त हो पाएगी. उन्होंने बताया, “सरकार सिर्फ कागज पर काम कर रही है, जमीन पर नहीं.” उन्होंने कहा, “मेरे गांव में एक 50 साल के व्यक्ति की तबियत खराब हुई. उसको पहले तो अस्पताल ने एडमिट नहीं किया फिर किसी तरह सिफारिश कर भर्ती कराया गया तो ऑक्सीजन नहीं मिली और उसकी मौत हो गई.” राजभर ने बताया कि गांव में अचानक मर जाने वालों की संख्या दर्जन के करीब है. उन्होंने दावा किया कि बनारस में ऐसा कोई गांव नहीं है जहां मौत न हुई हो. उनके अनुसार, जब पिछली बार कोरोना का प्रकोप था तो ऐसी मौतें नहीं हो रही थीं बल्कि सामान्य मौतें भी कम हो गई थीं.

लखनऊ विश्वविद्यालय से कानून की पढ़ाई कर रहे कानपुर देहात जिले के टिकवापुर गांव के पंकज यादव ने बताया कि उनके गांव में स्थिति बहुत नाजुक है. ऐसा कोई घर नहीं जिसमें लोग खांसी, बुखार या जुखाम से पीड़ित न हों. गांवों की आबादी के लगभग 85 प्रतिशत लोग इस समय बीमारी से पीड़ित हैं. गांव में पिछले चार दिनों में 12 लोगों की मौत हो चुकी है और 13 अप्रैल को, जिस दिन मैंने उनसे बात की, पांच लोगों की मौत हुई थी.

यादव ने इस बात पर गुस्सा जाहिर किया कि यदि सरकार से शिकायत की जाती है तो वह शिकायत न सुन कर शिकायतकर्ता को ही जेल में डाल रही है. उन्होंने बताया कि उनके गांव में सेनिटाइजेशन की कोई व्यवस्था नहीं की गई है. उन्होंने कहा, “गांव में करीब छह लोग गंभीर हालत में हैं.” उत्तर प्रदेश के अन्य गांवों की तरह ही यादव के गांव में भी पंचायत चुनाव के बाद हालात बिगड़े हैं.

यादव ने बताया कि सरकारी सहायता के आभाव में लोग काढ़ा, गर्म पानी, काली मिर्च और अजनाइन का शरबत पीकर अपना इलाज करने के लिए मजबूर हो रहे हैं.

चंदौली गांव के विनोद गिरी ने मुझे बताया कि पहली लहर के मुकाबले इस बार गांव के लोग अधिक सजग हैं. लेकिन उन्होंने कहा, “इस बार लोग इसको गंभीरता से ले रहे हैं और बाहर कम निकल रहे हैं या मास्क पहन कर निकल रहे हैं और दूरी बनाकर रखते हैं. गिरी स्वयं बनारस में कोरोना पॉजिटिव हो गए थे और गांव लौट आए थे. उन्होंने कहा, “मैं घर आ गया हूं और खुद को क्वारंटाइन कर लिया हूं.”

मुजफ्फरनगर के सोरम गांव के मनीष बालियान योगा टीचर हैं. उन्होंने बताया, “गांव में वायरल फीवर चल रहा है. फीवर चुनाव की वजह से फैला है. कुछ दिन पहले 22 अप्रैल को बीजेपी के समर्थित उम्मीदवार सम्राट बालियान की कोरोना से मौत हो गई थी. सम्राट की उम्र 34 साल थी. वह अपने पीछे पत्नी, दो छोटी बच्चियां, एक छोटा भाई और मां-बाप छोड़ गए हैं. इसके बाद पिछले एक सप्ताह के भीतर गांव में करीब दस लोगों की मौत कोरोना से हो चुकी है. मरने वालों में 28 साल के फारूक चौधरी, 32 साल के टिंकू और उसकी मां और दादी सहित और अन्य लोग हैं. टिंकू के पिता की हालत गंभीर है.

गोरखपुर से करीब 40 किलोमीटर दूर बड़हलगंज ब्लॉक के धनोली गांव के संजीत प्रसाद ने अपने गांव के बारे में मुझे फोन पर बताया, “गांव के कई लोग मर चुके हैं और यही हालत गोरखपुर के हर गांव की है.” प्रसाद ने 14 तारीख को अपनी कोरोना जांच कराई थी और उनकी रिपोर्ट पॉजिटिव आई थी. प्रसाद ने कहा कि उन्होंने अपनी रिपोर्ट के बारे में पांच दिन तक घर वालों को नहीं बताया ताकि वह परेशान न हों और अलग रहने लगे. उन्होंने कहा, “जब मेरी हालत कुछ ठीक हुई और कमजोरी कम हुई तो मैंने घर वालों को बताया कि मुझे कोरोना था.”

प्रसाद ने कहा कि गांव के पास का प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र पिछले दस दिनों से बंद है. उन्होंने बताया, “2001 में निवाइस में 100 बेडों का अस्पताल बनाया गया था लेकिन इसका उद्घाटन अब तक नहीं हुआ है. आज इसकी सख्त जरूरत है लेकिन खोला नहीं जा रहा.” उन्होंने कहा कि गांव में कोई घर ऐसा नहीं है जिसमें लोग बीमार न हों.

इलाहाबाद के गढोरा गांव के दिनेश पटेल ने बताया कि गांव में वायरल बुखार का प्रकोप छाया हुआ है. “मेरे घर में मैं, मेरी पत्नी और मेरे दो छोटे बच्चे सभी इसकी चपेट में आ गए हैं. मेरे गांव में एक सप्ताह के अंदर छह लोग मर चुके हैं. 22 तारीख की रात जिन तीन लोगों की मौत हुई उनमें मेरी चाची भी थीं,” उन्होंने कहा.

उन्होंने बताया कि 27 तारीख को जब उनके एक पड़ोसी की मौत हुई तो लोग इतना डरे हुए थे कि मदद के लिए नहीं पहुंचे. “हम लोग मृतक को लेकर झुंसी छटनाथ घाट पहुंचे तो रात के 8 बजे रहे थे और वहां 20 शवों का अंतिम संस्कार किया जा रहा था. वहीं के एक कर्मचारी ने बताया कि उस दिन वहां 108 लोगों का दाह संस्कार किया गया था. हम करीब 12 बजे तक वहां थे और लोग शव लेकर आते जा रहे थे.”

जौनपुर के अवरेल गांव के ब्लॉक प्रमुख लालता प्रसाद यादव ने मुझे 1 मई को फोन पर बताया कि उनके गांव की हालत बहुत खराब है और पिछले 12 घंटे में चार लोगों की मौत हो गई है. उन्होंने कहा, “प्रधानी के चुनाव के बाद स्थिति ज्यादा बिगड़ी है. गांव में कोई घर ऐसा नहीं है जो बुखार की चपेट में न हो. कोई जांच नहीं हो रही है.” यादव के अनुसार, गांव में ऑक्सीजन, बेड और अन्य किसी चीज की व्यवस्था नहीं है और आलम यह है कि लोग यहां से वहां भटकते-भटकते जान दे रहे हैं. उन्होंने कहा, “जौनपुर के रामघाट पर लाश जलाने की जगह कम पड़ रही है. लोग अब हर नदी- गोमती, सई, पीली- के किनारे शव दाह कर रहे हैं. जौनपुर में प्रतिदिन कम से कम 300 लोग मर रहे हैं लेकिन सरकार आंकड़े छिपा रही है.”


Sunil Kashyap is an independent journalist. He was formerly a reporting fellow at The Caravan.